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रक्षा

बंद करिए सैनिकों को शहीद और मार्टर कहना, ये शब्द इनके लिए ठीक नहीं

1990 के दशक में कांग्रेसी-वामपंथी बुद्धिजीवियों के गठजोड़ ने हमारी शब्दावली में कुछ ऐसे शब्द शामिल कर दिए जिनका मूल अर्थ ईसाइयत व इस्लाम को बढ़ावा देना है.

हमारे सैनिक देश की एकता, अखंडता और संविधान में निहित मूल्यों की रक्षा करने के उद्देश्य से लड़ते हैं, और अपने प्राणों का बलिदान करते हैं.ये पंथनिरपेक्ष तो हैं ही, राजनीति से भी इनका कोई लेना-देना नहीं है.लेकिन, इनके लिए हम ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जो ठीक इसके विपरीत अर्थ रखते हैं, और उचित भी नहीं हैं.

वीर योद्धाओं को श्रद्धांजलि

हालांकि हमारी सेना या पुलिस की शब्दावली में मार्टर या शहीद जैसा कोई शब्द नहीं है.और कई बार गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय ने भी यह साफ़ किया है कि संघर्ष या आतंकवाद विरोधी अभियान के दौरान जान गंवाने वाले सैनिकों के लिए इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं होता है.यह ग़लत है.

22 दिसंबर, 2015 को गृह मंत्रालय ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में रक्षा मंत्रालय के हवाले से कहा था कि न तो सेना में और न ही केंद्रीय सशस्त्र बलों या असम पुलिस के जवानों के लिए मार्टर या शहीद शब्द का इस्तेमाल होता है, जो किसी ऑपरेशन या कार्रवाई के दौरान मारे जाते हैं.

16 जुलाई, 2019 को गृह मंत्रालय ने फिर लोकसभा में नक्सली और आतंकी हमलों में जान गंवाने वाले अर्धसैनिक बलों के जवानों को शहीद का दर्ज़ा दने के सवाल पर कहा कि व्यवस्था में ऐसा कोई ऑफिसियल नोमेनक्लेचर या आधिकारिक नामकरण नहीं है.

ख़ुद सैन्य प्रशासन ने 2022 की शुरुआत में अपनी सभी इकाइयों को इस सन्दर्भ में एक सर्कुलर या परिपत्र जारी कर कहा कि देश के लिए जान देने वाले सैनिकों को मार्टर या शहीद कहना ग़लत है.इसकी जगह इन्हें ‘किल्ड इन एक्शन’ (कार्रवाई के दौरान मृत्यु को प्राप्त हुए), ‘लेड डाउन देयर लाइव्स’ (अपना जीवन न्यौछावर किया), ‘सुप्रीम सेक्रीफाइस फॉर द नेशन’ (देश के लिए सर्वोच्च बलिदान), ‘फॉलन हीरोज’ (वीरगति प्राप्त), ‘इंडियन आर्मी ब्रेव्स’ (भारतीय सेना के वीर), ‘फॉलन सोल्जर्स’ (संघर्ष में वीरगति प्राप्त सैनिक) आदि कहा जाए.

फिर भी, हमारे योद्धाओं और नायकों के लिए अधिकांशतः अंग्रेजी में मार्टर (Martyr) और हिंदी या उर्दू में शहीद ही बोला जाता है.इनके लिए ये शब्द ऐसे प्रयोग होते हैं जैसे लोगों की ज़बान से चिपक गए हों.

यहां तक कि शहीद न लिखने पर कुछ लोग ऐतराज़ करते हैं.सोशल मीडिया पर यह मामला उछाला जाता है.आख़िर, क्यों? इसके निहितार्थ हैं.मगर, यह जानने से पहले इन शब्दों को समझना ज़रूरी है.

शहीद और मार्टर आख़िर हैं क्या?

शहीद (संज्ञा एकवचन पुलिंग, बहुवचन शुहदा) एक अरबी शब्द है और इस्लामी संस्कृति से ताल्लुक रखता है.यह उस व्यक्ति के लिए प्रयोग होता है, जिसने मज़हब कौम की हिफ़ाज़त के मक़सद से जान दी हो, इस्लाम के लिए लड़कर मरा हो.जिहाद में फ़ना (मरा, मिटा) हुआ हो.

साथ ही, गवाही देने वाला (गवाह) भी शहीद या शाहिद कहलाता है.यहां तक कि आशिक़ को भी शहीद कहा जाता है, जैसे शहीद-ए-इश्क़- इश्क़ की राह में क़ुर्बान होने वाला.

शहीद की श्रेणी भी है.सबसे बड़े शहीद को शहीद-ए-आज़म कहते हैं.यह इमाम हुसैन की उपाधि भी है.

ग़ाज़ी इसी का निकटवर्ती शब्द है.यह मुसलमानों में उस व्यक्ति के लिए इस्तेमाल होता है, जो मज़हबी लड़ाई से ताल्लुक रखता हो, मज़हब के लिए जंग करता हो या किया हो, ऐसी जंग जीती हो या उसमें मारा गया हो.

इसी प्रकार, अंग्रेजी का मार्टर (Martyr) शब्द ईसाइयत (क्रिश्चियनिटी, ईसाई रिलिजन) को दर्शाता है.अंग्रेजी डिक्शनरी, जैसे कैम्ब्रिज अंग्रेजी शब्दकोष, ऑक्सफ़ोर्ड अंग्रेजी शब्दकोष या फिर कॉलिन इंग्लिश डिक्शनरी देखें तो मार्टर का अर्थ निकलता है-

Martyr- a person who is killed because of what he/she believes हिंदी में अर्थ- अपने (रिलीजियस या मज़हबी) विश्वासों के कारण आत्म-बलिदान करने वाला व्यक्ति, शहीद

Martyr- a person who suffers very much or killed because of his/her religious or political beliefs हिंदी में अर्थ- वह व्यक्ति जो अपने धार्मिक या राजनीतिक विश्वास के कारण बहुत अधिक कष्ट उठाता है या मारा जाता है

Martyr- one who voluntarily suffers death as the penalty for refusing to renounce his religion हिंदी में अर्थ- वह व्यक्ति जिसने अपना मज़हब नहीं छोड़ने (दूसरा मज़हब नहीं अपनाया) के चलते मौत की सज़ा पाई हो, मार्टर (Martyr) कहलाता है.

इस प्रकार, हम देखते हैं कि शहीद वह है जिसने मज़हब और क़ौम के लिए क़ुर्बानी दी हो, मौत को गले लगाया हो, जबकि मार्टर के त्याग और बलिदान का उद्देश्य मज़हब और सियासी दोनों हैं.

यानि, अंग्रेजी का मार्टर शब्द जहां ईसाइयत या पाश्चात्य सैन्य-व्यवस्था और उसके नियमों को दर्शाता है वहीं, शहीद शब्द इस्लामी फौजी नियमों या दीनी तौर-तरीक़ों की बात करता है.

मगर, भारतीय सैन्य व्यवस्था और इसके नियम तो बिल्कुल अलग हैं.हमारे सैनिक न तो जिहाद करते हैं और न ही ईसाइयत की तरह विस्तार (अतिक्रमण या क़ब्ज़ा) करने या लोगों को ग़ुलाम बनाने के लिए जंग लड़ते हैं.

दरअसल, भारतीय सैनिक तो पहले हमला भी नहीं करते हैं.ये केवल और केवल मातृभूमि की रक्षा करने और अपने लोगों (संकट के समय दूसरे लोगों की भी) की जान बचाने के लिए प्रतिक्रिया में संघर्ष करते हैं, जिसे रक्षात्मक कार्रवाई कहा जाता है.

ऐसे सैनिकों के बलिदानों को शहादत नाम देना न्यायसंगत है? ज़ाहिर है कि नहीं.फिर भी, ऐसा हो रहा है क्योंकि इसके पीछे एक ख़ास मक़सद या छुपा एजेंडा है, जो योजनाबद्ध तरीक़े से काम कर रहा है.

90 के दशक में शुरू हुआ था मार्टर और शहीद शब्द का चलन

1990 के दशक में कांग्रेसी-वामपंथी बुद्धिजीवियों के गठजोड़ ने हमारी शब्दावली में कुछ ऐसे शब्द शामिल कर दिए, जिनका मूल अर्थ पूरी तरह से ईसाइयत व इस्लामिक सभ्यता को बढ़ावा देना है.फिर, हमारे कुछ सैन्य अधिकारियों का भी योगदान हुआ इसमें.उन्होंने भी अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सैनिकों और सशस्त्र बलों के जवानों और अधिकारियों को मार्टर और शहीद कहना शुरू किया तो वीर बलिदानी और हुतात्मा की जगह ये शब्द मीडिया के ज़रिए देश की फ़िजाओं में गूंजते हुए जनता तक पहुंचे और आम बोलचाल के शब्द बन गए.

और अब स्थिति ऐसी हो गई है कि सरकार और सेना को ख़ुद आगे आना पड़ रहा है.देशप्रेमियों और राष्ट्र के चिंतकों को कहना पड़ रहा है कि ये शब्द ठीक नहीं हैं.इनमें हमारे सैनिकों के लिए सम्मान नहीं है.इनसे उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि नहीं मिलती है.इन्हें त्याग दीजिये, और उन्हीं शब्दों का इस्तेमाल करिए जो पहले प्रयोग किए जाते थे.

दरअसल, त्याग और बलिदान मानवीय मूल्यों की उच्चतम श्रेणी में आते हैं.इनका भाव भी बड़ा गहरा या अंतरतम से जुड़ा होता है.इनकी प्रकृति जितनी कठोर होती है उतनी ही कोमल भी होती है.ऐसे में, कार्य को लेकर उद्देश्य और श्रेय के निमित्त यदि भ्रम का प्रसार हो, तो मनोबल पर विपरीत प्रभाव संभावित है.और ऐसा किसी क्षेत्र विशेष तक सीमित न होकर सभी प्रकार की मानवीय गतिविधियों में समान रूप से देखा या अनुभव किया जा सकता है.मगर, दुर्भाग्य यह है कि देश की तमाम व्यवस्थाओं-संस्थाओं की तरह रक्षा के क्षेत्र में भी विवेकपूर्ण व्यवहार के बजाय ग़लतियां करते जा रहे हैं.प्रोपेगंडा या दुष्प्रचार के प्रभाव में एक स्वस्थ परंपरा को दूषित करने के षड्यंत्र में सहायक हो रहे हैं.

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रामाशंकर पांडेय

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