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अपराध

सुशांत केस की तरह मनसुख हिरेन केस भी बिगड़ गया है?

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मनसुख हिरेन के केस का हाल भी क्या बहुचर्चित सुशांत सिंह राजपूत के केस जैसा हो गया है? ये केस भी क्या गड़बड़ा गया है और सही अंज़ाम तक नहीं पहुंच पाएगा?

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सुशांत सिंह राजपूत एवं मनसुख हिरेन 


ये सवाल उठना लाज़िमी है क्योंकि ताज़ा हालात सुशांत के केस के वक़्त के हालात से काफ़ी मिलते-जुलते हैं.इसमें भी मुंबई पुलिस की भूमिका संदिग्ध नज़र आ रही है.एटीएस द्वारा की जा रही कार्रवाई को ग़ैरज़रूरी और ग़ैरक़ानूनी समझा गया है.यही कारण है कि सेशन कोर्ट ने उसे फटकार लगाई है.कोर्ट ने,उसके द्वारा की जा रही मनसुख केस की जांच को रोक देने तथा तमाम फाइलें और ज़ब्त सामान एनआईए को सौंपने का निर्देश दिया है.
जैसा कि पहले ही शक़ था,एटीएस भी कह रही है कि मनसुख हिरेन की हत्या से जुड़े ज़्यादातर सबूत मिटा दिए गए हैं.हत्या में इस्तेमाल मोबाइल फ़ोन,सिम कार्ड,सीसीटीवी फुटेज़ आदि नष्ट करने की कोशिश की गई है.
दरअसल,शक़ की यहां एक नहीं अनेक वज़हें हैं.

आनन-फ़ानन में कार्रवाई 

उल्लेखनीय है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के मनसुख मामले की जांच एनआईए को सौंपने के कुछ ही घंटों में एटीएस ने दो लोगों को गिरफ़्तार कर मामले को सुलझा लेने का दावा कर दिया.

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एंटीलिया केस में गिरफ़्तार विनायक व नरेश 
पहले वह हाथ पर हाथ धरे क्यों बठी रही?
अचानक ऐसी कार्रवाई के पीछे मक़सद क्या था?

नोटिफिकेशन के बाद भी एटीएस की जांच ज़ारी रही

क़ायदे के मुताबिक़,केंद्र द्वारा नोटिफिकेशन ज़ारी हो जाने के बाद मनसुख केस की जांच एनआईए के अधिकार-क्षेत्र में आ गई थी.ऐसे में एटीएस को अपनी ओर से जांच तत्काल रोक देनी चाहिए थी.मगर ऐसा नहीं हुआ.
क़ानून का उल्लंघन हुआ.
फ़िर एनआईए अदालत गई.अदालत ने एटीएस की कार्यवाही को नाज़ायज़ क़रार देते हुए उसकी ओर ज़ारी जांच को रोक देने का आदेश दिया.

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ठाणे कोर्ट का आदेश (प्रतीकात्मक)

 
फ़ाइलों पर कुंडली मारे बैठे रहे  

बार-बार मांगने के बावज़ूद मनसुख केस की फ़ाइलें/सरकारी दस्तावेज़ एटीएस ने एनआईए को नहीं दिए.ज़ब्त किए गए सामान उसे नहीं सौंपे.एनआईए के आला अधिकारियों ने इस बाबत फ़िर महाराष्ट्र के डीजी रजनीश सेठ से शिक़ायत की लेकिन उनकी ओर से भी कोई ज़वाब नहीं आया.
आख़िरकार,एनआईए को ठाणे कोर्ट का रूख़ करना पड़ा.वहां कोर्ट ने एटीएस को फटकार लगाते हुए तमाम दस्तावेज़ और ज़ब्त सामान एनआईए को तत्काल सौंपने का निर्देश दिया.

वाज़े की देखरेख में पोस्टमार्टम 

मनसुख हिरेन के परिवार वालों का आरोप है कि मनसुख के पोस्टमार्टम के दौरान सचिन वाज़े लगातार पोस्टमार्टम होम में मौज़ूद था.ऐसा क्यों?
जिसने मारा/मरवाया उसी ने पोस्टमार्टम भी करवाया.
मनसुख के भाई विनोद हिरेन का ये भी आरोप है कि उसने (सचिन वाज़े) डाक्टरों से मिलीभगत कर मनसुख की पोस्टमार्टम रिपोर्ट बदल दी.
एटीएस का कहना है कि अस्पताल में मुलाकातियों (डाक्टरों से मिलने वालों) का कोई लिखित रिकॉर्ड नही मिला.
इसके अलावा,पहले ये बात सामने आई थी कि मनसुख को क्लोरोफार्म सूंघाने के बाद उसके मुंह में रूमाल (पांच रूमाल) ठूंस दिए गए थे,जिससे उसकी मौत हो गई.उसके बाद लाश को पानी में फ़ेंका गया था.
लेकिन,डायटम रिपोर्ट में कहानी अलग है.उस रिपोर्ट में ये कहा गया है कि मनसुख जब पानी में गिरा था तो वह जिंदा था.एटीएस ने इस रिपोर्ट को जांच के लिए हरियाणा के एक लैब भेज दिया था.एनआईए को उसका इंतज़ार है.
          

लाख टके की बात

दरअसल,मनसुख हिरेन का मामला महज़ उसकी मौत/हत्या तक सीमित नहीं है.उसके तार एंटीलिया केस और 100 करोड़ की कथित उगाही से भी जुड़े हैं.इसलिए,यदि यह केस बिगड़ चुका है तो आगे भी कुछ हाथ आने वाला नहीं है.

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विस्फोटकों से भरी कार से लेकर 100 करोड़ की वसूली तक के मामले(प्रतीकात्मक)

 

दो बिल्लियों की लड़ाई में जैसे बंदर के फायदे की बात कही जाती है ठीक वैसे ही दो जांच एजेंसियों के अलग-अलग दावों का लाभ अपराधियों को मिल सकता है. 
बेशक़ अब सबकुछ एनआईए के हाथ में दिख रहा हो लेकिन उनमें अब भी कई पेच साफ़ दिखाई देते हैं.यही कारण है कि हर तरफ़ से मुंह की खाने के बाद भी मुंबई पुलिस अपनी कारगुज़ारियों से बाज़ नहीं आ रही है.इनमें सचिन वाज़े की कस्टडी का मामला भी है.मनसुख की कार चोरी के केस में मुंबई की गामदेवी पुलिस द्वारा संभावित ऐसा कुछ प्रयास आगे भी कई संभावनाओं को जन्म देगा. 
और चलते चलते अर्ज़ है ये शेर… 

हुई हैं दैर ओ हरम में ये साजिशें कैसी, 
धुआं सा उठने लगा शहर के मक़ानों से |

और साथ ही…  
समझने ही नहीं देती सियासत हमको सच्चाई, 
कभी चेहरा नहीं मिलता कभी दर्पण नहीं मिलता |
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रामाशंकर पांडेय

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