असली स्तन बनाम नकली स्तन: नकली स्तनों को पहचानने के तरीक़े जानिए
एक समय था जब दूध पैदा करने और बच्चों को दूध पिलाने की क्षमता महिला शक्ति का स्रोत थी.स्तनों को पोषण के स्रोत के रूप में पूजनीय माना जाता था.हालांकि सौंदर्यशास्त्र और कामशास्त्र ने तब भी इनमें आकर्षण, मादकता या कामुक आनंद को खोज लिया था.मगर स्तन आज ज़्यादा कामुक हो गया है.यही कारण है कि पुरूष जहां स्तनों पर फ़िदा होते हैं वहीं, महिलाएं भी दीवानी हैं उन्हें अपने मनोनुकूल आकार व आकृति में पाने के लिए.इसके लिए वे हर संभव प्रयास कर रही हैं, सभी प्रकार के हथकंडे और तकनीक अपना रही हैं, जिसमें कैसर पैदा करने वाले प्रत्यारोपण यानि, नकली स्तन लगवाना भी शामिल है.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के विकास का एक परिणाम यह भी है आज बहुत सारी चीजों में असली और नकली का भेद करना कठिन प्रतीत हो रहा है.इनमें मानव अंग भी हैं.ख़ासतौर से स्तन, जो शारीरिक सुंदरता और मोहकता, या यूं कहिये कि उत्तेजना के प्रथम केंद्र बिंदु होते हैं, बड़े मायने रखते हैं.ये भी कृत्रिम होते जा रहे हैं, और इनका प्रत्यारोपण कुछ इस तरह से हो रहा है कि अगर मालूम न हो, तो शायद जीवनसाथी भी पहचान न पाए.मगर पारखी नज़र या तजुर्बेकार व्यक्ति की नज़र से ये नहीं बच सकते हैं, पहचाने जा सकते हैं.ऐसे कई तरीक़े हैं, जिनसे स्तनों में फर्क कर वे असली हैं या नकली, यह बताया जा सकता है.

जैसे-जैसे चिकित्सा प्रौद्योगिकी आगे बढ़ रही है, स्तन भी छलिये होते जा रहे हैं.ऐसे में, आम आंखों और सामान्य बुद्धि को पता ही नहीं चलता है कि सामने वाली महिला की सर्जरी हुई है, और उसने नकली स्तन लगा रखे हैं.हालांकि यह इतना भी कठिन नहीं है.नकली स्तनों को पहचाना जा सकता है यदि, स्तनों के आकार-प्रकार, आकृति, स्थिति एवं प्रकृति का ज्ञान हो.ज्ञान भी तो आख़िर वास्तविकता का ही दूसरा नाम है.
मगर नकली स्तनों को पहचानने के तरीक़े जानने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि असली और नकली स्तन आख़िर कहते किसे हैं, या इनके मायने क्या हैं, ताकि विषय-वस्तु अच्छी तरह समझ आ सके.
असली स्तन बनाम नकली स्तन
असली स्तन: असली स्तन प्राकृतिक होते हैं, जो ग्रंथि उत्तक (लोब्यूल), वसा और संयोजी या रेशेदार उत्तकों से बने होते हैं.ये जननांग महिला के यौवन काल में विकसित होते हैं, और इनमें जीवनभर परिवर्तन होते रहते हैं.

विशेषज्ञों के मुताबिक़ एस्ट्रोजन, प्रोजेस्टेरोन और प्रोलैक्टिन नामक हार्मोन के प्रभाव के कारण महिलाओं के स्तनों में उनके मासिक धर्म चक्र, गर्भावस्था व स्तनपान और मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति काल में ख़ास बदलाव देखने को मिलते हैं.
नकली स्तन: इम्प्लांटेड या प्रत्यारोपित (प्रत्यारोपण या आरोपण किया हुआ) स्तन नकली होते हैं.दरअसल, ब्रेस्ट इम्प्लांट या स्तन प्रत्यारोपण (अंगों में सुधार या कार्य के लिए सर्जरी के द्वारा यंत्र या सिंथेटिक पदार्थों का आरोपण या प्रत्यारोपण) एक प्रकार की सर्जरी है, जिसमें सर्जन चीरा लगाकर ब्रेस्ट टिश्यू या स्तन कोशिकाओं के नीचे आवश्यकतानुसार सलाइन या सिलिकॉन लगा देता है.इससे महिला के स्तनों का आकार और आकृति बदल जाती है.

चिकित्सकीय भाषा में इसे ब्रेस्ट ऑगमेंटेशन (स्तन वृद्धि) या ऑगमेंटेशन मैमोप्लास्टी भी कहा जाता है.इस सर्जरी का असर क़रीब 12 साल तक रहता है, या यूं कहिये कि नकली स्तनों की आयु लगभग 12 वर्षों की होती है, और दोबारा इनकी सर्जरी की आवश्यकता होती है.
नकली स्तनों को पहचानने के तरीक़े जानिए
स्तनों का बारीक़ी से अवलोकन करें, तो उनकी वास्तविकता का पता चल सकता है.विशेषज्ञों के मुताबिक़ अपने आकार, आकृति, एवं स्थिति से स्तन स्वयं अपनी पहचान बता देते हैं.
आकार: प्राकृतिक स्तन नाशपाती या आंसू की बूंदों के आकार के होते हैं.ऐसे में, इनका निचला हिस्सा मोटा और उपरी हिस्सा अपेक्षाकृत पतला होता है.इसके विपरीत, बनावटी या नकली स्तन छाती पर चिपके हुए दो गुब्बारों या खरबूजों की आकृति में गोल दिखाई देते हैं.इसका कारण यह है कि स्तन प्रत्यारोपण में ऊपर से नीचे तक समान रूप में सलाइन या सिलिकॉन भरा जाता है, जिससे स्तन एकदम गोलाकार दिखाई देते हैं.

समरूपता: प्राकृतिक या असली स्तन हालांकि एक जैसे परिलक्षित (प्रतिबिंबित) ज़रूर होते हैं, पर कभी भी वे सममित या पूरी तरह समान नहीं होते हैं.यानि, आकार, आकृति, कोण (दिशाओं), आदि में दोनों स्तन एक दूसरे से थोड़े अलग होते हैं.
इसके विपरीत, प्रत्यारोपित स्तन (इम्प्लांट) चूंकि मानव निर्मित (आर्टिफिशियल) होते हैं इसलिए, वे बिल्कुल समान होते हैं.

स्थिति (छाती पर): प्राकृतिक स्तन कांख या बगल (आर्मपिट) के आसपास स्थित होते हैं, जबकि कृत्रिम या नकली स्तन बगल से प्रत्यारोपित किये जाने के कारण छाती के बहुत ऊपर लगाये जाते हैं, ताकि धीरे-धीरे वे उचित स्थान पर आ जायें.लेकिन, ऐसा पूरी तरह होता नहीं है, और वे बगल क्षेत्र से ऊपर ही टंगे दिखाई देते हैं.

निशान (कट मार्क): नकली स्तनों की एक बड़ी पहचान उस पर और आसपास के क्षेत्रों में घाव या चीरे के निशान होते हैं, जो दिखाई देते हैं.हालांकि समय के साथ ये निशान मिट जाते हैं, या धुंधले पड़ जाते हैं.तब इन्हें पहचानना कठिन हो सकता है.

दरअसल, स्तन प्रत्यारोपण की प्रक्रिया में सर्जन इंफ्रामैमरी फोल्ड (इंफ्रामैमरी क्रीज) या स्तन की तह (स्तनों की प्राकृतिक निचली सीमा जहां छाती और स्तन मिलते हैं) के नीचे, एरिओला या घेरे के आसपास और बगल के क्षेत्र में चीरा लगाते हैं.इसके निशान रह जाते हैं.इनके आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि स्तन नकली हैं.
ज़्यादा क़रीब स्तन: प्राकृतिक स्तनों के बीच लगभग 2 से 3 इंच की दूरी होती है.इसके विपरीत, कृत्रिम स्तन एक दूसरे के ज़्यादा क़रीब या मिले हुए दिखाई देते हैं.जगह का यही अंतर असली और नकली स्तनों के बीच का अंतर है.

स्पर्श से अनुभूति: नकली स्तनों की पहचान उन्हें स्पर्श करने या छूने से हो जाती है.दरअसल, प्राकृतिक स्तन छूने पर गर्म और मुलायम महसूस होते हैं, जबकि कृत्रिम स्तन कठोर लगते हैं.

अलग-अलग अवस्थाओं में आकार और आकृति का न बदलना: प्राकृतिक स्तन ऐसे होते हैं जो खड़े होने, बैठने, झुकने और लेटने पर अपना आकार व आकृति बदल लेते हैं.लेकिन कृत्रिम स्तनों के साथ ऐसा नहीं होता है.

ज्ञात हो कि जब महिलाएं लेटती हैं, तो उनके स्तन सिकुड़े हुए दिखाई दते हैं.वास्तव में, ये फैल जाते हैं.इसके विपरीत, कृत्रिम स्तन किसी भी अवस्था में गोलाकार और ऊपर की ओर खड़े रहते हैं जैसे कि वे नट और बोल्ट से कसे हुए हों.
स्थिरता या दृढ़ता: स्थिरता या दृढ़ता का अर्थ होता है विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी स्थिति में बने रहना, अपनी जगह स्थापित रहना.यह विशेषता नकली स्तनों में पाई जाती है.उनमें गतिशीलता में भी स्थिरता बनी रहती है.

ज्ञात हो कि जब महिला चलती है, तो उसके स्तन हिलते हैं.सेक्स के दौरान, जब महिला (वह चाहे लेटी हुई हो या आगे की ओर झुकी हुई हो, काउगर्ल की अवस्स्था में) का शरीर आगे-पीछे तेजी से हिल रहा होता है, तो उसके स्तन भी ख़ूब उछलते हैं.यह उनके प्राकृतिक होने के प्रमाण हैं.इसके विपरीत, प्रत्यारोपित या नकली स्तन इस स्थिति में भी स्थिर व छाती से चिपके हुए रहते हैं.
छलकने की आवाज़: जैसे पानी के छलकने और हवा के तेज बहने पर एक प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है वैसे ही नकली स्तनों से भी छलकने जैसी आवाज़ सुनाई देती है.यह महिला के स्तनों के अंदर सिंथेटिक पदार्थों के भरने का परिणाम होता है.

विशेषज्ञों के अनुसार प्रत्यारोपण के दौरान सलाइन से स्तन अगर पूरी तरह नहीं भरता है यानि, उसमें कुछ जगह ख़ाली जगह रह जाती है, तो वह एक एयर पॉकेट या हवाई गर्त (थक्के या थैलियां) बना लेता है.इससे इधर-उधर होने पर या हरकत की स्थिति में सुना जा सकता है.
मगर यह चलते-फिरते या दूर से नहीं, बल्कि अंतरंगता या यौन अंतरंगता की स्थिति में संभव है जब स्त्री और पुरूष शारीरिक और मानसिक रूप से एक हो जाते हैं.
चुचुकों में संवेदनशीलता: नकली स्तनों के निपल या चुचुको में संवेदनशीलता या तो होती ही नहीं है या फिर वे हमेशा ही संवेदनशील रहते हैं.संवेदनशील चुचुक हमेशा खड़े दिखाई देते हैं.
इसके विपरीत , असली स्तनों के चुचुक केवल ठंड लगने पर या उत्तेजित होने पर ही खड़े होते हैं.

विशेषज्ञों के अनुसार स्तन प्रत्यारोपण चुचुको की संवेदनशीलता पर असर डाल सकते हैं.लेकिन, इसकी सीमा अलग-अलग होती है.कुछ महिलाओं में स्थाई या अस्थाई रूप से कमी या वृद्धि हो सकती है.
दरअसल, प्रत्यारोपण यानि, सिंथेटिक पदार्थ आमतौर पर स्तन उत्तक या छाती की मांसपेशियों के नीचे लगाये जाते हैं, जो संवेदनशीलता पैदा करने वाली नसों को प्रभावित करते हैं.स्तनों की स्थापना, आकार और सर्जिकल (शल्य) तकनीक भी चुचुकों की संवेदना को प्रभावित करती है.
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