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डिज़िटल दुनिया में रच-बस गया है Barcode

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 आज हर दुकान और बाज़ार कर रहा है Barcode  की तक़नीक का इस्तेमाल

– Barcode न सिर्फ़ बिल बनाने में उपयोगी हैबल्कि प्रोडक्ट की सूची तैयार करने में भी है बड़ा मददगार 

प्रोडक्ट की बात कौन करे अब तो मकानगांव और शहरों को भी Barcode के ज़रिए ही मिल रही है पहचान


Barcode के जन्म से लेकर उसके विकास के अब तक के लंबे सफ़र के दौरान उसे टक्कर देने मैदान में उतरीं क्यूआर कोड (क्वीक रिस्पांस कोड) और आरएफ़आईडी (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन) जैसी नई तक़नीक ने ज़लवे बिखेरते हुए अपने लिए जगह तो बना ली मगर, बारकोड की छवि पर कोई असर नहीं हुआ, वह अपनी जगह पर बरक़रार रहा.दरअसल, इसकी उपयोगिता में कमी आने की बजाय बढ़ोतरी ही होती गई.अपनी पुरानी पहचान के साथ बारकोड आज हमारी डिज़िटल दुनिया में रच-बस गया है.




बारकोड का जन्म एवं विकास (प्रतीकात्मक)

 

आज हम दुनिया किसी भी हिस्से में पहुंच जाएं बारकोड किसी न किसी रूप में हमें दिख ही जाता है.हमारी सभी छोटी बड़ी ज़रूरतों में शामिल चीज़ों पर इसकी छवि लगी नज़र आती है.इस्तेमाल के बाद फ़ेंक दी जाने वाली चीज़ें या सजावट के रूप में संभाल कर रखने वाली वस्तुओं के रूप में चल संपत्ति की बात कौन करे अब तो मकान,गांव और शहर भी बारकोड के ज़रिए ही पहचाने जाते हैं.एक ज़रूरी हिस्से की तरह.


बारकोड से सुसज्जित ब्रिटेन का मौन्मथ शहर,चीन का एक गांव और रुसी इमारत  

क्या है ये Barcode

बारकोड संख्याओं और समांतर रेखाओं के रूप में मशीन द्वारा पढ़े जाने योग्य प्रतीक हैं जिनका उपयोग उत्पादों को पहचानने और ट्रैक करने के लिए सार्वभौमिक रूप से किया जाता है.बारकोड आपूर्ति श्रृंखला में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं,जिससे खुदरा विक्रेताओं,निर्माताओं और परिवहन प्रदाताओं को आपूर्ति श्रृंखला के माध्यम से उत्पादों को आसानी से पहचानने और ट्रैक करने में सक्षम बनाता है.


एक साधारण बारकोड (प्रतीकात्मक) 

 

आइए,अब इसे आसान भाषा में समझते हैं.बारकोड दरअसल ऊंचाई में सीधी/खड़ी रेखाओं से बनी वह आकृति (इमेज़) होता है जिसमें सांकेतिक रूप में किसी प्रोडक्ट के बारे में आंकड़े या सूचनाएं दर्ज़/छुपी होती हैं.यानि किसी प्रोडक्ट (उत्पाद) के बारे में आंकड़े या सूचनाएं लिखने का यह एक तरीक़ा है जिसके ज़रिए उस उत्पाद से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है.जैसे-उत्पाद की क़ीमत,उसकी मात्रा,उत्पादक देश और वहां की कंपनी का नाम (जिसने उस वस्तु का उत्पादन किया) आदि.इस जानकारी का फ़िर आपूर्ति श्रृंखला (सप्लाई चेन) में शामिल निर्माता (उत्पादक),खुदरा विक्रेता और परिवहन प्रदाता (ट्रांसपोर्टर) अपनी ज़रूरतों के हिसाब से उपयोग करते हैं.

हम खाद्य पदार्थों,साबुन,तेल,पेन-पेंसिल या अन्य घरेलू चीज़ों पर जो काली-काली लाइनों से बने/छपे चित्र देखते हैं,तक़नीकी भाषा में उन्हें बारकोड कहा जाता है.इसमें समाहित किसी उत्पाद से संबंधित जानकारी के ज़रिए कंपनियों और स्टोर प्रबंधकों को यह पता चल जाता है कि उक्त उत्पाद की कितनी मात्रा/संख्या उनके पास बची है.


बारकोड लगे खाद्य पदार्थों के पैकेट 


पहले बारकोड लिखने के लिए समांतर रेखाओं और उनके बीच के अंतराल (गैप) का उपयोग किया जाता था.इसे हम एकविमिय (1 D यानि वन डाइमेंश्नल) बारकोड भी कह सकते हैं.इसे समझना इंसान के लिए संभव नहीं है इसलिए इसे डिकोड करने (संकेतों को समझने) के लिए एक यंत्र का सहारा लिया जाता है.यह यंत्र दरअसल,एक ऑप्टिकल स्कैनर (प्रकाशकीय पाठक) होता है जिसे बारकोड रीडर कहते हैं.इससे स्कैन करने पर संकेतों में छुपी सारी जानकारी बाहर आती हैं,जो पढने-समझने योग्य होती हैं.


बारकोड रीडर से स्कैन किए जाते विभिन्न उत्पाद 


बारकोड रीडर को प्राइस स्कैनर (क़ीमत बताने वाला) भी कहा जा सकता है क्योंकि इसका उपयोग ख़ासतौर से मॉल,सुपरबाज़ार आदि से चेकआउट करते समय वहां मौज़ूद कर्मचारी ख़रीदी गई चीज़ों के नाम के साथ असल में उनकी क़ीमत को ही इकठ्ठा कर बिल तैयार करते हैं.ये सुविधा आजकल स्मार्टफोन में भी उपलब्ध है क्योंकि तक़नीक में आए बदलाव के कारण बारकोड की संरचना (बनावट),आकृति व आकार भी बदल गए हैं.

उल्लेखनीय है कि किसी वस्तु या पैकिंग,रैपर (लपेटने में इस्तेमाल किया गया काग़ज़ आदि) वगैरह के लिए पूरी दुनिया में एक ख़ास तरह का ही बारकोड आवंटित किया जाता है.यह आवंटन कार्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनी GS1 (ग्लोबल स्टैंडर्ड्स 1 ) नामक एक ग़ैर-लाभकारी संस्था द्वारा किया जाता है.

भारत ( GS1 India ) समेत 100 से भी ज़्यादा देशों में इसकी इकाइयां हैं.

Barcode का इतिहास

आधुनिक बारकोड तक़नीक फ़ूड चेन फ़ूड फ़ेयर नामक संस्थान के अनुरोध पर 1940-50 के दशक में नॉर्मन जोसेफ़ वुडलैंड और बर्नार्ड सिल्वर नामक दो अमरीकियों ने विकसित की थी.इसका इस्तेमाल किराना सामान के चेकआउट के दौरान उत्पाद की जानकारी स्वचालित रूप से पढ़ने के लिए किया जाना था.


चित्र में पहला बारकोड और नॉर्मन जोसेफ़ वुडलैंड (दाएं)
फ़िर 1959 के दशक के दौरान रेलमार्ग कारों को चिन्हित करने के लिए डेविड कोलिन्स ने एक प्रणाली विकसित की जिसमें पहली बार बारकोड का इस्तेमाल किया गया.10 साल बाद 1969 में इसके विकास की दिशा में कार्य हुए और साल 1974 में ओहियो स्थित ट्रॉय मार्श सुपरमार्केट में पहला यूपीसी स्कैनर लगाया गया.यहां रीग्ले कंपनी की चुइंगम के 10 पैकेट सफलतापूर्वक स्कैन किए गए.तभी से बारकोड का शुरू हुआ सुहाना सफ़र आज भी ज़ारी है.


ट्रॉय मार्श सुपरमार्केट जहां पहला प्रोडक्ट स्कैन हुआ 


Barcode का वर्गीकरण

बारकोड को हम मुख्यतः दो भागों में विभाजित कर सकते हैं.

1. रेखाकार बारकोड (लीनियर बारकोड) जिसे 1D यानि वन डाइमेंश्नल बारकोड भी कहते हैं.

2. द्विविमीय बारकोड (2D यानि टू डाइमेंश्नल बारकोड) जिसे क्यूआर कोड यानि क्वीक रिस्पांस कोड भी कहते हैं.

दोनों बारकोड एक दूसरे से भिन्न हैं क्योंकि दोनों की बनावट और कार्य अलग-अलग हैं.

1. रेखाकार बारकोड (1D बारकोड): यह सामान्य प्रकृति का बारकोड माना जाता है.इसमें डाटा क्षमता कम होती है इसलिए इससे जानकारी भी सीमित रूप में ही प्राप्त होती है.इसे एडिट(संपादित)नहीं किया जा सकता.इसका इस्तेमाल आम ज़रूरतों की चीज़ों मसलन साबुन,तेल,बिस्कुट,मोबाइल आदि के लिए किया जाता है.

 
1D बारकोड के विभिन्न रूप  
2. द्विविमीय बारकोड (2D बारकोड): यह एकविमीय बारकोड (1D बारकोड) का उन्नत संस्करण है.इसमें डाटा क्षमता तुलनात्मक रूप में ज़्यादा होती है.यह तुरंत जानकारी उपलब्ध कराता है इसलिए क्वीक रिस्पांस कोड कहा जाता है.

2D बारकोड एडिट और रीडाइरेक्ट किया जा सकता है.यदि यह क्षतिग्रस्त (30 पर्सेंट तक) भी हो जाए तब भी इस्तेमाल के लायक रहता है.इसका इस्तेमाल हम पेटीएम एप में देखते हैं.


2D बारकोड के विभिन्न रूप  

         

हम यहां ख़ासतौर से 1 D बारकोड यानि एकविमीय बारकोड (वन डाइमेंश्नल बारकोड) की चर्चा कर रहे हैं.

Barcode की संरचना 

1d बारकोड में सिर्फ़ अल्फ़ान्यूमेरिक डाटा होता है.कोड में हर लैटर (वर्ण) प्रोडक्ट के बारे में कुछ अलग दर्शाता है और एक डाटाबेस हरेक लैटर का मत्लब बताता है.

आमतौर पर 1D बारकोड बाएं से दाएं पढ़ा जाता है.ख़ाली जगह और बार की चौड़ाई बारकोड के एक ख़ास लैटर से संबंधित होते हैं.क्वाइट ज़ोन या मार्ज़िन बारकोड की बाईं और दाईं ओर की सफ़ेद जगह है जो रीडर को बारकोड का पता लगाने में मदद करता है.बारकोड में मार्ज़िन बारकोड की चौड़ाई से कम से कम सात से दस गुना कम होना चाहिए.
 
बारकोड में दूसरे सभी बार संकरे (संकीर्ण) बार की चौड़ाई के अनुपात पर आधारित होते हैं.कुछ बारकोड में गार्ड पैटर्न भी होता है.यह पैटर्न बारकोड की शुरुआत और आख़िर में स्थित होता है जो रीडर यानि मशीन को बताता है कि बारकोड कहां से शुरू हुआ है और कहां पहुंचकर ख़त्म हो रहा है.
इसे हम निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा बेहतर समझ सकते हैं.

1. बाइनरी कोड के हिसाब से ब्लॉक का बंटवारा 

हम जानते हैं कि कंप्यूटर सिर्फ़ बाइनरी कोड यानि 0 और 1 की भाषा ही समझता है इसलिए बारकोड को 95 ब्लॉक (खंडों) में सिर्फ़ 0 और 1 के रूप में बांटा जाता है.इस 95 ब्लॉक को भी 15 अलग-अलग सेक्शन (विभाग) में बांटा जाता है जिनमें 12 ब्लॉक में बारकोड लिखा जाता है जबकि 3 ब्लॉक को गार्ड्स के रूप में बांटा जाता है.


ब्लॉक में विभाजित बारकोड (प्रतीकात्मक)



2. अंकों के प्रयोग की प्रक्रिया 

बारकोड को चूंकि बाएं से दाएं पढ़ा जाता है इसलिए इसकी संरचना के दौरान अंकों के इस्तेमाल में भी एक अलग प्रक्रिया अपनाई जाती है.बाएं और दाएं अंक अलग-अलग तरीक़े से रखे जाते हैं.बाईं ओर ‘1’ का अंक विषम (3 या 5 बार) लिखा जाता है जबकि दाईं ओर ‘1’ का अंक सम (2 या 4 बार) लिखा जाता है.


बारकोड की संरचना में अंकों के प्रयोग की प्रक्रिया (प्रतीकात्मक)


3. संख्याओं (अंको) की स्थिति 

बारकोड में बाईं ओर की संख्याएं 0 से शुरू होकर 1 पर ख़त्म होती हैं जबकि दाईं ओर की संख्याएं 1 से शुरू होकर 0 पर ख़त्म होती हैं.


बारकोड की संरचना में अंकों की स्थिति 


बारकोड के काम करने का तरीक़ा

बारकोड कैसे काम करता है,यह जानने के लिए निम्नलिखित बिन्दुओं पर ध्यान देना ज़रूरी है.

1. सूचना को बाइनरी कोड में बदलना       

बारकोड रीडर ब्लैक एंड व्हाइट बार के पैटर्न को पढता है जो सूचना को बाइनरी (0 या 1) कोड में बदल देता है.कंप्यूटर सूचनाओं को सिर्फ़ बाइनरी रूप में रीड करता है और वह मॉनिटर की स्क्रीन पर दिखाई देता है.


बाइनरी कोड 


2. सेंटर गार्ड की दाईं ओर के अंक महत्वपूर्ण  

सेंटर गार्ड की दाईं ओर लिखे अंक बताते हैं कि प्रोडक्ट किस तरह का है.जैसे-प्रोडक्ट प्लास्टिक या फ़िर प्राकृतिक पदार्थों से निर्मित है,मांसाहारी है या शाकाहारी आदि.उदहारण के लिए नीचे प्रदर्शित चित्र में 0 के स्थान पर अगर अंक 2 लिखा होता तो प्रोडक्ट के मांसाहारी या शाकाहारी होने का पता चलता.


सेंटर गार्ड की दाईं ओर के विभिन्न अंक (प्रतीकात्मक)  

इसीप्रकार अंक ‘3’ का संबंध फार्मेसी से है.यानि सेंटर गार्ड की दाईं ओर अगर ‘3’ अंकित हो तो समझा जाएगा कि ये प्रोडक्ट कोई दवा है.


बारकोड में दवा की पहचान  


3. अलग-अलग देशों की अलग-अलग बारकोड संख्या

अलग-अलग देशों को अलग-अलग बारकोड संख्या मिली होती है.ऐसे में,कोई प्रोडक्ट किस देश में निर्मित/बना हुआ है उपभोक्ता उस प्रोडक्ट की बारकोड संख्या देखकर/पढ़कर जान सकते हैं.
नीचे चित्र में लेफ़्ट गार्ड के पास (सबसे बाईं ओर) दी गई संख्या भारत के बारकोड-890 को प्रदर्शित करती है.


भारत का बारकोड (प्रतीकात्मक)


4. चेक अंक

बारकोड की दाईं ओर सबसे आख़िर में जो एक अंक 7 दर्ज़ है वह चेक अंक (जांचने वाला अंक) कहलाता है.इससे ये पता चलता है कि कंप्यूटर द्वारा बारकोड की सूचना सही तरीक़े से रीड हुई (पढ़ी गई) या नहीं.


चेक अंक को दर्शाता बारकोड 

       


विभिन्न देशों के बारकोड क्या हैं जानिए

इस डिज़िटल दौर और भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में जो देश अपने उत्पाद सीमाओं के पार पहुंचाना चाहते हैं उनके लिए ये ज़रूरी है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक मान्य संस्था उस उत्पाद को प्रमाणित करे,अनुमति दे.GS1 (ग्लोबल स्टैंडर्ड्स 1) यही करता है.उसके द्वारा दुनिया के विभिन्न देशों को विभिन्न प्रकार के बारकोड आवंटित किए गए हैं.


अलग-अलग देशों के बारकोड (GS1 द्वारा आवंटित बारकोड संख्या)

     

  
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