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शिक्षा एवं स्वास्थ्य

भगंदर (Fistula) के इलाज में माहिर है अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (AIIA), लोकप्रियता में सबसे आगे

फिस्टुला या भगंदर जैसी बड़ी और पीड़ादायी रोग में अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान की विशेषज्ञता धरातल पर दिखाई देती है.व्यवहार में, यहां से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने वालों के चेहरों पर दिखने वाले विश्वास और संतुष्टि के भाव इस रोग से पीड़ित देश-दुनिया के लोगों के लिए चिंता और परेशानी से मुक्ति दिलाने वाले हैं...

फिस्टुला या भगंदर एक दर्दनाक बीमारी है.ऐसा माना जाता है कि इसका इलाज करना कठिन है.कई बार तो इसका पता लगाना भी मुश्किल होता है.कुछ ही मामलों में (शुरुआत में) यह दवा से ठीक होता है, जबकि अधिकांश मामलों में सर्जरी की आवश्यकता होती है, जिसमें जोखिम है.सर्जरी के बाद की जटिलताएं (पोस्ट ऑपरेटिव प्रॉब्लम), जैसे मल असंयम (जिसमें मल अपने आप निकलता रहता है), दर्द, रक्तस्राव आदि जहां सर्जनों के लिए आज भी एक चुनौती है वहीं, ठीक होने के बाद इसके दोबारा होने की संभावना के कारण यह कुख्यात रोग है.एक पुरानी कहावत है कि “अगर किसी सर्जन को बदनाम करना है, तो उसके यहां भगंदर का मरीज भेज दो.” मगर अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान को इसमें महारत हासिल है.हजारों मरीज़ों का सफल इलाज कर इसने पूरी तरह ठीक किया है, उन्हें नया जीवन दिया है.

अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान के अंदर का दृश्य (बाएं), और सर्जन व प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता (दायें)

विषय स्वास्थ्य का हो या यूं कहिये कि बीमारी और उसके इलाज का मामला हो, तो कुछ मूल बातें अपने आप ही हमारे दिमाग़ में उभर आती हैं.सबसे बड़ी बात व्यवस्था की होती है.और सच्चाई यह है कि हमारे देश का कोई अस्पताल पूरा सरकारी हो या स्वायत्त (ऑटोनोमस) और सब्सिडी आधारित, इनके बारे में यह आम धारणा है कि यहां सुविधाओं की कमी होती है, और मरीज़ों की अच्छी देखभाल नहीं हो पाती है.रोगी अगर किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हो, तो वह स्वस्थ होकर घर लौटेगा या नहीं, यह उसकी क़िस्मत पर निर्भर करता है.मगर अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान इस धारणा को न केवल ग़लत साबित करता है, बल्कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी समझे जाने वाले देश के नामी-गिरामी अस्पतालों के सामने एक मिसाल पेश करता है.

एम्स (AIIMS) के तर्ज़ पर बने आईया (AIIA) यानि, ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ आयुर्वेद (अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान) एक सार्वजनिक चिकित्सा एवं अनुसंधान संस्थान है.इसकी ख़ासियत यह है कि यह बीमारी का इलाज आयुर्वेदिक पद्धति तथा प्राचीन और आधुनिक यंत्रों से करता है.यानि, भारत की हज़ारों साल पुरानी तकनीक से मॉडर्न हेल्थकेयर की मांग को पूरा करता है.इसे प्राचीनता और आधुनिकता का संगम कह सकते हैं.

कई दूसरी समस्याओं की तरह फिस्टुला या भगंदर जैसी बड़ी और पीड़ादायी रोग में इसकी विशेषज्ञता धरातल पर दिखाई देती है.व्यवहार में, यहां से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने वालों के चेहरों पर दिखने वाले विश्वास और संतुष्टि के भाव इस रोग से पीड़ित देश-दुनिया के लोगों के लिए चिंता और परेशानी से मुक्ति दिलाने वाले हैं.

कैसे होता है आईया में फिस्टुला का इलाज?

आईया (अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान) में भी दूसरे उपचार केन्द्रों की तरह भगंदर के इलाज की शुरुआत जांच से होती है.इसमें उच्च रक्तचाप, मधुमेह, तपेदिक आदि जैसे अन्य विकारों के संदर्भ में रोगी की नियमित जांच की जाती है.

इसके बाद, अगला क़दम होता है फिस्टुलस ट्रैक्ट या असामान्य मार्ग (जो शरीर में अंगों या गुहाओं को जोड़ता है) की पहचान और मूल्यांकन.इसमें भगंदर पथ की लंबाई, गहराई और शाखा पैटर्न के संबंध में जानकारी भी शामिल होती है.

उच्च गुदा भगंदर, आवर्तक भगंदर और कई खुलेपन और शाखाओं वाले पैटर्न वाले फिस्टुला जैसे जटिल मामलों में यूएसजी या फिस्टुलोग्राम को प्राथमिक आवश्यकता के रूप में समझा जाता है.

पथ का सटीक निर्धारण करने के बाद, रोग यदि प्रारंभिक अवस्था में है, तो दवाओं से उपचार किया जाता है.इनमें त्रिफला गुग्गुलु, अभ्यारिष्ट (एक हर्बल काढ़ा), आरोग्यवर्धिनी वटी (जो शरीर में तीनों दोषों- वात, पित्त और कफ को संतुलित रखती है, और पाचन तंत्र में सुधार लाती है), आदि का सेवन प्रमुख होता है.इस प्रक्रिया में डॉक्टर भगंदर से ग्रस्त हिस्से को त्रिफला क्वाथ से धोने और सिट्ज़ बाथ यानि, गर्म पानी से भरे टब में सुबह-शाम बैठने की सलाह देते हैं.

लेकिन फिस्टुला अगर ज़्यादा बढ़ा हुआ है, तो क्षार सूत्र-चिकित्सा शुरू की जाती है जो कि ब्लड लेस सर्जरी का एक प्रकार है.

क्या होती है क्षार सूत्र-चिकित्सा?

क्षार सूत्र चिकित्सा एक विशेष प्रकार की आयुर्वेदिक उपचार विधि है, जिससे बवासीर और भगंदर का इलाज किया जाता है.वास्तव में, यह एक आयुर्वेदिक शल्य (सर्जिकल) प्रक्रिया है, जिसमें सर्जरी औजारों के बजाय क्षार सूत्र से की जाती है.क्षार सूत्र की ख़ासियत यह है कि यह सर्जरी के औजार ही की तरह किसी अंग को काटने, हटाने की क्षमता रखता है.इसके ज़रिए ठीक हुआ बवासीर दोबारा नहीं होता है, और भगंदर जड़ से मिट जाता है.

क्षार सूत्र प्रक्रिया से इलाज कराने वाले मरीज़ को अस्पताल में भर्ती होने की ज़रूरत कम पड़ती है, अमूमन दूसरे या तीसरे दिन छुट्टी मिल जाती है, और वह थोड़ी सावधानी के साथ अपने रोज़मर्रा के काम आसानी से कर सकता है.

इसका कारण है.दरअसल, क्षार सूत्र प्रक्रिया एक आसान, सुरक्षित और छोटे पैमाने पर की जाने वाली शल्य क्रिया है, जिसमें कोई बड़ा ज़ख्म नहीं बनता है, और न ही खून निकलता है.यह ब्लड लेस सर्जरी का बेहतरीन उदाहरण है.

इस दौरान लोकल एनेस्थीसिया (कभी-कभी स्पाइनल या जनरल एनेस्थीसिया, ख़ासतौर से बवासीर में) का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि मरीज़ को बिना तकलीफ़ के क्षार सूत्र पिरोने और बांधने की प्रक्रिया पूरी हो सके.

इसके बाद, चिकित्सक के निर्देशानुसार मरीज़ को घाव की साफ़-सफ़ाई, सिंकाई (सिट्ज़ बाथ), दवाओं के सेवन आदि का ध्यान रखना होता है.क्षार सूत्र हर हफ़्ते बदला जाता है.यह कार्य ओपीडी के ड्रेसिंग रूम में होता है.

आईया के सर्जन व प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता बताते हैं-

अस्पताल में क्षार सूत्र बदलने का काम हर सातवें दिन किया जाता है जब तक कि फिस्टुला ख़त्म न हो जाए.इससे भगंदर पथ की लंबाई प्रति सप्ताह 0.5 से 1 सेंटीमीटर तक ठीक हो जाती है.हालांकि, कई कारक (जैसे डायबिटीज आदि की समस्या) फिस्टुला पथ की उपचार दर को प्रभावित करते हैं.इनका धयान रखना होता है.

ज्ञात हो कि शरीर के कई हिस्से ऐसे हैं जिन पर सर्जरी के औजार इस्तेमाल नहीं करने की बात कही गई है.एनस या गुदा (मलद्वार) भी ऐसा ही है.इस कारण एलोपैथी में फिस्टुला की सर्जरी को अनुचित ही कहा जायेगा.यही नहीं, 15-20 फ़ीसदी मरीज़ों में यहां एक बार ठीक होने के बाद समस्या फिर से उभर आती है, और दोबारा सर्जरी की ज़रूरत पड़ती है.मगर बार-बार सर्जरी की वज़ह से मरीज़ के एनल स्फिंक्टर (मलाशय के अंत में मांसपेशियों का एक समूह, जो गुदा के चारों ओर होता है) के क्षतिग्रस्त होने का ख़तरा बढ़ जाता है, जिससे उसके मल को रोकने की शक्ति कम हो जाती है.इसके अलावा, कई अन्य जटिलताएं भी देखने को मिलती हैं.ऐसे में, फिस्टुला के इलाज के लिए क्षार सूत्र चिकित्सा का ही विकल्प चुना जाना चाहिए.

क्षार सूत्र क्या होता है जानिए

क्षार का अर्थ होता है वानस्पत्य औषधियों की राख का नमक, जो पानी में घुल सके, और सूत्र का मतलब धागा होता है.इस प्रकार, जिस धागे (थ्रेड) या सूत्र पर क्षार (एल्कली) का लेप चढ़ा हो, उसे क्षार सूत्र कहते हैं.

प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता के अनुसार, पक्के (मजबूत) धागे पर क्षार की क़रीब 21 परतें चढ़ाकर तैयार किया गया सूत्र या धागा क्षार सूत्र कहलाता है.इस प्रक्रिया की पूरी जानकारी आयुर्वेद की ‘सुश्रुत संहिता’ में दी गई है.इन्हीं विशेषताओं के चलते महर्षि सुश्रुत को ‘फादर ऑफ़ सर्जरी’ या ‘शल्य चिकित्सा का जनक’ कहा जाता है.

क्षार सूत्र की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि यह शरीर के अंग को काटने, हटाने की क्षमता रखता है.यानि, एक आयुर्वेदिक मेडिकेटेड या औषधयुक्त धागा सर्जरी के औजार की तरह काम करता है.यही वज़ह है कि एनस (मलद्वार) जैसी जगहों पर सर्जरी में जहां एलोपैथी को अब तक पूरी क़ामयाबी नहीं मिल पाई है वहीं, आयुर्वेद पुराने ज़माने से ही बवासीर और भगंदर आदि रोगों को जड़ से मिटाता आ रहा है.

प्रोफ़ेसर महंता के मुताबिक़, “भगंदर और बवासीर के अलावा, क्षार सूत्र का प्रयोग अन्य समस्याओं में भी होता है.इसके इस्तेमाल से नाड़ीव्रण (साइनस), त्वचा के मस्से और कील, नाक के अंदरूनी मस्से, त्वचा पर उभार या गांठों को क्षार सूत्र से काटकर हटा दिया जाता है.”

अब तो इसमें और भी तरक्की हो रही है, इसे लोकप्रियता मिल रही है.सबसे बड़ी बात यह है कि इसे एलोपैथी ने भी अपना लिया है.प्लास्टिक सर्जरी की बात तो पुरानी हो चुकी है.

बहरहाल, क्षार सूत्र को तैयार करने में विशेषज्ञों की मेहनत के साथ समय भी काफ़ी लगता है.इसके अलावा, कई और चीज़ें और व्यवस्थागत बातें महत्वपूर्ण होती हैं जो कि क्षार सूत्र की क्षमता और सटीकता के लिए मायने रखती हैं.इन पर काम हो रहा है.केंद्रीय आयुर्वेदिक अनुसंधान केंद्र द्वारा आईआईटी, दिल्ली के सहयोग से क्षार सूत्र बनाने की ऑटोमेटिक मशीन तैयार की गई है, जिसकी मदद से कम वक़्त में ज़्यादा से ज़्यादा क्षार सूत्र तैयार किये जा सकते हैं.

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