कानून और अदालत
समन और वारंट क्या हैं और इनमें फ़र्क क्या है, जानिए

अदालती कार्यवाही में समन और वारंट हमेशा चर्चा का विषय होते हैं.दरअसल, ये दोनों ही कोर्ट की ज़रूरी प्रक्रियाएं हैं, जिनका परिस्स्थितियों के अनुसार प्रयोग किया जाता है.समन के ममले में समन और वारंट के मामले में वारंट जारी होते हैं.मगर, यह अदालत के विवेक पर निर्भर करता है कि मामले की गंभीरता को देखते हुए वह समन के बदले वारंट और वारंट के बदले समन जारी कर सकती है.
![]() |
अदालत और समन और वारंट (सांकेतिक) |
किसी केस की सुनवाई में प्रतिवादी की उपस्थिति आवश्यक है, ताकि उसे अपने ऊपर लगे आरोपों की पूरी जानकारी हो जाए और उसके अनुसार वह अपना बचाव कर सके.यही इंसाफ़ का तक़ाज़ा है, और इसीलिए प्रतिवादी या अभियुक्त को समन जारी किए जाते हैं.मगर, समन की अवहेलना पर वारंट जारी किए जाते हैं.यानि कोई प्यार से अदालत में नहीं आता, तो उसे पकड़कर लाया जाता है.
आमतौर पर लोग समन को ही गिरफ़्तारी का आदेश समझ लेते हैं और इससे बचने की कोशिश करते हैं.ऐसा कर बेवज़ह ही वे अपने लिए मुसीबत खड़ी कर लेते हैं.इससे वारंट की स्थिति बन जाती है.
वारंट की स्थिति में लोग उन अतिरिक्त कानूनी प्रक्रियाओं में उलझ जाते हैं, जिनकी आवश्यकता ही नहीं होती है.
ऐसे में, समन और वारंट क्या हैं, इनकी प्रक्रियाएं क्या होती हैं, और ये दोनों एक दूसरे से कैसे अलग हैं, इन पर रौशनी डालना ज़रूरी हो जाता है.
समन क्या है?
समन (Summons) अंग्रेजी भाषा का शब्द है.इसका मतलब होता है बुलावा या बुलावा पत्र.इसे एक उदारतापूर्ण आमंत्रण कह सकते हैं, जिसमें अदालत आदरपूर्वक किसी व्यक्ति को हाज़िर होने का आदेश करती है.इस आदेश में न तो किसी की आज़ादी छिनी जाती है और न ही उसे गिरफ़्तार किया जाता है.
समन में, दरअसल अदालत द्वारा इंसाफ़ को लेकर अदालत में हाज़िर होने के लिए किसी व्यक्ति को आदेश तो दिया जाता है मगर, उसे मजबूर कर या जबरन अदालत में पेश नहीं किया जाता.
इस प्रकार, सरल भाषा में कहें, तो अदालत में जब कोई पीड़ित व्यक्ति केस दायर करता है तब अदालत, प्रतिवादी को सुनवाई में हाज़िर होने के लिए लीगल नोटिस जारी करती है.इस लीगल नोटिस को समन कहा जाता है.
समन पर कोई व्यक्ति अदालत में ख़ुद हाज़िर हो सकता है, या अपने वकील, या अपने पावर ऑफ़ अटॉर्नी होल्डर, या फिर अपने किसी अधिकृत एजेंट के माध्यम से भी अदालत में पेश हो सकता है.
समन तीन प्रकार के होते हैं- सिविल समन, आपराधिक समन और प्रशासनिक समन.
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय-6 (न्यायलय की आदेशिकाएं) में धारा-61 से लेकर धारा-69 तक में समन की प्रक्रिया को लेकर विस्तार से चर्चा की गई है.
समन अदालत की ओर से किसी प्रतिवादी या अभियुक्त को जारी हो सकता है.
यह किसी गवाह या किसी ऐसे व्यक्ति के लिए भी जारी हो सकता है, जिसके पास कोर्ट के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ हों.
समन पुलिस-प्रशासन और आयोग की तरफ़ से भी जारी होते हैं.
समन हमेशा दो प्रतियों में होता है.एक, समन प्राप्त करने वाले के लिए होती है, जबकि दूसरी प्रति उस व्यक्ति के दस्तख़त के साथ पावती के रूप में वापस चली जाती है.
समन लिखित रूप में निर्धारित प्रारूप में होता है.जिस व्यक्ति को समन जारी किया जाता है, समन पर उसका नाम-पता, पेशा, न्यायलय का नाम, केस में आरोप या संबंधित विषय आदि लिखा होता है.इसमें अदालत में हाजिरी की तारीख़ व समय भी दर्ज़ होते हैं.
इस पर पीठासीन अधिकारी, यानि मजिस्ट्रेट या जज के दस्तख़त के साथ मुहर (मुद्रा, छाप) भी लगी होती है.
ध्यान रहे कि अदालत में पेशी के दिन अगर अदालत में कोई अवकाश (जज साहब छुट्टी पर हों या अन्य किसी विशेष कारणवश कोर्ट खुला न हो) हो, तो यह नहीं समझ लेना चाहिए कि समन की मियाद ख़त्म हो गई.समन प्राप्त करने वाले व्यक्ति को फिर अगले कार्यदिवस को अदालत में उपस्थित होना पड़ेगा.इसके बाद ही समन की प्रक्रिया या मियाद ख़त्म समझी जाती है.
समन की तामील
समन के साथ ही समन की तामील भी कम महत्वपूर्ण विषय नहीं है.यह आसान नहीं होती क्योंकि आमतौर पर लोग समन से बचने की कोशिश में छुपते फिरते हैं.कुछ तो अपने घरों ताले तक लगा देते हैं जैसे कि उन पर गिरफ़्तारी की तलवार लटक गई हो, जबकि समन की तामील यानि निष्पादन का उद्देश्य केवल समन का उसके प्राप्तकर्ता (प्रतिवादी, अभियुक्त) तक पहुंच जाना होता है.यानि पीठासीन अधिकारी (मजिस्ट्रेट या जज) के आदेश की जानकारी प्रतिवादी को हो जाए, इसे ही समन की तामील कहते हैं.
समन की तामील कैसे हो, विभिन्न परिस्थितियों में इसके तरीक़े क्या हैं, इस सब के बारे में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-62, 63, 64 और 65 में पूरी चर्चा है.
अगर समन के तामीली अधिकारी की पूरी कोशिश के बावजूद व्यक्ति (प्रतिवादी) नहीं मिल रहा है (यानि वह सामने नहीं आ रहा है या छुपता फिर रहा है), तो धारा-64 कहती है कि समन उस व्यक्ति के परिवार के किसी वयस्क पुरुष (जो उसके साथ रहता हो) के ज़रिए तामील करवाई जा सकती है.
समन, समन प्राप्तकर्ता घर के नौकर-चाकर या महिला सदस्य को भी तामील नहीं करवाया जा सकता, ऐसा स्पष्ट विधान है.
समन की तामीली के लिए तामीली अधिकारी समन प्राप्तकर्ता के घर में नहीं घुस सकता.वह प्रतिवादी को दरवाज़े के बाहर से ही आवाज़ देकर बुला सकता है और उसके परिवार के सदस्यों से बात कर सकता है.
ऐसे व्यवस्था भी है कि अगर प्रतिवादी के घर पर ताला लगा हो, तो समन की प्रति बाहर से स्पष्ट नज़र आने वाली जगह जैसे दरवाज़े या खिड़की पर चस्पां (चिपकाना) की जा सकती है.
समन संबंधी कुछ अपवाद या छूट
वैसे तो सभी भारतीय नागरिक को हमारे सक्षम न्यायलय समन जारी कर सकते हैं परंतु, इसके कुछ अपवाद भी हैं.इन्हें हम कुछ ख़ास लोगों के लिए न्याय व्यवस्था की ओर से मिली छूट भी कह सकते हैं.
वे महिलाएं, जो अपनी प्रथा के कारण सार्वजनिक नहीं हो सकतीं, यानि अदालत में खड़ी नहीं हो सकतीं, उन्हें कुछ रियायत दी गई है.
इसके अलावा, राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जज, लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष, विधानसभा अध्यक्ष, राज्यपाल, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के मंत्रियों को विशेष छूट दी गई है.
इनके खिलाफ़ सिविल कोर्ट समन जारी नहीं कर सकती है.फिर, भी अगर समन जारी हो गया हो, तो भी वे अदालत में पेश होने के लिए बाध्य नहीं हैं.
वारंट क्या है?
वारंट एक कानूनी आदेश या आदेश पत्र होता है, जिसे मजिस्ट्रेट या जज जारी करते हैं.इसमें पुलिस को किसी व्यक्ति को पकड़ने या गिरफ़्तार करने का अधिकार मिल जाता है.वारंट में समन के विपरीत व्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन कर उसे गिरफ़्तार कर न्यायलय के समक्ष पेश किया जाता है.
वारंट अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब होता है विशेष आदेश या आज्ञा पत्र.इसे कोई अदालत ही जारी कर सकती है.
इसे सरल शब्दों में कहें तो कोई व्यक्ति यदि समन की अवहेलना करता है, यानि समन प्राप्त होने के बाद भी अगर वह अदालत में हाज़िर नहीं होता, तो अदालत उसके खिलाफ़ वारंट जारी कर देती है.
यह वारंट दरअसल, स्थानीय पुलिस अधिकारी के नाम जारी एक विशेष आदेश होता है, जिसमें यह ज़िम्मेदारी होती है कि वह (अधिकारी) वांछित व्यक्ति को गिरफ़्तार कर उसे अदालत में पेश करे.इस विशेष आदेश को ही वारंट कहते हैं.
वारंट केवल गिरफ़्तारी के लिए ही जारी नहीं होता.विभिन्न मामलों या परिस्थितियों में इसमें कई चीज़ें शामिल होती हैं.यह अभियुक्त के घर और अन्य ठिकानों की तलाशी के अलावा उसके घर-संपत्ति की कुर्की या जब्ती को लेकर भी जारी होता है.
भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता के अध्याय-6 (न्यायलय की आदेशिकाएं) में धारा-70 से लेकर धारा-81 तक में वारंट की प्रक्रिया को लेकर विस्तार से चर्चा की गई है.
वारंट अदालत की ओर से किसी प्रतिवादी या अभियुक्त को जारी हो सकता है.
यह किसी गवाह या किसी ऐसे व्यक्ति के लिए भी जारी हो सकता है, जिसके पास कोर्ट के लिए ज़रूरी दस्तावेज़ हों.
वारंट केवल मजिस्ट्रेट या जज ही जारी कर सकता है.
वारंट हमेशा एक प्रति में होता है.यह लिखित रूप में निर्धारित प्रारूप में इस प्रकार होता है कि जिसमें पुलिस अधिकारी का नाम-पदनाम, गिरफ़्तार किए जाने वाले व्यक्ति के नाम-पते आदि के साथ-साथ मामला और संबंधित कार्यवाई आदि का जिक्र होता है.
वारंट दो प्रकार का होता है- जमानती वारंट और ग़ैर-जमानती वारंट.
प्रावधानों के अनुसार, जमानती वारंट में पुलिस अभियुक्त को गिरफ़्तार करने के बजाय उसे जमानत पर छोड़ देती है.फिर, उसे कोर्ट में भी जमानत लेनी होती है.
दूसरी तरफ़, ग़ैर-जमानती वारंट के मामले में पुलिस अभियुक्त को गिरफ़्तार का अदालत में पेश करती है.
समन और वारंट में फ़र्क
समन और वारंट, दोनों ही अदालत के आदेश पत्र हैं लेकिन, दोनों की प्रकृति और प्रक्रिया में काफ़ी अंतर होता है.आमतौर पर समन के बाद ही वारंट की आवश्यकता होती है.
1. समन एक अदालती बुलावा पत्र होता है, जबकि वारंट गिरफ़्तारी का आदेश होता है.
2. समन प्रतिवादी, गवाह या किसी ऐसे व्यक्ति के नाम (उसे संबोधित करता हुआ) जारी होता है, जिसके पास कोई सबूत या दस्तावेज़ हों.इसके विपरीत, वारंट एक पुलिस अधिकारी के नाम जारी होने वाला आदेश पत्र है.इसमें केस में वांछित व्यक्ति की गिरफ़्तारी का आदेश होता है.
3. समन रजिस्टर्ड डाक द्वारा या व्यक्तिगत रूप से केस से संबंधित व्यक्ति के पास भेजा जाता है, जबकि वारंट हमेशा एक पुलिस अधिकारी लेकर जाता है.
4. समन में प्रतिवादी या अन्य को अदालत में अपना पक्ष, सबूत और दस्तावेज़ पेश करने का निर्देश होता है, जबकि वारंट में पुलिस अधिकारी को अभियुक्त को पकड़कर अदालत में पेश करने या उसके घर की तलाशी लेने या फिर उसके घर-संपत्ति की जब्ती आदि का निर्देश होता है.
5. समन का उद्देश्य किसी व्यक्ति को अदालत में बुलाकर उसे उसके कानूनी दायित्व की जानकारी देना होता है.इसके विपरीत, वारंट का उद्देश्य समन की अवहेलना करने वालों को अदालत में हाज़िर करना होता है.
6. समन दो प्रतियों में होता है, जबकि वारंट हमेशा एक ही प्रति में होता है.
7. समन जारी होने की तारीख़ से लेकर अदालत में प्रतिवादी या अन्य के व्यक्तियों के उपस्थित होने तक मान्य होता है.इसके बाद इसकी मान्यता समाप्त हो जाती है.लेकिन, वारंट के साथ ऐसी बात नहीं है.
वारंट जारी होने की तारीख़ से लेकर तब तक मान्य रहता है जब तक कि अभियुक्त अदालत में पेश न कर दिया जाए, या फिर कोर्ट ख़ुद उस वारंट को खारिज़ न कर दे.
वारंट की समयसीमा को इस बात से समझा जा सकता है कि बरसों तक भी अभियुक्त हत्थे नहीं चढ़ता, तो भी वारंट प्रभावी रहता है.
8. समन मजिस्ट्रेट या जज के अलावा अन्य अधिकारी के भी हस्ताक्षर (अगर हाईकोर्ट का आदेश हो तो) हो सकते हैं, जबकि वारंट पर केवल और केवल मजिस्ट्रेट या जज के ही हस्ताक्षर होते हैं.
9. किसी व्यक्ति को समन करने का अधिकार अदालत के अलावा कुछ अन्य संस्थानों जैसे पुलिस, अन्य प्रशासनिक विभाग, आयोग आदि को भी है मगर, वारंट जारी करने का अधिकार केवल और केवल अदालत को ही है.
10. समन में गिरफ़्तारी या जमानत जैसी कोई स्थिति नहीं होती है.मगर, वारंट तो जारी ही होते हैं गिरफ़्तारी के लिए, भले ही इनमें जमानत की भी व्यवस्था होती है.
Multiple ads
सच के लिए सहयोग करें 
कई समाचार पत्र-पत्रिकाएं जो पक्षपाती हैं और झूठ फैलाती हैं, साधन-संपन्न हैं. इन्हें देश-विदेश से ढेर सारा धन मिलता है. इनसे संघर्ष में हमारा साथ दें. यथासंभव सहयोग करें