जिन्होंने पूरी दुनिया को कोरोना रूपी वैश्विक महामारी की भट्टी में झोंका,लाखों बेगुनाहों की ज़ान ले ली,हजारों लोगों को मौत और ज़िन्दगी के बीच संघर्ष की स्थिति में ला खड़ा किया है,वे ही अब कोरोना योद्धा की भूमिका में नज़र आ रहे हैं.दर्द देने वाले मरहम लगाने का स्वांग कर मसीहा बन गए हैं.साथ ही,बड़े सयाने और पूर्ण समर्थ भी मूर्ख और दुर्बल की भूमिका में नज़र आ रहे हैं.परिस्थितियों के आगे घुटने टेकने की ये अदा ऐसी है जिसे देखकर शुतुरमुर्ग भी शरमा जाए.आख़िर ऐसी अनोखी लाचारी-बेचारगी का रहस्य क्या है?
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डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस और शी ज़िनपिंग की जोड़ी |
कोरोना महामारी के प्रकाश में आने से लेकर उसकी अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग लहरों के फैलाव तक की सभी परिस्थितियों का बारीक़ी से अध्ययन करें तो पता चलता है कि तकनीक और विकास का दम भरने वाली शक्तियां दरअसल भीतर से बहुत खोखली हैं.सभ्य और दूरदर्शी लोगों को मोटे-मोटे चश्मों की ज़रूरत है.
पुरानी वैमनस्यता,व्यक्तिगत स्वार्थों,झूठी अकड़ और भय की राजनीति ने महाशक्तियों को पहले ही छोटे-छोटे पॉकेट में समेट दिया है.कोई सर्वमान्य नेता नहीं है.इसलिए भरोसे के अभाव में ध्रुवीकरण की बजाय गुटबाज़ी चरम पर है.
कप्तान बिना ज़हाज़ डूबता ही है.
ऊपर से कोरोना ने दूरियां बढ़ा दी.ताक़तवर कमज़ोर हुए तो अराजकता हावी हो गई.
बेलगाम वैश्विक संगठनों ने मर्यादाएं तोड़ीं,कुछ महत्वकांक्षी लोगों के हाथों की कठपुतली बनकर विश्व का कल्याण करने की बजाय विपदा काल में विश्व के विनाश के षडयंत्र में शरीक हो गईं.
निम्नलिखित बिन्दुओं के ज़रिए उपरोक्त परिस्थितियों का उदाहरण सहित ज़्यादा स्पष्टीकरण संभव है.
शुरुआती खेल
उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस की शुरुआत चीन के वुहान शहर से हुई थी.आरोप के मुताबिक़,चीन ने इसे वुहान की लैब में तैयार करवाया था जो पिछले कुछ प्रयोगों में से ही एक था.मगर इस बार कुछ ग़लती हो गई और इसने ख़तरनाक संक्रमण का रूप ले लिया.चीन ने पहले तो गोपनीय तरीक़े से इसे नियंत्रित करने का प्रयास किया.वह इसमें काफ़ी हद तक सफल भी रहा.लेकिन तभी वहां के ली वेनलियांग नामक एक डॉक्टर ने इसका खुलासा कर दिया.उसने सार्स जैसी इस बीमारी के लक्षणों के बारे अपने साथियों को बता दिया.चीन सरकार ने उसे क़ैद कर लिया.उसकी रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई/मार डाला गया.
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मरहूम चीनी डॉक्टर ली वेनलियांग |
मगर ये बात अब तक सारी दुनिया को पता चल चुकी थी.विशेषज्ञ ही नहीं राजनीतिक हल्क़ों से भी चीनी प्रशासन पर आरोप लगने लगे.स्वयं अमरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने भी इसे चाइनीज़ वायरस कहा.इसके बावज़ूद चीन ने इस वायरस के संक्रमण से संबंधित ज़ानकारी छुपाए रखी.आरोपों का खंडन करते हुए उसने यहां तक कह दिया कि घातक कोविड-19 वायरस जो वुहान में पाया गया है,वो कहीं और से लाया गया है.
चीनी विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने तो कोरोना वायरस प्रसार के लिए अमरीकी सेना को ही ज़िम्मेदार बता दिया दिया.उनकी ओर से कहा गया कि ये वायरस वुहान शहर में अमरीकी सैनिक लेकर आए थे.
लेकिन ये प्रत्यारोप भी काम न आया.चीन चहुंओर घिरता दिखाई दिया तो उसने डब्ल्यूएचओ का इस्तेमाल करना शुरू किया.डब्ल्यूएचओ भी अपने प्रमुख टेड्रोस एधानोम गेब्रेयसस के नेतृत्व में चीन के सुर में सुर मिलाने लगा.
इस पर अमरीका और भड़क गया.ट्रंप ने डब्ल्यूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाईजेशन- विश्व स्वास्थ्य संगठन) को चीन के हाथों की कठपुतली तक कहा और आगे की फंडिंग रोकने का एलान कर दिया.
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डोनल्ड ट्रंप,टेड्रोस और ज़िनपिंग |
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने कहा-
” उन्होंने (डब्ल्यूएचओ ने) हमें गुमराह किया.इसलिए अमरीका पहले डब्ल्यूएचओ के बारे में ज़ल्द ही कुछ सिफारिशें लेकर आएगा और उसके बाद चीन के बारे में भी ऐसा ही क़दम उठाया जाएगा. ”
आपातकाल की घोषणा में देरी
इबोला हो या कोरोना,दोनों ही मामलों में डब्ल्यूएचओ प्रकोप के बारे में प्रारंभिक डेटा एकत्र करने में विफल रहा,महामारी को अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने देरी हुई.
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डब्ल्यूएचओ भवन का चित्र |
इसकी सबसे बड़ी वज़ह ये रही कि संगठन ने प्रकोप के बारे में डेटा के लिए केवल चीनी सरकार पर भरोसा किया और अन्य स्रोतों से आने वाली जानकारी पर ध्यान नहीं दिया,जिससे इसके प्रसार के शुरुआती दिनों में वायरस की गंभीरता के बारे ग़लत विवरण मिला.
इस सन्दर्भ में डब्ल्यूएचओ ने अपने ही नियमों/प्रावधानों की धज्जियां उड़ाई जिनमें एक आईएचआर (अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम-2005) में अनुच्छेद 5 के अनुसार-
” डब्ल्यूएचओ अपनी निगरानी गतिविधियों के माध्यम से घटनाओं के बारे में जानकारी एकत्र करेगा,अंतर्राष्ट्रीय बीमारी फ़ैलने की उनकी क्षमता का आकलन करेगा. “
साथ ही,अनुच्छेद 11 के अनुसार-
” यह संबंधित देशों को सूचनाओं के साथ-साथ अंतर-सरकारी संगठनों को भी सूचित करेगा,जो समरूप घटनाओं को रोकने में उनकी मदद कर सकते हैं. “
हालांकि डब्ल्यूएचओ ने 2020 में जनवरी की शुरुआत बीमारी से संबंधित समाचार को शीर्षक “अज्ञात कारण से निमोनिया-चीन “ के तहत प्रकाशित किया गया,लेकिन रिपोर्ट किए गए निमोनिया के समग्र ज़ोखिम का आकलन करने में यह विफल रहा.कुछ लोग कहते हैं कि ऐसा जानबूझकर किया गया.
इस प्रकार,समय पर सबूतों की कमी के कारण ही संगठन 23 जनवरी 2020 को आयोजित आपातकालीन समिति (ईसी-इमरजेंसी कमिटी) की बैठक में इसे पीएचईआईसी (पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑफ़ इंटरनेशनल कंसर्न-अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजानिक स्वास्थ्य आपातकाल अथवा अंतर्राष्ट्रीय सार्वजानिक स्वास्थ्य आपातकाल) घोषित करने पर सहमति नहीं बना सका और अन्य देशों को प्रकोप के बारे में सूचित कर सावधान करने में देरी हुई.
इमरजेंसी कमेटी और महानिदेशक की कार्यप्रणाली
कोरोना महामारी से निपटने में चीन द्वारा आईएचआर (2005) के गाइडलाइन का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन आईएचआर के प्रवर्तन तंत्र की मौज़ूदगी पर सवालिया निशान है.
इमरजेंसी कमेटी,जो आईएचआर के प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करती है और डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक को सलाह देती है,उसके पास,किसी प्रकोप को पीएचईआईसी (अंतर्राष्ट्रीय सार्वजानिक स्वास्थ्य आपातकाल) घोषित करने और अस्थाई सिफारिशें अपनाने के लिए जिसमें विशेष उपाय,स्वास्थ्य कार्यबल मुद्दे,यात्रा सलाह,सीमा/यात्रा स्क्रीनिंग आदि के निर्णय लेने का विशेषाधिकार है,उसके तर्क आईएचआर से भिन्न और राजनीतिक प्रभाव से ग्रस्त पाए गए.
इसके अलावा डब्ल्यूएचओ की वेबसाइट में प्रकाशित ईसी रिपोर्ट में तुलनात्मक विवरणों की कमी,इस पर शक़ पैदा करती है कि क्या ईसी सदस्यों ने पीएचईआईसी को परिभाषित करने के लिए तकनीकी और वैज्ञानिक सबूतों को ध्यान में रखा.
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डब्ल्यूएचओ के कार्यकारी बोर्ड के 146 वें सत्र का फ़ोटो |
डब्ल्यूएचओ के कार्यकारी बोर्ड के 146 वें सत्र में कोरोना वायरस प्रकोप की प्रतिक्रिया के रूप में चीन के लिए आवश्यक और अनावश्यक यात्रा और व्यापार प्रतिबंधों के बारे में सदस्य देशों की राय के बिल्कुल उलट डब्ल्यूएचओ महानिदेशक डॉक्टर टेड्रोस,ने उन्हें सलाह दी कि आईएचआर दिशानिर्देशों के अनुरूप साक्ष्य के अभाव में चीन पर कोई भी यात्रा और व्यापार प्रतिबंध न लगाएं.इससे सदस्य देशों को डब्ल्यूएचओ से घोर निराशा हुई.
डब्ल्यूएचओ-चीन की भूमिका की जांच की मांग,लीपापोती
18 मई 2020 को भारत समेत दुनिया के 120 देशों की ओर से विश्व स्वास्थ्य महासभा में कोरोना वायरस को ख़तरनाक स्थिति में पहुंचाने वाले चीन और डब्ल्यूएचओ के खिलाफ़ जांच की माग बड़े ज़ोर-शोर से उठी.कुछ पल के लिए ऐसा लगा मानो टेड्रोस और शी ज़िनपिंग दुनिया की अदालत के कठघरे में खड़े हों.मगर फ़िर ज़ल्द ही बड़े शातिराना तरीक़े से दोनों माहौल पर क़ाबू पाने में सफल रहे तथा तय रणनीति के अनुसार लीपापोती शुरू हो गई.
बड़े नाटकीय ढंग से डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस और ज़िनपिंग ने स्वतंत्र जांच के लिए हामी भर दी.ज़िनपिंग दो क़दम आगे बढ़े और कोरोना महामारी से त्रस्त विकासशील देशों को दो अरब डॉलर की मदद का लालच दे दिया.
इस मौक़े पर डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस ने कहा-
” हम ज़ल्द से ज़ल्द संयुक्त राष्ट्र संघ की स्वास्थ्य एजेंसी (डब्ल्यूएचओ) की महामारी में भूमिका की जांच शुरू करेंगें. “
तुम्ही क़ातिल,तुम्ही मुंसिफ.कितनी अज़ीब बात है.आरोपी ही जांच का एलान कर रहा है!
डब्ल्यूएचओ पर लग रहे आरोपों पर संगठन का बचाव करते हुए उन्होंने कहा-
” दुनिया को किसी अन्य तंत्र,समिति या संगठन की ज़रूरत नहीं है.डब्ल्यूएचओ को मज़बूती चाहिए,इसलिए इसका वित्त पोषण ज़रूरी है.सदस्य देश इसके लिए आगे आएं. “
चीनी राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग ने जांच की मांग पर कहा-
” चीन डब्ल्यूएचओ की अगुआई में कोरोना महामारी में वैश्विक कार्रवाई की समीक्षा का समर्थन करता है.चीन जांच के लिए तैयार है,लेकिन यह स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीक़े से होनी चाहिए.
साथ ही,हमारा देश इस महामारी से ज़ंग के लिए दुनिया को दो साल में दो अरब डॉलर की मदद भी देगा.यह मदद ख़ासतौर से महामारी से ग्रस्त विकासशील देशों को मुहैया होगी. “
ज़िनपिंग ने आगे कोरोना महामारी पर अपनी भूमिका पर उठ रहे सवालों के ज़वाब में सफ़ेद झूठ कहा-
” चीन ने डब्ल्यूएचओ और अन्य देशों को वायरस के आनुवंशिक क्रम समेत सभी प्रासंगिक डेटा उपलब्ध कराया है.हमने इस वायरस के इलाज़ और इसके नियंत्रण के अनुभव साझा किए हैं. “
कौन हैं टेड्रोस एधानोम गेब्रेयसस
पेशे से एक माइक्रोबायोलोजिस्ट टेड्रोस एधानोम गेब्रेयसस इथोपिया सरकार के मंत्री हैं जिन्हें साल 2017 चीन के प्रभाव में/प्रयासों से डब्ल्यूएचओ का प्रमुख (डायरेक्टर ज़ेनेरल) बने.उन पर आरोप है उन्होंने चीन को बचाया.
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डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस एधानोम गेब्रेयसस |
कहा जाता है कि चीन के एहसानों का बदला चुकाने/अपने आक़ा को ख़ुश करने के लिए वह तब तक मामले को हल्का बताते रहे जब तक कि कोरोना संक्रमण तमाम देशों में नहीं फ़ैल गया.
उन पर पहले भी आरोप लगते रहे हैं.उन्हें आतंकवादी तक कहा गया है.
टेड्रोस पर आरोप है कि इथोपिया का स्वास्थ्यमंत्री रहते हुए 2006,2009 और 2011 में कॉलरा महामारी का प्रकोप फैलने पर भी उन्होंने इसे महामारी घोषित नहीं किया था.2017 में प्रोफ़ेसर लैरी गॉसटिन ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया था कि इथोपिया में फ़ैली कॉलरा की महामारी के रूप में दर्ज़ करने की ज़िम्मेदारी टेड्रोस पर ही थी,लेकिन उन्होंने अपनी छवि बचाने के लिए ऐसा नहीं किया.
कोविड-19 के सन्दर्भ में चीन के बचाव ही नहीं टेड्रोस के बारे में कहा गया है कि वह कम्युनिस्ट नेता रहे हैं.पोलिटिकलाइट पोर्टल ने टेड्रोस की पुरानी तस्वीरों के साथ जो रिपोर्ट छापी है उसका शीर्षक है ‘डब्ल्यूएचओ का प्रमुख एक इथोपियन आतंकी है’.इस रिपोर्ट के मुताबिक टेड्रोस को टिगरे पीपल्स लिबरेशन फ्रंट (टीपीएलएफ )/आर्मी का सदस्य बताकर कहा गया है कि वह इस संगठन के तीसरे सबसे महत्वपूर्ण पदाधिकारी थे.
असल में,इस संगठन को इथोपिया की राजनीतिक पार्टी के रूप में देखा जाता है,लेकिन 1990 के दशक में अमरीका ने इसे आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल किया था.द हिल की रिपोर्ट में भी इस बात का ज़िक्र है कि यह पार्टी एक संघर्ष के बाद सत्ता में आई थी और 90 के दशक की शुरुआत में इसे ग्लोबल टेररिज्म डेटाबेस में सूचीबद्ध किया गया था.
टेड्रोस के उपरोक्त आतंकी/राजनीतिक संगठन पर ‘रणनीति के साथ भेदभाव और मानवाधिकार हनन’ के आरोप लग चुके हैं.पोलीटिकलाइट के मुताबिक़,टेड्रोस के इथोपिया का स्वास्थ्यमंत्री रहते हुए अमहारा प्रजाति के लोगों में जन्म-दर काफ़ी कम हुई,साथ ही,इथोपिया की जनगणना के दौरान इस प्रजाति के 20 लाख सदस्य ग़ायब कर दिए गए,जिसे एथनिक क्लींजिंग यानि नस्ली सफ़ाई कहा गया.
इथोपिया के विदेशमंत्री रहते टेड्रोस पर एक ब्रिटिश नागरिक को ज़बरन प्रताड़ित करने के आरोप भी लगे थे,जिससे बड़ा विवाद खड़ा हुआ था.इसके अलावा नस्ली हिंसा को लेकर मानवाधिकार वॉच ने इथोपिया सरकार पर 400 मौतों,70 हज़ार प्रदर्शनकारियों की गिरफ़्तारी और 15 हज़ार लोगों के विस्थापन का ज़िम्मेदार माना था.
पोलीटिकलाइट और द हिल की रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख है कि 2017 में डब्ल्यूएचओ का प्रमुख पद संभालने के बाद टेड्रोस ने ज़िम्बाब्वे के पूर्व तानाशाह रॉबर्ट मुगाबे को गुडविल एम्बेसडर नियुक्त कर दिया था.इससे विवाद खड़ा हो गया था.मामले ने जब तूल पकड़ा तो मुगाबे को पद से हटाना पड़ा.
चीन और शी ज़िनपिंग
सुपर पॉवर बनने की सनक में चीन अमानवीयता की हदें पार कर चुका है.वहां पिछले कई वर्षों से जैविक हथियारों का लगातार परीक्षण चल रहा है.सूत्रों के मुताबिक़,चीन ऐसे वायरस बना चुका है जो मानव जाति ही नहीं पशु-पक्षियों के लिए भी काफ़ी ख़तरनाक हैं.उनसे प्राकृतिक संसाधन छिन्न-भिन्न हो सकती है.बताया जाता है कि कोरोना वायरस उन्हीं जैविक हथियारों की श्रृंखला में से एक है.
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कोरोनामैन चीनी राष्ट्रपति ज़िनपिंग (प्रतीकात्मक) |
वहीं देश की सत्ता पर अपनी मज़बूत पकड़ स्थापित करने के लिए राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग ने अपने इर्द-गिर्द मुल्क और कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक माओ जेडांग का एक मिथकीय आभामंडल गढ़ लिया है.वह रूस के सहयोग से उत्तर कोरिया के सनकी तानाशाह किम जोंग उन का इस्तेमाल कर एक तरफ़ तो कमज़ोर हो चुके अमरीका को उलझाए हुए हैं तो दूसरी तरफ़ सारी दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने की कोशिश में हैं.
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उत्तर कोरिया का सनकी तानाशाह किम जोंग उन और चीनी राष्ट्रपति शी ज़िनपिंग |
यही कारण है कि चीन में जैसे ही कोरोना विस्फोट हुआ,सुरक्षा में पहले से तैयार ज़िनपिंग प्रशासन उसे क़ाबू करने में जुट गया.संभवतः उसके पास एंटीडोट भी तैयार था,जिसका उसने इस्तेमाल किया.
मगर जब ये प्रयास भी नाकाफ़ी लगने लगे तो उसने अपने ही प्रभावित लोगों पर बर्बरता शुरू कर दी.वुहान शहर जहां तक़रीबन 1.4 करोड़ लोग रहते हैं,लॉकडाउन लगा कोरोना संक्रमितों को घरों से ज़बरन उठा लिया गया.इलाज़ के नाम पर उन्हें कहां भेजा गया,उनके साथ क्या हुआ,ये आजतक पता नहीं चला.
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कोरोना पीड़ितों को घरों से ज़बरन उठा ले जाते चीनी अधिकारी |
सूत्रों के मुताबिक़,कुछ लोग ज़िंदा जला दिए गए तो कुछ दफ़न कर दिए गए.
अनगिनत लोगों को तो उसने अपने यहां तैयार वह वैक्सीन ज़बरन लगा दिया जो दुनिया का सबसे ख़तरनाक वैक्सीन बताया गया था.विशेषज्ञों के मुताबिक़,उसके 73 साइड इफ़ेक्ट थे.
डॉक्टरों को सेंसर कर दिया गया,पत्रकार ग़ायब कर दिए गए और फ़िल्मी कलाकारों पर गाज़ गिरी.
इस तरह कोरोना पर क़ाबू कर लिया गया.
चीनी सरकार ने अपने दबदबे के कारण टेड्रोस को डब्ल्यूएचओ के प्रमुख बनने में मदद की थी,उसने उनका (टेड्रोस का) भरपूर इस्तेमाल किया.सारे मामलों की लीपापोती कर विलेन की जगह वह हीरो बन गया.
यह उसके लिए आपदा में अवसर साबित हुआ.उसकी अर्थव्यस्था को इस संकट काल में मजबूती मिली.
सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज़ की निदेशक बौनी ग्लेज़र कहती हैं-
” बेरहम तरीक़ों का इस्तेमाल करके शी ज़िनपिंग महामारी पर नियंत्रण पाने में क़ामयाब रहे.कोरोना महामारी पर रोकथाम में अमरीका की तुलना में चीन के ज़्यादा क़ामयाब होने को इस बात के सबूत के तौर पर पेश किया गया कि चीन की साम्यवादी व्यवस्था पश्चिमी देशों की लोकतांत्रिक प्रणाली से अधिक बेहतर है. “
रीढ़ विहीन नेता का अमरीकी राष्ट्रपति चुना जाना
चीन की ग्लोबल साज़िश परवान चढ़ी.कोरोना महामारी और वैश्विक राजनीति के उथल-पुथल के बीच हुए अमरीकी चुनाव में राष्ट्रवाद हार गया और विघटनकारी शक्तियों के समर्थन से जो बाइडन नामक एक रीढ़ विहीन नेता वहां का राष्ट्रपति चुन लिया गया.ये कठपुतली राष्ट्रपति पहले से क़मज़ोर हो चुके अमरीका के खिलाफ़ एक मोहरा है.
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अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन |
संभव है अमरीका के सुपर पॉवर का तमगा भी छीन जाए.
डोनल्ड ट्रंप ने चीन की नाक में नकेल डाल दी थी.यूएन और डब्ल्यूएचओ में भी सुधार का वह आगाज़ कर चुके थे.ऐसे में,विश्व में शांति की दिशा में काफ़ी कुछ सकारात्मक होना संभावित था.मगर क़ुदरत को शायद यह मंज़ूर नहीं था और इसलिए परिवर्तन अधूरा रह गया.एक बार फ़िर से अंधेरा क़ायम हो गया है.
वुहान वायरस का अब ज़िक्र भी नहीं
पूरी दुनिया में ऐसी कई बीमारियां हैं जो जिन देशों में,राज्यों में और जिन क्षेत्रों से फ़ैली उनका नाम भी उसी पर रखा गया.जैसे स्पेनिश फ्लू.स्पेनिश फ्लू को ये नाम इसलिए मिला क्योंकि यह बीमारी पहली बार स्पेन में फ़ैली.इसलिए स्पेन का नाम इस फ्लू से जुड़ गया.
इसी प्रकार,युगांडा के जीका के जंगलों से शुरू हुआ वायरस जीका वायरस के नाम से जाना गया.
अफ्रीका के इबोला नामक नदी के पास फ़ैला वायरस इबोला वायरस,मलेशिया के गांव निपाह से शुरू हुआ वायरस निपाह वायरस के नाम से जाना जाता है.
2012 में सऊदी अरब से शुरू हुआ कोविड का एक स्ट्रेन अथवा वेरियंट सऊदी अरब के नाम से जुड़कर मर्स कोविड (मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम कोरोना वायरस) कहलाता है.लेकिन हैरानी की बात है कि वुहान शहर से उसी कोविड परिवार के एक सदस्य के रूप में निकला कोविड-19 जिसने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है,उसका नाम आज तक वुहान शहर और चीन से क्यों नहीं जुड़ पाया? इसे वुहान वायरस या चायनीज़ वायरस क्यों नहीं कहा जा रहा है?
इसका सीधा-सा ज़वाब है डब्ल्यूएचओ.डब्ल्यूएचओ को कोविड-19 को वुहान वायरस या चायनीज़ वायरस कहने पर ऐतराज़ है.उसकी स्वामिभक्ति चीन के साथ है.
दूसरी तरफ़ चीन का डर है.ड्रेगन से पंगा लेने की हिम्मत आज किसी देश में नहीं है.
मगर देर-सवेर हालात तो बदलेंगें ही.इतिहास दुनिया से पूछेगा कि जब कोरोना का यूके (ब्रिटेन का) वेरियंट आ गया,ब्राज़ीलियन वेरियंट आया और अफ़्रीकी तथा अमरीकी वेरियंट के बाद भारत का यानि इंडियन वेरियंट भी चर्चा के केंद्र में स्थापित हो गया तो जिस वुहान शहर में कोविड पैदा हुआ और उसी जगह से तबाही पूरी दुनिया में फ़ैली तो उस शहर का,उस क़ातिल वेरियंट का नामकरण क्यों नहीं हुआ?
जो तबाही चीन ने हमें तोहफ़े में दी उसकी यादें संजो कर रखने के लिए उसकी जीओ टैगिंग ज़रूर होनी चाहिए.
और चलते चलते अर्ज़ है ये शेर…
उसी का शहर वही मुद्दई वही मुंसिफ़,
हमें यकीं था हमारा क़ुसूर निकलेगा |
और साथ ही…
क़त्ल हो तो मेरा सा मौत हो तो मेरी सी,
मेरे सोगवारों में आज मेरा क़ातिल है |
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