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जादू की तरह काम करती है लीच थैरेपी, कई असाध्य और जानलेवा बीमारियों में भी है असरदार

लीच थैरेपी, जिसे मेडिसिनल लीच थैरेपी (MLT) या हिरुडोथैरेपी (Hirudotherapy) कहा जाता है, जोंक से रक्तपात की एक प्राचीन आयुर्वेदिक तकनीक है.रक्तमोक्षण की विभिन्न विधियों में एक जलौकावचरण या जलौका लगाने की प्रक्रिया जोंक को रोगी के प्रभावित अंग पर रखकर काटने व रक्त चूसने दिया जाता है.जब जोंक काटती है, तो लार स्रावित करती है, जिसमें जैविक रूप से सक्रिय 100 से भी अधिक पदार्थ होते हैं.ये रोगी के खून में मिलकर अनेक रोगों में औषधि का काम करते हैं.महर्षि चरक ने जोंक चिकित्सा को शल्य प्रक्रिया माना है.

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लीच थैरेपी या जोंक चिकित्सा तेजी से लोकप्रिय हो रही है.इसकी वज़ह यह है कि यह बहुत सुरक्षित, आसान और किफ़ायती है.असरदार तो इतनी है कि लगता है जैसे जादू चल गया हो.ज्ञात हो कि इसका कोई साइड इफ़ेक्ट या दुष्प्रभाव भी नहीं है.चाहे कोई ख़ास हो या आम, सबकी पहुंच के भीतर है यह थैरेपी.इसीलिए, अब यह अस्पतालों तक सीमित नहीं है, कई देशों में तो ब्यूटी सैलूनों में भी इसका ख़ास इंतज़ाम है जहां लोग खूबसरत और जवान दिखने और बने रहने के लिए इसका फ़ायदा उठा रहे हैं.विशेषज्ञों के मुताबिक़ जोंक चिकित्सा कई पुरानी, असाध्य और जानलेवा बीमारियों में भी समान रूप से प्रभावी है.

अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान और प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता

यह सुनकर और देखकर भी कई लोगों को अज़ीब लग सकता है कि एक रेंगने वाला पानी का कीड़ा (रेप्टाइल) जिसे जोंक कहते हैं, किस प्रकार इंसान के शरीर से चिपककर उसके रोग हर लेता है.वह भी बिना किसी दुष्प्रभाव के.बड़ी बात यह है कि जोंक के काटने और उसके चिपके होने का एहसास भी नहीं होता है.दरअसल, यह जोंक का कमाल है कि बिना किसी काट-छांट या सर्जरी के शरीर के प्रभावित अंग ठीक हो जाते हैं.दूसरी तरफ, ख़राब हो रहे अंग, जिन्हें एलोपैथी डॉक्टर -सर्जन काटने योग्य बता देते हैं, उन्हें भी बचा लिया जाता है बिल्कुल सही सलामत.जोंक उन्हें फिर से स्वस्थ और कार्यशील बना देती हैं.

मगर कैसे? जोंक में आख़िर ऐसा है क्या, जो रामबाण दवा की तरह काम करता है? किन-किन बीमारियों में इसका लाभ मिलता है, यह जानने की ज़रूरत है.मगर इससे पहले जोंक चिकित्सा को समझना आवश्यक है, ताकि इस विषय से संबंधित मूलभूत बातें या तथ्य स्पष्ट हो सकें, और किसी प्रकार का भ्रम न रह जाये.

लीच थैरेपी क्या है जानिए

लीच (Leech) यानि, जोंक से इलाज की प्रक्रिया को जोंक चिकित्सा या लीच थैरेपी कहते हैं.इसमें जोंक को रोगी के प्रभावित स्थान पर रखा जाता है जहां वह काटती और खून चूसती है.इस दौरान, वह लार स्रावित करती (छोड़ती) है, जो रोगी के खून में मिलकर कई प्रकार के लाभ पहुंचाते हैं.इससे कई साध्य-असाध्य रोक ठीक हो जाते हैं.

जोंक चिकित्सा के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता के अनुसार जोंक चिकित्सा दरअसल, पारंपरिक भारतीय चिकित्सा आयुर्वेद का एक सक्रिय हिस्सा रही है.प्राचीन ग्रंथों में इसे जलौकावचरण (जलौका या जोंक लगाने की प्रक्रिया) कहा गया है, जिसमें रक्तमोक्षण (रक्त छोड़ना या बहने देना) के लिए जोंक के उपयोग की विधि की विस्तृत चर्चा है.सुश्रुत संहिता में तो एक पूरा अध्याय (सुश्रुत संहिता सूत्रस्थान का अध्याय 13, जलौकावचरणीय अध्याय) जोंक चिकित्सा को समर्पित है.

कालांतर में यह दुनिया के अन्य हिस्सों में पहुंचकर भाषाई भिन्नता के कारण लीच थैरेपी या हिरुडोथैरेपी के नाम से जानी गई अथवा जानी जाती है.

जोंक क्यों ख़ास है जानिए

जोंक अपनी लार (सलाइवा) में मौजूद विशेष पदार्थों के कारण ख़ास है, या यूं कहिये कि बहुत महत्वपूर्ण है.ज्ञात हो कि इलाज में कुछ ख़ास तरह की जोंक का ही इस्तेमाल किया जाता है.इन्हें औषधीय जोंक या मेडिसिनल (मेडिसिनलिस) लीच कहा जाता है.ये जो लार स्रावित करती हैं, रोगी के खून में मिलकर शक्तिशाली औषधि के रूप में अपना कार्य शुरू कर देती हैं.

राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्यातिप्राप्त जोंक चिकित्सा के विशेषज्ञ व सर्जन प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता बताते हैं कि जोंक की लार में जैविक रूप से सक्रिय 100 से अधिक पदार्थ होते हैं, जैसे संवेदनाहारी (एनेस्थेटिक एजेंट), थक्कारोधी, एंटीप्लेटलेट एग्रीगेशन फैक्टर (प्लेटलेट को आपस में चिपकने से रोकने वाले कारक), सूजनरोधी (एंटी-इन्फ्लेमेटरी), जिलेटिनस या जिलेटिनयुक्त पदार्थ, वाहिकाविस्फारक (वासोडिलेटर), एंजाइम (फाइब्रिनोलिटिक एंजाइम, कोलेजनेज, हायलूरोनिडेस, आदि), पीड़ाहारी (एनाल्जेसिक), जीवाणुनाशक जीवाणुस्थैतिक एजेंट, इत्यादि, जो शरीर में जमा विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने, नई रक्त-वाहिकाओं के विकास को प्रोत्साहित करने, रक्त की आपूर्ति को बहाल करने में मदद करने और त्वचा और उत्तकों की रक्षा और विकास को बढ़ावा देने के अलावा अनेक प्रकार से लाभ पहुंचाते हैं.

प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता के अनुसार जब जोंक काटती है, तो उनकी लार में मौजूद एनेस्थेटिक या संवेदनाहारी पदार्थ के प्रभाव के कारण काटने से होने वाला दर्द महसूस नहीं होता है.इससे जोंक की मौजूदगी यानि, चिपके होने का पता भी नहीं चलता है.

लीच थैरेपी के फ़ायदे- कहां और कैसे?

प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता बताते हैं कि जोंक की लार को लेकर जैसे-जैसे शोध परिणाम सामने आ रहे हैं, नए चिकित्सीय संकेतों का पता चल रहा है, जोंक के इस्तेमाल का क्षेत्र भी विस्तृत होता जा रहा है.उनके अनुसार आज अनेक प्रकार की शारीरिक-मानसिक समस्याओं, सर्जरी, आदि में जोंक चिकित्सा की विशिष्टता और विविध उपयोगों को देखा जा सकता है.

पुनर्निर्माण सर्जरी में जोंक चिकित्सा

प्लास्टिक और पुनर्निर्माण सर्जरी, ख़ासतौर से माइक्रोसर्जरी (सर्जरी, जिसमें शरीर के सूक्ष्म भागों, जैसे रक्त-वाहिकाओं और नसों की मरम्मत या पुनर्निर्माण के लिए माइक्रोस्कोप या आवर्धक चश्मे के साथ-साथ विशेष उपकरणों और टांको का इस्तेमाल होता है) में परिणामों को बेहतर बनाने के लिए अधिकांश सर्जन आज जोंक पर ही निर्भर करते हैं.यूं कहिये कि सर्जरी में आज जोंक का इस्तेमाल आम हो गया है.

दरअसल, पुनर्निर्माण सर्जरी में जोंक के इस्तेमाल को लेकर ही जोंक चिकित्सा फिर से जीवित हुई थी, जो 20 वीं सदी की शुरुआत में (1930 के आसपास) एंटीबायोटिक दवाओं की उत्पत्ति और विकास के कारण मृतप्राय (ख़त्म होने के क़रीब) दिखाई देती थी.

त्वचा प्रत्यारोपण प्रक्रिया (स्किन ग्राफ्टिंग) में जोंक चिकित्सा अत्यंत महत्वपूर्ण है.विशेषज्ञों के अनुसार जब छोटी रक्त-वाहिकाओं को फिर से जोड़ा जाता है, तो इसका एक (बहुत) छोटा हिस्सा बंद हो जाता है, जबकि ग्राफ्ट को काम करने के लिए, रक्त को धमनी में माध्यम से ग्राफ्ट में जाना और और एक नस के माध्यम से ग्राफ्ट से बाहर निकलना होता है.अगर कोई बड़ी नस बंद हो जाति है या तंग (कंजेस्टेड) हो जाती है, तो ग्राफ्ट विफल हो सकता है.अतः इस शिरापरक जमाव को रोकने के लिए जलौका या जोंक लगाई जाती है.इससे घाव के ठीक होने पर रक्तप्रवाह (ब्लड सर्कुलेशन) बनाये रखने और उत्तकों के संवर्धन में मदद मिलती है.

विशेषज्ञों के अनुसार उंगलियों, होठों, कानों, निप्पलों, नाक के सिरे और लिंगों के पुनर्रोपण और कैंसर तथा आघात में पुनः संलग्नक ऑपरेशन के बाद पैदा होने वाली जटिलताओं में जोंक चिकित्सा का सहारा लिया जाता है.इसमें, प्रभावित स्थान पर लगाये जाने के बाद, जोंक अतिरिक्त रक्त को चूस लेती है, उत्तकों में सूजन को कम करती है और ताज़ा, ऑक्सीजन-युक्त रक्त को उस क्षेत्र तक पहुंचने में सक्षम बनाती है जब तक कि सामान्य परिसंचरण (शरीर में रक्त की निरंतर गति या प्रवाह) बहाल नहीं हो जाता है.इससे उपचार को बढ़ावा मिलता है, और क़ामयाबी मिलती है.

धमनियों और ह्रदय रोग के इलाज में जोंक चिकित्सा

जोंक की लार में पाए जाने वाले पदार्थ या यौगिक, जैसे हिरुडिन, फैक्टर Xa अवरोधक और हायलूरोनिडेस एजेंट, वासोडिलेटर एसिटाइलकोलाइन, आदि रक्त के संचरण में सुधार करते हैं.इससे स्ट्रोक या आघात और दिल के दौरे व कई अन्य बीमारियों में लाभ मिलता है.हार्ट ब्लॉकेज की समस्या में मरीज़ के सीने पर एक बार में 5 से 6 जोंक लगाये जाते हैं.

शल्य चिकित्सा के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता बताते हैं कि जोंक की लार में 100 से ज़्यादा बायोएक्टिव पदार्थ होते हैं, जो उपचार और सामान्य स्वास्थ्य के लिए फ़ायदेमंद होते हैं.इनमें हिरुडिन (पेप्टाइड या प्रोटीन) थक्कारोधी (एंटीकोएगुलेंट) के रूप में काम करते हुए रक्त के जमाव को रोकता है.साथ ही, थ्रोम्बी या रक्त के थक्के को भी घोलता है, जिससे दूरस्थ धमनियों में आंशिक और पूर्ण रुकावटें दूर होती हैं.

प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता के अनुसार जोंक की लार में फैक्टर Xa अवरोधक और हायलूरोनिडेस एजेंट भी होते हैं, जो अंतरालीय द्रव की गतिशीलता में योगदान करते हैं.

इनके अलावा, वासोडिलेटर एसिटाइलकोलाइन (एसीटिक एसिड और कोलिन का एस्टर या रासायनिक यौगिकों का एक समूह), हिस्टामाइन जैसे पदार्थों और कार्बोक्सीपेप्टिडेज ए अवरोधकों के साथ मिलकर वाहिकाओं (धमनियों) को फैलाकर रक्त के प्रवाह को बढ़ाते हैं.

उच्च रक्तचाप में जोंक चिकित्सा

हाई ब्लडप्रेशर या उच्च रक्तचाप, जो हाइपरटेंशन के नाम से भी जाना जाता है, ऐसी स्थिति है जिसमें धमनियों में रक्त का दबाव अधिक या बहुत अधिक बढ़ ज्जता है.आमतौर पर 140/90 से ऊपर ब्लडप्रेशर को हाई ब्लड प्रेशर के रूप में परिभाषित किया जाता है.वहीं, दबाव यदि 180/120 के ऊपर है, तो इसे ख़तरनाक माना जाता है.यदि समय रहते इसका उपचार नहीं होता है, तो हृदयाघात (हार्ट अटैक), मस्तिष्क के आघात (स्ट्रोक) और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है.विशेषज्ञों ने इसे ‘साइलेंट किलर’ कहा है.मगर जोंक चिकित्सा से इसमें लाभ मिलता है.

दरअसल, जोंक लार में ब्लड प्रेशर कम करने वाला तत्व भी पाया जाता है.विशेषज्ञों के अनुसार जोंक की लार में मौजूद विशेष पदार्थ सीधा धमनियों को लाभ पहुंचाता है.इससे रक्त परिसंचरण में सुधार होता है.बेहतर परिसंचरण के परिणामस्वरूप ह्रदय और रक्त धमनियों पर दबाव कम हो जाता है.

रक्तचाप की समस्या में जोंक शरीर के कुछ हिस्सों में लगाई जाती है.इसे विशेषज्ञ निर्धारित करते हैं.

डायबिटीज में जोंक चिकित्सा के फ़ायदे

प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता बताते हैं कि डायबिटीज के रोगियों के रक्त में शर्करा (शुगर) की अधिकता होती है इसलिए, वह चिपचिपा यानि, गाढ़ा होता है.इससे रक्त के थक्के बनने की संभावना ज़्यादा होती है.ऐसी स्थिति में, जोंक चिकित्सा बेहद कारगर है.

दरअसल, जोंक की लार में पाया जाने वाला हिरुडीन नामक पदार्थ रक्त के थक्के बनने से रोकता है.साथ ही, यह रक्त के थक्कों को भी घोल देता है, जिससे रक्त परिसंचरण ठीक रहता है.बेहतर परिसंचरण से ह्रदय और रक्त वाहिकाओं पर कम दबाव पड़ता है.

जोंक चिकित्सा मृत उत्तकों (dead tissues) की समस्या में भी उपयोगी है, जो मुख्यतः मधुमेह के रोगियों में पाए जाते हैं.प्रोफ़ेसर महंता के अनुसार जहां उत्तक ठीक तरह से काम नहीं करते हैं वहां जोंक लगाई जाती है.जोंक के काटने-चूसने से रक्त परिसंचरण सुधरता है, जिससे शरीर का प्रभावित भाग स्वस्थ एवं कार्यशील हो जाता है.

जोंक की यह ख़ासियत अंग विच्छेदन (अंग कटने) से बचा देती है.

कान की समस्याओं में लीच थैरेपी

लीच थैरेपी या जोंक चिकित्सा कान की सभी प्रकार की समस्याओं में फ़ायदेमंद बताई जाती है.ख़ासतौर से, अचानक श्रवण शक्ति का ह्रास या सुनने की क्षमता का कम होना, कर्णक्ष्वेण यानि, कान बजना (टिनिटस- अस्स्पस कोई आवाज़ न होते हुए भी कान में किसी प्रकार की आवाज़ या शोर सुनाई देना) और मध्यकर्णशोथ यानि, कान के मध्यभाग (कान के तीन भाग- बाह्य कर्ण, मध्य कर्ण और आतंरिक कर्ण) में सूजन, संक्रमण (ओटिटिस मीडिया, जो बहरेपन का सबसे बड़ा कारण होता है) में इसके तत्काल लाभ देखे जाते हैं.

कान की समस्याओं के इलाज में लीच थैरेपी का प्रयोग

प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता बताते हैं कि जोंक जब कान के पास काटती है, तो दर्द निवारक (एनाल्जेसिक) पदार्थ का स्राव करती है.इससे समस्याग्रस्त व्यक्ति को दर्द महसूस नहीं होता है.साथ ही, लाभकारी एंजाइम और थक्कारोधी (एंटीकोगुलेंट) पदार्थ भी स्रावित करती है, जो रक्त के थक्के बनने से रोकता है, और मौजूदा थक्कों को तोड़ता और घोलता है.दूसरे एंजाइम रक्त वाहिकाओं को फैलाते हैं, जिससे रक्त प्रवाह या संचरण सुधरता है.

प्रोफ़ेसर महंता के अनुसार जोंक द्वारा स्रावित पदार्थों में कुछ रोगाणुरोधी भी होते हैं, जो बैक्टीरिया और अन्य रोगाणुओं को मारकर कान की समस्याओं को दूर करने में सहायक होते हैं.

फोड़े-फुंसी, दाद, हर्पीस, एक्जिमा, सोरायसिस जैसे त्वचा रोगों में जोंक चिकित्सा

जोंक चिकित्सा द्वारा अनेक प्रकार के त्वचा संक्रमण और फोड़े-फुंसी, दाद, हर्पीस (मुंह या जननांगों पर घाव), एक्जिमा, सोरायसिस (त्वचा पर चकत्ते और खुजली वाली सूखी पपड़ियां बनना) जैसी त्वचा संबंधी परेशानियों का इलाज होता है.कई देशों में ब्यूटी सैलून में जोंक का उपयोग होता है.यहां जोंक को प्रभावित स्थान पर लगाकर कटवाया और अपशिष्ट पदार्थों को चुसवाया जाता है, जिससे तत्काल फायदा मिलता है.

प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता कहते हैं कि जलौकावचरण अर्थात जोंक चिकित्सा के द्वारा फंगल इंफेक्शन, वायरल इंफेक्शन और बैक्टीरियल इंफेक्शन को ठीक किया जा सकता है.इससे दाद, हर्पीस, एक्जिमा और सोरायसिस जैसे त्वचा रोगों का उपचार किया जा सकता है.

दरअसल, जोंक की लार में कुछ ख़ास तरह के एजेंट पाए जाते हैं, जो त्वचा संबंधी समस्याओं या चर्मरोगों के इलाज में काम करते हैं.आमतौर पर घावों में, एक जोंक को सीधे उन पर रखा जाता है, जो मवाद आदि को चूसकर सूजन और दबाव कम करती है, जबकि कुछ और जोंक आसपास चिपका दी जाती हैं, जो रक्त परिसंचरण में सुधार कर सूजन, कोमलता और दर्द को दूर करती हैं.

इसी प्रकार, विभिन्न समस्याओं में जोंक की लार में मौजूद शक्तिशाली एनाल्जेसिक (पीड़ाहारी) पदार्थ दर्द को दूर करते हैं, जबकि दूसरे पदार्थ, जैसे सूजनरोधी (एंटी-इंफ्लेमेटरी), थक्कारोधी (एंटीकोगुलेंट) एंजाइम, जीवाणुनाशक और जीवाणुस्थैतिक एजेंट, इत्यादि खुजली, सूजन और तरल पदार्थों से भरे छालों, फोड़े-फुंसियों और नए-पुराने घावों को ठीक करने में मदद करते हैं.

खेलकूद में लगने वाली चोटों (Sports injuries) के इलाज में जोंक चिकित्सा

खेल, प्रशिक्षण और व्यायाम के दौरान एथलीटों को चोटें आती हैं, मांसपेशियों, जोड़ों और हड्डियों में टूट-फूट के कारण समस्याएं पैदा होती हैं.इससे उनकी कार्यकुशलता, अवसर और करियर पर प्रभाव पड़ता है.ऐसे में, तत्काल राहत और इलाज की आवश्यकता होती है.इनमें जोंक चिकित्सा बेहद कारगर साबित होती है.

खेल के मैदान में घायल एथलीट

दरअसल, यह जोंक की लार का कमाल है.इसमें पाए जाने वाले विभिन्न एंजाइम और अन्य जैव सक्रिय पदार्थ तत्काल दर्द पर असर करते हैं, और सूजन कम करते हैं.ये उत्तकों और हड्डियों की रक्षा करते हुए उनकी स्थिति में सुधार करते हैं, जिससे खिलाड़ी जल्दी ठीक हो जाता है.

प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता बताते हैं कि जोंक की लार में मौजूद बायोएक्टिव एजेंट रक्त-वाहिकाओं को फैलाते हैं और चोटिल अंगों में रक्त के संचार को ठीक करते हैं.बेहतर रक्त परिसंचरण से शरीर की प्राकृतिक उपचार गतिविधियों को सहायता और गति मिलती है.

प्रोफ़ेसर महंता के अनुसार प्रभावित या चोटिल क्षेत्र पर लगाई गई जोंक के काटने और रक्त चूसने से स्थानीय सूजन और दर्द कम हो जाता है,इससे गतिशीलता में जल्दी सुधार होता है, और सामान्य कार्य करने की क्षमता में तेजी आती है.

कैंसर के इलाज में लीच थैरेपी के लाभ

कैंसर के इलाज में लीच थैरेपी के लाभ पर शोध अभी जारी है.बताया जाता है कि जोंक की लार में पाए जाने वाले प्लेटलेट अवरोधक (एंटीप्लेटलेट) और ख़ास एंजाइम कैंसर की विभिन्न अवस्थाओं या चरणों (स्टेज) में लक्षणों में सुधार कर सकते हैं अथवा करते हैं.

एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन) की एक रिपोर्ट कहती है कि उन्नत अवस्था (एडवांस स्टेज) वाले कैंसर से पीड़ित मरीज़ में जोंक चिकित्सा का लाभ देखा गया है.उसके अनुसार इलाज के दौरान एक मरीज़, जो काठ क्षेत्र (पीठ के निचले हिस्से) में तेज दर्द से परेशान था, उसने अपनी कमर के हिस्से में सात बार जोंक लगाकर ख़ुद ही इलाज किया.इससे दर्द पूरी तरह ठीक हो गया.

लीच थैरेपी के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता के अनुसार जोंक की लार में एनाल्जेसिक (दर्द निवारक) गुण होते हैं, जो किसी भी प्रकार के दर्द से राहत दिलाने में सक्षम होते हैं.इसके अलावा, इसमें मौजूद एंटीप्लेटलेट पदार्थ और ख़ास तरह के एंजाइम विभिन्न प्रकार से प्रभावी होते हैं.ऐसे में, लीच थैरेपी से लाभ की संभावनाएं अपार हैं.प्राचीन ग्रंथों में जोंक द्वारा रक्तमोक्षण से गंभीर रोगों के इलाज का वर्णन मिलता है.

जोंक चिकित्सा से फेफड़ों के कैंसर के असर को धीमा करने में मदद मिल सकती है.

गंजापन एवं बाल झड़ने की समस्या में जोंक चिकित्सा

बाल झड़ते हैं तो उगते भी हैं.यह आम बात है.विशेषज्ञों के अनुसार ज़्यादातर स्वस्थ लोगों के रोज़ाना क़रीब 100 बाल गिर जाते हैं, और वापस फिर उग आते हैं.लेकिन, अगर झड़ते या गिरते हुए बालों की जगह नए बाल नहीं आते हैं, तो यह समस्या है, जो गंजेपन की ओर ले जाती है.

बालों की समस्या से पीड़ित लड़कियां (प्रतीकात्मक चित्र)

बालों से संबंधित समस्याओं के चार प्रकार होते हैं, और कई कारण होते हैं.मगर सभी प्रकार की समस्याओं में जोंक चिकित्सा लाभकारी बताई जाती है.इसके उपयोग से गंजे सिरों पर नए बाल उग आते हैं.

दरअसल, बालों की समस्या का मुख्य कारण रोमकूपों (रोमछिद्र- छेद जहां रोयें निकलते हैं) का बंद हो जाना, और वहां पोषक तत्वों की आपूर्ति बाधित होना है.इसी में सुधार के लिए सिर की उपरी त्वचा (स्कैल्प) पर जोंक लगाई जाती है.

प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता बताते हैं कि जोंक की लार में मौजूद विशेष पदार्थ रक्त का संचार बढ़ाते है, जिससे प्रभावित स्थान पर पोषक तत्वों को पहुंचाने और केंद्रित करने में मदद मिलती है, जो बालों के रोम (रोयें) को मजबूत बनाने में सहायता करते हैं.इससे बालों के विकास को बढ़ावा मिलता है.

प्रोफ़ेसर महंता के अनुसार इंद्र्लुप्त रोग (जिसमें गुच्छों में बाल गिरते हैं, और निशान रहित गोलाकार गंजे धब्बे दिखाई देते हैं) या एलोपेसिया एरीटा (एए) से पीड़ित लोगों को भी जोंक की लार में मौजूद रोगाणुरोधी गुणों से लाभ मिल सकता है.इनसे स्थानीय संक्रमण को रोकने और ख़त्म करने मदद मिल सकती है, जुओं और लीख से भी छुटकारा मिल सकता है.

जोड़ों के दर्द के इलाज में जोंक चिकित्सा

आजकल ज़्यादा उम्र के लोगों में उनके घुटने, हाथ, गर्दन, पीठ के निचले हिस्से (क़मर) और कुल्हे के जोड़ों में दर्द, अकड़न और सूजन की शिक़ायत आम है.इसके कारण उन्हें चलना-फिरना और कामकाज करना कठिन हो जाता है.यहां तक कि उठने-बैठने और झुकने में भी दिक्कत होती है.चिकित्सकीय भाषा में इस बीमारी को संधिवात (अस्थिसंधिवात, गठिया) रोग या ऑस्टियोआर्थराइटिस (अपक्षयी जोड़ रोग- OA) कहते हैं.इसमें जलौका कर्म या जोंक चिकित्सा (लीच थैरेपी) के अच्छे परिणाम देखे जाते हैं.

घुटनों के दर्द-गठिया के इलाज में लीच थैरेपी

प्रोफसर व्यासदेव महंता के अनुसार जोंक की लार में पाए जाने वाले दर्द निवारक, सूजनरोधी और अन्य तत्व संधिवात रोग के लक्षणों में प्रभावकारी होते हैं.इससे पीड़ितों के स्वास्थ्य में सुधार आता है, और दैनिक जीवन की गतिविधियों में आने वाली कठिनाइयां कम हो जाती हैं.

ज्ञात हो कि जोड़ों में दर्द के लिए इस्तेमाल होने वाली एलोपैथी दवाओं के कई दुष्प्रभाव हैं इसलिए, वे दीर्घकालिक उपचार के लिए सुरक्षित नहीं हैं.वहीं जोंक का उपयोग फ़ायदेमंद होने के साथ सुरक्षित भी है.यानि, इसका कोई साइड इफ़ेक्ट या दुष्प्रभाव नहीं है.

शरीर को स्वस्थ और सुंदर बनाये रखती है लीच थैरेपी

लीच थैरेपी का शरीर पर सकारात्मक प्रभाव होता है, और यह समग्र स्वास्थ्य को बढ़ाती है.इसलिए, इससे तन और मन, दोनों ठीक रहते हैं.यह स्वास्थ्य के साथ सुंदरता को भी बढ़ाने और बनाये रखने में मददगार बताई जाती है.

गला,,चेहरा और सिर पर लीच थैरेपी का प्रयोग

प्रोफ़ेसर व्यासदेव महंता बताते हैं कि जोंक की लार में मौजूद कई एंजाइम शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देने में मदद कर, उत्तकों में रक्त के परिसंचरण में सुधार कर और कोशिकाओं को अधिक कुशलता से काम करने के लिए प्रेरित कर समग्र स्वास्थ्य को बढ़ाते हैं.

प्रोफ़ेसर महंता के अनुसार जोंक की लार में निहित विभिन्न प्रकार के पदार्थ-एंजाइम निम्नलिखित प्रकार से प्रभाव डालते हैं-

एंटी-इलास्टेस (प्रोटिनेज़ या प्रोटीज एंजाइम): यह त्वचा की उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है, और मेज़बान के शरीर में बनने वाले इलास्टिन नामक प्रोटीन को तोड़ने वाले एंजाइम को रोकता है.

हायलूरोनिक एसिड: यह त्वचा पर झुर्रियां (रेखाएं या सिलवटें) बनने से रोकने में प्रभावी होती है.

एंटीमाइक्रोबियल (रोगाणुरोधी), थ्रोम्बोलाइटिक (थक्का तोड़ने-घोलने वाला) और एनाल्जेसिक (दर्द मारक): ये तीनों मिलकर कील-मुंहासों और व्यंग (एक प्रकार का क्षुद्र रोग जिसमें क्रोध या परिश्रम आदि के कारण वायु कुपित होने से मुंह पर छोटी-छोटी काली फुंसियां या दाने निकल आते हैं) रोग को समाप्त कर चेहरे की रौनक लौटा देते हैं, या बढ़ा देते हैं.

स्टेरॉयड या सांद्राभ (हार्मोन के रूप में रसायनों का एक संस्करण): ये त्वचा की चमक बढ़ाकर जवान दिखने में मदद करते हैं.

लिपिड (वसायुक्त यौगिक) और फॉस्फेटिडिक एसिड (एनायनिक फॉस्फोलिपिड): दोनों मिलकर त्वचा की प्रतिरोधक क्षमता और सुरक्षात्मक परत को महत्वपूर्ण रूप से बढ़ाते हैं.

इलास्टिन और कोलेजनेज़: ये उत्तकों में तनाव को कम करने में भूमिका निभाते हैं, अथवा उन्हें शांत करते हैं.

जोंक चिकित्सा के अन्य लाभ

बवासीर घनास्त्र (थ्रोम्बोस्ड बवासीर): बाहरी बवासीर, जिसमें रक्त के थक्के बनते हैं, जोंक लगाने से शिरापरक दबाव और दर्द से राहत मिलती है.

दंत चिकित्सा में लाभ: लीच थिरेपी का फायदा दंत चिकित्सा में, जैसे मसूढ़ों में फोड़े, सूजन, खून आने की समस्याओं में मिलता है.इसके अलावा, पोस्टऑपरेटिव मैक्रोग्लोसिया (जीभ की सूजन) की समस्याओं में भी मदद मिलती है.

वैरिकोज वेंस या नीली नसें: वैरिकोज वेंस या नीली नसों के मामलों में जोंक चिकित्सा से रक्त के प्रवाह में सुधार होता है, तथा सूजन और दर्द से राहत मिलती है.आयुर्वेदिक चिकित्सकों का मानना है कि जोंक थैरेपी वैरिकोज वेंस की समस्या को स्थायी रूप से ठीक कर सकती है.

पेरोनिसिया (Paronychia) या अंगुलबेल: इसमें लालिमा, दर्द और सूजन से जल्द राहत मिलती है, और घाव ठीक हो जाते हैं.

माइग्रेन: कई अध्ययनों में जोंक चिकित्सा के बाद माइग्रेन के सिरदर्द से पीड़ित लोगों में दर्द की गंभीरता और अवधि में गिरावट दर्ज की गई है.यह पाया गया है कि लीच थैरेपी से दर्द को कम करने में शक्तिशाली दवाओं के बराबर लाभ मिलता है.

मैस्टाइटिस (Mastitis) या स्तनदाह: जोंक चिकित्सा स्तनदाह के लक्षणों, दर्द, सूजन, गर्मी और लालिमा, थकान, ठंड और बुखार, आदि में लाभकारी बताई जाती है.

फ़्लेबिटिस (Phlebitis) या नसों की सूजन: फ़्लेबिटिस के दोनों ही प्रकारों, सतही फ़्लेबिटिस और डीप वेन थ्रोम्बोफ़्लेबिटिस में जोंक चिकित्सा लालिमा, गर्माहट, सूजन और दर्द से राहत देकर उपचार को बढ़ावा देती है.

थ्रोम्बोसिस (Thrombosis) या घनास्त्रता: वाहिकाओं में रक्त जमने (clotting) से रोकने और रक्त के थक्कों को तोड़ने-घोलने में जोंक चिकित्सा बहुत कारगर मानी जाती है.इससे रक्त परिसंचरण ठीक हो जाता है.

गैंगरीन: इसमें जोंक दूषित पदार्थ चूस लेती है, और जो रसायन स्रावित करती है उनसे बैक्टीरिया को मारने और संक्रमण बढ़ने से रोकने, सूजन-दर्द को कम करने और स्थानीय रक्तप्रवाह को सुधारने में मदद मिलती है.इससे घाव तेजी से भरता है.

लीच थैरेपी में जोखिम?

लीच थैरेपी बहुत सुरक्षित प्रक्रिया है.मगर जैसा कि हम जानते हैं कि किसी भी कार्य-प्रक्रिया में सावधानी बरतना आवश्यक होता है अन्यथा नुकसान की गुंजाइश रहती है.इसलिए, जोंक के उपयोग से पहले रोगी के स्वास्थ्य की जांच होनी चाहिए.यदि, वह प्रतिरक्षाविहीन है या एंटीकोगुलेंट दवा ले रहा है, हीमोफिलिया या धमनी अपर्याप्तता, जैसे रक्तस्राव विकार वाला है, उसे एलर्जी की समस्या है, ज़्यादा कमज़ोर हो, तो उसके लिए यह प्रक्रिया उचित नहीं है, ऐसा कहा गया है.गर्भवती महिला के साथ भी इस प्रक्रिया की मनाही है.

यह ध्यान रखना चाहिए कि जोंक प्रभावित स्थान से इधर-उधर न जाये.

आंधी-तूफ़ान में, बारिश के मौसम में, दोपहर, शाम या रात के समय यह प्रक्रिया नहीं करनी चाहिए.

भरपेट भोजन या भोजन के तुरंत बाद जलौका नहीं लगाना चाहिए.

अस्वीकरण: इस लेख में कही गई बातें अध्ययन और विशेषज्ञों की राय पर आधारित सामान्य जानकारी प्रदान करती हैं.यह कोई व्यक्तिगत सलाह नहीं है.खुलीज़ुबान.कॉम इसको लेकर किसी भी प्रकार दावा नहीं करता है.इसलिए, कोई भी निर्णय लेने से पहले चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें.

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रामाशंकर पांडेय

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