कानून और अदालत
कंप्लेंट केस क्या है और यह पुलिस केस से कैसे अलग है, जानिए
किसी आपराधिक घटना में पुलिस की मदद न मिलने की स्थिति में हर व्यक्ति को अदालत जाने का अधिकार प्राप्त है.वहां पीड़ित व्यक्ति या वादी को पूरी घटना का उल्लेख करते हुए प्रतिवादी को तलब कर अपराध के लिए दंडित करने की प्रार्थना सहित मजिस्ट्रेट के सामने एक पेटिशन या परिवाद पत्र दाख़िल करना होता है.इसे कंप्लेंट केस कहते हैं, जिसमें एक एफिडेविट यानि शपथ पत्र भी शामिल होता है जो यह दर्शाता है कि आरोप सही हैं.
कंप्लेंट केस और अदालत (प्रतीकात्मक) |
हमारा संविधान कहता है कि किसी व्यक्ति के साथ कोई आपराधिक घटना घटित होने की सूचना पर उसकी मदद करना स्थानीय पुलिस का कर्तव्य है.साथ ही, इससे संबंधित आरोपियों के ख़िलाफ़ एनसीआर (नॉन कॉग्निजेबल रिपोर्ट) या एफआईआर (फर्स्ट इन्फ़ॉर्मेशन रिपोर्ट) यानि प्राथमिकी दर्ज़ कर कार्रवाई करने का प्रावधान भी है.मगर यदि, पुलिस ऐसा नहीं करती या उचित कार्रवाई में कोताही बरतती है, तो फिर पीड़ित व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के यहां कंप्लेंट दाख़िल करने का अधिकार है, ताकि अपराधी के विरुद्ध क़ानूनी कार्यवाही हो सके.
ऐसे में, कंप्लेंट केस की अहमियत को देखते हुए इससे संबंधित सभी मुख्य बातों या बिन्दुओं पर चर्चा आवश्यक है, ताकि लोगों को पूरी जानकारी मिल सके.
कंप्लेंट केस क्या है?
कंप्लेंट केस, किसी व्यक्ति के साथ हुई आपराधिक घटना की बाबत स्वयं उस व्यक्ति या उसके क़रीबी रिश्तेदार के द्वारा स्थानीय अदालत में इंसाफ़ के लिए गुहार है.इसमें मजिस्ट्रेट (दंडाधिकारी) के यहां शिक़ायत की जाती है, ताकि प्रतिवादियों के खिलाफ़ विधिक कार्यवाही (लीगल प्रोसीजर) की जा सके.इस शिक़ायत या परिवाद को अंग्रेजी में कंप्लेंट और उर्दू में इस्तगासा कहते हैं.यह सिविल या क्रिमिनल या फिर दोनों प्रकार (एक ही समय में अदालत में चलने योग्य) का हो सकता है.
कंप्लेंट केस सिर्फ़ और सिर्फ़ मजिस्ट्रेट के यहां दाख़िल हो सकता है.इसलिए केस दाख़िल होने के बाद मामला मजिस्ट्रेट के संज्ञान में आता है और आगे की प्रक्रिया शुरू होती है.
कंप्लेंट केस संज्ञेय (कॉग्निजेबल) और असंज्ञेय (नॉन-कॉग्निजेबल), दोनों प्रकार के अपराधों में दाख़िल हो सकता है.
कंप्लेंट केस दरअसल, वह केस है, जिसमें, मजिस्ट्रेट के सामने मामला पेश होते ही पुलिस की भूमिका ख़त्म हो जाती है.यानि मजिस्ट्रेट के संज्ञान में आने के बाद, कोई पुलिस अधिकारी उसमें अपने स्तर से या अपनी मर्ज़ी से जांच नहीं कर सकता.
पुलिस मजिस्ट्रेट के आदेश से ही ऐसे मामले (कोर्ट में लंबित) की जांच कर सकती है.
संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) के मामले में
अगर किसी संज्ञेय मामले जैसे हत्या, हत्या का प्रयास, रेप, डकैती, लूट या अन्य गंभीर आपराधिक घटनाओं (जिनमें बिना वारंट गिरफ़्तारी हो सकती है) में पुलिस सीधे एफआईआर दर्ज़ नहीं करती, तो पीड़ित सीआरपीसी (Code of Criminal Procedure) यानि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-156 (3) के तहत अदालत में कंप्लेंट केस दाख़िल कर सकता है.
इसमें साक्ष्यों (सबूतों) और गवाहों (यदि हैं तो) के आधार पर अदालत की कार्यवाही चलती है.
इसमें अदालत के सामने पेटिशन (याचिका, अर्ज़ी) के साथ पुलिस को दी गई शिक़ायत की कॉपी (जिस पर पुलिस ने कार्रवाई नही की थी) और तमाम सबूत पेश करने होते हैं, जो केस को मजबूती प्रदान कर सकते हैं.
केस के ट्रायल में अगर मजिस्ट्रेट शिकायती के आरोपों की बाबत सबूतों और बयान से संतुष्ट हो जाता है, तो वह पुलिस को मामले की जांच कर उसकी रिपोर्ट अदालत में सौंपने का आदेश देता है.इसके आधार पर ही फिर, फ़ैसला होता है.
असंज्ञेय अपराध (Non-Cognizable Offence) के मामले में
अगर, मामला असंज्ञेय हो, तो सीआरपीसी (Code of Criminal Procedure) यानि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-200 के अंतर्गत अदालत में केस दाख़िल होता है.
ऐसे मामले में वादी (पेटिशनर) को कोर्ट में सभी साक्ष्य प्रस्तुत करने होते हैं.गवाही (प्री-समनिंग एविडेंस) होती है, और उसके बाद जज प्रतिवादी (अब आरोपी) को समन जारी करते हैं.
फिर, कोर्ट की कार्यवाही आगे बढ़ती है और तमाम दूसरी ज़रूरी प्रक्रियाओं के बाद ही केस निर्णय तक पहुंचता है.
समन (Summon) के बाद ही प्रतिवादी बनता है आरोपी
कंप्लेंट केस में अदालत की तकनिकी भाषा भी थोड़ी अलग होती है.इसमें समन (नोटिस, कोर्ट का बुलावा पत्र) जारी होने से पहले केस दाख़िल करने वाला वादी (Petitioner) और जिसके खिलाफ़ आरोप है या केस दाख़िल है, वह प्रतिवादी (Respondent) कहलाता है.लेकिन, समन जारी होने के बाद स्थिति बदल जाती है.प्रतिवादी को अब प्रतिवादी के बजाय आरोपी कहा जाता है.
जैसा कि विदित है कि मजिस्ट्रेट वादी के बयान से संतुष्ट होने के बाद ही समन जारी करता है, वरना वह केस खारिज़ कर देता है.मगर, समन जारी होने के बाद, प्रतिवादी को बतौर आरोपी अदालत में पेश होकर ट्रायल का सामना करना होता है.
कंप्लेंट केस और पुलिस केस अलग-अलग होते हैं
कंप्लेंट केस और पुलिस केस में कुछ मूलभूत अंतर (Basic Difference) हैं.
तारीखों पर पेशी
कंप्लेंट केस में वादी को हर तारीख़ पर पेश होना ज़रूरी है.लेकिन, पुलिस केस (जिसमें शिक़ायत सीधे पुलिस ने दर्ज़ की है) में वादी के लिए ऐसी बाध्यता नहीं है.
यहां तक कि अदालत के आदेश पर पुलिस ने केस दर्ज़ किया है, तो भी वादी या शिकायती की हर तारीख़ पर पेशी ज़रूरी नहीं है.
जिस दिन वादी का बयान दर्ज़ होना है, उस दिन उसे अदालत में हाज़िर होना पड़ता है.
सबूत, गवाह आदि के नज़रिए से
कंप्लेंट केस में वादी या शिकायतकर्ता की ज़िम्मेदारी होती है कि वह ख़ुद केस संबंधी ज़रूरी सबूत और गवाह आदि पेश करे.इन्हीं के बलबूते पर आरोपी को दोषी सिद्ध कर सज़ा दिलाई जा सकती है.दूसरी तरफ़, पुलिस केस में पुलिस अपनी ओर से जांच कर रिपोर्ट अदालत में सौंपती है.और इसी के आधार पर जज फ़ैसला देते हैं.
समझौते के नज़रिए से
कंप्लेंट केस में शिकायती (कंप्लेनेंट) चाहे तो वह आरोपी से समझौता कर अपने केस को वापस ले सकता है.ऐसा करने से अदालत से केस ख़त्म हो जाता है.इसके विपरीत, पुलिस केस शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच आपसी समझौते (समझौता योग्य मामलों जैसे व्यभिचार, चोट पहुंचाना, मानहानि, आपराधिक अतिचार आदि में) की स्थिति में सीआरपीसी की धारा-320 के तहत कोर्ट की इज़ाज़त से केस रद्द हो सकता है.
इस प्रकार, अदालतें अपना काम करती हैं और एक दिन फ़ैसले की घड़ी आती है.मगर, यह इतना भी आसान नहीं होता.पीड़ित को उपरोक्त जिन प्रक्रियाओं से गुज़रना होता है, वे कठिन हैं.आरोपी को दोषी साबित करने के लिए जैसे एक जंग लड़नी होती है; या फिर कहें कि नाकों चने चबाने होते हैं, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.
हमारी पुलिस व्यवस्था कैसी है, यह हम सभी जानते हैं.अधिकतर मामलों में पुलिस या तो सुनती ही नहीं है, या फिर कार्रवाई में हीलाहवाली करती है.इस कारण लोग अदालतों का रुख करते हैं.मगर, यहां भी जल्दी इंसाफ़ नहीं मिलता.सालों साल धक्के खाने के बाद फ़ैसला आता भी है, तो उसका कोई मतलब नहीं रह जाता.कईयों की तो दुनिया ही बदल चुकी होती है.
पुलिस की बेरुख़ी से परेशान लोगों को अदालतों में ‘आसमान से गिरे खजूर में अटके’ के भाव का बोध होता है.
Multiple ads
सच के लिए सहयोग करें
कई समाचार पत्र-पत्रिकाएं जो पक्षपाती हैं और झूठ फैलाती हैं, साधन-संपन्न हैं. इन्हें देश-विदेश से ढेर सारा धन मिलता है. इनसे संघर्ष में हमारा साथ दें. यथासंभव सहयोग करें