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शिक्षा एवं स्वास्थ्य

Rh Factor मायने रखता है बच्चे की सेहत के लिए?

– जीवनसाथी के आरएच फैक्टर पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी

– आरएच फैक्टर एक तरह का प्रोटीन है, जो रेड ब्लड सेल्स में पाया जाता है

– आरएच फैक्टर आनुवंशिक यानि ख़ानदानी होता है, जो माता-पिता से मिलता है

– संभावित मां यानि फ़ीमेल पार्टनर के शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी शिशु के रेड ब्लड सेल्स पर हमला कर उसके लिए गंभीर समस्याएं पैदा कर सकती है

लाइफ पार्टनर बनाने से पहले लोग कई चीज़ों पर गौर करते हैं.लाभ-हानि की गणना के साथ-साथ गुण-दोषों की भी विवेचना होती है, ताकि भविष्य में कोई समस्या न पैदा हो, और वैवाहिक जीवन सुखमय और आनंदमय हो.मगर, संतान सुख भी तो सुखमय-आनंदमय जीवन का ही हिस्सा होता है, जो एक निरोग और स्वस्थ संतान पर निर्भर करता है.दरअसल, मानव जीवन से जुड़े इस महत्वपूर्ण तथा आवश्यक पहलू पर विचार ही नहीं किया जाता, जबकि मेडिकल साइंस कहता है कि जीवनसाथी के ब्लड ग्रूप या आरएच फैक्टर पर भी ध्यान दिया ज़रूरी है.इसके अनुसार, आरएच फैक्टर मायने रखता है बच्चे की सेहत के लिए.


आरएच फैक्टर, गर्भवती महिला, बच्चे की सेहत
महिला, बच्चा व आरएच फैक्टर (सांकेतिक) 
दरअसल, आरएच फैक्टर एक प्रकार का प्रोटीन है, जो लाल रक्त कोशिकाओं (रेड ब्लड सेल्स) में होता है.जिसके पास यह प्रोटीन होता है, उसे Rh-Positive कहते हैं.इसके उलट जिसके पास यह नहीं होता वह Rh-Negative कहलाता है.हर गर्भवती महिला का आरएच फैक्टर टेस्ट किया जाता है, और यह सबसे पहले और महत्वपूर्ण परीक्षणों में से एक है.


आरएच फैक्टर क्या है?

आरएच फैक्टर या आरएच कारक एक तरह का प्रोटीन है, लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर होता है.इसकी खोज ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टेनर ने साल 1901 में की थी.उन्होंने रीसस नामक एक बंदर में यह प्रोटीन पाया था, और तभी से इसका नाम Rhesus Factor या संक्षेप में Rh Factor यानि रीसस कारक के नाम से जाना जाता है.

वैज्ञानिक कार्ल लैंडस्टेनर ने ही ब्लड ग्रूप यानि रक्त समूह बताये थे जो कि ख़ासतौर से चार तरह के होते हैं- ए, बी, एबी और ओ.सभी का ब्लड ग्रूप इन्हीं चार समूहों में से ही होता है.

आरएच फैक्टर आनुवंशिक यानि ख़ानदानी होता है, जो माता-पिता से मिलता है.

क़रीब 84-85 फ़ीसदी लोग आरएच पॉजिटिव (रीसस सकारात्मक) होते हैं, जबकि 15-16 फ़ीसदी ही आरएच नेगेटिव (रीसस नकारात्मक) होते हैं.

ज्ञात हो कि भारत में नकारात्मक समूह (नेगेटिव ब्लड ग्रूप) के केवल 5 फ़ीसदी ही लोग हैं.इनकी सबसे ज़्यादा संख्या स्पेन और फ्रांस में है.

जानकारों के अनुसार, दुनियाभर में आरएच पॉजिटिव श्रेणी में, ओ पॉजिटिव 38 फीसद, बी पॉजिटिव 9 फीसद, ए पॉजिटिव 34 फीसद, और एबी पॉजिटिव 3 फीसद लोग हैं.दूसरी तरफ़, आरएच नेगेटिव वाले लोगों में, ओ नेगेटिव 7 फीसद, बी नेगेटिव 2 फीसद, ए नेगेटिव 6 फीसद और एबी नेगेटिव के 1 फीसद लोग हैं.

ज्यादातर लोग रीसस पॉजिटिव होते हैं क्योंकि उन्हें दो तरह के रीसस वंशाणु (जीन) यानि इनकी दो प्रतियां या कॉपी विरासत में मिलती है- एक माता से और दूसरी पिता से.

ये वंशाणु पॉजिटिव हों या नेगेटिव मगर, पॉजिटिव वंशाणु ही प्रबल होता है, और हमेशा वही क़ामयाब होता है.इस प्रकार, जहां दो पॉजिटिव वंशाणु हासिल करने वाला शिशु आरएच पॉजिटिव होता है वहीं, एक पॉजिटिव और एक नेगेटिव वंशाणु प्राप्त करने वाला शिशु भी आरएच पॉजिटिव ही होता है.

मगर, जो शिशु दोनों ही नेगेटिव वंशाणु प्राप्त करता है, वह आरएच नेगेटिव होता है.

हालांकि आरएच नेगेटिव का होना कोई बीमारी नहीं है.आमतौर यह स्वास्थ्य को भी प्रभावित नहीं करता.लेकिन, यह गर्भावस्था को प्रभावित कर सकता है.


आरएच फैक्टर का गर्भावस्था पर असर

पति-पत्नी के ब्लड ग्रूप अगर अलग-अलग हैं, तो इससे फ़र्क नहीं पड़ता.फ़र्क पत्नी के आरएच फैक्टर से पड़ता है कि वह पॉजिटिव है नेगेटिव.

ज्ञात हो कि अलग-अलग रक्त समूह के कारण पहली गर्भावस्था में भी मां या शिशु को किसी प्रकार की क्षति की संभावना नहीं होती.मगर, मां यदि आरएच नेगेटिव है और उसके गर्भ में पल रहा शिशु आरएच पॉजिटिव है, तो यह भविष्य के लिए चेतावनी ज़रूर है कि दूसरी और उससे आगे की गर्भावस्थाओं में मां का खून आरएच पॉजिटिव शिशु के खून के साथ प्रतिक्रिया (रिएक्शन) कर सकता है.

इसे आसान शब्दों में समझें तो, पहली गर्भावस्था या जन्म के दौरान बच्चे का ज़रा भी खून मां के खून में मिल जाए, तो अगली गर्भावस्थाओं में बच्चे को ख़तरा होना मुमकिन है.

ऐसी स्थिति में दरअसल, गर्भवती महिला की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) आरएच पॉजिटिव शिशु के खून के खिलाफ़ एंटीबॉडी (प्रतिपिंड) बनाना शुर कर देती है.इसे आरएच संवेदनशीलता या असंगति (Rh Incompatibility) कहते हैं.

भविष्य में अगर महिला के गर्भ में फिर आरएच पॉजिटिव शिशु होगा, तो उसके शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी शिशु के रेड ब्लड सेल्स पर हमला कर उसमें एनीमिया, पीलिया आदि की समस्याएं पैदा करने के साथ-साथ मस्तिष्क को भी नुकसान पहुंचा सकती है.


गर्भावस्था में आरएच असंगति का उपचार

स्वास्थ्य विज्ञान के जानकारों के अनुसार, गर्भवती महिला के खून की जांच कर ब्लड ग्रूप और आरएच स्थिति का पता लगाया जाता है.फिर, एंटीबॉडी के निर्माण को रोकने के लिए दवाइयां दी जाती हैं.
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रामाशंकर पांडेय

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