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इतिहास

मनुबेन की डायरी में गोते लगाता दिखता है महात्मा गांधी का संपूर्ण जीवन दर्शन

‘मखमल में टाट का पैबंद’ वाली कहावत तो सभी ने सुनी है, लेकिन इसके विपरीत गांधी जी की छवि को लेकर अधिकांश लेखकों-इतिहासकारों ने टाट में मखमल का पैबंद लगाने का काम किया है.गांधी जी का सच छुपाने और उन्हें महात्मा बताने के लिए केवल और केवल झूठ बोला जाता रहा, ये मनुबेन की डायरी पढ़कर ख़ुलासा हो जाता है.वास्तव में, मनुबेन की डायरी गांधी जी के जीवन दर्शन का आइना है.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
महात्मा गांधी,मनुबेन की डायरी व मनुबेन  



साल 201० में दिल्ली स्थित राष्ट्रीय अभिलेखागार पहुंचीं मनुबेन की दस डायरियां दरअसल, 2013 में प्रकाश में आई.जगह-जगह हाशिए पर गांधी जी के हस्ताक्षरों वाली दो हज़ार पन्नों में फ़ैली मनुबेन की दस डायरियां मूल गुजराती में हैं और इनमें 11 अप्रैल 1943 से 21 फ़रवरी 1948 तक की तारीखें दर्ज़ हैं.

मनुबेन की डायरी में गांधी जी की प्राकृतिक चिकित्सा, उनके निजी जीवन या कथित ब्रह्मचर्य के प्रयोगों का मनुबेन व दूसरे लोगों पर असर, इश्कबाज़ी, ईर्ष्या और द्वेष की चर्चा हैं.इनमें अधिकतर युवा महिलाएं थीं.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
महात्मा गांधी के साथ लड़कियों का समूह 



क़रीब पांच सालों के दौरान अलग-अलग तारीखों में दर्ज़ उन अंशों में, जो मनुबेन की डायरी से लिए गए हैं (हिंदी साप्ताहिक इंडिया टुडे, नई दिल्ली, 2013 से साभार), क्या लिखा है, यह पढ़ने और विभिन्न घटनाओं, संदर्भों को भी बारीक़ी से परखने व समझने की आवश्यकता है.

1. मनुबेन की डायरी की 10 नवंबर, 1943 की प्रविष्टि में पुणे के आगा खां पैलेस में सुशीलाबेन के साथ नंगे नहाते समय एनीमिया के शिकार गांधी जी के बेहोश हो जाने की चर्चा देखने को मिलती है.मनुबेन बताती हैं कि ऐसे मौक़े पर अकेली सुशीला बेन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

मनुबेन उस दृश्य के बारे में बताती हैं, जिसमें सुशीला बेन ने एक हाथ से गांधी जी को पकड़ा और दूसरे हाथ से अपने कपड़े पहने और फिर उन्हें सुरक्षित बाहर लेकर आईं.

उल्लेखनीय है कि गांधी जी और उनकी पत्नी कस्तूरबा, उन दिनों जारी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के चलते, आगा खां पैलेस में नज़रबंद थे.सुशीला नय्यर, जो गांधी जी के सचिव प्यारेलाल की बहन थीं, वे गांधी जी की निजी डॉक्टर होने के साथ-साथ उनके प्राकृतिक चिकित्सा/ब्रहचर्य के प्रयोगों में भी सहभागी होती थीं.

मनुबेन के इस कथन- ‘फिर सुशीलाबेन ने एक हाथ से बापू को पकड़ा और दूसरे हाथ से कपड़े पहने’ के दो मत्लब बनते हैं.पहला, सुशीला ने बाथरूम में गांधी जी को तुरंत प्राथमिक चिकित्सा दी, क्योंकि वह उनकी निजी डॉक्टर भी (सेविका होने के साथ-साथ)) थीं, और उनके होश में आने के बाद उन्होंने कपड़े (ख़ुद और गांधी जी को भी) पहने-पहनाए होंगें और उन्हें बाहर लेकर आई होंगीं.क्योंकि एक हाथ से किसी बेहोश व्यक्ति को संभालना, उसे कपड़े पहनाना और दूसरे हाथ से ख़ुद के अंगवस्त्र और साड़ी वगैरह पहनना संभव नहीं है, इसलिए ये सारी क्रियाएं पहले ही पूरी हो चुकी होंगीं और फिर, बाहर आने पर लोगों को अपने परिश्रम, चतुराई और गांधी जी के प्रति समर्पण का उहोने बखान किया होगा.

दूसरा, नहाते समय गांधी जी बेहोश होने के बाद जब सुशीला उन्हें होश में लाने का प्रयास कर रही थीं, तभी उनकी आवाज़ सुनकर या फ़िर उनके शोर मचाने पर बाक़ी सेविकाओं ने देखा कि वे गांधी जी को संभालने का प्रयास कर रही हैं और साथ ही साथ अपने कपड़े भी पहन रही हैं.फ़िर वे उन्हें बाहर लेकर आईं.मगर वास्तव में प्रत्यक्षदर्शियों (बाक़ी सेविकाओं) के वहां पहुंचने से पहले सुशीला ने अपने अंगवस्त्र और साड़ी वगैरह पहन लिए होंगें या पहनने की क्रिया पूरी कर रही होंगीं.फिर उन्होंने गांधी जी की कमर में धोती लपेट दी होगी और उन्हें बाहर लेकर आई होंगीं.

बहरहाल, मनुबेन को भी गांधी जी के प्रयोगों की जानकारी मिल गई, जब वे बीमार चल रहीं कस्तूरबा की सेवा करने पहली बार पहुंची थीं.उन्होंने लिखा-

” एनीमिया के शिकार बापू आज सुशीलाबेन के साथ नहाते समय बेहोश हो गए.फिर, सुशीलाबेन ने एक हाथ से बापू को पकड़ा और दूसरे हाथ से कपड़े पहने और फिर उन्हें बाहर लेकर आईं. ”


2. 21 दिसंबर, 1946 को जब गांधी जी अपने लाव लश्कर के साथ बिहार के श्रीरामपुर में रुके थे, वहां रात में घटी घटना अथवा गांधी जी की रात्रि-चर्या का, जिसे वे ब्रह्मचर्य का प्रयोग कहते थे, उसका ज़िक्र मिलता है.

यहां गांधी जी के साथ मनुबेन के अलावा सुशीला नय्यर और दूसरी लड़कियां भी हैं.
       
गांधी जी के साथ पलंग पर मनुबेन और सुशीला हैं, पर बाक़ी लड़कियां किसी और पलंग पर या नीचे सुलाई गई हैं.

मनुबेन कहती हैं कि बापू उन्हें बांहों में भर लेते हैं, थपथपाते हैं और प्यार से सुलाते हुए उनकी तारीफ़ करते हैं क्योंकि वह साथ सोने के बावज़ूद सेक्स के मामले में उतावली नहीं हुईं/मासूम बनी रहीं.

फिर, मनुबेन कहती हैं- ‘लेकिन दूसरी लड़कियों के साथ ऐसा नही हुआ’.इससे ऐसा लगता है कि बापू मनुबेन और सुशीला से संतुष्ट थे, और वे दोनों भी बापू से संतुष्ट थीं, लेकिन बाक़ी लड़कियों वीना, कंचन और लीलावती के दिल के अरमान अधूरे रह गए.वे संतुष्ट न हो सकीं क्योंकि बापू मनुबेन और सुशीला नय्यर के साथ इतने व्यस्त रहे कि उनके पास औरों के लिए समय ही नहीं बचा.

या फिर कोई और बात थी? क्या बापू के साथ केवल नग्न सोना था, मैथुन क्रिया नहीं हुई/होती थी, क्योंकि यहां ‘उतावली न होने’ अथवा ‘मासूम बनी रहने’ वाली बातें हो रही हैं? तो फिर आलिंगन और थपथपाने की बातें क्यों हैं?
 
नंगे बदन एक दूसरे को बांहों में भरने, थपथपाने या चूमने की क्रियाएं भी तो मैथुन क्रिया (लवमेकिंग/सेक्स) से जुड़ी क्रियाएं हैं, जिन्हें ओरल सेक्स (मौखिक संभोग) या फिर फोरप्ले कहते हैं.

क्या ऐसा नहीं लगता कि मनुबेन ने सब कुछ खुलकर नहीं बताया है और मर्यादा का ख़याल रखते हुए, कुछ बातें संकेतों में कही है? ऐसा संभव है, क्योंकि उन दिनों लड़कियों के बीच सेक्स को लेकर आज की तरह खुलापन नहीं था.ऊपर से गांधी जी का महात्मा जैसा रूप-ढंग भी शायद आड़े आ रहा होगा.
   
बहरहाल, वीना, कंचन और लीलावती ने ये निश्चय कर लिया था कि अपने प्रिय बापू के साथ वे फिर कभी नहीं सो पाएंगीं.यही सब कुछ मनुबेन ने इस प्रकार लिखा है-

” आज रात जब बापू, सुशीलाबेन और मैं एक ही पलंग पर सो रहे थे तो उन्होंने मुझे गले से लगाया और प्यार से थपथपाया.उन्होंने बड़े ही प्यार से मुझे सुला दिया.उन्होंने लंबे समय बाद मेरा आलिंगन किया था.फ़िर बापू ने अपने साथ सोने के बावज़ूद (सेक्स के मामले में) मासूम बनी रहने के लिए मेरी तारीफ़ की.

लेकिन दूसरी लड़कियों के साथ ऐसा नहीं हुआ.वीना, कंचन और लीलावती ने मुझसे कहा था कि वे उनके (गांधी जी के) साथ नहीं सो पाएंगीं. ”


3. 28 दिसंबर, 1946 को बिहार के श्रीरामपुर में ही मनुबेन की डायरी की अगली प्रविष्टि कुछ अलग ही कहानी बयान कर रही है.यानि एक हफ़्ते के भीतर ही हालात बदल चुके हैं.

पिछली 21 दिसंबर की रात गांधी जी की वे दो सेविकाएं, मनु (मनुबेन जो रिश्ते में गांधी जी की पोती थीं) और सुशीला (सुशीला नय्यर, गांधी जी की निजी डॉक्टर और सेविका) जो उनके अगल-बगल में एकसाथ बड़े प्यार से गांधी जी के साथ सोती हुई प्रफुल्लित थीं, उनके बीच अब इर्ष्या और द्वेष की दीवार खड़ी हो चुकी है.कड़वाहट इतनी बढ़ चुकी है कि सुशीला मनु को बुरे अंज़ाम भुगतने/सबक सिखाने तक की धमकी देने लगी हैं.मगर कारण क्या है?

बापू अब मनु के ज़्यादा क़रीब हो गए हैं और सुशीला को उनके साथ सोने का मौक़ा नहीं मिल रहा है.

उल्लेखनीय है कि गांधी जी के आश्रम या फिर दूसरी जगहों पर भी, जहां भी वे ठहरते थे, उनकी सेवा में लड़कियों-महिलाओं (खासतौर से कम उम्र की लड़कियों-महिलाओं) की फ़ौज रहा करती थी.उनमें ‘बापू’ के साथ सोने की होड़ लगी रहती थी.लेकिन चूंकि वे सभी को समान अवसर नहीं दे पाते थे, उन्हें संतुष्ट नहीं कर सकते थे इसलिए उनमें जलन, घृणा और शत्रुता फैलती थी.

दरअसल, मनु से पहले सुशीला ही बापू की ख़ास सेविका थीं.लेकिन अब, चूंकि मनु ने उनकी जगह ले ली है और यह उनसे सहन नहीं हो रहा है इसलिए उनके अंदर मनु के प्रति सौतिया डाह (सौतनों के बीच जलन) पैदा हो गई है.वे मनु रूपी कबाब में हड्डी को निकाल बाहर करने के लिए प्रयासरत हैं, आक्रामक हैं.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
मनुबेन व सुशीला नय्यर 



मनु कहती हैं कि ”उन्होंने मुझे अपने भाई प्यारेलाल के साथ विवाह के प्रस्ताव पर फिर से विचार करने को भी कहा”- इससे यहां पता चलता है कि सुशीला उन्हें पहले ही अपने रास्ते से हटाने की जुगत में लगी हैं और इसी प्रक्रिया के तहत उन्होंने मनु को अपने भाई प्यारेलाल (गांधी जी के सचिव) से शादी करने का प्रस्ताव दिया था.लेकिन सफलता नहीं मिलने के कारण यानि मनु द्वारा (पिछली बार) इनकार किए जाने के बाद वे, उनसे (मनु से) इस विषय पर दोबारा विचार करने को कह रही हैं.

दूसरी तरफ़, मनु बापू में रम चुकी हैं, उन्होंने बापू को ही अपना सब कुछ मान लिया है, स्वयं को समर्पित कर दिया है.लेकिन वास्तविक जीवन की वास्तविकता (वासनात्मक सच्चाई) को छुपाते हुए वह बापू को, आडंबर या ज़रूरी ओट के रूप में अपनी मां (मां जैसा) बताती हैं, जिसका (उनके इस झूठ का) आगे चलकर (एक दूसरे प्रकरण में) ख़ुलासा हो जाता है.दरअसल, गांधी जी के देहांत के बाद, महुवा में एकांत जीवन जी रहीं मनुबेन ने भगिनी समाज नामक संस्था में अपनी सहयोगी भानुबेन लाहिड़ी से, बापू पर अपना अटूट प्रेम ज़ाहिर करते हुए उन्हें, अपने मन की मीरा का श्याम कहा था.

बहरहाल, मनुबेन सुशीला को बताती हैं कि बापू पर उनका पूरा भरोसा है और उन्हें प्यारेलाल में कोई दिलचस्पी नहीं है.साथ ही, स्पष्ट रूप में वह ये भी कह देती हैं कि आइंदा वे (सुशीला बेन) फिर कभी उनसे इस बारे में बात न करें.

मनुबेन के शब्दों में घटना का वर्णन इस प्रकार है-

” सुशीलाबेन ने आज मुझसे पूछा कि मैं बापू के साथ क्यों सो रही थी और कहा कि मुझे इसके गंभीर नतीजे भुगतने होंगें.उन्होंने मुझसे अपने भाई प्यारेलाल के साथ विवाह के प्रस्ताव पर फिर से विचार करने को भी कहा और मैंने कह दिया कि मुझे उनमें कोई दिलचस्पी नहीं है, इस बारे में वे आइंदा फिर कभी बात न करें.

मैंने उन्हें बता दिया कि मुझे बापूजी पर पूरा भरोसा है और मैं उन्हें अपनी मां की तरह मानती हूं. ”
  

4. तीन दिनों बाद (पिछली 28 दिसंबर के बाद) यानि 1 जनवरी, 1947 को गांधी जी और उनका पूरा अमला बिहार के कथुरी में हैं.सारा देश स्वतंत्रता संग्राम में व्यस्त है और देश आज़ादी के मुहाने पर खड़ा है, मगर गांधी जी और उनकी मंडली इश्कबाज़ी, जलन और आपसी साज़िशों में मशगूल है.सुशीला बेन यहां भी मनुबेन को अपने रास्ते से हटाने और बापू के दिल पर एकक्षत्र राज करने की क़वायद में लगी हैं.

जब धमकियों से भी बात नहीं बनी तो अब सुशीला मनुबेन को लालच दे रही हैं.उनका कहना है कि यदि मनुबेन उनके भाई प्यारेलाल से शादी कर लेती हैं तो वह उन्हें नर्स बनने में मदद करेंगीं.लेकिन मनुबेन उनके इस झांसे में नहीं आतीं और साफ़ मना कर देती हैं.वे यह बात गांधी जी को भी बता देती हैं.

गांधी जी मनुबेन के साथ खड़े दिखाई देते हैं और कहते हैं कि सुशीला पगला गई हैं.वे मनुबेन को बताते हैं कि ये वही सुशीला है, जो कुछ दिनों पहले तक उनके सामने नंगी नहाती थी और उनके साथ सोया भी करती थी.लेकिन अब उन्हें (गांधी जी को) उनका (मनुबेन का) सहारा लेना पड़ रहा है.

कमाल की बात है.जो बातें यहां गांधी जी मनुबेन को बता रहे हैं, वो सब क्या मनुबेन को पता नहीं हैं?

दरअसल, मनुबेन की डायरी में उपरोक्त 10 नवंबर, 1943 की प्रविष्टि आगा खां पैलेस, पुणे में गांधी जी और सुशीला बेन के एकसाथ नंगे नहाने के लेकर ही है.फिर, बिहार के श्रीरामपुर में 21 दिसंबर, 1946 की रात सुशीला और मनु गांधी जी के अगल-बगल में लेट/सो चुकी हैं, और जहां वीना, कंचन और लीलावती का भी ज़िक्र है.तो फिर गांधी जी यहां कौन सी नई बात बता रहें हैं? बेशक़, इसमें नया कुछ भी नहीं है.दरअसल, वह मनुबेन के दिमाग़ पर भावनात्मक प्रभाव डाल रहे हैं.

मनुबेन के जीवन का बारीक़ी से अध्ययन करने पर पता चलता है उनके ऊपर गांधी जी का कितना असर पड़ा था.दिमाग़ी तौर पर वह बीमार हो चुकी थीं और उसी अवस्था में एकाकी जीवन जीते हुए 40 साल की उम्र में इस दुनिया से विदा हो गई थीं.

19 अगस्त, 1955 की बात है.मनुबेन बॉम्बे हॉस्पिटल में भर्ती थीं.उनकी हालत कैसी थी, उसकी झलक उनसे मिलने गए मोरारजी देसाई के जवाहरलाल नेहरु को लिखे पत्र में मिलती है.मोरारजी देसाई ने लिखा था कि ‘मनु की समस्या शरीर से अधिक मन की है.लगता है, वे जीवन से हार गई हैं और सभी प्रकार की दवाइयों से उन्हें एलर्जी हो गई है’.

यहां मनुबेन का ये कथन कि ‘बापू ने बताया कि अब उन्हें (बापू को) मेरा सहारा लेना पड़ रहा है’ इससे गांधी जी एक तीर से दो शिकार कर रहे हैं.पहला, वे मनुबेन को ये समझा रहे हैं कि उन्हें ख़ुश रखने के लिए जो कुछ भी वे उनके लिए अभी कर रही हैं, वही सब कुछ पहले सुशीला किया करती थीं.इसलिए उसमें कुछ भी ग़लत नहीं है.वह इसके कारण किसी प्रकार से और कभी भी कलंकित नहीं होंगीं.अतः उन्हें सुशीला के प्रस्ताव को ठुकराकर उनके (गांधी जी के) साथ सेक्स संबंधी प्रयोगों को आगे जारी रखना चाहिए.

दूसरा, गांधी जी मनुबेन को ये एहसास दिला रहे हैं कि वे बहुत बड़े व्यकित्व के धनी, महात्मा और प्रसिद्धि-प्राप्त व्यक्ति होते हुए भी उन जैसी सामान्य लड़की पर निर्भर करते हैं.वे उन्हें ज़्यादा क़ाबिल समझते हैं, उनसे लगाव रखते हैं इसीलिए सुशीला के विमुख होने (जबकि वास्तव में उन्हें गांधी जी ने स्वयं ही किनारा कर दिया था क्योंकि मनुबेन में ज़्यादा आत्मीयता अनुभूत होने लगी थीं) के बाद उन्हें महत्वपूर्ण अवसर प्रदान कर रहे हैं.

मनुबेन ने लिखा है-

” सुशीलाबेन मुझे अपने भाई प्यारेलाल से शादी करने के लिए कह रही हैं.उन्होंने मुझसे कहा कि अगर मैं उनके भाई से शादी का लूं तो ही वे नर्स बनने में मेरी मदद करेंगीं.लेकिन मैंने उन्हें साफ़ मना कर दिया और सारी बात बापू को बता दी.

बापू ने मुझसे कहा कि सुशीला अपने होश में नहीं है.उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले तक वह उनके सामने निर्वस्त्र नहाती थी और उनके साथ सोया भी करती थी.लेकिन अब उन्हें (बापू को) मेरा सहारा लेना पड़ रहा है.उन्होंने कहा कि मैं हर स्थिति में निष्कलंक हूं और धीरज (ब्रह्मचर्य के मामले में) बनाए रखूं. ”


5. 1 जनवरी 1947 को ही गांधी जी अपनी सेविकाओं समेत बिहार के कथुरी से श्रीरामपुर लौट आए थे.लेकिन, यहां भी इश्क़, दीवानगी और शादी के के लिए मान-मनौव्वल वाली बातें हो रही हैं.

५५ साल के प्यारेलाल 16-17 साल की नाबालिग़ मनुबेन के इश्क़ में दीवाने हैं और वे उनपर शादी के लिए दबाव डाल रहे हैं.मगर ‘बापू’ को समर्पित मनु के दिल में किसी दूसरे की घुसपैठ की गुंज़ाइश नहीं है और वे टस से मस नहीं हो रही हैं.उन्होंने ये बातें बापू को बताई तो उन्होंने कहा कि यह उनके ‘गुणों’ यानि ख़ासियत का असर है.बापू ने मनु को बताया कि प्यारेलाल ने भी उनसे कहा था कि वे बहुत गुणी हैं.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
महात्मा गांधी के सचिव प्यारेलाल व मनुबेन 



एक अधेड़ व्यक्ति को एक नाबालिग लड़की में कैसा गुण दिखाई दे रहा था? 

ख़ुद, गांधी जी ने भी मनुबेन के भीतर क्या देख और परख लिया था?

यदि ‘गुणों’ (कुछ और नहीं) की ही बात थी तो उनकी तारीफ़ होनी चाहिए थी, सम्मान होना चाहिए था, या फिर शादी रचाकर शारीरिक सुख भोगने के लिए इश्क़ में दीवाना होने और हाथ धोकर पीछे पड़ने की ज़रूरत थी?

गांधी जी भी अपने सेक्स के प्रयोगों में मनुबेन के गुणों का इस्तेमाल कर रहे थे या उनके शरीर का?

दरअसल, गांधी जी ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर मनु को न सिर्फ़ प्यारेलाल से दूर रखा, बल्कि उन्हें अपने करियर, अपने सामान्य जीवन और सुखों से भी वंचित कर दिया था.

मनु कच्ची उम्र की और ख़ूबसूरत होने के कारण जहां शारीरिक रूप से एक ज़रूरत थी, वहीँ कोमल मन, स्वार्थहीन और वफ़ादार होने के कारण बड़ी आसानी से इस्तेमाल होने वाली वस्तु भी थी, जिसे अपनी यौनेच्छाओं की पूर्ति हेतू सेक्स ग़ुलाम बनाकर गिनी पिग की तरह इस्तेमाल किया गया.

मनुबेन ने लिखा है-

” प्यारेलाल जी मेरे प्रेम में दीवाने हैं और मुझ पर शादी करने के लिए दबाव डाल रहे हैं, लेकिन मैं कतई तैयार नहीं हूं क्योंकि उम्र, ज्ञान, शिक्षा, और नैन-नक्श में वे मेरे लायक नहीं हैं.

जब मैंने यह बात बापू को बताई तो उन्होंने कहा कि प्यारेलाल सबसे ज़्यादा मेरे गुणों के प्रशंसक हैं.बापू ने कहा कि प्यारेलाल ने उनसे भी कहा था कि मैं बहुत गुणी हूं. ”


6. 18 जनवरी, 1947 को गांधी जी दिल्ली के बिड़ला हाउस में हैं और वे मनुबेन से बातें कर रहे हैं.यहां गांधी जी मनुबेन से कहते हैं कि हैं कि उन्होंने लंबे समय बाद उनकी डायरी पढ़ी और ‘बहुत ही अच्छा महसूस किया.’

गांधी जी मनुबेन को बताते हैं कि उनकी परीक्षा अब ख़त्म हो चुकी है और उसमें, वे अव्वल आई हैं.साथ ही, उन्होंने कहा कि उनके जीवन में उनकी (मनुबेन की) जैसी ‘ज़हीन लड़की’ (मेधावी लड़की) कभी नहीं आई.मनुबेन अपनी ये तारीफ़ सुनकर ख़ुशी से फूली नहीं समातीं और फिर कहती हैं कि ‘यही वज़ह थी कि वे (गांधी जी) ख़ुद को सिर्फ़ मेरी मां कहते थे.’

वो कैसी परीक्षा थी मनुबेन की, जिसमें वे अव्वल आई थीं? ब्रह्मचर्य के प्रयोग के लिए उम्मीदवार की उपयुक्तता की जांच/परीक्षा? अवश्य.साथ ही, ‘….मेरी जैसी ज़हीन लड़की उनके जीवन में कभी नहीं आई” का मत्लब ये हुआ कि गांधी जी की मंडली में मनुबेन जैसी कमसिन, ख़ूबसूरत, भोली और समर्पित (जो तमाम दुख-दर्द सहकर उफ़ भी ना करे) लड़की उस समय कोई और उपलब्ध नहीं थी.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
महात्मा गांधी व मनुबेन 



जहां तक ‘ये ही वो वज़ह थी कि वे ख़ुद को सिर्फ़ मेरी मां कहते थे’ की बात है, तो ये जगज़ाहिर है कि सुशीला के साथ ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के दौरान गांधी जी ख़ुद को उनका पिता कहते थे.ऐसे ही अलग-अलग लड़कियों-महिलाओं को अपने सेक्स के प्रयोगों में भी वे पारिवारिक शब्द-संबोधनों का प्रयोग करते थे.

गांधी जी फिर मनुबेन से अपनी ओर से आभा, सुशीला, प्यारेलाल और कनु गांधी (गांधी जी के पोते) के प्रति अपनी ओर से उपेक्षा के भाव दर्शाते हुए उनकी निंदा करते हैं.गांधी जी कहते हैं कि वे उन सबकी परवाह नहीं करते.

गांधी जी ने कहा कि ‘आभा (गांधी जी के पोते कनु गांधी की पत्नी) उन्हें बेवकूफ़ बना रही है, जबकि सच ये है कि वह ख़ुद को ठग रही है.’ बड़ी अज़ीब बात है.आभा जिस तरह कई जगहों पर दिखती हैं (गांधी जी के साथ तस्वीरों में नज़र आती हैं), उससे बड़ी आसानी से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कभी उन्हें भी गांधी जी ने इसी तरह के मधुर वचन बोले होंगें.लेकिन, यहां पीठ पीछे, उनकी ऐसी शिक़ायत करते गांधी जी को देखकर शक़ पैदा होता है कि आगे चलकर कभी वे मनु के बारे में कठोर और उपेक्षा भरी बातें ज़रूर कह सकते थे.मनु की डायरी में आगे यह दिख भी जाता है.  

गांधी जी सेक्स के प्रयोगों को महान यज्ञ बताते हुए उसमें मनुबेन के अभूतपूर्व योगदान के लिए उनका ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं.लेकिन साथ ही, वे मनुबेन के गिरते स्वास्थ्य की ओर उनका ध्यान खींचते हुए उनसे ये शिक़ायत भी करते हैं, और कहते हैं कि यह उनके शक़ी मिज़ाज़ की वज़ह से ऐसा हुआ है.’शारीरिक थकान से ज़्यादा उनकी शंकालु प्रवृत्ति उन्हें खाए जा रही है.17 साल की किशोरी मनु 70 साल की (गांधी जी की उम्र के क़रीब की) बुढ़िया दिख रही हैं.यह उनकी भूल है.’

गांधी जी कहते हैं कि वे ख़ुद को वह केवल तभी विजयी मानेंगें, जब वे (मनुबेन) फिर से जवान और हसीन दिखने लगेंगीं.

मनुबेन लिखती हैं-

” आज बापू ने कहा कि उन्होंने लंबे समय बाद मेरी डायरी को पढ़ा और बहुत अच्छा महसूस किया.वे बोले कि मेरी परीक्षा ख़त्म हुई और उनके जीवन में मेरी जैसी ज़हीन लड़की कभी नहीं आई और यही वज़ह थी कि वे ख़ुद को सिर्फ़ मेरी मां कहते थे.

बापू ने कहा: ” आभा या सुशीला, प्यारेलाल या कनु मैं किसी की परवाह क्यों करूं? वह लड़की ( आभा) मुझे बेवकूफ़ बना रही है, बल्कि सच यह है कि वह ख़ुद को ठग रही है.इस महान यज्ञ में मैं तुम्हारे अभूतपूर्व योगदान का ह्रदय से आदर करता हूं,”

बापू ने फ़िर, मुझसे कहा, ” तुम्हारी सिर्फ़ यही भूल है कि तुमने अपना शरीर नष्ट कर लिया है.शारीरिक थकान से ज़्यादा तुम्हारी शंकालु प्रवृत्ति तुम्हे खा रही है.मैं ख़ुद को तभी विजेता मानूंगा जब तुम अभी जैसी 70 वर्ष की दिखती हो, उसके बजाय 17 बरस की दिखो. ” 
    
                

7. बापू और मनुबेन के बीच चल रहे कथित ब्रह्मचर्य के प्रयोग को लेकर पहले तो सेविकाओं (गांधी जी की निजी सेवा में लगी लड़कियां व महलाएं) के बीच और गांधी जी मंडली के भीतर ही रस्साकशी चल रही थी, लेकिन ये बातें अब बाहर भी पहुंच चुकी हैं और लोग इस पर चर्चा करने लगे हैं.

31 जनवरी, 1947 को बिहार के नवग्राम में मनुबेन अपनी डायरी में लिखती हैं कि गांधी जी के कथित ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर विवाद अब गंभीर रूप अख्तियार करता जा रहा है.उन्हें शक़ है कि अम्तुस्सलाम बेन (गांधी जी की एक दूसरी ख़ास सेविका), सुशीला बेन और कनु भाई (गांधी जी के भतीजे) ने ही मामले का प्रचार किया होगा.वे यह बात बापू को बताती हैं तो वे भी उनका समर्थन करते हैं.

गांधी जी मनुबेन को बताते हैं कि यह सब सुशीला बेन के मन में उनके (मनुबेन के) प्रति जलन का परिणाम है.

गांधी जी मनुबेन को ढाढस बंधाते हैं और विश्वास दिलाते हैं कि यदि वे ब्रह्मचर्य के प्रयोगों में बेदाग़ निकल आईं तो उनका चरित्र आसमान चूमने लगेगा.उन्हें एक बड़ा सबक मिलेगा और सारे विवाद ख़त्म हो जाएंगें.ब्रह्मचर्य का प्रयोग एक यज्ञ है और मनुबेन उसका एक पवित्र हिस्सा हैं.

बहुत ही अजीबोग़रीब.यक़ीन नहीं होता.क्या यही, महात्मा गांधी का सत्य था? यही उनका जीवन दर्शन था? सचमुच, इस पर यक़ीन करना बहुत ही कठिन है.

जीवन दर्शन एक अभिव्यक्ति है, जो उन सिद्धांतों, मूल्यों और विचारों को संदर्भित करता है जो किसी व्यक्ति की जीवन शैली को नियंत्रित करते हैं और आत्म-साक्षात्कार की तलाश में उसके व्यवहार का मार्गदर्शन करते हैं.ज़रा सोचिए, यहां गांधी जी द्वारा सुशीला की भावना के लिए ‘जलन’ शब्द का प्रयोग क्या सत्य की चुगली करता दखाई नहीं देता? कथित यज्ञ जैसे पवित्र कार्य में इर्ष्या-द्वेष की मौजूदगी अगर गांधी जी महसूस कर रहे थे, तो इसे चलाते रहना क्या था?

एक बड़ा सवाल ये भी है कि गांधी जो मनु के साथ सत्य का प्रयोग अथवा ब्रह्मचर्य का प्रयोग कर रहे थे उसमें, मनु के बेदाग़ निकल आने वाले कथन में ‘अगर’ लगाने का मत्लब क्या ये नहीं है कि गांधी जी दाग़ लगने की संभावना से इनकार नहीं कर रहे थे? मगर, तब, मनु पर यह दाग़ किसके द्वारा लगता? यज्ञ का पवित्र हिस्सा किसके द्वारा अपवित्र हो सकता था, अगर उस यज्ञ में कोई तीसरा हिस्सेदार नहीं था? क्या गांधी जी उस संभावित अपवित्रता में भी ख़ुद को, ग़लती-गुनाह के लिए ज़िम्मेदार मान रहे थे?

गांधी जी के इस कथन ‘अगर सब हमारा साथ छोड़ जाएं, तब भी यह प्रयोग हम सफलतापूर्वक पूरा करेंगें’ और उपरोक्त कथन ‘बापू ने कहा कि अगर मैं (मनुबेन) बेदाग़ निकल आई’ में स्पष्ट विरोधाभास है.इसमें अपराध बोध भी है.

दरअसल, विभिन्न परिस्थितियों में मनुष्य अपराध कर बैठता है, लेकिन जब उसकी आत्मा और विवेक दोबारा प्रबल होकर अपराध की विवेचना करते हैं, तो वह अपराध बोध से भर जाता है और इस कारण वह कभी-कभी अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है.इस असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति और भी बड़े अपराध करने लगता है.

एक नाबालिग लड़की के साथ नंगे सोने वाली गांधी जी की रात्रि-चर्या क्या आज के आसाराम बापू और बाबा राम रहीम के अपराधों के समान नहीं है, जिसके लिए वे जेलों में सज़ा काट रहे हैं?

मनुबेन ने उपरोक्त बातों का ज़िक्र अपनी डायरी में इस प्रकार किया है-

” ब्रह्मचर्य के प्रयोगों पर विवाद गंभीर रूप अख्तियार करता जा रहा है.मुझे संदेह है कि इसके पीछे अम्तुस्सलाम बेन, सुशीला बेन और कनुभाई (गांधी जी के पोते) का हाथ था.जब मैंने बापू से यह बात कही तो वह मुझसे सहमत होते हुए कहने लगे कि पता नहीं, सुशीला को इतनी जलन क्यों हो रही है?

असल में कल जब सुशीला बेन मुझसे इस बारे में बात कर रही थीं ओ मुझे लगा कि वे पूरा ज़ोर लगा कर चिल्ला रही थीं.

बापू ने मुझसे कहा कि अगर मैं इस प्रयोग में बेदाग़ निकल आई तो मेरा चरित्र आसमान चूमने लगेगा, मुझे जीवन में एक बड़ा सबक मिलेगा और मेरे सिर पर मंडराते विवादों के सारे बादल छंट जाएंगें.

बापू का कहना था कि ब्रह्मचर्य का यज्ञ है और मैं उसका पवित्र हिस्सा हूं.उन्होंने कहा कि ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उन्हें शुद्ध रखे, उन्हें सत्य का साथ देने की शक्ति दे और निर्भय बनाए.

उन्होंने (बापू ने) मुझसे कहा कि अगर सब हमारा साथ छोड़ जाएं, तब भी ईश्वर के आशीर्वाद से हम यह प्रयोग सफलतापूर्वक करेंगें और फिर इस महापरीक्षा के बारे में पूरी दुनिया को बताएंगें. ”


8. मनुबेन ने अपनी डायरी में बिहार के दशधरिया में 2 फ़रवरी, 1947 की सुबह हुई एक घटना का ज़िक्र किया है.यहां प्रार्थना के दौरान गांधी जी ने मनुबेन को लेकर एक ऐलान किया था.

दरअसल, गांधी जी प्रार्थना के नाम पर उन दिनों सुबह के वक़्त, जो पानी में कंकड़ घुलाने अथवा दो दिशाओं को जानबूझकर एक करने का असफल प्रयास करते थे यानि ‘ईश्वर अल्ला तेरो नाम’ गाते-गवाते थे, उसी दौरान उन्होंने कुछ ग्रामीणों के सामने मनुबेन को लेकर एक ऐलान किया.उन्होंने वहां उपस्थित लोगों को बताया कि वे मनुबेन के साथ ब्रह्मचर्य का प्रयोग कर रहे हैं.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी व अन्य लोग   


ज़रा सोचिए, बिहार के उस सुदूर, पिछड़े, और निपट देहात में ब्रह्मचर्य की चर्चा का क्या मत्लब था?इसके लिए गांधी जी ने उन गवांर-ज़ाहिलों को ही क्यों चुना? उनका उद्देश्य क्या था?

उल्लेखनीय आज़ादी से पहले बिहार में निरक्षरों की संख्या क़रीब 90 फ़ीसदी थी और यही हाल कमोबेश पूरे देश का था.लोग ब्रह्मचर्य का अर्थ जानते तो थे, लेकिन गांधी जी के इस बिल्कुल नए तरह के ब्रह्मचर्य, जिसकी अवधारणा न तो कभी भारतीय मनीषा में थी और न पाश्चात्य संस्कृति में ही कहीं देखने को मिलती है, उसे कौन समझ सकता था? यदि कोई समझता भी, तो भी वह एक धोतीधारी, पूजापाठी और बाबास्वरुप व्यक्ति जिसे स्वदेशी जनसमर्थन के साथ-साथ अंग्रेजी सरकार का सहयोग भी प्राप्त था, उससे कैसे उलझ सकता था, कैसे शास्त्रार्थ करने करने की हिम्मत कर सकता था?

बाबा बाज़ार यूं ही नहीं सजते-सवंरते और फलते-फूलते हैं, उनके पीछे करोड़ों लोगों की आस्था का संबल होता है.यही कारण है कि सूटबूट में एक वैज्ञानिक भले ही चाहे कितने ही पते की बात करे, उसे तरज़ीह नहीं मिलती.लेकिन, बाबा और फ़कीर के भेष में एक अपराधी की भी घोषणाओं-फ़तवों का जादू-सा असर होता है और हालात बदल जाते/बदले जा सकते हैं, गांधी जी यह बखूबी जानते थे, और तभी उन्होंने महात्मा का रूप धरा था.पटेल, नेहरु और बाक़ी नेता तो उनके आगे पानी भरते थे.

दरअसल, गांधी जी ने जानबूझकर कथित ब्रह्मचर्य की चर्चा के लिए ऐसे स्थान को चुना, जहां से बात एक विषय बनकर सुर्खी नहीं बन सकती थी.उन्होंने ऐसे लोगों को चुना, जो समझते न हों और यदि समझ भी जाएं तो प्रतिवाद न कर सकें.इसलिए यहां कोई जोख़िम लगभग नहीं के बराबर था.

दरअसल, गांधी जी का एकमात्र उद्देश्य मनुबेन के दिमाग़ से लोकलाज के भय को दूर करना था, जो बदनामियों के कारण पैदा हो गया था.यदि वे ऐसा नहीं करते तो मनुबेन के मन में ये भय एक गांठ बनकर उन्हें तकलीफ़ देता रहता और इसका नतीज़ा ये होता कि वे गांधी जी के साथ सेक्स के मामले में खुले दिल से और पूरा सहयोग नहीं नहीं कर पातीं या फिर ये भी संभव था कि वे गांधी जी से दूर हो जातीं.मगर, गांधी जी क़ामयाब रहे.मनुबेन पर बापू ने फिर से विजय प्राप्त कर ली थी.

सच पूछा जाए तो, गांधी जी की यह दोहरी सफलता थी.उन्होंने एक तरफ़ जहां मनुबेन के मन को फिर से क़ाबू कर लिया था, वहीँ उनके खिलाफ़ प्रचार में लगीं उनकी बाग़ी सेविकाओं को ये संदेश दे दिया था कि वे चाहे जो भी कर लें उनके और मनुबेन के बीच रिश्तों पर कोई नहीं आने वाली है.
     
मनुबेन यहां कहती हैं कि बापू के समझाने पर अब उन्हें समझ आ गया है कि उन्होंने, सबके सामने उनके साथ ब्रह्मचर्य के प्रयोगों का ख़ुलासा क्यों किया था.अब उन्हें किसी की परवाह नहीं है.दुनिया को जो कहना है, वही कहती रहे.

मनुबेन ने उपरोक्त प्रसंग को अपने शब्दों में इस प्रकार लिखा है-

” बापू ने सुबह की प्रार्थना के दौरान अपने अनुयायियों को बताया कि वे मेरे साथ ब्रह्मचर्य का प्रयोग कर रहे हैं.फिर उन्होंने मुझे समझाया कि सबके सामने यह बात क्यों कही.मुझे बहुत राहत महसूस हुई क्योंकि अब लोगों की ज़ुबान पर ताले लग जाएंगें.

मैंने अपने आप से कहा कि अब मुझे किसी की भी परवाह नहीं है.दुनिया को जो कहना है, वह कहती रहे. ”


9. 2 फ़रवरी, 1947 को ही गांधी जी बिहार के दशधरिया से अपनी मंडली के साथ अमीषापाड़ा पहुंच जाते हैं.वहां एकांत में, वे मनुबेन की डायरी पढ़ते हैं.शायद रात का वक़्त रहा होगा.

मनुबेन की डायरी पढ़ने के बाद, लगता है कि गांधी जी घबराए हुए हैं और दुविधाग्रस्त हैं, मानो वे स्पष्ट रूप से अपने शब्दों को व्यक्त नहीं कर पा रहे हों.

मनुबेन से बातें करते समय वे एक तरफ़ तो डायरी का ख़ास ख़याल रखने की बात कहते हैं, क्योंकि उसके अंजान हाथों में पड़ जाने और दुरूपयोग होने का भय (आशंका) है, लेकिन दूसरी तरफ़, वे यह भी कहते हैं कि ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के बारे में कुछ छुपाना भी नहीं है.ऐसा क्यों?
 
दरअसल, गांधी जी के सामने यहां एक तरफ़ कुआं है, तो दूसरी तरफ़ खाई.यदि वे मनु को ये बता देते हैं कि उनकी डायरी में अश्लील साहित्य है, जिसे छुपाकर रखने की ज़रूरत है, तो उनका (मनु का) दिमाग़ फिर से लोकलाज से भयाक्रांत हो जाएगा और उनसे बिछड़ जाने का भी ख़तरा है.इसीलिए मज़बूरन वे सच न बताकर डायरी को ‘समाज के लिए उपयोगी’ और ‘सच बताने में सहायक’ भी बताते हुए शायद प्यारेलाल के ज़रिए उसे ग़ायब कराने की एक तरक़ीब भी आज़माते हैं.वे मनुबेन से उनकी डायरी प्यारेलाल को दिखाने की बात कहते हैं, ताकि प्रविष्टियों में ‘भाषा सुधार’ और ‘क्रमवार लगाने’ के नाम पर उसे नष्ट किया सके.
  
ग़ौरतलब है कि गांधी जी के सबसे छोटे बेटे और हिंदुस्तान टाइम्स के तत्कालीन संपादक देवदास गांधी भी जानते थे कि उस डायरी में क्या है, और इसीलिए वे भी नहीं चाहते थे कि वह सार्वजनिक हो.इस बात का ज़िक्र मनुबेन ने अपनी क़िताब लास्ट ग्लिम्प्सिज ऑफ़ बापू में पेज संख्या 334 पर इस प्रकार किया है-

” काका (देवदास गांधी) ने मुझे चेताया कि अपनी डायरी में लिखी गई बातें किसी को न बताऊँ और महत्वपूर्ण पत्रों में लिखी गई बातों की जानकारी भी ना दूं.उन्होंने कहा था कि तुम अभी बहुत छोटी हो पर तुम्हारे पास बहुत क़ीमती साहित्य है और तुम अभी परिपक्व भी नहीं हो. ”



बहरहाल, मनुबेन ने गांधी जी को, अपनी डायरी प्यारेलाल को दिखाने से साफ़ मना कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि प्यारेलाल उसे देखेंगें तो उसमें लिखी सारी बातें उनके ज़रिए उनकी बहन सुशीला नय्यर तक पहुंच जाएंगीं और फिर दुश्मनी में और इज़ाफ़ा होगा.मनुबेन लिखती हैं-

” आज बापू ने मेरी डायरी देखी और मुझसे कहा कि मैं इसका ध्यान रखूं, ताकि यह अंजान लोगों के हाथों में न पड़ जाए क्योंकि वे इसमें लिखी बातों का ग़लत उपयोग कर सकते हैं, हालांकि ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के बारे में हमें कुछ छिपाना नहीं है.उन्होंने कहा कि अगर अचानक उनकी मृत्यु हो जाए तो भी यह डायरी समाज को सच बताने में उपयोगी साबित होगी.उन्होंने कहा कि यह डायरी मेरे लिए भी बहुत उपयोगी साबित होगी.

और फिर बापू ने मुझसे कहा कि अगर मुझे कोई आपत्ति न हो तो डायरी की कुछ ताज़ा प्रविष्टियां प्यारेलालजी को दिखा दूं, ताकि वे इसकी भाषा सुधार दें और तथ्यों को क्रमवार ढंग से लगा दें.हालांकि मैंने साफ़ मना कर दिया क्योंकि मुझे लगा कि अगर प्यारेलाल ने इस डायरी को देख लिया, तो इसकी सारी बातें उनकी बहन सुशीला बेन तक ज़रूर पहुंच जाएंगीं और उससे आपसी वैमनस्य में और इज़ाफ़ा ही होगा. ”


10. 7 फ़रवरी, 1947 की घटना मनुबेन को फिर परेशान कर देती है.दरअसल, इस दिन अमृतलाल ठक्कर (गांधी जी और गोपालकृष्ण गोखले के क़रीबी रहे प्रसिद्द समाजसेवी) बहुत सारी चिट्ठियां लाए थे, जो ख़ासतौर से उनके और गांधी जी के बीच चल रहे सेक्स के प्रयोग को लेकर गांधी जी के क़रीबी नेताओं और उनके अनुयायियों द्वारा लिखी गई थीं.सभी ने इसकी कटु आलोचना करते हुए उसे तत्काल बंद करने की बात कही थी.मनुबेन को इससे गहरा धक्का लगा.वह लिखती हैं-

” ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर माहौल लगातार गर्माता ही जा रहा है.अमृतलाल ठक्कर आज आए और अपने साथ बहुत सारी डाक लाए, जो इस मुद्दे पर बहुत गर्म थी.और इन पत्रों को पढ़कर मैं हिल गई. ”



11. 24 फ़रवरी, 1947 को बिहार के हेमचर में गांधी जी मनुबेन को दुखी देखकर बेचैन हो उठते हैं.दरअसल, गांधी जी मनुबेन का चेहरा देखकर उनके दिल का हाल समझ जाते थे.गांधी जी मनुबेन से कहते हैं कि वे उनके चेहरे पर मुस्कान दौड़ते देखना चाहते हैं.साथ ही, मनुबेन की हौसला-अफज़ाई करते हुए अपने बुलंद हौसले के बारे में बताते हैं कि उन पर किशोर मशरूवाला, सरदार पटेल और देवदास गांधी (गांधी जी के सबसे छोटे बेटे) की कटु आलोचनाओं का भी कोई असर नहीं हुआ, जबकि उनकी जगह कोई और होता तो पागलपन का शिकार हो जाता.

ये कितनी अज़ीब बात है कि जिस लोकलाज के मारे मनुबेन व्यथित हैं, उनके सुंदर मुखड़े की हंसी छिन गई है, उसका गांधी जी पर कोई असर क्यों नहीं है?

अपने स्वभाव के अनुसार, गांधी जी भी कहां हार मानने वाले हैं.आलोचकों को वे अपने विरोधी/शत्रु क़रार देकर उन्हें आड़े हाथों ले रहे हैं.अम्तुस्सलाम के पत्र के ज़वाब में उन्हें डांटते-पुचकारते हुए वे कहते हैं कि लगता है कि वे इस बात से नाराज़ हैं कि मनु के साथ हो रहे प्रयोग उनके साथ शुरू क्यों नहीं हुए.इसके लिए विरोध करना दुखद और शर्म की बात है.वे जो कहना चाहती हैं, वह खुलकर कहें.सबको समान अधिकार प्राप्त है (उन्हें भी बराबर अवसर मिल सकता है/मिल चुका है) क्योंकि यह प्रयोग शुद्धि का यज्ञ है.

मनुबेन उपरोक्त घटना का वर्णन अपने शब्दों में इस प्रकार किया है-

” आज मैं बहुत दुखी थी.लेकिन बापू ने कहा कि वे मेरे चेहरे पर मुस्कान दौड़ते देखना चाहते हैं.उन्होंने कहा कि उनकी जगह अगर कोई और होता, तो इस मुद्दे पर किशोर मशरूवाला, सरदार पटेल और देवदास गांधी के तीखे पत्र पढ़कर लगभग पागल जैसा हो जाता.लेकिन उन्हें इस सबसे बिल्कुल भी फ़र्क नहीं पड़ा.

एक और बात.आज बापू ने अम्तुस्सलाम बेन को एक बहुत कड़ा पत्र लिखकर कहा कि उनका जो पत्र मिला है उससे ज़ाहिर होता है कि वे इस बात से नाराज़ हैं कि ब्रह्मचर्य के उनके प्रयोग उनके साथ शुरू नहीं हुए.उन्होंने लिखा कि इस बारे में उनके लिए खेद करना वाक़ई शर्म की बात है.उन्होंने अम्तुस्सलाम बेन से कहा कि अगर वे समझ सकें तो वे समझना चाहते हैं कि आख़िर वे कहना क्या चाहती हैं? बापू ने उन्हें लिखा कि यह शुद्धि का यज्ञ है. ”


12. 25 फ़रवरी, 1947 को अमृतलाल ठक्कर बिहार के हेमचर में गांधी जी को ये समझाने गए कि वे कथित ब्रह्मचर्य के प्रयोग बंद कर दें.इसके ज़वाब में गांधी जी उनसे कहते हैं कि ब्रह्मचर्य धर्म के पांच नियमों में से एक है और वे उसकी परीक्षा में सफल होने की कोशिश कर रहे हैं.वे इसे ‘आत्मशुद्धि का यज्ञ’ बताते हुए कहते हैं कि वे इसे सिर्फ़ इसलिए नहीं बंद कर सकते क्योंकि इससे लोगों की भावनाएं आहत होती हैं अथवा वे इसके खिलाफ़ हैं.

क्या वास्तव में यह ‘आत्मशुद्धि का यज्ञ’ था, जो गांधी जी कर रहे थे? मगर इसकी परिभाषा तो कुछ और ही कहती है.उसमें (आत्मशुद्धि की परिभाषा में) लड़कियों-महिलाओं के साथ नंगे नहाने, उनसे मसाज कराने और नंगे साथ सोने की क्रिया का कहीं ज़िक्र नहीं मिलता.

आत्मशुद्धि का मत्लब स्वयं का शुद्धिकरण करना होता है.इसके तहत कोई व्यक्ति ख़ुद को सज़ा देता है अथवा पछतावा करता है.मगर गांधी जी का ‘शुद्धिकरण का यज्ञ’ तो मानो कीचड़ धोने के लिए कीचड़ भरे पानी से नहाने जैसा है.

जैन पंथ में आत्मशुद्धि के लिए क्षमावाणी पर्व मनाया जाता है, जिसके अनुसार, आत्मशुद्धि के लिए सांसारिक भोगों से दूर होना ज़रूरी है.गांधी जी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों में सांसारिकता का समावेश है.

आचार्य विनोबा भावे ने तो गांधी जी के ब्रह्मचर्य की परिभाषा की धज्जियां उड़ा दी थी.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
आचार्य विनोबा भावे 

 


दरअसल, गांधी जी ने (10 फ़रवरी, 1947) विनोबा भावे को पत्र लिखकर अपने ब्रह्मचर्य के प्रयोगों के बारे में बताया तो उन्होंने(25 फ़रवरी, 1947) उसका ज़वाब इस प्रकार दिया-

” मैं ब्रह्मचर्य के आपके सिद्धांतों से सहमत नहीं हूं.स्त्री-पुरुष का कोई भी भेद आदर्श ब्रह्मचर्य के विरुद्ध है. ”

      

अमृतलाल ठक्कर ने फिर गांधी जी से कहा कि उनका ब्रह्मचर्य बिल्कुल अलग प्रकार का ब्रह्मचर्य है और इसकी परिभाषा ब्रह्मचर्य की परिभाषा से मेल नहीं खाती.उन्होंने पूछा कि यदि मुस्लिम लीग को इसकी भनक भी लग गई और उसने इस बारे में लांछन लगाए तो क्या होगा? गांधी जी ने इसके ज़वाब में कहा कि किसी के डर से वे अपना धर्म हरगिज़ नहीं छोड़ेंगें.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
अमृतलाल ठक्कर व महात्मा गांधी 



गांधी जी ने स्पष्ट कहा कि अगर सरदार पटेल और किशोर मशरूवाला भी उनका साथ छोड़ देंगें तो भी वे अपने ब्रह्मचर्य का प्रयोग नहीं बंद करेंगें.

उल्लेखनीय है कि किशोर मशरूवाला गांधी जी के ब्रह्मचर्य के तरीक़ों को लेकर उनसे ख़ासे नाराज़ थे और उन्होंने पत्र लिखकर मनु को ‘माया’ बताते हुए गांधी जी को उनसे मुक्त होने को कहा था.ये बात गांधी को चुभ गई थी और वे मशरूवाला से चिढ़े हुए थे.

सरदार वल्लभ भाई पटेल ने तो गांधी जी को लगभग धिक्कारते हुए अपने पत्र में कहा था-

” मुझे समझ नहीं आता कि आप धर्म के बजाय लोगों को अधर्म के रास्ते पर क्यों धकेल रहे हैं? काश, हम अपना दिल खोलकर बता सकते कि हमारे घाव कितने गहरे हैं. ”

 
निर्मल कुमार बोस (प्रसिद्द मानवशास्त्री) समेत कई लोगों ने गांधी जी का साथ छोड़ दिया था.देशभर में गांधी जी के ब्रह्मचर्य की तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिल रही थी.मगर गांधी जी मनुबेन से दूर रहने को बिल्कुल भी तैयार नहीं थे.जो उनका विरोध करता, वह उनका परम शत्रु बन जाता था, और इसीलिए वे कहते हैं कि ‘सरदार पटेल और किशोर मशरूवाला भी उनका साथ छोड़ देंगें तो भी वे अपने प्रयोग जारी रखेंगें.
      
मनुबेन कहती हैं कि गांधी जी ने जी डी बिरला (मशहूर उद्योगपति व गांधी जी के अनुयायी) से कहा कहा था कि वे ब्रह्मचर्य के प्रयोग के दौरान अशुद्ध रहे तो वे ढ़ोंगी कहलायेंगें और तकलीफ़देह मौत मरेंगें.इससे पता चलता है कि घनश्यामदास बिरला भी गांधी जी की तरह ही, अपने व्यापार-व्यवसाय के अलावा ब्रह्मचर्य के प्रयोग नामक एक अलग उद्यम में रत थे. 
     
मनुबेन ने उपरोक्त प्रसंग का वर्णन इस प्रकार किया है-
 
” बापू ने बापा (अमृतलाल ठक्कर) से कहा कि ब्रह्मचर्य धर्म के पांच नियमों में से एक है और वे उसकी परीक्षा में पास करने की भरसक कोशिश कर रहे हैं.उन्होंने कहा कि यह उनकी आत्मशुद्धि का यज्ञ है और वे इसे सिर्फ़ इसलिए नहीं रोक सकते क्योंकि जनभावनाएं पूरी तरह इसके खिलाफ़ हैं.इस पर बापा ने कहा कि ब्रह्मचर्य की उनकी परिभाषा आम आदमी की परिभाषा से एकदम अलग है और पूछा कि अगर मुस्लिम लीग को इसकी भनक भी लग गई और उसने इस बारे में लांछन लगाए, तो क्या होगा?

बापू ने ज़वाब दिया कि किसी के डर से वे अपने धर्म को कतई नहीं छोड़ेंगें और उन्होंने जी डी बिरला को भी यह बता दिया था कि अगर प्रयोग के दौरान उनका मन अशुद्ध रहा, तो वे पाखंडी कहलाएंगें और वे तकलीफ़देह मौत को प्राप्त होंगें.

बापू ने बापा से कहा कि अगर वल्लभभाई (पटेल) या किशोर भाई (मशरूवाला) भी उनका साथ छोड़ देंगें, तो भी वे अपने प्रयोग जारी रखेंगें. ”

13. 26 फ़रवरी, 1947 को मनुबेन की डायरी में दर्ज़ घटना से पता चलता है कि सुशीला की तरह ही अब अम्तुस्सलाम मनुबेन के पीछे पड़ी हैं.उन्होंने पहले उनके (मनुबेन के) साथ ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर गांधी जी का विरोध किया था.लेकिन, जब गांधी जी ने उन्हें फटकार लगाई तो उन्होंने मनुबेन को निशाना बनाना शुरू कर दिया.असल में, वे मनुबेन को किनारा कर गांधी जी के क़रीब जाना चाहती हैं, वैसे ही जैसे वे पहले थीं.मगर मनुबेन भी अब पूरी तरह सतर्क हैं.वे ज़वाब देने में ज़रा भी संकोच नहीं करतीं क्योंकि उन्हें बापू का पूरा वरदहस्त प्राप्त है.

मनुबेन बताती हैं कि अम्तुस्सलाम ने उन्हें प्यारेलाल से शादी करने को कहा.यह सुनकर उन्हें बहुत ग़ुस्सा आया और उन्होंने अम्तुस्सलाम को कह दिया कि ‘अगर उन्हें उनकी (प्यारेलाल की) इतनी चिंता है, तो वे ख़ुद ही उनसे शादी क्यों नहीं कर लेतीं?
मनुबेन ने अम्तुस्सलाम को कहा कि वे उनसे जलती हैं.

दरअसल, गांधी जी ब्रह्मचर्य के प्रयोग पहले अम्तुस्सलाम के साथ किया करते थे.मगर फिर, उनकी जगह सुशीला ने क़ब्ज़ा ली थी.अब जब सुशीला को मात देकर मनुबेन गांधी जी के दिलोदिमाग़ पर एकक्षत्र राज कर रही हैं, तो यह सुशीला के साथ-साथ अम्तुस्सलाम के लिए भी असहनीय हो गया है.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
अम्तुस्सलाम को काढ़ा पिलाते महात्मा गांधी 



वास्तव में देखा जाए तो यह सब कुछ बॉस के क़रीब होने, प्रमोशन पाने और कास्टिंग काउच की तरह लगता है, जिसमें लड़कियों-महिलाओं के बीच प्रतिद्वंदिता/प्रतिस्पर्धा चल रही है.मनुबेन का यह कथन – ‘ …और अब अख़बारों में मेरे फ़ोटो (गांधी जी के साथ) छपते देखकर उन्हें मुझसे जलन होती है और मेरी लोकप्रियता उन्हें अच्छी नहीं लगती’, महत्वाकांक्षाओं के आपस में टकराने का स्पष्ट प्रमाण है.

मनुबेन लिखती हैं-

” आज जब अम्तुस्सलाम बेन ने मुझसे प्यारेलाल से शादी करने को कहा तो मुझे बहुत ग़ुस्सा आया और मैंने कह दिया कि अगर उन्हें उनकी इतनी चिंता है तो वह स्वयं उनसे शादी क्यों नहीं कर लेतीं?

मैंने उनसे (अम्तुस्सलाम से) कह दिया कि ब्रह्मचर्य के ये प्रयोग उनके साथ शुरू हुए थे और अब अख़बारों में मेरे फ़ोटो छपते देखकर उन्हें मुझसे जलन होती है और मेरी लोकप्रियता उन्हें अच्छी नहीं लगती. ”


14. 2 मार्च, 1947 को बिहार के हेमचर में प्रवास के दौरान गांधी जी को अमृतलाल ठक्कर का एक गुप्त पत्र प्राप्त होता है.गांधी जी ने इसे मनुबेन को पढ़ने को दिया.मनुबेन बताती हैं कि ”यह पत्र दिल को इतना छू लेने वाला था कि मैंने बापू से आग्रह किया कि बापा (अमृतलाल ठक्कर) को संतुष्ट करने के लिए आज से मुझे अलग सोने की अनुमति दें.”

फिर मनुबेन अपने इस फ़ैसले के बारे में अमृतलाल ठक्कर को बताती हैं.इस पर, अमृतलाल ठक्कर कहते हैं कि उनसे और गांधी जी बात करने के बाद ब्रह्मचर्य के प्रयोग के उद्देश्य को लेकर वे पूरी तरह संतुष्ट थे यानि उसमें उन्हें कुछ भी ग़लत नहीं लगा/महसूस नहीं हुआ था.लेकिन अब उसे बंद करने का फ़ैसला, जो उन्होंने लिया, वह भी सही था.

मनुबेन बताती हैं कि इसके बाद ‘बापा ने किशोर मशरूवाला और देवदास गांधी (मनुबेन के चाचा और महात्मा गांधी के सबसे छोटे बेटे) को पत्र लिखकर सूचित किया कि वह अध्याय (महात्मा गांधी और मनुबेन के बीच सेक्स के प्रयोगों का सिलसिला) अब ख़त्म हो गया है.
  
अब सवाल उठता है कि अमृतलाल ठक्कर के उस पत्र में आख़िर ऐसा क्या लिखा था, जिसे पढ़ने बाद मनुबेन का ह्रदय एकदम परिवर्तित हो जाता है और गांधी जी से एक पल भी अलग नहीं रह सकने वाली मनु अथवा ‘केवल और केवल बापू की मनु’ (जो गांधी जी के जीवन में और मृत्यु के बाद भी किसी और की नहीं हुई) बापू से अलग सोने का निर्णय ले लेती है?

उल्लेखनीय है कि गांधी जी का ‘ब्रह्मचर्य प्रयोग’ जो वास्तव में ‘महात्मा का स्त्रियों के साथ रात्रिकालीन सेक्स संबंधी प्रयोग’ था, इसकी अवधारणा कोई नई नहीं थी.इससे पहले भी वे ऐसे प्रयोग अलग-अलग नामों, जैसे ‘सत्य के प्रयोग’, ‘आत्मशुद्धि का यज्ञ’, ‘चरित्र उत्थान’ आदि से करते रहे थे.ये बात बस उनके अनुयायियों और कांग्रेसियों के बीच दबी रहती थी.जहां तक ‘प्रयोग’ में शामिल लड़कियों-महिलाओं का प्रश्न है, तो उनकी फेहरिश्त बड़ी लंबी है.मनुबेन के वक़्त बवाल मचा.इसका मुख्य कारण था उनका स्वयं गांधी जी की पोती (भतीजे जयसुखलाल की बेटी) होना था.

दूसरा, देश आज़ादी के मुहाने पर खड़ा था और नेतागिरी की फ़सल काटने का वक़्त था.ऐसे में तत्कालीन भारतीय राजनीति के मसीहा के रूप में स्थापित गांधी जी के जो क़रीब/सबसे क़रीब था, उसकी, बंटने वाली रेवड़ियों में हिस्सेदारी तय थी.मगर उस वक़्त मनु ही गांधी जी की सबसे क़रीबी थीं, यह गांधी जी की दूसरी सेविकाओं को बर्दाश्त नहीं था और इसी कारण उनमें ईर्ष्या-द्वेष, कलह, दुराव, धमकियां, गांधी जी से किसी लड़की को दूर कर स्वयं स्थान लेने के प्रयत्न की भावना चरम पर होने के साथ-साथ गांधी जी के प्रयोगों की चर्चा-आलोचना भी सरेआम हो रही थी.इसका मनुबेन के किशोर और कोमल मन पर बहुत नकारात्मक असर हो रहा था.
 
तीसरा, उन दिनों गांधी जी मनुमय थे.ऐसे में, उनके पास बहुत ही कम समय होता था बाक़ी मसलों के लिए.बहुत ख़ास लोग ही उनसे मिल पाते थे.गांधी जी के क़रीबी उनसे दूरियां बनाने लगे थे.यानि एक तो सेक्स के प्रयोगों की चर्चा-आलोचनाएं और ऊपर से क़रीबियों के दूर होने की ख़बरें मसाला बनकर पूरी भारतीय फिज़ा में तैर रही थीं, उन दिनों.स्वतंत्रता के लिए आंदोलनरत त्यागियों-तपस्वियों को यह सब पढ़-सुनकर बड़ी पीड़ा होती थी.स्वयं गांधी जी के बेटे देवदास जो पेशे से पत्रकार थे, वे भी अपने पिता का विरोध कर रहे थे.ज़ाहिर है इस बाबत मनुबेन को अपने पिता, परिवारजनों और सगे-संबंधियों की ओर से भी खरी-खोटी सुनने को मिल रही होंगीं.संभवतः इन्हीं सब बातों-उलाहनाओं के मिश्रण का समावेश ठक्कर बापा (अमृतलाल ठक्कर) के पत्र में रहा होगा, जिन्हें पढ़ने के बाद मनुबेन का मन बदल गया होगा और इसी कारण उन्हें गांधी से अलग सोने का कड़ा फ़ैसला लेना पड़ा.


                 

डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
 लोकलाज/उलाहना से त्रस्त स्त्री (प्रतीकात्मक)  

  


फिर, मनु बापू से आग्रह करती हैं कि वे उन्हें अलग सोने दें.मगर क्या इसके लिए गांधी जी भी राज़ी थे? मनुबेन का यह एकतरफ़ा निर्णय था? तो फिर गांधी जी कैसे मान गए?

दरअसल, जिस गांधी जी ने ब्रह्मचर्य के प्रयोग नामक अपने विवादास्पद कृत्य को अपने अनेकानेक निकट सहयोगियों, परिवारजनों के आग्रह और भारी विरोध के बावज़ूद बंद नहीं किया था, उन्हें अंततः विवशता में इसे बंद करना पड़ा.वह विवशता थीं मनुबेन.क्योंकि स्वयं मनुबेन के ‘आग्रह’ (मना करने) के बाद गांधी जी के द्वारा उसे ठुकराने से मामला बिल्कुल अलग रूप ले लेता.ठक्कर बापा इस आग्रह के गवाह थे.इसलिए कोई और चारा नहीं था और गांधी जी को अलग सोना मंज़ूर करना पड़ा.

बहरहाल, गांधी जी ने मनुबेन के आग्रह को स्वीकार कर लिया था.लेकिन, जितनी आसानी से यह हो गया, उससे यह साफ़ पता चलता है कि मनुबेन के साथ सोने को ‘ब्रहचर्य प्रयोग’, ‘आत्मशुद्धि का यज्ञ’, ‘चरित्र का उत्थान’ वगैरह कहना केवल शाब्दिक खेल ही था, भले ही ख़ुद गांधी जी उसे कुछ भी क्यों न कहते या समझते रहे हों.

मनुबेन का ये कहना कि ठक्कर बापा ने उन्हें बताया कि ब्रह्मचर्य के प्रयोगों को लेकर वे पूर्णतः संतुष्ट हो गए थे (जब वे पिछली बार आए थे और बापू से तर्क किया था तथा उनसे भी इस बारे में बात की थी) और फिर ये भी (ठक्कर बापा के मुताबिक़) कहना कि ‘लेकिन अलग सोने और प्रयोग समाप्त करने का मेरा फ़ैसला पूरी तरह सही था’ वास्तव में, परस्पर विरोधी हैं.प्रयोग अगर सही था तो उसे बंद करने का फ़ैसला भी कैसे सही हो सकता है? ऊपर से ठक्कर बापा की ही वो दिल को छू लेने वाली चिट्ठी! दरअसल, ये बातें मनुबेन की मासूमियत को दर्शाती हैं, जो उन्होंने अपनी सरलता में लिख छोड़ी हैं.

मनुबेन ने उपरोक्त बातों को अपनी डायरी में इस प्रकार लिखा है-

” आज बापू को बापा का एक गुप्त पत्र मिला.उन्होंने इसे मुझे पढ़ने को दिया.यह पत्र दिल को इतना छू लेने वाला था कि मैंने बापू से आग्रह किया कि बापा को संतुष्ट करने के लिए आज से मुझे अलग सोने की अनुमति दें.

जब मैंने बापा को अपने फ़ैसले के बारे में बताया तो उन्होंने कहा कि बापू और मुझसे बात करने के बाद उन्हें प्रयोग के उद्देश्य के बारे में एकदम संतोष हो गया था लेकिन अलग सोने और प्रयोग समाप्त करने का मेरा फ़ैसला पूरी तरह सही था.उसके बाद बापा ने किशोर मशरूवाला और देवदास गांधी को पत्र लिखकर सूचित किया कि वह अध्याय अब ख़त्म हो गया है. ”
 

15. 18 मार्च, 1947 को बिहार के मसौढ़ी में गांधी जी और मनु आपस में बातें कर रहे हैं.यहां मनुबेन गांधी जी पूछती हैं कि क्या सुशीला भी उनके साथ नंगी सो चुकी हैं, क्योंकि ख़ुद सुशीला से उन्होंने पूछा (मनुबेन के मुताबिक़) था तो उन्होंने इससे इनकार करते हुए कहा था कि वह कभी गांधी जी के साथ ब्रह्मचर्य के प्रयोगों का हिस्सा नहीं बनी और ना उनके साथ नंगी सोई.इस पर गांधी जी कहते हैं कि सुशीला झूठ बोल रही हैं.

गांधी जी ने ख़ुलासा करते हुए कहा कि सुशीला बारडोली के अलावा आगा खां पैलेस (पुणे) में उनके साथ नंगी सो चुकी थी.वह साथ नहाती भी थीं.फ़िर गांधी जी मनुबेन से ही पूछ बैठते हैं कि वह, ये सब कुछ जानते हुए भी सवाल क्यों कर रही हैं?

गांधी जी कहते हैं कि वे सुशीला से ब्रह्मचर्य के प्रयोगों में उनकी सहभागिता और सच-झूठ को लेकर कोई ज़वाबतलब नहीं करना चाहते थे क्योंकि वह दुखी थीं और उनका दिमाग़ अस्थिर था.
     
क्या गांधी जी सुशीला नय्यर से चिढ़े हुए थे? बेशक़.वही तो सारे बवाल की जड़ थीं, गांधी जी के सेक्स के प्रयोगों के खिलाफ़ देशव्यापी विरोध की सूत्रधार थीं.

ये वही सुशीला नय्यर थीं, जो गांधी जी की बतौर निजी डॉक्टर और प्रिय सेविका वे नंगी, नंगे गांधी जी का मसाज करती थीं, उनके साथ नहातीं और साथ नंगी सोती थीं.लेकिन जब ये ही सारी सेवाएं गांधी जी को, मनुबेन देने लगीं तो उन्होंने विरोध करते हुए मोर्चाबंदी शुरू कर दी थी.फिर ये बात सरेआम हुई और देशव्यापी विरोध का रूप ले लिया था.लेकिन, ये सारा कुछ मनुबेन भी जानती थीं, इसीलिए गांधी जी उनसे फिर पूछ बैठते हैं कि भिज्ञ होकर भी वे अनभिज्ञ क्यों बन रही हैं.दरअसल, मनुबेन बातों के मज़े ले रही थीं.

जहां तक गांधी जी और सुशीला नय्यर के संबंधों का सवाल है, तो ये वही गांधी जी थे, जिन्होंने नौ साल पहले सुशीला को अपने पास वापस बुलाने के लिए कितनी मनुहारी (मान-मनौव्वल वाली), बड़ी-बड़ी बातें कही थी और इसके लिए दर्जनों चिट्ठियां (लव लैटर) भी लिखी थी.जिसे वे अपनी बेटी कहते थे, उसे ही, उसकी ग़ैरमौज़ूदगी में नीचा दिखाना, गांधी जी की किस चारित्रिक विशेषता को दर्शाता है? गांधी जी के कथित ‘यज्ञ’ के बंद या लंबित होने के बाद, उसमें मुख्य याज्ञिक रहे गांधी जी के मन में, यज्ञ में शामिल बाक़ी लोगों के प्रति दुर्भावना क्यों दिखाई देती है?
            
गांधी जी मनुबेन से यहां जिस लहजे में सुशीला के बारे में बता रहे हैं, उससे लगता नहीं है कि घटनाओं का संबंध किसी विशिष्ट कार्य से रहा हो, जबकि स्वयं गांधी जी कई जगहों पर उसे महायज्ञ, आत्मशुद्धि का यज्ञ और चरित्र उत्थान यज्ञ का नाम देते पाए जाते हैं.ऐसे में सवाल तो उठता ही है कि सालों तक एकांत में जवान-हसीन सुशीला से मसाज कराते हुए, नंगे नहाते हुए और साथ नंगे सोते हुए गांधी जी क्या बातें करते थे, बातें करते थे या फिर मौन व्रत धारण किए होते थे? यदि बातें करते थे, तो विभिन्न क्रियाओं से पहले या उसके बाद गांधी जी सुशीला के साथ क्या यही लहजा इस्तेमाल करते रहे होंगें?

बहरहाल, मनुबेन ने अपनी डायरी में उपरोक्त प्रसंग का वर्णन इस प्रकार किया है-

” आज बापू ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात का ख़ुलासा किया.मैंने उनसे पूछा कि क्या सुशीला बेन भी उनके साथ निर्वस्त्र सो चुकी हैं क्योंकि मैंने जब उनसे इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे प्रयोगों का कभी भी हिस्सा नहीं बनीं और उनके साथ कभी निर्वस्त्र नहीं सोईं.बापू ने कहा कि सुशीला सच नहीं कह रही क्योंकि वह बारडोली के अलावा आगा खां पैलेस में उनके साथ सो चुकी थी.

बापू ने बताया कि वह (सुशीला) उनकी मौजूदगी में स्नान भी कर चुकी है.फिर बापू ने कहा कि जब सारी बातें मुझे पता ही हैं, तो मैं यह सब क्यों पूछ रही हूं? बापू ने कहा कि सुशीला बहुत दुखी थी और उसका दिमाग़ अस्थिर था और इसलिए वे नहीं चाहते थे कि वह इस सब पर कोई सफ़ाई दे. ”


16. 14 नवंबर, 1947 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में गांधी जी ने मनुबेन को अशांत देखा तो उनके मन की बात जाननी चाही.मनुबेन ने उन्हें बताया कि आभा उनसे बेरुख़ी से पेश आ रही हैं.

गांधी जी ने मनुबेन से कहा कि वे कईयों के पितामह और पिता हैं किंतु उनकी, वे केवल माता है.वे कहते हैं कि अच्छा हुआ कि उन्होंने अपने मन की बात बता दी.लेकिन, यदि वे यह नहीं भी बतातीं तब भी गांधी जी उनके ‘मन की अवस्था’ समझ सकते थे.
 
गांधी जी मनुबेन को कहते हैं कि अंतिम क्षण तक वे उनके साथ साथ रहेंगीं, लेकिन आभा के साथ ऐसा नहीं होगा.इसलिए वे जैसा करना चाहें करने दें/उनके हाल पर छोड़ दें.

गांधी जी मनुबेन को बधाई देते हुए कहते हैं कि उन्होंने उनकी और औरों की पूरी निष्ठा से सेवा की है.

फिर वही बात.वर्तमान के साथ भूत की चुगली.यानि आभा का स्तर भी यहां सुशीला जैसा हो गया है, गांधी जी की नज़रों में.मगर याद करें तो, ये वही आभा हैं, जो कभी गांधी जी को बड़ी प्यारी लगती थीं, और जिनकी प्रशंसा करते वे थकते नहीं थे.दरअसल, बंगाली मूल की आभा सुशीला से भी पहले गांधी जी के ब्रह्मचर्य के प्रयोगों में मुख्य सहयोगी रही थीं.उन्हें 16 साल की उम्र में बिस्तर पर, गांधी जी को गर्म रखने की ज़िम्मेदारी दी गई थी.तब से लेकर गांधी जी के अंतिम क्षणों तक वे उनके साथ रहीं.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
महात्मा गांधी व आभा गांधी 



आभा ने मशहूर लेखक वेद मेहता को बताया था कि वे बापू के साथ नंगी सोती थीं.वेद मेहता ने अपनी क़िताब महात्मा गांधी एंड हिज अपॉसल्स में उनसे हुई बातचीत का वर्णन विस्तार से किया है.  
  
गांधी जी ने अपने क़रीबी मुन्नालाल शाह को लिखे पत्र में बताया था कि बाद में, आभा ने उनके साथ सोने से इनकार कर दिया था.6 मार्च, 1945 को लिखा गया ये पत्र संपूर्ण गांधी वांग्मय में छपा है.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
संपूर्ण गांधी वांग्मय 


  

बहरहाल, कनुलाल गांधी (गांधी जी के पोते) से विवाह के बाद आभा गांधी जी की केवल एक आम सेविका बनकर रह गई थीं.वक़्त बदल चुका था, ज़रूरतें बदल गई थीं.

मनुबेन ने अपनी डायरी में लिखा है-

” मैं कई दिनों से बुरी तरह अशांत हूं.बापू ने जब यह देखा तो कहा कि अपने मन की बात कह दो.उन्होंने कहा कि मैं कईयों का पितामह और पिता हूं और सिर्फ़ तुम्हारी माता हूं.माने बापू को बताया कि इन दिनों आभा मुझसे बहुत बेरुख़ी से पेश आ रही है.यही वजह है.

बापू ने कहा कि उन्हें ख़ुशी हुई कि मैंने मन की बात उन्हें बता दी लेकिन अगर न बताती तो भी वे मेरे मन की अवस्था समझ सकते थे.उन्होंने कहा कि मैं अंतिम क्षण तक उनके साथ रहूंगी लेकिन आभा के संग ऐसा नहीं होगा.इसलिए वह जो चाहे उसे करने दो.उन्होंने मुझे बधाई दी कि मैंने न सिर्फ़ उनकी बल्कि औरों की भी पूरी निष्ठा से सेवा की है. ”


17. 18 नवंबर, 1947 को दिल्ली स्थित बिड़ला हाउस की एक घटना का ज़िक्र करते हुए मनुबेन ने कहा है कि जब वे गांधी जी को नहला रही थीं, गांधी जी उन पर बहुत क्रोधित हो गए.उन्होंने मनुबेन को बहुत बुरा भला कहा.इसका कारण ये था कि मनुबेन ने कुछ दिनों से उनके साथ शाम को घूमना बंद कर दिया था.

गांधी जी ने मनुबेन को उलाहना देते हुए कहा कि जब वे जीते जी उनकी बात नहीं मानतीं, उनके मरने के बाद तो वे उन्हें भूला ही देंगीं.गांधी जी ने पूछा कि क्या वे उनके मरने का इंतजार कर रही थीं? यह सुन कर मनुबेन स्तब्ध रह गईं और कोई उत्तर देने का उन्हें साहस न हुआ.
 
वो कौन सी बात थी, जो मनुबेन नहीं मान रही थीं? शाम को साथ न घूमने की बात पर कोई इतना ग़ुस्सा होता है क्या? क्या गांधी जी फिर वही करना चाहते थे, जो मनुबेन ने बंद करने का निर्णय ले लिया था? ब्रह्मचर्य का प्रयोग? या फिर कोई और बात थी?

बारीक़ी से देखें तो इस प्रसंग और 18 जनवरी, 1947 के प्रसंग के विवरण में काफ़ी समानता नज़र आती है और यह पता चलता है कि गांधी जी अपनी सेविकाओं के साथ कैसा संबंध और व्यवहार रखते रहे थे.यह सीधे स्वामी और सेविका के बीच सूखा मामला लगता है.जब जो चाहा, जैसा चाहा किया.अपनी इच्छा पूरी की.लेकिन, ज़रा भी आनाकानी हुई या समर्पण भाव में कोई कोर कसर नज़र आई, तो दूध में पड़ी मक्खी की तरह दूर कर दिया.इस्तेमाल किया और फ़ेंक दिया.किसी सैद्धांतिक प्रयोग या यज्ञ जैसी भावना से इसका कोई तालमेल नहीं बैठता.मनुबेन की डायरी में महात्मा का यही जीवन दर्शन है.

मनुबेन लिखती हैं-

” आज जब मैं बापू को स्नान करवा रही थी, तो वे मुझ पर नाराज़ हुए क्योंकि मैंने उनके साथ शाम को घूमना बंद कर दिया था.उन्होंने बहुत कड़वे शब्दों का इस्तेमाल किया.उन्होंने कहा, ” जब तुम जीते जी मेरी बात नहीं मानती, तो मेरे मारने के बाद क्या करोगी? क्या तुम मेरे मारने का इंतज़ार कर रही हो? यह शब्द सुनकर मैं सन्न रह गई और ज़वाब देने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. ”



कुल मिलाकर, स्वतंत्रता संग्राम की आड़ और महात्मा के भेष में गांधी जी अपनी जीवन-शैली के लिए लंबे वक़्त तक (ज़िंदगी के आख़िरी दिनों तक) ऐसी छूट लेते रहे, जो सामान्य परिस्थिति व रूप में उन्हें कदापि नहीं मिल सकती थी.उनका जीवन दर्शन कैसा था, यह मनुबेन व अन्य सेविकाओं को अथवा उनके बारे में विभिन्न प्रसंगों में स्वयं गांधी जी द्वारा कही गई बातों में, स्वयं सेविकाओं की सोच व उनके एक दूसरे के प्रति व्यवहार-विचार और किशोर मशरूवाला के शब्द ‘माया’ मोह में स्पष्ट झलकता है.



ऐसे जगज़ाहिर हुई मनुबेन की डायरी

गांधी जी के देहांत के बाद, मनुबेन जब दिल्ली से गुजरात के महुवा के लिए रवाना हुईं, उनके चाचा देवदास गांधी उन्हें छोड़ने स्टेशन गए थे.इस मौक़े पर, देवदास गांधी ने उन्हें अपनी डायरी को गुप्त रखने अथवा कभी न उजागर करने को कहा था.मनुबेन ने उनके आदेश का पालन किया और इस तरह, उनकी डायरी (डायरियां) उनके अंतिम क्षणों (1969 में उनकी मृत्यु होने तक) गोपनीय ही बनी रही.

बताया जाता है कि मनुबेन ने अपने पिता जयसुखलाल से यह इच्छा व्यक्त की थी कि उनके देहांत के बाद उनकी डायरियां उनकी बहन संयुक्ता बेन की बेटी मीना जैन को सौंप दी जाएं.ऐसा ही हुआ, और मीना जैन ने डायरियों को मध्यप्रदेश के रीवा में अपने पारिवारिक बंगले में रखवा दिया.

201० में मीना की बचपन की सहेली वर्षा दास जो उस समय दिल्ली के राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय की डायरेक्टर थीं, मीना के कहने पर रीवा गईं और डायरियां दिल्ली लाकर राष्ट्रीय अभिलेखागार में जमा करवा दीं.फिर, इसकी जानकारी मीडिया को मिली तो यह जगज़ाहिर हो गई.


    

डायरी में दर्ज़ घटनाओं से जुड़े लोग

मनुबेन की डायरी में दर्ज़ विभिन्न घटनाओं से जुड़े कई बड़े-बड़े लोग भी थे, जो गांधी जी के क़रीब/बहुत क़रीब थे और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के चर्चित चेहरे रहे थे.


प्यारेलाल

प्यारेलाल (1899-1982) मूल रूप से पश्चिमी सीमा प्रांत (अब पाकिस्तान) के रहने वाले थे.उनकी उनकी शिक्षा-दीक्षा गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर में हुई थी.1920 में असहयोग आंदोलन में वे गांधी जी से जुड़े और महादेव देसाई की मौत के बाद उनकी जगह गांधी जी के निजी सचिव के तौर पर काम किया.उन्होंने ‘महात्मा गांधी: द लास्ट फेज’ नामक मशहूर क़िताब भी लिखी है.

         

सुशीला नय्यर

पेशे से डॉक्टर सुशीला नय्यर/नायर (1914-200०) प्यारेलाल की छोटी बहन थीं.प्यारेलाल के ज़रिए वे गांधी जी के क़रीब आईं और उनकी निज़ी डॉक्टर के रूप में कई वर्षों तक काम किया.आज़ादी के बाद वे चार बार सांसद और दो बार भारत की स्वास्थ्य मंत्री रहीं.


मनुबेन

अपनी डायरी को लेकर मशहूर मृदुला गांधी उर्फ़ मनुबेन (1929-1969), रिश्ते में महात्मा गांधी की पोती (गांधी जी के भतीजे जयसुखलाल की बेटी) थीं.कराची में अपने परिवार के साथ रह रहीं मनुबेन अपनी मां के देहांत के बाद पढाई बीच में ही छोड़, कस्तूरबा की सेवा करने नागपुर चली गई थीं.वहां गांधी जी के साथ जुड़कर उनकी निजी सेविका के रूप में, वे उनकी हत्या होने तक लगातार उनके साथ रहीं.मनुबेन ने 40 साल की उम्र में अविवाहित रहते हुए दिल्ली में गुमनामी में दम तोड़ा.

              

कनु गांधी

कनु गांधी (1928-2016) जिन्हें हम कनुभाई या कनुलाल गांधी के नाम से जानते हैं, महात्मा गांधी के पोते (महात्मा गांधी के तीसरे बेटे रामदास गांधी के बेटे) थे.सुमित्रा गांधी और उषा गांधी उनकी बहनें थीं.

गांधी जी के सेवाग्राम में रहते हुए कनुभाई को गांधी जी की ही निजी और अंतरंग सेविका आभा से प्यार हो गया था और दोनों ने फिर विवाह कर लिया था.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
महात्मा गांधी के साथ कनुभाई और आभा 


गांधी जी की मौत के बाद, भारत में तत्कालीन अमरीकी राजदूत जॉन केनेथ गलब्रेथ के कृपापात्र के रूप में, वे उनके साथ अमरीका चले गए थे.वहां उन्होंने मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलोजी में सिविल इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री प्राप्त कर नासा और अमरीकी रक्षा विभाग में काम करते हुए बोस्टन बायोमेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट में प्रोफेसर रहीं शिवलक्ष्मी से शादी कर ली थी.   

2014 में पति-पत्नी भारत आ गए थे और यहां रहते हुए कनुभाई ने जहां दिल्ली-फरीदाबाद बार्डर स्थित एक वृद्धाश्रम में लावारिस की ज़िंदगी जीते हुए 2016 में दम तोड़ दिया था, वहीँ शिवलक्ष्मी ने भी सूरत के भीराड स्थित एक महिला वृद्धाश्रम  में रहते हुए अपनी अंतिम सांस ली थी.

कनुभाई प्रधानमंत्री मोदी से मिले थे, जब वे वर्धा के सेवाग्राम गए थे.मोदी ने उनसे फ़ोन पर बात भी की थी.लेकिन कनुभाई ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें किसी प्रकार की मदद नहीं मिली.



डायरी में महात्मा,गोते लगाता है,जीवन दर्शन
कनुभाई-शिवलक्ष्मी और बीजेपी-कांग्रेस के नेता  



ख़ासतौर से, अपने नाम के साथ ‘गांधी’ लगाकर राजनीति करने वाली कांग्रेस पार्टी और उसके शीर्ष नेताओं की ओर से भी अपने अंतिम दिनों में कनुभाई गांधी को, निराशा ही हाथ लगी.


आभा गांधी 

आभा गांधी (1927-1995) मनुबेन के अलावा महात्मा गांधी की दूसरी सबसे ख़ास सेविका थीं.बाद में उनकी शादी गांधी जी के पोते कनुभाई गांधी से हुई.गांधी जी की प्रार्थना सभाओं में आभा भजन गाती थीं और कनु फ़ोटोग्राफ़ी करते थे.नाथूराम गोडसे ने जब गांधी जी को गोली मारी, तब आभा उनके साथ थीं. 
  

देवदास गांधी

देवदास गांधी (190०-1957) महात्मा गांधी के सबसे छोटे (चौथे) बेटे थे.वे पत्रकार थे और हिंदुस्तान टाइम्स में एडिटर भी रहे थे.उनकी शादी सी राजगोपालाचारी की बेटी लक्ष्मी से हुई थी.दोनों के चार बच्चे राजमोहन, गोपाल कृष्ण, रामचंद्र और तारा थे.


बीबी अम्तुस्सलाम

पटियाला के एक पंजाबी कुलीन मुस्लिम परिवार में जन्मीं अम्तुस्सलाम (मृत्यु-29 सितंबर 1985) गांधी जी की प्रमुख सेविकाओं में से एक थीं.अपने इंडिया विन्स फ्रीडम में मौलाना आज़ाद ने लिखा है कि भारतीय मुसलमानों के बीच, मोहम्मद अली जिन्ना की क़ायदे आज़म की उपाधि को सबसे पहले महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था, जो अम्तुस्सलाम की सलाह का परिणाम था.


किशोर मशरूवाला

किशोरलाल मशरूवाला (189०-1952) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े एक मशहूर कार्यकर्ता-नेता होने के साथ-साथ जीवनी लेखक, निबंधकार और अनुवादक थे.वे महात्मा गांधी के निकट सहयोगी थे.


अमृतलाल ठक्कर

ठक्कर बापा के नाम से प्रसिद्द समाजसेवी अमृतलाल ठक्कर (1869-1951) महात्मा गांधी और गोपाल कृष्ण गोखले के सहयोगी थे.उन्हें गांधी जी की आत्मा का चौकीदार कहा जाता था.
 
  
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