ईसाइयत

ईसा मसीह की वंशावली पर अज़ीबोग़रीब दलीलें

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ईसा मसीह की वंशावली को लेकर तरह-तरह के विचार पढने-सुनने को मिलते हैं.इन्हें अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय कह सकते हैं.मगर ईसाई विद्वान और मिशनरियों की ओर से इस बाबत जो दलीलें हैं वो भी कम हैरान करने वाली नहीं हैं.बड़ी अज़ीबोग़रीब हैं.ऐसा लगता है जैसे कोई ज़ंग छिड़ी हो और मैदान में उतरे योद्धा किसी भी तरह जीत हासिल कर लेना चाहते हैं.अपनी बात मनवाना चाहते हैं.

ईसा मसीह,मसीह की वंशावली,अज़ीबोग़रीब दलीलें
ईसा मसीह की वंशावली (सांकेतिक)


उल्लेखनीय है कि पांच बार संशोधित हो चुके बाइबल में कई त्रुटियां अब भी बाक़ी हैं.कई स्थानों पर विरोधाभासी वर्णन के साथ आंकड़ों में भी फ़र्क साफ़ दिखता है.
यीशु की वंशावली का भी यही हाल है.इसमें मत्ती द्वारा दी गई वंशावली लूका वाली वंशावली से मेल नहीं खाती.दोनों में पूर्वजों की संख्या के साथ नाम भी अलग-अलग हैं.यहां तक कि यीशु के दादा के नाम भी दोनों गॉस्पेल (सुसमाचार) में अलग-अलग बताए गए हैं.मत्ती युसूफ (यीशु के पिता) को याक़ूब का बेटा बताता है जबकि लूका कहता है कि वह (युसूफ) एली का पुत्र था.
इस पर बहस ज़ारी है.मगर जो तर्क दिए जा रहे हैं,बड़े अज़ीबोग़रीब हैं. 
इससे भी अज़ीब बात ये है कि बचाव पक्ष में एक राय नहीं है.अलग-अलग लोग अलग-अलग दलीलें देते हैं.
यहोवा के साक्षी (मत्ती और लूका में दी यीशु की … – JW.org) नामक वेबसाइट में बाक़ायदा एक लेख प्रकाशित हुआ है जिसमें इसपर विस्तृत चर्चा की गई है.

ईसा मसीह,मसीह की वंशावली,अज़ीबोग़रीब दलीलें
यहोवा के साक्षी नामक वेबसाइट की दलील  
यहां लेखक ने उपरोक्त जो बातें कही हैं उनके मुख्य बिंदु इस प्रकार है-
1. मत्ती ने यीशु की वंशावली युसूफ (यीशु के पिता) की तरफ़ से दी है.
2. लूका ने वंशावली का आधार मरियम (यीशु की मां) को बनाया है.
3. युसूफ दाउद का वंशज था और वह उसके बेटे सुलेमान के वंश से था.
4. मरियम दाउद की वंशज थी और उसके बेटे नातान के वंश की थी.
5. मरियम एली की बेटी थी.युसूफ एली का दामाद था.
6. दोनों (मत्ती और लूका) का मक़सद यीशु को राजा दाउद की राजगद्दी का क़ानूनी हक़दार बताना था.
  

तथ्यों का विश्लेषण

उल्लेखनीय है कि वंशावली किसी की भी तरफ़ से शुरू की जाए,पूर्वज नहीं बदलते.फ़िर चाहे सुलेमान हो या नातान,बाप उनका तो दाउद ही था.ऐसे में,अब्राहम और दाउद के बीच के पूर्वज भी क्यों अलग-अलग है?  
इसलिए,बिंदु-1 से बिंदु 4 तक के तर्क में तकनीकी ख़ामी है और ये खारिज़ किए जाने योग्य हैं. 
मरियम यीशु की मां थी और पूरी यीशु-कथा की एक महत्वपूर्ण क़िरदार थी तो फ़िर वह एली की बेटी थी,यह बात मत्ती के दिमाग़ में क्यों नहीं आई? वंशावली छोड़िए,उसने कहीं भी इसकी चर्चा क्यों नहीं की? 
गॉड ने ये बात लूका को तो बताई लेकिन वह मत्ती को बताना क्यों भूल गया? गॉस्पेल ट्रूथ के मायने क्या हैं?
दामाद बेटे जैसा होता है लेकिन बेटा नहीं होता,यह बात लूका को पता नहीं थी?
लेखक के मुताबिक़,उस ज़माने में वंशावलियों में स्त्रियों का नहीं बल्कि पुरुषों के नाम दर्ज़ होते थे.संभवतः लूका भी ये सच जानता होगा.फ़िर उसने मरियम की तरफ़ से (ननिहाल की ओर से) वंशावली क्यों लिखी?  
लूका तो एक डॉक्टर(तथाकथित) था.पढ़ा-लिखा भक्त था.फ़िर उससे इतनी बड़ी भूल कैसे हो गई?
इसप्रकार,बिंदु-5 वाला तर्क भी निराधार है.
आगे,बिंदु-6 वाला तर्क सबसे अहम है.यह पूरी बाइबल के उस संदेश की धज्जियां उड़ाता प्रतीत होता है,जिसमें कहा गया है कि यीशु पूरे संसार का राजा है.मगर,यहां तो लेखक ने उसे दाउद की राजगद्दी तक सीमित कर दिया है.
क्या यीशु सांसारिक-सत्ता की प्राप्ति के लिए सूली पर चढ़े थे?
यीशु और ईसाइयत के ज्ञानवर्द्धन-कार्य में जुटे सबसे अग्रणी मंचों में शुमार एक अन्य वेबसाइट गॉट क्वेश्चन्स (https://www.gotquestions.org/Hindi/Hindi-Jesus-genealogies.html) ने ऐतिहासिक उदाहरण के साथ वंशावली पर एक बिल्कुल अलग ही नज़रिया पेश किया है.
         
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गॉट क्वेश्चंस नामक वेबसाइट की दलील  


इसने कलीसियाई इतिहासकार येसुबियुस के दृष्टिकोण को रखा है और उसके अनुसार-
 1. मत्ती ने जैविक वंशावली का वर्णन किया है.इसमें सामान्य विवाह के तहत पैदा हुए लोगों का रिकॉर्ड है. 
2. लूका ने वैधानिक वंशावली प्रस्तुत की है.इसमें नियोग विवाह (लेविरेट मैरिज़) के तहत भाई की विधवा से पैदा हुई औलाद के आंकड़े हैं,जो क़ानूनी उत्तराधिकारी माने जाते थे.
3. एली और याक़ूब सौतेले भाई थे.एली बग़ैर बेटा पैदा किए मर गया था.
4. याक़ूब ने एली की विधवा से विवाह कर युसूफ को जन्म दिया था.
अब यहां सवाल उठता है कि क्या वाक़ई मत्ती और लूका द्वारा पेश वंशावलियों के आधार जैविक और वैधानिक हैं.यदि ऐसा है तो उसके आधार क्या हैं? प्रमाण क्या हैं? उनका वर्गीकरण क्या सही है?
ऐसे में,जब हम मत्ती वाली वंशावली को देखते हैं तो पाते हैं कि उसने दाउद से सुलेमान के पैदा होने का ज़िक्र किया है.उसने कहा है-

” दाउद से सुलेमान उस स्त्री से पैदा हुआ जो पहले उरिय्याह की पत्नी थी. “


इससे तो यही लगता है कि उरिय्याह दाउद  का भाई रहा होगा,जिसके मरने (बिना पुत्र) के बाद नियोग विवाह हुआ और फ़िर सुलेमान पैदा हुआ.
दूसरी ओर,लूका वाली वंशावली में तो यीशु से अब्राहम तक या फ़िर उससे आगे भी कहीं कोई ऐसा ज़िक्र नहीं मिलता जिससे नियोग विवाह का अनुमान भी लगाया जा सके.
ऐसे में,वंशावलियों के वर्गीकरण की अवधारणा ही ग़लत है.निराधार है.
ये कितनी अज़ीब बात कि जो मत्ती नियोग विवाह की स्पष्ट बात कर रहा है,उसकी वंशावली को तो जैविक बताया जा रहा है जबकि लूका,जिसने किसी विवाह अथवा अन्य संतान की कोई चर्चा ही नहीं की है,उसकी दी हुई वंशावली को नियोग विवाह की घटनाओं का वृतांत बताया जा रहा है.क्या ये मज़ाक नहीं है?
कहीं और इसका ज़िक्र हो,उसे लेखक की निज़ी राय कहेंगें क्योंकि यहां बात उस वंशावली की है जो गॉस्पेल का हिस्सा है और फ़िर गॉस्पेल तो गॉस्पेल है-गॉस्पेल ट्रूथ.ईश्वर के शब्द.कोई और क़िताब इसकी जगह नहीं ले सकती.  जहां तक याक़ूब और एली के आपसी रिश्ते की बात है ये तो महज़ कल्पना है.कोई प्रमाण नहीं है.
क़माल की बात है.यहोवा के साक्षी जिस एली को यीशु का नाना (युसूफ का ससुर) बताता है उसे,यहां याक़ूब का सौतेला भाई बनाकर यीशु का वैधानिक दादा प्रमाणित करने की कोशिश हो रही है.  
उल्लेखनीय है कि ऐसी ही कल्पनाएं डिज़ायरिंग गॉड (https://www.desiringgod.org/articles/who-was-jesus-grandfather) के संस्थापक और शिक्षक जॉन पाइपर ने भी की है.उनके विचार पढ़कर ऐसा लगता है कि वे मानो वंशावली के विश्लेषण की बजाय गणित का सवाल हल कर रहे हों.देखिए(हिंदी अनुवाद)- 

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डिज़ायरिंग गॉड नामक वेबसाइट की दलील 
इन्होंने यहां याक़ूब को मार दिया है.साथ ही,उसकी बीवी की एली (हेली) से शादी करा कर उसे(एली को) युसूफ (ज़ोसफ़) का जैविक पिता जबकि याक़ूब को क़ानूनी पिता घोषित कर दिया है.
मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ने यानि जितने सिर उतने ही दिमाग़ हैं यहां भी.क्या ये सही है?

निष्कर्ष             

उल्लेखनीय है कि विषमताओं से भरे इस जटिल और विविधतावादी संसार में पग पग पर विरोधाभास देखने को मिलते हैं.परंतु,उनके समाधान भी होते हैं.यहां यदि झूठ है तो सच भी विद्धमान है.
ग़लतियां मान लेने से सम्मान बढ़ता ही है.साथ ही,भूल-सुधार के मौक़े भी मिलते हैं.लेकिन,सफ़ाई में ग़लत तथ्य पेश कर लीपापोती की कोशिश करना ग़लतियां दुहराने जैसा कार्य होता है,जिसे कोई सभ्य समाज पसंद नहीं करता. 
जॉन पाइपर तो एक बड़े विद्वान हैं.दुनियाभर में मशहूर वे 50 से अधिक पुस्तकों के लेखक हैं.33 वर्षों तक,उन्होंने बेथलेहम बैपटिस्ट चर्च,मिनियापोलिस और मिनेसोटा के पादरी के रूप में सेवा की है.
क्या उनसे ऐसी अपेक्षा की जा सकती है? 
कदापि नहीं.
व्यक्ति की बातों में विरोधाभास आते ही वह अविश्वसनीय बन जाता है.   
और चलते चलते अर्ज़ है ये शेर…

झूठा है झूठ बात ये बोलेगा आईना,
आओ हमारे सामने हम सच बताएंगें |

और साथ ही…

जब तक वो झूठ कहता रहा सर पे ताज़ था,
सच कह दिया तो ताज़ ही क्या सर नहीं मिला |

रामाशंकर पांडेय

दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है, जो दिखता तो कुछ और है पर, हक़ीक़त में वह होता कुछ और ही है.इस कारण कहा गया है कि चमकने वाली हर चीज़ सोना नहीं होती है.इसलिए, हमारा यह दायित्व बनता है कि हम लोगों तक सही जानकारी पहुंचाएं.वह चाहे समाज, संस्कृति, राजनीति, इतिहास, धर्म, पंथ, विज्ञान या ज्ञान की अन्य कोई बात हो, उसके बारे में एक माध्यम का पूर्वाग्रह रहित और निष्पक्ष होना ज़रूरी है.khulizuban.com का प्रयास इसी दिशा में एक क़दम है.

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