फ़ैलता ही जा रहा है जिगोलो बाज़ार

– अधिकांश किटी पार्टियों में ली जाती है जिगोलो की सेवा
– मिडल क्लास आंटियों को भी लग चुकी है जिगोलो की लत
– अमीर घराने की महिलाएं लगाती हैं जिगोलो की बोली
– जिगोलो क़ारोबार बड़े शहरों के बाद अब छोटे शहरों में पनप रहा है
” शहरी महिलाओं की होने वाली पार्टियों में अधिकांश पार्टियां जिन्हें हम किटी पार्टी ही समझते हैं वो,कोई किटी पार्टी नहीं बल्कि नए ज़माने की एक ऐसी पार्टी है जिसमें औरतों के साथ-साथ कम से कम एक जवान लड़के का होना ज़रूरी है.जी हां,तीन-चार शादीशुदा आंटियों के बीच किराए का एक लड़का.दरअसल,ये एक ज़िगोलो पार्टी होती है जिसमें किराये पर लाया गया लड़का एक ऐसा ज़िगोलो होता है जो पार्टी के दौरान वहां मौज़ूद आंटियों का दिल बहलाता है.उन्हें ख़ुश करता है और जिसके बदले उसे मिलते हैं हज़ारों रूपये बतौर मेहनताना जो,तय घंटे से अधिक हो जाने पर दुगनी फ़ीस के रूप में बढ़ जाया करता है.”
” मिडल क्लास घरानों की आंटियां भी अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से इस क़दर उब चुकी लगती हैं कि समाज के बनाए नियम-क़ानून तोड़कर उन्हें कुछ नया करने से कोई गुरेज़ नहीं है.जी हां,पहले हाई प्रोफाइल आंटियों को लगने वाली ज़िगोलो की लत अब मिडल क्लास घरों तक पहुंच चुकी है.पार्टी जैसे-जैसे परवान चढ़ती है इसके सबूत मिलने लगते हैं.शराब के सुरूर में आंटियां एक दूसरे की मौज़ूदगी भूलाकर ज़िगोलो के ज़िस्म में अपनी जवानी ढूंढने लगती हैं.ये सिलसिला तबतक चलता रहता है जबतक ज़िस्म से खिलवाड़ में इनका दिल भर नहीं जाता.ज़िगोलो को दिया पैसा वसूलना इन आंटियों को बख़ूबी आता है चाहे इसके लिए सारी हदों को पार ही क्यों न करना पड़े.वैसे भी तपिश और बढ़ जाती है चंद बूंदों के बाद.सच में,इसमें हैरान होने जैसी कोई बात नहीं क्योंकि ये धंधा अब नया नहीं रहा बड़े शहरों के लिए.छोटे शहरों में सर्वेक्षण अभी हुआ नहीं है इसलिए वहां की आंटियों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इंटरनेट के इस ज़माने में सभी एक दूसरे से जुड़े नज़र आते हैं.”
” शहरों के मिडल क्लास क्लबों में ज़िगोलो पार्टियों का चलन तेज़ी से बढ़ रहा है और इसकी सबसे ज़्यादा शौक़ीन हैं अधेड़ उम्र की वो शादीशुदा आंटियां जिनका दिल अपने पतियों से भर चुका होता है.पति अपने काम में फंसकर नोट छापने की मशीन बन जाते हैं और ये आंटियां उन पैसों को लुटाने की मशीन.उम्र के इस पड़ाव में उन्हें ज़रूरत महसूस होती है एक ऐसे जवान साथी की जो उन्हें जवान होने का अहसास एक बार फ़िर से दिला दे.ज़िगोलो ऐसी आंटियों की पहली पसंद होते हैं.दरअसल,ज़िगोलो मेल प्रोस्टीट्यूशन का दूसरा नाम है जहां लड़कों के ज़िस्म की क़ीमत चुकाकर हाईप्रोफाइल औरतें उसका इस्तेमाल मौज़-मस्ती के लिए करती हैं बिल्कुल उसी तरह जिस तरह क़ीमत चुकाकर कॉल गर्ल का इस्तेमाल मर्द किया करते थे.ये धंधा इस क़दर बढ़ चुका है कि बाक़ायदा एक नेटवर्क के ज़रिए लड़कों को ज़िगोलो बनाया जा रहा है और इनसे ज़िगोलो का काम करवाने से पहले औरतों को ख़ुश करने की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि पैसा लुटाने वाली आंटियों के बीच जाने से पहले ये उनके तौर-तरीक़े,बोली,उठने-बैठने का तरीक़ा और उन्हें ख़ुश करने का हुनर अच्छी तरह समझ जाएं.ये धंधा शहरों में अब सचमुच क़ारोबार की शक्ल ले चुका है.”
” मुश्किल दिनों में साउथ दिल्ली के एक पार्क में मुझे एक बुज़ुर्ग व्यक्ति मिले.पता नहीं कैसे,पर वे एक नज़र में ही भांप गए कि मैं दुखी व किसी मुश्किल में हूं.उन्होंने मेरा ढाढ़स बंधाया और मदद का भरोसा देकर अपने घर ले गए.वहां उन्होंने मुझे अच्छा खाना खिलाया और थोड़े पैसे देकर कहा कि मैं जबतक चाहूं उनके घर में रह सकता हूं,एक रिश्तेदार की तरह.पड़ोसियों की नज़र में एक दूर का रिश्तेदार.इस तरह,मुझे अब भोजन और ज़ेबख़र्च के साथ रहने को घर भी मिल गया था.एक पल के लिए वे मुझे देवदूत लगे और मैंने उन्हें सम्मानपूर्वक अंकल कहकर संबोधित किया.लेकिन,मैं उस वक़्त हैरान और परेशान हो गया जब उन्होंने,इन सबके एवज़ में ख़ुश करने यानि शारीरिक सम्बन्ध बनाने की शर्त रख दी.मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था और न ही निर्णय लेने क्षमता ही बची थी,इसलिए मुझे अंकल की बात माननी पड़ी और वह किया जो कुछ उन्होंने कहा.ऐसा मैंने पहली बार किया था लेकिन इसके बाद तो यह मेरे लिए रोज़मर्रा की बात हो गई थी.मैंने इतना ज़रूर सुना था कि मर्द अपने सेक्स की भूख मिटाने हिज़ड़ों के पास जाते हैं और हिज़ड़े उन्हें संतुष्ट करते हैं.मगर ये बात मुझे बाद में समझ आयी कि पैसे कमाने के लिए हिज़ड़े जो कुछ मर्दों से अपने साथ कराते हैं वही काम अंकल क्यों अपना ख़र्च कर मुझसे करा रहे थे,जबकि न तो उनमें मर्दों जैसी चाह थी और ना वे हिज़ड़ा ही थे.”
” इस तरह कुछ महीने बीत गए.रोज़-रोज़ अंकल और उनकी बुज़ूर्ग मंडली को ख़ुश करते हुए मैं उब चुका था.मगर एक दिन मेरा एक महिला से संपर्क हुआ और जब मैं उनके घर गया तो अच्छा लगा.मैंने देखा कि वह अधेड़ थीं मगर सुंदर थीं और साथ ही सेक्स के ज्ञान में निपुण भी.वास्तव में,उनके साथ मज़ा आया और ऐसा लगा कि अंकल की कृत्रिम दुनिया से निकलकर मैं फ़िर से प्राकृतिक जीवन में लौट आया हूं.उन्होंने न सिर्फ़ अच्छे पैसे दिए बल्कि जो तकनीक दी वो मुझे एक अच्छे ज़िगोलो बनने व अंकल की दुनिया से दूर जाने में सहायक सिद्ध हुई.उनके संपर्कों के ज़रिए मुझे बाज़ार मिला जहां मेरी आज डिमांड है और अच्छी कमाई भी.आज़ मैं प्रोफेशनल हूं और समर्थ भी,तो उन्हीं की बदौलत.दरअसल,वे मेरी गुरू हैं और उनका मैं सम्मान करता हूं.”
” अब मैं बहुत व्यस्त रहने लगा था.शायद एक्ज़ाम की तैयारी के दिनों से भी ज़्यादा.रोज़ रात नई औरतें या औरतों के ग्रूप में नए अंदाज़ और एनर्जी के साथ अपनी क़ाबिलियत साबित करना आसान नहीं था.कहीं प्रशंसा मिली तो कहीं बेइज्ज़ती भी हुई मगर कमाई बढ़ती गई.कुछ एजेंसियों से जुड़ने के बाद से अब मुझे वीवीआइपी की भी सेवा के मौक़े मिलते हैं जैसे दूतावासों और कॉर्पोरेट जगत के लोगों को सेवा देने का काम.इनमें औरतें होती हैं और मर्द भी.कपल्स भी.इनसे पहले परिचय करवाया जाता है उसके बाद तय स्थान व समय पर सप्लाई दी जाती है.ऐसे ग्राहक हमें ज़्यादातर होटलों या फ़ार्महाउसों में बुलाते हैं मगर कुछ ऐसे भी होते हैं जो सरकारी या निज़ी आवास के लिए भी डिमांड करते हैं.समय कोई भी हो सकता है-रात भी,दिन भी.लेकिन मनमाफ़िक सेवा से ख़ुश ये लोग अलग से टीप भी देते हैं.एजेंसियां 20 पर्सेंट कमीशन लेती हैं लेकिन हमारी फ़ीस भी बहुत अच्छी होती है.अकेली महिलाओं की सिंगल सर्विस डिमांड कम ही आती है,शायद सुरक्षा को लेकर.ज़्यादातर कॉल पार्टियों के लिए आते हैं-शादीशुदा अधेड़ महिलाओं की पार्टियां जिनमें कुछ जवान औरतें भी शामिल होती हैं.ऊँचे घराने की महिलाओं की पार्टियों में आमतौर पर समस्या नहीं आती लेकिन मिडल क्लास महिलाओं की ज़्यादातर पार्टियों में तय संख्या से ज़्यादा महिलाएं पहुंच जाती हैं जिन्हें संभालना मुश्किल होता है.कुछ नखरे वाली औरतें भी होती हैं जो ज़्यादा वक़्त तक उलझाए रखती हैं और इससे ग्रूप की दूसरी सदस्यों को पूरा वक़्त नहीं मिलता तो वो एक्स्ट्रा टाइम की डिमांड रख देती हैं.मगर पेमेंट के वक़्त मसला खड़ा हो जाता है और वे आपस में झगड़ने लगती हैं.ऐसे में हमें डर सताता रहता है कि कोई हमारी शिक़ायत(झूठी) न कर दे.दरअसल,शिकायतों के कारण हमारी रेटिंग पर फर्क़ पड़ता जो रेपो(साख) के लिए ठीक नहीं होती.एक्स्ट्रा कमाई तो इनसे शायद ही कभी होती है.सबसे मुश्किल और ज़ोखिम भरा काम होता है कपल्स की डिमांड पर उनके घर जाना.दरअसल,ये वे बेमेल जोड़े होते हैं जो एक दूसरे को ख़ुश नहीं कर पाते लेकिन एकसाथ रहते हैं और एक दूसरे की ज़रूरतों को समझते हैं.इसके अलावा,वैसे सक्षम दंपत्ति भी हमें बुलाते हैं जो पश्चिमी सभ्यता को पसंद करते हैं और जिन्हें अलग-अलग देह में अलग-अलग स्वाद की अनुभूति करने की लत लग चुकी है,वैसे ही जैसे घर का ख़ाना खाने के बाद बाज़ार का भी स्वाद लोग लेते हैं.अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाले इनमें कुछ ऐसे मशहूर लोग भी हैं जो टीवी चैनलों पर अक्सर भारत विरोधी बयान देते देखे जाते हैं.बड़ी-बड़ी बातें करने वाले मगर मत्लबी और नाइंसाफ़ लोग.ये दरअसल,तय वक़्त से ज़्यादा वक़्त तक हमें रोके रखते हैं,ज़्यादा शराब पीने का दबाव बनाते हैं और आख़िर में पेमेंट को लेकर अक्सर मोलभाव करते हैं.कई बार तो ये नशे में ज़िन्दगी बर्बाद की धमकियां भी देते हैं.इनसे डर लगता है और यही कारण है कि अब मैं कपल्स के कॉल को अक्सर इग्नोर (अनदेखा,टालना ) कर देता हूं.जब पहली बार मुझे एक नए शादीशुदा जोड़े को उनके हनीमून पर अटेंड करने का मौक़ा मिला तो मुझे अपनी आंखों पर यक़ीन नहीं हो रहा था और मन में सवाल उठ रहा था कि आख़िर ये लोग शादियां ही क्यों करते हैं जब इन्हें मुझ जैसों की सेवा की ज़रूरत है.पर,उन्हें सन्तुष्ट करने के बाद समझ आया कि ये समथिंग डिफरेंट (कुछ हटके) करने और एक्स्ट्रा एंजॉयमेंट (अतिरिक्त आनद) के लिए अनुभव प्राप्त करने का प्रयास है.बहुत ही विचित्र.घृणास्पद.दरअसल,मुझे ये बिल्कुल भी ज़ायज़ नहीं लगता जबकि मैं ख़ुद नाज़ायज़ हो गया हूं.कल्पना से भी परे,आज़ मेरे पास वो सबकुछ है जो शायद उस सम्मानित जॉब में हासिल नहीं कर सकता था. लेकिन,मैं इस हृदयहीन दुनिया में,जो पैसों पर चलती है,बिल्कुल अकेला हूं.अब मुझे ख़ुद से नफ़रत हो गई है.एक जिंदा लाश हूं और मेरा ज़मीर भी मर चुका है.पता नहीं कौन सी शक्ति मुझे थामे हुए है! “
सच के लिए सहयोग करें 
कई समाचार पत्र-पत्रिकाएं जो पक्षपाती हैं और झूठ फैलाती हैं, साधन-संपन्न हैं. इन्हें देश-विदेश से ढेर सारा धन मिलता है. इनसे संघर्ष में हमारा साथ दें. यथासंभव सहयोग करें