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बाबा बाज़ार

साईं की पहचान बदलने का दुष्चक्र





सिर पर कफ़नी थी और ‘अल्लाह मालिक़‘ सदा उसके होंठों पर था.’मैं निम्न जाति का एक यवन हूँ’ ऐसा उसने स्वयं बतलाया.गंगाजल,व्रत,उपवास तथा पूजा-पाठ आदि उसके लिए झंझट (बेक़ार)के विषय थे.मांसाहार का सेवन वह ख़ुद तो करता ही था,उसे प्रसादस्वरूप भक्तों में भी बाँट दिया करता था.कुत्ते भी पराए ना थे.वो भी उसकी थाली में साथ-साथ खाया करते थे.    
इन पंक्तियों की रौशनी में उस साईं को जाना जा सकता है,जिसे ‘शिर्डी के साईं बाबा’ के नाम से जाना जाता है.पंक्तियां भी उस पुस्तक से उद्धृत हैं,जिसे या तो साईं ने स्वयं रची है या फ़िर उनके परमभक्त हेमाडपंत (गोविंदराव रघुनाथ दाभोलकर) द्वारा उनकी प्रेरणा से लिखी गई है.कहीं किसी ग़लती की गुंज़ाइश नहीं है इसमें.ये कसौटी पर ख़री और अकाट्य होने के साथ ही सर्वमान्य भी है.फ़िर साईं का कौन-सा स्वरूप शेष रह जाता है बताने और दिखाने को? वो भी एक सदी बीतने के बाद?

साईं की पहचान, बिरयानी प्रेमी बाबा, मुसलमान की औलाद
गोविन्द रघुनाथ दाभोलकर द्वारा लिखित साईं सच्चरित्र  


दरअसल,ये एक दुष्चक्र है एक निगुरे को सद्गुरु बनाने का.एक मोमिन वंशी(मुसलमान की औलाद) को भगवान के रूप में पेश कर उसे मंदिरों में बिठाने का.एक नशेड़ी को महिमामंडित करने का.तर्क भी ऐसे जो किसी के गले ना उतर सकें.बे सिर पैर के.पूरी तरह.आधारहीन के जो आधार गढ़े जा रहे हैं वो वास्तविक नहीं बल्कि मज़ाक़िए लगते हैं.

साईं की पहचान, बिरयानी प्रेमी बाबा, मुसलमान की औलाद
प्रतीकात्मक फ़ोटो 


आइए देखते और समझते हैं साईं को भगवान बनाने में लगे साईं धर्म(?) के ठेकेदारों का दुष्चक्र और उससे जुड़े कुछ सवालों के ज़वाब जो पर्दे के पीछे के चल रहे खेल का ख़ुलासा कर देते हैं.

साईं ब्राह्मण ही क्यों,चमार क्यों नहीं ?

जो साईं भेदभाव और ऊंच-नीच से सदा ऊपर बताए जाते रहे हैं उन्हें साईं समर्थक आज ब्राह्मण साबित करने में जुटे हैं.मगर क्यों? ब्राह्मण ही क्यों? चमार क्यों नहीं? कारण है बहुसंख्यक हिन्दू समाज द्वारा दी जाने वाली मान्यता.यदि बहुसंख्यक हिन्दू उन्हें ब्राह्मण मान ले तो चमत्कारों की गढ़ी गई कहानियों के बहाने उनके भगवान बनने  का रास्ता भी आसान हो जायेगा.भगवान मत्लब मंदिर और मंदिर का मत्लब स्थायी आय की स्थायी और व्यापक दुकान.मत्लब पैसा ही पैसा.कुबेर का भंडार.
   

साईं की पहचान, बिरयानी प्रेमी बाबा, मुसलमान की औलाद
साईं दरबार में चढ़ावा 

उल्लेखनीय है कि साईं को चमार बताने से धर्म का धंधा विस्तृत होने बजाय संकुचित हो जाएगा.ये नुक़सानदेह है तथा व्यापारिक उसूलों के ख़िलाफ़ भी.ब्रांड बड़ा हो तो कोई उत्पाद कम से कम विज्ञापन में भी बाज़ार में अपनी अच्छी पकड़ बना सकता है तथा ऊँचे लाभ दिलवा सकता है.            
मग़र सवाल उठता है कि जब साईं के माँ-बाप का ही पता नहीं है तो उनकी जात का कैसे पता चल गया ?आसमान से किसी फ़रिश्ते ने आकर बताया या फ़िर पृथ्वी के गर्भ से उनके कुल और गोत्र के सबूत फटकर बाहर आ गए हैं ?

साईं की पहचान, बिरयानी प्रेमी बाबा, मुसलमान की औलाद
प्रतीकात्मक(प्रश्नवाचक) चित्र 

  
माँ-बाप भी तो पैदा होते हैं.फ़िर औलादें आती हैं.साईं के माँ-बाप कहाँ के निवासी थे,इस बारे में भी प्रामाणिक रूप में कुछ भी ज्ञात नहीं है.मग़र साईं के दलाल कहाँ मानने वाले हैं.कुछ तो महाराष्ट्र के पाथरी गाँव को उनका जन्मस्थान घोषित कर चुके हैं जबकि कुछ आंध्रप्रदेश के पाथरी को साईं की नई दुकान बनाने के लिए लड़ रहे हैं.इन दोनों से अलग़ शिरडी साईं ट्रस्ट तीसरे राग अलाप रहा है.

साईं की पहचान, बिरयानी प्रेमी बाबा, मुसलमान की औलाद
जन्मस्थान विवाद में विरोध प्रदर्शन 

साईं सच्चरित्र से ये स्पष्ट पता चलता है कि साईं एक यवनी(वास्तव में अफ़ग़ानी मुसलमान) फ़क़ीर थे.इसमें लिखा है-साईं मेघा की ओर देखकर कहने लगे, ‘तुम तो एक उच्च कुलीन ब्राह्मण हो और मैं बस निम्न जाति का यवन (मुसलमान) इसलिए तुम्हारी जाति भ्रष्ट हो जाएगी इसलिए तुम यहां से बाहर निकलो।-साई सच्चरित्र।-(अध्याय 28).  इसलिए ये पक्का हो जाता है कि साईं मुसलमान थे.वे हिन्दू नहीं थे.जब हिन्दू ही नहीं थे तो ब्राह्मण कैसे हो गए ? अब,झूठा कौन है-साईं सच्चरित्र या साईं समर्थक,ये तय होना चाहिए.

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साईं का असली चित्र 

    

साईं व्रत-पूजा और वीरवार 

हिन्दू धर्म में वीरवार का बहुत महत्त्व है.इसे गुरूवार(सभी वारों यानि दिनों का गुरू)भी कहा जाता है.इस दिन तीनों लोकों के पालनहार भगवान विष्णु और बृहस्पति देव की पूजा का विधान है जो अत्यंत लाभकारी माना जाता है.ऐसे में साईं बाज़ार के व्यापारी जो साईं को हिन्दू बताकर उन्हें भगवान रूप में मंदिरों में ठूंस रहे हैं,इसलिए उन्होंने भी वीरवार का दिन ही चुना है.साईं से जुड़ी एक फ़र्ज़ी कथा गढ़ ली है तथा पूजा व उद्दापन विधि के प्रचार-प्रसार किए जा रहे हैं.

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साईं बाबा की व्रत एवं पूजा विधि पुस्तक का सांकेतिक चित्र 

  
ये कितनी हैरानी की बात है कि जिस साईं ने कभी ख़ुद व्रत नहीं रखा,पूजा-उपासना नहीं की और नाहीं कभी इसके लिए उन्होंने किसी को प्रेरित किया,उस साईं के लिए व्रत और पूजा के विधान बताए जा रहे हैं.साईं सच्चरित्र साफ़ कहता है-
बाबा ने स्वयं कभी उपवास नहीं किया और न ही उन्होंने किसी को करने दिया। साईं सच्चरित्र (अध्याय 32)           
मटन बिरयानी प्रेमी साईं ने एक एकादशी को पैसे देकर केलकर को मांस खरीदकर लाने को कहा। -साईं सच्चरित्र (अध्याय 38)         
ब्राह्मण बताए जा रहे साईं ने एक ब्राह्मण को बलपूर्वक बिरयानी चखने को कहा। -साईं सच्चरित्र (अध्याय 38)            इसके अलावा,’अल्लाह मालिक़’ सदा उनके होठों पर था.साईं सच्चरित्र में,अनेक बार साईं ने ‘अल्लाह मालिक’ बोला, ऐसा लिखा है।पूरी पुस्तक में साईं ने एक बार भी किसी हिन्दू देवी-देवता का नाम नहीं बोला और न ही कहीं ‘सबका मालिक एक’ बोला।
मग़र जैसा कि हम जानते हैं कि दुकानदार रोज़ी की क़सम ख़ाकर भी झूठ बोलता है वैसे ही मांसाहारी साईं  के ना सिर्फ़ व्रत-पूजा के विधान बताए जा रहे हैं बल्कि उसके प्रचार-प्रसार पर पानी की तरह पैसा भी बहाया जा रहा है.मत्लब साफ़ है-बड़े प्रोजेक़्ट पर बड़ा निवेश.पैसे पहले लगेंगें तभी तो वापस फिर बरसेंगें.पैसा पैसे को खींचता है.शुद्ध एवं सशक्त व्यापार.

साईं का रामनवमी और दशहरा कनेक्शन

उल्लेखनीय है कि रामनवमी,भगवान श्रीराम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है.हर्ष और उल्लास के इस पर्व के मनाए जाने का उद्देश्य है-हमारे भीतर ‘ज्ञान के प्रकाश का उदय’.इससे चाँद मियां उर्फ़ साईं बाबा का क्या लेना देना ? साईं कब पैदा हुआ,कहाँ पैदा हुआ और वो किसकी औलाद था,किसी को पता नहीं.कोई साक्ष्य नहीं.यदि कुछ है भी तो वो हैं महज़ सुनी-सुनाई बातें जिनके ना सिर हैं और ना पैर.इन्हें साईं की दुकानदारी में लगे रहे किराए के टट्टूओं ने किताबों की शक़्ल दे दी.साईं के कलाकारों की तो जैसे बांछें खिल गईं.उन्हें रामनवमी नामक एक बड़ा सीन मिल गया.उन्होंने साईं को पालकी में बिठाया और सजा धजाकर बना डाली एक भव्य फ़िल्म.

साईं की पहचान, बिरयानी प्रेमी बाबा, मुसलमान की औलाद
रामनवमी के अवसर पर साईं की झांकी  

                 
रही बात ‘ज्ञान के प्रकाश के उदय’ की तो ये जगज़ाहिर है कि साईं ने ना तो रामायण दी और नाहीं गीता का ज्ञान दिया.यदि कुछ दिया तो वो है-अल्लाह मालिक़.कर्मकांड,ध्यान,योग आदि के विरोध में दलीलें.साईं मस्ज़िद में ख़ुद आठों पहर रोहिला मुसलमान द्वारा क़ुरान की आयतें सुनते,नमाज़ पढ़ते लेकिन पूजा-पाठ,गीता-पाठ आदि के वक़्त धर्मनिपेक्ष बन जाते थे.गंगाजल तो झंझट का विषय था.

साईं की पहचान, बिरयानी प्रेमी बाबा, मुसलमान की औलाद
मुसलमानों की मज़हबी क़िताब क़ुरान 

      
साईं ने ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ भी दी जो ना कभी थी,ना है और ना कभी रहेगी.इसी ने महाराष्ट्र से शुरू हुई हिन्दुराष्ट्र की बयार की गति कम की.फ़िर,भारत माता के आँचल को फ़ाड़कर देश के दो टुक़डे किए.समस्या यहीं ख़त्म नहीं हुई.आज के शेष भारत में भी मिनी पाक़िस्तान बन चुके 20 से भी ज़्यादा इलाक़े झटके देने को तैयार और बेक़रार हैं.    
सामर्थ्य की बात तो पूछिए मत.अखाड़े में शिर्डी के स्थानीय पहलवान मोहिद्दीन तम्बोली से पटखनी ख़ाकर तथाकथित दिव्य पुरुष साईं ऐसे शर्मिंदा हुए जैसे गली के किसी गुंडे के हाथों पिटे हों.साईं सच्चरित्र कहता है-‘इसके बाद तो साईं की वेश-भूषा के साथ चाल-ढ़ाल भी बदल गई’.इसे यों भी कह सकते हैं कि एक हारे हुए खिलाड़ी ने अपमान के मुद्दे से ध्यान भटकाने और नई छवि गढ़ने के मक़सद से स्वांग रचा.लेकिन,ज़ाहिल और पथभ्रष्ट ग्रामीणों को फ़िर भी समझ नहीं आया और टोने टोटके जारी रहे.मंडलियां बनती गईं.दुकानदारी चल निकली.
अब बात दशहरे यानि विजयादशमी की है.भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था तथा देवी दुर्गा ने नौ रात्रि एवं दस दिन के युद्ध के उपरांत महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी.साईं ने क्या किया ? कहते हैं वो इसी दिन मरे थे.फ़िर तो ये उनका शोक दिवस हुआ.इस दिन मातम मनाया जाना चाहिए तथाकथित अजन्मे और अविनाशी साईं की याद में.भीड़ जितनी जुटेगी तिज़ोरी उतनी बड़ी होगी.

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दशहरे पर साईं लीला 


और चलते चलते अर्ज़ है ये शेर…  
  जब कभी फूलों ने ख़ुश्बू की तिज़ारत की है,  
  पत्ती पत्ती ने हवाओं से शिकायत की है। 

और साथ ही… 

 हमसे तो इसी बात पे नाराज़ हैं कुछ लोग,
 हमने कभी झूठों की हिमायत नहीं की है                      

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रामाशंकर पांडेय

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