गाड़ियों की नंबर प्लेट: अलग-अलग आकार और रंग-रूप के मायने क्या हैं जानिए
अगर हम मोटर वाहन से जुड़े नियमों की प्राथमिक जानकारी भी रखते हैं, तो नंबर प्लेट देखकर बता सकते हैं कि कोई गाड़ी कैसी, कहां की और किससे संबंधित है.
वाहन अपने आकार-प्रकार और रंग-रूप ही नहीं अपनी उपयोगिता को लेकर भी भिन्नता रखते हैं.यह भी मायने रखता है कि वाहन का स्वामी या उस पर सवार होने वाला व्यक्ति कौन है, या वह किससे संबंधित है.यही वज़ह है कि पहचान के रूप में इन पर लगी नंबर प्लेट में भी काफ़ी अंतर पाया जाता है.ये भी अलग-अलग आकार-प्रकार और रंग-रूप में ज़रूरी जानकारी अपने अंदर समेटी हुई होती हैं.
मोटर वाहन अधिनियम, 1988 कहता है कि सड़कों पर वाहन नहीं चलाए जा सकते हैं जब तक कि उनका पंजीकरण न हुआ हो.पंजीकृत वाहनों का पहला प्रमाण हैं उनकी नंबर प्लेट, जो उनकी सारी डिटेल बता देती हैं.
इसलिए अगर हम मोटर वाहन से जुड़े नियमों की प्राथमिक जानकारी भी रखते हैं, तो नंबर प्लेट देखकर बड़ी आसानी से यह पता लगा सकते हैं कि कोई गाड़ी देश के किस हिस्से से संबंधित है.साथ ही, यह निजी है या सार्वजनिक, आम आदमी की है या किसी राजनेता की, सेना की है या सामान्य, यह भी एक नज़र में जान सकते हैं.
यानि, नंबर प्लेट या ‘अनुज्ञा प्लेट’ पहचान ही नहीं, बहुत अहम भी हैं वाहनों के लिए.ऐसे में, इनकी विशेषताओं को समझने की ज़रूरत है.
आकार तय हैं नंबर प्लेट के
अलग-अलग गाड़ियों यानि, छोटी, मध्यम और बड़ी साइज़ या आकार वाली गाड़ियों की नंबर प्लेट के आकार भी अलग-अलग होते हैं.
मोटर वाहन नियम के मुताबिक़, दोपहिया (टू व्हीलर) और तिपहिया (थ्री व्हीलर) गाड़ियों की नंबर प्लेट जहां 200 x 100 मिमी (मिलीमीटर) की होनी चाहिए वहीं, हल्की मोटर गाड़ियों के लिए 340 x 200 मिमी और यात्री कार के लिए 500 x 120 मिमी की नंबर प्लेट रखने की बात कही गई है.
मध्यम और बड़े आकार वाले या भारी वाणिज्यिक वाहनों (कमर्शियल व्हीकल) की नंबर प्लेट 340 x 200 मिमी की होनी चाहिए.
स्थान निश्चित हैं नंबर प्लेट के
रजिस्ट्रेशन नंबर आसानी से और साफ़ दिखाई दे इसलिए नंबर प्लेट सभी गाड़ियों के आगे (फ्रंट साइड) और पीछे (बैक साइड) की ओर लगाने का नियम है.
मोटरबाइक या मोटरसायकिल में नंबर प्लेट हैंडल (हैंडलबार) के सामानांतर (बराबरी में) होनी चाहिए.
नंबर प्लेट का हर हिस्सा कुछ कहता है
नंबर प्लेट यानि, इस पर छपे रजिस्ट्रेशन नंबर में अलग-अलग तरह की सूचनाएं या जानकारी छुपी होती है.इसका हर हिस्सा कुछ कहता है.समझने के लिए इन्हें हम पांच भागों में बांट सकते हैं.
पहला हिस्सा: गाड़ी की नंबर प्लेट का पहला हिस्सा उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश को दर्शाता है जहां उसका रजिस्ट्रेशन हुआ है.इसके दो अक्षरों (अंग्रेजी के लैटर) में प्रदर्शित किया जाता है.यह तरीक़ा 1980 में अपनाया गया था.
विभिन्न राज्यों में प्रयोग होने वाले कोड निम्न प्रकार से हैं:
गुजरात- GJ महाराष्ट्र- MH राजस्थान- RJ हरियाणा- HR उत्तराखंड- UK
असम- AS बिहार- BR उड़ीसा- OD छत्तीसगढ़- CG झारखण्ड- JH
उत्तरप्रदेश- UP मध्यप्रदेश- MP आंध्रप्रदेश- AP अरुणांचल प्रदेश- AR हिमाचल प्रदेश- HP
पंजाब- PB कर्नाटक- KA केरल- KL मणिपुर- MN मेघालय- ML
मिजोरम- MZ नागालैंड- NL सिक्किम- SK गोवा- GA तमिलनाडु- TN
तेलंगाना- TS त्रिपुरा- TR पश्चिम बंगाल- WB
केंद्र शासित प्रदेशों में प्रयोग होने वाले कोड:
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली- DL चंडीगढ़- CH जम्मू-कश्मीर- JK लद्दाख- LA
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह- AN दादरा एंड नगर हवेली और दमन एवं दीव- DD
लक्षद्वीप- LD पुड्डुचेरी- PY
दूसरा हिस्सा: नंबर प्लेट का दूसरा हिस्सा राज्यों के जिले से संबंधित होता है.यह अगले (राज्य कोड के बाद) दो अंकों के रूप (अंकगणितीय रूप) में राज्य के उस जिले को दर्शाता है जहां के परिवहन कार्यालय (आरटीओ ऑफिस) में उसका पंजीकरण हुआ है.
ज्ञात हो कि राज्यों के हर जिले को अनुक्रमिक (क्रम वाली) संख्या प्रदान की जाती है.आवेदकों को इसे आवंटित करने का कार्य क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस- RTO) करता है.वाहनों के पंजीकरण की ज़िम्मेदारी इसी की होती है.
तीसरा हिस्सा: नंबर प्लेट के तीसरे हिस्से में अंग्रेजी वर्णमाला के दो अक्षरों (वर्णों) के रूप में (जैसे AB, PQ आदि) मौजूदा सीरिज (तात्कालिक श्रृंखला) होते हैं.ये मौजूदा सीरिज वाहनों के समय काल (यानि पुराना है) को बता सकते हैं.
चौथा हिस्सा: नंबर का चौथा हिस्सा चार अंकों के रूप में (जैसे 9795) ज़रूरी कोड के साथ-साथ एक यूनिक (विशिष्ट) रजिस्ट्रेशन नंबर भी होता है, जो दूसरे नंबर प्लेटों से अलग करता है.
ज्ञात हो कि आवंटन के लिए अगर यूनिक नंबर नहीं बचा होता है, तो पंजीयन अधिकारी अंतिम अंक बदलने के लिए वर्णों का इस्तेमाल करता है.
कस्टम मेड वाहन नंबर (फैंसी या वीआईपी) प्लेट हासिक करने के लिए लोग अच्छी खासी रक़म ख़र्च करते हैं.
पांचवां हिस्सा: नंबर प्लेट का यह हिस्सा एक तरह से अतिरिक्त हिस्सा होता है.यह अंडाकार रूप में होता है जिस पर ‘IND’ लिखा होता है.इसका मतलब है कि गाड़ी भारत में पंजीकृत है.
इसके ऊपर क्रोमियम आधारित (क्रोमियम से बना एक होलोग्राम) अशोक चक्र का निशान होता है, जबकि नीचे नंबर प्लेट का लेजर पिन कोड अंकित होता है.
अलग-अलग रंग-रूप की होती हैं नंबर प्लेट
अलग-अलग तरह की नंबर प्लेट के पीछे एक मक़सद होता है.इसे समझने की ज़रूरत है.
सफ़ेद रंग की नंबर प्लेट: किसी गाड़ी की नंबर प्लेट अगर काले रंग की फॉन्ट (लिखावट) के साथ सफ़ेद रंग की है, तो वह गाड़ी प्राइवेट यानि निजी है.दूसरे शब्दों में, जिस गाड़ी की नंबर प्लेट पर सफ़ेद बैकग्राउंड (पृष्ठभूमि) पर काले रंग में रजिस्ट्रेशन नंबर लिखा हुआ है वह निजी गाड़ी होती है, जैसे कार, मोटरसायकिल, स्कूटर आदि.
ऐसी गाड़ी का व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं हो सकता है, या यूं कहिए कि इसे किराये पर नहीं दिया जा सकता है.
पीले रंग की नंबर प्लेट: जिस गाड़ी की नंबर प्लेट में पीले रंग की बैकग्राउंड पर काले रंग में रजिस्ट्रेशन नंबर लिखा होता है वह कमर्शियल गाड़ी यानि, व्यावसायिक वाहन होता है, जैसे टैक्सी, बस, ट्रक आदि.सड़कों पर दौड़ती ओला, ऊबर आदि की किराये की कारें ऐसी ही नंबर प्लेट लिए होती हैं.
ऐसे नंबर प्लेट वाले वाहनों के लिए पंजीकरण प्राधिकरण से परमिट और ड्राईवर को कमर्शियल वाहन का ड्राइविंग लाइसेंस ज़रूरी होता है.
हरे रंग की नंबर प्लेट: जिस वाहन की नंबर प्लेट पर हरे रंग की पृष्ठभूमि (बैकग्राउंड) पर सफ़ेद रंग में नंबर लिखे होते हैं वह इलेक्ट्रिक वाहन (बिजली से चलने वाला या बैटरी चालित) होता है.
इस नंबर प्लेट पर हरी पत्तियों वाले कमल का प्रतीक चिन्ह भी बना होता है.
काले रंग की नंबर प्लेट: काले रंग की नंबर प्लेट वाली गाडियां पीले रंग की नंबर प्लेट वाली गाड़ियों जैसी ही व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए होती हैं.निजी मालिक इन्हें चलाने के लिए किसी और को किराये पर देते हैं.इनके लिए चालक को परमिट की ज़रूरत नहीं होती है.
आमतौर पर इन्हें लग्जरी होटलों में खड़ा देखा जा सकता है.इनके नंबर प्लेट पर काले रंग की पृष्ठभूमि पर पीले रंग से नंबर लिखे हुए होते हैं.
लाल रंग की नंबर प्लेट: किसी गाड़ी में लाल रंग नंबर प्लेट (जिसकी बैकराउंड लाल रंग में हो) का लगा होना यह दर्शाता है कि उस गाड़ी की पंजीयन प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है.यानि, उसे अभी अस्थाई रजिस्ट्रेशन प्लेट या नंबर प्लेट मिला है.इसकी वैधता एक महीने की होती है.
नीले रंग की नंबर प्लेट: जिस गाड़ी की नंबर प्लेट की बैकग्राउंड नीली (नीले रंग की) हो और उस पर सफ़ेद अक्षरों में लिखावट हो वह विदेशी दूतावासों से संबंधित गाड़ी होती है.इन पर राज्य कोड के बजाय देश का कोड (कंट्री कोड) प्रदर्शित होता है और डीसी (डिप्लोमेटिक कॉर्प्स), सीसी (कांसुलर कॉर्प्स), यूएन (यूनाइटेड नेशंस) आदि अक्षर लिखे होते हैं.
तीर के निशान वाली नंबर प्लेट: जिस वाहन की नंबर प्लेट पर तीर का निशान बना हुआ हो समझ लीजिए वह वाहन सेना का है.
यह तीर का निशान ऊपर की ओर प्रदर्शित होता है और तीनों सेनाओं- थल सेना, नौसेना और वायुसेना के साथ-साथ भारतीय सशस्त्र बलों की अन्य शाखाओं की गाड़ियों की नंबर प्लेट पर अंकित होता है.
ऐसी नंबर प्लेट रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी की जाती है.
भारत के प्रतीक के साथ लाल रंग की नंबर प्लेट: वह वाहन जिसकी लाल रंग की नंबर प्लेट पर भारत का राष्ट्रीय प्रतीक (जिसमें देवनागरी लिपि में ‘सत्यमेव जयते’ शब्दों के साथ अशोक स्तंभ के सिंह की मुखाकृति सुनहरे रंग में बनी होती है) अंकित होता है वह बहुत ख़ास वाहन होता है.इस उपयोग भारत के राष्ट्रपति, राज्यों के राज्यपाल, राजनयिक और उच्च पदस्थ अधिकारी ही कर सकते हैं.
इनका स्वामित्व और संचालन केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के हाथ में होता है.
ऐसी नंबर प्लेट वाली गाडियां कुछ ख़ास मौक़ों पर ही दिखाई देती हैं.
गाड़ियों की नंबर प्लेट से संबंधित कुछ अन्य बातें जानिए
नई गाड़ी को परिवहन कार्यालय द्वारा ‘टू रजिस्टर’ (TR) स्टीकर जारी किया जाता है.यह स्टीकर दरअसल, एक अस्थाई नंबर प्लेट के तौर पर केवल अस्थाई पंजीयन संख्या होती है.इसकी वैधता की अवधि भी केवल एक महीने की होती है.ऐसे में, इस अवधि के दौरान वाहन मालिक को चाहिए कि वह इसे सड़क पर न चलाए, ताकि भारी जुर्माना भरने से बचा जा सके.
गाड़ी की रजिस्ट्रेशन अथवा नंबर प्लेट हासिल करने वाले मालिक को ज़रूरी दस्तावेज़ जैसे पीयूसी, सड़क योग्यता प्रमाण पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस, गाड़ी का बिक्री चालान आदि परिवहन कार्यालय में जमा कराना होता है.वाहन का इंजन और चेसिस नंबर पंजीकरण अधिकारी द्वारा सत्यापित किया जाता है.
पंजीकरण अधिकारी द्वारा जारी लाइसेंस संख्या 20 वर्ष के लिए वैध होती है.
वाहनों की सुरक्षा के मद्देनज़र साल 2005 में एचएसआरपी (HSRP- हाई सिक्योरिटी रजिस्ट्रेशन प्लेट) की शुरुआत हुई थी और 1 अप्रैल, 2019 के बाद पंजीकृत वाहनों के लिए अनिवार्य कर दी गई थी.मगर, कई राज्यों में अब भी इसे लागू नहीं किया गया है.
क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय द्वारा यूनिक (फैंसी या वीआईपी) नंबर प्लेट बेचा जाता है.इसके लिए बाक़ायदा नीलामी होती है और इसकी क़ीमत लाखों (क़रीब तीन लाख रुपए तक) में जा सकती है.
100 से नीचे की संख्याएं ऐसी हैं, जिन्हें हासिल करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि ये सरकारी स्वामित्व वाले वाहनों के लिए आरक्षित होती हैं.
नंबर प्लेट में फॉन्ट में बदलाव की अनुमति केवल तभी दी जाती है जब फॉन्ट स्पष्ट हो और दूर से आसानी से पढ़ा जा सके.
कुछ स्थानों पर जिले के कोड के पहले 0 को नंबर प्लेट से वर्णमाला के साथ बदल दिया जाता है.ये अक्षर उस कैटेगरी को दर्शाते हैं जिससे वे संबंधित हैं.
ऐसी कैटेगरी और अक्षर निम्न प्रकार से हैं:
कारों और एसयूवी के लिए- C दोपहिया वाहन- S इलेक्ट्रिक वाहन- E
यात्री वाहनों यानि, बसों के लिए- P तिपहिया- R टूरिस्ट लाइसेंस वाले वाहन- T
वैन और पिकअप वाहन- V भारी और भाड़े के वाहन- Y
सच के लिए सहयोग करें
कई समाचार पत्र-पत्रिकाएं जो पक्षपाती हैं और झूठ फैलाती हैं, साधन-संपन्न हैं. इन्हें देश-विदेश से ढेर सारा धन मिलता है. इनसे संघर्ष में हमारा साथ दें. यथासंभव सहयोग करें