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शिक्षा एवं स्वास्थ्य

मर्दाना कमज़ोरी और औरतों का बांझपन दूर करता है सत्यानाशी, देता है नया जीवन, इसके अन्य फ़ायदे भी जानिए

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के वर्ष 1990 से 2021 के दौरान बांझपन पर हुए सभी प्रासंगिक शोधकार्य के अध्ययन से स्पष्ट पता चलता है कि दुनियाभर में वयस्क आबादी का 17.5 फ़ीसदी हिस्सा प्रजनन क्षमता में कमी से गुजरता है.यानि, विश्व में हर 6 में से 1 व्यक्ति प्रजनन क्षमता में कमी से प्रभावित है.

मर्दाना कमज़ोरी और औरतों का बांझपन एक वैश्विक स्वास्थ्य समस्या है, जो दुनियाभर में प्रजनन आयु के करोड़ों लोगों को प्रभावित करती है.प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक़, वैश्विक स्तर पर 4.8 करोड़ जोड़े और 18.6 करोड़ लोग बांझपन से पीड़ित हैं.इसकी वज़ह जहां ख़राब जीवनशैली है वहीं, आधुनिक और सिंथेटिक दवाओं के दुष्प्रभाव और दीर्घकालिक जटिलताएं भी महत्वपूर्ण कारक हैं.फिर भी, हम झूठे विज्ञापनों और प्रोपेगेंडा में फंसे हुए हैं, जबकि हमारे पास अनेक ऐसे पौधे और प्रचुर मात्रा में देसी उत्पाद उपलब्ध हैं, जिनमें सुरक्षित रूप में इस समस्या से लड़कर शरीर को शीघ्र स्वस्थ और क़ाबिल बनाने के अद्भुत गुण हैं.सत्यानाशी एक ऐसा ही पौधा है.इसे प्रकृति की ओर मनुष्य के लिए वरदान कहा गया है.

सत्यानाशी का पौधा (स्रोत)

दुर्भाग्य यह है कि आज आधुनिक समाज में अधिकांश लोगों को औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों के बारे में जानकारी ही नहीं है.इस कारण वे नई या आधुनिक चिकित्सा पद्धति पर ज़्यादा भरोसा करते हैं, जबकि हमारी प्राचीन और पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में ही हर प्रकार की समस्या का उचित, सुरक्षित और सम्पूर्ण समाधान उपलब्ध है.यह आज भी प्रासंगिक है.अतः इसे फिर से अपनाये जाने की नितांत आवश्यकता है.

दरअसल, प्रकृति मनुष्य के लिए ईश्वर का उपहार है.यही हमारी सभी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान देती है.प्राकृतिक उत्पाद नई रासायनिक विविधता का स्रोत हैं, और अपनी नवीकरणीयता के लिए अधिक विश्वसनीय हैं.इसलिए ये मानव के लिए सदैव लाभकारी बताये गए हैं.

हमारे पूर्वजों द्वारा अपनाई गई हमारी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति का मानव जीवन से सीधा नाता है.इसमें चूंकि एक विशिष्ट जीवनशैली की भी बात कही गई है इस कारण इसमें खोजी गई जड़ी-बूटियों का अनुकूल प्रभाव पड़ता है.दूसरी ओर, आधुनिक और सिंथेटिक दवाएं कई प्रकार के दुष्प्रभाव और दीर्घकालिक जटिलताएं पैदा करती हैं.

देखें तो आज हर कोई ऐसी दवा पसंद करता है, जिसका कोई साइड इफेक्ट न हो.सत्यानाशी भी ऐसा ही बताया गया है.इसके बारे में कहा गया है कि यह मानव के लिए वरदान है.यह यौन दुर्बलता का तो जल्दी और पूरा इलाज करने में समर्थ है ही, इसमें अन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का शमन और उन्हें नष्ट करने योग्य कई चमत्कारिक गुण भी हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि अनेक बीमारियों में सत्यानाशी के लाभ का पता चलता है.परन्तु, इसके विशिष्ट गुण स्त्री-पुरुष के बांझपन और अन्य यौन दुर्बलताओं में चमत्कारिक कहे जा सकते हैं.उनके अनुसार, अब तक इससे निर्मित दवाओं के अलावा, इसके गुण अन्य नई दवाओं की खोज को आधार प्रदान करते हैं.इसको लेकर और भी अध्ययन और परीक्षणों की आवश्यकता है.ऐसे में, सत्यानाशी को अच्छी तरह जानने-समझने की आवश्यकता है.

कैसा होता है सत्यानाशी, और यह कहां-कहां पाया जाता है, जानें

सत्यानाशी का अर्थ देखें तो यह ‘सब कुछ बिगाड़ने, बर्बाद करने वाला, सर्वनाश या मटियामेट करने वाला’ होता है.लेकिन, इसके गुण इसके ठीक विपरीत हैं, और चिकिसा में यह एक दिव्य औषधि साबित होता है.ऐसे में, आश्चर्य होता है कि इसे यह नाम क्यों मिला.शायद खरपतवार होने की वज़ह से.खरपतवार होने के कारण ही अधिकतर लोग इसे व्यर्थ की वनस्पति समझते हैं और नज़रंदाज़ कर देते हैं.

वैसे भी यह कहीं भी उग जाता है.खेतों में, मेड़ों, सड़कों और नदी-नालों के किनारे, बंजर ज़मीन पर, पथरीली जगहों पर और बहुत ठंडे और गर्म स्थानों पर भी इसे देखा जा सकता है.

कश्मीर तथा उत्तराखंड में सत्यानाशी 3900 मीटर की ऊंचाई पर मिलता है.अधिकतम 2 से 3 फुट उंचा यह पौधा कुछ नीलापन लिए हुए हरा होता है.इसके पत्तों पर सफ़ेद रेखाएं होती हैं.इसमें पीले रंग के फूल आते हैं.

इसके फल लम्बे और कटोरी की आकृति के होते हैं, जिनमें राई या चायपत्ती की तरह बीज होते हैं.इसके बीज जलते कोयले पर डालने से भड़भड़ की आवाज़ आती है.इस कारण कुछ जगहों पर इसे भड़भड़वा या भड़भाड़ भी कहते हैं.

सत्यानाशी के पत्तों और फलों में कांटे लगते हैं.इसके तने, फल, फूल और पत्तों से पीले रंग का रस या दूध निकलता है.इसीलिए इसे स्वर्णक्षीरी भी कहते हैं, लेकिन आयुर्वेद के अनुसार सत्यानाशी स्वर्णक्षीरी से बिल्कुल अलग प्रकार का पौधा है.

सत्यानाशी का वानस्पतिक नाम आर्जेमोनी मेक्सिकाना (Argemone mexicana Linn.) है, और यह पैपैवरेसी (Papaveraceae) कुल तथा अमरीकी (मैक्सिको क्षेत्र) मूल का पौधा है.अंग्रेजी में इसे प्रिकली पॉपी (Prickly poppy), मेक्सिकन पॉपी (Mexican poppy), येलो थिसल (Yellow thistle), आदि कहा जाता है.

संस्कृत में सत्यानाशी को कटुपर्णी कहा गया है, जबकि हिंदी में सत्यानाशी, उजर कांटा, सियाल कांटा, भड़भाड़, घमोई, कुटकुटारा, पिला धतुरा, फिरंगी धतुरा, आदि इसके कई नाम हैं.

सत्यानाशी को उड़िया या ओड़िसी में कांटा-कुशम, कन्नड़ में अरसिन-उन्मत्ता, गुजराती में दारुड़ी, तमिल में पोन्नुम्मटाई, कुडियोट्टी, कुरुक्कुम्चेडी, तेलुगु में पिची कुसामा चेट्टू, बंगाली में स्वर्णक्षीरी, शियाल कांटा, बड़ो सियाल कांटा, पंजाबी में कोंडीयारी,स्यालकांटा, भट्मिल, सत्यनाशा, भेरबंड, भटकटैता, भटकटैया (रेंगनी), मराठी में कांटेधोत्रा, दारूरी, फिरंगिधोत्रा, मलयालम में पोन्नुम्मत्तुम, नेपाली में सत्यानाशी, उर्दू में बरमदंडी, तिल्म्खार और अरबी में बागेल नाम से जाना जाता है.

मर्दाना कमज़ोरी और औरतों का बांझपन दूर करता है सत्यानाशी

जंगली झाड़ियों के बीच कांटेदार पत्तियों वाले पौधे सत्यानाशी का आयुर्वेद के प्रमुख ग्रंथों में शुमार भावप्रकाश में विस्तृत वर्णन है.इसके अलावा, कई पुस्तकों में इसकी ख़ासियत बताते हुए इसे गुणों की खान कहा गया है.साथ ही, अन्य औषधियों की तुलना में यह तीव्र प्रभावकारी बताया गया है.

विशेषज्ञों के अनुसार, मर्दाना कमज़ोरी और औरतों के बांझपन की समस्या में यह एक अचूक औषधि के रूप में कार्य करता है.इसके इस्तेमाल से कुछ ही हफ़्तों में पुरुषों में व्याप्त यौन दुर्बलता संबंधी तमाम दोष दूर हो जाते हैं और वे संतान उत्पन्न करने में समर्थ हो जाते हैं.दूसरी ओर इसका सेवन कर औरतें जल्द स्वस्थ होकर गर्भधारण के योग्य बन जाती हैं.

ज्ञात हो कि नपुंसकता के कई कारण होते हैं.इनमें शुक्राणुओं की कमी या गड़बड़ी प्रमुख है.आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार सत्यानाशी में शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने का गुण पाया जाता है.इसलिए निःसंतान दंपत्ति (पति-पत्नी, दोनों) के लिए सत्यानाशी का उपयोग बहुत लाभकारी होता है.

विभिन्न आधुनिक शोध और परीक्षणों में सत्यानाशी में यौनवर्धक गुण पाए गए हैं, जो यौन आनंद या कामेच्छा को बढ़ाते (Libido Boosters) हैं.ये तंत्रिका तंत्र में विशिष्ट न्यूरोट्रांसमीटर या सेक्स हार्मोन की सांद्रता को बदलने की क्षमता रखते हैं.

यही कारण है कई दवाओं में इसका उपयोग होता है.बाज़ार में उपलब्ध सेनजाइन 100 टेबलेट को देखें तो यह टॉनिक है, जिसमें आर्जीमोन मेक्सिकाना यानि, सत्यानाशी एक मुख्य घटक होता है.इसका उपयोग यौन अक्षमता और तंत्रिका संबंधी दुर्बलता के इलाज के लिए किया जाता है.

आयुर्वेद में सत्यानाशी के पंचांग यानि, जड़, फल, फूल, पत्ते और छाल सभी के उपयोग की बात कही गई है.इसके उपयोग से पेशाब (मूत्र-पथ) में जलन-दर्द, व संक्रमण में लाभ होता है.

सत्यानाशी के तेल की मालिश से लिंगवर्धन होता है.इससे रक्त के संचार से लिंग की नशें जाग्रत अवस्था में आ जाती हैं, और इसमें कड़ापन या कठोरता (सख्ती) बनी रहती है.यह तेल योनि में लगाने से जलन-खुजली व दर्द दूर होता है तथा इसकी दीवारों में कसाव (कसा हुआ होना, चुस्ती) आ जाता है.

आयुर्वेद के विशेषज्ञ/चिकित्सक स्तंभन दोष (स्तंभन बनाये रखने में कठिनाई), शीघ्रपतन (जल्दी चरमसुख तक पहुंचना), विलंबित या बाधित स्खलन (चरमसुख तक पहुंचने में ज़्यादा देरी), कम कामेच्छा (कम टेस्टोस्टेरोन स्राव के कारण कम सेक्स रूचि), आदि सभी प्रकार की समस्याओं में सत्यानाशी के काढ़े के सेवन की सलाह देते हैं, जिन्हें घर पर ही तैयार किया जा सकता है.

काढ़ा बनाने की विधि: काढ़ा गर्म व ठंडा, दोनों प्रकार का होता है.गर्म काढ़ा तैयार करने के लिए सत्यानाशी के 20 ग्राम की मात्रा में साफ़ (पानी से अच्छी तरह धुले) पंचांग (जड़, फल, फूल, पत्ते और छाल) को 200 मिलीलीटर ताज़ा पानी में धीमी आंच पर अच्छी तरह पका या उबाल लें.गुनगुना (न ज़्यादा गर्म और न ठंडा) हो जाने पर इसे छानकर 2-2 चम्मच सुबह-शाम पीयें.

इसी प्रकार, ठंडा काढ़ा बनाने के लिए 20 ग्राम की मात्रा में साफ़ (पानी से अच्छी तरह धुले) पंचांग को 200 मिलीलीटर ताज़ा पानी में रात में (इस्तेमाल करने से 12 घंटे पहले) भिगोकर छोड़ दें.सुबह इसे छानकर कांच की बोतल में रख लें.फिर, 2-2 चम्मच दो बार सेवन करें.निश्चित लाभ होगा.

इसका उपयोग कभी भी यानि, खाली पेट या खाना खाने के बाद किया जा सकता है.

सत्यानाशी के अन्य औषधीय गुण

विशेषज्ञों के अनुसार सत्यानाशी में एंटी-माइक्रोबायल (Antimicrobial) यानि, सूक्ष्मजीवरोधी (जो सूक्ष्मजीवों, जैसे बैक्टीरिया, वायरस, प्रोटोजोआ और कवक जैसे फफूंदी को मारने या उनकी वृद्धि को रोकने और संक्रमण से लड़ने में मदद करते हैं), एंटी-डायबिटिक (Anti-diabetic) यानि, मधुमेहरोधी (जो शरीर में ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित कर डायबिटीज को रोकने या कम करने में मदद करते हैं), एनाल्जेसिक (Analgesic) यानि, वेदनाहर या दर्द निवारक, एंटी-स्पासमोडिक (Antispasmodic) यानि, उद्वेष्ट-रोधी या प्रतिउद्वेष्टि (जो मांसपेशियों को आराम देने वाले होते हैं), एंटी-इन्फ्लेमेटरी (Anti-inflammatory) यानि, सूजनरोधी (सूजन दूर करने वाले), एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidants) यानि, प्रतिऑक्सीकारक (जो फ्री रेडिकल्स या मुक्त कणों से होने वाले नुकसान से सुरक्षित रखते हैं, और कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाते हैं) आदि गुण भी पाए जाते हैं, जो कई प्रकार की बीमारियों के इलाज में लाभकारी हैं, और शरीर को स्वस्थ बनाये रखते हैं.

विभिन्न रोगों में सत्यानाशी की मात्रा व इसके उपयोग के निम्नलिखित तरीक़े बताये गए हैं-

आंखों की समस्याओं में सत्यानाशी के प्रयोग: सत्यानाशी के पंचांग से दूध (जो पीले रंग का होता है) निकाल लें.इसकी 1 बूंद गाय या भैस के दूध या घी या फिर बकरी के दूध की तीन बूंदों में मिलाकर आँखों में अंजन करें.यानि, काजल की तरह लगायें.

इसके घोल को सीधे आँखों में 2-2 बूंद सुबह-शाम डाल सकते हैं.

इसके पत्तों को निचोड़कर 2-2 बूंद की मात्रा में प्रयोग कर सकते हैं.इससे आँखों की सभी प्रकार की समस्याओं, जैसे आँखों के सूखेपन, सूजन, लालिमा, जलन, दर्द, मोतियाबिंद (ग्लूकोमा), रतौंधी, आदि में शीघ्र लाभ मिलता है.

सांसों की बीमारी और खांसी में सत्यानाशी का उपयोग: सत्यानाशी की जड़ के 1-1 ग्राम की मात्रा में चूर्ण (पाउडर, जो पौधे के किसी अंग या पंचांग सुखाने के बाद कूट-पीसकर तैयार किया जाता है) एक कप की मात्रा में दूध या गुनगुना पानी में मिलाकर सुबह-शाम पीने से कफ बाहर निकल जाता है.

सत्यानाशी के किसी भी हिस्से का रस 4-5 बूंद की मात्रा में बतासे में डालकर खाने से सांसों की समस्या और खांसी में आराम मिलता है.इसका लगातार सेवन बड़ा लाभकारी बताया जाता है.

सफ़ेद दाग में सत्यानाशी के प्रयोग: सत्यानाशी फूल का दूध या इसका रस सफ़ेद दाग वाले स्थान पर लगाने से लाभ मिलता है.इसके लगातार उपयोग से त्वचा अपने सामान्य रंग व स्थिति में आ जाती है.

अस्थमा (दमा) और इस्नोफिलिया के रोग में सत्यानाशी है लाभकारी: विशेषज्ञ बताते हैं कि ब्रोंकायल अस्थमा या ब्रोंकाइटिस में सत्यानाशी काफ़ी फ़ायदेमंद होता है.इस तरह की समस्या में सत्यानाशी का आधा लीटर (500 एमएल) रस गाढ़ा होने तक उबालें.

अब, 60-70 ग्राम ग्राम पुराने गुड़ में मिलाकर इसकी छोटी-छोटी गोलियां (क़रीब 250 एमजी के टेबलेट के बराबर) बना लें.

फिर, 1-1 गोली गुनगुने पानी के साथ दिन में दो-तीन बार लें.जल्दी लाभ होगा.

इस्नोफिलिया में सत्यानाशी के पंचांग का 1-1 ग्राम चूर्ण दूध के साथ सुबह-शाम लेने की सलाह दी जाती है.

सत्यानाशी के सेवन से जलोदर में लाभ: जलोदर यानि, पेट में पानी (ख़राब पानी) भरने की समस्या में सत्यानाशी के सेवन से लाभ मिलता है.ऐसी स्थिति में सत्यानाशी के पंचांग का 5-10 ग्राम अर्क या रस दिन में 3-4 बार पीने से पेशाब खुलकर आता है, और पेट में जमा पानी निकल जाता है.

सत्यानाशी की 4-5 बूंदें 3-4 ग्राम नमक या बतासे में मिलाकर लेने से भी इस समस्या में जल्दी फ़ायदा होता है.

पीलिया दूर करने के लिए सत्यानाशी का प्रयोग: सत्यानाशी का प्रयोग पीलिया रोग में बहुत कारगर माना जाता है.विशेषज्ञों के अनुसार, सत्यानाशी तेल की 8-10 बूंदें गिलोय के रस में मिलाकर सुबह-शाम लेने से पीलिया जल्दी ठीक हो जाता है.

त्वचा रोग में सत्यानाशी के फ़ायदे: सत्यानाशी के पंचांग के 5-10 मिलीलीटर रस में नमक मिलाकर पीने से त्वचा संबंधी विकार दूर हो जाते हैं.इसका तेल लगाने से त्वचा में निखार आता है.

सिफलिस और गोनोरिया में सत्यानाशी के लाभ: असुरक्षित यौन संबंधों क कारण एक से दूसरे में फैलने वाले रोग सिफलिस और गोनोरिया या सुजाक में सत्यानाशी के सेवन की सलाह दी जाती है.

सिफलिस की समस्या में सत्यानाशी के पंचांग का 5 मिलीलीटर की मात्रा में रस दूध में मिलाकर पीने से जल्दी लाभ मिलता है.

सुजाक की समस्या में 4-5 मिलीमीटर सत्यानाशी का दूध (पीले रंग का तरल) मक्खन या घी में मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें.

इसके अलावा, सत्यानाशी के पत्तों के 5 मिलीलीटर की मात्रा में रस 10 ग्राम घी में मिलाकर ले सकते हैं.

कुष्ठ रोग में लाभकारी है सत्यानाशी: सत्यानाशी के पत्तों का 10 मिलीलीटर की मात्रा में रस क़रीब एक पाव (250 एमएल) दूध में मिलाकर सुबह-शाम नियमित सेवन करने से कुष्ठ रोग और रक्तपित्त (नाक-कान से खून बहने की समस्या) में जल्दी लाभ मिलता है.

इसके अलावा, इस समस्या में सत्यानाशी के बीज के तेल से शरीर की मालिश करने की सलाह दी जाती है.

दाद, खाज, खुजली में सत्यानाशी का त्वरित लाभ: सत्यानाशी के बारे में आयुर्वेद में कहा गया है कि यह इतना गुणी पौधा है कि कितना भी पुराना घाव हो दाद, खाज, खुजली हो उसे चुटकियों में ठीक कर देता है.ऐसी समस्या में सत्यानाशी की जड़, फल, फूल, पत्तों और छाल यानि, पंचांग के 5-10 मिलीलीटर रस सुबह-शाम पीने और इसके बीज के तेल घावों पर लगाने की सलाह दी जाती है.

रोम छिद्र की सूजन में सत्यानाशी का लाभ: रोयें के छेद की सूजन के स्थान पर सत्यानाशी के बीजों को काली मिर्च और सरसों के तेल में पीसकर लगाने की सलाह दी जाती है.इससे यह जल्दी ठीक हो जाती है.

इस मिश्रण से कील-मुंहासों से भी छुटकारा मिलता है.इससे सोरायसिस भी ठीक हो जाता है.

सत्यानाशी के नुकसान

रोग और रोगी की स्थिति एक चिकित्सक बेहतर समझ सकता है.साथ ही, दवा की मात्रा को भी ध्यान में रखना ज़रूरी होता है.इसलिए, चिकित्सक के परामर्श से जहां सत्यानाशी का पूरा लाभ लिया जा सकता है वहीं, इससे होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि सत्यानाशी के बीजों का सिर्फ़ शरीर के बाहरी अंगों पर ही इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि ये बहुत ज़हरीले होते हैं.इसके बीज का तेल सरसों के तेल में मिलाकर पीने से गंभीर समस्या खड़ी हो सकती है.यहां तक कि इससे जान भी जा सकती है.

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रामाशंकर पांडेय

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6 Comments

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