इतिहास
मुग़लों का काला सच: मां, बहन और बेटियों से भी बनाते थे संबंध
दुनिया का इतिहास शौक़ और अय्याशी से भरा पड़ा है.लेकिन, जो अय्याशी मुग़लों ने की, उसकी मिसाल कहीं और देखने को नहीं मिलती.ख़ासतौर से, औरतों में तो जैसे वे डूबे रहते थे.इसे शबाब का शौक़ कहें या सेक्स की लत, इन्होंने अपनी मां, बहन और बेटियों को भी नहीं छोड़ा.उन्हें भी अपनी हवस का शिकार बनाया.
मुग़लों की अय्याशी (प्रतीकात्मक) |
मुग़ल झूठ-फ़रेब, मक्कारी, लूट, हत्या, अपने सगे बाप और भाइयों के क़त्ल और अय्याशी के लिए तो जाने ही जाते हैं, अपनी मां, बहन और बेटियों के शोषण को लेकर भी अपने ज़माने में काफ़ी बदनाम थे.मगर, चूंकि अंग्रेजों को भी इनकी हवा लग गई, कई मामलों में वे भी इनसे प्रभावित हुए, तो उनके द्वारा और बाद में वामपंथियों द्वारा इतिहास में लीपापोती कर सच को छुपाया जाता रहा, या सच को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया.
लेकिन, कहते हैं न कि लाख छुपाओ मगर, सच एक न एक दिन बाहर आ ही जाता है.इसी प्रकार, विदेशी लेखकों-इतिहासकारों में से ही, जो मुग़ल काल में भारत में रहते थे, या जिनका मुग़ल बादशाहों के दरबारों में आना-जाना था, उनमें से कुछ ने सच्चाई दबाने के बजाय मुग़लों की घिनौनी हरक़त को किताबों में दर्ज़ कर दिया.उनकी ये कृतियां सबूत के तौर पर मौजूद हैं, जो यह बताने के लिए काफ़ी हैं कि महान कहलाने वाले मुग़ल बादशाह वास्तव में इंसान कहलाने के लायक़ भी नहीं थे.सच कहा जाए तो, दुनियाभर में ऐसा कोई खानदान, जिसमें किसी के भी असली बाप का पता नहीं है, तो वह होगा- मुग़ल खानदान.
नशेड़ी हुमायूं का बेटा अक़बर हो या अकबर का अक़बर का पोता शाहजहां, इनका असली सच बहुत भयानक है.इन्होंने असंख्य महिलाओं की ज़िन्दगी नरक बनाई, उन्हें गिद्ध की तरह तो नोचा ही, अपनी मां, बहन और बेटियों को भी नहीं बख्शा.
अक़बर ‘महान’ की करतूतें
जिन्होंने मुग़ल-ए-आज़म और ‘जोधा अक़बर’ जैसी फिल्मों के आधार पर अपने दिलोदिमाग़ में अक़बर की तस्वीर बनाई होगी, उन्हें यह जानकार बड़ी निराशा होगी कि अक़बर वैसा बिल्कुल भी नहीं था.वह बड़ा ही मौक़ापरस्त और ज़ालिम था.ख़ासतौर से, औरतों के मामले में वह बहुत ही पत्थरदिल, बेरहम और शैतान जैसा था.
अक़बर ने गयासुद्दीन को भी बहुत पीछे छोड़ दिया था.ज्ञात हो कि गयासुद्दीन तो केवल हिन्दुओं को निशाना बनाता था, वह उनकी सुंदर लड़कियों-महिलाओं को उनके घरों से उठवा लेता था, अक़बर ने मुसलमानों को भी नहीं छोड़ा.
अक़बर ने सारी हदें पर कर दी थी.क्या दुश्मन, क्या दोस्त, क्या हिन्दू, क्या मुसलमान, क्या रिआया, क्या दरबारी, किसी की भी खुबसूरत बहू-बेटी इस सेक्स के लती (अति कामुक) से नहीं बच पाई थी.
अक़बर की कभी न मिटने वाली जिस्मानी भूख के बारे में अबुल फ़ज़ल से ज़्यादा शायद ही किसी ने बताया हो.अबुल फ़ज़ल इब्न मुबारक़ दरअसल, अकबरनामा और आइने अकबरी जैसी प्रसिद्ध पुस्तकों के रचनाकार होने के साथ-साथ अक़बर के नवरत्नों में से एक थे.अनुसार, अक़बर ने अपने कामी कीड़े को शांत करने के लिए बाक़ायदा एक हरम बनवाया था.
हरम दरअसल, इस्लामी संस्कृति में उस जगह को कहते हैं जहां सेक्स ग़ुलाम औरतें या रखैलें रखी जाती हैं.मुग़लों के ज़माने में यहां बादशाह के अलावा दूसरे मर्दों का जाना वर्जित था.
अबुल फ़ज़ल लिखते हैं-
” अक़बर के हरम में पांच हज़ार औरतें थीं.ये पांच हज़ार औरतें उसकी 36 बीवियों से अलग थीं. “
उनके अनुसार, अक़बर अपने हरम में नई लड़कियों-औरतों से पूछता था कि उन्होंने पहले किसी के साथ संभोग किया है या नहीं.
वह अपनी पसंद की महिलाओं के साथ काम क्रीडा का आनन्द लेता था.
हरम में महिलाओं को परदे और सख्त पहरे में रखा जाता था.
बताया जाता है कि एक बार हरम में लाए जाने के बाद कोई लड़की या महिला बाहर नहीं निकल पाती थी.वह अक़बर की जागीर थी और उसकी इज़ाज़त के बिना उसे कोई हाथ भी नहीं लगा सकता था.
किसी दूसरे मर्द, चाहे वह अक़बर का दरबारी हो या रिश्तेदार, के साथ पकड़े जाने पर मर्द के साथ-साथ औरत को भी गंभीर सज़ा मिलती थी.
लेखक-इतिहासकार बताते हैं कि पूरा भारत अक़बर की ग़ुलामी में आ जाने के बाद दूसरे राजाओं की कन्याओं-महिलाओं को उठा लेने के अवसर ख़त्म हो गए थे.मुस्लिम औरतों के साथ-साथ हिन्दू महिलाएं भी डर के मारे पर्दा करने लगी थीं.ऐसे में, अक़बर खूबसूरत महिलाओं की तलाश के लिए एक तरक़ीब निकाली.उसने मीना बाज़ार लगवाना शुरू किया, जिसमें पुरुषों का प्रवेश वर्जित था.
अक़बर के आदेश के अनुसार यहां औरतें ही दुकान लगा सकती थीं और औरतें ही ख़रीदारी कर सकती थीं.
बताया जाता है कि यहां बेपर्दा महिलाओं को देखने अक़बर बुर्क़े में घूमा करता था.साथ ही, उसने अपनी महिला जासूस भी लगा रखी थी, जो अक़बर की पसंद की महिलाओं को चिन्हित कर किसी प्रकार उन्हें हरम तक ले आती थीं.
हरम में पहुंच जाने के बाद कोई भी महिला वापस नहीं जा सकती थी.उनके घरों पर इस बाबत बाक़ायदा सूचना दे दी जाती थी कि फलां महिला बादशाह सलामत की ख़िदमत के क़ाबिल समझी गई है.अगर कोई महिला मुस्लिम है, तो उसका उसके शौहर से तलाक़ करा दिया जाता था.
पीर की बीवी और फुफेरी बहन को भी नहीं बख्शा
कई बीवियां और हज़ारों लौंडियां या रखैलें इकठ्ठा करने के बावजूद अक़बर का दिल कहां भरने वाला था.उसकी नज़र अब उसकी मां समान औरत सलीमा सुल्तान पर थी.
ज्ञात हो कि सलीमा सुल्तान उसी शख्श की बीवी थी, जिसने हुमायूं के मरने के बाद अक़बर या संरक्षक के अभिभावक और गुरू के तौर 14 साल की उम्र में उसकी देखभाल की और उसे क़ाबिल बनाया.इस दौरान उसने राजपाट संभाला और बढ़ाया और फिर अक़बर को उसके बाप की गद्दी सौंप दी.
इसका नाम था बैरम खान.एक बहुत ताक़तवर सेनापति.इसी की मदद से हेमू (जिसे हेमचंद्र विक्रमादित्य, ‘मध्ययुग का समुद्रगुप्त’ और ‘मध्ययुग का नेपोलियन’ भी कहा गया है) जैसे शक्तिशाली राजा को हराकर दिल्ली की तख़्त फिर से कब्जाई जा सकी.
सलीमा सुल्तान दरअसल, हुमायूं (अक़बर के बाप) की भांजी थी.हुमायूं ने उसकी शादी बैरम खान से करवाई थी क्योंकि बैरम खान उसका सबसे भरोसेमंद व्यक्ति और दोस्त था.उसने हिन्दू और पठान सैनिकों की कई ‘कल्ला (सिर) मीनारें’ खड़ी करवा दी थी.
इस प्रकार, सलीमा सुल्तान जहां अक़बर के फुफेरी बहन थी वहीं, वह उसकी ‘गुरू माता’ या इस्लामिक नज़रिए से ‘पीर की बीवी’ भी थी.मगर, अक़बर का आवारा दिलोदिमाग़ सलीमा में इन पवित्र रिश्तों के बजाय हुस्न और जवानी को देखता था.वह सलीमा को हासिल कर उसे अपने हरम में बिठाने का फ़ैसला कर चुका था.
उसने बैरम खान को फ़ौज से बाहर कर हज करने मक्का को रवाना किया और योजना के मुताबिक़ रास्ते में गुजरात में पाटन के पास अफ़ग़ान लड़ाकों के हाथों उसका क़त्ल करवा दिया.
फिर, बेवा हो चुकी सलीमा को उसने अपनी बेग़म बनाकर हरम में डाल दिया.
सलीमा सुल्तान बेग़म अब शहंशाह के हरम की मल्लिका थी.
इतिहासकारों के मुताबिक़, सलीमा महल में आई थी, तो साथ में उसका पांच साल का बेटा रहीम भी था.सलीमा को तो अक़बर ने बेग़म बना लिया लेकिन, रहीम को एक बेटे के रूप में विरासत का हक़ नहीं दिया.
सगी बेटी को बीवी और ‘हरम की तितली’ बनाया
अक़बर ने अपनी सगी बेटी आराम बेग़म को अपनी एक अघोषित बीवी बनाकर रखा.पूरी ज़िन्दगी उसकी शादी नहीं की.आख़िरकार, कुंआरी ही वह जहांगीर के शासन काल में मृत्यु को प्राप्त हुई.
आराम बेग़म अक़बर की एक खूबसूरत बेग़म दौलत शाद की दूसरी (पहली शकर-उन-निसा के बाद) बेटी थी.वह बला की हसीन होने के साथ-साथ चुलबुली मिजाज़ की भी थी.बताते हैं कि उसे देखकर कोई भी आकर्षित हो जाता था.इसी वज़ह से अक़बर की भी नीयत ख़राब हो गई और वह उसे भोगने लगा.
जानकारों के अनुसार, अक़बर उसे ‘लाडली बेग़म’ कहकर बुलाता था और महल में कभी ख़ुद से दूर नहीं होने देता था.
अक़बर ने उसे ‘हरम की तितली’ का ख़िताब दे रखा था, जिससे उसका रूतबा बहुत ऊंचा समझा जाता था.अक़बर की अपनी बेगमों या बीवियों का स्थान उसके बाद ही था.
आराम बेग़म को लेकर महल में ऐसी व्यवस्था की गई थी कि कोई ग़ैर-मर्द उसकी एक झलक भी न पा सके.
इतिहासकारों के मुताबिक़, अक़बर की सगी बेटी आराम बेग़म मुग़लिया सल्तनत की एक ऐसी शहजादी थी, जिसके चलते बाक़ी सभी शहजादियों की ज़िन्दगी जहन्नम बन गई.दरअसल, आराम बेग़म किसी और की न हो सके या महल से दूर न हो, इसके लिए अक़बर ने यह नियम या परंपरा बना दी कि मुग़लिया सल्तनत की शहजादियों का निक़ाह नहीं होगा.यह परंपरा आगे भी जारी रही.
रंगीले शाहजहां की रंगरेलियां
अक़बर का पोता और जहांगीर का बेटा शाहजहां अय्याशियों में अपने दादा से भी बढ़कर निकला.जहांगीर को जहां शराब की लत थी वहीं, शाहजहां सेक्स या काम क्रीडा में ही डूबा हुआ रहता था.उसके पास भी आधे दर्ज़न से ज़्यादा बीवियां थीं.हजारों रखैलें (सेक्स स्लेव) थीं.बावजूद इसके, उसका दिल नहीं भरा, तो उसने अपनी सगी बेटी से अघोषित ब्याह कर ज़िन्दगी भर उसे अपनी बीवी के रूप में रखा.जीते जी उसने उसे (बेटी को) ख़ुद से दूर नहीं होने दिया.
इतिहासकार विन्सेंट आर्थर स्मिथ अपनी किताब ‘अक़बर- द ग्रेट मुग़ल’ में लिखते हैं-
” शाहजहां के महल में 8 हज़ार रखैलें (यौन दासियां) थीं, जो जबरन हिन्दू परिवारों से अगवा कर रखी गई थीं.यह हरम उसके बाप जहांगीर से विरासत में मिला था.उसने बाप की जायदाद को और बढ़ाया. “
विन्सेंट स्मिथ अपनी किताब में आगे (पेज संख्या- 359) लिखते हैं-
” शाहजहां ने एक बार अपने हरम में अधेड़ और वृद्ध रखैलों की छंटनी कर उन्हें बाहर निकाला, तो उनसे दिल्ली का रेडलाइट एरिया जी. बी. रोड (आज का) गुलज़ार हुआ था, और वहां इस धंधे की शुरुआत हुई थी. “
जिस शाहजहां को मोहब्बत की मिसाल के रूप में पेश किया जाता है दरअसल, वह एक विकृत मानसिकता वाला व्यक्ति था.उसके लिए औरत सिर्फ़ एक शरीर थी, जिसको भोगने में ही उसे परम आनन्द की प्राप्ति होती थी.
फ़र्ज़ी किस्से-कहानियों में जैसे किरदार गढ़े जाते हैं वही ही मुमताज़ महल को भी पेश किया गया है.मुमताज़ महल वास्तव में ‘अर्ज़ुमंद-बानो-बेग़म’ थी, जो शाहजहां की सात बीवियों में चौथी थी.यानि, इससे पहले शाहजहां तीन शादियां कर चुका था.और इसके मरने के बाद तीन और शादियां की थी.यहां तक कि मुमताज़ के मरने के एक हफ़्ते के अंदर ही शाहजहां ने उसकी बहन फ़रज़ाना से शादी कर ली थी, जिसे उसने रखैल बना रखा था, और उससे उसे (शाहजहां को) एक बेटा भी था.
यह भी कोरा झूठ है कि मुमताज़ शाहजहां की बेगमों में सबसे खूबसूरत थी.दरअसल, सबसे खूबसूरत तो इशरत बानो थी, जो उसकी पहली बीवी थी.
ज्ञात हो कि मुमताज़ कोई कुंआरी लड़की नहीं, बल्कि एक शादीशुदा औरत थी.उसका शौहर शाहजहां की सेना में सूबेदार था.शाहजहां ने उस सूबेदार शेर अफ़ग़ान खान का क़त्ल करवाकर मुमताज़ से निक़ाह किया था.
ग़ौरतलब है कि 38 वर्षीय मुमताज़ की मौत किसी बीमारी या दुर्घटना से नहीं, बल्कि शाहजहां द्वारा लगातार शारीरिक शोषण के परिणामस्वरूप उसके चौदहवें बच्चे को जन्म देने के दौरान कमज़ोरी और खून की कमी की वज़ह से हुई थी.
अपनी हवस में अंधे शाहजहां के लिए रिश्ते-नातों की कोई अहमियत नहीं थी.इतिहासकारों के मुताबिक़, वह अपनी सगी बेटी का भी शारीरिक शोषण करता था और इस कारण भी वह दरबारियों और अवाम के बीच कुख्यात था.
बेटी में नज़र आती थी बीवी, करता था यौनाचार
शाहजहां को अपनी बेटी जहांआरा में बीवी मुमताज़ नज़र आती थी.इसलिए मुमताज़ की मौत के बाद उसने जहांआरा को भोगना शुरू किया.उसके बाद तो जहांआरा की जैसे उसे लत लग गई.वह जहांआरा से पल भर के लिए भी अलग नहीं होता था.
यह देखकर महल में कानाफूसी होने लगी और धीरे-धीरे बात दरबारियों से होती हुई अवाम तक पहुंच गई.
मसला बादशाह से जुड़ा था इसलिए, आलिमों (मज़हब के जानकारों) की बैठक हुई.वहां बादशाह के अपनी बेटी से नाजायज़ रिश्ते को जायज़ ठहराने के लिए इस बात पर सहमति बन गई कि ‘माली को अपने लगाए पेड़ का फल खाने का हक़ है.’
फ़्रांसिसी इतिहासकार फ्रांकोइस बर्नियर अपनी किताब ‘ट्रेवेल्स इन द मुग़ल एम्पायर’ में लिखते हैं-
” जहांआरा बहुत सुंदर थीं और शाहजहां उन्हें पागलों की तरह प्यार करते थे.जहांआरा अपने पिता का इतना ध्यान रखती थीं कि शाही दस्तरख्वान पर ऐसा कोई खाना नहीं परोसा जाता था, जो जहांआरा की देखरेख में न बना हो. “
बर्नियर आगे लिखते हैं-
” उस ज़माने में हर जगह चर्चा थी कि शाहजहां की अपनी बेटी के साथ नाजायज़ ताल्लुक़ात हैं.कुछ दरबारी तो चोरी-छुपे यह कहते सुने जाते थे कि बादशाह को उस पेड़ से फल तोड़ने का पूरा हक़ है, जिसे उसने ख़ुद लगाया है. “
शाहजहां जहांआरा का पूरा ख्याल रखता था.उसकी हर ख्वाहिश पूरी करता था.मगर, किसी मर्द को, चाहे कोई कितना भी क़रीबी या ख़ास रिश्तेदार क्यों न हो, उसे जहांआरा के पास फटकने नहीं देता था.
बताते हैं कि एक बार जहांआरा अपने एक आशिक़ के साथ हमबिस्तर थी, तभी शाहजहां वहां पहुंच गया.यह देख आशिक़ डर के मारे तंदूर में घुसकर छुप गया.शाहजहां के लिए यह बात नाकाबिले बर्दाश्त थी.उसने तंदूर में आग लगवा दी, और उसे ज़िन्दा जला दिया.
इतिहासकारों के मुताबिक़, औरंगजेब जब सत्ता पर क़ाबिज़ हुआ, तो उसने शाहजहां (अपने बाप) को जहांआरा के साथ ही आगरा के क़िले में बंद कर दिया.
शाहजहां ने जीते जी जहांआरा की शादी नहीं होने दी.द हिस्ट्री चैनल के अनुसार, 22 जनवरी, 1966 को 74 साल की उम्र में मर्दाना जोश बढ़ाने वाली दवा ज़्यादा खा लेने के कारण शाहजहां की मौत हो गई थी.
शाहजहां की मौत के बाद भी जहांआरा की ज़िन्दगी बेरंग ही रही.सितंबर 1681 में 67 साल की उम्र में कुंआरी जहांआरा इस दुनिया से चल बसी.बताते हैं कि दिल्ली में निज़ामुद्दीन औलिया की मज़ार की बगल में उसे दफ़नाया गया जहां आज भी उसकी क़ब्र मौजूद है.
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