फ़ैक्ट चेक

भारत और रूस की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने PM मोदी को मारने की CIA की साज़िश नाकाम की थी? जानिए ढाका में अमरीकी सैन्य अधिकारी की मौत को लेकर दावे और हक़ीक़त

इस में कोई दो राय नहीं है कि पिछले कुछ वर्षों में दक्षिण एशिया के कई देशों में जो अराजकता और राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बना है, सत्ता-परिवर्तन या बेदखली हुई है, उस में विदेशी ताक़तों का हाथ है. यह भी सच है कि उन ताक़तों पहला या सब से बड़ा नाम अमरीकी सीआईए (CIA) का ही लिया जाता है. यह नेताओं की हत्याएं कराने के लिए भी कुख्यात है. इसलिए, प्रधानमंत्री मोदी की चीन में हत्या की साज़िश रचने और उसे नाकाम करने के लिए भारत और रूस की ख़ुफ़िया एजेंसियों के संयुक्त अभियान की ख़बरों पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चीन के एक होटल में मारने की साज़िश से जुड़ी ख़बरें हाल ही में मीडिया और सोशल मीडिया में सुर्खियां बनी थीं. यह मामला पूरी तरह से पुष्ट नहीं है, लेकिन रिपोर्टों और विश्लेषकों द्वारा चर्चा की गई है कि भारत और रूस की ख़ुफ़िया एजेंसियों ने इस कथित साज़िश को नाकाम कर दिया था. कैसे? क्या था पूरा मामला, और उस की हक़ीक़त जानिए.

पीएम मोदी: तियानजिन एयरपोर्ट पर स्वागत, पुतिन से गले मिलते और शी जिनपिंग के साथ बातचीत (प्रतीकात्मक चित्र)

पिछले अगस्त महीने के आख़िर में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के 25वें शिखर सम्मलेन में भाग लेने चीन गए थे. वहां तियानजिन शहर के मेजियांग कन्वेंशन एंड एग्जिबिशन सेंटर में आयोजित वह सम्मलेन दो दिनों (31 अगस्त से 1 सितंबर) तक चला. इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की कार में 45 मिनट (या एक घंटे) की मीटिंग की ख़बर ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा, तरह-तरह के क़यास लगाये जाने लगे. कुछ ने इसे ‘क्लोज्ड डोर कार डिप्लोमेसी’ कहा तो कुछ ने सामरिक और आर्थिक रणनीति से जोड़ दिया. सोशल मीडिया के एक बड़े वर्ग ने तो इस वाकये को अमरीका और ट्रंप को चिढ़ाने वाला बताया. लेकिन इसी दौरान बांग्लादेश से आई अमरीकी स्पेशल फ़ोर्स के अधिकारी की होटल में रहस्यमय मौत की ख़बर ने बहस का रुख बदलकर रख दिया. हर तरफ़ ‘भू-राजनीतिक षड्यंत्र’, ‘दक्षिण एशिया में अशांति’, ‘सीआईए (CIA) की भूमिका’, आदि विषय चर्चा के केंद्र में आ गए. कुछ विश्लेषकों ने तो एक बड़ी साज़िश की ओर इशारा करते हुए उसे नाकाम करने को लेकर भारत और रूस की सुरक्षा एजेंसियों की तारीफ़ भी की.

यूं कहिये कि मोदी-पुतिन की कार वाली मीटिंग को ढाका के होटल में हुई अमरीकी सैन्य-अधिकारी की मौत से जोड़कर देखा जाने लगा, और कहा गया कि पुतिन मोदी के सच्चे मित्र हैं. ऐन वक़्त पर वे मोदी के बचाव में व्यक्तिगत रूप से आये, और तत्काल एक ख़ास ऑपरेशन में सीआईए के षड्यंत्र को विफल कर दिया गया.

चर्चाओं में मोदी की सुरक्षा की सुरक्षा को लेकर चिंता व्यक्त की गई, और उन की भविष्य की विदेश यात्राओं के लिए सावधानियां बरतने के सुझाव भी दिए गए. यह सब कई मंचों पर आज भी चल रहा है. कई लोग तो अमरीकी अधिकारी की मौत के रहस्य को जानने के लिए विभिन्न स्रोतों को तलाश रहे हैं, जानकारी खंगाल रहे हैं.

मामला बहुत गंभीर है, मगर सच्चाई क्या है यह स्पष्ट तौर पर बताना बहुत मुश्किल है, क्योंकि कहीं से भी अब तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. यानी न तो भारत सरकार या इस की एजेंसियों की ओर से कोई बयान आया है, और नहीं अमरीका ने कोई सफ़ाई पेश की है. वह कर भी नहीं सकता है. इसलिए, फ़िलहाल इसे कथित साज़िश ही कहा जा सकता है.

लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि मोदी की हत्या के कथित षड्यंत्र की ख़बर सब से पहले ऑर्गनाइजर ने छापी, जो आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) का मुखपत्र है. आरएसएस बीजेपी (भारतीय जानता पार्टी) का मातृ-संगठन है.

यूं कहिये कि बीजेपी (जिस की सरकार है, और मोदी उस के मुखिया या प्रधानमंत्री हैं) और संघ एक ही नाभि-नाल से जुड़े हुए हैं. ऐसे में, ऑर्गनाइजर की ख़बर के बहुत मायने हैं. इस के अलावा पीएम मोदी के दौरे के समय चीन से लेकर बांग्लादेश की राजधानी ढाका तक की ख़बरें या घटनाएं सामान्य नहीं हैं. अगर गहराई से विचार करें, तो एक घटना के तार दूसरी घटनाओं से जुड़े दिखाई देते हैं, या साज़िश की बू आती है.

आइये जानते हैं उन सभी घटनाओं के बारे में, और फिर तथ्यों का परीक्षण-विश्लेषण करते हैं, ताकि किसी नतीजे पर पहुंचा जा सके.

कार में मोदी-पुतिन की सीक्रेट मीटिंग, और उस के मायने

कार में पुतिन और मोदी की सीक्रेट मीटिंग गुप्त मुलाक़ात का दृश्य कैमरों में क़ैद हो गया था, और दुनियाभर सुर्खियां बना था. मगर उस से पहले जो हुआ वह भी ध्यान देने लायक है. ख़बरों के मुताबिक़ शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के 25वें शिखर सम्मलेन में भाग लेने चीन गए भारत के प्रधानमंत्री वहां के तियानजिन शहर के बिन्हाई इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर 30 अगस्त, 2025 को दोपहर (2-3 बजे, स्थानीय समय के अनुसार) उतरे. वहां स्वागत, और सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने के बाद वे सीधे शहर के हयात रीजेंसी तियानजिन (Hayatt Regency Tianjin) होटल चले गए.

रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन भी वहां 31 अगस्त, 2025 की सुबह (8-9 बजे, स्थानीय समय के अनुसार) पहुंचे, और वहां से तियानजिन के गेस्ट हाउस (Tianjin Guest House) चले गए.

दो-तीन घंटे बाद, 11-12 बजे (स्थानीय समय के अनुसार) मेजियांग कन्वेंशन एंड एग्जिबिशन सेंटर जहां शिखर सम्मलेन का आयोजन था उस के बाहर पुतिन की बख्तरबंद लिमोज़ीन ‘ऑरस सीनेट’ खड़ी हो गई. उस वक़्त मोदी अंदर सत्र के उदघाटन कार्यक्रम में व्यस्त थे. इसलिए, पुतिन ने उन का इंतज़ार किया.

बताते हैं कि 10 मिनट बाद मोदी बाहर निकले और सीधे जाकर पुतिन की गाड़ी में बैठ गए. वहां अभिवादन या शिष्टाचार के दौरान ही, या तुरंत पुतिन ने मोदी से कुछ कहा. इस पर प्रतिक्रियास्वरूप मोदी ने पुतिन की ओर देखा और गंभीर मुद्रा में आ गए.

कार में पीएम मोदी और राष्ट्रपति पुतिन की गुप्त वार्ता (सांकेतिक चित्र)

फिर मोदी के कुछ पूछने या कहने पर पुतिन प्रतिक्रिया दे रहे थे तभी गाड़ी वहां से चल पड़ी.

अधिकतर मीडिया की ख़बरों के मुताबिक़ पुतिन-मोदी ने कार में 45 मिनट की यात्रा की, मगर रुसी सूत्रों और कुछ अन्य मीडिया ने इसे 50 मिनट से एक घंटे की यात्रा बताई. क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा:

दोनों नेताओं (राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी) ने कार में क़रीब एक घंटे तक आमने-सामने बात की.

यह यात्रा हुई क्यों, इस बारे में बताया गया कि ‘पुतिन ने ऐसा पीएम मोदी और भारतीय तथा चीनी ख़ुफ़िया एजेंसियों को अपनी बात रखने का समय देने के लिए किया.’

मॉस्को में टिप्पणीकारों ने बताया:

शायद यह मोदी और पुतिन के बीच सब से महत्वपूर्ण और गोपनीय बातचीत थी, जिस के दौरान उन्होंने ऐसे मुद्दों पर चर्चा की जो दूसरों के कानों के लिए थे.

उस के बाद, मोदी उस होटल में नहीं लौटे जहां वे पिछली रात ठहरे थे. हालांकि वे (पुतिन के साथ) कहां गए यह सार्वजानिक नहीं है.

इस बारे में रुसी नेशनल रेडियो स्टेशन वेस्टिएफएम ने अपनी रिपोर्ट में यह संक्षिप्त जानकारी दी थी:

दोनों नेताओं ने होटल जाते समय आमने-सामने बातचीत जारी रखी, जहां उनकी टीमों के सदस्य उन से मिलने वाले थे. हालांकि होटल पहुंचने पर प्रधानमंत्री मोदी रुसी राष्ट्रपति की लिमोज़ीन से नहीं उतरे और 50 मिनट तक बातचीत करते रहे.

फ़ैक्ट चेक: 1. पुतिन सम्मलेन-स्थल गए, लेकिन उदघाटन सत्र में भाग लेने के बजाय वे बाहर अपनी गाड़ी में बैठे रहे. उन्होंने मोदी का इंतज़ार किया. यह अज़ीब या असामान्य था.

2. मोदी बाहर निकलकर सीधे पुतिन की गाड़ी में जा बैठे. इस से पता चलता है कि मोदी को बताया जा चुका था कि उन्हें पुतिन अपनी गाड़ी में उन का इंतज़ार कर रहे हैं, और उन से कोई ज़रूरी या गुप्त बात करना चाहते हैं.

3. रुसी विश्लेषकों-सूत्रों का यह कथन कि ‘पुतिन-मोदी की बातें दूसरे कानों के लिए नहीं थीं’, बहुत की असामान्य है क्योंकि भारत-रूस की कोई भी नीतिगत बात ऐसी नहीं हो सकती है जो रुसी शीर्ष अधिकारी या विशेष राजनयिक भी न सुन सकें. यानी वे बातें या तो बहुत ही व्यक्तिगत (जिस की संभावना नहीं के बराबर है) या टॉप सीक्रेट थीं.

4. पुतिन ने मोदी को गाड़ी में क़रीब एक घंटे तक बिठाये रखा, या घुमाते रहे. होटल के क़रीब या सामने जहां रूस-भारत के अधिकारी उन से मिलने वाले थे वहां भी मोदी गाड़ी से नहीं उतरे, या उन्हें पुतिन ने नहीं उतरने दिया. इस के पीछे सुरक्षा कारणों की बहुत अधिक संभावना है.

ज्ञात हो कि पुतिन की लिमोज़ीन ‘ऑरस सीनेट’ कार पूरी सुरक्षा, लग्जरी और ताक़त का प्रतीक है. यह एक चलता-फिरता बंकर है, और उस पर किसी गोला-बारूद या विस्फोट का असर नहीं हो सकता है.

5. वहां से पुतिन-मोदी किसी अज्ञात या गुप्त स्थान को रवाना हो गए. यानी मोदी-पुतिन या अकेले मोदी उस होटल में नहीं गए जहां वे पिछली रात ठहरे थे.

राष्ट्रपति पुतिन के साथ कार में जाते पीएम मोदी (प्रतीकात्मक चित्र)

यह बहुत ही संदेहास्पद है. ऐसा लगता है कि उस होटल में मोदी की जान को ख़तरा था, या फिर यूं कहिये कि उस होटल में मोदी को मारने की साज़िश रची गई थी.

10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की कथित हत्या की वारदात होटल में ही हुई थी.

मोदी-पुतिन की गुप्त बातचीत के बाद अमरीकी सैन्य-अधिकारी की मौत- संयोग या प्रयोग?

इधर चीन में कार वाली मोदी-पुतिन की गुप्त-वार्ता और उनके होटल के बजाय अज्ञात स्थान पर जाने की ख़बर सोशल मीडिया में वायरल हो रही थी. न्यूज़ मीडिया पर डिबेट में पत्रकार, बुद्धिजीवी और पूर्व राजनयिक तरह-तरह की संभावनाओं से जुड़े अपने अनुभव साझा कर रहे थे. इसी बीच बांग्लादेश की राजधानी ढाका से आई अमरीकी सैन्य अधिकारी की होटल में मौत की ख़बर ने मामले को और भी रहस्यमय बना दिया. यूं कहिये कि इस रहस्यमय मौत पर सनसनीखेज दावे होने लगे.

होटल के कमरे में शव (सांकेतिक चित्र)

ऐसा कहा गया कि ढाका के होटल में मृत पाया गया अमरीकी सैन्य अधिकारी सीआईए (CIA) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने के लिए बांग्लादेश में तैनात किया था. वह ढाका के होटल से चीन में मोदी की हर गतिविधि पर नज़र रख रहा था. 31 अगस्त, 2025 की शाम वह साज़िश को अंजाम देने वाला था. लेकिन इस से पहले ही वह रुसी ख़ुफ़िया एजेंसियों के रडार की पकड़ में आ गया. इस सूचना पर पुतिन ने फ़ौरन मोदी से मुलाक़ात कर रणनीति तैयार की, और रुसी तथा भारतीय एजेंसियों ने उसे होटल के अंदर ढेर कर दिया.

फ़ैक्ट चेक: 1. रुसी सुरक्षा एजेंसियों को क्या जानकारी मिली, और उसी संबंध में पुतिन ने मोदी से गुप्त मीटिंग की या रणनीति बनाई इस का सबूत रूस और भारत की एजेंसियां ही दे सकती हैं. लेकिन कार में मोदी-पुतिन की गुप्त-वार्ता इस ओर स्पष्ट इशारा करती हैं.

2. यह भी सच है कि चीन में मोदी-पुतिन की गुप्त-वार्ता और उन के किसी अज्ञात स्थान पर जाने की ख़बरों के आने के बाद ही ढाका के होटल से अमरीकी अधिकारी के शव बरामद होने की ख़बर आई. अर्थात दोनों जगहों की घटनाओं या दोनों घटनाओं में समय का अंतर संदेह को बल प्रदान करता है. यूं कहिये कि शक़ को पक्का करता है.

3. अमरीकी अधिकारी की मौत के कारणों को छुपाया गया. यहां तक कि उस की पहचान भी छुपाने की कोशिश की गई. वह बांग्लादेश क्यों गया था, वहां कब से था और क्या कर रहा था, इस सब पर पर्दा डालने के भरपूर प्रयास हुए.

इस पूरे मामले में अमरीकी दूतावास की प्रतिक्रिया अज़ीबोगरीब थी ही अमरीकी सेना ने तो अपना पल्ला ही झाड़ लिया. पाकिस्तानी सेना की तरह उस ने भी अपने सैनिक को सम्मान देना तो दूर अपना सैनिक भी नहीं माना!

क्या था पूरा मामला जानिए-

31 अगस्त, 2025 को दोपहर (सही या सटीक समय ज्ञात नहीं है इसलिए, यह दिन के 12 बजे से 5 बजे के बीच का कोई भी समय हो सकता है) बांग्लादेश की राजधानी ढाका के गुलशन थाना इलाके में स्थित पांच सितारा होटल ‘द वेस्टिन’ के कमरा नंबर 808 से अमरीकी सेना की विशिष्ट प्रथम विशेष बल कमान (एयरबोर्न) के सेवारत अधिकारी टेरेंस अर्वेल जैक्सन की लाश बरामद हुई.

लेकिन पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों ने मीडिया से उस की सही पहचान छुपायी, और कहा कि मृतक टेरेंस अर्वेल जैक्सन एक अमेरिकी व्यापारी था जो कुछ महीनों बांग्लादेश में रह रहा था.

मृतक टेरेंस के सामान की जब्ती-जांच नहीं हुई. उस के शव को भी अंत्यपरीक्षण (पोस्टमार्टम) कराये बिना अमरीकी दूतावास के हवाले कर दिया गया.

इस ख़बर को बांग्लादेश के अख़बार द डेली स्टार (सोमवार, 1 सितंबर 2025 को 12:19 बजे प्रकाशित) ने कुछ यूं लिखा (हिंदी अनुवाद):

गुलशन पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर (ऑपरेशन) मिजानुर रहमान ने बताया कि मृतक का नाम टेरेंस अर्वेल जैक्सन है, जिस की उम्र क़रीब 50 साल थी.

उन्होंने बताया कि उन का शव ढाका के वेस्टिन होटल के कमरा नंबर 808 से बरामद किया गया.

उन्होंने बताया कि टेरेंस जैक्सन कुछ महीनों से व्यापारिक यात्रा पर बांग्लादेश में था, और 29 अगस्त को होटल में ठहरा था.

पुलिस ने कहा कि उन्होंने लाश का पोस्टमार्टम कराये बिना ही उसे ढाका स्थित अमरीकी दूतावास को सौंप दिया.

बांग्लादेश के साप्ताहिक समाचार पत्र वीकली ब्लिट्ज ने (बुधवार, 3 सितंबर, 2025 को प्रकाशित विशेष ख़बर में) कुछ इस प्रकार लिखा (हिंदी अनुवाद):

अमरीकी सेना की विशिष्ट प्रथम विशेष बल कमान (एयरबोर्न) के सेवारत अधिकारी टेरेंस अर्वेल जैक्सन की 31 अगस्त, 2025 को ढाका के पांच सितारा वेस्टिन होटल में अचानक और रहस्यमयी मौत ने पूरे दक्षिण एशिया में अटकलों का बाज़ार गर्म कर दिया है. हालांकि बंगलादेशी अधिकारियों ने शुरू में प्राकृतिक कारणों का अनुमान लगाया था, लेकिन उन के शव को ले जाने में बरती गई गोपनीयता, अमरीकी दूतावास के अधिकारियों द्वारा उन के सामान की जब्ती और देश में उन की गुप्त गतिविधियां कहीं अधिक गहरी और परेशान करने वाली कहानी की ओर इशारा करती हैं.

वीकली ब्लिट्ज ने आगे लिखा:

पुलिस को शव-परीक्षा की अनुमति नहीं दी गई, और अमरीकी दूतावास ने जैक्सन के शव और उस के सारे सामान को होटल से तुरंत हटा दिया. होटल के एक कर्मचारी ने बाद में नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दूतावास के अधिकारियों द्वारा जब्त की गई चीजों में कई नक्शे, रेखाचित्र और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, साथ ही तीन बड़े सूटकेस और लैपटॉप भी शामिल थे.

अमरीकी दूतावास और सेना का विरोधाभासी बयान: इस पूरे प्रकरण में अमरीकी दूतावास ने स्थानीय मीडिया से दूरी बनाये रखी. लेकिन पश्चिमी मीडिया के कुछ ख़ास समूहों को जो बताया भी वह अति-संक्षिप्त था ही, निरर्थक भी था.

अमरीकी दूतावास का टेरेंस जैक्सन की मौत को लेकर बयान (हिंदी अनुवाद) कुछ इस प्रकार का था:

प्रारंभिक जांच में उन की (टेरेंस अर्वेल जैक्सन की) मौत का कारण प्राकृतिक माना गया है.

अमरीकी सेना का बयान (हिंदी अनुवाद) कुछ यूं था:

बांग्लादेश में अमरीकी सेना का कोई सैन्य-ऑपरेशन नहीं चल रहा था.

विशेष बल में वर्तमान सेवारत कर्मियों का पता चल गया है, सभी सैनिक और अधिकारी सुरक्षित तथा मौजूद हैं.

टेरेंस अर्वेल जैक्सन क्या सीआईए के लिए काम कर रहे थे?

टेरेंस अर्वेल जैक्सन के बारे में यह दावा किया गया है कि वह सीआईए के लिए काम कर रहा था या उस के विशेष अभियानों में भूमिका निभा रहा था. सीआईए ने ही उसे प्रधानमंत्री मोदी की हत्या करने के मक़सद बांग्लादेश में तैनात किया था.

टेरेंस अर्वेल जैक्सन (प्रतीकात्मक चित्र)

फ़ैक्ट चेक: अमरीका की कुख्यात ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए (CIA) को कौन नहीं जानता है. यह दुनियाभर में सरकारों पर दबाव बनाने-गिराने या वहां अमरीका का आधिपत्य स्थापित करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाती है. अमरीकी प्रशासन या फिर डीप स्टेट के मंसूबे पूरे करने के लिए यह राजनेताओं की हत्याएं भी करवाती है.

इस के लिए यह सेना के चुनिंदा और जुनूनी लोगों को काम पर लगाती है. इस लिहाज से टेरेंस अर्वेल जैक्सन के बारे में हमें जानने की ज़रूरत है.

टेरेंस अर्वेल जैक्सन का परिचय और उन की विशेषताएं: द संडे गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार उत्तरी कैरोलिना के रायफोर्ड में रहने वाले टेरेंस अर्वेल जैक्सन (Terrence Arvelle Jackson) प्रथम विशेष बल कमान (एयरबोर्न) के सेवारत अधिकारी थे, जो संयुक्त राज्य अमेरिका सेना विशेष अभियान कमान (USSOCOM) के अंतर्गत आती है. इस का उद्देश्य दुनियाभर में पूर्ण-स्पेक्ट्रम विशेष अभियानों के लिए ईकाइयों को संगठित, प्रशिक्षित और तैनात करना है, और लड़ाकू कमांडरों, राजदूतों और अन्य एजेंसियों को सहायता प्रदान करना है.

यानी टेरेंस जैक्सन कोई आम सैन्य-अधिकारी नहीं, बल्कि आतंकवाद-रोधी, अपरंपरागत युद्ध और विदेशी आतंरिक रक्षा में अमरीकी रणनीतिक तंत्र का हिस्सा थे.

टेरेंस जैक्सन का एक लिंक्डइन प्रोफाइल भी है, जिसमें उन के करियर के बारे में काफ़ी जानकारी मिलती है. यह सब उन के ही शब्दों में कुछ इस प्रकार (हिंदी अनुवाद) है:

संयुक्त राज्य अमेरिका की सेना में मैंने 20 सालों से ज़्यादा समय तक सेवा दी है, और एशिया थियेटर में कई युद्धक तैनाती और अस्थाई ड्यूटी असाइंमेंट में भाग लिया है.

मेरी पिछली सैन्य-व्यवसाय विशेषज्ञता इंफेंट्री अफ़सर 11A की थी, और अब मैं सैन्य व्यवसाय विशेषज्ञ विशेष बल अधिकारी (18A) हूं.

वर्तमान में मैं प्रथम विशेष बल कमान (एयरबोर्न) में कमांड इंस्पेक्टर जनरल के रूप में कार्यरत हैं, और मेरी अगले 2 वर्षों में रिटायर होने की योजना है.

टेरेंस अर्वेल जैक्सन के नाम का लिंक्डइन प्रोफाइल (सांकेतिक चित्र)

बताया जाता है कि उन की मौत के बाद उन के एक घनिष्ठ मित्र ने ऑनलाइन पोस्ट में उन्हें श्रद्धांजली दी, और लिखा कि जैक्सन शांत, विश्लेषक और रेडियो-नियंत्रित विमानन के प्रति बहुत उत्साही या जुनूनी थे.

यह भी लिखा कि टेरेंस जैक्सन विमानन प्रणाली से जुड़े एक मिशन पर कई महीनों से बांग्लादेश में थे. उन की मृत्यु 31 अगस्त को हुई, और उन्होंने अगले दो साल में सेवानिवृत्त होने की योजना बनाई थी.

इस प्रकार, टेरेंस जैक्सन का सैन्य-प्रोफाइल सीआईए की ज़रूरतों के अनुसार ही है, या सटीक बैठता है.

बांग्लादेश में क्या कर रहे थे टेरेंस अर्वेल जैक्सन?

कई स्रोतों से पता चलता है कि टेरेंस अर्वेल जैक्सन (Terrence Arvelle Jackson) की तैनाती का मक़सद सेंट मार्टिन द्वीप (बांग्लादेश के मुख्य भूभाग से 8-9 किमी दूर एक द्वीप जिस पर नियंत्रण कर समुद्री मार्ग और क्षेत्रीय प्रभाव को नियंत्रित किया जा सकता है) को लेकर बंगलादेशी सेना को प्रशिक्षण देना हो सकता है. विदित हो कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के सलाहकार मोहम्मद युनुस को सेंट मार्टिन द्वीप अमरीका को गिरवी रखने के लिए मज़बूर करने का श्रेय भी जैक्सन को ही दिया जाता है.

लेकिन खोजी पत्रकारिता के लिए जाना जाने वाला बांग्लादेश का एक अख़बार वीकली ब्लिट्ज टेरेंस जैक्सन के बारे में कुछ और ही कहानी बयान करता है. इस के लेखक और संपादक सलाहुद्दीन शोएब चौधरी लिखा है:

जैक्सन चटगांव, कॉक्स बाज़ार, सिलहट और लालमोनिरहाट की लगातार यात्रायें करते थे- ये जिले उग्रवादी (या जिहादी) गलियारों या सीमापार तस्करी के रास्तों से अपनी निकटता के लिए जाने जाते हैं.

इस से कई संभावनाएं पैदा होती हैं, जिनमें बदलते गठबंधनों के बीच दक्षिण एशिया में भविष्य में अमरीका की भागीदारी की रुपरेखा तैयार करना शामिल है.

बक़ौल सलाहुद्दीन चौधरी, जैक्सन की गतिविधियों के बारे में तथा उन के होटल के कमरे में मिली संवेदनशील सामग्री से पता चलता है कि उनका मिशन वाणिज्यिक नहीं, बल्कि ख़ुफ़िया (कार्य) था.

विदित हो कि इस तरह के कार्य सीआईए के लिए काम करने वाले ही करते हैं.

वैसे भी पिछले कुछ सालों में दक्षिण एशियाई देशों, जैसे श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश में जो कुछ भी घटित हुआ है उस में सीआईए का ही हाथ बताया जाता है. कहा जाता है कि उसी ने वहां नागरिक विद्रोह के ज़रिए सत्ता-परिवर्तन या बेदखली करवाई है.

रक्षा विशेषज्ञों की राय में, भारत की बढ़ती आर्थिक और सामरिक शक्ति अमरीका को नाकाबिले-बर्दाश्त है. इसलिए, उस ने (ट्रंप और उन की टोली ने) कई प्रकार से दबाव बनाने की कोशिश की. धमकाया भी, लेकिन क़ामयाबी नहीं मिली. 50 प्रतिशत टैरिफ़ लगाने के बाद भी भारत नहीं झुका, तो इसे अस्थिर करने के लिए षड्यंत्र रचे जाने लगे. यह सब अब भी चल रहा है.

भारत को अस्थिर करने की कोशिश में अमरीकी डीप स्टेट तो बहुत पहले से लगा हुआ है.

मगर ऐसा पीएम मोदी के रहते नामुमकिन-सा लगता है. इसलिए, बहुत संभव है कि उन्हें ही रास्ते से हटाने या उन की हत्या करने का षड्यंत्र रचा गया हो, जिस में टेरेंस जैक्सन शामिल था. उसे ख़त्म कर दिया गया.

चीन से भारत लौटने के बाद मोदी ने बड़े ख़तरे का संकेत दिया था?

चीन से भारत लौटने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली में आयोजित सेमीकॉन शिखर सम्मलेन के संबोधन में लोगों से ताली बजाने की वज़ह पूछी थी. हालाँकि अंदाज़ मज़ाकिया था, लेकिन कई जानकारों और विश्लेषकों का दावा है कि इस में मोदी ने अपने जीवन के टल चुके ख़तरे का संकेत दिया था. इसे गंभीरता से लेने की ज़रूरत है.

‘सेमीकॉन इंडिया-2025’ शिखर सम्मलेन को संबोधित करते पीएम मोदी

फ़ैक्ट चेक: पिछले 2 सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली के यशोभूमि में आयोजित ‘सेमीकॉन इंडिया-2025’ शिखर सम्मलेन को संबोधित किया था. इस कार्यक्रम के दौरान उन्होंने लोगों से पूछा:

क्या आप इसलिए ताली बजा रहे हैं क्योंकि मैं चीन गया था या इसलिए बजा रहे हैं क्योंकि मैं वापस आया हूँ?

विदित हो कि यह (2 सितंबर) पीएम मोदी के चीन के तियानजिन से भारत लौटने के बाद पहला दिन या ठीक अगला दिन था जब वे किसी कार्यक्रम में शामिल हुए थे. उस अवसर पर लोगों का ताली बजाकर स्वागत करना और मोदी का लोगों से (मज़ाक में) इस की वज़ह पूछना पहली नज़र में स्वाभाविक लगता है क्योंकि विदेश जाने और वापस अपने वतन लौटने, दोनों की अपनी खुशियां होती हैं.

लेकिन यह तब अस्वाभाविक या असामान्य अवश्य हो सकता है जब विदेश में कुछ अज़ीबोगरीब घटनाएँ घट चुकी हों. वहां से सुरक्षित या सकुशल वापसी बड़ी या ज़्यादा ख़ुशी की बात समझी जाएगी. इसलिए, विश्लेषकों का दावा निराधार नहीं है. आगे मोदी की विदेश यात्राओं को लेकर बहुत सतर्क रहने की ज़रूरत है. हालाँकि देश के अंदर भी उनके दुश्मनों की कमी नहीं है.

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