एसिडिटी क्या है? एसिडिटी के लक्षण, कारण और इलाज के बारे में जानिए
एसिडिटी की समस्या को आयुर्वेद में 'अम्ल पित्त' कहते हैं.आयुर्वेद में इसके लिए कई औषधियां भी हैं मगर, कुछ घरेलू नुस्ख़े ही पर्याप्त हैं इसके शमन और निवारण के लिए.
एसिडिटी एक आम समस्या है, जिसे बड़ी आसानी से कुछ घरेलू उपायों द्वारा ठीक किया जा सकता है.लेकिन, लापरवाही और ग़लत तरीक़ों के इस्तेमाल से यह एक ऐसी बीमारी का रूप ले सकती है, जो हमारे विभिन्न महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित करने और उन्हें गंभीर क्षति पहुंचाने के उत्तरदायी होती है.
आज के दौर में शायद ही कोई ऐसा हो, जो एसिडिटी से परिचित न होगा.इसका कारण यह है कि अधिकांश लोग आमतौर पर कभी न कभी, किसी न किसी रूप में इससे प्रभावित तो होते ही रहते हैं, जाने अनजाने में कुछ लोग गंभीर रूप से इससे ग्रसित होते चले जाते हैं.इसीलिए इसका बाज़ार भी काफ़ी गर्म है.और दुष्प्रचार इतना है कि लंबे समय तक इसकी समस्या की गहनता से अपरिचित रहते हुए ग़लतियां करते ही जाते हैं, और अपना अच्छा भला स्वास्थ्य बिगाड़ लेते हैं.
ऐसे में, वास्तव में एसिडिटी है क्या, कब और कैसे यह आम समस्या से एक रोग का रूप ले लेती है; साथ ही, इसके लक्षण, कारण, उपचार और इससे बचाव के उपायों पर भी चर्चा आवश्यक हो जाती है.
एसिडिटी आख़िर है क्या?
एसिड यानि, अम्ल, तेज़ाब; यानि, वह रासायनिक पानी, जो नमक, शोरा आदि चीज़ों से बनता है.कुछ इसी प्रकार का एसिड या अम्ल शरीर में स्थित आमाशय (स्टॉमक, पेट) में भी बनता है, या यूं कहिए कि हमारी आमाशय ग्रंथियां या जठर ग्रंथियां (गेस्ट्रिक ग्लैंड) इसे बनाती हैं.
यह हाइड्रोक्लोरिक एसिड (जठराम्ल) के नाम से जाना जाता है.
यह बड़े काम की चीज़ है.दरअसल, यही वह रसायन है, जो हमारे पेट के अंदर के भोजन को तोड़ने और पचाने का काम करता है.मगर, विभिन्न कारणों से जब इसका उत्पादन आवशयकता से अधिक बढ़ जाता है, तो इस स्थिति को सामान्य भाषा में एसिडिटी (Acidity), जबकि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान (मॉडर्न मेडिकल साइंस) में गेस्ट्रोइसोफेजियल रिफ्लक्स डिजीज (GERD) कहते हैं.आयुर्वेद में इसे ‘अम्ल पित्त’ के नाम से जाना जाता है.
वैज्ञानिकों के अनुसार, यह ऐसी स्थिति (विकृति) है, जिसमें आमाशय एवं आहार नली के बीच (जोड़, जॉइंट पर) स्थित मांसपेशियां असामान्य रूप से खुलने लगती हैं (जबकि अपनी संकुचनशीलता के कारण कुछ खाने पीने के समय ही ये खुलती हैं और स्वयं बंद हो जाती हैं), जिससे एसिड तथा पेप्सिन (एन्जाइम, प्रोटीन) का मिश्रण भोजन नली में आ जाता है.इसे ‘बैकफ्लो ऑफ़ एसिड एंड स्टॉमक कंटेंट्स’ (अम्ल एवं आमाशयी द्रव का उल्टा बहाव) कहते हैं.इससे अपच, गेस्ट्रिक सूजन, सीने में जलन (हार्टबर्न), आहार या ग्रास नली (ईसोफेगस) में दर्द, पेट में अल्सर (छाले या घाव, जो पेट के अंदर छोटी आंत के शुरुआती स्थान या म्यूकल झिल्ली पर होते हैं) और जलन की समस्या होने लगती है.
जब यह समस्या बढ़ जाती है, तो हाइपर एसिडिटी कहलाती है.
ज्ञात हो कि पेट की अम्लता बढ़ते-बढ़ते रक्त में पहुंचकर रक्त की अम्लता (Blood Acidity) या अम्लरक्तता (Acidosis) के नाम से जानी जाती है.
रोग विज्ञान के अनुसार, रक्त की अम्लता ह्रदय की धमनियों (कोरोनरी आर्टरीज) में रक्त की आपूर्ति बाधित करती है, तो इससे रक्त के थक्के बनने लगते हैं, और और फिर ‘हार्ट अटैक’ या ‘दिल का दौरा’ पड़ता है.
एसिडिटी के लक्षण को पहचानिए
एसिडिटी में पेट में गैस तो बनती ही है, इसके अन्य लक्षण भी इस प्रकार हैं-
पेट, सीने और गले में जलन– कुछ खाते ही पेट, सीने और गले में जलन शुरू हो जाती है, जो रोग की स्थिति के अनुसार कम या अधिक समय (घंटों) तक बनी रहती है.
बेचैनी– इससे शरीर और मन, दोनों अशांत या बेचैन रहते हैं.घबराहट महसूस होती है.
डकार आना– इसमें बार-बार खट्टी डकार आती रहती है और कई बार अनपचा खाना (अनडाइजेस्टेड फ़ूड) गले तक आ जाता है.
जी मिचलाना– इसमें मिचलाहट के साथ-साथ उल्टी भी आती है.
मुंह का स्वाद बिगड़ना– मुंह में खट्टापन या कड़वाहट बनी रहती है.
क़ब्ज़ रहना– पेट में क़ब्ज़ की शिक़ायत बनी रहती है.
क़ब्ज़ दरअसल, वह स्थिति है, जिसमें मल बहुत कड़ा हो जाता है; तथा मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है, जिससे बवासीर और भगंदर जैसे गंभीर पीड़ादायक रोग घेर लेते हैं.
इनके अलावा, पेट का फूलना, गले में घरघराहट, पेट और सिर में दर्द, हिचकी आना और सांस में दुर्गन्ध (बदबू) एसिडिटी के लक्षण हैं.
किन कारणों से होती है एसिडिटी?
एसिडिटी की मुख्य वज़ह आधुनिक या ग़लत जीवनशैली है.यह समस्या तो पैदा करती ही है, इलाज के दौरान भी अगर आदतें नहीं सुधरती हैं, तो रोग ठीक नहीं हो पाता है.इसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है-
- ज़्यादा मिर्च-मसालेदार (स्पाइसी) और तैलीय भोजन पेट में एसिड के उत्पादन को बढ़ाता है.
- पहले का खाना हज़म हुए बिना फिर से खा लेने से अम्ल पित्त की वृद्धि होती है.
- ज़्यादा अम्लीय चीज़ें, जैसे मांसाहार, हाईएनर्जी ड्रिंक, फ़ूड व बर्गर, पिजा आदि खाने से समस्या बनती है.
- नींद पूरी न होना ऐसा कारण है, जिससे खाना हज़म नहीं होता है और क़ब्ज़ की समस्या खड़ी होती है.एसिडिटी दरअसल, क़ब्ज़ का ही एक रूप है.
- ज़्यादा देर तक ख़ाली पेट रहने से एसिड दुष्प्रभाव डालता है.
- गर्भवती महिलाओं में अम्ल प्रतिवाह (एसिड रिफ्लक्स) की समस्या बनती है.
- ज़्यादा नमकीन चीज़ें खाने अथवा भोजन में आवश्यकता से अधिक नमक मिलाकर खाने से एसिडिटी बढ़ती है.
- शराब, कॉफ़ी, चाय, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा, तंबाकू आदि नशीले पदार्थों का सेवन करने से अम्लीयता और क्षारीयता का संतुलन बिगड़ता है.
- ज़रूरत से ज़्यादा (भूख से अधिक) भोजन भी अम्लता में बढ़ोतरी करता है.
- अत्यधिक चिंतन या तनावयुक्त दिनचर्या भोजन के पचने में बाधा उत्पन्न करती है.इससे अम्ल पित्त बढ़ता है.
- खेतों में ख़तरनाक़ खाद और ज़हरीले कीटनाशकों के इस्तेमाल से पैदा हुआ अनाज भी ज़हरीले हो जाता है.फिर, यही ज़हर पेट में पहुंचकर रासायनिक समीकरण बिगाड़ देता है.
- दर्द मारक या ‘पेन किलर’ का उपयोग ‘अम्ल पित्त’ का कारण बनता है
एसिडिटी के इलाज के बारे में जानिए
एलोपैथी में डॉक्टर गैस्ट्रिक एसिडिटी के इलाज में एनएसएआईडी यानि, नॉन स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लामेटरी ड्रग (NSAID) जैसी कुछ दवाएं देते हैं.मगर, इसके कई दुष्प्रभाव (कभी-कभी घातक) हो सकते हैं.
अगर कोई पहले से दूसरी दवाएं (किसी अन्य बीमारी में) ले रहा है, तो एनएसएआईडी उन दवाओं का असर ख़त्म कर सकती/देती है.
विशेषज्ञों के अनुसार, अलग-अलग एनएसएआईडी दरअसल, सूजन के कारकों (फैक्टर) को रोकने और समस्या से राहत दिलाने के लिए प्रतिरक्षा मार्ग में दर्द निवारक के रूप में सिलसिलेवार काम करती हैं.
यह एक या दोनों साइक्लोऑक्सीजीनेज एंजाइम को रोकते हुए कार्य करती हैं, जिससे प्रोस्टाग्लेंडिस (जो सूजन के लक्षणों, ख़ासतौर से दर्द को बढ़ाता है) का उत्पादन बंद हो/रुक जाता है.
लेकिन, समस्या यह है कि ये ही एसिडिटी का कारण भी होती हैं.यानि, शुरुआत में तो ये दवाइयां फ़ायदा पहुंचाती हैं मगर, आगे इनके सेवन से एसिडिटी पैदा होती है, या बढ़ जाती है.इसीलिए, साथ में गैस को मारने (रोकने) वाली अतिरिक्त दवाएं भी दी जाती हैं.
कमाल है.राहत देने वाला दर्द भी देता है.इसी को एलोपैथी कहते हैं.
इसके विपरीत, भारत की पारंपरिक चिकित्सा और दुनिया की स्वास्थ्य सेवा की सबसे प्राचीन प्रणाली आयुर्वेद में निवारक और उपचारात्मक, दोनों प्रकार की विधियों का प्रयोग होता है.
इसका मानना है शरीर में किसी दोष (आयुर्वेद में तीन दोषों- वात, पित्त और कफ़ की चर्चा है) के असंतुलन से उस दोष से संबंधित लक्षण उत्पन्न होते हैं.इसके कई कारक हो सकते हैं, जैसे दूषित भोजन, शारीरिक या मानसिक तनाव, रसायन या रोगाणु, आदि.इन्हीं को ध्यान में रखते हुए उपचार होना चाहिए.यानि, आयुर्वेद समस्या के मूल पर ही प्रहार (समस्या को दबाने नहीं, बल्कि उसे जड़ से नष्ट करने का काम) करता है.
एसिडिटी के उपचार में भी आयुर्वेदिक दवाइयां बड़ी कारगर हैं.साथ ही, इनका दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट) भी नहीं है.
आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार, लघु सुतशेखर रस (ख़ाली पेट), अविपत्तिकर चूर्ण, अभ्यारिष्ट, कामदुधा रस, मौक्तिक कामदुधा, अम्लपित्तान्तक रस, अग्नितुण्डी वटी, लसुनादी वटी और फलत्रिकादी क्वाथचूर्ण (काढ़ा) आदि दवाइयों में से ज़रूरत के हिसाब से लेने से (आयुर्वेद चिकित्सक के परामर्श अनुसार, क्योंकि वही रोग की स्थिति को देखते हुए आवश्यक दवा, मात्रा और उसके प्रयोग की सही समयावधि बता सकता है) इस बीमारी से पूरी तरह छुटकारा मिल जाता है.
एसिडिटी से राहत के लिए घरेलू नुस्ख़े
केला का प्रयोग– एसिडिटी की समस्या में नियमित रूप से केला खाना चाहिए क्योंकि यह पेट में एसिड बनने से रोकता है.
केले में आवश्यक पोटैशियम और फाइबर की भरपूर मात्रा तो होती ही है, इसमें कई ऐसे तत्व भी होते हैं, जो पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं.
दूध (ठंडे दूध) का प्रयोग– दूध में कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है, जो एसिड का संतुलन बनाए रखता है.यह आंतों को शांत रखता है, जिससे जलन की समस्या दूर होती है.इसीलिए, एसिडिटी की स्थिति में ठंडे दूध में मिश्री (चीनी या कोई अन्य मीठा पाउडर नहीं) मिलाकर पीने की सलाह दी जाती है.
गिलोय का सेवन– गिलोय एसिडिटी को शांत करने में बहुत कारगर औषधि है.इसकी जड़ के टुकड़े (पांच या सात) पानी में उबालकर (गुनगुना हो जाने पर) पीने से जल्दी लाभ मिलता है.
यह भी बताया गिलोय के एक चम्मच के बराबर रस गुड़ और मिश्री (जमाई हुई चीनी, शर्करा की छोटी ढेली) के साथ मिलाकर, या इसके दो चम्मच के बराबर काढ़े या चटनी में दो चम्मच शहद मिलाकर पीने से एसिडिटी की समस्या ठीक हो जाती है.
गिलोय दरअसल, कभी न सूखने वाली (अमृता, अमृतवल्ली) एक बड़ी लता होती है, जिसके पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं.आयुर्वेद में इसे गुडूची, छिन्नरुहा, चक्रांगी आदि भी कहा गया है.इसकी जड़, तना और पत्तियों का उपयोग हजारों सालों से पारंपरिक चिकित्सा में किया जा रहा है.
एलोवेरा– घृत कुमारी या एलोवेरा, जिसे क्वारगंदल या ग्वारपाठा के नाम से भी जाना जाता है, अपने विभिन्न गुणों के साथ-साथ पेट के दर्द व गैस दूर करने और मल को ढीला करने में लाभकारी माना जाता है.
एसिडिटी में इसका रस या जूस पीने की सलाह दी जाती है.
जीरा का प्रयोग– जीरा, जिसका प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता है, एसिडिटी में बड़ा लाभकारी बताया जाता है.साथ ही, यह कफ़, पित्त की बीमारी तथा भूख की कमी को दूर करता है.
आयुर्वेद के जानकार एसिडिटी में जीरा और अजवाइन का मिश्रण या जीरा और धनिया की लेई (अवलेह, पेस्ट) बनाकर इसका सेवन करने की सलाह देते हैं.
सौंफ का प्रयोग– सौंफ खाने से एसिडिटी में आराम मिलता है.इसीलिए आज भी भारत के भोजनालयों में खाने के बाद ग्राहकों को सौंफ भेंट करने (देने) की परंपरा है.
दालचीनी का सेवन– जानकारी के अभाव में लोग दालचीनी का प्रयोग केवल मसाले के रूप में करते हैं लेकिन, आयुर्वेद में इसे महत्वपूर्ण औषधि बताया गया है.यह प्राकृतिक रूप से अम्ल प्रतिरोधक (एंटी-एसिड) होता है, जो पाचन शक्ति को बढाकर अतिरिक्त अम्ल नहीं बनने देता है.
तुलसी का सेवन– भारत में तुलसी का पौधा पूजनीय तो है ही, आयुर्वेद में इसे बहुत ही महत्वपूर्ण औषधीय गुणों वाला बताया गया है.इसके प्रयोग के अनेक लाभ हैं.
ख़ासतौर से, एसिडिटी के इलाज में वैद्य तुलसी की पत्तियों को उबालकर और फिर ठंडा कर उसमें चीनी मिलाकर पीने की सलाह देते हैं.
गुलकंद का प्रयोग– हाइपर एसिडिटी में गुलकंद के सेवन की सलाह दी जाती है.बताया जाता है कि पेट में जाकर यह ठंडक प्रदान करता है, जिससे एसिडिटी से तत्काल राहत मिलती है.
इनके अलावा, गुड़, नारियल का पानी, आंवला का मिश्रण (आंवला, सौंफ और गुलाब के फूलों का चूर्ण), जायफल और सोंठ का मिश्रण, इलायची, पुदीना या पुदीना के पत्ते, अदरक, इत्यादि के प्रयोग एसिडिटी के इलाज में लाभकारी बताये जाते हैं.
एसिडिटी से बचने के उपाय जानिए
कहते हैं कि समस्या से बचाव ही समस्या का बेहतर समाधान होता है.जब हम ऐसा कोई काम ही नहीं करेंगें, जिससे हमें कोई दिक्कत हो सकती है, तो परिणाम भी अच्छे ही होंगें, और हम चिंतामुक्त और सुखमय जीवन जीते रहेंगें.ऐसी ही एसिडिटी की समस्या भी है, जिसके लिए कुछ बातों का सदा ध्यान रखें, तो कभी भी यह हमारे लिए मुसीबत की वज़ह नहीं बनेगी.
वे कुछ ख़ास बातें, जो एसिडिटी को हमसे दूर रखने में मदद कर सकती हैं, इस प्रकार हैं-
- ज़्यादा तेल-युक्त और मसालेदार भोजन से दूर रहें.जहां तक संभव हो, सादे भोजन को प्राथमिकता दें.
- जंकफ़ूड और फ्रिज में रखे भोज्य पदार्थ के सेवन से बचें.हमेशा ताज़ा खाना ही खाएं.
- चाय, कॉफ़ी और सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन कम करें.सॉफ्ट ड्रिंक के बजाय दही, छाछ और लस्सी आदि को तरज़ीह दें.
- कभी भी एक बार में ज़्यादा खाना न खाएं.थोड़ा-थोड़ा अलग-अलग समय में खाने की आदत डालें.
- खाना ख़ूब चबाकर खाएं.
- भूख लगने पर ही खाएं.
- भोजन के समय जब कभी पेट भरा हुआ महसूस हो और खाने की इच्छा न हो, तो फल-मूल या जूस, या फिर चने के सत्तू का घोल ले लें.
- रात को सोने से 2 घंटे पहले खाना खा लें.समय का यह अंतर पाचन और अच्छी नींद के लिए मुफ़ीद माना जाता है.
- तोरी, लौकी, टिंडे, परवल और कद्दू आदि सब्जियों को प्रमुखता दें.ये बड़ी आसानी से पचती हैं, और उच्च अम्ल पित्त (हाइपर एसिडिटी) से बचाती भी हैं.
- फलों में पपीता, मौसमी या मौसंबी, अनार और अनानास आदि को अपने भोज्य पदार्थों की सूची में शामिल करें.इसके अतिरिक्त नारियल और नारियल के पानी का भरपूर सेवन करें.
- टमाटर हालांकि खट्टा होता है मगर, इससे शरीर में क्षार (अल्कलाइन) की मात्रा बढ़ती है.इसके नियमित सेवन से एसिडिटी की कभी समस्या खड़ी नहीं होती.
- मुनक्का, कच्चा आंवला और आंवले का मुरब्बा पेट के लिए अच्छा माना जाता है.इनका सेवन करें.
- प्यास को न दबाएं, पानी भरपूर मात्रा में पीते रहें.
- अपने शरीर को सक्रिय रखें और योग तथा प्राणायाम करें.
और चलते चलते एक और नुस्खा भी बता देना ज़रूरी लगता है, जिसे काफ़ी लोगों ने आजमाया हुआ है.बताते हैं कि एसिडिटी की समस्या में इससे जल्दी राहत मिलती है.
थोड़ा पानी, दूध और खांड (कच्ची या देसी चीनी) के साथ गुलकंद या गुलाब की पंखुड़ियों का रस मिला लें.इस मिश्रण (कप के बराबर) को सुबह-शाम पियें, अच्छा असर दिखेगा.
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