डायबिटीज की महंगी दवाओं के बजाय 10 रुपए का फल खाकर कर सकते हैं शुगर लेवल को कम और नियंत्रित
शुरू से ही विदेशी ज्ञान का उद्देश्य स्वार्थपूर्ति और धनोपार्जन रहा है, जबकि भारतीय विद्या में मानव मात्र की भलाई स्पष्ट दिखाई देती है.यही कारण है कि आयुर्वेद में जटिल से जटिल बीमारी का इलाज आसान और सस्ता है.
एलोपैथी में अन्य रोगों की तरह डायबिटीज भी एक स्वास्थ्य समस्या के बजाय व्यापार का ज़रिया है.इसलिए शुगर लेवल को कम और नियंत्रित करने वाली दवाएं तो महंगी हैं ही, इनकी पूरक के रूप में आहार और जीवनशैली से जुड़ी ढ़ेरों चीज़ें बाज़ार में हैं.यानि, जितने का बबुआ नहीं, उतने का झुनझुना है.मगर, देसी इलाज ठीक इसके उलट है.इसमें तो औषधि के रूप में प्रयोग किया जाने वाला एक फल ऐसा है, जो डायबिटीज की समस्या में जादू की तरह असर करता है.यह भारत में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है इसलिए आसानी से और बहुत सस्ते में मिल जाता है.
भारत में दवा के रूप में सदियों से उपयोग होता आया कपित्थ या कैथा नामक फल विभिन्न रोगों में गुणकारी तो है ही, डायबिटीज के लिए रामबाण औषधि के रूप में जाना जाता है.बताते हैं कि 200 mg/dl से ऊपर जा पहुंचा ब्लड शुगर इसके प्रयोग से मिनटों में कम अथवा नियंत्रित हो जाता है.आयुर्वेद के जानकार इसके सेवन की सलाह देते हैं, ताकि मधुमेह के साथ-साथ इसके कारण उत्पन्न होने वाली दूसरी समस्याओं का भी उपचार कर उनसे छुटकारा दिलाया जा सके.
कैसा होता है कैथा और यह कहां पाया जाता है?
कैथा एक प्रकार का पर्णपाती (जिनके पत्ते हर साल किसी मौसम में गिर जाते हैं) और चमकदार वृक्ष या पेड़ है, जिसके फल का उपयोग आयुर्वेद में औषधि के रूप में किया जाता है.कैथा को हिंदी में कैथ या करंत के नाम से भी जाना जाता है, जबकि संस्कृत में इसे कपित्थ, दधित्थ, ग्राही, पुष्पफल, कपिप्रिय, दधिफल, दंतशठ, चिरपाकी, सुरभिच्छद, अक्षसस्या आदि कहा गया है.
मान्यता के अनुसार, तपस्या करने गए महाराजा ध्रुव (विष्णुपुराण और भागवतपुराण में वर्णित भगवान विष्णु के महान भक्त, जिन्होंने देवर्षि नारद की प्रेरणा से बाल्यावस्था में ही एक पैर पर खड़े होकर लगातार 6 महीने तक ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ का जाप करते हुए कठोर तप किया था) ने फलाहार के रूप में इसे ग्रहण किया था.
कैथा का वानस्पतिक नाम लिमोनिया एसिडिसिमा (Limonia acidissima) है.यह रूटेसी पादप परिवार से संबंधित है.कई स्थानों पर इसे हाथी फल भी कहा जाता है क्योंकि हाथियों का यह पसंदीदा भोजन है.
परंतु, आयुर्वेद में मानव के लिए भी गुणकारी बताते हुए इसे एक अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय वृक्ष के रूप में दर्शाया गया है.
कैथा का पेड़ विभिन्न स्थानों पर 30 फुट तक ऊंचा हो सकता है.इसकी शाखाएं नुकीली कांटों भरी होती हैं, जिनमें सुगंधित पत्तियों के साथ ढेर सारे हरे या हल्के लाल छोटे फूल गुच्छों में होते हैं.
5 से 9 सेंटीमीटर की चौड़ाई में इसका कठोर छिलके और असंख्य बीजों वाला अंडाकार और भूरा सफ़ेद फल इतना कठोर होता है कि इसे तोड़ना कठिन होता है.मगर, इसका कसैला, अम्लीय या मीठा गूदा या लुगदी स्वाद में अच्छी लगती है इसलिए इसे नमक के साथ कच्चा खा सकते हैं.नारियल के दूध में मिलाकर एक स्वादिष्ट एवं स्वस्थ पेय के रूप में इसे पी सकते हैं.
कैथा की चटनी भी ख़ूब पसंद की जाती है.
इसके अलावा, इसका उपयोग जैम, जेली, मिठाई और जूस जैसे प्रसंस्कृत उत्पाद बनाने के लिए किया जा सकता है.इसके छिलके को पशु आहार या चारा के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है क्योंकि इसमें कोई ज़हरीला यौगिक नहीं होता है.
कैथा को दरअसल, दो वर्गों में बांटा जा सकता है.पहले वर्ग में छोटे आकार के फल होते हैं जो स्वाद में बहुत खट्टे होते हैं, जबकि दूसरे वर्ग के फल आकार में बड़े होते हैं और इनका गूदा खट्टापन लिए मीठा होता है.
कैथा मूल रूप से भारतीय वृक्ष है परंतु, यह पाकिस्तान, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया से पूर्व जावा तक में पाया जाता है.ऐसा इसके अखंड भारतीय अस्तित्व और पहचान के कारण है.
भारत के मैदानी इलाक़ों, शिवालिक पर्वतमाला और जंगलों और हिमालय में 400 मीटर की ऊंचाई तक यह पाया जाता है.कई इलाक़ों में तो बाक़ायदा इसकी खेती होती है.लोग अक्सर इसको खेतों की सीमाओं (मेंड़), गांवों में सड़कों के किनारे और बगीचों में भी लगाते हैं.
डायबिटीज में जादू की तरह काम करता है 10 रुपए का कैथा फल
कैथा फल डायबिटीज में बहुत असरदार माना जाता है.बताया जाता है कि तेजी से उच्च रक्त शर्करा के स्तर को कम और नियंत्रित करने की इसकी क्षमता के कारण रोगी को तत्काल राहत महसूस होती है.इसके नियमित सेवन से मधुमेह के विभिन्न लक्षणों के साथ अन्य कई समस्याओं का भी समाधान हो जाता है.
डायबिटीज दरअसल, उपापचय या मेटाबॉलिज्म से संबंधित रोग है, जिसमें रक्त में शर्करा (शुगर) की मात्रा बढ़ जाती है.ऐसे में, शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन नहीं बना पाता है या फिर जो इंसुलिन बनाता है, उसका सही ढंग से उपयोग नहीं हो पाता है.इससे कई सारी समस्याएं खड़ी हो जाती हैं.मगर, कैथा में इस गड़बड़ी को ठीक करने की क्षमता होती है क्योंकि इसमें भरपूर मात्रा में विभिन्न पोषक तत्व, विटामिन और आर्गेनिक यौगिक, टैनिन, कैल्शियम, फास्फोरस, फाइबर, प्रोटीन और आयरन आदि पाए जाते हैं.
विशेषज्ञों के अनुसार, कैथा के पेड़ के तने और शाखाओं में ‘फेरोनी गम’ नामक गोंद होता है, जो रक्त में शर्करा के प्रवाह, स्राव और संतुलन को बनाए रखने में भूमिका निभाकर मधुमेह से लड़ने में सहायक होता है.साथ ही, इंसुलिन और ग्लूकोज के स्तर को प्रबंधित कर मधुमेह में वृद्धि नहीं होने देता है.
इन्हीं विशेषताओं को लेकर आयुर्वेदाचार्य डायबिटीज की समस्या में कैथा के फूल और छाल का भी उपयोग करते हैं.मगर, इसके फल (इसके गूदा और रस) में भी तमाम ज़रूरी पोषण, एंटी ऑक्सीडेंट और रोगाणुरोधक गुण मौजूद होते हैं.इसीलिए इसे अग्न्याशय या पेन्क्रियाज के कार्य में सहायक और पेट रोगों का विशेषज्ञ माना गया है.
ख़ासतौर से, महंगी और दुष्प्रभाव वाली दवाइयों का यह सर्वोत्तम विकल्प है, जो बड़ी आसानी से और बहुत सस्ते में बाज़ार में या ऑनलाइन स्टोर पर उपलब्ध होता है.घरेलू नुस्ख़े के तौर पर इसका प्रयोग किया जा सकता है.
कैथा के अन्य औषधीय उपयोग के बारे में जानिए
कैथा एक ऐसा औषधीय वृक्ष है जिसका प्रत्येक भाग उपयोगी है.इसलिए आयुर्वेद में इसकी पत्तियां, कच्चे और पके फल, छाल, गोंद की राल आदि सभी का उपयोग औषधीय प्रयोजन के लिए किया जाता है.साथ ही, बहुपयोगी होने के कारण विभिन्न रोगों के इलाज में इसके प्रयोग से लाभ बताये जाते हैं.
पाचन तंत्र को ठीक बनाए रखता है: कैथा के एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल, एंटी-पैरासिटिक आदि गुणों के कारण आंतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं, जिससे पाचन क्रिया ठीक बनी रहती है.
इसमें मौजूद ‘फेरोनो गम’ नामक गोंद दस्त और पेचिस की समस्याओं का इलाज करने में मददगार होता है.
पेप्टिक अल्सर और बवासीर वाले रोगियों को कैथा फल के सेवन की सलाह दी जाती है.
इसमें मौजूद टैनिन सूजन को कम करता है और इसका रेचक (कोष्ठशुद्धि करने वाला या पेट साफ़ रखने वाला) गुण अजीर्ण या क़ब्ज़ को दूर रखता है.
ह्रदय संबंधी समस्याओं में उपयोगी: कैथा फल के रस या जूस का इस्तेमाल ‘कार्डिएक टॉनिक’ के रूप में किया जाता है.इसके अलावा, इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने की सलाह दी जाती है, जिससे कोलेस्ट्रोल और ब्लड प्रेशर की स्थिति में लाभ मिलता है.
किडनी के रोग में लाभकारी: कैथा में शरीर से ज़हरीले तत्वों को बाहर निकालने के गुण होते हैं.इसलिए, इसके इस्तेमाल की सलाह दी जाती है, ताकि समस्याग्रस्त किडनी का उपचार तो हो ही, कई प्रकार के संक्रमण या अन्य रोगों के प्रभाव में आने से भी इसे बचाया जा सके.
कैंसर से बचाए रखता है: कैथा का प्रयोग महिलाओं में गर्भाशय कैंसर और स्तन कैंसर (ब्रेस्ट कैंसर) को रोकने में मदद करता है.यह उनमें गर्भपात या डिलीवरी के बाद पैदा होने वाली जटिलताओं में भी लाभकारी बताया जाता है.
कैथा के इस्तेमाल से मासिक धर्म के दौरान होने वाले अधिक रक्तस्राव की समस्या से निजात मिल जाती है.
खून को साफ़ करता है कैथा: खून की गन्दगी या विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए कैथा के सेवन की सलाह दी जाती है.बताया जाता है कि गर्म पानी में 50 मिलीग्राम कैथा का रस और चीनी मिलाकर पीने से लाभ मिलता है.
इससे लीवर और गुर्दे को भी फ़ायदा पहुंचता है, और उनके तनाव कम हो जाते हैं.
बढ़ाता है शरीर की उर्जा: कैथा फल के गूदा में मौजूद विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व उपापचय या मेटाबॉलिज्म के लिए फ़ायदेमंद होते हैं.इसमें प्रोटीन, फाइबर आदि भी भरपूर मात्रा में होती है, जो मांसपेशियों को मजबूत करने के साथ घाव को जल्दी भरने में मदद करती है.यह शारीरिक उर्जा को भी बढ़ाती है.
प्रतिरक्षा प्रणाली को करता है मजबूत: प्रतिरक्षा प्रणाली या ‘इम्यून सिस्टम’ जैविक प्रक्रियाओं का एक तंत्र या नेटवर्क है, जो किसी जीव की रोगों से रक्षा करती है.इसलिए इसकी मजबूती पर ही स्वास्थ्य और अस्तित्व निर्भर करता है.कैथा की इसमें अहम भूमिका बताई जाती है.
बताया जाता है कि कैथा के सेवन से रोग प्रतिरोधक क्षमता उस अवस्था में पहुंच जाती है कि जिसमें परजीवी जीवाणुओं का ख़तरा कम हो जाता है, और लोग वायरल संक्रमण का बहुत कम शिकार होते हैं.
मर्दाना कमज़ोरी करता है दूर: पुरुषों की प्रजनन क्षमता में कमी को मर्दाना कमज़ोरी कहा जाता है.इसके चलते लोग परेशान रहते हैं, और हीनता और अवसाद का शिकार हो जाते हैं.मगर, इसका इलाज भी जड़ी-बूटियों से ही बेहतर और सुरक्षित रूप में हो सकता है.
बताया जाता है कि अश्वगंधा की तरह ही कैथा की पत्तियों में भी गुणकारी और चमत्कारी शक्तियां होती हैं.इनके सेवन से प्रजनन प्रणाली मजबूत होती है, और पेश आ रही कमज़ोरी की समस्या दूर हो जाती है.
इनके अलावा, श्वसन संबंधी समस्या या सर्दी-जुकाम, खांसी और कफ़ आदि, मलेरिया और कान से जुड़ी समस्याओं में कैथा की जड़, पत्तियां, फल, फूल आदि के प्रयोग का लाभ बताया जाता है.
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