अंग फड़कना क्या होता है, जानिए इसका शुभ-अशुभ फल
भारतीय परंपरा में अंगों का फड़कना किसी शुभ-अशुभ घटना का संकेत है. सामुद्रिक शास्त्र और शकुन शास्त्र के अनुसार पुरुष के दायें अंग और स्त्री के बायें अंग का फड़कना शुभ होता है. विवाहित स्त्री-पुरुष के अंगों में फड़कन का फल शीघ्र तथा पूर्ण रूप से प्राप्त होता है, जबकि विधवा-विधुर को इसका फल आंशिक तथा विलंब से मिलता है. बच्चों तथा ब्रह्मचारी या सन्यासियों को विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है. यह भी कहा गया है कि रात में अंगों की फड़कन का फल दिन में फड़कन के फल से बिल्कुल विपरीत या उल्टा होता है.

जिस प्रकार हमारे शरीर के विभिन्न अंग अपनी बनावट और रूप-रंग से हमारे जीवन की दशा-दिशा बता देते हैं उसी प्रकार उनका फड़कना भी कोई सामान्य बात नहीं है. यानी इसमें भी कुछ संकेत या संदेश छुपे होते हैं, जो प्रकृति या ईश्वरीय शक्ति किसी प्रकार की होनी अनहोनी से पहले ही हमें हमारे अंगों के माध्यम से सूचित कर देती है. सामुद्रिक शास्त्र और शकुन शास्त्र के अनुसार अंगों का फड़कना एक विशेष प्रकार का संकेत होता है, जो यह बताता है कि तत्काल या जल्द ही हमारे जीवन में क्या घटने वाला है, कोई शुभ या अशुभ घटना होने वाली है.

मॉडर्न साइंस या आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि हमारे शरीर के कुछ अंग अच्छे संकेतक होते हैं, और उनके आकार-प्रकार तथा रंग-रूप में बदलाव और अचानक गतिविधि या सक्रियता एक संकेत हो सकती है. अंगों की फड़कन भी इन्हीं में से एक है. मगर इस बारे में उसकी राय थोड़ी अलग है.
विज्ञान का मानना है कि किसी अंग का फड़कना (twitching of body parts) एक सामान्य घटना है, जिसमें शरीर का कोई हिस्सा अचानक हरकत (धड़कने, कांपने की स्थिति में) में आ जाता है. ऐसा तनाव व थकान, नींद की कमी, पोषक तत्वों की कमी, चिकित्सीय स्थिति या दवाओं के दुष्प्रभाव जैसी किसी भी स्थिति के कारण संभव है.
विज्ञान के अनुसार किसी अंग में फड़कन (twitching) कुछेक बार या लगातार हो सकता है. यदि बार-बार या लगातार होता है, तो यह बुरा संकेत हो सकता है.
यानी फड़कन का अच्छा संकेत भी हो सकता है, कब हो सकता है, विज्ञान इस बारे में नहीं बताता है.
इसके विपरीत, आधुनिक युग में लक्षण विज्ञान, लक्षण शास्त्र, अंग शास्त्र, इत्यादि अनके नाम से सुविख्यात प्राचीन ग्रंथ सामुद्रिक शास्त्र या समुद्र शास्त्र जो कि वैदिक ज्योतिष विज्ञान की एक प्रमुख शाखा है, उसमें शरीर के विभिन्न अंगों के आकार-प्रकार और रूप-रंग के आधार पर मनुष्य के व्यक्तित्व और भाग्य का वर्णन है. साथ ही, यहां अंगों की फड़कन (स्फुरण, स्पंदन) के बारे में भी विस्तार से बताया गया है. इसमें कहा गया है कि अंगों की फड़कन शकुन-अपशकुन या शुभ-अशुभ का स्पष्ट संकेत है. यानी किस अंग का फड़कना शुभ है और किसका अशुभ, इसकी चर्चा है. यह संकेत या सूचना भी उन घटनाओं के बारे में होती हैं, जो व्यक्ति के जीवन में तत्काल या निकट भविष्य में घटित होने वाली होती है.
शकुन शास्त्र (एक प्रमुख विद्या है, जिसमें मानव और पशु-पक्षियों के ज़रिए मिलने वाले विभिन्न संकेतों और उनके प्रभाव का वर्णन है) भी अंगों के फड़कने का शुभाशुभ फल बताता है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष के दायें अंग (शरीर की दाहिनी तरफ़ के अंग) और स्त्री के बाएं (बायीं ओर के अंग) अंग का फड़कना शुभ होता है. अर्थात यदि किसी पुरुष का बायां अंग फड़कता है तो इसका संकेत यह है कि उस पर कोई छोटी या बड़ी विपत्ति आने वाली है. इसी प्रकार किसी महिला के किसी दायें अंग (दाहिनी तरफ़ का कोई भी अंग) का फड़कना किसी मुसीबत के आने की दस्तक या संकेत है.
लेकिन पांव के तलवे से लेकर शीर्ष शिखापर्यंत (नख से शिख तक, एड़ी से चोटी तक या सर से पांव तक) शरीर के ऐसे अंग-प्रत्यंग, जैसे माथे का बीच वाला हिस्सा या भौंहों के बीच वाला स्थान, नाक, ठोड़ी, नाभि आदि, जो भी केन्द्रीय भाग में आते हैं अर्थात जो न दायें हैं न बाएं, उनके फड़कने पर स्त्री और पुरुष, दोनों को समान फल प्राप्त होता है.
इस प्रकार, किस अंग के फड़कने पर किस प्रकार की शुभ-अशुभ घटनाएं संभावित होती हैं, या फिर यूं कहिये कि सामुद्रिक शास्त्र और इससे संबंधित अन्य शास्त्रीय ग्रंथों, जैसे शकुन-शास्त्र आदि, में विभिन्न अंगों के फड़कने का क्या फलाफल बताया गया है, आइये उसे जानने-समझने का प्रयास करते हैं.
सिर, माथा व पिछले भाग में फड़कन
सिर मानव शरीर का ऊपरी और महत्वपूर्ण भाग है, जो रीढ़ की हड्डी के ऊपर गर्दन द्वारा धड़ से जुड़ा होता है. इसमें ऐसी संरचनाएं शामिल हैं जो हमें देखने, सुनने, बोलने और सोचने की क्षमता को नियंत्रित करती और सुरक्षित रखती हैं. हम यहां सिर की संरचना के केवल कुछ भाग, जैसे ललाट, मध्य खोपड़ी, शीर्ष तथा पश्चकपाल (खोपड़ी के पीछे के हिस्से) से जुड़ी बातें कर रहे हैं.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार माथा या ललाट के फड़कने पर किसी प्रकार की यात्रा या विदेश यात्रा का योग बनता है. हालांकि यह यात्रा कष्टकारी हो सकती है, लेकिन सफलता मिलती है या उद्देश्य पूर्ण होता है.

यदि ललाट के बीचो-बीच (वह स्थान जो ध्यान का केंद्रबिंदु माना जाता है, यहीं पुरुष चंदन या टीका लगाते हैं) फड़कन होती है, तो यह शुभ है. ऐसा होने पर जातक को अपने कार्य के बारे में शुभ सूचना और भ्रमण का अवसर मिलता है. धन एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है.
सिर के पिछले हिस्से के बीचो-बीच (उभरी हुई हड्डी का मध्यभाग, जिसे मूर्धा कहते हैं) फड़कन(स्पंदन) होने पर दैहिक, दैविक और भौतिक, तीनों प्रकार के सुख की प्राप्ति होती है. इससे यश बढ़ता है.

लेकिन मूर्धा (सेंटर ऑफ़ ऑक्सीपिटल बोन) की दायीं या बायीं ओर का भाग (कोई एक भाग) फड़कने पर कार्य में बाधा तथा कष्ट की स्थिति बनती है. हालाँकि यह स्थिति ज़्यादा देर तक नहीं रहती है. यानी जातक जल्द ही समस्याओं पर काबू पा लेता है.
इसके विपरीत, मूर्धा की दोनों ही ओर एकसाथ फड़कन (कंपन) होने पर अच्छा संयोग बनता है. विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं, लाभ की प्राप्ति और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है.
भौंहों में और उनके बीच की जगह पर फड़कन
आंखों के ऊपर की हड्डी पर स्थित छोटे बालों का क्षेत्र भौंह (eyebrow) कहलाता है. भौंहें चेहरे के भावों को उजागर करने में सहायक होती हैं. साथ ही, आंखों को पसीने, धूल और अन्य हानिकारक वस्तुओं से बचाता भी है.
भौंहों के बीच के स्थान को स्थपनी (glebella), छठा चक्र, गुप्त स्थान, आदि नाम से जाना जाता है. आयुर्वेद में इसे मर्म स्थान कहा गया है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष की दायीं भौंह और महिला की बायीं भौंह के फड़कने पर शुभ समाचार प्राप्त होते हैं. धनलाभ के साथ लोकप्रियता में भी वृद्धि होती है. इसके विपरीत, यदि पुरुष की बायीं भौंह और स्त्री की दायीं भौंह फड़कती है, तो अशुभ सूचना के साथ धन-जन की हानि की संभावना बनती है.

लेकिन यदि दोनों भौंहें एकसाथ फड़कती हैं, तो पुरुष और स्त्री, दोनों को शुभ सूचनाएं प्राप्त होती हैं, उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
भौंहों के बीचो-बीच यानी इनके बीच ठीक केंद्र (स्थपनी, छठा चक्र, आज्ञा या गुप्त ज्ञान का स्थान कहा जाता है, महिलाएं यहां बिंदी लगाती हैं) में फड़कन होने से प्रेमानंद की प्राप्ति होती है. यानी पुरुष या स्त्री को किसी से प्रेम हो जाता है. यदि प्रेम-प्रसंग पहले चल रहा है तो उसमें गति आती है.

अधूरा प्रेम भी परवान चढ़ता है.
आंखों का फड़कना
शरीर के बाहरी अंगों में सबसे कोमल आंखें हैं. और ये जितनी कोमल हैं उतनी ही जटिल भी हैं. शरीर रचना विज्ञान के अनुसार आंख एक जटिल अंग है, जो देखने की क्षमता देती है. इसमें कई संरचनाएं होती हैं, जो प्रकाश को प्राप्त करती हैं, केंद्रित करती हैं, और फिर मस्तिष्क को दृश्य संकेत भेजती हैं. उसके बाद ही हम अपने प्रियजनों और संसार को देख पाते हैं.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष की दायीं आंख और स्त्री की बायीं आंख का फड़कना शुभ समाचार लाने वाला होता है. यानी ऐसी स्थिति में अच्छे कार्य होते हैं, तथा दोनों ही जातकों के धन और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है.

इसके विपरीत, पुरुष की बायीं आंख और महिला की दायीं की फड़कन (स्फुरण) अशुभकारी या अमंगलकारी होती है. विशेषज्ञों के अनुसार पुरुष की बायीं और महिला की दायीं आंख के फड़कने पर शत्रु या विरोधी प्रबल हो जाते हैं, और कार्य में अवरोध पैदा करते हैं.

लेकिन यदि पुरुष और स्त्री, दोनों की दोनों आंखें एकसाथ फड़कती हैं, तो यह शुभ संकेत है. इससे अधूरे काम बनते हैं. किसी मित्र, प्रेमी या प्रेमिका या फिर सगे-संबंधी से मुलाकात का योग बनता और संबंधों में प्रगाढ़ता (मजबूती) आती है.
नाक का फड़कना
नाक श्वसन-तंत्र का पहला और घ्राण-तंत्र का प्रमुख अंग है. यानी सांस लेने-छोड़ने और छोड़ने में नाक की भूमिका प्रमुख है. समाजशास्त्र, मनोविज्ञान और मानविकी के अनुसार नाक व्यक्ति की पहचान के साथ उसकी संवेदनशीलता के स्तर या परिमाण का सूचक होती है. नाक के कुछ विशेष आकार-प्रकार और उसमें पहने जाने वाले आभूषण भी चेहरे का आकर्षण बढ़ाते हैं.

सामुद्रिक शास्त्र का कहना है कि पुरुष और स्त्री, दोनों की नाक का फड़कना समान रूप से फलदायी होता है. इसके अनुसार नाक का दायां हिस्सा फड़कने पर विवाद या झगड़े का योग बनता है.

नाक के बाएं हिस्से में फड़कन होने पर धनागम का योग बनता है. साथ ही, लोकप्रियता मिलती है या इसमें वृद्धि होती है.
नाक के बाएं हिस्से के फड़कने पर धन की प्राप्ति होती है. कोई रुका हुआ काम बनता है, और लोकप्रियता प्राप्त होती है या उसमें वृद्धि होती है.
नाक के मध्यभाग (बीचो-बीच) के फड़कने पर अपनों, जैसे किसी क़रीबी या फिर पति-पत्नी के बीच मनमुटाव हो सकता है. यदि यह फड़कन लगातार और तेज है, तो तकरार भी संभव है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिति जल्द सामान्य भी हो जाती है.

विशेषज्ञों का कहना है कि नाक के अग्रभाग अर्थात उसके सामने वाले हिस्से (नाक की नोक) में फड़कन होने पर कोई बड़ी शारीरिक क्षति, जैसे गंभीर रोग या मृत्यु का भी योग बनता है.
विशेषज्ञों के अनुसार नाक की नोक के दायें या बायें भाग में उभरे हुए दोनों बाहरी उत्तकों में से किसी एक में या दोनों ही में फड़कन होने पर धन, यश, संतान या किसी अन्य बड़ी उपलब्धि से जुड़े शुभ समाचार प्राप्त होते हैं.

नाक के नथुने (नाक के दो बाहरी छेद वाला स्थान) फड़कने पर धनलाभ का योग बनता है.

नाक के ऊपरी हिस्से (जो माथे के साथ जुड़ता है, यह नाक की जड़ भी कहलाता है) में फड़कन होने पर व्यर्थ का विवाद या लड़ाई-झगड़े की स्थिति उत्पन्न होती है.
नाक के अंदरूनी हिस्से (Internal nose) में कहीं भी फड़कन होने पर धन-संपदा और यश में बड़ी वृद्धि का योग बनता है.

नाक और होंठ के बीच वाली जगह में फड़कन
नाक और होंठ के बीच के समूचे हिस्से को एर्गोट्रिड कहते हैं, जिसमें फिलट्रम या ओष्ठ खात होता है. यहीं मर्दों को मूंछें उगती है तथा कुछ औरतों में हल्के या ज़्यादा रोयें होते हैं, जिन्हें वे साफ़ करवाती हैं. इसलिए, यहां की फड़कन को मूंछ का फड़कना भी कहते हैं.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार नाक और होंठ के बीच वाली जगह पर होने वाली फड़कन का स्त्री-पुरुष दोनों को समान रूप से फल मिलता है. अर्थात इस फड़कन का उनके जीवन पर समान रूप से असर पड़ता है.

नाक और होंठ के बीच वाली जगह (फिलट्रम) की दायीं ओर फड़कन हो, तो किसी प्रकार की उपलब्धि या वर्चस्व प्राप्त होने का संयोग बनता है. लेकिन फड़कन अगर इसकी बायीं (बायीं तरफ़ के मूंछ-क्षेत्र में) तरफ़ है तो समझ लीजिये कि किसी प्रकार का विवाद या झगड़ा होने वाला है.
सिर्फ ओष्ठ खात (फिलट्रम) के फड़कने पर पारिवारिक या सामाजिक संबंधों में सुधार या वृद्धि होती है. किसी इच्छित व्यक्ति के क़रीब जाने या उसके क़रीब आने का सुखद अवसर मिलता है.
नाक और होंठ के बीच समूचे क्षेत्र (एर्गोट्रिड फ्लैप) में फड़कन होने पर धन-वैभव और मान-सम्मान में बढ़ोतरी होती है. किसी क़रीबी व्यक्ति से मुलाक़ात हो सकती है, और कोई बिगड़ा काम बन सकता है.
तालू का फड़कना
तालू (palate), मुंह की छत है, जो नाक गुहा को मौखिक गुहा से अलग करता है. इसके दो भाग होते हैं- अग्रभाग या अगला भाग (कठोर तालू) पश्चभाग या पिछला भाग (नरम तालू), जो भोजन को निगलने, सांस लेने और बोलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

सामुद्रिक शास्त्र का कहना है कि तालू का फड़कना स्त्री और पुरुष, दोनों जातकों के लिए समान रूप से परिणामकारी (नतीज़ा या फल देने वाला) होता है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार तालू के अग्रभाग में फड़कन से शारीरिक और मानसिक समस्या खड़ी हो सकती है. यूं कहिये कि तबीअत बिगड़ सकती है.
तालू के पश्चभाग (पिछले हिस्से) में फड़कन पर किसी अनहोनी या बड़ी मुसीबत के आने का योग प्रबल होता है.
लेकिन यदि पूरे तालू-क्षेत्र में (तालू के दोनों भाग में एकसाथ) फड़कन हो, तो बहुत शुभ सकेंत है. इसमें जातक की नौकरी में प्रोन्नति (प्रमोशन) मिल सकता है, और व्यवसायी-व्यापारी को बड़ा लाभ हो सकता है.
जीभ का फड़कना
जीभ (tongue) , मांसपेशियों का एक अत्यंत गतिशील समूह और एक महत्वपूर्ण अंग है, जो मुख के तल पर होता है. यह महत्वपूर्ण अंग भोजन को चबाने और निगलने में मददगार होने साथ स्वाद का प्राथमिक अंग है.

सामुद्रिक शास्त्र का कहना है कि जीभ की फड़कन का प्रभाव स्त्री-पुरुष में समान होता है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार जीभ का फड़कना शुभ संकेत होता है. ऐसा होने पर किसी कार्य में उपस्थित बाधा दूर हो जाती है या लंबे समय से चली आ रही बीमारी, परेशानी या चिंता से मुक्ति मिलती है.
होंठ का फड़कना
होंठ (lips) जबड़े से जुड़े नरम उपांगों की एक क्षैतिज जोड़ी हैं, जो चबाने, चेहरे की अभिव्यक्ति, ध्वनि, संवेदना के साथ शारीरिक आकर्षण और अंतरंगता में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. होंठों के बारे में कहा गया है कि इनका अध्ययन कर किसी के व्यक्तित्व और स्वास्थ्य के साथ उसके भूत और भविष्य को भी जाना जा सकता है.

ज्योतिषविद या सामुद्रिक शास्त्र के विशेषज्ञों का कहना है कि होंठ की फड़कन का प्रभाव स्त्री-पुरुष पर एक समान होता है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार ऊपरी होंठ में हलचल या फड़कन है तो इसमें किसी कार्य में रूकावट या अनिश्चितता के समाप्त होने और कुछ विशेष प्राप्ति का योग बनता है. इसमें किसी विरोधी या शत्रु पक्ष पर विजय प्राप्ति और मान-सम्मान में वृद्धि भी शामिल है.

निचले होंठ के फड़कने पर कुछ नया होने का योग प्रबल होता है. इसमें किसी प्रभावकारी व्यक्ति से मित्रता और उसके माध्यम से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से लाभ, तकनीकि विकास या व्यवसाय में उन्नति, इत्यादि संभव होती है.

लेकिन यदि दोनों होंठ (ऊपरी होंठ और निचला होंठ) एकसाथ या एक ही समय में फड़कें तो मिलाजुला असर होता है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह ऐसा अवसर होता है, जब सुसंवाद (Healthy discussion or debate)-नोंक-झोंक, लाभ-हानि, मान-अपमान, इत्यादि में दोनों का प्रभाव तो होता है, लेकिन कोई अधिक तो कोई कम प्रभावी होता है. होते दोनों ही हैं. यूं समझ लीजिये कि जो होंठ ज़्यादा फड़क रहा हो उसका फल ज़्यादा, जबकि जो कम फड़क रहा हो उसका फल कम प्रभावी होता है.
गालों का फड़कना
कपोल, गंड या गाल (cheek) चेहरे का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो आंखों के नीचे तथा नाक और कान के बीच स्थित होता है. यूं कहिये कि मुंह की दोनों ओर ठुड्डी और कनपटी के बीच का वह कोमल भाग जो आंखों के नीचे होता है, गाल कहलाता है. यह चबाने के दौरान भोजन को दांतों के बीच रखने में मदद करता है. साथ ही, मुंह में नमी बनाये रखता है.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष हो या स्त्री, उसके गालों में किसी एक तरफ़ फड़कन होने पर किसी कार्य के पूरे होने या कोई नया लाभकारी व सम्मानजनक कार्य शुरू होने को लेकर शुभ सूचना मिलती है. लेकिन दोनों गाल के एकसाथ फड़कने पर धनलाभ का योग प्रबल होता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि गालों का फड़कना दुर्लभ स्थिति है, और ऐसा जब भी होता है धन्य-धान्य को लेकर बहुत अच्छा संयोग बनता है.
ठोड़ी का फड़कना
ठुड्डी, चिबुक या ठोड़ी (chin) चेहरे में होंठ (निचले होंठ) के नीचे जबड़े का भाग होती है, जो उभरी हुई होती है. यह चेहरे के निचले हिस्से को आकार देने और बोलने के लिए होंठ को हिलाने में सहायक होती है. साथ ही सौन्दर्य में योगदान करती है.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार ठोढ़ी या ठुड्डी के फड़कने पर पुरुष और स्त्री, दोनों ही को दैहिक सुख की प्राप्ति होती है. दैहिक सुख से आशय है शारीरिक सुख या शारीरिक आवश्यकताएं, जिनमें भोजन, नींद, आराम और यौन संतुष्टि, इत्यादि शामिल हैं.
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि ठोढ़ी में फड़कन का स्पष्ट संकेत प्रेमालाप या स्त्री-पुरुष प्रसंग के बारे में है, लेकिन इसमें धनागम का योग भी बनता है. अर्थात शारीरिक-आत्मिक सुख के साथ किसी मूल्यवान वस्तु प्राप्ति भी हो सकती है.
कनपटी का फड़कना
मानव शरीर रचना विज्ञान में सिर के किनारे वाला, विशेष रूप से माथे और कान के बीच का क्षेत्र, जो आंखों की बगल में स्थित होता है, कनपटी (temple) कहलाता है. कनपटी चेहरे को आकार देने के साथ मस्तिष्क की सुरक्षा और भोजन को चबाने में सहायता करती है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष की दायीं कनपटी का फड़कना शुभ संकेत होता है. इसमें अधूरी इच्छाएं पूरी होती हैं, तथा मान-सम्मान में वृद्धि होती है. यही फल स्त्री को उसकी बायीं कनपटी के फड़कने पर प्राप्त होता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि यह संकेत पुरुष और स्त्री, दोनों ही को विशेष रूप से कुंठा, संत्रास और घुटन से बाहर निकलने और मेल-मिलाप की ओर अग्रसर होने या पूर्ण तथा संतोषप्रद यौनसुख प्राप्ति के निर्बाध अवसर से संबंधित होता है.

मगर स्थिति बिल्कुल उलट हो सकती है यदि पुरुष की बायीं कनपटी फड़कती है. स्त्री को भी उसकी दायीं कनपटी फड़कने पर गृहकलह और अपमान झेलना पड़ सकता है.
कान का फड़कना
मानव शरीर रचना विज्ञान में कर्ण या कान (ear) हमारे पांच संवेदी अंगों में से एक है. इस जटिल संवेदी अंग के तीन मुख्य भाग- बाहरी कान, मध्य कान और आंतरिक कान मिलकर हमें सुनने और संतुलन बनाये रखने के योग्य बनाते हैं. कान हमारे सौन्दर्य में भी योगदान करता है. लोग (स्त्री और पुरुष दोनों) कान छिदवाकर उसमें आभूषण धारण करते हैं.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार अगर पुरुष का दायां कान फड़कता है, तो यह शुभ संकेत है. उसे धन-लाभ, लाभकारी अवसर या किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से संपर्क बनने संबंधी सूचना मिल सकती है. इसके विपरीत, उसका बायां कान फड़कने पर किसी अनहोनी या समस्या आने का योग बनता है.

इसी प्रकार, किसी महिला का बायां कान फड़कने पर पारिवारिक संबंधों में मधुरता आने की प्रबलता होती है. नौकरी या व्यवसाय-व्यापार में उन्नति या लाभ संबंधी सूचना प्राप्त होना संभव है. इसके ठीक उलट, इनका दायां फड़कने पर नुकसान या अन्य बुरी ख़बर आने की संभावना होती है.

लेकिन कान के पिछले हिस्से या उसकी जड़ (जहां कान को गले से जोड़ने वाला एक संकरा मार्ग या यूस्टेशियन ट्यूब होती है) में फड़कन होने पर पुरुष-स्त्री दोनों को समान रूप से फल मिलता है. विशेषज्ञों के अनुसार किसी नए या पुराने इच्छित विकास कार्य (जैसे नौकरी के लिए इंटरव्यू या व्यवसाय-व्यापार में सौदे को लेकर बुलावा) संबंधी सूचना प्राप्त हो सकती है.
विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि कान के पिछले भाग में फड़कन यदि रात्रिकाल में हो, तो अपनों से मतभेद व अपमान का योग प्रबल होता है.
गर्दन, गला और कंठ में फड़कन
सिर को धड़ से जोड़ने वाली शरीर की महत्वपूर्ण संरचना गर्दन (Neck) कहलाती है. इसके सामने वाला हिस्सा गला (Throat) कहलाता है. इसी में कंठ (गले की वे भीतरी नलियां जिनसे भोजन नीचे उतरता है, और आवाज़ निकलती है) भी होता है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष के गले का दायां भाग फड़कने पर किसी मनोवांछित या सुंदर स्त्री से मिलन का संयोग बनता है. इसी प्रकार, स्त्री के गले के बाएं भाग में फड़कन होने पर मनचाहे पुरुष के साथ संबंध का मार्ग बनता है, या अवसर प्राप्त होता है.

इसके विपरीत, पुरुष के गले की बायीं तरफ़ और स्त्री के गले की दायीं तरफ़ फड़कन हो, तो आर्थिक क्षति और अपमान का योग प्रबल होता है.

पुरुष और स्त्री, दोनों ही के कंठ के ऊपरी हिस्से में फड़कन होने पर किसी बहुमूल्य वस्तु की प्राप्ति का योग बनता है. विशेषज्ञों का कहना है कि यहां उपहार (गिफ़्ट) या विरासत में मिलने वाली किसी चल-अचल संपत्ति की प्रधानता है.
विशेषज्ञों के अनुसार स्त्री-पुरुष के कंठ के निचले भाग में फड़कन पर छोटी-मोटी चीज़ या खुशियां हासिल होती हैं, या उनसे जुड़ी खुशखबरी मिलती है.
पुरुष-स्त्री का कंठ फड़कने (सामान्य फड़कन) पर धन-लाभ का योग बनता है. वहीं, इसके तेज फड़कने पर स्वादिष्ट भोजन मिलने का अवसर प्राप्त होता है.

कंठ-नहर या कंठ-घाटी के निचले हिस्से में फड़कन अशुभ समाचारों के न्यौते के समान होती है. इसमें आर्थिक नुकसान के साथ बदनामी या अपमान का भी योग होता है.

गर्दन के पीछे के ऊपरी हिस्से में फड़कन होने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, जबकि इसके निचले हिस्से के फड़कने पर आर्थिक लाभ और शरीरिक सुख मिलने का योग बनता है.

कंधे में फड़कन
कंधा (shoulder) या स्कंध वह महत्वपूर्ण अंग है जो हाथ और शरीर को जोड़ता है या उसकी कड़ी के रूप में काम करता है. यह हाथ को कई प्रकार की गतिविधियाँ करने में सक्षम बनाता है.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष का दायां कंधा फड़कता है तो अपने सगे व करीबियों का सहयोग मिलता है. इसमें आर्थिक लाभ के साथ सामाजिक सम्मान भी प्राप्त होता है. इसी प्रकार, स्त्री का बायां कंधा फड़कता है तो उन्नति होती है तथा परिवार-समाज में मान-सम्मान प्राप्त होता है.
इसके विपरीत, पुरुष का बायां कंधा और स्त्री का दायां कंधा फड़कने पर आर्थिक क्षति के साथ अपमान भी झेलने का योग प्रबल होता है.
स्त्री-पुरुष के अगर दोनों कंधे एकसाथ फड़कते हैं, तो आर्थिक क्षति के साथ परिवार में कलह का भी योग बनता है.
हाथ, बाजू व कलाई में फड़कन
शारीरिक संरचना की दृष्टि से बांह, बाहू, भुजा या बाजू (Arm) कंधे और कोहनी (Elbow) के बीच का हिस्सा है, जबकि कोहनी के नीचे का हिस्सा जो उंगलियों के छोर तक होता है वह हस्त या हाथ (Hand) कहलाता है. हाथ उंगलियों के सहारे कुछ पकड़ने या अन्य क्रियाएं करने में काम आता है.

हथेली और कोहनी के बीच का वह भाग जहां कड़े, चूड़ियाँ, आदि पहनी जाती हैं, और घड़ी बाँधी जाती है, मणिबंध या कलाई (Wrist) कहलाती है. कलाई पकड़ना एक रोमांटिक क्रिया भी है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष का बायां बाजू फड़कने पर किसी साहसपूर्ण कार्य करने और उसमें विजय पाने का संयोग बनता है, और मान-सम्मान प्राप्त होता है. लेकिन बाएं बाजू का फड़कना अशुभ होता है. इसमें धन-जन की हानि हो सकती है.
यदि पुरुष के दोनों बाजू एकसाथ फड़के, तो किसी कार्य में सफलता के साथ धन और यश की भी प्राप्ति होती है.
स्त्री के बाएं बाजू में फड़कन पर कोई खोई हुई वस्तु या गड़ा हुआ धन प्राप्त होता है. इस फल में विरासत में मिला धन-संपत्ति भी शामिल है. इसके विपरीत, दायां बाजू फड़कने पर आर्थिक क्षति के साथ अपमान का योग भी प्रबल होता है.
लेकिन स्त्री के दोनों बाजू एकसाथ फड़कने पर पुरुष के समान ही (जिस तरह का फल पुरुष को प्राप्त होता है) धन और यश की प्राप्ति होती है.
सामुद्रिक शास्त्र का कहना है कि स्त्री और पुरुष, दोनों के हाथ और कलाई में फड़कन का एकसमान या एक ही तरह का फल प्राप्त होता है.
पुरुष के दायें हाथ या कलाई और स्त्री के बायें हाथ या कलाई के फड़कने पर किसी कार्य में अपनों के अलावा दूसरे या अनजाने लोगों का भी सहयोग प्राप्त होता है. इससे कार्य सफल होता है, तथा धन-और यश की प्राप्ति होती है.
इसके विपरीत, पुरुष के बाएं हाथ या कलाई और स्त्री के दांयें हाथ या कलाई में फड़कन पर शारीरिक (कोई बीमारी या दुर्घटना आदि) और मानसिक कष्ट होने का योग बनता है.
बगल में फड़कन
बगल, मानव शरीर पर एक पिरामिडनुमा जगह है जो बांह के ऊपरी हिस्से और छाती की दीवार के किनारे के बीच स्थित होता है. इसे कांख या कक्ष (armpit or axilla) भी कहते हैं. यहां बाल और पसीने की ग्रंथियां होती हैं. यहां से निकलने वाले पसीने की गंध फेरोमोन के रूप में कार्य करती है, और जननांग क्षेत्र से निकलने वाली गंध से अधिक तेज होती है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष की दायीं कांख या बगल का फड़कना शुभ संकेत है. ऐसे में, कोई अच्छी खबर मिलती है तथा किसी प्रियजन से मुलाक़ात होती है. लेकिन, बायीं कांख के फड़कने पर व्यर्थ के विवाद के साथ आर्थिक क्षति का भी योग होता है.

किसी महिला की बायीं ओर की बगल में फड़कन पर किसी प्रियजन से मुलाक़ात के साथ मनचाही चीजों की ख़रीदारी (shopping) का अवसर प्राप्त होता है. लेकिन बायीं तरफ़ की बगल के फड़कने पर रोग का योग प्रबल होता है.

कोहनी का फड़कना
भुजा (ऊपरी भुजा, बाजू) और हस्त (अग्रबाहु, हाथ) के बीच का हिस्सा, या फिर यूं कहिये कि हाथ के बीच का जोड़ (hinge joint) जिसके सहारे हम हाथ को सीधा करते हैं, मोड़ते हैं, और अन्य कई तरह के काम करते हैं, कोहनी (elbow) कहलाता है.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष की दाहिनी कोहनी में फड़कन विवाद या संघर्ष के आरंभ होने का संकेत देती है. लेकिन अंततोगत्वा इसमें विजय, सम्मान और लाभ प्राप्त होता है. अर्थात यह एक ऐसे युद्ध के बिगुल (तुरही या वाद्ययंत्र जो विशेष रूप से युद्ध या सैन्य कार्रवाई के उद्देश्य से उपयोग में लाया या बजाया जाता है) की तरह है जिसमें विजय या सफलता निश्चित होती है. लेकिन बायीं कोहनी के फड़कने पर हानि या क्षति का संकेत मिलता है.
स्त्री की बायीं कोहनी के फड़कने पर किसी संघर्षपूर्ण स्थिति, जैसे द्वंद्वयुद्ध या प्रतियोगिता में विजय या सफलता मिलती है. वहीं, दायीं कोहनी की फड़कन व्यर्थ का विवाद, अपमान और अशांति की स्थिति उत्पन्न होने का संकेत हो सकती है.
हथेली का फड़कना
हथेली (palm) हाथ का वह भाग है जो कलाई से लेकर उंगलियों की जड़ तक होता है. यानी यह हाथ का सबसे निचला हिस्सा है, जिस पर रेखाएं और चिन्ह होते हैं. हस्तरेखा शास्त्र में उनका अध्ययन कर व्यक्ति के जीवन और भविष्य के बारे जाना जाता है.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष की दायीं हथेली के फड़कने पर आर्थिक लाभ और सम्मान प्राप्त होता है. लेकिन बायीं हथेली की फड़कन व्यर्थ में धन और समय नष्ट होने का संकेत देती है.
स्त्री की बायीं हथेली की फड़कन धनलाभ और सम्मान में वृद्धि का संकेत देती है. वहीं, दायीं हथेली के फड़कने पर फिजूलखर्ची या अनावश्यक खर्च (या धन की बर्बादी) का योग प्रबल होता है.
उंगलियों व अंगूठे में फड़कन
शारीरिक संरचना की दृष्टि से मानव के हाथ में (एक हाथ में) चार अंगुलियां होती हैं, और एक अंगूठा होता है. लेकिन सामूहिक रूप से इन्हें पांच उंगलियां कहा जाता है, जिसमें अंगूठे को एक उंगली के रूप में शामिल किया जाता है. इसी प्रकार, दोनों पैर में उंगलियां व अंगूठे होते हैं.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष दाहिने हाथ की किसी एक उंगली या चारों उंगलियों में एकसाथ फड़कन होने पर किसी किसी नए कार्य का मार्ग प्रशस्त होता है. हालांकि इसमें बाधाएं भी आती हैं, लेकिन अंततोगत्वा सफलता मिलती है. विशेषज्ञों के अनुसार इसी प्रकार योग दाहिने पैर की उंगलियों में फड़कन पर बनता है. लेकिन बायें हाथ या पैर की उंगलियों का फड़कना अशुभ होता है. इसमें किसी कार्य में बाधा के साथ आर्थिक हानि भी संभव है.
स्त्री के बायें हाथ या पैर की उंगलियों के फड़कने पर धन व आभूषण की प्राप्ति होती है. इसके विपरीत, दायें हाथ या पैर की उंगलियों में फड़कन पर कार्य में बाधा के साथ जगहंसाई (लोकनिंदा, बदनामी) का भी योग बनता है.
यदि पुरुष के दायें हाथ या पैर का अंगूठा फड़कता है, तो किसी नए व प्रभावशाली व्यक्ति से भेंट होने और कार्य में सफलता मिलने का योग बनता है. लेकिन बायें हाथ या पैर के अंगूठे के फड़कने पर किसी प्रकार का शारीरिक कष्ट या रोग होना संभव है.
स्त्री के बायें हाथ या पैर के अंगूठे का फड़कना अपने किसी प्रियजन से भेंट (मुलाक़ात) और भोज (भव्य या स्वादिष्ट भोजन, दावत) के अवसर की प्राप्ति का संकेत होता है. इसके विपरीत, दायें हाथ या पैर के अंगूठे के फड़कने पर कुछ अमंगलकारी (अनिष्टकारी, दुर्भाग्यपूर्ण) हो सकता है, और घर-परिवार में दुख तथा भय का वातावरण बन सकता है.
छाती में फड़कन
वक्ष (thorax) या छाती (chest) गर्दन और पेट के बीच का क्षेत्र है, जिसमें महत्वपूर्ण अंग होते हैं. इसमें हड्डियों का पिंजरानुमा ढ़ांचा होता है, जिन्हें पसलियां कहते हैं. ये ह्रदय, फेफड़े और अन्य अंगों की रक्षा करती हैं.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष की छाती की दाहिनी ओर पसलियों के फड़कने पर विजय या सफलता, धनलाभ और सम्मान में वृद्धि का अवसर देखने को मिल सकता है. लेकिन बायीं ओर फड़कन पर आर्थिक हानि के साथ अपमानजनक स्थिति उत्पन्न होने का योग बनता है.
इसी प्रकार, स्त्रियों की छाती के बायें हिस्से के फड़कने का संकेत भी शुभ होता है. इसमें कोई अप्रत्याशित सफलता तथा आर्थिक सुधार या उन्नति संभव है. कुछ विशेषज्ञ यहां किसी प्रियजन से भेंट और संबंधों में प्रगाढ़ता के अवसर प्राप्त होने की संभावना पर बल देते हैं.
इसके विपरीत, स्त्रियों की छाती की दायीं ओर फड़कन होने पर कार्य में बाधा या अशांति की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.
पेट में फड़कन
अमाशय, उदर या पेट (stomach) शारीरिक अंगों का वह ऊपरी और मध्यभाग है, जो छाती के नीचे और पेडू के ऊपर स्थित होता है. हालाँकि कुछ स्वास्थ्य विज्ञानियों का कहना है कि मुंह से लेकर गुदा के बीच सभी अवयव पेट का हिस्सा हैं, जो पाचन में भूमिका निभाते हैं.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष के पेट की दायीं ओर फड़कन शुभ होती है. इसमें धन-धान्य में वृद्धि होती है तथा परिवार में खुशियाँ आती हैं. स्वादिष्ट पकवान बन सकते हैं. इसके विपरीत, पेट के बायें हिस्से में फड़कन हानि और रोग-शोक की स्थिति के आगमन का सूचक है.
स्त्री के पेट की बायीं ओर फड़कन धन तथा मान-सम्मान में वृद्धि का संकेत देती है. विशेषज्ञों के अनुसार यहां संतान पक्ष से जुड़ा कोई शुभ समाचार भी हो सकता है. लेकिन फड़कन यदि पेट के दाहिने हिस्से में है, तो आर्थिक हानि और पारिवारिक कलह या अशांति का वातावरण बन सकता है.
नाभि का फड़कना
विज्ञान या चिकित्सीय भाषा में अम्बिलिक्स (umbilicus) या नाभि पेट पर एक गहरा निशान होती है. जो नवजात शिशु से गर्भनाल (umbilical cord) को अलग करने पर बनती है. आयुर्वेद के अनुसार शरीर के आमाशय (अपचित भोजन का स्थान, पेट) और पक्वाशय (पके हुए भोजन का स्थान, आंत) के बीच का बिंदु (मध्य बिंदु) नाभि सभी अंगों का मूल, विभिन्न उपचारों का एक महत्वपूर्ण स्थल और 15 कोष्ठंगों (कोष के भीतर स्थित अंग) में से एक है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष और स्त्री, दोनों के लिए नाभि में फड़कन शुभ संकेत नहीं है. ऐसा होने पर रोग-शोक की स्थिति उत्पन्न हो सकती है.

विशेषज्ञों का कहना है कि पुरुष की नाभि के फड़कने पर परिवार में विशेषकर पत्नी संग (साथ) मनमुटाव, विवाद या झगड़ा हो सकता है.इसी प्रकार, स्त्री की नाभि का फड़कन से आर्थिक हानि के साथ सम्मान को भी ठेस पहुँचती है.

विशेषज्ञों के अनुसार कन्याओं या अविवाहित स्त्री की नाभि में फड़कन अधिक अहितकारी परिस्थितियों के आगमन का संकेत हो सकती है. इसमें जान व माल पर हमला, दुर्घटना, आदि का योग प्रबल होता है.
पीठ का फड़कना
मानव पीठ (dorsum) शरीर का वह भाग है, जो छाती के पीछे कमर और कंधों के बीच होता है. विज्ञान के अनुसार मानव शरीर का यह बड़ा पिछला क्षेत्र है, जो नितंबों के ऊपर से गर्दन के पीछे तक बढ़ता है. इसमें शामिल रीढ़ की हड्डी, इंटरवर्टिब्रल डिस्क, नसों, मांसपेशियां, स्नायुबंधन और टेंडन (कंडरा, एक रेशेदार संयोजी उत्तक है, जो मांसपेशियों को हड्डियों से जोड़ता है) पीठ को सहारा और गति देते हैं.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष की पीठ की दायीं ओर फड़कन हो, तो आर्थिक लाभ के साथ मान-सम्मान में भी वृद्धि होती है. लेकिन इसकी बायीं ओर फड़कना शुभ नहीं होता है. इसमें विवाद उत्पन्न होते हैं, उलझनें बढ़ती हैं, और असफलता ही हाथ लगती है.

इसी प्रकार, स्त्री की पीठ बायीं तरफ़ फड़कने पर धन-धान्य में वृद्धि होती है, और संतान का योग प्रबल होता है. इसके विपरीत, दायीं ओर फड़कने पर रोग-शोक की स्थिति बनती है. विशेषज्ञों का कहना है कि महिला यदि गर्भवती है, तो समय-पूर्व प्रसव या गर्भपात का योग होता है.

लेकिन पीठ के ऊपरी और निचले भाग में फड़कन का फल पुरुष और स्त्री, दोनों के लिए समान होता है. विशेषज्ञों के अनुसार उनके जीवन में उपलब्धियां प्राप्त होती हैं, लोकप्रियता मिलती है या उसमें वृद्धि होती है.
कमर और कुल्हे में फड़कन
शारीरिक संरचना की दृष्टि से कटि या कमर रीढ़ की हड्डी का निचला भाग होती है, जो पेट और कुल्हों के बीच स्थित होती है. सौंदर्यशास्त्र और अन्य साहित्यिक रचनाओं में इसे कटि-प्रदेश, मध्य-प्रदेश, आदि नाम भी दिए गए हैं. विशेषज्ञों के अनुसार इसमें रीढ़ की हड्डी, डिस्क, नसें, मांसपेशियां और स्नायुबंधन शामिल होते हैं.
सामुद्रिक शास्त्र कहता है कि पुरुष की कमर के दायें हिस्से में फड़कन शुभ संकेत देती है. इसमें विकास के मार्ग खुलते हैं तथा परिवार में सुख-शांति आती है. लेकिन कमर के बायें भाग के फड़कने पर धन-जन की हानि का योग प्रबल होता है.

विशेषज्ञों के अनुसार स्त्री की कमर के बायें भाग का फड़कना परिस्थितियों के अनुकूल होने तथा परिवार में शांति का वातावरण बनने की ओर संकेत होता है. इसके विपरीत, फड़कन यदि कमर के दायें भाग में है, तो किसी बड़ी अनहोनी या मुसीबत के आगमन का योग प्रबल होता है.

विशेषज्ञ यह भी बताते हैं कि कुल्हे में फड़कन का फल भी कमर में फड़कन के फल से अलग नहीं होता है. यानी कुल्हे और कमर, दोनों का फड़कना समान संकेत देता है.
नितंब व गुदा का फड़कना
मानव चूतड़, पिछवाड़ा या नितंब (buttock, hips, ass) पीठ के पिछले-निचले हिस्से और पेरिनियम (गुदा और जननांगों के बीच का क्षेत्र, जो पुरुषों में गुदा और अंडकोष के बीच तथा स्त्रियों में गुदा और योनि के बीच स्थित होता है) के बीच में स्थित दो उभरे हुए (विशेषतः स्त्रियों में) गोल हिस्सों में दिखाई देने वाला मांसल भाग है, जो बैठने के लिए प्राकृतिक कुशन (गद्दी, गदेला) का काम करता है.
पाचन तंत्र के अंत में स्थित एक छेद, जिससे मल (पाखाना, टट्टी, गू) शरीर से बाहर निकलता है, गुदा कहलाता है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष के नितंब के दायें हिस्से में फड़कन होने पर सुख-समृद्धि एवं प्रसिद्धि में वृद्धि होती है. लेकिन इसकी बायीं तरफ़ का हिस्सा (पूरे गोलाकार भाग में या किसी एक स्थान पर) फड़कने पर कोई रोग अथवा अन्य प्रकार के शारीरिक कष्ट होने का योग बनता है. गुदा में फड़कन होने पर किसी अधूरी इच्छा या कार्य के पूरे होने तथा आमोद-प्रमोद का योग-संयोग बनता है.

इसी प्रकार, स्त्री के नितंब के बायें भाग का फड़कना शुभ होता है. अर्थात इसके फलस्वरूप आर्थिक लाभ के साथ परिवार और समाज में मान-सम्मान मिलने का योग बनता है. इसके विपरीत, दाहिने भाग के फड़कने पर रिश्तों में दरार आती है. गुदा में फड़कन होने पर किसी अधूरी इच्छा या कार्य के पूरे होने तथा आमोद-प्रमोद का योग-संयोग बनता है.

लेकिन नितंब के दोनों हिस्सों में फड़कन एकसाथ होने पर स्त्री-पुरुष, दोनों को समान फल प्राप्त होता है. विशेषज्ञों के अनुसार इसमें दोनों ही जातकों को यात्रा करने या वाहन में घूमने का आनंद लेने का योग बनता है.
गुप्तांगों और अंडकोष में फड़कन
स्त्री-पुरुष के आतंरिक जननांग गुप्तांग कहलाते हैं. पुरुष के मुख्य गुप्तांग शिश्न (लिंग), वृषण (अंडकोष) और शुक्राशय हैं, जबकि स्त्रियों में योनि, गर्भाशय, गर्भाशय ग्रीवा और अंडाशय होते हैं. ये सभी प्रजनन प्रणाली का हिस्सा है अथवा प्रजनन क्रिया में सहायक होते हैं.
सामुद्रिक शास्त्र आधारित अंग शास्त्र तथा अन्य पुस्तकों में जिनमें स्त्री-पुरुष के लक्षणों का वर्णन है उनमें पुरुष के लिंग तथा वृषण और स्त्री की योनि में फड़कन की चर्चा मिलती है.
विशेषज्ञों के अनुसार पुरुष के दायें अंडकोष में फड़कन होने पर सैर-सपाटे और आमोद-प्रमोद या भोग-विलास का योग बनता है. वहीं, बायें अंडकोष का फड़कना किसी बहुमूल्य वस्तु या खोई हुई चीज़ की प्राप्ति का सूचक होता है.

स्त्री की योनि में फड़कन वंश-वृद्धि या संतान (विशेषतः पुत्र) की प्राप्ति का संकेत देती है. विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें यह संदेश छुपा होता है कि प्रजनन संबंधी बाधाएं या कमियां दूर होंगीं तथा स्वस्थ और योग्य संतान प्राप्त होगी.

जांघ का फड़कना
शरीर के निचले भाग में स्थित जंघा, रान, उरु या जांघ (thigh) कुल्हे और घुटने के बीच का क्षेत्र है, जिसमें तीन मांसपेशी समूह, तीन प्रमुख तंत्रिकाएं और एक मुख्य हड्डी (फीमर) शामिल है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष की दायीं जांघ का फड़कना शुभ संकेत होता है. ऐसा होने पर कोई उपलब्धि प्राप्त होती है तथा मान-सम्मान में वृद्धि होती है. लेकिन बायीं जांघ के फड़कने पर किसी अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ सकता है.

इसी प्रकार, स्त्री की बायीं जांघ में फड़कन होने पर शुभ समाचार प्राप्त होता है तथा लोकप्रियता मिलती है या उसमें वृद्धि होती है. इसके उलट, दायीं जांघ के फड़कने पर प्रतिष्ठा को हानि पहुँचने का योग प्रबल होता है.

घुटने में फड़कन
घुटना (Knee joint) शरीर का सबसे बड़ा जोड़ है. यह वह जोड़ है जो ऊपरी पैर और निचले पैर की हड्डियों को जोड़ता है. इससे हमें पैर को मोड़ने, हिलाने, चलने, दौड़ने और कूदने में मदद मिलती है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष के दायें घुटने के फड़कने पर कोई बड़ी सफलता मिलती है, आर्थिक लाभ होता है, और सम्मान में वृद्धि होती है. लेकिन बायें घुटने में फड़कन होने पर नुकसान के साथ शर्मिंदगी के हालात पैदा हो सकते हैं.

स्त्री के बायें घुटने के फड़कने पर रुके हुए या बिगड़े काम बन सकते हैं, जबकि दायें घुटने का फड़कना अपशकुन हो सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार दायें घुटने के फड़कने पर अपनों के साथ अनबन और कार्य में बाधा उत्पन्न होने का योग बनता है.

पैर में फड़कन
शरीर रचना विज्ञान में टांग, चरण, पाद या पैर (leg, foot) को दो भागों में देखा जाता है- उपरवाला पैर और निचला पैर. उपर वाला पैर कुल्हे या जांघ से लेकर घुटने तक समझा जाता है, जबकि निचला पैर घुटने से टखने के बीच होता है. हम यहां पैर के निचले भाग की बात कर रहे हैं.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार यदि पुरुष के दाहिने पैर के निचले हिस्से में फड़कन हो, तो यात्रा का संयोग बनता है. विशेषज्ञों के अनुसार इसमें किसी बहुमूल्य वस्तु या रत्न की प्राप्ति हो सकती है. लेकिन बायें पैर के निचले हिस्से में फड़कन पर किसी शत्रु के सक्रिय होने या उसके द्वारा आक्रमण करने तथा क्षति पहुँचने का योग बनता है.
इसी प्रकार, स्त्री के बायें पैर के निचले हिस्से में फड़कन पर यात्रा के साथ आर्थिक लाभ का भी संकेत मिलता है, जबकि दाहिने पैर के निचले हिस्से के फड़कने पर गृह-क्लेश और आर्थिक हानि हो सकती है.
एड़ी का फड़कना
पैर के सबसे निचले हिस्से के छोर को एड़ी (heel) कहते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार यह एक जटिल संरचना है, जिसमें हड्डियां, मांसपेशियां, स्नायुबंधन और टेंडन या कंडरा (एक रेशेदार संयोजी उत्तक) शामिल हैं. एड़ी वज़न को बर्दाश्त करने, संतुलन बनाये रखने और पैर को घुमावदार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष की दायीं एड़ी का फड़कना शुभ संकेत होता है. इसमें अर्थोपार्जन के उद्देश्य से यात्रा और उसमें सफलता संभव होता है. इसके विपरीत, बायीं एड़ी के फड़कने की स्थिति में कोई शारीरिक कष्ट या रोग हो सकता है.
इसी प्रकार, स्त्री की बायीं एड़ी में फड़कन भी किसी शुभ समाचार के आगमन का संकेत होता है, जिसमें किसी प्रभावशाली व्यक्ति के सानिध्य में या कृपा-सहायता से कठिन कार्य का पूरा होना, परीक्षा आदि में अप्रत्याशित सफलता प्राप्त होना, इत्यादि सम्मिलित हो सकता है. लेकिन दायीं एड़ी का फड़कना अशुभ होता है.
विशेषज्ञों के अनुसार स्त्री की बायीं एड़ी में फड़कन संतान-पक्ष पर कोई संकट आने का इशारा करती है. इससे परिवार में भय और दुख का वातावरण बन सकता है.
तलवे का फड़कना
तलवा (sole) पैर का सबसे निचला हिस्सा है. विशेषज्ञों के अनुसार इसमें मांसपेशियां, स्नायुबंधन, तंत्रिकाएं और हड्डियां होती हैं, जो मिलकर पैर को सहारा देती हैं, और संतुलन बनाये रखती हैं. साथ ही, खड़े होने, चलने और दौड़ने में मददगार होती हैं.
तलवा एक संवेदी अंग भी है, जो हमें ज़मीन की सतह, तापमान और दबाव को महसूस करने में भूमिका निभाती है.
सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार पुरुष के दायें पैर के तलवे का फड़कना शुभ संकेत देता है. ऐसी स्थिति में, जातक को स्थान परिवर्तन, जैसे किसी जगह से दूसरी अच्छी जगह या दूसरे घर-मकान में जाने (shifting) का शुभ अवसर प्राप्त हो सकता है. साथ ही, देश-विदेश यात्रा का भी योग प्रबल होता है. लेकिन बायें पैर के तलवे का फड़कना अपशकुन साबित हो सकता है.

विशेषज्ञों के अनुसार पुरुष के बायें पैर के तलवे के फड़कने पर कोई बना-बनाया काम बिगड़ सकता है, या पहले से तय कोई यात्रा स्थगित हो सकती है.
स्त्री के बायें पैर के तलवे के फड़कने पर कई प्रकार की प्रतिकूल परिस्थितियां भी अनुकूल हो सकती हैं. यानी यह आर्थिक रूप से तो अच्छा होता ही है, पारिवारिक और सामाजिक तौर पर भी अच्छा वातावरण बनने और सम्मान प्राप्ति का अवसर आने संकेत होता है. इसके विपरीत, दायें पैर के तलवे का फड़कना अशुभकारी साबित हो सकता है.

विशेषज्ञों के अनुसार स्त्री के दायें पैर के तलवे की फड़कन किसी बड़ी मुसीबत के आने या रोग-शोक की स्थिति उत्पन्न होने का स्पष्ट संकेत होता है. इसमें जान-माल की हानि भी संभव है.
अस्वीकरण: इस लेख में कही गई बातें सामुद्रिक शास्त्र, शकुन शास्त्र, शारीरिक अंग विज्ञान, अंग लक्षण या अंग शास्त्र, सामुद्रिक तिलक, भविष्य पुराण का स्त्री पुरुष लक्षण वर्णन, बहुत्रेयी, लघुत्रयी, और अन्य शास्त्रीय पुस्तकों सहित पत्रिकाओं, इंटरनेट वेबसाइट, पूर्व में किये गए कार्यों से वर्णन एकत्र कर किया गया साहित्यिक और वैचारिक अध्ययन का निचोड़ हैं. खुलीज़ुबान.कॉम इसकी सौ फ़ीसदी (100%) प्रामाणिकता का दावा नहीं करता है. इसलिए पाठक इसे संक्षिप्त जानकारी मानकर अपने विवेक का प्रयोग करें.
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