बॉलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन किसी परिचय के मोहताज़ नहीं,वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अभिनेताओं में शुमार हैं.’सदी का महानायक’ और ‘बिग बी’ के नाम से करोड़ों लोगों के बीच चर्चित वे मीडिया के लिए मसाला हैं तो राजनीतिक क्षेत्र में पक्ष-विपक्ष के महत्वपूर्ण विषय-वस्तु भी हैं.मगर जितने वे ख्यातिप्राप्त हैं उतने ही विवादित भी हैं.सबसे बड़ा विवाद उनके पिता से जुड़े सवालों को लेकर है जिसपर आमजन से लेकर न्यूज़ और सोशल मीडिया में चर्चा का बाज़ार हमेशा गर्म रहता है.उनके असली पिता कौन थे-हरिवंशराय बच्चन या जवाहरलाल नेहरु या फ़िर कोई और,ये लोगों का रोचक विषय है.इसपर शोध और उनके डीएनए रिपोर्ट के खुलासे के भी दावे किए जाते हैं.
इस अवसर पर जब प्रकाश और तेज़ी ने उनसे कविता सुनाने की ज़िद की तो उन्होंने 12 साल पहले लिखी अपनी एक कविता सुनाई-
क़रीबियों की राय में,’आधुनिकता और परंपरा के इलाहबाद संगम’ के नाम से जाना जाने वाला हरिवंश राय और तेजी का सफल वैवाहिक जीवन कईयों के लिए प्रेरणा का स्रोत था.
|
हरिवंश राय बच्चन और तेज़ी बच्चन |
वे बताते हैं कि एकबार सरोजिनी नायडू ने जवाहरलाल नेहरु से आनंद भवन में उन्हें मिलवाते हुए ‘पोएट एंड पोएम’ बताकर उनका परिचय दिया था.इसे यूँ कह सकते हैं कि ‘हरि’ (हरिवंश राय बच्चन) पोएट यानि कवि थे तो ‘तेजू’ (तेजी बच्चन)उनकी पोएम यानि कविता थीं.हरि उनके थे तो वो सिर्फ़ हरि की थीं.इतना प्रगाढ़ प्रेम.दो ज़िस्म एक ज़ान.ऐसे में,जवाहरलाल से उनके(तेजी के) नाज़ायज़ सम्बन्ध बताना बेमानी है.अन्यायपूर्ण है.
कुछ ज़ानकार बताते हैं कि जब अमिताभ का जन्म हुआ था तब कविवर सुमित्रानंदन पंत,हरिवंश राय के साथ उन्हें देखने नर्सिंग होम गए थे.अमिताभ का नाम उन्होंने ही रखा था.उन्होंने नवजात शिशु की तरफ़ इशारा करते हुए कवि बच्चन से कहा कि देखो तो कितना शांत दिखाई दे रहा है,मानो ध्यानस्थ अमिताभ.
ये चर्चा भी सामने आती है कि 11 अक्टूबर 1942 का वो दिन जब अमिताभ बच्चन का जन्म होने वाला था तब उनके पिता हरिवंश राय बच्चन ने अपने दिल के हालात को पूरी रात लिखा था.उसकी कुछ लाइनें इस तरह हैं-
” रात को मैंने एक विचित्र स्वप्न देखा.मैंने देखा कि जैसे चक वाला हमारा पुश्तैनी घर है.उसमें पूजा की कोठरी में बैठे मेरे पिता आँखों पर चश्मा लगाए सामने रेहल पर रामचरितमानस की पोथी खोले मास पारायण के पांचवें विश्राम का पाठ कर रहे हैं.”
ग़ौर करें तो यहाँ अमिताभ को उनके दादा का अंश बताया गया है.हरिवंश राय ने अपने पुत्र अमिताभ को अपने पिता की छवि के रूप में प्रस्तुत कर उन्हें महत्त्व दिया है.अपना खून बताया है.इससे पता चलता है कि अमिताभ उनके ही बेटे हैं.वे (हरिवंश राय बच्चन) ही अमिताभ के असली पिता थे अन्यथा,किसी नाज़ायज़ औलाद को कोई पिता क्योंकर इसप्रकार महिमामंडित करेगा.
जवाहरलाल नेहरु थे अमिताभ बच्चन के असली पिता?
जवाहरलाल नेहरु ही अमिताभ बच्चन के असली पिता थे,ये मानने वालों की संख्या भी कम नहीं है.बुद्धिजिवी वर्ग का ये तबका कहता है कि तेजी बच्चन और जवाहरलाल नेहरु के आपस में नाज़ायज़ रिश्ते थे.अमिताभ बच्चन उसी नाज़ायज़ रिश्ते की उपज हैं.यही कारण है कि उनका चेहरा जवाहरलाल से मिलता है.
|
जवाहरलाल नेहरू व अमिताभ बच्चन |
वे बताते हैं कि बच्चन परिवार की नेहरु-गाँधी परिवार से दोस्ती आनंद भवन,इलाहबाद (अब प्रयागराज) से शुरू हुई थी.उस वक़्त प्रियदर्शिनी इंदिरा छात्र थीं.तेजी बच्चन से उनकी गहरी दोस्ती थी.दोनों साथ-साथ खेलती व पढ़ती थीं.इसी दौरान तेजी और जवाहरलाल एक दूसरे के क़रीब आए.फ़िर रिश्ते गहरे होते गए.
|
जवाहरलाल व अमिताभ के युवावस्था के फ़ोटो |
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की इन्टरनेट सहायक इंडिया टाइम्स की ‘हेडलाइंस टूमौरो‘ में छपे लेख में भी दावा किया गया है कि अमिताभ बच्चन जवाहरलाल नेहरु की औलाद हैं.उनका ये दावा हेडलाइंस टूमौरो के शोधकर्ताओं और डीएनए रिपोर्ट पर आधारित है,ऐसा कहा गया है.
न्यूज़ रिपोर्ट का लिंक इसप्रकार है:
अंग्रेजी में छपी उक्त रिपोर्ट में लिखा है(हिंदी अनुवाद) –
”बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन एक यौन संबंध का परिणाम हैं जो उनकी माँ, तेजी बच्चन और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच हुआ था।
शोधकर्ताओं और हालिया डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार,नेहरु ही अमिताभ के असली पिता थे।यह सब तब शुरू हुआ जब इंदिरा गांधी और तेजी बच्चन अच्छी दोस्त थीं।तेजी इंदिरा के घर अक्सर आती-जाती रहती थीं।तेजी और इंदिरा नेहरू के साथ खेला करती थीं।लेकिन कौन जानता था कि नेहरू और तेजी एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होंगे? तेजी बच्चन एक आकर्षक महिला थीं, जबकि नेहरु एक इश्कबाज़ (कैसानोवा) और विधुर.दोनों के बीच प्रेम के साथ शारीरिक सम्बन्ध भी थे, जिसके फलस्वरूप अमिताभ बच्चन पैदा हुए.
|
हेडलाइन्स टूमौरो की रिपोर्ट |
नेहरु अपने राजनीतिक रसूख के कारण अमिताभ को अपना नाम नहीं दे सके,इसलिए उन्होंने तेजी बच्चन को हरिवंश राय बच्चन से शादी करने के लिए कहा। 1941 में हरिवंश राय बच्चन की पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी,इसलिए उन्होंने तेजी बच्चन से शादी कर अमिताभ को अपना नाम दे दिया। नेहरु कई वर्षों से हरिवंश राय बच्चन को जानते थे क्योंकि दोनों ही इलाहाबाद से ताल्लुक रखते थे।नेहरु उनकी (हरिवंश राय की) साहित्यिक प्रतिभा के लिए उनका सम्मान करते थे।
बाद में, इंदिरा गांधी और फिरोज खान (फिरोज गान्धी) के बेटे,राजीव गाँधी और अमिताभ बच्चन बहुत अच्छे दोस्त बन गए। वे दोनों 4 साल की उम्र में मिले और एक दूसरे के साथ एक अच्छा रिश्ता निभाया।
|
राजीव गाँधी के साथ अमिताभ व तेज़ी बच्चन |
जब सोनिया 1968 में राजीव की मंगेतर के रूप में भारत आईं तो उन्हें बच्चन के निवास स्थान पर रखा गया और तेजी ने सोनिया की माँ की भूमिका निभाई तथा उन्हें भारतीय संस्कृति सिखाई।’तेजी बच्चन नेहरू’ एक सामाजिक कार्यकर्ता बन गईं और नेहरू को बहुत याद किया।”
अमरनाथ झा थे अमिताभ बच्चन के असली पिता?
कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अमरनाथ झा को अमिताभ बच्चन का असली पिता बताते हैं.ये संख्या में थोड़े ज़रूर हैं लेकिन उनके पास कहानियां बहुत हैं.कई सारे उदाहरण, घटनाओं के संस्मरण.
इलाहाबाद विश्वविद्यालय(इविवि)परिसर व आसपास के इलाक़ों में बस चर्चा छेड़ने की ज़रूरत है,ऐसे विद्वतजन मिल जाएंगें जो अमरनाथ झा,हरिवंशराय बच्चन,सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला,सुमित्रानंदन पंत और फ़िराक गोरखपुरी (रघुपति सहाय) से जुड़े संस्मरण ना सिर्फ़ सुनायेंगें बल्कि उनके तार भी तेजवंत कौर सूरी,जिन्हें हम तेज़ी बच्चन के नाम से जानते हैं,उनसे जोड़ देंगें.कुछेक लेख व पुस्तक समीक्षा का वे हवाला देते हैं.
महान विद्वान एवं इविवि के प्रथम कुलपति सर गंगानाथ झा के पुत्र सर अमरनाथ झा पोएट्री सोसाइटी,लंदन के उपसभापति और रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लिटरेचर के फेलो भी रहे थे.1938 से 1947 तक इविवि के उपकुलपति का पदभार संभालने के बाद 1948 में वे पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन बने.ज़ानकार बताते हैं कि वे एक अच्छे शायर भी थे जिनका इविवि के हॉल में आयोजित मुशायरों में फ़िराक गोरखपुरी से मुक़ाबले होते रहते थे.
बहुमुखी प्रतिभा के धनी अमरनाथ रसूखदार भी थे.बताते हैं कि तेजवंत कौर सूरी(तेज़ी बच्चन) से उनके अन्तरंग संबंध थे.लंबे समय तक.शादी(तेज़ी की) के बाद भी.अमिताभ बच्चन दोनों के प्यार की निशानी हैं.उनका नाम पहले इंक़लाब (क्रांति,सत्ता-परिवर्तन की लड़ाई,आज़ादी)था जो अमरनाथ द्वारा ही दिया गया नाम था.
|
सर गंगानाथ झा के पुत्र अमरनाथ झा |
जानकारों के अनुसार,हरिवंशराय बच्चन भी इविवि के अंग्रेज़ी विभाग में लेक्चरर थे तथा झा साहब के मुरीद थे.उन्हें ‘तेज़ू’ व ‘झा साहब’ की ‘लव-स्टोरी’ मालूम थी तथा जानबूझकर वे दोनों को एकांत में मिलने का मौक़ा उपलब्ध करा देते थे.एक साल गर्मियों में हरिवंशराय,तेज़ी व झा साहब (मियां-बीवी और वो) एकसाथ मसूरी में ठहरे थे,जिसका ज़िक्र ‘नीड़ का निर्माण फ़िर’ (बच्चन जी की जीवनी भाग-2) में मिलता है-
” झा साहब के साथ कोई कितने ही दिन रहे,उनसे निकटता का अनुभव नहीं कर सकता था.वे अपने भीतर कहीं बहुत एकाकी,स्वकेंद्रित एवं स्वयं-पर्याप्त थे.”
एक अन्य घटना का ज़िक्र भी अक्सर होता है.लोग बताते हैं कि नन्हें अमिताभ के जन्मदिन का अवसर था जब कई लेखक,कवि और शायर पहुंचे थे.हरिवंश राय के साथ इलाहबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में पढ़ाने वाले व अज़ीम,अज़ीबोगरीब और मुंहफट शायर फ़िराक गोरखपुरी भी उनमें से एक थे.उन्होंने हरिवंश राय से मज़ाक-मज़ाक में पूछ लिया-
” क्या मैं आपको या अमरनाथ को बधाई दूँ? “
कहानियों/तथ्यों का विश्लेषण
कौन किसका असली बाप है या कौन किसकी औलाद ये या तो माँ-बाप (ख़ासतौर से माँ) तय कर सकते हैं या फ़िर विज्ञान.टाइम्स ऑफ़ इंडिया का ये दावा कि जवाहरलाल ही अमिताभ के जैविक पिता (असली पिता) थे,तो अवश्य ही ये उनकी डीएनए रिपोर्ट पर आधारित जाँच का परिणाम होगा,जैसा कि उसने कहा भी है.इसमें ‘अविश्वसनीय’ जैसी कोई बात नहीं क्योंकि ये 21 वीं सदी है.विज्ञान का युग है.मुमकिन है किसी के ब्लड सैम्पल से उसकी डीएनए जाँच कर लेना.ये तरीका ज़रूर ग़लत है और साथ ही ग़ैरकानूनी भी,क्योंकि कोई अन्य व्यक्ति या संस्थान किसी व्यक्ति के डीएनए की जाँच नहीं करा सकता.उसे सार्वजानिक करना तो और भी संगीन है.
ग़ौरतलब है कि क़ानूनन,किसी का डीएनए टेस्ट उसकी मर्ज़ी से अथवा अदालती आदेश से ही संभव है.लेकिन इसकी अनदेखी हुई तथा क़ानून और नेहरु-बच्चन परिवार की इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ीं.कोई कुछ नहीं बोला.उपरोक्त मीडिया संस्थान के खिलाफ़ कार्रवाई तो दूर आपत्ति भी दर्ज़ नहीं हुई.इसका मत्लब साफ़ है कि कहीं न कहीं स्वीकारोक्ति है.अब कोई चाहे कितना भी अलंकृत हो जाए,फटी हुई इज्ज़त के साथ,रेत के टीले पर चढ़कर ऊँचा दीखने वाली बात होगी.क्या फ़र्क पड़ता है कि समंदर में धरती है या फ़िर धरती पर समंदर.
दूसरी बात ये है कि परिस्थितिजन्य प्रमाण भी होते हैं जो फ़ैसले पलट सकते हैं.ऐसा हुआ भी है,जिसका इतिहास गवाह है.इसलिए उपरोक्त दोनों परिवारों की वास्तविकता समझने के लिए इतिहास में जाना होगा ताकि चेहरों के पीछे के चेहरे पहचाने जा सकें और सच उजागर हो.
बच्चन परिवार
बच्चन परिवार शुरू से ही परम्पराओं तथा भारतीय जीवन शैली से विमुख और पश्चिमी शैली का पोषक रहा है.वो चाहे हरिवंशराय बच्चन हों या तेज़ी बच्चन या फ़िर अमिताभ,सभी स्वच्छंद,आधुनिकता की दौड़ में आगे और समझौतावादी के रूप में जाने जाते हैं.स्वहित के लिए कुछ भी करने को तैयार.
हरिवंश राय बच्चन
इलाहबाद से सटे रानीगंज तहसील के बाबूपट्टी गाँव में कायस्थ परिवार में जन्मे हरिवंश राय किशोरावस्था से ही रसिक मिज़ाज़ के थे.उनके मित्र महेश बाबू गुप्ता के बेटे शारदेंदु महेश बताते हैं-
– \’\’डॉक्टर हरिवंश राय बच्चन ने अपनी जीवनी के प्रथम खंड में अपने दोस्त कर्कल और उसकी बीवी चंपा से रिश्तों के बारे में लिखा है।उम्र में बड़े होने के बावजूद दोनों की गहरी दोस्ती थी।\’\’
– \’\’दोस्त कर्कल की पत्नी चंपा से प्रेम-प्रसंग की वजह से ही हरिवंश हाईस्कूल का एग्जाम फेल हो गए थे। कर्कल को दोनों के रिश्ते के बारे में पूरी जानकारी थी, फिर भी उन्होंने कोई एतराज नहीं किया, बल्कि बीमारी के दौरान उन्होंने बच्चन से चंपा की देखभाल का वादा लिया था।
– \’\’डॉ बच्चन के माता-पिता ज्योतिषी पर बहुत विश्वास रखते थे। उनके ज्योतिष ने उन्हें बताया था कि उनका बेटा आगे चलकर बहुत नाम कमाएगा। इसलिए उसके रास्ते में टोकाटोकी ना करें।\’\’
– \’\’इसी वजह से हरिवंश के माता-पिता ने चंपा से रिश्तों को जानते हुए भी दोनों को नहीं रोका। कर्कल की अचानक मौत के बाद चंपा और हरिवंशराय के रिश्ते को लेकर बहुत बातें हुई।\’\’
– \’\’इस दौरान चंपा प्रेग्नेंट भी हो गईं और उसके बाद उनकी मां उन्हें लेकर हमेशा-हमेशा के लिए हरिद्वार चली गईं। हरिवंश राय गुमसुम रहने लगे।- (शारदेंदु महेश से बातचीत के ये अंश दैनिक भास्कर में तीन वर्ष पहले छपे-”दोस्त की वाइफ से था अमिताभ के पिता को प्यार, कुछ ऐसी थी उनकी लव स्टोरी” से साभार लिया गया है)
यही वज़ह थी कि उन्हें बंधन में बाँधने के ख़याल से उनकी ज़ल्द शादी करा दी गई थी.शारदेंदु बताते हैं-
– \’\’इसी वजह से मई 1926 में जब वो बीए फर्स्ट ईयर में पढ़ रहे थे, तभी उनकी शादी इलाहाबाद की रहने वाली श्यामा देवी से कर दी गई थी। उस वक्त हरिवंश राय बच्चन की उम्र 19 और श्यामा देवी की उम्र 14 साल थी।\’\’
सिर्फ़ चंपा ही नहीं,बच्चन जी के जीवन में कई अन्य लड़कियां आईं-गईं.बच्चन जी ने उनके साथ भरपूर रोमांस किया.लेकिन विश्वविद्यालय में पढाई के दिनों आइरिस नामक एक लड़की उनके संपर्क में आई जिसने उन्हें काफ़ी प्रभावित किया.वे उसपर फ़िदा थे.उसके बारे में उन्होंने स्वयं लिखा है-
‘‘आइरिस ने प्रथम दृष्टि में ही मुझे आकर्षित किया। वैसे तो मुझमें कुछ विशेष आकर्षक नहीं था, पर मेरे बालों ने उसे आकर्षित किया हो तो कोई आश्चर्य नहीं। यदि पहले से मेरा परिचय उसे कवि के रूप में दे दिया गया होता तो बालों के सम्बन्ध में मेरी रोमानी लापरवाही उसे अप्रत्याशित और अस्वाभाविक न लगी होगी। कद से लम्बी, बदन से इकहरी, और रंग से विशेष गौर वर्ण की, उसमें कहीं ऐंग्लो-इंडियन रक्त का मिश्रण अवश्य था। गर्दन लम्बी, चेहरा आयताकार, आंखें नीली, गाल की हड्डियां उभरी, होठ भरे, बाल सुनहरे, कटे, फिर भी इतने बड़े कि दायेँ-बायेँ कन्धों पर और पीठ के उपरी भाग पर लहराते। शायद उसके शरीर में उसके बाल ही उसके मनोभावों के सबसे अधिक अभिव्यंजक थे। वह थोड़ी-थोड़ी देर पर उन्हें कभी दाहिने और कभी बायेँ झटकती और इससे उसके सौन्दर्य में एक गतिशीलता –सी आ जाती। “
–(‘नीड़ का निर्माण फ़िर’ से साभार लिया गया है)
लेकिन बात नहीं बनी और आइरिस ने बच्चन जी की ओर से मोहब्बत की पेशकश ठुकरा दी.बच्चन जी का तो दिल ही टूट गया.उन्होंने आइरिस द्वारा लिखे सभी पत्रों को नष्ट कर दिया.पत्र-व्यवहार चूँकि अंग्रेज़ी में होता था इसलिए अब वे अंग्रेज़ी भाषा से भी नफ़रत करने लगे.वे लिखते हैं-
” अंग्रेजी बिना लेशमात्र कृतज्ञता अनुभव किए ‘थैंक यू’ कह सकती है। जब यह ‘सारी’ कहती है तब अफसोस इसे शायद ही कहीं छूता हो। ‘आई ऐम ऐफ्रेड’ से इसका तात्पर्य बिलकुल यह नहीं होता कि यह जरा भी डरी है; और इसकी उक्ति ‘एक्सक्यूज मी’ (यानी मुझे क्षमा करें) आपके गालों पर थप्पड़ लगाने की भूमिका भी हो सकती है। मेरी ‘मधुशाला’ की अंग्रेजी अनुवादिका कुमारी मार्जरी बोल्टन की एक बात मुझे याद आ गई। जब मैं इंग्लैंड-प्रवास में एक छुट्टी में उनके घर गया तो एक शाम को वे अपने जीवन की दुखद अनुभूति मुझसे बताने लगीं। उनके एक प्रेमी ने कई वर्षो तक उनसे पत्र-व्यवहार किया। क्या भावना में भीगे पत्र थे वे! और एक दिन सहसा उसने उन्हें भुला दिया! मैं मार्जरी का वाक्य नहीं भूला-Since that day I have lost faith in English language [उस दिन से अंग्रेजी भाषा पर से मेरा विश्वास उठ गया]। अंग्रेजी औपचारिक शिष्टता, पटुता, प्रदर्शन और डिसेप्शन यानी धोखा-धड़ी की इतनी परिपूर्ण माध्यम हो गई है कि आज अभिव्यक्ति से अधिक यह गोपन और डिसटार्शन यानी विरूपन की भाषा है। क्या भाषाएँ विकसित और परिष्कृत होकर अपनी सूक्ष्म अभिव्यंजन शक्ति, सच्चाई, सिधाई, गहराई और ईमानदारी खो देती हैं?”
हरिवंश राय के एक अन्य महिला से भी शारीरिक सम्बन्ध थे.वो महिला थी एक स्वतंत्रता सेनानी यशपाल की पत्नी प्रकाशवती कौर उर्फ़ प्रकाशो.शारदेंदु महेश बताते हैं-
\’\’डॉ हरिवंश राय बच्चन के कभी आजाद भगत सिंह के साथी यशपाल की पत्नी प्रकाशवती कौर उर्फ प्रकाशो से भी रिश्ते थे।\’\’
– \’\’इसके बारे में उन्होंने लिखा है कि कैसे प्रकाशवती उनके घर में रानी नाम से (‘लिव इन रिलेशनशिप’ में) रहती थीं और सच्चाई किसी को भी पता नहीं थी।\’\’
तेज़ी बच्चन
तेज़ी के बचपन का नाम तेजवंत कौर सूरी था.उनका जन्म पंजाब प्रान्त के ल्यालपुर (अब फैसलाबाद,पाकिस्तान) स्थित एक सिख खत्री परिवार में हुआ था.अमर कौर सूरी और खज़ान सिंह सूरी उनके माता-पिता थे.
|
पिता खज़ान सिंह सूरी के साथ तेज़ी,उनकी बहन व एक अंग्रेज़ लड़की |
सरदार खज़ान सिंह ने लंदन से बैरिस्ट्री की थी.बाद में वे पंजाब रियासत में रेवेन्यू मिनिस्टर बने और अंततः लाहौर जा बसे.पश्चिमी शैली के पोषक सरदार खज़ान सिंह ने अपने बच्चों के पालन-पोषण व शिक्षा-दीक्षा में परंपराओं को आड़े आने नहीं दिया.यही कारण था कि तेज़ी उच्च शिक्षा प्राप्त कर लाहौर स्थित खूबचंद डिग्री कॉलेज़ में मनोविज्ञान की लेक्चरर बनीं.एक समाजसेवी के आलावा नाटकों में अभिनय और गायन को लेकर वो चर्चित थीं.उन्होंने फिल्मों में भी काम किया और रसूखदार लोगों के बीच अपना स्थान बनाया.
तेज़ी बचपन से ही आज़ाद ख़याल की थीं.इंदिरा से उनकी गहरी दोस्ती थी.उन्हीं की हौसलाअफजाई के कारण इंदिरा अपने पिता से बग़ावत कर फ़िरोज़ खान के साथ लंदन भाग गई थीं.वहां उन्होंने अपना धर्म बदला व मेमूना बेग़म बनकर एक अदालत में शादी कर कर ली थी.स्वयं तेज़ी ने अपने पिता के खिलाफ़ जाकर हरिवंश राय से शादी कर ली थी,जिससे उनके परिवार से रिश्ते बिगड़ गए थे,जो बाद में सामान्य हो पाए थे.
इंदिरा से दोस्ती के कारण तेज़ी का आनंद भवन में आना-जाना था.वहीं वे जवाहरलाल के क़रीब जा पहुँचीं.फ़िर तो उनका व्यक्तित्व निखरता चला गया.एक तो खूबसूरती,ऊपर से अभिनय और गायन ने उन्हें मंचों की शोभा बना दी.इसके बाद वे अमरनाथ झा व सुमित्रानंदन पंत के भी काफ़ी क़रीब रहीं.झा साहब के साथ सैर-सपाटे तो पंत जी के उनके यहाँ अक्सर प्रवास का सिलसिला शुरू हुआ.
लोग बताते हैं कि अमिताभ के नामकरण के वक़्त झा साहब और पंत जी के बीच तनातनी की चर्चा भी सुनने को मिली थी.दरअसल,पंत जी ने झा साहब द्वारा दिए गए ‘इंकलाब’ नाम को बदलवाकर ‘अमिताभ’ रखवा दिया था.यह शायद तेज़ी पर उनके(पंत जी के)अधिक प्रभाव को दर्शाता था.इसीलिए दोनों के बीच तलवारें खिंच गई थीं.
|
हरिवंश व तेज़ी के साथ नन्हे अमिताभ |
बहरहाल,तेज़ी और जवाहरलाल नेहरु के बीच दोस्ताना कभी कम नहीं हुआ,बल्कि समय के साथ दोनों के बीच सम्बन्ध और प्रगाढ़ होते गए.तेज़ी की सिफारिश पर ही जवाहरलाल ने हरिवंश राय को विदेश मंत्रालय के हिंदी विभाग में पदस्थापित किया था तथा 10 वर्षों के लिए शोध हेतू उन्हें विदेश जाने का अवसर भी दिया.
अमिताभ बच्चन
अमिताभ बच्चन भी कोई दूध के धुले नहीं हैं.संस्कार असर डालते ही हैं.उनके परवीन बॉबी,श्री देवी और रेखा के साथ नाजायज़ रिश्तों की चर्चा तो आम है ही,कहा जाता है कि ऐश्वर्य राय से भी उनके सम्बन्ध थे.ऐश्वर्य की संतान के असली पिता दरअसल अमिताभ बच्चन ही हैं,जिसकी डीएनए रिपोर्ट ज़ल्द संभावित है.
|
अमिताभ बच्चन और परवीन बॉबी |
प्रियदर्शिनी इंदिरा ‘गाँधी’
इंदिरा गाँधी के कईयों से नाज़ायज़ रिश्ते बताये जाते हैं.कैथरीन फ्रैंक ने अपनी क़िताब ‘इंदिरा:दी लाइफ ऑफ़ इंदिरा नेहरु गाँधी’ के मुताबिक ‘इंदिरा का पहला प्यार शांति निकेतन में उनका ज़र्मन शिक्षक था.’ फ़िर उनका सम्बन्ध उनके पिता के सेक्रेटरी एम ओ मथाई से हुआ.बाद में,उनके योग गुरु धीरेन्द्र ब्रह्मचारी और विदेश मंत्री दिनेश सिंह से भी उनसे रिश्तों की चर्चा मिलती है.
|
कैथरीन फ्रैंक की क़िताब का चित्र |
एम ओ मथाई के साथ उनका सम्बन्ध लंबे वक़्त तक रहा.इस दौरान उनके साथ सेक्स के अनुभव को साझा करते हुए मथाई अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘रिमिनिसेंसेज़ ऑफ़ दी नेहरु एज़'(Reminiscences of the Nehru Age) में लिखते हैं कि ‘सेक्स के मामले में इंदिरा फ़्रांसिसी व केरल की नायर महिलाओं का संगम थीं.’-
” Indira as a woman who was not promiscuous; neither she desired sex too frequently.” But in the sex act Indira had all the artfulness of French women and Kerala Nair women combined.” -M.O.Mathai
|
एम ओ मथाई व इंदिरा |
” 12 साल बाद उनके रिश्तों को विराम लग गया जब मथाई ने पर्दे के पीछे इंदिरा को किसी अन्य मर्द(योगगुरु धीरेन्द ब्रह्मचारी ) के साथ देखा. ” :एम. ओ. मथाई
” My 12 years of sex life with Indira Gandhi came to an end after I saw her with another man behind the curtain.” : M.O. Mathai
|
योगगुरू धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के साथ इंदिरा गाँधी |
जवाहरलाल नेहरु
जवाहरलाल नेहरु के प्रेम-प्रसंगों के बारे यदि विस्तार से लिखा जाए तो शायद एक ग्रंथ भी पर्याप्त नहीं होगा.पढाई के दिनों से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के कालखंड व उसके बाद उनके प्रधानमंत्रित्व काल में जिसकी सबसे अधिक चर्चा होती है वो है उनका प्रेम प्रसंग.उनकी सेक्स लाइफ.तक़रीबन आधा दर्ज़न महिलाओं के साथ उनके नाज़ायज़ रिश्तों की गाथाएँ सुनने-पढने को मिलती हैं.उन्हें लोग ‘सेक्स का भूखा'(सेक्सुअली परवर्ट) बताते हैं.उनके बारे में कहा जाता था कि ‘कोई खुबसूरत महिला पेश कर दो और मनमाफ़िक काम करा लो,चाहे वो देश के खिलाफ़ ही क्यों ना हो.भारत का विभाजन उन्ही में से एक था.विस्तार से जानने के लिए पढ़िए-
ज़वाहरलाल नेहरू के लॉर्ड माउंटबैटन की बीवी एडविना माउंटबैटन से बड़े गहरे रिश्ते थे.आख़िरी सांस तक.उनकी मौत के बाद उन्हें भारतीय संसद में श्रद्धांजलि दी गई थी.बताते हैं कि जवाहरलाल ने कई देशविरोधी फ़ैसले एडविना की सलाह पर ही लिए थे.वे लॉर्ड माउंटबैटन,गाँधी और नेहरु के बीच की कड़ी थीं.
|
जवाहरलाल नेहरू,एडविना और उनके पति लॉर्ड माउंटबैटन |
जवाहरलाल के सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू से भी अन्तरंग रिश्ते थे.कहा जाता है कि पद्मजा के साथ रिश्तों के कारण ही सरोजिनी को बंगाल का गवर्नर बनाया गया था.नेहरु अपने बेडरूम में हमेशा पद्मजा की तस्वीर लगाकर रखते थे जिसे इंदिरा हटा दिया करती थीं.इसी कारण बाप-बेटी में तनाव बना रहता था.
|
जवाहरलाल के साथ पद्मजा नायडू |
जवाहरलाल के प्रेम-प्रसंगों की लंबी फ़ेहरिस्त में बनारस की एक सन्यासिन श्रद्धा माता का नाम भी शुमार है.1949 में गर्भवती होने पर संबंधों का ख़ुलासा कर श्रद्धा ने जवाहर पर शादी के लिए दबाव बनाने की कोशिश की थी पर वे नहीं माने तथा गर्भ गिराने की सलाह दी.तब श्रद्धा भी नहीं मानीं और 30 मई 1949 को उन्होंने उस बच्चे को जन्म दिया जिसे एक ईसाई मिशनरी में डाल दिया गया.मथाई की क़िताब में उस बच्चे का ज़िक्र है,जो एक अनाथ की तरह पला-बढ़ा.मथाई उसे अपनाना चाहते थे पर क़ामयाब नहीं हो पाए.
|
जवाहरलाल व श्रद्धा माता |
अब ग़ौरतलब बात ये है कि तेज़ी,जिनकी इंदिरा जैसी दोस्त हो और जवाहर जैसा क़रीबी,उनपर उँगलियाँ तो उठेंगीं ही.बातें भी होंगीं क्योंकि धुआं वहीं उठता है जहाँ आग होती है.लेकिन हम ये भी जानते हैं कि सच और झूठ के बीच एक बहुत पतली लक़ीर होती है.अब ये पाठकों के विवेक पर निर्भर करता है कि वे क्या सोचते हैं.
और चलते चलते अर्ज़ है ये शेर…
जो उन पे गुज़रती है, किसने उसे जाना है,
अपनी ही मुसीबत है, अपना ही फ़साना है|
और साथ ही,
कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ, कहानी में,
कि इस के बाद जो किरदार था, फ़साना हुआ|