आज सनातन हिन्दू धर्म बड़े बुरे दौर से गुज़र रहा है.न सिर्फ़ इसका दायरा सिमट रहा है बल्कि इसके मतावलंबियों की संख्या भी बड़ी तेज़ी से घटती जा रही है.हालात ऐसे हो गए हैं कि लगता है अगली सदी में ये दुनिया हिन्दू-विहीन हो जाएगी.मिट जाएंगीं हिन्दू जातियां.नहीं बचेगा विश्व-गुरू और धर्मों की जननी कहलाने वाला आदि धर्म-सनातन धर्म.
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ख़तरे में हिन्दू जातियों के भविष्य का सांकेतिक चित्र |
आंकड़े बताते हैं कि पूरी दुनिया में अब कुल क़रीब एक अरब ही हिन्दू बचे हैं जबकि अकेले भारत की कुल आबादी क़रीब 1.40 अरब के क़रीब पहुँच गई है.सात अरब से ज़्यादा आबादी वाली दुनिया में हिन्दुओं का ये हिस्सा महज़ 13.95% है जबकि मुसलमान क़रीब 1.6 अरब आबादी के साथ 23.2 फ़ीसदी और ईसाई क़रीब 2.2 अरब आबादी के साथ 31.4 फीसदी तक पहुँच चुके हैं.दुनिया की छोड़िये,हिन्दू अपने मूल स्थान भारत के ही 8 राज्यों में अल्पसंख्यक़ हो चुके हैं.आज़ादी के बाद 1947 में हिन्दू जो क़रीब 85% थे वो बढ़ने की बजाय नीचे गिरकर 79% पर पहुँच चुके हैं.पहले कश्मीर से निकाले गए और अब देश के अनेक हिस्सों से मार-मारकर भगाए जा रहे हैं.वज़ह क्या है? क्यों ख़तरे में है हिन्दू जातियों का अस्तित्व,ये एक महत्वपूर्ण सवाल है.इस सम्बन्ध में काफ़ी कुछ सुनने-पढ़ने को मिलता है लेकिन जो मूल कारण हैं उनकी तरफ़ बहुत कम लोगों का ही ध्यान गया है,जिनपर रौशनी डालना ज़रूरी है अन्यथा चर्चा अधूरी मानी जाएगी.विषय पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाएगा.
उल्लेखनीय है कि किसी समस्या के अलग-अलग कारण हो सकते हैं.एक या अनेक.कुछ कारण ऐसे होते हैं जो दूसरों की ग़लतियों की उपज होते हैं अथवा दूसरों के द्वारा पैदा किए जाते हैं जबकि कुछ कारण हम स्वयं सृजित करते है यानि अपनी समस्याओं के ज़िम्मेदार हम ख़ुद होते हैं.उनका दोष हम दूसरों पर नहीं मढ़ सकते.ऐसे में पहले हम यहाँ उन कारणों का ज़िक्र करेंगें जिनके लिए हिन्दू ख़ुद ज़िम्मेदार हैं.
राष्ट्र्विहीन धर्म
बेघर बार लोग ख़ानाबदोश की श्रेणी में आते हैं तथा असुरक्षित होते हैं.ऐसे में दूसरे लोगों का उनकी तरफ़ आना तो दूर अपने भी साथ छोड़ जाते हैं.पूरी दुनिया में ईसाई,मुस्लिम,यहूदी और बौद्धों के देश वज़ूद में हैं लेकिन कभी आधी दुनिया पर राज करने वाली हिन्दू जातियों का दुर्भाग्य देखिये कि आज उनका अपना एक भी देश नहीं है.ना कोई आगे है और ना कोई पीछे.बिल्कुल लावारिस और असुरक्षित.संरक्षण के अभाव में तो कोई छोटी-मोटी संस्थाएं नहीं चलतीं,एक सबसे पुराने और मुख्य प्रतिद्वंदी धर्म जिसे निगलने के लिए बाक़ी सभी धर्म मुंह बाए बैठे हों,उस असहाय का बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
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सनातन हिन्दू धर्म का प्रतीकात्मक फ़ोटो |
ग़ौरतलब है कि धर्म के आधार पर माँ भारती का सीना चीरकर पाकिस्तान तो बना दिया गया लेकिन बाक़ी बचे भूखंड से भी हिन्दुओं को महरूम कर दिया गया.किसने किया ये? तथाकथित महान और पूज्यनीय हिन्दू नेताओं ने.भारत को हिन्दू राष्ट्र नहीं बनने दिया.इतना ही नहीं,पाकिस्तान की मांग करने वालों और अन्य ग़ैर हिन्दुओं को ना सिर्फ़ यहाँ जगह दी बल्कि उन्हें विशेषाधिकार भी दे दिए जबकि हिन्दुओं को सामान्य नागरिक की कैटेगरी में धकेलकर इसे सेक्यूलर देश बना दिया.महापाप किया.इस मौक़े पर एक मशहूर शेर याद आता है-
हमें तो अपनों ने लूटा, ग़ैरों में कहाँ दम था,
हमारी क़िश्ती थी डूबी वहां,जहाँ पानी कम था |
जन्म-दर में कमी
अगर किसी धर्म के लोगों के जन्म-दर में लगातार कमी आती जा रही है यानि बच्चे कम पैदा हो रहे हैं तो ये पक्का है कि उसके पास लड़ने के लिए पर्याप्त फौज़ी नहीं होंगें.नतीज़तन,हारे-थके लोगों का धर्म नहीं बच सकता.हिन्दुओं का भी यही हाल है.उनके जन्म-दर में लगातार गिरावट दर्ज़ की जा रही है.
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भारत में हिन्दू-मुस्लिम आबादी (प्रतिशत में ) |
दरअसल,सनातन हिन्दूओं में मानव के साथ-साथ प्रकृति की भी रक्षा के संकल्प के विधान हैं.हिन्दू ये मानता है कि आबादी ज़्यादा हो जाने पर प्राकृतिक संसाधनों पर बोझ बढ़ता है और अंततः असंतुलन की स्थिति में जीवन संकट में पड़ सकता है.इसीलिए परिवार नियोजन जैसे कार्यक्रम हिन्दुओं में सफल रहे और उनकी आबादी कम होती चली गई.इसे एक अच्छे आचरण व प्रयोग का साइड इफ़ेक्ट कह सकते हैं.
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वेदों में वर्णित आबादी और पर्यावरण संबंधी ज्ञान(प्रतीकात्मक) |
दूसरी तरफ़,शेष भारत पर भी अपना दबदबा क़ायम करने के मक़सद से आज़ादी के बाद से ही यहां का मुसलमान ‘आबादी बढ़ाओ अभियान’ में लगा हुआ है.उसका आख़िरी मक़सद है इसके टुकड़े-टुकड़े कर अलग-अलग इस्लामी देश बनाना.दरअसल,ये ज़िहाद है-परंपरागत और इस्लाम के विस्तार के लिए किया जाने वाला एक सुनियोजित ज़िहाद,जिसे कुछ कट्टरपंथी गज़वा-ए-हिन्द भी बताते हैं-
” गज़वा-ए-हिन्द इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अल्लैही वसल्लम) के कुछ व्याख्यान में की गई एक भविष्यवाणी है जो मुसलामानों और काफ़िरों ( हिन्दुओं) के बीच भारत में एक युद्ध की पूर्वकथन करती है जिसके परिणामस्वरूप मुसलामानों की जीत होगी और एकेश्वरवाद तथा शरिया क़ानून लागू होगा.”
मगर दुर्भाग्य ये है कि अपने निजी स्वार्थ में पड़कर एक ओर जहां,यहां के बुद्धिजीवि काल्पनिक ‘गंगा-जमुनी तहज़ीब’ और ‘हिन्दू-मुस्लिम भाईचारा’ के बहाने इसे अबतक ढंकते रहे हैं वहीं मीडिया व समाजसेवी नामक सत्ता के दलाल और सत्ताप्रेमी राजनीतिक गिद्ध ‘अनेकता में एकता’ के ज़ुमले वाला राग अलापते हुए अप्रत्यक्ष रूप से उपरोक्त साज़िश में शामिल होकर हिन्दुओं के बीच फूट डालते हुए राष्ट्रवाद को कमज़ोर करने और देश को भविष्य की आग में झोंकने में लगे हुए हैं.इन्हीं परिस्थितियों का लाभ उठाकर आबादी बढ़ाने की होड़ में यहां मुसलमान 9.8 % (1951 में) से आज क़रीब 15-16 % के आंकड़े को पार कर चुका है.घुसपैठियों को भी इसमें शामिल कर जनगणना सही तरीक़े से कराई जाए तो यह आंकड़ा 20-22% तक पहुंचेगा.अमरीकी थिंक टैंक ‘प्यू रिसर्च सेंटर’ के नए आंकड़ों के मुताबिक, 2060 तक भारत दुनिया का सबसे मुस्लिम आबादी वाला देश बन जाएगा.
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प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा ज़ारी मुस्लिम आबादी के आंकड़े |
दूसरी तरफ़ 79% बचे-खुचे हिन्दू भी बंटे हुए हैं.
यहाँ जन्म-दर को लेकर मेरा आशय ये नहीं है कि आबादी अंधाधुंध बढ़ाकर देश को जनसंख्या विस्फोट की ओर धकेल दिया जाए बल्कि यहाँ मेरा ये कहना है कि परिवार नियोजन सभी पर समान रूप से लागू हो और तत्काल जनसंख्या नियंत्रण क़ानून लाकर देश का भविष्य सुरक्षित किया जाए.
अहिंसा व सहिष्णुता
हिन्दू अहिंसक व सहिष्णु होता है.इसी रूप में दुनिया में इसकी पहचान है.लेकिन ये एक कड़वा सच है कि इन्हीं गुणों के दुष्प्रभाव के कारण पहले तो अखंड भारत खंड-खंड हुआ.उनपर क़ब्ज़े होते गए.फ़िर शेष बचा भारत भी ग़ुलामी की ज़ंजीरों में जकड़ा गया.आज़ादी के बाद सिर पर छतरी के रूप में एकमात्र कवच रूपी स्वतंत्र भारत भी केवल हिन्दुओं का ना होकर सार्वजनिक बन गया जैसे कमज़ोर की बीवी सबकी भाभी बन जाती है.शांत और सुशील भाई का हक़ अक्सर दूसरे भाई मार लेते हैं.अबलाओं की इज्ज़त और विधवाओं की संपत्ति हड़पी जाती है.यही कारण है कि हिन्दू अब हिन्दू राष्ट्र की मांग कर रहे हैं.
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हिन्दू राष्ट्र की उठ रही मांग का प्रतीकात्मक चित्र |
दरअसल,अहिंसा व सहिष्णुता एक सीमा के बाद कायरता कहलाती है,ये बात शायद हिन्दू नहीं समझते.रामचरित मानस इसका सबसे अच्छा उदाहरण है.उसमें कहा गया है कि तीन दिनों की विनती के बावज़ूद जब समुद्र वानर सेना को लंका के लिए मार्ग देने को तैयार नहीं हुआ तो श्रीराम ने धनुष-बाण उठा प्रत्यंचा चढ़ा ली.उसके बाद क्या हुआ ये तो सभी जानते हैं.रामधारी सिंह दिनकर ने इसे अपनी कविता ‘शक्ति और क्षमा’ में कहा है-
क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषहीन,विनीत,सरल हो |
दूसरी तरफ़ अपनी सहिष्णुता के कारण लुटे-पिटे भारत के हिन्दुओं को ही कांग्रेसी-वामपंथी असहिष्णु बताने में लगे हैं.जबकि सच ये है कि करुणा और दया के सागर कहे जाने वाले ईसा मसीह के अनुयाईयों ने छल-बल से सारी दुनिया को ग़ुलाम बनाकर लूटा और अत्याचार किए.जुल्मोसितम और तिड़कम से ही ईसाईयत आज सबसे बड़ा धर्म बन बैठा है और ईसाई सबसे ज़्यादा देशों में क़ाबिज़ हैं.
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प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा ज़ारी ईसाईयत के आंकड़े |
इस्लाम ने तो हद पार कर दी.मुहम्मद साहब की अगुआई में ही अनगिनत मंदिर तोड़े गए और धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ.इसी क्रम में अनेकानेक आक्रमण हुए.क़त्लोगारत और भयंकर लूटपाट के साथ औरतों और बच्चों को ग़ुलाम बनाकर उन्हें मंडियों में बेचा गया.फ़साद और ज़िहाद के ज़रिए दारूल हरब को दारूल इस्लाम बनाने का वो सिलसिला आज भी ज़ारी है और नतीज़तन 57-58 देशों में मुसलामानों का दबदबा क़ायम है.
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बेतहाशा बढती मुस्लिम आबादी का प्रतीकात्मक फ़ोटो |
पर यहां तो जबतक 100 ग़लतियाँ पूरी नहीं होतीं तबतक हथियार नहीं उठाए जाते.18 बार हमला करने वाले को बार-बार माफ़ किए जाने का दस्तूर पुराना है.चाणक्य के निर्देशों का उल्लंघन कर हाथ आए सिकंदर को बख्श दिया जाता है.चार गांवों की हिस्सेदारी से ही संतुष्ट होने के भाव.इतिहास दुहराया जा रहा है.
मानवता पर ज़ोर
हम सभी जानते हैं कि ईसाईयत,इस्लाम,यहूदी और बौद्ध आदि कोई धर्म नहीं वरन एक संप्रदाय हैं-जीवन पद्धति के तहत एक संगठित समुदाय.वेदों में हिंदूत्व का भी कहीं ज़िक्र नहीं मिलता.दूनिया में धर्म सिर्फ़ एक ही है और वह है सनातन धर्म जिसमें इंसानियत यानि मानव-मात्र की रक्षा में ख़ुद को कुर्बान करने की प्रेरणा मिलती है.इसमें वसुधैव कुटुम्बकम यानि सारे संसार को एक परिवार और उसमें रहने वालों को अपने परिवार का सदस्य मानने की बात पर ज़ोर दिया जाता है.सनातनी जिन्हें हिन्दू जातियों के रूप में जाना जाता है वे शरण में आए शत्रु की भी रक्षा करने तथा बाहर से आए लोगों को अतिथि और उन्हें देवतुल्य मानते आए हैं जो,आज ख़ुद अपने ही देश में शरणार्थी बन गए हैं.
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‘अतिथि देवो भव’ का सांकेतिक चित्र |
हिन्दुओं ने अपने देश में यूनानी,यहूदी,अरबी,तूर्क,ईरानी,क़ुर्द,पुर्तगाली और अंग्रेज़ आदि को स्वीकार किया और उनको रहने के लिए जगह दी.उनमें सह-अस्तित्व की भावना खुले रूप में आज भी क़ायम है.किसी भी स्थान या देश का व्यक्ति हिन्दुओं के बीच बिना किसी डर के रहता आया है लेकिन इसके विपरीत हिन्दू हमेशा भगाए जाते रहे हैं. हिन्दू जिस भी देश में गए वहां की संस्कृति और धर्म में वे घुलमिल गए.डोम,लोहार,गुज्जर,बंजारा,और टांडा जाति से सम्बन्ध रखने वाले आज यज़ीदी,रोमा,सिंती और जिप्सी आदि उसके उदाहरण हैं.
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‘वसुधैव कुटुम्बकम’ का सांकेतिक चित्र |
दूसरी तरफ़,ईसाईयत और इस्लाम तो जैसे पानी में कंकड़ के समान हैं.वे दूसरों पर अपना मत लादते आए हैं.छल से या फ़िर बल से.ईसाईयों ने हिन्दू जातियों में सेंधमारी की,उन्हें कमज़ोर किया और उनपर हावी हो गए.
” मुहम्मद बिन क़ासिम का ज़िहादी ज़ंगी ज़ुनून भला कौन भूल सकता है जिसने,मुहम्मद साहब के परिवार को बचाने वाले हिन्दू राजा दाहिर का सर क़लम किया.इराक़ में हज्जाज़ इब्न युसूफ के हरम में दाहिर की बेटियों के कुचले हुए ज़िस्म,लड़ाई के बाद सिंध में सड़कों पर सड़ती हिन्दुओं की लाशें,अधमरे सैनिकों की दिल चीर देनेवाली चिंघाड़,क़ासिम के जिहादियों के चंगुल में आईं हजारों हिदू औरतें,उनकी बोटी-बोटी नोचे जाने से उठी चीख पुकार,दस-दस जिहादियों के नीचे फंसी उस माँ को जिसके दुधमुंहे बच्चे को अल्लाहू अक़बर के नारे के साथ भाले की नोक पर घुसाकर हवा में उछाल दिया गया था,उस माँ को जो यह भी नहीं जान पा रही थी कि कौन सी तकलीफ़ ज़्यादा बड़ी है-एक साथ दस हैवानों के बीच अपने ज़िस्म को नुचवाना या अपने बच्चे को भाले की नोक पर लटके हुए देखना या उस ज़िगर के टुकड़े को आख़िरी आशीर्वाद भी नहीं दे पाना.
उसके बाद महमूद गज़नवी के ज़ंगी दस्तों का क़हर,गुरू चेले ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती और मुहम्मद गोरी का खेल,बख्तियार खिलज़ी का हमला,अलाउद्दीन खिलज़ी का चितौड़ पर हमला,हिन्दुओं के कटे सरों की मीनार बनाने वाला तैमूर,बाबर,अक़बर और औरंगज़ेब द्वारा किए गए कत्लेआम का इतिहास गवाह है.”
पाकिस्तान का उदाहरण सामने है.बंटवारे के दौर में वहां हिन्दुओं के ज़बरन धर्मांतरण,हत्या और लूट की घटनाएं हुईं.सैकड़ों मंदिर तोड़े गए.हज़ारों महिलाओं का बलात्कार या हत्या के लिए अपहरण हुआ.हज़ारों बच्चों को क़त्ल किया गया.वो सिलसिला आज भी ज़ारी है.हिन्दुओं का वहां धर्म क्या,ज़ान-माल के साथ आबरू भी सुरक्षित नहीं है.दिनदहाड़े उनकी बहू-बेटियां घरों से उठा ली जाती हैं जिनका या तो उनका निक़ाह हो जाता है या फ़िर उन्हें ज़िस्म की मंडी में बिठा दिया जाता है.पाकिस्तान की 22 करोड़ की आबादी में अब 1.6 फीसदी हिन्दू ही बचे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान में इंसानियत का हाल देखिये.वहां कभी हिन्दू और सिख अफ़ग़ान समाज का समृद्व तबक़ा हुआ करता था और उनकी आबादी क़रीब 25 फीसदी से ज़्यादा थी.अब वहां कुल क़रीब 1350 परिवार ही बचे हैं,जो अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर भटक रहे हैं.
जिस बांग्लादेश (पूर्वी बंगाल) की भारत ने मदद की,अपने सैनिकों की शहादत देकर पाकिस्तान के चंगुल से बाहर निकालकर अत्याचारों से मुक्ति दिलाई,उसकी भी कहानी कुछ कम नायाब नहीं है.दरअसल,आज़ादी के बाद यहाँ भी निज़ाम-ए- मुस्तफ़ा और ज़िहाद के भूत सर पर सवार हो गए और इसका नतीज़ा ये हुआ कि यहाँ भी हिन्दुओं का दमन शुरू हो गया.बड़ी संख्या में हिन्दुओं की संपत्तियों को लूटा गया,घरों को जला दिया गया तथा मंदिरों की पवित्रता को भंग कर उसे आग के हवाले कर दिया गया.
आज़ाद बांग्लादेश में,1974 में हिन्दुओं की जनसँख्या जो 13.5 % थी वो 2011 के आंकड़ों के अनुसार, महज़ 8.4% (वास्तव में 7%) रह गई.न्यूयॉर्क के स्टेट यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर साची दस्तिदार के बहुआयामी शोध के अनुसार-
” बांग्लादेश के लगभग 5 करोड़ हिन्दू लापता हैं – दस्तिदार,2008
ये समझ लीजिये कि नाज़ी नरसंहार,रवांडा,बोस्निया,दारफुर आदि नरसंहारों को जोड़ दिया जाए तो भी वे बांग्लादेश में हिन्दुओं के सफ़ाए के सामने बहुत छोटे हैं.20 जून,2016 को बांग्लादेश के राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निवर्तमान अध्यक्ष प्रोफेसर मिज़ानुर रहमान ने कहा था-
” बांग्लादेश में पांथिक अल्पसंख्यकों के साथ जिस तरह का व्यवहार हो रहा है,मैं नहीं मानता कि उसपर सरकार की प्रतिक्रिया पर्याप्त है.अगर यह (इसी तरह) चलता रहा,तो 15 साल के भीतर बांग्लादेश में एक भी हिन्दू नहीं बचेगा.”
” बांग्लादेश में,कट्टरपंथियों द्वारा एक अभियान के तहत हिन्दुओं का सफाया किया जा रहा है.हिन्दुओं की भूमि पर ज़बरन क़ब्ज़ा कर लिया गया है और हिन्दू घरों और व्यवसायों को लूट लिया गया है.”
लेवी वहां के शासन-प्रशासन को लेकर आगे लिखते हैं-
” यहाँ हिन्दुओं को सरेआम पीटा जाता है और पुलिस-प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है.उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी जाती हैं.हिन्दू लड़कियां ही नहीं विवाहित महिलाओं का भी अपहरण कर बलात्कार किया जाता है.ऐसी घटनाओं को अंज़ाम देने में मुस्लिम महिलाएं भी कट्टरपंथियों को व्यवस्था एवं सहयोग प्रदान करती हैं.”
ग़ौरतलब है कि बांग्लादेश से हिन्दुओं को पलायन के लिए मज़बूर करने के मक़सद से वहां बाज़ाप्ता वीपीए (वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट) नामक एक क़ानून लागू है.इसके तहत सरकार को यह अधिकार है कि वह जब चाहे अल्पसंख्यकों की ज़मीन,ज़ब्त कर सकती है,उसे दूसरों( बहुसंख्यक-मुस्लिमों में) को वितरित कर सकती है.दरअसल,इस क़ानून के परिणामस्वरूप हिन्दू अप्रत्यक्ष रूप से अब बांग्लादेश का स्थायी निवासी नहीं रह गया है.पहले प्रताड़ित कर उसे वहां से भगा दिया जाता है.बाद में,उसे गैरहाज़िर दिखाकर और अनिवासी घोषित कर उसकी ज़मीनें क़ब्ज़ा ली जाती हैं.कट्टरपंथियों के लिए ये क़ानून ज़िहाद है तो शासन-प्रशासन के लिए उद्योग.
” एक बार सहपाठी दो बच्चे ख़ालिद और सुरंजन के बीच झगड़ा हो गया.ख़ालिद ने सुरंजन को गालियाँ दी,’कुत्ते का बच्चा,सूअर का बच्चा,हरामज़ादा’ आदि.बदले में सुरंजन ने भी उसे गालियाँ दी.ख़ालिद ने कहा, ‘कुत्ते का बच्चा!’ सुरंजन ने कहा,तुम कुत्ते का बच्चा!’ ख़ालिद ने कहा,हिन्दू!’ सुरंजन ने कहा,तुम हिन्दू!’ उसने सोचा,’कुत्ते का बच्चा’, ‘सूअर का बच्चा’ की तरह ‘हिन्दू ‘ भी एक गाली ही है.”
धार्मिक दृष्टि से उदार माने जानेवाले और कभी हिन्दू राष्ट्र रहे इंडोनेशिया के हिन्दुओं पर भी ख़तरा मंडरा रहा है.वे स्थानीय चरमपंथियों के निशाने पर हैं,जिनके सिर पर आईएसआईएस का हाथ है और वे 20 करोड़ से भी अधिक जनसंख्या वाले अपने(क़ब्जाए गए) देश में 1.69% शेष बचे हिन्दुओं को भी नहीं पचा पा रहे हैं.
उल्लेखनीय है कि अन्य देशों की तरह इंडोनेशिया में भी हिन्दुओं की आबादी बढ़ने की बजाय घटती जा रही है.साल 2000 में हिन्दू जो वहां की कुल आबादी के 1.79% थे, 2010 में घटकर वे 1.69% रह गए.
नेपाल में 1952 में 88.87 % हिन्दू थे लेकिन वर्ष 2011 के आंकड़ों के अनुसार ये घटकर 81.3 % रह गए यानि 59 सालों में हिन्दुओं की आबादी यहां 7.57 % घट गई.
एकता का अभाव
सारी दुनिया को एक परिवार बताने-मानने वाले हिन्दू दरअसल कभी एकजुट नहीं रहे.वे हिन्दू इलाक़ों में ही रहना पसंद करते हैं,एक साथ तमाम रीति-रिवाज़ों का पालन करते हैं,एकसाथ पर्व-त्यौहार भी मनाते हैं लेकिन धर्म की रक्षा के मामलों में वे बिखरे हुए दिखाई देते हैं.यही कारण है कि कई बार ऐसा देखा जाता है कि किसी आन्दोलन का प्रभाव कुछ इलाक़ों में ज़्यादा होता तो कुछ में कम और कहीं तो उसका असर ही नज़र नहीं आता.शायद इसीलिए कहा जाता है कि हिन्दुओं को एकजुट करना मेंढकों को तौलने के समान है.
कुछ विचारकों की राय में हिन्दू ही हिन्दू का दुश्मन रहा है.वे कहते हैं कि हिन्दू कभी बाहरी ताक़तों से नहीं हारा,उसके अपनों(हिन्दुओं) ने उसे हराया है.पृथ्वीराज के वक़्त जयचंद का षडयंत्र हो या लक्ष्मीबाई को हराने में सिंधिया की भूमिका इस बात के प्रमाण हैं.इतिहास भरा पड़ा है गद्दारों के काले कारनामों से,हिन्दू कुलनाशकों, कुलघातकों से.इतिहास क्या वर्तमान में में ही मथुरा और काशी नज़र आ जाएंगें.वहां क़ब्जाए गए श्रीकृष्ण और महादेव के पुरातन घरों को आज़ाद कराने की सिर्फ़ बात तो छेड़िए कई हिन्दू खिलाफ़ में खड़े हो जाएंगें और मुंह बंद करा देंगें,कारसेवकों पर गोलियां बरसा देंगें.ऐसे में,दूसरों की ज़रूरत क्या है,अपने ही काफ़ी हैं इतिहास मिटाने के लिए,भूगोल पहले ही मिटा चुके हैं.मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ने यानि जीतने सिर उतने मत.ठीक ही कहा गया है-
बर्बाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी है,
हर शाख़ पे उल्लू बैठे हैं अंजामे गुलिस्तां क्या होगा |
ये कितना मज़ाकिया लगता है जब जय श्री राम का ज़वाब जय श्री कृष्ण मिलता है.शिवभक्त अलग धूनी ऐसे रमाये बैठे हैं जैसे राम और कृष्ण से उनका वास्ता ही नहीं है.कर्नाटक में तो लिंगायतों ने अलग धर्म के लालच में अपना समुदाय ही चुनावों में बेच डाला मानो समुदाय नहीं कोई दुकान हो.
प्रभु राम ने माता शबरी के जूठे बेर खाए,ये पंडितजी बताते हैं लेकिन स्वयं वे रेवती चाची के हाथों का गंगाजल भी नहीं छूते क्योंकि वो चमारिन हैं.उधर रेवती चाची के बच्चे भी कुछ कम नहीं हैं.उन्हें दीवाने अब्दुल्ला और रॉबर्ट अंकल के बच्चों का साथ ही प्यारा लगता है.घर की मुर्गी दाल बराबर और दूर का ढ़ोल सुहावन.कहते हैं ये आधुनिक काल है,सुधार आया है.सुधार आया है तो कहाँ है?
कोई ईश्वर को साकार बनाए बैठा है तो कोई निराकार की माला जप रहा है.पर दोनों मानते हैं कि ईश्वर है और ये बात श्री सनातन दादाजी ने बतायी थी.तो फ़िर उन्हें क्यों भूल गए? अपने पुरखों को कोई भूलता है क्या? यदि नहीं तो काहे का सिक्ख,जैन और बौद्ध.सभी एक ही वृक्ष की तो शाखाएं हैं.देखने में अलग-अलग हैं पर तना तो एक ही है जिसकी जड़ें सदा सबका पालन-पोषण करती आयी हैं.रक्षा भी वही करती हैं.अगर अब भी विमुख रहे,वृक्ष कमज़ोर होता रहा तो कटना तय है.वज़ूद मिट जाएगा.अकेले कोई बच जाएगा,इस वहम में ना रहे.
इसके अलावा कुछ बाहरी कारण भी हैं जिनके चलते हिन्दू जातियां संकट में हैं-
ईसाईयत और धर्म परिवर्तन
हिन्दुओं को विनाश के कगार पर धकेलने में ईसाईयत और उसके द्वारा किए जाने वाले धर्म परिवर्तन की बड़ी भूमिका है.ये समाज में सेवा के नाम पर घुसते हैं और उसे दीमक की तरह चाटकर खोखला कर देते हैं.फ़िर छिन्न-भिन्न हो चुके लोगों को भ्रमित कर या लालच देकर उनका धर्म परिवर्तन कर देते हैं.’अमेरिकन वेद'(
American Veda by author Philip Goldberg ) के लेखक फिलिप गोल्डबर्ग ने ईसाई मिशनरियों के घोर आपतिजनक और अक्षम्य क्रियाकलाप का वर्णन किया है.गोल्डबर्ग ने लिखा है-
“मिशनरी ग़रीब व अशिक्षितों का धर्म परिवर्तन करने के लिए उनके दिमाग़ में ज़हर भरते हैं.वे लोगों को समझाते हैं कि हिन्दू देवी-देवताओं की पूजा करने के कारण दुर्भाग्य की प्राप्ति होती है क्योंकि उनकी जो मूर्तियाँ हैं वो शैतान का रूप हैं.”
उल्लेखनीय है कि विकसित देशों में जहाँ पर शिक्षा है,रोज़गार है,खुशहाली है वहां पर तो ईसाईयों का ग्राफ़ गिरता जा रहा है लेकिन जहाँ पर अशिक्षा,बेरोज़गारी और कंगाली है वहां इनके आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं.इसलिए मिशनरियां,जिनकी दुकानदारी ईसाईयत पर चलती है वो ईसा मसीह नामक अपने प्रोडक्ट व ब्रांड को बढ़ावा देने के लिए ग़रीब और अविकसित देशों को टारगेट करते हैं.भारत उन्हीं में से एक है.
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धर्म परिवर्तन में लगी ईसाई मिशनरियां |
कांग्रेस सरकारों द्वारा पोषित ईसाईयत ने भारत में अपनी गहरी जड़ें जमा ली है.यहाँ उनकी आबादी क़रीब 3 फ़ीसदी तक पहुँच चुकी है.ईसाई मिशनरियां वैसे तो सारे भारत में फैल चुकी हैं लेकिन बंगाल,केरल,उड़ीसा,पूर्वोत्तर के राज्य,मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़,तमिलनाडु,बिहार और झारखंड आदि राज्यों में मुख्य रूप से सक्रिय हैं.आनेवाले समय में नागालैंड,मेघालय और मिजोरम की तरह ही और राज्यों में भी हिन्दू आबादी का विघटन होगा.
फ़साद और ज़िहाद
ऐसा देखा गया है कि जहां भी मुसलामानों की आबादी बढ़ी है,उन्होंने फ़साद और ज़िहाद के ज़रिए हिन्दुओं को पलायन के लिए मज़बूर किया.जो नहीं भागे वे मारे गए.फ़साद के बारे में कहा जाता है कि यह एकता के लिए क़हर और सौहार्द के लिए ज़हर होता है.क़ुरान में अल्लाह का फ़रमान है-
‘ला यु हिबुल्लाहिल मुफसेदीन’ अर्थात अल्लाह फ़साद करने वालों से मोहब्बत नहीं करता.
इसी क़ुरान में एक और आयत है जिसमें फ़रमाया गया है-
‘व मय्युहिब्बुलाहिल मोहसेनीन’ अर्थात अल्लाह अहसान करने वालों यानि सौहार्द बढाने वालों से मोहब्बत करता है.
दरअसल,काफ़िरों (ग़ैर मुस्लिम) को मुसलमान फ़सादी((दंगाई,अशांति फैलाने वाले) बताते हैं और उनसे नफ़रत करते हैं जिसके,सबसे ज़्यादा शिकार हिन्दू ही हुए हैं.
ज़िहाद के बारे में तो सभी जानते हैं.इस्लाम के विस्तार के लिए ख़ून भी बहाए जाने की परंपरा है.भारत में बड़े सुनियोजित तरीक़े से इसे अंज़ाम दिया जा रहा है.इसके कई रूप हैं.
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ज़िहाद के प्रकार (प्रतीकात्मक) |
इनमें कट्टर ज़िहाद और वैचारिक ज़िहाद मुख्य हैं.कट्टर ज़िहाद के अंतर्गत जनसंख्या ज़िहाद,लव ज़िहाद,ज़मीन ज़िहाद,शिक्षा ज़िहाद,पीड़ित ज़िहाद और सीधा ज़िहाद आते हैं जबकि वैचारिक ज़िहाद में आर्थिक ज़िहाद,ऐतिहासिक ज़िहाद,मीडिया ज़िहाद,फ़िल्म और संगीत ज़िहाद और धर्मनिरपेक्षता का ज़िहाद आदि शामिल हैं,जिन्हें बारीकी से अध्ययन करें तो देश के ख़िलाफ़ एक बड़ी साज़िश का पता चलता है.
धर्मनिरपेक्षता
भारत जैसे सनातन हिन्दू बहुल देश जो सहिष्णुता,सौहार्द,सह-अस्तित्व और भिन्नता में एकता के लिए विश्वविख्यात हो,जहां दुनियाभर के धर्मों को स्थान,संरक्षण और फलने-फूलने का अवसर मिला हो वहां धर्मनिरपेक्ष संविधान की व्यवस्था सही मायने में एक मज़ाक़ ही नहीं अन्याय भी है.एक महापाप है,जो गांधी-नेहरू और उनकी कांग्रेस ने किया.ऐसा कर उन्होंने दरअसल न सिर्फ़ हिन्दुओं की अस्मिता पर प्रहार किया बल्कि जनमानस को गोडसे बनने की ओर प्रेरित भी किया,जिसका एक सभ्य समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता.
दरअसल,ये एक गहरी साज़िश थी सनातन हिन्दू धर्म को संकुचित करने की,संपीडित(दबाने)करने की ताकि उसका भविष्य चौपट हो.वो सफल हुए और परिणाम भी हमारे सामने है.भेदभाव,संत्रास और घुटन का शिकार सनातन हिन्दू धर्म मिटने की कगार पर पहुँच गया है.
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भारत में सेक्यूलरिज्म पर व्यंग्यात्मक चित्र |
ये कोई रॉकेट साइंस नहीं है समझना कि क्यों इस देश में दिवाली में पटाखे छोड़ने पर तो रोक लग जाती है लेकिन बक़रीद पर ख़ून का सैलाब आ जाता है तो ज़ुबान भी नहीं खुलती.मुहर्रम में ज़ुलूस का निकलना तो परंपरा है लेकिन रामनवमी पर निकले तो सांप्रदायिक हो जाता है.धिक्कार है ऐसी व्यवस्था पर और इसे मानने वालों पर.
कांग्रेस-वामपंथी गठजोड़
वैसे तो ये दोनों वैचारिक रूप से कहीं मेल नहीं रखते.एक पूरब नज़र आता है तो दूसरा पश्चिम.लेकिन हिन्दुओं के विरोध और ईसाईयों के समर्थन के मौक़े ये कभी नहीं गंवाते.मुसलामानों को भड़काकर अपना उल्लू सीधा करने के लिए तो ये एक ही मंच पर जा बैठते हैं.कान इधर से पकड़ो या उधर से,एक ही बात है.एक ही मत्लब है-हिन्दू विरोध, जिसे सभवतः ऐसे हिन्दू भी नहीं नक़ार सकते जिनका झुकाव इन दलों की ओर ज़्यादा है.लेकिन इस सच से हिन्दू दशकों से मुंह चुराता रहा है जिसके परिणाम समय-समय पर देखने को भी मिलते रहे हैं.ये दल हिन्दुओं के लिए दशकों से घातक सिद्ध हुए हैं और अब भी घातक सिद्ध हो रहे हैं.
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धुर विरोधी दलों का अजीब गठबंधन |
कौन कहता है कि हम अकेले लश्करे तय्यबा के निशाने पर हैं,हक़ीक़त ये है कि उससे भी ज़्यादा ख़तरनाक हमारे घर में ही मौज़ूद लश्करे जेएनयू और जैशे एएमयू हमारी क़ब्रें खोदने को तैयार बैठे हैं.किसने पैदा किया इन्हें? कौन पालता-पोसता रहा है इन्हें? ए ओ ह्यूम तथा मार्क्स और लेनिन की नस्लें ही तो हैं इनके जनक और पालनहार जिन्होंने न केवल सनातन हिन्दुओं का असली इतिहास छुपाया,भूगोल बदला बल्कि उनके सांस्कृतिक विरासत को भी छिन्न-भिन्न कर दिया.उन्हें ही बाहरी दिखाकर आक्रमणकारी बता दिया.तुम्ही क़ातिल तुम्ही मुंसिफ़! मगर बेअक्ली और बेशर्मी का आलम तो देखिए कि हिन्दू शुतुरमुर्ग बना आज भी इंतज़ार में है कि कोई आएगा इस घुप्प अँधेरी रात को दिन में बदलने.असुरों का वध करने.नर्क को स्वर्ग बनाने.
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कल्कि अवतार का चित्र |
और चलते चलते अर्ज़ है ये शेर …
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे,
वो धोखे आज तक मैं खा रहा हूं |
और साथ ही …
अपनी वज़ह-ए-बर्बादी अजी सुनिए तो,
हम ज़िन्दगी से यूँ खेले जैसे दूसरे की है |
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