Ads
ईसाइयत

वर्जिनिटी टेस्ट: कहीं और हो तो अनैतिक, चर्च कराए और प्रमाणपत्र बांटे तो जायज़?

Don't miss out!
Subscribe To Newsletter
Receive top education news, lesson ideas, teaching tips and more!
Invalid email address
Give it a try. You can unsubscribe at any time.
महिला अधिकारों और न्याय को लेकर बवाल मचाने वाली फेमिनिस्टों यानि नारीवादियों के मुंह पर ताला लग जाता है जब मामला मिशनरियों और चर्च से जुड़ा हो.और मीडिया की तो बात ही निराली है.भारत ही नहीं विदेशों में भी, टुच्ची बातों के भी बाल की ख़ाल निकालने और हल्ला मचाने वाली पत्रकारिता अमानवीयता और कुकृत्यों को लेकर चर्च की दहलीज़ तक पहुंचते-पहुंचते दम तोड़ देती है.ऐसे में यह प्रश्न अनुत्तरित रह जाता है कि वर्जिनिटी टेस्ट, जो ग़लत और अनैतिक माना जाता है और जिस पर डब्ल्यूएचओ रोक लगाने की बात करता है, वह चर्च में प्रचलन में क्यों है.अगर यह नाजायज़ है, तो चर्च में जायज़ कैसे है?


कौमार्य परीक्षण, नाजरेथ बैप्टिस्ट चर्च, वर्जिनिटी सर्टिफिकेट
नाजरेथ बैप्टिस्ट चर्च और कौमार्य के प्रमाणपत्र के साथ महिलाएं 
हालांकि वर्जिनिटी को लेकर एक जुनून है ईसाई रिलिजन में और आजकल कई प्रोडक्ट भी ऐसे आ गए है बाज़ार में, जो इसे वापस दिलाने का दावा करते है.मगर, एक महिला कोई प्रोडक्ट नहीं है, जिसे देह की पवित्रता के बाज़ार में उतारा जाए.आख़िर क्या मतलब रह जाता है उस ‘युनिवर्सल सिस्टरहूड’ का, जो भारत में महिलाओं की आज़ादी और उनके अधिकारों के नाम हिन्दू मंदिरों और धर्मगुरुओं को तो निशाना बनाती है मगर, चर्च के भीतर होने वाले ननों के उत्पीड़न और बलात्कार पर भी चुप्पी साध जाती है!

बड़ा अजीब लगता है या जानकार कि चर्च जैसी रिलीजियस संस्था लड़कियों-महिलाओं की वर्जिनिटी टेस्ट कर रही है.साथ ही, वह इसके प्रमाणपत्र भी बांट रही है, जिसे लड़कियां-महिलाएं गर्व से लोगों को दिखाती और सोशल मीडिया पर शेयर करतीं नज़र आती हैं.

बहरहाल, हम इस जायज़-नाजायज़ की बहस में आगे बढ़ें, इससे पहले यह जान लेना ज़रूरी है कि वर्जिनिटी और उसकी टेस्ट आख़िर होती क्या है और वैश्विक समाज में इसको लेकर अवधारणा क्या है.


क्या होती है वर्जिनिटी और इसकी जांच का तरीक़ा क्या है?

वर्जिनिटी का मतलब होता है कौमार्य.कौमार्य यानि कुंआरापन, जिसे व्यक्ति के जीवन में संभोग से जोड़कर देखा जाता है.माना जाता है कि जिस व्यक्ति (ख़ासतौर से लड़की या महिला) ने पहले कभी सेक्स नहीं किया है, वह वर्जिन है.इसको लेकर दुनियाभर में लोगों के अपने-अपने विचार हैं.सामाजिक-संस्कृतिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो वर्जिनिटी को अविवाहित महिला की निजी पवित्रता के ज़रूरी समझा जाता है.

स्त्री के अस्तित्व को देह के इर्द-गिर्द देखने वाले यौन शुचिता के नाम पर उसकी आबरू की जांच करते-करवाते हैं.वे यह तय करते हैं कि उसके जीवन में आने वाला पुरुष पहला है नहीं.और इस परीक्षा-परीक्षण में असफल महिला यह समझ ली जाती है कि वह ‘खेली खाई’ और सर्वसुलभ है.इसके लिए महिला के योनिद्वार की झिल्ली (हाइमन- Hymen) की जांच इस धारणा के आधार पर की जाती है कि यह केवल संभोग करने से ही फट सकती है, जबकि यह सही नहीं है.सच्चाई यह है कि कई बार खेल-कूद, साईकिल चलाने और घुड़सवारी के कारण भी झिल्ली फट जाती है.

कुछ महिलाओं में तो झिल्ली होती ही नहीं है, जबकि कुछ महिलाओं की झिल्ली इतनी लचीली होती है कि वह सेक्स के बाद भी नहीं फटती.

हाइमन झिल्ली कई बार योनि सेक्स न करके कई अन्य यौन गतिविधियों जैसे ओरल सेक्स और एनल सेक्स (गुदा मैथुन) के कारण भी क्षतिग्रस्त हो जाती है, कौमार्य ख़त्म हो जाता है.

ऐसे में, वर्जिनिटी टेस्ट का औचित्य क्या है, यह समझ से परे है.मगर, हक़ीक़त यह है कि यह टेस्ट दुनिया के कई देशों में होता है.ख़ासतौर से, इंडोनेशिया, ईरान, इराक, तुर्की और कुछ अफ़्रीकी देशों में तो शादी से पहले वर्जिनिटी सर्टिफिकेट मांगी जाती है.इसके लिए लोग डॉक्टर (ख़ासतौर से कॉस्मेटिक सर्जन) से संपर्क करते हैं.डॉक्टर बाक़ायदा टेस्ट करते हैं और फिर सर्टिफिकेट जारी करते हैं.

जहां तक वर्जिनिटी टेस्ट के तरीक़े की बात है, तो यह काफ़ी पुराना है.फ़्रांसिसी मेडिकल विधिवेत्ता एल थोईनॉट द्वारा 1898 के आसपास ईजाद की गई इस प्रक्रिया को ‘दो उंगली परीक्षण’ (Two Finger Test – TFT) के नाम से जाना जाता है, जिसमें अंदर प्रवेश की उंगलियों की संख्या से डॉक्टर अपनी राय देता है कि महिला ‘सेक्स लाइफ’ में सक्रिय है या नहीं.

अब तो खोई हुई वर्जिनिटी दोबारा हासिल करने तरीक़ा भी ढूंढ लिया गया है, जो कि प्राकृतिक रूप से संभव नहीं है.इसके लिए कुछ पेशेवर डॉक्टर वजाइना (स्त्रियों की जननेंद्रिय, उत्पत्तिस्थान) से टिशू लेकर कृत्रिम हाइमन तैयार करने का काम कर रहे हैं.


भारत में वर्जिनिटी और इसकी जांच

यह कहना ग़लत नहीं होगा कि दो-ढाई दशक पहले तक हमारे कुछ राज्यों (अधिकतम दो-तीन राज्यों) में कुछ विशेष जातियों-वर्गों वाले गांवों-क़स्बों में सुहाग की पहली रात के बाद सुबह-सवेरे दूल्हे/लड़के और उसके परिजन दुल्हन के कौमार्य के प्रमाण के रूप में बिछौने की चादर (सफ़ेद चादर) पर खून के धब्बे ढूंढते पाए जाते थे.उस वक़्त यह धारणा थी कि स्त्री के योनिद्वार पर पाई जाने वाली झिल्ली उसके कुंआरेपन का सबूत है.मगर, जब इस बात का प्रचार-प्रसार हुआ कि कई और वज़हों से भी यह झिल्ली फट जाती है, तो धीरे-धीरे लोगों की इस सोच में बदलाव आया.अब, अगर मुट्ठीभर लोगों को छोड़ दिया जाए, तो शायद ही कोई ऐसा हो, जो कुंआरेपन की इस निशानी में यक़ीन रखता हो, और उसे खोजता हो.

दरअसल, यहां आज भी अधिकांश पुरुषों-महिलाओं को पता ही नहीं होता कि हाइमन झिल्ली होती क्या है, उसकी जांच और सर्जरी की भी व्यवस्था है मगर, भारत में चर्च और कम्युनिस्टों की मिली-जुली टोली यह साबित करने में लगी रहती है कि यहां कौमार्य परीक्षण का बड़े पैमाने पर चलन है.यौन शुचिता के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है और वे नारकीय जीवन जने को मज़बूर हैं.और इस सबके लिए भारतीय समाज और सरकार ही नहीं, भारत का संविधान भी गुनाहगार है.


कौमार्य परीक्षण, नाजरेथ बैप्टिस्ट चर्च, वर्जिनिटी सर्टिफिकेट
वर्जिनिटी टेस्ट का विरोध करती नन 
इसके लिए बाक़ायदा सेमिनार-वेबिनार होते हैं और धरना-प्रदर्शन कर बिकाऊ और दोहरे चरित्र वाली मीडिया के ज़रिए ख़ासतौर से हिन्दू समाज को कठघरे में खड़ा किया जाता है.मनुस्मृति और रामायण-महाभारत के श्लोकों के भावार्थ निकाले-बताये जाते हैं और इन्हें समस्या की जड़ बताया जाता है.और यह सब वे लोग करते हैं, जिनके लिए संस्कृत तो जैसे ‘काला अक्षर भैंस बराबर’ है.


कौमार्य परीक्षण, नाजरेथ बैप्टिस्ट चर्च, वर्जिनिटी सर्टिफिकेट
कम्युनिस्ट पार्टी के महिला संगठन एनएफआईडब्ल्यू के बैनर तले धरना-प्रदर्शन 


हालांकि भारत में भी ‘दो उंगली परीक्षण’ (टीएफटी) होता है, जिसमें रेप पीडिता की वजाइना के लचीलेपन की जांच की जाती है, जबकि यहां ऐसा कोई कानून नहीं है, जो डॉक्टरों को ऐसा करने के लिए कहता हो.

2002 में भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act, 1872) में संशोधन कर रेप के मामले में सेक्स के पिछले अनुभवों को ज़ाहिर करने पर रोक लगा दी गई थी.

सुप्रीम ने 2003 में टीएफटी को दुराग्रही और ग़लत कहा था.

मगर, बात जब दक्षिण अफ्रीका और वहां के चर्च की आती है, तो ये चुप्पी की इतनी मोटी चादर ओढ़ लेते हैं कि जिसमें अच्छे-से-अच्छे मौन व्रतधारी का भी दम घुट जाए.ये बता नहीं पाते कि यौन शुचिता और पवित्रता के नाम पर वहां ‘ईसा मसीह के घर’ यानि चर्च में महिलाओं के साथ कितना घिनौना और अधार्मिक कार्य बहुत लंबे समय से करते आ रहे हैं.


यौन शुचिता और पवित्रता के नाम पर चर्च का खेला

वर्जिनिटी टेस्ट को एमनेस्टी इंटरनेशल ने अपमानजनक और मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है.विश्व स्वाश्य संगठन इस प्रथा को अनैतिक और मानवाधिकारों के खिलाफ़ मानता है और उसके मुताबिक़, वर्जिनिटी टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.यह ग़लत है.

ज़्यादातर देशों ने इसे पुरातन, अवैज्ञानिक, निजता और गरिमा पर हमला बताकर ख़त्म कर दिया है.मगर, दक्षिण अफ्रीका में चर्च इस कुप्रथा को अब भी ढो रहा है.

इसका नाम है नाजरेथ बैप्टिस्ट चर्च, जो दक्षिण अफ्रीका के उत्तरी डरबन के एबुहलेनी में स्थित है.1910 में स्थापित यह चर्च अफ्रीका का दूसरा सबसे बड़ा चर्च है.इसमें अविवाहित महिला सदस्यों का कौमार्य परीक्षण होता है और इसमें सफल होने वाली प्रत्येक महिला को कौमार्य का प्रमाणपत्र दिया जाता है.

ऐसा प्रतिवर्ष साल के मध्य यानि जुलाई-अगस्त महीने में होता है.दरअसल, यहां एक सालाना जलसा होता है, जिसमें 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र की चर्च की महिला सदस्य एकत्र होती हैं.

इस अवसर पर चर्च की तरफ़ से बुलाए गए डॉक्टर लड़कियों-महिलाओं के कौमार्य की बाक़ायदा जांच करते हैं और बताते हैं कि कौन-सी महिला वर्जिन है और कौन-सी नहीं है.

जो महिला जांच में खरी उतरती है, उसके माथे पर सफ़ेद टीका लगाकर सम्मानित किया जाता है.साथ ही, से प्रमाणपत्र भी भेंट किया जाता है, जिस पर चर्च के प्रमुख (पास्टर) और कौमार्य परीक्षण करने वाले डॉक्टर के दस्तख़त होते है.

ज्ञात हो कि कौमार्य का यह प्रमाणपत्र एक साल के लिए ही मान्य रहता है.आगे ख़ुद को कुंआरी साबित करने के लिए फिर से जलसे में भाग लेकर कौमार्य परीक्षण की प्रक्रिया से गुजरना होता है.

हाल ही में 2022-23 सत्र के लिए कौमार्य-परीक्षा का आयोजन संपन्न हुआ है, जिसमें सफल प्रतियोगियों को कौमार्य प्रमाणपत्र से नवाज़ा गया है.

चर्च कौमार्य परीक्षण क्यों करवाता है, इस सवाल पर उसकी दलीलें भी कम दिलचस्प नहीं हैं.उसका कहना है कि आज के प्रदूषित हो रहे सामाजिक परिवेश को साफ-सुथरा बनाए रखने के लिए ऐसा करना ज़रूरी है.चर्च का उद्देश्य युवाओं में नैतिकता पैदा करना, किशोर गर्भावस्था से बचाना और उन्हें यौन अनैतिकता से संबंधित समस्याओं से दूर रखना है.

देखिए, कितने बदले-बदले हैं विचार! भारत में व्यक्त विचारों से एकदम उलट.इसे दोहरा रवैया कहिए या वैचारिक दोगलापन, दुनियाभर में चर्च और ईसाइयत का यही चेहरा देखने को मिलेगा.ये जैसे दिखते हैं वैसे हैं नहीं, और जो ये नहीं हैं, उसे दिखाने की कोशिश में अक्सर बेनक़ाब हो जाते हैं.     
Multiple ads

सच के लिए सहयोग करें


कई समाचार पत्र-पत्रिकाएं जो पक्षपाती हैं और झूठ फैलाती हैं, साधन-संपन्न हैं. इन्हें देश-विदेश से ढेर सारा धन मिलता है. इनसे संघर्ष में हमारा साथ दें. यथासंभव सहयोग करें

रामाशंकर पांडेय

दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है, जो दिखता तो कुछ और है पर, हक़ीक़त में वह होता कुछ और ही है.इस कारण कहा गया है कि चमकने वाली हर चीज़ सोना नहीं होती है.इसलिए, हमारा यह दायित्व बनता है कि हम लोगों तक सही जानकारी पहुंचाएं.वह चाहे समाज, संस्कृति, राजनीति, इतिहास, धर्म, पंथ, विज्ञान या ज्ञान की अन्य कोई बात हो, उसके बारे में एक माध्यम का पूर्वाग्रह रहित और निष्पक्ष होना ज़रूरी है.khulizuban.com का प्रयास इसी दिशा में एक क़दम है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button