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‘आदि’ और ‘इत्यादि’ के प्रयोग: नियम को लेकर इतना भ्रम क्यों है?

'आदि' और 'इत्यादि' के प्रयोगों के सन्दर्भ में कुछ लोगों ने विभिन्न साहित्यकारों की रचनाओं से उद्धरण लेकर उसके हिसाब से अपना मंतव्य बना लिया है तो कुछ ने अपनी ख़ुद की थ्योरी गढ़ ली है.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि हिंदी का काफ़ी विकास हुआ है.यह उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है.लेकिन, जिस अंदाज़ में यह गति कर रही है उससे इसके दिशाहीन हो जाने का भी भय है.मगर, इसके लिए ज़िम्मेदार भी वे लोग ही होंगें, जो कल तक इसकी दुर्गति का रोना रोते रहे हैं.

हिंदी व्याकरण (सांकेतिक)

कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि भाषा व्याकरणों के नियमों से नहीं बनती है.अगर हम अप्रासंगिक होते जा रहे नियमों के पालन पर ज़ोर देते रहे, तो इससे भाषा का विकास बाधित ही होगा.मगर, यह तो आंख मूंदकर चलने वाली बात होगी, जिसका नतीज़ा कभी भी अच्छा नहीं माना जाता है.

अंधेरे में समतल है खाई, पता नहीं चल पाता है.

अति विकसित भाषा के रूप में जानी जाने वाली इंग्लैंड की अंग्रेजी को देख लीजिए, कैसी खिचड़ी (अशिष्ट, अपरिष्कृत) बन गई है.हालत यह है कि इसे पढ़ाने के लिए शिक्षक भारत से आयात किए जाते हैं.

दरअसल, हिंदी जहां अंग्रेजी और अरबी-फ़ारसी (इनके कई शब्दों के शामिल हो जाने के कारण उत्पन्न भ्रम) की शिकार है वहीं, कुछ शब्दों के उचित प्रयोग को लेकर भी भ्रम की स्थिति बनी हुई है.’आदि’ और ‘इत्यादि’ को देखें, तो इनके प्रयोगों को लेकर विभिन्न प्रकार के विचार मिलते हैं.कोई स्पष्ट या सर्वमान्य नियम नहीं है, और इस कारण लोग हर जगह (सभी स्थितियों में) ‘आदि’ का ही प्रयोग कर रहे हैं.यहां तक कि ‘इत्यादि’ के बजाय ‘आदि आदि’ प्रयुक्त हो रहा है.

कुछ लोग तो ‘आदि’ और ‘आदी’ (जो कि अरबी, विशेषण शब्द है, जिसका मतलब होता है लती या अभ्यस्त; अदरक को भी आदी ही कहते हैं) को एक ही समझते हैं, और वाक्यों में प्रयोग के कारण अर्थ का अनर्थ बन जाता है.

मगर, क्यों?

इसका कारण जानें इससे पहले ‘आदि’ और ‘इत्यादि’ के मायने समझ लेना ज़रूरी है.

‘आदि’ और ‘इत्यादि’ आख़िर हैं क्या?

‘आदि’ और ‘इत्यादि’ दरअसल, समूहवाचक शब्द हैं.इस हिसाब से दोनों एक दूसरे के समानार्थी यानि, एक समान अर्थ वाले (जैसे अंग्रेजी में सिनानिम्स- Synonyms) हैं.

दोनों ही वाक्यों में उदाहरणों को व्यक्त करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं.

हिंदी शब्दकोष के अनुसार दोनों के अर्थ इस प्रकार हैं-

आदि (संज्ञा, पुल्लिंग)- आरंभ पहला, मूल.

आदि (अव्यय)- इत्यादि, वगैरह.

इत्यादि (अव्यय (संस्कृत)- इसी प्रकार के अन्य, और, इसी तरह, और दूसरे, वगैरह.

इत्यादि इति (समाप्ति, पूर्णता) और आदि (आरंभ, शुरुआत) से मिलकर बना है- इति + आदि = इत्यादि.

इसे उर्दू में वगैरह, जबकि अंग्रेजी में ‘एट सेटेरा’- et cetera (etc.), and so on या and so forth कहते हैं.

यानि, शब्दार्थ के साथ-साथ इनके उपयोग भी महत्वपूर्ण हैं.मगर, भ्रम, विरोधाभाष और मतभिन्नता के कारण विचित्र सी स्थिति बनी हुई है.

कुछ लोगों ने विभिन्न साहित्यकारों की रचनाओं से उद्धरण लेकर उसके हिसाब से अपना मंतव्य बना लिया है तो कुछ ने अपनी अलग थ्योरी ही गढ़ ली है.

इस वैचारिक द्वन्द में एक तरफ़ जहां डॉ. वासुदेवनंदन प्रसाद की पुस्तक ‘आधुनिक हिंदी व्याकरण और रचना’ का हवाला दिया जा रहा है वहीं, भारतेंदु की एक रचना का एक वाक्य (उद्धरण) भी बतौर प्रमाण पेश किया जा रहा है.

मगर, इन दोनों में ‘आदि’ और ‘इत्यादि’ के प्रयोग के विचार बिल्कुल अलग-अलग तो हैं ही साथ ही, एक अन्य सिद्धांत भी बुद्धिजीवियों के बीच अपने दावे के साथ बड़ी तेजी से विचार रहा है.

ऐसे में, ‘आदि’ और ‘इत्यादि’ के प्रयोगों से संबंधित सभी पक्षों के विचारों पर दृष्टि डालना आवश्यक हो जाता है.

‘आदि’ और ‘इत्यादि’ के प्रयोग संबंधी प्रथम विचार

आदि- कुछेक वस्तुओं को व्यक्त करने के लिए: बहुत कम या नाममात्र की संज्ञाओं (वस्तुओं, व्यक्तियों या स्थान) को व्यक्त करने के लिए ‘आदि’ का प्रयोग किया जाता है.

दूसरे शब्दों में, ऐसे वाक्य जहां एक या दो ही उदहारण दर्शाने हों वहां ‘आदि’ लिख देते हैं.

उदाहरण- दिल्ली आदि शहरों में लोग बहुत लालची हैं.

नित्यानंद जी घूमकर आए और अपने कपड़े, किताबें आदि लेकर चले गए.

किसान बाज़ार से बीज, खाद आदि ले आया.

इत्यादि- दो से अधिक उदाहरणों के बाद: ऐसे वाक्य जहां दो से ज़्यादा उदाहरण (वस्तुओं, व्यक्तियों या स्थान को) दर्शाने हों, ‘इत्यादि’ का प्रयोग करते हैं.

उदाहरण- संदूक नक्शा, किताबें, पेन, पेन्सिल इत्यादि से भरा हुआ था.

‘आदि’ और ‘इत्यादि’ के प्रयोग संबंधी दूसरा विचार

आदि- समानता की स्थिति में: आपस में संबंध रखने वाली ज़्यादा चीज़ों को थोड़े में व्यक्त करने के लिए ‘आदि’ का प्रयोग किया जाता है.

दूसरे शब्दों में, जब एक ही वर्ग (कैटेगरी) की वस्तुओं का वर्णन हो, तो वहां ‘आदि’ का प्रयोग इस मक़सद से करते हैं कि थोड़े में समान (एक जैसी) सभी वस्तुओं को को बताया जा सके.

उदाहरण- श्यामा खीरा, ककड़ी, संतरे आदि का सेवन कर रही है, ताकि पेट ठंडा रहे.

इत्यादि- असमानता की अवस्था में: जहां असमान प्रकृति (अलग-अलग प्रकार) की बहुत सारी चीज़ें हों वहां संक्षेप में उन्हें दर्शाने के लिए ‘इत्यादि’ का प्रयोग किया जाता है.

उदाहरण- मैंने आज बाज़ार से सेब, टमाटर, तेल, साबुन इत्यादि ख़रीदे.

यानि, यहां रोज़ाना इस्तेमाल होने वाली कई प्रकार की (मान लीजिए) चीज़ें हैं मगर, उन सब को बताने के बजाय कुछ (केवल चार चीज़ों) ही के नाम गिनाये गए हैं, जबकि बाक़ियों को भी दर्शाने के लिए ‘इत्यादि’ लिख दिया गया है.

समानता की स्थिति में भी ‘इत्यादि’ का प्रयोग: उपरोक्त नियम के विपरीत समानता की स्थिति में भी कुछ लोग ‘इत्यादि’ के प्रयोग की बात करते हैं.उनके अनुसार, किसी प्रसंग में यदि समान संबंध रखने वाली बहुत सारी चीज़ों को बताने की ज़रूरत होती है वहां वर्णन को छोटा करने के उद्देश्य से सिर्फ़ दो-तीन चीज़ों ही को गिनाकर ‘इत्यादि’ लिख देते हैं.इससे अन्य चीज़ों का भी बोध हो जाता है.

इसके लिए भारतेंदु की एक रचना का एक वाक्य (उद्धरण) बतौर प्रमाण प्रस्तुत किया जाता है.वह इस प्रकार है-

‘बेटा हमारा धन, आभुषन, बसन (बर्तन) बर्तन इत्यादि सब बलात्कार हर ले गए.’

यानि, यहां तर्क यह है कि धन (रक़म के रूप में), आभूषण और बर्तन इत्यादि चूंकि वैयक्तिक संपत्ति के घटक (या उसके रूप में) हैं इस कारण ये एक दूसरे से संबंधित हैं अथवा इनमें समानता का भाव है इसलिए ‘इत्यादि’ का प्रयोग हुआ है.

इससे संबंधित एक अन्य उदाहरण- रजनी अपना तेल, पाउडर, क्रीम इत्यादि साथ ले गई थी.

यहां तेल, पाउडर और क्रीम सौन्दर्य प्रसाधन (अंगराग या कॉस्मेटिक्स) की वस्तुएं हैं.

‘आदि और ‘इत्यादि’ के प्रयोग संबंधी तीसरा विचार

कुछ विचारकों के अनुसार, ‘आदि’ शब्दों को जोड़ता है, जबकि ‘इत्यादि’ उपवाक्यों यानि, कथनों को जोड़ता है.ऐसे में, प्रसंग या परिस्थितियों के अनुसार इनका प्रयोग किया जाता है.

आदि- शब्दों को जोड़ने के लिए: जहां केवल शब्दों (संज्ञाओं) को जोड़ना हो वहां ‘आदि’ का प्रयोग किया जाता है.

उदाहरण- घर बनाने के लिए ईंट, रोड़ी, सीमेंट आदि की ज़रूरत होती है.

हलवाई चम्मच, प्लेट आदि सब साथ लाया है.

हंसना, रोना आदि मानव की आवश्यक स्वाभाविक क्रियाएं हैं.

इत्यादि- उपवाक्यों को जोड़ने के लिए: किसी प्रसंग में कई उपवाक्यों को एक साथ रखना हो, तो ‘इत्यादि’ का प्रयोग किया जाता है.

उदाहरण- सुधाकर जी को देखिए तो मनपसंद खाना, कुछ नया पढ़ना, लोगों से मिलना इत्यादि उनकी दिनचर्या थी.

बचपन से मेरे बहुत से शौक़ थे, क्रिकेट खेलना, फ़िल्में देखना और जासूसी उपन्यास पढ़ना, इत्यादि.

यानि, यहां पढ़ना, मिलना, खेलना आदि क्रियार्थक संज्ञा वाले शब्द हैं इसलिए इनके साथ तो ‘आदि’ प्रयुक्त होगा, जबकि इन्हीं के साथ ‘कुछ नया’, ‘लोगों से’, क्रिकेट आदि शब्दों के जुड़ जाने से भाषा विज्ञान के अनुसार ये (कुछ नया पढ़ना, लोगों से मिलना, क्रिकेट खेलना) सन्निहित उपवाक्य बनकर ‘इत्यादि’ के प्रयोग के लिए उपयुक्त हो जाते हैं.

ऐसे में, कोई क्या करे? किसकी माने और किसको इनकार करे?

दरअसल, यह विडंबना ही है कि 1000 साल पुरानी एक समृद्ध और सबसे लोकप्रिय (भारत तथा विदेशों में भी भारतीयों के बीच बोली जाने वाली) भाषा राजभाषा हिंदी में भी कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां हैं.इन्हें दूर करने व एक सर्वसम्मत राय (या नियम) बनाने के लिए विद्वानों को आगे आना चाहिए.

कुछ लोगों का कहना है कि ‘अगर पाठ में ‘आदि’ और ‘इत्यादि’ दोनों का प्रयोग हो रहा हो, तो एकरूपता के लिए ‘आदि’ का ही प्रयोग करना चाहिए.’ क्या यह ठीक रहेगा?

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रामाशंकर पांडेय

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