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समाज

कुत्ता और इंसान: मायने बदल गए हैं

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शहर हो या गांव, आज के आधुनिक कहे जाने वाले समाज में कुत्ते इंसानों से बेहतर स्थिति में दिखाई देते हैं. एक तरफ़ तो इंसानों की इंसानों से दूरियां बढ़ती जा रही हैं वहीं, कुत्तों से प्रेम उफ़ान पर है. गाड़ियों और मोबाइल फ़ोन के बाद महंगे कुत्ते मॉडर्न सोसायटी के स्टेटस सिंबल बन गए हैं.
 
 
कुत्ता और इंसान, मॉडर्न सोसायटी, स्टेटस सिंबल
कुत्ता और इंसान (प्रतीकात्मक)
आजकल कुत्तों की मौज है. ये ख़ूब खाते-पीते हैं, और बड़े ठाट-बाट से रहते हैं. हर चीज़ इनकी पसंद की होती है. मौसम के हिसाब से होती है. इनकी ज़िन्दगी खुशियों से भरी है, और रंगीन भी है. ये उनके साथ रहते-घूमते और मज़े करते हैं, जिन्हें देखने के लिए भी ज़्यादातर लोग तरसते हैं. इनके जैसा जीवन ग़रीब गुरबे तो क्या आम आदमी या मिडल क्लास लोगों को भी नसीब नहीं है.
 
इनकी बिस्किट और खाने के आइटम का एक पैकेट उतने में आता है जितना एक ग़रीब आदमी दिनभर कमरतोड़ मेहनत के बाद भी नहीं कमा पाता है. ऊपर से इनकी नियमित जांच, दवा-दारू और इनके खेल-कूद, एक्सरसाइज, ट्रेनिंग, स्टिमुलेशन (रूचि, उत्साह या उत्तेजना बढ़ाने की क्रिया) आदि का खर्चा जोड़ दिया जाए, तो महीने भर रोज़ाना 10-12 घंटे कंपनियों में जूते घिसने वाले ह्वाइट कॉलर नौजवान भी भौंचक्के रह जाएं.
 
दरअसल, लोगों में आजकल प्यार बहुत है. ये सड़कों के किनारे लावारिस पड़े, भूखे-नंगे, और खुले आसमान के नीचे मौसम की मार झेलते लोगों को तो अनदेखा कर सकते हैं, मगर कुतों की तकलीफ़ बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं, उनकी भावनाओं की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं.
 
यह भी कारण है कि गोलू, भोलू, सुखिया-दुखिया की जगह अब टॉम, जैकी, फ्रेडी और जुली-लिली ने ले ली है. ये हट्ठे-कट्ठे, लंबे-चौड़े, और रंग-बिरंगे तो हैं ही, विदेशी भी तो हैं, या मिले-जुले (हाइब्रिड) हैं. मेहमान हैं. इसलिए, इनका ख़ास ख़याल रखना ज़रूरी है.
 
इनकी कद-काठी और रंग-रूप ऐसे हैं कि थोड़ी साज-सज्जा भी निखार ला देती है. इन्हें देखकर पड़ोसी, रिश्तेदार व फ्रेंड सर्कल के लोग तारीफ़ करने को मज़बूर हो जाते हैं.
 
इनके साथ सैर-सपाटे के मज़े ही कुछ और हैं.
 
चाहे स्वदेशी का झंडा बुलंद करने वाले हों या समावेशी, उनका सुबह-सवेरे मूड नहीं बनता जब तक कि लूसी या रोज़ी अपनी सुनहरी जीभ से उन्हें चाट न ले.
नेताजी डैनी या रोज़ी को बिस्किट खिलाते फेसबुक, ट्वीटर और इंस्टाग्राम पर वायरल हो जाते हैं.
 
हरिया की झोंपड़ी पर लोग निगाह भी नहीं डालते हैं, जबकि डॉगी जॉर्ज के बिस्तर और उसके कमरे की ख़ूब सराहना होती है. उसे ढ़ेरों लाइक्स मिलते हैं. शेयर किया जाता है वह भी कमेंट्स के साथ.
 
लेकिन क्यों? ऐसा क्या है कि जिससे कुत्ते इंसानों से ज़्यादा अहमियत रखने लगे हैं. क्या कुत्तों का चारित्रिक उत्थान हुआ है और इंसानों में गिरावट आई है? या कुत्ते हाईटेक हो गए हैं और इंसान आज भी लकीर का फ़क़ीर है?
 
कुछ तो बात होगी, वर्ना इंसान रेस में पिछड़ते क्यों!
 
ज्ञात हो कि कोई पहलवान तभी हारता है जब उसकी पहलवानी में कोई कसर रह जाती है, दोष उत्पन्न हो जाता है, या उसका प्रतिद्वंदी उसके मुक़ाबले अच्छे दांव-पेच जानता हो.
 
इज्ज़त की बात हो या हक़ पर सवाल, यह मसला अहम है, और इस पर विचार करना ज़रूरी है.
 
 

कुछ तो क़ुदरती है, कुछ ग़लतियां हैं हमारी

कहते हैं कि इंसान कब बदल जाए, कुछ पता नहीं होता है. मगर कुत्ता स्वामिभक्त होता है. सुख हो या दुख, वह अपने मालिक का साथ कभी नहीं छोड़ता है. हालांकि यह जीवनभर साथ नहीं रह सकता है क्योंकि इसकी आयु इंसानों के मुक़ाबले बहुत थोड़ी होती है. यह 10-12 साल ही जी पाता है. मगर जब तक रहता है ख़ूब साथ निभाता है. मालिक पर अपनी जान छिड़कता है.
 
दूसरी तरफ़, आजकल इंसान अपने आप में मस्त रहता है. अपनों से ज़्यादा सोशल मीडिया पर व्यस्त रहता है.
पति-पत्नी के बीच मोबाइल फोन क़बाब में हड्डी बन गया है. मगर कुत्ते के लिए तो सिर्फ़ और सिर्फ़ उसका मालिक या मालकिन ही है.
 
शादी के कुछ साल निकलते ही पति-पत्नी के मिज़ाज में परिवर्तन आ जाता है. पति के मन में क्या है, पत्नी को पता नहीं होता है. यही हाल पत्नी के प्रति पति का है.
मगर कुत्ता काफ़ी संवेदनशील प्राणी होता है. उसे अपने मालिक या मालकिन के स्पर्श मात्र से उनकी अन्तर्दशा का भान हो जाता है.
 
शायद वह आंखों को भी पढ़ता है.
 
ऐसे में, वह तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करता है. प्यार जताता है. ऐसा लगता है जैसे वह तमाम दुख-कष्ट हर लेगा.
 
कुत्ता सारे दुख-तकलीफ़ अपने ऊपर लेकर अपने स्वामी को बस ख़ुश देखना चाहता है.
 
कुत्ते सिक्योरिटी गार्ड से ज़्यादा भरोसेमंद होते हैं. वे घर की रखवाली उनसे बेहतर तरीक़े से करते हैं.
 
सुरक्षा गार्ड या चौकीदार, घर में आने-जाने वाले लोगों के मन में क्या है समझ नहीं सकते हैं, जबकि कुत्ते लोगों को सूंघकर सब कुछ पता लगा लेते हैं.
 
कुत्ते अपने मालिक की रक्षा में अपने प्राण भी न्यौछावर कर देते हैं.
 
 

कुत्ते के साथ सेक्स

आजकल इंटरनेट का जमाना है और इसके ज़रिए पाश्चात्य संस्कृति का दुनियाभर में तेजी से प्रचार-प्रसार हो रहा है. इसी में शामिल है अननेचुरल सेक्स (Unnatural sex) यानी अप्राकृतिक यौन संबंध. यह इंसानों का इंसानों के साथ ही नहीं, जानवरों के साथ भी स्थापित होता है.
 
जो लोग अपने पार्टनर से असंतुष्ट हैं, या जहां एक दूसरे के लिए समय का अभाव है, या फिर जो लोग अलग ही तरह के सेक्स का मज़ा ढूंढते हैं, उनके लिए अपना प्यारा डॉगी एक बेहतरीन ज़रिया है अपने तन-बदन और मन की प्यास बुझाने का.
 
कुत्तों को साथ सुलाते कुछ लोग कुत्तों में ही रम जाते हैं, और उनके साथ अपनी यौनेच्छा या वासना (Sexual desire or Lust) की पूर्ति करते हैं. इस मामले में महिलाएं पुरुषों से दो क़दम आगे दिखाई देती हैं.
 
कहते हैं कि जंगली जानवरों के भी कुछ नियम होते हैं पर इंसान काफ़ी अलग है, एक प्रकार से बहुत स्वतंत्र या स्वच्छंद है. यह वह सब कुछ कर रहा है, जो प्रकृति के नियमों के विरुद्ध ही नहीं, मानव समाज के अस्तित्व के लिए भी ख़तरा है.
बताया जाता है कि एड्स की बीमारी जानवरों के साथ संसर्ग से ही उत्पन्न हुई थी, या फैली थी.
 
भोगवादी संस्कृति ने तमाम मर्यादाएं लांघ दी है.
 
कोई पशुप्रेमी या एक्टिविस्ट कुछ भी कहे मगर सच्चाई यही है कि कुत्तों के लिए इंसान के दिलों में उमड़ते-घुमड़ते प्रेम और उन्हें बड़े पैमाने पर पालने की होड़ के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण उनके साथ सेक्स की हवस भी है.
 
कुत्ते क़ानूनी शिकंजे से दूर सबसे सुलभ-आसान और बेजुबान सेक्स ग़ुलाम (sex slave) हैं.
 
कुत्ते की ख़ासियत यह भी है कि यह किसी भी परिवेश में घुलमिल जाता है, माहौल के अनुरूप यह अपने आप को ढाल लेता है. उसका स्वामी (मालिक, पालने वाला) चाहे अच्छा हो या बुरा, शरीफ़ हो या गुंडा, उसका स्वामी होता है. उसके प्रति वह समर्पित होता है. 
 
कहते हैं कि धर्मराज (?) युधिष्ठिर के साथ कुत्ता भी स्वर्ग गया था.
 
कुछ लोग कुत्ते को भैरव का दूत बताते हैं. उनका मानना है कि जो कुत्तों को खाना खिलाता है उस तक यमदूत नहीं पहुंच पाते हैं, यानी मौत भी टल जाती है.
कुत्ते की उपस्थिति में भूत-प्रेत पास नहीं फटकते हैं.
 
लेकिन यह भी कहा जाता है कि जिस जीव से ज़्यादा लगाव होता है, मनुष्य को अगली बार उसी जीव की योनि प्राप्त होती है. यानी किसी इंसान को अगर इस जन्म में कुत्ते से ज़्यादा प्यार है, तो वह अगले जन्म में कुत्ता बनेगा. शायद बहुत सारे लोगों को यह मालूम नहीं है.
 
मगर ऐसा है भी, तो बुरा क्या है? कुत्तों के हालात बदल गए हैं. कई कुत्ते इंसानों से बेहतर ज़िन्दगी जी रहे हैं.
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रामाशंकर पांडेय

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