शिक्षा एवं स्वास्थ्य
अंगदान से बड़ा कोई दान नहीं, यह कर डालिए
अंगदान से बड़ा कोई पुन्य का काम नहीं होता.इसकी परंपरा सतयुग से ही चली आ रही है.अंगदान से किसी के जीवन की रक्षा होती है, या उसे नया जीवन मिलता है, जो हमारी मुक्ति में भी सहायक होता है.साथ ही, कोई हमारे अंगों का उपयोग करता है, तो किसी न किसी रूप में हम जीवित ही रहते हैं.
दान का मतलब होता है ‘देना’ या देने की क्रिया.इसके कई रूप हैं जैसे अर्थ (धन) दान, धर्म दान, विद्या दान, कन्या दान, अभय दान, क्षमा दान, अंग दान और देह दान आदि.इस सब में अंग दान और देह दान को सर्वोपरि माना गया है.
किसी को अंग दान देना, उसके प्रति सबसे बड़ा उपकार है.इससे, देने वाले को जहां पुन्य-लाभ और परम आनन्द की प्राप्ति होती है, मुक्ति का मार्ग सरल हो जाता है वहीं, लेने वाले को जीवन दान मिलता है और उसके तथा उसके परिवार की खुशियां लौट आती हैं.
ज़रा सोचिए, कोई हमारी आंखों से देखे, किसी के सीने में हमारा दिल धड़के, तो कितनी उत्तम बात है.दुनिया में क्या इससे भी बड़ी संतुष्टि और आनन्द की बात कोई और हो सकती है?
वास्तव में, अंगदान सर्वश्रेष्ठ दान है, इससे लोक और परलोक, दोनों संवर जाते हैं.
सनातन हिन्दू धर्म-संस्कृति से मिलती है अंगदान की प्रेरणा
सनातन हिन्दू धर्मशास्त्रों में दान का बहुत महत्त्व है.यहां अंगदान तथा देह दान को महादान बताया गया है.ऐसे वर्णन मिलते हैं कि सनातन हिन्दु संस्कृति में आदिकाल से ही इसकी परंपरा रही है, और अंगदान या देहदान करने वालों के सामने देवता भी छोटे पड़ गए.ऐसे मानव महानता के शिखर को छूकर चौरासी योनि से मुक्ति पा गए, या मोक्ष को प्राप्त हुए.
मगर, सैकड़ों सालों की ग़ुलामी, विदेशी संस्कृतियों के प्रभाव, षड्यंत्र और दुष्प्रचार के कारण कुछ लोगों की ऐसी धारणा बन गई है कि दान किया गया अंग अगले जन्म में नहीं मिलेगा, या पूरे अंगों के बिना दाह-संस्कार भी अधूरा ही होगा, या उचित रूप में संपन्न नहीं हो पायेगा.
दरअसल, ये लोग या तो अज्ञानी हैं, मूर्ख हैं, या भटके हुए.ये शास्त्रों का महत्त्व भी नहीं समझते.
धर्मशास्त्रों के अध्ययन से पता चलता है कि प्राचीन काल में भारत भूमि पर कई महादानी हुए हैं.अंगदान या देहदान करने वालों को सम्मान मिलता था और भगवान प्रसन्न होते थे.
महाप्रतापी महर्षि दधीचि के देहदान की कथा से पूरा साहित्य जगत परिचित है.इसमें कहा गया है कि देवताओं को आतंकित करने वाले वृतासुर नामक राक्षस का वध करने के लिए दधीचि की हड्डियों की ज़रूरत थी, ताकि विश्वकर्माजी उनसे वज्र तैयार कर सकें.
जब दधीचि को यह पता चला, तो कल्याण के लिए उन्होंने जीते जी अपना शरीर त्यागकर देह दान कर दिया.अब सवाल उठता है कि कल्याण के लिए जब एक ऋषि-महर्षि जीते जी अपनी देह का दान कर सकते हैं, तो बीमार और लाचार लोगों के प्राणों की रक्षा करने करने लिए हम मरने के बाद अपने अंगों का दान क्यों नहीं कर सकते?
इसी प्रकार, राजा शिवि की कथा भी कम प्रेरक नहीं है.इसमें कहा गया है कि उन्होंने एक कबूतर की जान बचाने के लिए भूख से व्याकुल गिद्ध को अपना जीवित शरीर परोस दिया था, ताकि उसका पेट भर सके.
दरअसल, यहां कबूतर के रूप में सूर्य और गिद्ध के रूप में देवताओं के राजा इंद्र थे, जो राजा शिवि की परीक्षा ले रहे थे.मगर, राजा शिवि का त्याग देखकर वे अभिभूत हो उठे और उनका गुणगान करने लगे.
राजा ययाति को उनके पुत्र पुरू ने अपना यौवन (जवानी) दान कर दिया था.फिर, ययाति सन्यासी जीवन बिताने वन को रवाना होने लगे, तब उन्होंने वह यौवन पुरू को लौटा दिया था.
सनातन हिन्दू शास्त्र ऐसे वृतांतों-कथाओं से भरे पड़े हैं, जो त्याग और दान की चरम सीमा को दर्शाते हैं.घृणा के बजाय प्रेम पर ज़ोर देते हैं, सेवा को परम धर्म बताते हैं और स्वहित से ऊपर उठकर लोकहित के लिए कार्य करने की शिक्षा देते हैं.यानि, मानव को असली मानव बनाते हैं.
ऐसे में, दधीचि, शिवि और पुरू के वंशजों को अपने ही शास्त्रों में झांकने की, इसे समझने की आवश्यकता है.इनके प्रचार-प्रसार और जनजागरण की आवशयकता है.फिर, वो दिन दूर नहीं जब वर्तमान भारत में भी अंगदान-देहदान दुनिया के लिए मिसाल बन जाएगा.
अंगदान और देहदान अलग-अलग हैं
अंगदान और देहदान, दोनों अलग-अलग हैं.इन्हें जीवित अंगदान और मृतक अंगदान भी कहते हैं.
चिकित्सा विज्ञान के जानकारों के अनुसार, जीवित अंगदान के अंतर्गत कोई व्यक्ति जीते जी अपनी किडनी और लीवर का एक हिस्सा और कुछ अन्य अंग दान कर सकता है.दूसरी तरफ़, देहदान, जिसे शवदान भी कहते हैं, के अंतर्गत दाता (Donor) की मृत्यु के बाद उसके स्वस्थ अंगों को ज़रूरतमंद व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित (Transplant) किया जाता है.
देहदान से तात्पर्य पूरे शरीर (सभी अंगों) का दान है.इसमें दान दाता के मरने के बाद, उसके शरीर के क़ामयाब अंगों के उपयोग के अलावा, उसका शरीर मेडिकल की पढ़ाई और अनुसंधान (Research) के काम भी आता है.
ब्रेन डेड की स्थिति में व्यक्ति के परिजनों की अनुमति से अंगदान का निर्णय लिया जाता है.साल 2020 में गुजरात के सूरत के रहने वाले ढाई साल के एक ब्रेन डेड बच्चे के अंगदान से सात बच्चों को नया जीवन मिला.
अंगदान पर भारत में क़ानूनी स्थिति
भारत में अंगदान और प्रत्यारोपण से जुड़ा कानून मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (THOA) पहली बार 1994 में अस्तित्व में आया था.इसका मक़सद अंगदान और अंग प्रत्यरोपण से संबंधित नीतियों का निर्धारण करना था.साथ ही, यह सुनिश्चित करना था कि मानव अंगों का व्यवसायीकरण या तस्करी न हो सके.इसके बाद, 2011 में इसमें संशोधन और 2014 में कुछ और नियम जोड़कर इसे कारगर बनाने का प्रयास हुआ.
जानकारों के मुताबिक़, इसमें अभी और संशोधन-सुधार की गुंजाइश है, ताकि व्यवस्था में मजबूती के साथ-साथ पारदर्शिता भी हो.
मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम के अनुसार, मानव अंगों की ख़रीद-फ़रोख्त ग़ैर-क़ानूनी और अवैध है.यह अपराध की श्रेणी में आता है.मगर, यदि कोई व्यक्ति प्लाज्मा, स्पर्म या एग सेल्स बेचता या खरीदता है, तो इसे अवैध नहीं माना गया है. कौन कर सकता है अंगदान?
अंगदान को लेकर लोगों में कई तरह की भ्रांतियां है, जो इस नेक काम में बाधा बनती हैं और वह हासिल नहीं होने देती हैं, जो लक्षित और अनिवार्य है.दरअसल, लोगों की सोच में बदलाव लाए बगैर यह मुमकिन भी नहीं है.
सबसे पहले उम्र की बात आती है.ऐसे में, यह स्पष्ट होना चाहिए कि उम्र सिर्फ़ एक नंबर है, जबकि अंगों का स्वस्थ होना और चिकित्सा की शर्तें पूरी करना मायने रखता है.
हालांकि अंगदान की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष है लेकिन, विशेष परिस्थितियों में नाबालिग के मां-बाप की अनुमति से यह संभव है.इसी प्रकार, बुजुर्ग भी अच्छे अंगदाता बन सकते हैं अगर, वे चिकित्सा मानदंडों को पूरा करते हैं.
पहले किडनी परिवार के सदस्य ही दान कर सकते थे लेकिन, मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम में संशोधन के बाद अब दूर के रिश्तेदार, दोस्त या अज़नबी भी यह नेक काम कर सकते हैं.
कुछ लोगों को वहम है कि अंगदान में ग्राही यानि प्राप्तकर्ता को दानकर्ता के बारे में जानकारी होनी ज़रूरी है लेकिन, यह सच नहीं है.सच्चाई यह है कि जिस तरह रोगी की गोपनीयता (Privacy) बनाए रखना डॉक्टर और अस्पताल का कर्तव्य बनता है, उसी तरह दानकर्ता के बारे में जानकारी भी उसकी सहमति से ही प्राप्तकर्ता को दी जा सकती है.
कोई बीमार यानि किसी बीमारी से ग्रसित व्यक्ति भी अंगदान कर सकता है यदि, दान दिया जाने वाला अंग स्वस्थ हो.
यह धारणा भी ग़लत है कि अंगदान करने से शारीरिक ढांचा बिगड़ जाता है.ऐसा नहीं होता क्योंकि यह प्रक्रिया भी नियमित सर्जरी की तरह ही होती है, और इसे कुछ इस तरह अंजाम दिया जाता है कि बाद में निशान भी मिट जाए.
अंगों की भारी कमी, इंतज़ार में लाखों ज़रूरतमंद गंवा देते हैं जान
भारत में सालाना लाखों लोग अंग प्रत्यारोपण के इंतज़ार में दम तोड़ देते हैं क्योंकि उन्हें समय पर ज़रूरी अंग नहीं मिल पाता.यहां ज़रूरत और दान किए गए अंगों के बीच एक बड़ा अंतराल है.
एम्स (AIIMS), नई दिल्ली के 2019 के आंकड़ों पर नज़र डालें तो यहां डेढ़-दो लाख लोगों को सालाना किडनी प्रत्यारोपण की ज़रूरत होती है मगर, यह सिर्फ़ 4 फ़ीसदी यानि लगभग 8 हज़ार लोगों को मिल पाते हैं.इसी प्रकार, सालाना लीवर के प्रत्यारोपण के लिए क़तार में बैठे 80 हज़ार रोगियों में से सिर्फ़ 1 हज़ार 8 सौ (1800) रोगियों में ही प्रत्यारोपण हो पाता है.
जहां क़रीब 1 लाख लोगों में प्रति वर्ष कॉनियल या आई ट्रांसप्लांट करने की ज़रूरत होती है वहां यह क़रीब आधे लोगों को ही नसीब हो पाता है.यहां तक कि दिल के मरीज़ों के लिए, 10 हज़ार ज़रूरी ह्रदय प्रत्यारोपण के स्थान पर केवल 200 प्रत्यारोपण ही हो पाते हैं.
दरअसल, अंगों की इस भारी कमी का कारण भारत में अंगदान के प्रति लोगों में उदासीनता है.हिन्दुओं में कुछ जागरूकता बढ़ी है, और वे आगे भी आ रहें हैं (जैसा कि आंकड़े बताते हैं) लेकिन, मुस्लिम क़ौम नदारद है.इसे मज़हबी सोच कहिए या सातवीं सदी की विचारधारा, इस नेक काम को आगे बढ़ने से रोकती है.
अगर, कोई मुस्लिम अंगदान के लिए आगे आता है, तो उसके खिलाफ़ फ़तवे जारी हो जाते हैं और उसे क़ौम से निकाल देने की धमकियां मिलने लगती है.
आंकड़े बताते हैं कि भारत में सिर्फ़ 3 फ़ीसदी ही पंजीकृत दानकर्ता (Registered Donor) हैं.यहां प्रति दस लाख जनसंख्या पर केवल 0.65 (यानि 1 भी नहीं) लोग ही अंगदान करते हैं, जबकि इसकी तुलना में स्पेन में 36 लोग, क्रोएशिया में 35 और अमेरिका में 27 लोग अंगदान करते हैं.
कैसे करते हैं अंगदान, जानिए प्रक्रिया
अंगदान जैसे सर्वोत्तम और अति सराहनीय कार्य को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने ‘राष्ट्रीय अंग प्रत्यारोपण कार्यक्रम’ लागू किया है.इसके लिए नई दिल्ली में राष्ट्रीय अंग एवं उत्तक प्रत्यारोपण संगठन (National Organ and Tissue Transplant Organisation -NOTTO) और पूरे भारत में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों पांच अन्य क्षेत्रीय अंग एवं प्रत्यारोपण संगठन (Regional Organ and Tissue Transplant Organisation -ROTTO और State Organ and Tissue Transplant Organisation- SOTTO)स्थापित किए गए हैं.अंगदान की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए यहां ख़ुद को पंजीकृत कराना होता है, जो कि बहुत आसान है.
पंजीकरण के लिए हमें संकल्प फॉर्म (Pledge Form) भरकर अपनी स्वीकृति देनी होती है, जो कि ऑनलाइन और ऑफ़लाइन, दोनों तरीक़े से हो सकता है.
ऑनलाइन प्रक्रिया के तहत http://notto.gov.in वेब पोर्टल पर जाकर डोनर रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरकर सबमिट करना होता है.इसके बाद संस्थान हमारे घर के पते पर डाक द्वारा डोनर कार्ड भेज देता है, जिस पर यूनिक गवर्नमेंट रजिस्ट्रेशन नंबर दर्ज़ होता है.समय आने पर यही कार्ड स्वास्थ्य कर्मचारी या डॉक्टर को दिखाने से अंगदान होता है.
ऑफ़लाइन प्रक्रिया के तहत http://notto.gov.in वेब पोर्टल से फॉर्म-7 डाउनलोड कर, उसे भरकर संस्थान के पते पर डाक से भेजना होता है.फिर, संस्थान हमें वही डोनर कार्ड भेज देता है, जिसके आधार पर अंगदान होता है.
अंगदान दिवस
अंगदान दिवस मनाने का उद्देश्य जन-जन तक अंगदान की जानकारी पहुंचाने और उन्हें प्रेरित करना है.जब लोग इसके लिए आगे आएंगें और अंगदान करेंगें, तो प्रत्यारोपण के लिए ज़रूरी अंगों की कमी दूर होगी.ऐसा होने से घायलों और गंभीर रूप से बीमार लोगों को अपने बेकार हो चुके अंगों को बदलवाने के लिए लंबा इंतज़ार नहीं करना होगा, और उनकी जान बचाई जा सकेगी.
इस प्रकार, मानवता की रक्षा और कल्याण के लिए ही प्रति वर्ष 13 अगस्त को विश्व अंगदान दिवस मनाया जाता है.इसके अलावा, भारत का भी अपना अंगदान दिवस है, जिसे ‘राष्ट्रीय अंगदान दिवस’ कहते हैं.
साल 2010 में शुरू हुए राष्ट्रीय अंगदान दिवस को हर साल 27 नवंबर को मनाया जाता है.इस दिन जगह-जगह होने वाले कार्यक्रमों में चिकित्सा विज्ञान से जुड़े लोगों के अलावा विभिन्न गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित होकर जनता के नाम संदेश देते, जिससे प्रेरणा मिलती है.
अंगदान-प्रत्यारोपण से जुडी कुछ ख़ास बातें
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के इतिहास में देखें तो 1953 में पेरिस में जीन हेमबर्गर द्वारा अस्थाई रूप से सफल मानव किडनी का पहला प्रत्यारोपण हुआ था, जिसे एक महिला द्वारा अपने 16 साल के बेटे को दान किया गया था.
पहला दीर्घकालिक सफल किडनी ट्रांसप्लांट 1954 में, अमरीकी डॉक्टर जोसेफ़ मरे ने किया था, जिन्हें साल 1990 में ‘फीजियोलॉजी और मेडिसिन के लिए नोबेल पुरस्कार’ मिला था.ज्ञात हो कि इस प्रत्यारोपण में, दानकर्ता थे रोनाल्ड ली हेरिक, जिन्होंने अपने जुड़वां भाई रिचर्ड हेरिक को किडनी दान की थी.
भारत में पहला सफल लीवर ट्रांसप्लांट साल 1998 में दिल्ली में हुआ था.इसमें दिल्ली निवासी संजय कंदासामी नामक 21 वर्षीय युवक को उनके पिता ने लीवर दान किया था.
राजस्थान परिवहन एवं सड़क सुरक्षा विभाग ने अंगदान के लिए जागरूकता बढ़ाने का एक नायाब तरीक़ा अपनाया है.इसमें यह अंगदान की सहमति देने वालों के ड्राइविंग लाइसेंस पर ‘दिल की तस्वीर’ के साथ ‘ऑर्गन डोनर’ शब्द अंकित करता है, जिससे वाहन चालक की मृत्यु के बाद उसकी पहचान कर, उसके परिजनों की सहमति से अंगदान की प्रक्रिया आसान हो जाती है.
एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सड़क दुर्घटना में मरने वालों में पांच फ़ीसदी लोग भी अगर अंगदान करें, तो बाक़ी किसी जीवित या मृत व्यक्ति को अंगदान करने की ज़रूरत नहीं होगी.
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