शिक्षा एवं स्वास्थ्य
नुकसानदेह है ईयरबड का इस्तेमाल, यह आपको बहरा बना सकता है
दुनियाभर में आज ईयरबड का इस्तेमाल हो रहा है.जाने-अनजाने में लोग इसे अपनी आदत में शुमार कर रहे हैं, जबकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इससे कान की कई तरह की समस्याएं पैदा हो सकती हैं.यह कान के परदे को क्षतिग्रस्त कर हमें बहरा भी बना सकता है.
ईयरबड आजकल बहुत मशहूर है.शायद ही कोई ऐसा हो, जो इसके बारे में नहीं जानता.दरअसल, पश्चिमी तौर-तरीक़ों की नक़ल करने व आधुनिकता की दौड़ में आगे रहने वाले भारतीय वैश्विक बाज़ार के भ्रामक प्रचार के शिकार हैं और बाक़ी दुनिया की तरह यहां भी लोग अब ईयरबड का ख़ूब इस्तेमाल कर रहे हैं.स्थिति यह है कि शहरों से होता हुआ यह अब गांवों में भी दाख़िल हो चुका है और घरों में ड्रेसिंग टेबल की अन्य चीज़ों में शुमार है.
बहरहाल, ईयरबड दिखने में तो आधुनिक है मगर, वैज्ञानिक नहीं है, ऐसा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के जानकार बता रहे हैं.उनके मुताबिक़, ईयरबड भी उतना ही नुकसानदेह है जितना कि कान में घुसेड़ी जाने वाली कोई भी दूसरी चीज़ जैसे झाड़ू, माचिस आदि की तीली, चाबी या पेन-पेन्सिल की नोक वगैरह हानिकारक होती है.
ऐसे में, ईयरबड से होने वाले नुकसान की चर्चा करना ज़रूरी हो जाता है.
ईयरबड के इस्तेमाल से नुकसान
दरअसल, देखा जाए तो ईयरबड के इस्तेमाल से फ़ायदा नहीं, बल्कि नुकसान ही होता है, और स्थिति ऐसी भी आ जाती है कि जिसमें श्रवण शक्ति तक चली जाती है.
सबसे पहले हम ईयरबड में लगी रूई की बात करते हैं.इसे मेडिकल साइंस कान में डालने से मना करता है.उसके मुताबिक़, यह संक्रमण का मुख्य कारण बन सकता है.रूई के फ़ाहे बनाने वाली कंपनियां इसकी पैकिंग के लेबल पर बहुत साफ़ यह संदेश लिखती हैं कि ‘रूई के फ़ाहों को कर्ण नलिकाओं में नहीं डालना चाहिए’.
चिकित्सा विज्ञान के जानकारों के अनुसार, जब हम ईयरबड से कान साफ़ करने की कोशिश करते हैं, तो ईयर वैक्स यानि कान का मैल बाहर आने के बजाय अंदर की ओर चले जाते हैं.और वहां पहुंचकर ये कान के उन हिस्सों से चिपक जाते हैं, जो ख़ुद की सफ़ाई करने में सक्षम नहीं होते.साथ ही, इन ईयर वैक्स में कान के बाहर की तरफ़ से ऐसी बैक्टीरिया भी शामिल हो सकते हैं, जो संक्रमण का कारण बनते हैं.
ईयरबड में लगी हुई रूई भले ही मुलायम होती है मगर, इसके बार-बार इस्तेमाल से कान की नसों को नुकसान पहुंचता है.
ईयरबड के बार-बार इस्तेमाल से कान का छेद चौड़ा हो जाता है.इस कारण कान में धूल-मिट्टी, फंगी और बैक्टीरिया आदि आसानी से जाने लगती हैं और फिर कान में संक्रमण के कारण खुज़ली तथा दर्द की समस्या पैदा होती है.
ईयरबड की रूई अगर कान में फंस जाए, तो नहाने के दौरान उसमें पानी भर सकता है.ऐसे में, कम सुनाई देने के साथ-साथ संक्रमण की भी संभावना बनती है.
कान का पर्दा इतना नाजुक होता है कि यह रूई के बने ईयरबड से भी फट सकता है.ऐसा होने पर बहरापन की समस्या खड़ी होनी तय है.
कान की सेहत के लिए ज़रूरी है ईयर वैक्स
कान के अंदर पाए जाने वाले पीले रंग के मुलायम और मोम जैसे पदार्थ को ‘कान का मैल’ या ईयर वैक्स कहते हैं.इसका वैज्ञानिक नाम है सेरुमेन.यह कान के अंदर मौजूद हजारों चर्बीयुक्त ग्रंथियों द्वारा बनता रहता है.
कान में वैक्स का जमना या बनना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें कान की सुरक्षा ही निहित है.ये वैक्स दरअसल, एक ल्यूब्रिकेंट (स्नेहक द्रव्य या चिकना करने वाला जैसे जेल, तेल, क्रीम आदि) के रूप में कान के अंदरूनी हिस्सों को तैलीय या मुलायम तो रखते ही हैं साथ ही, एक सुरक्षा कवच के रूप में धूल, मिट्टी व फंगी को बाहर ही रोक कर संक्रमण से बचाते भी हैं.
कॉस्मेटिक कंपनियां भी जानती हैं कि ईयर वैक्स का मक़सद कान को नरम रखना है.शायद इसीलिए वे होंठों पर लगाए जाने वाले बाम इसी वैक्स से बनाती हैं, जो होंठों को नरम रखते हैं.
वैक्स कान के लिए ज़रूरी है, जिसे स्वयं हमारा शरीर निर्माण करता है.
एक नए शोध में पता चला है कि ईयर वैक्स में स्ट्रेस हार्मोन कार्टिसोल होता है, जिससे व्यक्ति की मानसिक सेहत को पहचाना जा सकता है.
अध्ययन में दावा किया गया है कि कार्टिसोल के स्तर को जांच-परखकर यह पता लगाया जा सकता है कि कोई व्यक्ति कितना तनावग्रस्त या डिप्रेशन में है.
ज्ञात हो कि ह्वेल मछली और कुछ स्तनपायी जानवरों के कान में भी वैक्स बनता है.मगर, इंसानों की तरह वे इसे साफ़ करने के चक्कर में संक्रमण को आमंत्रण नहीं देते!
ईयर वैक्स कब बनती है समस्या?
कान के मैल की ज़्यादा मात्रा में इकठ्ठा हो जाने के कारण कान की नली बंद हो जाती है.
चिकित्सा विज्ञान के जानकारों के अनुसार, मैल कान के परदे या नली तक पहुंचकर श्रवण (सुनने) कार्य में अवरोधक बन जाते हैं.ऐसा अक्सर तब होता है जब लोग ईयरबड, पिन या चाबी डालकर कान खुजाने या इसकी सफ़ाई करने के चक्कर में मैल को धकेल कर ज़्यादा अंदर तक पहुंचा देते हैं.
जिन लोगों के कान में ज़्यादा या सूखा वैक्स (जो कि आनुवंशिकता (हेरीडिटी) या शारीरिक समस्या/रोग जैसे एक्जिमा के कारण) बनता है उन्हें भी कुछ दिक्कतें पेशा आती हैं.जैसे कान के अंदर खुज़ली, कान से द्रव बहना, कान में दर्द, कम सुनाई देना या बहरापन आदि.
इसकी रोकथाम करना मुश्किल है.साथ ही, इसका समाधान एलोपैथ में नहीं है.इसके लिए आयुर्वेद के अनुभवी चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए.
कान की सफ़ाई संबंधी ज़रूरी सलाह
ईयर वैक्स कान के बाहरी हिस्से में बनता है, जो कान को साफ़ रखने के साथ-साथ रोगाणुओं से बचाता भी है.यह आमतौर पर बिना किसी नुकसान के कान से निकलता रहता है.
ख़ासतौर से, नहाने के दौरान पानी और साबुन (झाग) कान के अंदर जाकर जमे हुए मैल को ढीला कर देते हैं.ढीला मैल या वैक्स चबाने, जम्हाई लेने, और बात करने से जबड़े की गतिविधि के कारण बाहर निकल जाता है.
मगर, यदि लगता है कि कान में मैल भर गया है, कान भारी महसूस हो रहा है, तो कोई ईयरड्रॉप ख़रीदकर ख़ुद ही कान में डालने या एलोपैथी से इलाज कराने के बजाय किसी अच्छे व प्रतिष्ठित आयुर्वेदिक चिकित्सक या वैद्य (नीम हक़ीम के पास जाने से बचें) से संपर्क करें.
दरअसल, भारतीय चिकित्सा पद्धति हज़ारों सालों से बिना किसी साइड इफेक्ट के लोगों का कठिन से कठिन रोगों का इलाज करता आ रहा है.साथ ही, इसमें ऐसे सस्ते, सरल व घरेलू नुस्ख़े भी हैं, जो बहुत जल्द कान का मैल निकालने के साथ-साथ कान संबंधी बीमारियों को भी ख़त्म कर देते हैं.
मिसाल के तौर पर, विभिन्न फलों के रस व सिरके, बादाम और नारियल के तेल और यहां तक कि नमक के पानी से ईयर वैक्स बहुत जल्दी निकल जाते हैं.
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