भगवान विष्णु पर अपमानजनक टिप्पणी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस गवई माफ़ी कब मांगेंगे?
पिछले लगभग 1000 वर्षों में सनातन-हिंदू धर्म को मिटाने के अनगिनत प्रयास हुए हैं. हर तरह के प्रयास- हिंसक भी और षड्यंत्रों के रूप में भी. आज़ादी के बाद तो अनेक कानून सिर्फ हिन्दुओं को टारगेट करके बनाये गए हैं. फिर भी, हिंदू हारा नहीं है, रूका नहीं है. अपने पथ पर अग्रसर यह कानूनी तरीक़ों से ही अपने छीने गए अधिकार और गौरव को फिर से हासिल करना चाहता है. मगर अदालतें इसके लिए तैयार नहीं दिखाई देती हैं. यही कारण है कि महीनों में हल होने वाले मामले सालों-साल लटके रहते हैं. अब तो याचिकाकर्ता फटकारे और भगाए जाने लगे हैं. इनके देवी-देवताओं का अपमान भी हो रहा है. खजुराहो मंदिर मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस की ओर से भगवान विष्णु पर आपत्तिजनक टिप्पणी इसकी ताज़ा और सबसे बड़ी मिसाल है.

खजुराहो के जावरी मंदिर में भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति को बदलने को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए याचिकाकर्ता को न्याय तो नहीं मिला, अपमानजनक टिप्पणी सुनने को मिली. सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस (सीजेआई) बीआर गवई ने याचिका सुनने से इनकार करते हुए मज़ाकिया और चुनौती भरे अंदाज़ में याचिकाकर्ता से कहा कि वे जायें और अपने भगवान से ही कहें कि वे अपने लिए ख़ुद कुछ करें. यही नहीं, आपत्ति पर सफाई में अपने कथन को जायज़ ठहराया, माफ़ी नहीं मांगी.

विदित हो कि गत 16 सितंबर (2025) को मध्य प्रदेश के खजुराहो मंदिर श्रृंखला के जावरी मंदिर में जीर्ण-शीर्ण 7 फुट ऊंची विष्णु प्रतिमा के पुनर्निर्माण के निर्देश देने की मांग वाली एक जनहित याचिका (पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन) सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की पीठ के समक्ष पेश की गई थी. इस मामले की सुनवाई से इनकार करते हुए चीफ जस्टिस गवई ने शुरू में ही याचिका को प्रचार हित याचिका (पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन) करार दिया. उन्होंने कहा:
यह पब्लिसिटी के लिए है…यह जनहित याचिका नहीं, प्रचारहित याचिका है.
इतना ही नहीं, सनातनी-हिंदू धर्म में संरक्षक, पालनहार, परमब्रह्म और सर्वव्यापी माने जाने वाले श्री विष्णु के विषय में अपमानजनक शब्दों का प्रयोग भी किया. चीफ जस्टिस गवई ने कहा:
जाओ, (अपने) भगवान विष्णु से कहो कि वे ख़ुद कुछ करें. अगर तुम इतने बड़े (प्रबल) भक्त हो, तो प्रार्थना करो, ध्यान लगाओ.
इतना सुनने के बाद भी, याचिकाकर्ता की ओर से मूर्ति की तस्वीर दिखाते हुए कहा गया कि इसमें सिर नहीं है. सिर, मुस्लिम आक्रांताओं (या मुग़लों) ने हमले के दौरान तोड़ दिया था. तब से यह यूं ही है, इसकी कभी सुध नहीं ली गई.

यह श्रद्धालुओं या दर्शनार्थियों के लिए बहुत पीड़ादायी है. मगर बार-बार मध्य प्रदेश की सरकार, केंद्र की सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से पत्राचार और निवेदन करने के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला है. इसलिए, ‘कृपया आप इसमें हस्तक्षेप कर मूर्ति के पुनर्निर्माण और पुनर्स्थापना के निर्देश जारी करें.’
इस पर चीफ जस्टिस गवई ने कहा:
यह पुरातत्व की चीज़ है. एएसआई को तय करना है कि मूर्ति ठीक होगी या नहीं. कई सारी दिक्कतें हैं. तब तक, अगर तुम्हें भगवान शिव से कोई दिक्कत नहीं है, तो जाकर उनकी पूजा कर लो. खजुराहो में शिव का बहुत बड़ा लिंगम है, सबसे बड़े में से एक.
यह कहकर उन्होंने तुरंत याचिका खारिज़ कर दी.
फिर, जैसे ही इस बात की ख़बर फैली, सोशल मीडिया पर इसकी प्रतिक्रिया या विरोध देखने को मिला. कई प्रमुख हस्तियों ने भी कड़ा ऐतराज़ जताते हुए चीफ़ जस्टिस से फ़ौरन माफ़ी की मांग की. कुछ लोगों ने तो उन्हें इस्तीफ़ा तक देने को कहा.
यह ख़बर भी आई है कि कुछ लोगों ने राष्ट्रपति और मोदी सरकार को बाक़ायदा चिट्ठी लिखकर चीफ़ जस्टिस गवई की टिप्पणी को हेट स्पीच (नफ़रती बयान) बताते हुए उन पर महाभियोग लगाकर हटा देने की मांग की है.
सुप्रीम कोर्ट के वकील विनीत जिंदल ने कहा:
चीफ़ जस्टिस ने भगवान विष्णु को लेकर जिस प्रकार की टिप्पणी की है, उपहास किया है वह ग़लत है. देश के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर बैठे हुए व्यक्ति के द्वारा इस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा देश का कोई भी नागरिक नहीं करता है. उनसे मैंने आग्रह किया है कि अपने शब्दों को वे वापस लें.
वे देश के हर नागरिक से जो संविधान में विश्वास रखता है उससे माफ़ी मांगें और मानें कि जो उन्होंने जो कल कहा वह ग़लत था.
सुप्रीम कोर्ट के एक अन्य प्रसिद्ध अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने माना और स्पष्ट संकेत दिया कि अदालतों में सनातन हिंदू धर्म के प्रति घृणा के भाव हैं. हमारे धर्म से जुड़े या फिर राष्ट्रहित के मामलों को गंभीरता से नहीं लिया जाता है, और टालमटोल किया जाता है. उन्होंने कहा:
जो राष्ट्रभक्त हैं, हिन्दुनिष्ठ हैं या अपने देवी-देवताओं के लिए मुक़दमे लड़ते हैं उन्हें कुछ और, जबकि जो उमर ख़ालिद जैसे आतंकी की पैरवी करने वालों को अलग और ख़ास नज़रिए से देखा जाता है.
जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी एसपी वैद्य अपने एक वीडियो संदेश में काफ़ी आहत दिखे. उन्होंने अपना रोष व्यक्त करते हुए चीफ़ जस्टिस गवई को मुस्लिम आक्रांताओं की मानसिकता वाला कहा, और उनकी टिप्पणी को सनातन-हिंदू धर्म के लिए घोर अपमानजनक बताते हुए उनसे इस्तीफ़े की मांग की. एसपी वैद्य ने कहा:
हमारे चीफ़ जस्टिस ने कमेंट किया कि अपने विष्णु भगवान से कहो कि वे अपनी मूर्ति को ख़ुद ठीक कर लें, यह उसी तरह की मानसिकता है जब इस्लामिक इन्वेडर (मुस्लिम आक्रांता) आते थे और कहते थे कि मूर्तियां अपने आप को प्रोटेक्ट करें..मैं आपको बताना चाहता हूँ कि सनातन धर्म में भगवान विष्णु ही अल्टीमेट गॉड (परमब्रह्म) हैं, जिनका नाम ब्रह्मा और महेश भी लेते हैं..
इस तरह का डेरोगेटरी कमेंट (अपमानजनक टिप्पणी) करना मैं समझता हूँ कि सनातन धर्म का इंसल्ट (अपमान) करना है, जो संविधान के आर्टिकल-25 के खिलाफ है..हरेक को अपने धर्म की इज्ज़त करने और उसकी प्रेक्टिस करने का अधिकार आर्टिकल-25 में है..और यह बात चीफ़ जस्टिस की कुर्सी पर बैठकर बोलना पूरे सनातन धर्म की इंसल्ट है.
जस्टिस गवई को इस बात पर ख़ुद रिजाइन (इस्तीफ़ा) देना चाहिए..इस तरह के कमेंट एक मेजोरिटी कम्युनिटी (बहुसंख्यक समुदाय) और वह भी अल्टीमेट गॉड के बारे में बोलना..
जस्टिस गवई को मैं बताना चाहूँगा कि भगवान विष्णु की लाठी की जो मार है वह आवाज़ नहीं करती..वह किसी को भी नहीं बख्शती..राजे-महाराजों को भी नहीं, आप तो चीफ़ जस्टिस हैं..
नहीं मांगी माफ़ी, सफ़ाई दी ऐसी जैसे जले पर नमक छिड़क दिया हो!
चीफ़ जस्टिस गवई ने भगवान विष्णु पर अपनी अपमानजनक टिप्पणी के लिए अब तक माफ़ी मांगना तो दूर सार्वजानिक रूप से सफ़ाई भी नहीं दी है. हालाँकि कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने खेद भी प्रकट कर दिया होता, तो सहिष्णु हिंदू समाज के लिए पर्याप्त होता.
बहरहाल उनकी ओर से जो सफ़ाई या स्पष्टीकरण देने की बात आई है वह किसी केस की सुनवाई के दौरान एक अंतराल में की गई एक सामान्य टिप्पणी की तरह ही थी बिल्कुल हल्के-फुल्के अंदाज़ में, जैसे कुछ ख़ास न हुआ हो. लेकिन साथ ही हैरानी भी जता रहे हैं मानो कह रहे हों- हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी.. .
चीफ़ जस्टिस ने कहा:
सोशल मीडिया पर कुछ भी हो सकता है.
परसों किसी ने मुझसे कहा- आपने बहुत नकारात्मक बात कही है.
मैं सभी धर्मों में विश्वास करता हूँ, मैं सभी धर्मों का सम्मान करता हूँ.
इस पर भारत के सोलिसिटर जनरल (एसजीआई, जो सरकार का प्रतिनिधत्व करता है) तुषार मेहता ने कहा:
मैं पिछले 10 वर्षों से सीजेआई (चीफ़ जस्टिस) को जानता हूं, मेरे स्वामी (मीलॉर्ड) सभी धर्मों के मंदिरों और स्थानों पर श्रद्धा के साथ जाते हैं.
फिर चीफ़ जस्टिस ने स्पष्ट किया कि यह टिप्पणी मंदिर की देखरेख भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अधीन आने के संदर्भ में की गई थी. उन्होंने कहा:
हमने यह बात एएसआई के संदर्भ में कही थी..मैंने याचिकाकर्ता को यह भी बताया था कि खजुराहो में शिवलिंग भी है, जो सबसे बड़े लिंगों में से एक है.
जानिए क्या हैं CJI की टिप्पणी के मायने, और इसकी वज़ह
CJI बीआर गवई की टिपण्णी की जितनी भी निंदा की जाये, कम होगी. क्योंकि उन्होंने सनातन-हिंदू धर्म पर हमला किया है, करोड़ों लोगों की भावनाओं को आहत किया है इसलिए, यह हेट स्पीच या घृणास्पद भाषण या नफ़रती बयान माना जाना चाहिए. यह अलग विषय है कि सीजेआई इसके लिए किसी दंडात्मक कानून के दायरे में आते हैं या नहीं, नहीं तो क्यों, इस पर सोचने की आवश्यकता है. खासतौर से जब ऐसे कृत्य जानबूझकर किये जायें या आपत्ति के बाद खेद भी न व्यक्त किया जाये, मामला बहुत गंभीर हो जाता है.
बहरहाल चीफ़ जस्टिस ने भगवान विष्णु के अलावा भगवान शिव के लिए भी अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया है, जिसे अधिकतर समझ नहीं पाए हैं, या उन्होंने गौर नहीं किया है. इसके लिए, चीफ़ जस्टिस की टिप्पणी के दोनों हिस्सों में प्रयोग किये गए शब्दों को समझने की ज़रूरत है.
1.भगवान विष्णु का अपमान: चीफ़ जस्टिस गवई का यह कहना कि ‘जाओ भगवान विष्णु से कहो कि वे ख़ुद कुछ करें’ भगवान विष्णु के अस्तित्व पर सीधा प्रश्न और चुनौती है. दरअसल, उन्होंने यह कहा कि भगवान विष्णु में अगर शक्ति है तो अपना कटा हुआ सिर वे स्वयं लगा लें. याचिका में मांग भी, मूर्ति के सिर वाला हिस्सा क्षतिग्रस्त होने के कारण उसके पुनर्निर्माण की थी.
2.भगवान शिव का अपमान: सीजेआई गवई का यह कहना कि ‘यदि तुम्हें शिवजी से कोई दिक्कत नहीं है, तो जाकर उनकी पूजा कर लो. खजुराहो में बहुत बड़ा शिवलिंग या ‘शिव का लिंग’ है, सबसे बड़े में से एक’ शिवलिंग का अपमान है. ज्ञात हो कि शिवलिंग को लेकर कुछ इसी तरह की टिप्पणी जिहादी सोच वाले एसडीपीआई नेता तस्लीम रहमानी ने कर नुपुर शर्मा को उकसाया था.
मगर यह मुद्दा नहीं बना था. किसी हिंदू संगठन या नेता ने इस पर कुछ बोला नहीं था, या फिर यूं कहिये कि हिन्दुओं में इतना साहस नहीं था कि वे अपने इष्टदेव या भगवान के अपमान का कड़ा विरोध करते, या उठ खड़े होते. आज भी स्थिति वैसी ही है.
चीफ़ जस्टिस ही क्यों, कुछ ही समय पहले की बात है सुप्रीम कोर्ट के जज (रिटायर्ड) जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने एक कार्यक्रम में सनातन हिंदू धर्मग्रन्थ ऋग्वेद को बदनाम करने का कुत्सित प्रयास किया था. उन्होंने कहा था:
ऋग्वेद कहता है कि महिलाओं से अधिक समय तक मित्रता नहीं रखनी चाहिए अन्यथा वे लकड़बग्घे (hyena) जैसी हो जाती हैं.
हालाँकि संत समाज की ओर से इसे साबित करने की चुनौती दी गई. उनसे पूछा गया कि बताएं ऐसा कहां लिखा है, तो वे ग़ायब हो गए थे. मगर तब भी इसका कड़ा प्रतिरोध नहीं हुआ था. यह घटिया और अपमानजनक बयान ऐसा मुद्दा नहीं बना था कि जिससे उन्हें सबक मिल सके.

दरअसल, CJI और अन्य जजों को मालूम है कि सनातनी-हिंदू समाज सोया हुआ या ज़िन्दा लाश जैसा है. इनके 80 करोड़ में से 100 लोग भी सड़कों पर आने वाले नहीं हैं. वे ज़्यादा से ज़्यादा सोशल मीडिया पर टीका-टिप्पणी कर लेंगें, न्यूज़ मीडिया में अपनी राय रख देंगें, और फिर भूल जायेंगें. इसलिए, इनके मामलों को बेवज़ह लटकाया या खारिज़ भी किया जा सकता है. इनके प्रतीकों का अपमान किया जा सकता है, भगवान को गाली भी दी जा सकती है उनका मनोबल तोड़ने के लिए, जो शांतिपूर्वक अदालतों में न्याय मांगने आते हैं.
इसके विपरीत, किसी जज या CJI में इतना साहस नहीं है कि वे इस्लाम या ईसाइयत के ख़िलाफ़ कुछ बोल दें. बोलेंगें भी कैसे, उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि अल्लाह या जीसस क्राइस्ट के ख़िलाफ़ एक शब्द भी बहुत भारी पड़ेगा. उनकी कुर्सी तो जाएगी ही, जान के भी लाले पड़ जायेंगें.
हिंदू अपने भगवान, मुसलमान अल्लाह और ईसाई जीसस क्राइस्ट से इंसाफ़ मांगने लगे, तो अदालतों का क्या औचित्य रह जायेगा?
चीफ़ जस्टिस का यह कथन- ‘जाओ अपने भगवान से कहो कि वे ख़ुद कुछ करें, उकसाने वाला भी है. वे अदालतों के बजाय लोगों को अपने भगवान से न्याय मांगने को कह रहे हैं. ऐसे में, हिंदू अपने धर्मशास्त्र खोलेगा और उसमें दिए गए आदेश-निर्देशों के अनुसार न्याय प्राप्त कर लेगा. इसी प्रकार, अन्य पंथ-मज़हब वाले करेंगें. तो फिर, भारत के संविधान और न्यायालयों का क्या होगा, उनका कोई अर्थ रह जायेगा?
क्या CJI इतना भी नहीं जानते हैं कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जिसमें संविधान सर्वोपरि है, और अदालतें उसकी रक्षा-कवच हैं. यदि सड़कों पर फैसला होने लगेगा, तो अराजकता फ़ैल जाएगी और सब कुछ ख़त्म हो जायेगा. क्या हम बांग्लादेश और नेपाल की दिशा में जा रहे हैं?
खजुराहो विष्णु मंदिर की मूर्ति को लेकर मांग इसके मायने क्या हैं जानिए
खजुराहो मंदिर परिसर में स्थित जावरी मंदिर इतना भव्य-दिव्य है कि इसे देखने के लिए दुनियाभर से पर्यटक आते हैं. दरअसल, चंद्रवंशी राजाओं (चंदेल वंश के शासकों) द्वारा नागर शैली में निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह, मंडप, बरामदा और दीवारों पर मूर्तियों की नक्काशी ऐसी है कि देखने वाला अचरज में पड़ जाता है. ऐसा लगता है कि इसका निर्माण मनुष्यों ने नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने किया हो.
हिंदू कला का अद्भुत नमूना है यह. शिलिपियों ने प्राचीन भारतीय-हिंदू संस्कृति को शहर के पत्थरों पर बख़ूबी उकेर दिया है. इसके गर्भगृह के फ़र्श को देखकर वहां पानी भरे होने का भ्रम होता है. लेकिन भगवान विष्णु की जो मूर्ति है उसका सिर नहीं है. बताया जाता है कि चतुर्भुज स्वरुप विष्णु के हाथ भी टूटे हुए हैं. यह दृश्य बहुत अज़ीब और हृदयविदारक लगता है.
बताया जाता है कि 13 वीं सदी के आरंभ में यहां मुस्लिम आक्रांताओं ने हमला किया था और चंदेल राजपूतों के आराध्य भगवान विष्णु की मूर्ति के साथ वही सुलूक किया था जो हिन्दुओं को काफ़िर कहकर करते थे. ऐसा प्रतीत होता है कि जिहादियों ने पत्थर की मूर्ति को जीवित मान कर उस पर बर्बरता की हो.
सनातनी-हिंदू समाज इसी खंडित मूर्ति को लेकर पिछले काफ़ी समय से संघर्ष कर रहा है. उसकी मांग है कि या तो इसका पुनर्निर्माण हो, या फिर इसकी जगह नई मूर्ति की स्थापना कराई जाये. लेकिन जब सरकारों (केंद्र और मध्य प्रदेश की सरकार) और एएसआई ने नहीं सुनी, तो सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई थी. लेकिन वहां जो हुआ, उसकी किसी को अपेक्षा नहीं थी.
अब सवाल उठता है कि लोग यदि अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत को उसके वास्तविक रूप में देखना चाहते हैं, तो इसमें ग़लत क्या है? क्या संविधान में प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत मंदिर की भव्यता-दिव्यता को फिर से बहाल करने की मांग का मज़ाक उड़ाया जाना चाहिए?
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