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अस्त्र-शस्त्र: दो अलग शब्द ही नहीं, इनमें अंतर भी है

कर्ण का शक्ति अस्त्र एक दिव्यास्त्र था, जो घटोत्कच का वध कर फिर इंद्र के पास लौट गया था.

आमतौर पर लोगों को यही लगता है कि अस्त्र-शास्त्र एक ही शब्द है पर, ऐसा नहीं है.हालांकि इनका इस्तेमाल युद्ध में होता है , या कहीं भी दुश्मन पर हमला करने के लिए ही होता है मगर, दोनों की विशेषता और उपयोग के तरीक़े में बड़ा अंतर होता है.

अस्त्र-शस्त्र में अंतर, हथियारों के प्रकार, वेद और पुराण
सनातनी हिन्दुओं के प्राचीन अस्त्र-शस्त्र

वेद-पुराणों और स्मृतियों में कई ऐसे शब्द मिलते हैं, जिनका प्रयोग तो आम है पर, उनका सही अर्थ क्या है यह बहुत कम ही लोग जानते हैं.अस्त्र-शस्त्र भी उन्हीं में से एक है.

शस्त्रास्त्र या अस्त्र-शस्त्र के स्रोत सनातन हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथ हैं.इनमें यह उल्लेख मिलता है कि आर्यावर्त के आर्यपुरुष अस्त्र-शस्त्र विद्या में निपुण थे.वे आध्यात्म ज्ञान के साथ-साथ आतताइयों व दुष्टों से अपनी रक्षा व उनके दलन में प्रयोग होने वाले सभी प्रकार के अस्त्र-शस्त्र के ज्ञाता व स्वामी थे.आर्यों की यह शक्ति अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना में सहायक होती थी.

युद्ध के इतिहास में जाएं तो अस्त्र-शस्त्र की भूमिका एक चमचमाते हुए सितारे की भांति रही है.

वर्तमान में आमतौर पर पर्यायवाची के रूप में समझे जाने वाले अस्त्र और शस्त्र शब्द अस्त्र-शस्त्र को लेकर भ्रम पैदा करते हैं, और साथ ही अधिकांश लोगों को लगता है कि यह एक ही शब्द है.लेकिन वास्तव में, ऐसा नहीं है.

यानि, इसमें दो अलग-अलग शब्द हैं-अस्त्र और शस्त्र.इन दोनों में अंतर है.

इनका एक दूसरे का पर्यायवाची समझा जाना भी आंशिक ही सही है.हालांकि दोनों ही आयुध या हथियार हैं, और दोनों ही का प्रयोग शत्रु को हताहत करने के लिए किया जाता है मगर, इनकी विशेषता और उपयोग की विधि अलग-अलग है.

क्या है अस्त्र?

अस्त्र का शाब्दिक अर्थ है आयुध या हथियार.जैसे बाण, चक्र आदि.इसे परिभाषित करें तो अस्त्र वह आयुध या हथियार होता है, जो किसी मंत्र या यंत्र द्वारा संचालित होता है.

शास्त्रों में अस्त्रों को मंत्रो द्वारा शत्रु पक्ष पर दूर से फेंकने का ज़िक्र है, जैसे पाशुपतास्त्र, ब्रम्हास्त्र, गरुड़ास्त्र, ज्रिम्भास्त्र आदि.साथ ही उस यंत्र (मशीन) या उपकरण को भी अस्त्र कहा गया है, जिसकी मदद से दूसरे हथियार चलाए जा सकें.जैसे तोप आदि.

आज की बंदूकें इसी श्रेणी में कही जाएंगीं.

इसके अलावा, वे हथियार जो शत्रु के चलाए हथियारों को नष्ट करने व बचाव करने वाले (आज के शस्त्र विरोधी शस्त्र जैसे एंटी-मशीनगन, एंटी-टैंक गन तथा प्राक्षेपिक मिसाइल विरोधी शस्त्र) हों, उन्हें भी अस्त्र की श्रेणी में रखा गया है.जैसे ढाल, कवच, विभिन्न अस्त्र आदि.

मन्त्रों द्वारा चालित अस्त्रों को मान्त्रिक-अस्त्र या दिव्यास्त्र कहते हैं.इन पर देवी-देवताओं का अधिकार होता है.ये एक बार चलाए जाने के बाद वापस फिर इष्टदेव के पास पहुंच जाते हैं.

कर्ण का शक्ति अस्त्र ऐसा ही दिव्यास्त्र था, जो घटोत्कच का वध कर फिर इंद्र के पास लौट गया था.

मगर, इनमें कुछ ऐसे भी हैं, जिनका योद्धा बार-बार प्रयोग कर सकते हैं.यानि, लक्ष्य (टारगेट) को भेदकर या पूरा कर ये अस्त्र स्वतः योद्धा के अस्त्रों की पोटली में वापस पहुंच जाते हैं.

दिव्यास्त्रों में आग्नेयास्त्र, पर्जन्य, वायव्य, पन्नग, गरुड़, नारायणास्त्र, पाशुपत, ब्रह्मशिरा, एकागिन्न, अमोघास्त्र, ब्रह्मास्त्र, वरुणास्त्र, पर्वतास्त्र आदि विशिष्ट या अति विशिष्ट नाम बताये गए हैं.

शस्त्र क्या है?

शस्त्र का शाब्दिक अर्थ है आयुध, हथियार, लोहा, उपकरण, औजार, असलहा, हमले में इस्तेमाल होने वाली वस्तु.इसे परिभाषा के रूप में व्यक्त करें तो, शस्त्र वे हैं, जो हाथों में पकड़कर प्रहार के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं.

इन्हें अस्त्रों के समान दूर (ज़्यादा दूर) तक नहीं फेंका जा सकता है.ये शत्रु पर क़रीब से सीधा प्रहार कर घायल या वध करने के साधन हैं.जैसे तलवार, त्रिशूल, वज्र, खप्पर, खड्ग, परशु, बरछा आदि.

इस श्रेणी में तीन प्रकार के हथियार हैं, जिनमें काटने वाले- तलवार, परशु, भोंकने वाले- बरछा, त्रिशूल और पीटने वाले या कुंद शस्त्र मूशल, गदा, लट्ठ आदि हैं.

शस्त्र मुख्यतः हाथ से चलाए जाते थे पर, कई ऐसे हैं, जो छोटे यंत्र की सहायता से भी दूर तक चलायमान बताये गए हैं.शास्त्रों में इन्हें हस्त-शस्त्र और यांत्रिक-शस्त्र नाम दिया गया है.

हस्त-शस्त्र– इनमें शंकु, पट्टिश, वशि, तलवार, बर्छी, कुल्हाड़ा,चाकू, भुशुण्डी, असि, खड्ग, चन्द्रहास, फरसा, कुंटा, ऋष्टि, गदा, चक्र, वज्र, त्रिशूल आदि हैं.

यांत्रिक-शस्त्र– यांत्रिक शस्त्रों यानि, यंत्र द्वारा चलाए जाने वाले शस्त्रों में शक्ति, तोमर, पाश, शर (सायक, तीर, बाण), शण, परिघ, भिन्दिपल, नाराच आदि बताये गए हैं.

कुल मिलाकर शस्त्रों में योद्धा को स्वयं के बाहुबल और कौशल का परिचय देना होता था.यानि, इनके संचालन में योद्धा को शक्ति और युक्ति, दोनों ही का प्रयोग करना होता था.मगर, कुछ स्थानों (बहुत कम प्रसंगों में) पर मंत्रसिद्ध शस्त्रों का भी वर्णन मिलता है, जैसे भगवान विष्णु की कौमोदीकी गदा, नन्दक तलवार, भगवान शंकर का त्रिशूल और इंद्र का वज्र आदि.

कुछ विद्वान इन्हें दिव्यास्त्रों की श्रेणी में बताते हैं, जो मंत्र द्वारा सिद्ध होते थे, या देवी-देवता अपने भक्तों को प्रसन्न होकर प्रदान करते थे.

कुछ हो योद्धाओं के पास ऐसे दैवी शस्त्र हुआ करते थे.यही कारण है योद्धाओं को आमतौर पर शस्त्रधारी कहते हैं, अस्त्रधारी नहीं.

सनातन हिन्दू व्यवस्था में शस्त्रास्त्रों का वर्गीकरण

वेदों में 18 युद्ध कलाओं का वर्णन मिलता है.उपवेद धनुर्वेद में धनुर्विद्या यानि, तीरंदाजी के बारे में विस्तृत वर्णन है.धनुष-चंद्रोदय और धनुष-प्रदीप अस्त्र-शस्त्र विज्ञान के ज्ञान का भंडार हैं.

अग्निपुराण में धनुर्वेद के विषय में उल्लेख में शस्त्रास्त्रों के चार प्रमुख भाग बताये गए हैं.

1.अमुक्ता: इस भाग में ऐसे हथियार आते हैं, जिन्हें प्रयोग के दौरान फेंका नहीं जा सकता था.यानि, हाथों में पकड़कर ही इनका इस्तेमाल हो सकता था, गदा, खड्ग, परशु, तलवार आदि.

इस श्रेणी में मुख्यतः शस्त्र ही आते हैं.

ये दो प्रकार के हैं- (क) हस्त-अस्त्र: हाथ में पकड़कर प्रहार करने वाले, जैसे लट्ठ, गदा, तलवार आदि.

(ख) बाहु-युद्ध: बिना हथियार युद्ध करना.

2.मुक्ता: इस भाग में ऐसे हथियार हैं, जिन्हें प्रयोग के लिए फेंका जा सकता था.यानि, इन्हें फेंककर चलाया जाता था, जैसे भिन्दिपाल, भाला. शूल आदि.

इन्हें अस्त्रों की श्रेणी में रखा गया है किन्तु, इसमें शस्त्र भी आते हैं.

ये भी दो प्रकार के हैं- (क) पाणिमुक्ता: ऐसे हथियार, जिन्हें हाथ से फेंककर वार किया जा सके, जैसे भाला, त्रिशूल आदि.

इसमें कई मंत्रसिद्ध अस्त्र और दिव्यास्त्र भी शामिल हैं.

(ख) यंत्रमुक्ता: यानि, यंत्र (मशीन, जो वैदिक काल में थे) द्वारा फेंके जाने वाले अस्त्र, जैसे बाण, जिसे छोड़ने के लिए धनुष की आवश्यकता होती है.

3.मुक्तामुक्त: वे शस्त्र जिन्हें हाथ में पकड़कर अस्त्र की तरह प्रयोग किया जा सके, जैसे भाला, बर्छी, त्रिशूल आदि.इन्हें फेंककर या बिना फेंके यानि, दोनों ही प्रकार से इस्तेमाल हो सकता है.

4.मुक्तसंनिवृति: ऐसे आयुध या अस्त्र, जिन्हें छोड़कर फिर वापस लौटाए जा सकते हों, जैसे चक्र, विभिन्न प्रकार के बाण आदि.इनमें मुख्य रूप से दिव्यास्त्र होते थे.

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रामाशंकर पांडेय

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