नीम का सेवन करें, कभी डॉक्टर और दवा की ज़रूरत नहीं पड़ेगी
नीम ऑक्सीजन का सबसे बड़ा स्रोत और रोगाणुओं का नाश करने वाला है.इसी के चलते कहा जाता है कि घर के आंगन या दरवाज़े पर लगा नीम का पेड़ एक डॉक्टर की तरह परिवार की देखभाल करता है.
नीम जितना कड़वा होता है उतने ही इसके फ़ायदे भी हैं.यह अनेक रोगों के उपचार में काम आता है.तभी इसे ‘सर्वतोभद्र’ यानि, हर प्रकार से कल्याणप्रद या मंगलकारी कहा गया है.इसका नियमित सेवन किया जाए, तो कभी डॉक्टर और दवा की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.
गुणों की खान है नीम.यह मानव के लिए प्रकृति की ओर से वरदान से कम नहीं है.अपने करिश्माई असर के चलते ही नीम शरीर का डॉक्टर भी कहलाता है.जानकारों के अनुसार, यह बीमारियों से तो बचाए रखता ही है, अगर कोई बीमार है, तो उसका उपचार भी बिना किसी दुष्प्रभाव के करने में सहायक होता है.विभिन्न रोगों में इसकी जड़, छाल, पत्तियां, फूल, फल, बीज आदि सभी काम आते हैं.यहां तक कि इसकी लकड़ी भी काफ़ी उपयोगी मानी जाती है.
नीम का तेल एक अद्भुत प्राकृतिक उत्पाद माना जाता है.
यही वज़ह है कि हजारों साल से आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी माना जाने वाला नीम एलोपैथी में भी कई दवाइयों, लोशन, साबुन, शैम्पू आदि उत्पाद का मुख्य घटक बन गया है.आजकल मच्छर भगाने वाले क्वाइल और लिक्विड रिफिल आदि में ज़हरीले पदार्थों की जगह नीम का प्रयोग किया जा रहा है.
नीम आख़िर है क्या, और यह दुनिया में कहां-कहां पाया जाता है?
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में तो शायद ही कोई ऐसा हो जो नीम को नहीं जानता.मगर, केवल नाम जानने और क़रीब से समझने में फ़र्क होता है.इसीलिए शहरी वातावरण में जीने वाले भारतीयों के लिए भी नीम आज भी केवल एक पेड़ है, जो अपने कड़वेपन के लिए जाना जाता है.इसके विपरीत, विज्ञापनों वाले टूथ ब्रश टूथ पेस्ट के बढ़ते प्रभाव के बावजूद गांवों में आज भी ज़्यादातर लोगों की सुबह की शुरुआत नीम की दातुन से ही होती है.
नीम के परिचय की बात करें तो इसका वानस्पतिक या वैज्ञानिक नाम एजाडिरैक्टा इंडिका (Azadirachta indica) है, जो कि संस्कृत भाषा निम्ब शब्द से निकला है.यह मिलिएसी (Meliaceae) कुल/परिवार का पौधा है.
हिंदी में यह नीम या निम्ब नाम से जाना जाता है, जबकि संस्कृत में तो इसे अनेक शब्दों जैसे निम्ब, अरिष्ट, हिंगुनिर्यास, सर्वतोभद्र, मालक, पिचुमर्द, पिचुमंद, तिक्तक, अर्कपादप, छर्दन, गजभद्रक, सुमना, सुभद्र, शुकप्रिय, शीर्षपर्ण, शीत, धमन, अग्निधमन, हिजु, काकुल, निम्बक, प्रभद्र, पूकमालक, पीतसारक, आदि से अलंकृत किया गया है.
अंग्रेजी में यह मार्गोसा ट्री (Margosa tree) या नीम ट्री (Neem tree) के नाम से दुनियाभर में मशहूर है.
इसकी पहचान की बात करें तो बकायन या बकेन और चीनी बेरी की तरह दिखने वाला यह भारतीय मूल का पर्णपाती (ऐसे पेड़ जिनके पत्ते हर साल किसी मौसम में गिर जाते हैं) वृक्ष है, जो 15-20 मीटर से लेकर 35-40 मीटर तक ऊंचा हो सकता है.इसकी शाखाएं फैली हुई होती हैं, और तना लगभग 1.2 मीटर के व्यास में सीधा और छोटा होता है.
इसकी छाल सफ़ेद-धूसर या लाल या फिर भूरे रंग की सख्त़ और दरारों वाली होती है.
नीम की पत्तियां हरे रंग की, शाखाओं और उपशाखाओं से निकले पतले और कोमल डंठलों (सीकों) में लड़ियों (श्रृंखला) में होती हैं, जिनका आकार 20-40 सेंटीमीटर तक और संख्या में 20 से 31 तक हो सकती हैं.
इसके फूल रंग में सफ़ेद, गुच्छों में सजे हुए और सुगंधित होते हैं.
इसका फल चिकना तथा गोलाकार या अंडाकार होता है, जिसे निंबोली, निबौली या निबौरी कहते हैं.
निबौरी का छिलका पतला तथा गूदा 0.3 से 0.5 सेंटीमीटर तक की मोटाई में रेशेदार, सफ़ेद पीले रंग का और स्वाद में कड़वा-मीठा होता है.
इसकी गुठली सफ़ेद और कठोर होती है, जिसमें संख्या में 1 से 3 बीज हो सकते हैं.
नीम के पेड़ की ख़ासियत यह है कि यह मीठे और खारे, दोनों तरह के पानी में जीवित रह सकता है.यह मजबूत प्रकृति का होता है, और इसमें उच्च तापमान को सहने की क्षमता होती है इसलिए यह सूखे से प्रभावित क्षेत्रों में भी बचा रहता है.
नीम भारतीय मूल का वृक्ष है और यह देश के लगभग सभी क्षेत्रों में पाया जाता है.भारत के अलावा, यह नेपाल, मालदीव, पाकिस्तान और बांग्लादेश (जो कि भारत का हिस्सा थे) में भी अच्छी तादाद में देखने को मिलता है.
लेकिन, अब यह इन्हीं देशों तक सीमित नहीं है.जानकारों के अनुसार, पिछले क़रीब डेढ़ सौ (150) सालों के दौरान नीम का पेड़ भारतीय उपमहाद्वीप की भौगोलिक सीमा को लांघकर अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एवं मध्य अमरीका और दक्षिणी प्रशांत द्वीपसमूह के अनेक उष्ण और उप-उष्ण कटिबंधीय देशों में भी पहुंच चुका है.
बताया जाता है कि मक्का के क़रीब हज और उमरा के लिए जाने वाले यात्रियों को आश्रय प्रदान करने के लिए 50 हज़ार नीम के पेड़ लगाए गए हैं.
अनेक रोगों में शरीर के लिए संजीवनी का काम करता है नीम
भारत के लिए नीम केवल एक वनस्पति नहीं है, बल्कि यह तो सनातन हिन्दू संस्कृति का अहम हिस्सा है.मान्यता के अनुसार, नीम मां दुर्गा का स्वरुप है, जो हर प्रकार का कष्ट हर लेता है.
नीम की पत्तियां, फूल आदि माता शीतला और मां काली की पूजा में चढ़ाये जाते हैं.
ज्योतिष शास्त्र में इसका संबंध शनि और राहू से बताया गया है.शनि की शांति के लिए नीम की लकड़ी से हवन करना शीघ्र फलदायी माना जाता है.नीम के पत्तों वाले जल से स्नान करने से केतु से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाती हैं.
कहा जाता है कि तीन या इससे ज़्यादा नीम का पेड़ लगाने वाले को स्वर्ग में स्थान मिलता है.
वेदों में नीम को ‘सर्व रोग निवारिणी’ यानि, सभी रोग दूर करने वाली वनस्पति कहा गया है.
नीम का पेड़ एंटी-बैक्टीरियल (बैक्टीरिया से लड़ने वाला), एंटी-फंगल (फंगस रोधी) और एंटी-ऑक्सीडेंट (मुक्त कणों के प्रभाव को कम करने वाला) होता है.यह ऑक्सीजन का सबसे बड़ा स्रोत और रोगाणुओं का नाश करने वाला है.इसी के चलते कहा जाता है कि घर के आंगन या दरवाज़े पर लगा नीम का पेड़ एक डॉक्टर की तरह किसी परिवार की देखभाल करता है.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़, विकासशील देशों के क़रीब 80 फ़ीसदी लोग पारंपरिक दवा के रूप में पौधों और पौधों से बनी चीज़ों का प्रयोग करते हैं.नीम भी उन्हीं पेड़-पौधों में से एक है.
खून को साफ़ करता है नीम
नीम की एक बड़ी ख़ासियत यह है कि यह खून में मौजूद अशुद्ध तत्वों और विष का नाश करता है.यह सांप के ज़हर के असर को कम करने की क्षमता भी रखता है.
विशेषज्ञों के अनुसार, ‘नीम एक महत्वपूर्ण रक्त शोधक या नेचुरल ब्लड प्यूरीफायर है क्योंकि इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण पाए जाते हैं, जो विषाक्त पदार्थों (टॉक्सिंस) को बाहर निकाल देते हैं.’
यही नहीं, नीम शरीर के विभिन्न भागों में पोषक तत्व और ऑक्सीजन को पहुंचाने में मदद भी करता है, जिससे विभिन्न आन्तरिक शारीरिक क्रियाएं सुचारू रूप से चलती रहती हैं और रोगों से बचाव होता है.इसके सेवन से प्लेग का दुष्प्रभाव भी नहीं होता है.
आयुर्वेद के जानकार रक्त संबंधी विभिन्न विकारों में दवा के तौर पर नीम की पत्तियों का काढ़ा या इसका इसका रस (क़रीब 10 एमएल) नियमित रूप से भोजन से आधा घंटा पहले पीने की सलाह दते हैं.
नीम की 4-5 ताजी पत्तियां शहद के साथ (स्वाद के लिए यदि आवश्यक हो) खाई जा सकती हैं.
नीम की चाय पी सकते हैं.
नीम की गोलियां ऑनलाइन स्टोर से ख़रीदकर या अपने घर पर ही तैयार कर एक या दो छोटी गोलियां रोज़ाना ख़ाली पेट ली जा सकती हैं.
नीम की गोली बनाने की विधि: नीम के पंचांग (नीम के पांच अंग- पत्तियां, फल, फूल, बीज और छाल) लेकर अच्छी तरह धोकर पीस लें.
अब इसे एक या दो दिनों तक हवा या धूप में रखें जिससे गाढ़ा और इतना सख्त़ हो जाए कि गोलियां बना सकें.
फिर, गोलियां बनाकर उन्हें 5-7 दिनों तक धूप में सुखाकर डिब्बे में बंद कर रख लें.
पाचन संबंधी समस्याओं में लाभकारी है नीम
लीवर में आए विकारों के कारण पाचन में गड़बड़ी होने लगती है.यह स्थिति विभिन्न प्रकार की अन्य समस्याओं को भी जन्म देती है.मगर, नीम में पाए जाने वाले गुण ऐसे होते हैं, जो लीवर को स्वस्थ रखकर पाचन की समस्याओं से बचाव करते हैं.
नीम का ताज़ा रस या इसके बीज का चूर्ण लेने से पाचन क्रिया ठीक हो जाती है.
इम्युनिटी को बढ़ाता है नीम
देश-विदेश में हुए शोध में यह प्रमाणित हो गया है कि नीम की जड़, पत्तियों, छाल, फल, फूल और इसके बीज में पाए जाने वाले गुण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता या इम्युनिटी को बढ़ा देते हैं, जिससे प्राकृतिक रूप से हमें कई प्रकार के संक्रमण और रोगों से लड़ने में मदद मिलती है.
इसके सेवन से मलेरिया, वायरल फीवर, फ्लू और अन्य संक्रामक रोगों से बचाव तो होता ही है, यदि इस प्रकार की कोई समस्या है, तो समाधान भी हो जाता है.
कोलेस्ट्रोल को क़ाबू में रखता है नीम
नीम की पत्तियों का रस बढ़े हुए पित्तसांद्रव या कोलेस्ट्रोल में लाभकारी बताया जाता है.विभिन्न शोध से पता चलता है कि नीम की पत्तियां उपापचय या मेटाबॉलिज्म को बढ़ाकर कोलेस्ट्रोल की मात्रा को नियंत्रित रखती हैं.
डायबिटीज के नियंत्रण में सहायक है नीम
विभिन्न शोध और चिकित्सकों के अनुभव आधारित प्रकाशित रिपोर्ट से पता चलता है कि नीम मधुमेह की समस्या में भी लाभकारी है.इसके एंटी-डायबिटिक या मधुमेह रोधी गुण इंसुलिन निर्माण व इसके सही उपयोग के साथ रक्त में शर्करा के स्तर (ब्लड शुगर लेवल) को बनाए रखने में मददगार होते हैं.
जानकारों के अनुसार, मधुमेह की स्थिति में नीम की पत्तियों का रस या इसका चूर्ण, या फिर इसकी गोलियों का सेवन निश्चित रूप से लाभ लाभ पहुंचाता है.
अस्थमा के उपचार में नीम है फ़ायदेमंद
अस्थमा या दमा की स्थिति में सबसे पहला और ज़रूरी क़दम होता है कफ़ या बलगम को हटाकर मरीज़ को तुरंत आराम दिया जाए.इसके लिए नीम एक कारगर उपाय है क्योंकि इसमें कफ़ को कम या उसे दूर करने के गुण होते हैं.
जानकारों के अनुसार, नीम के सेवन से शरीर में भरपूर ऊष्मा पैदा होती है, जिससे आसानी से कफ़ निकल जाता है.
अस्थमा के उपचार में 4-5 बूंद नीम के बीज के तेल को पान में डालकर खाने की सलाह दी जाती है.
नीम की पत्तियों को शहद में लपेटकर खाने से भी दम फूलने और सांस की तकलीफ़ में आराम मिलता है.
टीबी के इलाज में नीम का प्रयोग
भारत, चीन और इंडोनेशिया में ज़्यादा प्रभावकारी टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) एक गंभीर, संक्रामक और बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी है, जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है.इसे यक्ष्मा, तपेदिक, क्षयरोग आदि के नाम से भी जाना जाता है.कुछ लोगों ने तो असाध्य रोग के रूप में इसे ‘राज रोग’ भी कहा है.मगर, हक़ीक़त यह है कि आयुर्वेदिक चिकित्सा में इसका सदियों से इलाज होता आया है, और आज भी हो रहा है.इसमें नीम का प्रयोग आम है.
एलोपैथी में भी इसका इलाज है.मगर, पिछले कुछ वर्षों में ऐसा महसूस किया गया कि टीबी के रोगाणुओं ने कुछ ज़रूरी दवाओं के खिलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है.ऐसे में, विकल्प के तौर पर नीम पर शोध हुआ, तो पता चला कि पारंपरिक रूप से इस्तेमाल होने वाली नीम की छाल का इथेनॉल अर्क माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस के विकास को रोक सकता है.लेकिन फिर, आगे के नतीजों को देखते हुए अब वैज्ञानिकों ने स्पष्ट कर दिया है कि नीम की छाल के अर्क की गोलियां तपेदिक को ठीक कर सकती हैं.
दरअसल, नीम की छाल का अर्क खांसी और बलगम के साथ खून आने को रोकने का काम करता है.यही टीबी का मुख्य लक्षण है.बाक़ी समस्याओं के समाधान या शमन की क्षमता भी नीम के प्रत्येक भाग में पाई जाती है.इनका प्रयोग किया जा सकता है.
जानकारों के अनुसार, नीम के तेल की 4-5 बूंदें कैप्सूल में भरकर या किसी अन्य रूप में दिन में 2-3 बार देने से तत्काल लाभ मिलता है.
नीम करता है कैंसर से बचाव, फैलने से रोकता है
नीम की पत्तियां, फूल का अर्क (रस), फल और बीज में प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने, सूजन कम करने, मुक्त कणों को दूर करने (एंटी-ऑक्सीडेंट), हार्मोनल गतिविधि को रोकने और कोशिकाओं को टूटने से बचाने वाले गुण पाए जाते हैं.इसकी यही ख़ासियत इसे कैंसर के इलाज में सहायक या उपयोगी बनाती है.
जानकारों के अनुसार, नीम का सेवन करने वालों को जहां कैंसर अपनी चपेट में नहीं ले पाता है वहीं, कैंसर के रोगी में नीम का कैंसर रोधी गुण इसे फैलने से रोकता है.
स्त्री रोगों में लाभकारी है नीम का प्रयोग
आयुर्वेद ही नहीं, अब तो आधुनिक चिकिसा विज्ञान (एलोपैथी) भी मानता है कि नीम का प्रयोग कई प्रकार के स्त्री रोगों में लाभकारी है.विशेषज्ञों के अनुसार, यदि चिकित्सक के परामर्श के अनुसार नीम का सेवन किया जाए, तो कई समस्याओं का स्थाई समाधान हो सकता है.
स्तनों के घाव में लाभकारी: आयुर्वेद के जानकार बताते हैं कि नीम के प्रयोग से स्तनों के घाव जल्दी सूखते और भर जाते हैं.इसके लिए उबले हुए नीम के पानी से घाव को साफ़ कर उस पर नीम का लेप (पत्तियों को पीसकर तैयार किया गया पेस्ट) या नीम की राख (सूखी पत्तियों को जलाकर प्राप्त किया गया अवशेष) लगाकर पट्टी बंधने की सलाह दी जाती है.
योनि का दर्द दूर करता है: नीम की गिरी (बीज के अंदर का गूदा) और इसकी पत्तियां एकसाथ पीसकर उसकी गोलियां बना लें.फिर, इसे कपड़े में सीलकर योनिमार्ग में रखें.इससे दर्द ठीक हो जाता है.
नीम की छाल को कुछ घंटों (3-4 घंटे) के लिए पानी में भिगोकर रख दें.फिर, इसका पानी छानकर इससे योनि को अच्छी तरह धोएं.साथ ही, इससे रूई को भिगोकर (फाहे को) 10-15 मिनट तक योनि में रखें.इससे भी दर्द दूर होता है, और ढ़ीली योनि सख्त़ हो जाती है.
मासिक धर्म (पीरियड) संबंधी गड़बड़ियों को करता है ठीक: नीम की छाल को साफ़ और ताज़े पानी में उबाल लें.फिर, इसे गुनगुना (हल्का गर्म) कर क़रीब एक हफ़्ता (6-7 दिनों तक) ख़ाली पेट पीयें.इससे मासिक धर्म संबंधी सभी विकार दूर हो जाते हैं.
प्रदर रोग (ल्यूकोरिया) में लाभकारी: योनि से असामान्य मात्रा में सफ़ेद रंग का गाढ़ा और बदबूदार पानी निकलने को प्रदर या श्वेत प्रदर रोग कहते हैं.इसमें नीम लाभकारी माना जाता है.
इसके लिए नीम की छाल को कूटकर उसे ताज़े व साफ़ पानी में अच्छी तरह उबाल लें.फिर, इसे छानकर 7-8 दिनों तक सुबह-शाम (ख़ाली पेट) पीयें.इससे निश्चित लाभ मिलेगा.
सूतिका रोग में फ़ायदेमंद: सूतिका रोग यानि, प्रसव (डिलीवरी) के बाद महिलाओं में होने वाली समस्याएं, जैसे बदन का टूटना, बुखार, खांसी प्यास, शरीर में भारीपन, सूजन, शूल (तेज दर्द), अतिसार, इत्यादि में नीम की छाल का काढ़ा या इसके बीज के चूर्ण के सेवन की सलाह दी जाती है.
प्रसव के बाद रुके हुए दूषित या गंदे खून को बाहर निकालने के लिए एक चौथाई (1/4) कप नीम की छाल का काढ़ा एक हफ़्ता तक पिलाना चाहिए.
जानकारों के अनुसार, नीम का प्रयोग डिलीवरी से पहले और उसके बाद, दोनों ही अवस्था में जच्चा-बच्चा में उत्पन्न होने वाली समस्याओं में लाभकारी माना जाता है.जैसे प्रसव-पीड़ा या ‘लेबर पेन’ में 5 ग्राम नीम के बीज का चूर्ण आराम देता है.
इसी प्रकार, प्रसूता या जच्चा के कमरे में नीम की लकड़ी जलाने से जच्चा और बच्चा, दोनों विभिन्न रोगाणुओं से सुरक्षित और स्वस्थ रहते हैं.
गर्भ-निरोधक का काम करता है नीम
कई वैज्ञानिक भी अब मानने लगे हैं कि नीम का तेल एक अच्छा गर्भ-निरोधक है क्योंकि यह प्राकृतिक है और आसानी से उपलब्ध भी होता है.
एक हालिया अध्ययन में कहा गया है-
नीम के तेल में शुक्राणुओं (पुरुष में वीर्य में मौजूद कोशिका या स्पर्म) को निष्क्रिय करने की क्षमता होती है, जिससे वे योनि में ही रह जाते हैं, और गर्भाशय (उसमें मौजूद अंडों या एग) तक पहुंच नहीं का पाते हैं.अतः निषेचन क्रिया के अभाव में गर्भधारण नहीं हो पाता है.
इसमें आश्चर्यजनक बात यह है कि इससे मर्द और औरत, दोनों के प्रजनन अंगों को कोई नुकसान भी नहीं होता है.
दरअसल, आयुर्वेद में तो नीम का प्रयोग सदियों से होता आया है, और आज भी हो रहा है.मगर, जानकारी के अभाव में लोग तरह-तरह की दवाइयां और नुकसानदेह तरीक़े अपनाकर स्वास्थ्य बिगाड़ लेते हैं.
इसके विपरीत, नीम जहां सहजता से उपलब्ध होता है वहीं, इसके प्रयोग का तरीक़ा भी बहुत आसान है.
जानकारों के अनुसार, संभोग से पहले योनि में नीम का तेल लगाना चाहिए.इसके लिए रूई का एक टुकड़ा (फाहा) नीम के तेल में डुबोकर योनि में रख लें.5-7 मिनट बाद इसे निकाल दें और सहवास (सेक्स) करें.इससे गर्भ नहीं ठहरेगा.
आंखों के रोग में नीम के फ़ायदे
आंखों के दर्द, खुजली, लाली आदि के साथ मोतियाबिंद और रतौंधी जैसे नेत्र रोग की समस्याओं में भी नीम के प्रयोग की सलाह दी जाती है.
जानकारों के अनुसार, नीम के पत्तों के रस को पकाकर (अच्छी तरह पकाएं जिससे कि यह ख़ूब गाढ़ा हो जाए) ठंडा हो जाने पर आंखों में उसका अंजन (काजल, सुरमा जैसा प्रयोग) करने से पलकों की सूजन व इसके किनारे की लाली, खुजली और बरौनी झड़ने की समस्या में लाभ मिलता है.इससे आंखों की रौशनी भी बढ़ती है.
नीम के बीज के गूदा का चूर्ण (सुखाकर और कूटकर तैयार किया गया) आंखों में काजल की तरह लगाने से मोतियाबिंद में सुधार आता है.
इसी प्रकार, नीम के कच्चे फल का दूध आंखों में काजल के रूप में लगाने की सलाह दी जाती है.इससे रतौंधी में लाभ मिलता है.
नीम बालों में लाभकारी, रूसी और जूंओं को करता है ख़त्म
आजकल ख़राब जीवनशैली, अस्वास्थ्यकर भोजन और तेज रसायनयुक्त पदार्थों (जैसे साबुन, शैम्पू और लोशन) के इस्तेमाल से बालों और सिर की त्वचा संबंधी कई समस्याएं पैदा हो रही हैं.साथ ही, ज़रूरी पोषक तत्वों की कमी के कारण असमय ही बाल सफ़ेद होने लगते हैं, और झड़ने (हेयरफॉल) भी लगते हैं.इसलिए, हमें जहां अपने खानपान में सुधार करने की आवश्यकता है वहीं, बालों को सेहतमंद और खूबसूरत बनाए रखने के लिए प्राकृतिक उत्पादों को ही प्राथमिकता देना ज़रूरी है.
ऐसे में, नीम जो कि अनेक प्रकार की समस्याओं का समाधान है, ज़रूरी तत्वों के साथ फंगसरोधी और जीवाणुरोधी भी है, इसकी उपयोगिता को समझने और इसे अपनाने की ज़रूररत है.
विशेषज्ञों के अनुसार, नीम की पत्तियों, फल, बीज, चूर्ण और इसके तेल में वे सभी ज़रूरी तत्व मौजूद हैं, जो बालों के लिए आवश्यक माने जाते हैं.यह बालों को स्वस्थ, सुंदर और दीर्घजीवी बनाए रखता है.साथ ही, इसके प्रयोग से कोई दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) भी नहीं होता है.
आयुर्वेद के चिकित्सकों का कहना है कि नीम की पत्तियों को पानी के साथ पीसकर इसे बालों में उबटन या लेप (पेस्ट) की तरह लगाने से बाल काले, लंबे और घने होते हैं.
नीम की पत्तियों को पानी में अच्छी तरह उबालकर ठंडा होने के बाद उसके पानी (जो कि बिल्कुल हरा हो जाता है) से बालों को धोने से रूसी, जूं और लीख (जूं के अंडे) मर जाते हैं.इससे सिर की खुजली और जलन से राहत मिलती है, और बालों में ठंडक महसूस होती है.
इसी प्रकार, बालों की जड़ों के बीच फुन्सियां होने, उनसे पीव (मवाद) निकलने और खुजली होने, इत्यादि की स्थिति में नीम के काढ़े (नीम की पत्तियों के साथ उबला पानी) से धोकर उस पर नीम के बीज के चूर्ण को पानी के साथ मिलाकर उसका लेप या नीम का तेल लगाने से जल्दी फ़ायदा होता है.
त्वचा रोग में गुणकारी नीम का प्रयोग
नीम के पंचांग (नीम के पांच अंग, जैसे पत्तियां, फल, फूल, बीज और छाल) के एंटी-वायरस, जीवाणु और रोगाणु रोधी गुण त्वचा संबंधी रोगों में लाभकारी माने जाते हैं.इसके प्रयोग से खुजली, दाद, सोरायसिस, एक्जिमा, मौसमी फुंसियां, शीतपित्त तथा शारीरिक दुर्गन्ध आदि सभी ठीक हो जाते हैं.
नीम के काढ़े से चेहरा धोने और फिर उस पर नीम की पत्तियों के लेप लगाने से कील-मुंहासे, झाइयां, चकत्ते आदि ख़त्म हो जाते हैं.त्वचा कोशिकाएं स्वस्थ रहती हैं, झुर्रियां नहीं पड़ती हैं, और चेहरे पर निखार बना रहता है.
नीम की छाल का चूर्ण या इसकी पत्तियों का रस या फिर नीम की गोलियों का सेवन करने से त्वचा के संक्रमण दूर हो जाते हैं.
दाद, खुजली और एक्जिमा (सूखा हो या पीव वाला, दोनों) की समस्या में प्रभावित स्थान को नीम के काढ़े से धोने और उस पर नीम की सूखी पत्तियों की राख नीम के तेल में मिलाकर लगाने से जल्दी फ़ायदा होता है.
सिफलिस रोग में फ़ायदेमंद है नीम
सिफलिस (Syphilis) या उपदंश एक यौन संचारित संक्रमण (एसटीडी- सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिजीज) है, जिसमें जननांगों, मलाशय, होंठ, मुंह और त्वचा के छालों के इलाज के लिए जिन पेंसिलिन और एंटिबायोटिक का प्रयोग किया जाता है उनके सभी गुण नीम में पाए जाते हैं.इसके अलावा, नीम चूंकि प्राकृतिक है और इसका दुष्प्रभाव (साइड इफ़ेक्ट) भी नहीं होता है इसलिए इसे ज़्यादा अच्छा माना जाता है.
आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार, उपदंश की समस्या में नीम की पत्तियों, फूल और फल का (एकसाथ पीसकर तैयार किया हुआ) रस या इसकी छाल का काढ़ा पीना चाहिए.साथ ही, छालों या घाव को नीम की छाल के काढ़े से धोना और उस पर नीम का लेप लगाना चाहिए.इससे शीघ्र लाभ मिलता है.
गठिया/जोड़ों के दर्द में नीम के लाभ
नीम में सूजन को कम करने (एंटी-इंफ्लेमेटरी) और दर्द दूर करने वाले गुण पाए जाते हैं इसलिए गठिया (आमवात) और जोड़ों के दर्द की समस्या में इसके सेवन की सलाह दी जाती है.
जानकारों के अनुसार, नीम की छाल को पानी के साथ महीन पीसकर इसका लेप लगाने (पोतने) से जोड़ों की सूजन और दर्द में आराम मिलता है.
नीम की छाल के अर्क (तने में मौजूद तरल या रस) का सेवन लकवा या गठिया में लाभ देता है.इससे कई तरह के दूसरे दर्द भी दूर हो जाते हैं.
नीम की पत्तियां और फूलों को पानी में उबालकर ठंडा होने दें.फिर, छानकर पीयें.इससे सूजन और दर्द में राहत मिलती है.
नीम के बीज के तेल की मालिश करने से मांसपेशियों और जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है.
फाइलेरिया की बीमारी में फ़ायदेमंद है नीम
फाइलेरिया एक सूजन संबंधी बीमारी है.इसमें अंडकोष, हाथ और पैरों में सूजन की समस्या होती है.पैर ज़्यादा सूजकर हाथी के पैर जैसे मोटे हो जाते हैं इसलिए इसे हाथी पांव या फील पांव रोग भी कहते हैं.नीम का प्रयोग इसमें भी लाभकारी होता है.
विशेषज्ञों के अनुसार, नीम के सूजन रोधी (एंटी-इंफ्लेमेटरी) गुण मानव अंगों में सूजन को कम कर समस्या से राहत दिलाते हैं.
इसके लिए दवा तैयार करने की विधि: नीम की छाल को उबले हुए गोमूत्र (गोमूत्र का उपयोग करने से पहले उसे उबाल लेना ज़रूरी होता है) मिलाकर पीस लें.फिर, छानकर इसे सुबह-शाम शहद के साथ पीयें.जल्दी लाभ होगा.
नीम के अन्य उपयोग-लाभ
बहुपयोगी नीम का आयुर्वेद के ग्रंथों में वर्णन है.साथ ही, आधुनिक जगत में इन पर हुए शोध और चिकित्सकों के लगातार अभ्यास के फलस्वरूप इनके जिन अन्य विशिष्ट उपयोग का पता चलता है उन्हें भी जानना ज़रूरी है.
सिर दर्द में लाभकारी: सिर का सामान्य दर्द हो या आधासीसी (अधकपारी) का दर्द, जिसे अंग्रेजी में माइग्रेन कहा जाता है, इनमें नीम लाभकारी माना जाता है.
बताया जाता है कि नीम की सूखी पत्तियों के चूर्ण को नाक में डालने से सिर दर्द में आराम मिलता है.
नीम का तेल माथे पर लगाने से भी सिर दर्द में फ़ायदा होता है.
नकसीर में लाभ: नीम की पत्तियों का रस या इसका लेप या फिर नीम का तेल कनपटियों पर मलने या लगाने से नाक से खून निकलना बंद हो जाता है.
कान की बीमारी में उपयोगी: कान की खुजली, दर्द, कान बहने आदि की समस्या में नीम का रस या नीम का तेल कान में डालने से लाभ मिलता है.
नीम दांतों की समस्या में उपयोगी: नीम की दातुन करने से दांत अच्छी तरह साफ़ हो जाते हैं, मसूढ़े मजबूत बने रहते हैं, और मुंह से बदबू आने की समस्या भी दूर हो जाती है.
इससे मुंह में होने वाले हर प्रकार के रोग से बचाव होता है.
दांतों में दर्द, खून और मवाद आने, मुंह में छाले और मितली (जी मिचलाना) की समस्या में नीम की जड़ को कूटकर अच्छी तरह उबाल लें.फिर, गुनगुना होने पर इसके पानी से (20-30 सेकेंड मुंह में रखते हुए) कुल्ला करें.तत्काल आराम मिलेगा.
पेट के कीड़ों को मारता है नीम: नीम में कई ऐसे यौगिक पाए जाते हैं, जो पेट में परजीवियों को रूकने या उन्हें अपना ठिकाना नहीं बनाने देते हैं.
नीम की पत्तियों का रस या इसकी छाल का अर्क सुबह-शाम ख़ाली पेट पीने से पेट के सभी कीड़े मर जाते हैं, और पाचन क्रिया ठीक बनी रहती है.
नीम एसिडिटी में लाभकारी: नीम की पत्तियां, फल और फूलों का रस अपनी ठंडी तासीर के कारण पेट में ठंडक बनाए रखते हैं.ये (अधिक) प्यास लगने की समस्या से दूर रखते हैं और गैस भी नहीं बनने देते हैं.
नीम की छाल का अर्क पेट दर्द को दूर करता है.
उल्टी और दस्त की समस्या में नीम लाभकारी: नीम की सीक (पतले डंठल, तिनका) या पत्तियों का रस पीने से उल्टी बंद हो जाती है.इसकी नरम पत्तियों को भूनकर खाने से मुंह का स्वाद ठीक होता है, और भोजन से अरुचि दूर होती है.
नीम की छाल उबालकर उसका पानी पीने से दस्त ठीक होता है.
निबौरी (नीम का फल चाहे वह पकी हो या कच्ची) खाने से पेचिस की समस्या दूर होती है.
बवासीर की समस्या में फ़ायदेमंद है नीम: बवासीर ख़ूनी हो या बादी, इसमें नीम की पत्तियां, फल, फूल और इसकी छाल बहुत उपयोगी मानी जाती है.
सुबह-सवेरे यानि, शौच जाने से पहले नीम के फल और इसकी नरम पत्तियों को मिलाकर बनी गोलियां खाने से मल ढीला हो जाता है, जिससे इसे त्यागने में दिक्कत नहीं होती है (दबाव नहीं डालना पड़ता है), और खून निकलना भी बंद हो जाता है.
नीम के काढ़े से मस्सों को धोने की सलाह दी जाती है.इससे ये जल्दी ठीक होते हैं.
शौच क्रिया के बाद नीम का तेल गुदा (एनल) के भीतर लगाना चाहिए.इससे कुछ ही दिनों में बवासीर की परेशानी से छुटकारा मिल जाता है.
पीलिया रोग में असरदार है नीम: नीम की जड़, पत्तियों, फल, फूल और बीज को मिलाकर इसका चूर्ण खाने से शरीर में खून की कमी दूर होती है, और पीलिया ठीक हो जाता है.
यह भी कहा जाता है कि नीम की नरम पत्तियां पीसकर या इसकी जड़ की छाल, फूल और फल के चूर्ण को गोमूत्र के साथ लेने से पीलिया में जल्दी फ़ायदा होता है.
पथरी की बीमारी में नीम का लाभ: नीम की ताज़ा पत्तियों को पानी के साथ पीसकर या इसकी सूखी पत्तियों की राख पानी के साथ सुबह-शाम लेने से पथरी की समस्या में बहुत लाभ मिलता है.बताया जाता है कि नियमित रूप से इसका सेवन करने से कुछ ही दिनों में पथरी टूटकर निकल जाती है.
चेचक में नीम का फ़ायदा: नीम का रस या इसके चूर्ण का सेवन करने से चेचक (चिकन पॉक्स) से बचाव होता है.
चेचक से प्रभावित व्यक्ति को नीम का रस या अर्क पीने की सलाह दी जाती है.
नीम का लेप लगाने से चेचक के दानों की जलन शांत होती है और इसके दाग़ मिट जाते हैं.
कुष्ठ रोग में लाभकारी है नीम: कुष्ठ रोग (लेप्रसी) के इलाज के लिए नीम से अच्छी कोई दवा नहीं है.इसलिए, इसमें पूरी तरह नीममय हो जाने की सलाह दी जाती है.यानि, रोगी को सुबह दातुन से लेकर रात को सोने तक नीम को अपनी दिनचर्या में शामिल कर लेना चाहिए.
जानकारों के अनुसार, नीम की पत्तियों-फलों का रस, बीज का चूर्ण, और इसकी छाल का अर्क (अलग-अलग समय में) लंबे समय तक सेवन करना चाहिए.
रोगी को नीम के काढ़े से नहाना-धोना और नीम का लेप लगाना चाहिए.यहां तक कि बिस्तर पर नीम की पत्तियां बिछाकर सोना चाहिए.इससे बहुत लाभ मिलता है.
नीम के नुकसान
विशेषज्ञों का कहना है कि नीम की सामान्य ख़ुराक से कोई नुकसान नहीं है.वैसे भी आवश्यकता से अधिक मात्रा में कोई भी चीज़ विपरीत असर डालती है.इसलिए, ज़रूरी है कि इसका सेवन करने से पहले आयुर्वेद के किसी जानकार से परामर्श लिया जाए.ख़ासतौर से, बच्चों और दूध पिलाने (स्तनपान कराने) वाली महिलाओं को चिकित्सक की देखरेख में ही नीम का सेवन करना चाहिए.
कुछ शोधकों (रिसर्च करने वालों) व चिकित्सकों की राय में लंबे समय तक नीम का सेवन करने से कामशक्ति (सेक्स पावर) पर असर पड़ता है.मगर, इसका भी समाधान है.नीम के सेवन की लंबी अवधि के दौरान (बीच में) कुछ दिनों के लिए शिलाजीत या अश्वगंध का प्रयोग कर इस प्रकार के असर को ख़त्म किया जा सकता है.इससे सेक्स पावर कम होने के बजाय बढ़ जाएगी.
कुछ जानकार नीम के सेवन के दौरान भोजन में गाय के शुद्ध देसी घी के प्रयोग की सलाह देते हैं.
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