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इतिहास

किसने मारी थी गांधी को 'चौथी गोली'?

.   सात दशक से ज़्यादा वक़्त गुजरने के बाद भी सुलझ नहीं पाया है गांधीजी की हत्या का रहस्य

.   शव का पोस्टमॉर्टम नहीं कराया जाना भी संदेह का एक बड़ा कारण

.   मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, गांधीजी को चार गोलियांमारी गई थीं

.   गांधी जी को गोली मारने से पहले गोडसे ने उन्हें बम से उड़ाने की कोशिश की थी   

क्या नाथूराम गोडसे केवल एक मोहरा थे, जिनका इस्तेमाल कर गांधी जी को रास्ते से हटाने के लिए एक बड़ी राजनीतिक साज़िश को अंज़ाम दिया गया था

.   जानकार बताते हैं कि भारत-विभाजन के दौरान कई सारे सच दफ़न कर दिए गए 




शायद ही कोई भारतीय हो, जो गांधीजी का नाम नहीं जानता.30 जनवरी 1948 को दिल्ली के बिड़ला हाउस में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी.पुलिस के मुताबिक़, गांधी के ऊपर नाथूराम गोडसे ने तीन गोलियां प्वाइंट ब्लैंक रेंज से चलाईं और सबके सामने उन्हें मार दिया.उनकी मृत्यु हो गई.यही मान लिया गया और गोडसे को फांसी दे दी गई.लेकिन पूरे मुक़दमे में उस चौथी गोली का कहीं ज़िक्र नहीं हुआ, जो चली थी.दरअसल, उस दिन तीन नहीं बल्कि चार गोलियां चली थीं, इस बात के भी दावे किए जाते हैं.तो फ़िर किसने मारी थी, गांधीजी को वो चौथी गोली?




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गांधी-हत्या और चौथी गोली का रहस्य (सांकेतिक)




दरअसल, इतिहास एक ऐसे अंधियारे गलियारे के समान है, जिसकी दीवार की ओट लेते ही एक नया कंकाल नज़र आ जाता है.इसका मत्लब ये हुआ कि जिस विशेष घटना से संबंधित जानकारी के लिए हम इतिहास को खंगाल रहे होते हैं, उसके बजाय कोई नया तथ्य या घटनाक्रम सामने आ खड़ा होता है.ऐसे ही कुछ सवाल गांधीजी की हत्या से भी जुड़े हुए हैं, जिनके ज़वाब सात दशक से ज़्यादा वक़्त गुज़र जाने के बाद भी नहीं मिल सके हैं.

क्या गांधीजी के ऊपर नाथूराम विनायक गोडसे के अलावा किसी और ने भी गोली चलाई थी?

क्या गांधीजी के एक नहीं दो हत्यारे थे?

आख़िर क्या है पूरा सच?

जानकार बताते हैं कि विभाजन के दौरान कई सारे सच दफ़न कर दिए गए थे.इसलिए बहुत संभव है कि गांधीजी की हत्या का सच भी दबा दिया गया हो.ऐसा कहने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण व तथ्य मौज़ूद हैं, जिन्हें झूठलाया नहीं जा सकता.साथ ही, ऐसा लगता है कि 1966 में गांधीजी की हत्या की जांच-पड़ताल करने वाली जस्टिस जे एल कपूर कमीशन का, कई सारी महत्वपूर्ण बातों और तथ्यों की ओर शायद ध्यान ही नहीं गया.



गांधी की मृत्यु का सही समय पता नहीं

बताया जाता है कि गांधीजी जब प्रार्थना सभा के लिए जा रहे तभी भीड़ से निकल कर गोडसे ने उन पर गोलियां चला दी थी.अब, गोलियां लगने के कितनी देर बाद उनकी मौत हुई, घटनास्थल पर ही मौत हो चुकी थी या फ़िर उन्हें अंदर कमरे में पहुंचाए जाने के बाद मौत हुई, इस बारे में कुछ ज़्यादा और स्पष्ट रूप से पता नहीं है.



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बिड़ला हाउस (अब गांधी स्मृति) में गांधी का कक्ष 



बस इतनी जानकारी मिलती है कि गांधीजी को जब तक उनके कमरे तक ले जाया गया तब तक उनकी मौत हो चुकी थी.लेकिन मौत की यह पुष्टि किसने की?

मौत का समय क्या बताया गया?

ये सब सुनी-सुनाई बातें हैं.दरअसल, गोडसे द्वारा गांधीजी के ऊपर द्वारा बंदूक तानते और चलाते देख लोगों के बीच वहां भगदड़ मच गई थी.यहां तक कि गांधीजी के साथ चल रही लड़कियां-महिलाएं भी कहीं नज़र नहीं आ रही थीं.

बताते हैं कि गोडसे को पकड़ने वाले पहले इंसान हर्बर्ट रेनियर जूनियर थे.वह अमरीकी राजनयिक थे.

मगर ये भी स्पष्ट रूप से पता नहीं है कि गोलियां चलाने के बाद गोडसे वहां से भागे थे या वहीँ खड़े रहे, क्योंकि जिस साहस के साथ अदालत में उन्होंने अपना पक्ष रखा, कोई बचाव नहीं किया और न ही अपने प्राण बचाने के लिए कोई दया याचना की, उससे यह सवाल ज़रूर पैदा होता है.




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नाथूराम विनायक गोडसे 




बहरहाल, ये रहस्य अब भी बरक़रार है कि गांधीजी को चौथी गोली (यदि चलाई गई थी तो) भी बाहर ही मार दी गई थी या फ़िर उन्हें अंदर ले जाने के बाद मारी गई.




शव का पोस्टमॉर्टम नहीं हुआ

गांधीजी के शव का पोस्टमॉर्टम भी नहीं कराया गया जबकि क़ानूनी नज़रिए से, हत्या मामले में शव का पोस्टमॉर्टम बहुत मायने रखता है.

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट केस का रुख़ बदल सकती है.

लेकिन पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अभाव के कारण ये पता ही नहीं चलता कि गांधीजी के शरीर पर सचमुच कितनी गोलियां लगी थीं.

गांधी को तीन ही गोलियां लगी थीं या चार, ये स्पष्ट नहीं है.

तो क्या जानबूझकर पोस्टमॉर्टम नहीं कराया गया, ताकि सच दफ़न किया जा सके?



 

मीडिया रिपोर्ट में चार गोलियों का ज़िक्र

कुछ अंतर्राष्ट्रीय अख़बारों में छपी ख़बरों में ये स्पष्ट कहा गया था कि गांधीजी को चार गोलियां लगी थीं.

इवनिंग टेलीग्राफ के उस दिन के अंक में चार गोलियों की ही जानकारी छपी थी.




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इवनिंग टेलीग्राफ़ में छपा लेख 

    



बीजेपी नेता सुब्रहमन्यम स्वामी के मुताबिक़, न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स और एनवाई एचटी (NY HT) की फ़ोटो में गांधी के शरीर पर चार गोलियों के निशान थे, जबकि मुक़दमे के दौरान तीन ही गोलियां मारे जाने का ज़िक्र सामने आया.




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गांधी के शरीर पर लगी गोलियों के बारे में सुब्रह्मण्यम स्वामी का ट्वीट 

 




अभिनव भारत के ट्रस्टी डॉ. पंकज फडनिस ने भी 2019 में यही दावा अपनी याचिका के ज़रिए अदालत में किया था.

उनके मुताबिक़, गांधीजी की हत्या वाले दिन मौक़े पर मौज़ूद रॉयटर के तत्कालीन पत्रकार के सी राय ने अपने दफ़्तर में फोन कर बताया था कि गांधी को चार गोलियां लगी थीं.



  

गोडसे से बरामद पिस्तौल किसकी थी?

यह भी आज तक रहस्य बना हुआ है कि नाथूराम गोडसे से बरामद की गई पिस्तौल किसकी थी.

सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा है कि पुलिस द्वारा नाथूराम गोडसे से बरामद की गई पिस्तौल दरअसल, एम-34 बरेटा इतालवी (इटली में बनी) पिस्तौल थी.यह उस वक़्त भारत में सिर्फ़ ब्रिटिश सैनिकों के पास होती थी.




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बरेटा पिस्तौल संबंधी तथ्यों से जुड़ा सुब्रह्मण्यम स्वामी का ट्वीट 





ऐसे में यह एक बड़ा सवाल है कि वह पिस्तौल नाथूराम गोडसे को कहां से/किससे मिली.

इस पिस्तौल के बारे में पूरी जांच क्यों नहीं हुई?





गोडसे से बरामद पिस्तौल से तीन गोलियां ही चली थीं

अभिनव भारत, जो ख़ुद एक रिसर्चर है, उसके ट्रस्टी पंकज फडनिस ने कहा है कि नाथूराम गोडसे से बरामद की गई बरेटा पिस्तौल एक ऐसी पिस्तौल थी जिसमें सात बुलेट चैंबर थे और उनमें से सिर्फ़ तीन ही ख़ाली हुए थे.




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इतालवी बरेटा पिस्तौल (सांकेतिक)


फडनिस ने ये भी कहा कि एक दूसरी बंदूक से चौथी गोली चली होगी.तो फ़िर, गांधीजी पर गोली चलाने वाला दूसरा व्यक्ति कौन था, जिसका नाम रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं है?
 
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने भी इसी तरह की बात कही है तथा सरकार और अदालत को ज़वाबदेह बताते हुए सवाल भी किया है.उन्होंने कहा है कि पुलिस के बयान के बयान के मुताबिक़ गोडसे ने सिर्फ़ तीन गोलयां ही चलाई थीं.लेकिन उनके शरीर में चार गोलियां पाई गईं.




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गांधी को लगी तथाकथित चौथी गोली को लेकर सुब्रह्मण्यम स्वामी का ट्वीट 



तो वो चौथी गोली किसने मारी, जो गांधीजी के दिल पर लगी थी?





गोडसे ने गांधी पर बम से हमला किया था?   

सुब्रह्मण्यम स्वामी ने साल 2015 में गांधी जी की हत्या से जुड़ी एक और बड़ी अजीबोग़रीब घटना का ख़ुलासा किया था.उसमें, उन्होंने कहा था कि गांधी जी को गोली मारने से ठीक दस दिन पहले नाथूराम गोडसे ने उन्हें बम से उड़ाकर मार डालने की कोशिश भी की थी.मगर वह नाक़ाम रहे और गिरफ़्तार कर लिए गए थे.

यह घटना 20 जनवरी 1948 की है.
    
मगर इससे भी ज़्यादा हैरान कर देने वाली बात ये है कि आख़िरी वायसराय माउंटबैटन ने गोडसे को दो दिनों बाद ही यानि 22 जनवरी को उन्हें छोड़ने का आदेश दे दिया था.

गोडसे के खिलाफ़ इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई.




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गांधी को गोडसे द्वारा तथाकथित बम से मारने की कोशिश को लेकर सुब्रह्मण्यम स्वामी का ट्वीट 




तो क्या इतालवी बरेटा पिस्तौल का इस घटना से कोई संबंध है?
 
क्या ब्रिटिश सैनिकों द्वारा इस्तेमाल की जानेवाली वह पिस्तौल देश के महत्वपूर्ण लोगों द्वारा गोडसे को मुहैया कराई/भेंट की गई थी?

शायद जानबूझकर ही, बम विस्फोट के बाद भी गांधी जी की सुरक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया.





दावों-तथ्यों का विश्लेषण

जब तक दावों की जांच नहीं होती और तथ्य प्रमाणित नहीं हो जाते, उनपर यक़ीन नहीं किया जा सकता.यही अपराध विज्ञान का सिद्धांत है.

लेकिन सवाल ये है कि यदि जांच ही नहीं होगी, तथ्यों का प्रमाणीकरण ही नहीं होगा तो निष्कर्ष तक कैसे पहुंचा जा सकता है?

इस कारण, भ्रम तो फैलेगा ही, अविश्वास तो बढ़ेगा ही.

अदालत को इस संबंध में गहन जांच का आदेश दे देना चाहिए, ताकि सच सामने आ जाए और गांधी जी को सही इंसाफ़ मिल सके.

लगता है कि सात दशक बाद भी हम ये नहीं जान पाए हैं कि गांधी-हत्याकांड की साज़िश में शामिल बाक़ी लोग अथवा प्रमुख लोग कौन थे.क्या उन्हें भी सज़ा नहीं मिलनी चाहिए थी?

क्या वे लोग क़ानून से ऊपर थे?

गांधी जी की हत्या की साज़िश का बारीक़ी से अध्ययन करें तो एक तात्कालिक और बड़ा महत्वपूर्ण कारण बहुत साफ़ दिखाई देता है.वह थी कांगेस पार्टी को भंग करने की गांधी जी की सिफ़ारिश.

गांधीजी आज़ादी के बाद कांग्रेस को ख़त्म कर देना चाहते थे.इसके लिए वे बाक़ायदा सिफ़ारिश कर चुके थे.

तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने साल 2013 में बाक़ायदा विधानसभा के पटल पर आज़ादी के बाद गांधी जी द्वारा कांग्रेस भंग करने की इच्छा जताने से जुड़े कुछ दस्तावेज़ी सबूत पेश किए थे.

जयललिता ने सदस्यों की मांग पर सबूत के तौर पर ‘ द कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ महात्मा गांधी– वॉल्यूम 90 ‘ न सिर्फ़ पेश किया बल्कि उसके कुछ अंश पढ़कर सुनाए भी थे.उसमें बड़े साफ़ शब्दों में लिखा है –



” भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सुझावों के मुताबिक़ देश को बंटवारे के बावज़ूद राजनीतिक स्वतंत्रता मिल गई है.अब कांग्रेस के मौज़ूदा स्वरुप की उपयोगिता ख़त्म हो गई है. ”




ऐसे में, स्वतंत्रता-संग्राम और गांधी के रंग में रंगी अलादीन के चिराग़ और ज़र्सी गाय जैसी एक, ग़ुलामों से भरी-पूरी पार्टी के ख़त्म हो जाने के बाद नेहरु और अन्य नेताओं का क्या होता?




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गांधी और नेहरू 

 




क्या वे कोई दूसरी पार्टी बनाकर अय्याशी करते हुए निरंकुश शासन कर सकते थे? कदापि नहीं.

इसीलिए देशविरोधियों के प्यारे गांधी जी देशविरोधियों की आंखों का कांटा बन गए थे.वे रास्ते का रोड़ा बनते, उससे पहले उन्हें मिटा दिया गया.

गांधी जी के सबसे छोटे पुत्र और हिंदुस्तान टाइम्स के तत्कालीन संपादक देवदास गांधी जेल में गोडसे से मिले थे.दोनों में कुछ बातें हुईं जिसके बाद अगली बार मुलाक़ात के लिए देवदास ने प्रशासन से ज़्यादा समय की मांग की थी, मगर उन्हें तीन मिनट से ज़्यादा समय देने से मना कर दिया गया.

बताते हैं कि गोडसे को 17 मई 1949 को फांसी की सज़ा सुनाए जाने के बाद गांधी जी के तीसरे पुत्र रामदास गांधी ने गोडसे को एक भावुक पत्र लिखा था जिसमें वे गोडसे से मिलकर उन्हें कुछ ख़ास बताना चाहते थे.इसके लिए उन्होंने प्रशासन से बाक़ायदा समय मांगा था, जो उन्हें नहीं मिल पाया.

बताते हैं कि गोडसे से मिलने वालों पर नेहरू और उनकी सरकार की पैनी नज़र थी.

हालांकि इसके बाद रामदास और नाथूराम के बीच पत्राचार ज़ारी रहा.अगर उन पत्रों को सार्वजनिक कर दिया जाए तो शायद बहुत सारी गुप्त बातें बाहर आ सकती हैं.

इसीप्रकार, दो बड़े गांधीवादी आचार्य विनोबा भावे और किशोरीलाल मश्रुवाला भी गोडसे से मिलना चाहते थे लेकिन उन्हें भी इसकी इज़ाज़त नहीं दी गई.

पता नहीं क्या छुपाया जा रहा था कि जिसके लिए गांधीजी के परिजन और गांधीवादी भी गोडसे से मिलने से रोक दिए गए थे.


         
          
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