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बॉलीवुड

अमिताभ बच्चन के पिता कौन थे? जानिए तेजी बच्चन और जवाहरलाल नेहरू के रिश्ते का पूरा सच

बॉलीवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चन का विवादों से पुराना नाता है. सबसे बड़ा विवाद उनकी असली पहचान को लेकर है. आलोचक ही नहीं, उनके फ़ैन भी पूछते हैं कि वे किसके बेटे हैं- कवि हरिवंशराय बच्चन के या पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के. अब तो उनके जवाहरलाल नेहरू के डीएनए से कथित मिलान का दावा भी सामने है. फिर भी, अमिताभ बच्चन मौन हैं. यहां तक कि उनके परिवार या किसी क़रीबी की ओर से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. पता नहीं कब तक मां तेजी बच्चन और नेहरूजी के बीच संबंधों का साया 'बिग बी' का पीछा करता रहेगा...

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बॉलीवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चन किसी परिचय के मोहताज़ नहीं, वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अभिनेताओं में शुमार हैं. ‘सदी का महानायक’ और ‘बिग बी’ के नाम से करोड़ों लोगों के बीच चर्चित वे मीडिया के लिए मसाला हैं तो राजनीति के क्षेत्र में पक्ष और  विपक्ष, दोनों के लिए लुभावना चेहरा हैं. मगर जितने वे ख्यातिप्राप्त हैं उतने ही विवादित भी हैं. सबसे बड़ा विवाद उनके पिता से जुड़े सवालों को लेकर है जिसपर आमजन से लेकर न्यूज़ और सोशल मीडिया में चर्चा का बाज़ार हमेशा गर्म रहता है. उनके असली पिता कौन थे-हरिवंशराय बच्चन या जवाहरलाल नेहरु, या फ़िर कोई और, सभी के लिए यह रोचक विषय है. इस पर शोध और उनके डीएनए रिपोर्ट के खुलासे के भी दावे भी किए गए हैं.
जवाहरलाल नेहरू, व हरिवंश राय, अमिताभ और तेजी बच्चन (सांकेतिक चित्र)
अमिताभ को ज़ुक़ाम हो जाए या वे छींक भी दें, तो न्यूज़ मीडिया में उसे प्रमुख ख़बर बनाकर परोसने की होड़ मची रहती है. जब भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के डीएनए से अमिताभ के डीएनए मिलने (DNA match) के दावे की ख़बर भी ख़ूब मसाला बनी और प्रसारित हुई. मगर इस मुद्दे पर पत्रकार बंटे हुए दिखाई दिए. आज भी कई पत्रकार, इतिहासकार, लेखक और कलाकार भी इस पर एकमत नहीं हैं. अलग-अलग दावे हैं, और भांति-भांति के तर्क हैं.
ऐसे में, वास्तविकता क्या है इस पर गहन मंथन की आवश्यकता है. भले ही यह एक बड़ी या बहुत बड़ी हस्ती के चरित्र से जुड़ा एक गंभीर एवं संवेदनशील मामला है, परंतु सवाल होना चाहिए, जो सोना होगा वह आग में तपकर और कुंदन हो जाएगा.

हरिवंशराय बच्चन थे अमिताभ बच्चन के पिता?

रायशुमारी की बात करें तो अच्छी-खासी तादाद में लोग यह मानते हैं कि हरिवंशराय बच्चन ही अमिताभ बच्चन के पिता या  असली पिता थे, और जवाहरलाल नेहरु को अमिताभ बच्चन का पिता बताना महज़ कोरी कल्पना है. इसके पीछे उन्हें साज़िश नज़र आती है. बच्चन परिवार तथा नेहरु-गाँधी परिवार को बदनाम करने की साज़िश.
समर्थकों का मानना है कि अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंशराय जहां एक प्रसिद्ध कवि-लेखक थे वहीं, माँ तेजी बच्चन एक लेक्चरर, समाजसेवी और कलाप्रेमी होने के साथ बेदाग़ छवि की महिला थीं. उनका हरिवंशराय बच्चन से प्रेमविवाह हुआ था.
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
बच्चन दंपत्ति: हरिवंशराय व तेज़ी सूरी बच्चन (प्रतीकात्मक चित्र)
बच्चन परिवार के क़रीबी हरिवंशराय व तेजी की पहली मुलाकात के बारे में एक दिलचस्प कहानी का ज़िक्र करते हैं. वे बताते हैं कि हरिवंशराय के एक कवि मित्र प्रकाश ने एक बार उन्हें बरेली अपने घर आमंत्रित किया. हरिवंश तुरंत दिल्ली से बरेली जाने वाली ट्रेन में सवार हुए तथा सुबह-सुबह प्रकाश के घर पहुंचे. उन्होंने प्रकाश से जब अचानक निमंत्रण का कारण पूछा तो प्रकाश ने शरारत भरे अंदाज़ में बताया कि कुछ ख़ास नहीं था. वह बस चाहते थे कि उन्हें (हरिवंश को) लाहौर निवासी उनकी एक प्रशंसक और कविता-प्रेमी से मिलवाएं. उन्होंने मिलवाया भी.
बताते हैं कि वह तेजी सूरी थीं. जब तेज़ी सलवार-सूट और रेशमी दुपट्टे में कमरे में दाख़िल हुईं, हरिवंश देखते ही उनपर फ़िदा हो गए. यानी पहली नजर में उन्हें प्यार हो गया. हरिवंश राय ने एकबार कहा था-
 

वह कोई स्त्री नहीं, बल्कि सर झुकाए कोई यूनानी देवी खड़ी थी…जैसे किसी पुरानी क़िताब का कोई चित्र जीवंत हो उठा हो. 

 
इस अवसर पर जब प्रकाश और तेज़ी ने उनसे कविता सुनाने की ज़िद की तो उन्होंने 12 साल पहले लिखी अपनी एक कविता सुनाई-

इसीलिए सौन्दर्य देखकर शंका यह उठती तत्काल, कहीं फंसाने को तो मेरे नहीं बिछाया जाता ज़ाल.

क़रीबियों की राय में, ‘आधुनिकता और परंपरा के इलाहबाद संगम’ के नाम से जाना जाने वाला हरिवंश राय और तेजी का वैवाहिक जीवन सफल और कईयों के लिए प्रेरणा का स्रोत था.

अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
सार्वजानिक जीवन में हरिवंश राय और तेज़ी बच्चन (सांकेतिक चित्र)

बताते हैं कि एकबार सरोजिनी नायडू ने जवाहरलाल नेहरु से बच्चन दंपत्ति को मिलवाते हुए उन्हें ‘पोएट एंड पोएम’ (कवि और कविता) बताकर उनका परिचय दिया था. यूं कहिये हरिवंशराय और तेजी का आपस में प्रगाढ़ प्रेम था, या वे दो जिस्म एक ज़ान थे.

कुछ लोग कहते हैं कि अमिताभ बच्चन के जन्म के समय कवि सुमित्रानंदन पंत तेजी बच्चन को देखने नर्सिंग होम गए थे, और अमिताभ नाम उन्होंने ही रखा था. उन्होंने नवजात शिशु की तरफ़ इशारा करते हुए कवि बच्चन से कहा कि ‘देखो तो कितना शांत दिखाई दे रहा है, मानो ध्यानस्थ अमिताभ (महात्मा बुद्ध, अनंत प्रकाश, तेजस्वी).’

यह चर्चा भी सामने आती है कि अमिताभ के जन्म (11 अक्टूबर, 1942) के समय उनके पिता हरिवंशराय बच्चन ने अपने दिल के हालात को पूरी रात लिखा था. उसकी कुछ लाइनें इस तरह हैं-

” रात को मैंने एक विचित्र स्वप्न देखा. मैंने देखा कि चक वाला हमारा पुश्तैनी घर है. उसमें पूजा की कोठरी में बैठे मेरे पिता आँखों पर चश्मा लगाए सामने रेहल पर रामचरितमानस की पोथी खोले मास पारायण के पांचवें विश्राम का पाठ कर रहे हैं.”

इस प्रकार, हरिवंशराय ने यहां अपने पुत्र अमिताभ को अपने पिता की छवि के रूप में प्रस्तुत कर उन्हें महत्त्व दिया है, और अपना ही ख़ून बताया है.
समर्थक यही बिंदु उठाते हैं, और हरिवंशराय को अमिताभ बच्चन का जैविक पिता (biological father) या असली पिता साबित करने का प्रयास करते हैं. उनके अनुसार ‘किसी नाजायज़ औलाद को कोई पिता क्योंकर महिमामंडित करेगा.’

जवाहरलाल नेहरु थे अमिताभ बच्चन के असली पिता? 

जवाहरलाल नेहरु ही अमिताभ बच्चन के असली पिता थे, यह मानने वालों की संख्या भी कम नहीं है. एक बड़ा बुद्धिजिवी वर्ग कहता है कि तेजी बच्चन और जवाहरलाल नेहरु के बीच अंतरंग संबंध या गहरे रिश्ते थे. अमिताभ बच्चन उसी नाज़ायज़ रिश्ते की उपज हैं. यही कारण है कि उनका चेहरा जवाहरलाल से मिलता है.
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
जवाहरलाल नेहरू व अमिताभ बच्चन (प्रतीकात्मक चित्र)
बताते हैं कि बच्चन परिवार की नेहरु-गाँधी परिवार से निकटता आनंद भवन, इलाहबाद (अब प्रयागराज) से शुरू हुई थी. तब इंदिरा गांधी छात्र थीं, और उनसे तेजी बच्चन की गहरी दोस्ती थी. दोनों साथ-साथ खेलती व पढ़ती थीं. इसी दौरान, तेजी और जवाहरलाल एक दूसरे के क़रीब आए, और धीरे-धीरे रिश्ते गहरे हो गए.
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
जवाहरलाल व अमिताभ के युवावस्था के फ़ोटो (सांकेतिक चित्र)
टाइम्स ऑफ़ इंडिया की इन्टरनेट सहायक इंडिया टाइम्स की ‘हेडलाइंस टूमौरो‘ में छपे लेख में भी दावा किया गया है कि अमिताभ बच्चन जवाहरलाल नेहरु की औलाद हैं. यह दावा हेडलाइंस टूमौरो के शोधकर्ताओं और डीएनए रिपोर्ट पर आधारित है बताया गया है.
न्यूज़ रिपोर्ट का लिंक इस प्रकार है:
अंग्रेजी में छपी उक्त रिपोर्ट (हिंदी अनुवाद) में लिखा है-
”बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन एक यौन संबंध का परिणाम हैं, जो उनकी माँ तेजी बच्चन और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बीच हुआ था।
शोधकर्ताओं और हालिया डीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, नेहरु ही अमिताभ के असली पिता थे। यह सब तब शुरू हुआ जब इंदिरा गांधी और तेजी बच्चन अच्छी दोस्त थीं। तेजी इंदिरा के घर अक्सर आती-जाती रहती थीं। तेजी और इंदिरा नेहरू के साथ खेला करती थीं। लेकिन कौन जानता था कि नेहरू और तेजी एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होंगे? तेजी बच्चन एक आकर्षक महिला थीं, जबकि नेहरु एक ठरकी या इश्कबाज़ (कैसानोवा) और विधुर (रंडवा). दोनों के बीच प्रेम के साथ शारीरिक सम्बन्ध भी थे, जिसके फलस्वरूप अमिताभ बच्चन पैदा हुए.
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
हेडलाइन्स टूमौरो की रिपोर्ट
लेकिन नेहरु अपने राजनीतिक रसूख के कारण अमिताभ को अपना नाम नहीं दे सके. उन्होंने तेजी को हरिवंश राय बच्चन से शादी करने के लिए कहा। 1941 में हरिवंश राय बच्चन की पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी इसलिए, उन्होंने तेजी बच्चन से शादी कर अमिताभ को अपना नाम दे दिया। नेहरु कई वर्षों से हरिवंश राय बच्चन को जानते थे क्योंकि दोनों ही इलाहाबाद से ताल्लुक रखते थे। नेहरु उनकी (हरिवंश राय की) साहित्यिक प्रतिभा के लिए उनका सम्मान करते थे।
बाद में, इंदिरा गांधी और फिरोज खान (फिरोज गान्धी) के बेटे राजीव गाँधी और अमिताभ बच्चन बहुत अच्छे दोस्त बन गए। वे दोनों 4 साल की उम्र में मिले थे, और एक दूसरे के साथ एक अच्छा रिश्ता निभाया।
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
राजीव गाँधी के साथ अमिताभ व तेज़ी बच्चन (प्रतीकात्मक चित्र)
जब सोनिया 1968 में राजीव की मंगेतर के रूप में भारत आईं तो उन्हें तेजी बच्चन (बच्चन परिवार) के निवास स्थान पर रखा गया था. तेजी ने सोनिया की माँ की भूमिका निभाई तथा उन्हें भारतीय संस्कृति सिखाई।’तेजी बच्चन नेहरू’ एक सामाजिक कार्यकर्ता बन गईं और नेहरू को बहुत याद किया।”

अमरनाथ झा थे अमिताभ बच्चन के असली पिता? 

कुछ ऐसे लोग भी हैं जो अमरनाथ झा को अमिताभ बच्चन का असली पिता बताते हैं. हालाँकि ये संख्या में थोड़े हैं, लेकिन इनके पास भी कहानियां कम नहीं हैं. कई सारे उदाहरण और संस्मरण हैं, जो सच्चाई के क़रीब नज़र आती हैं.
बताते हैं कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) परिसर व आसपास के इलाक़ों में बस चर्चा छेड़ने की ज़रूरत है, ऐसे विद्वतजन मिल जाएंगें जो अमरनाथ झा, हरिवंशराय बच्चन, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत और फ़िराक गोरखपुरी (रघुपति सहाय) से जुड़े संस्मरण ना सिर्फ़ सुनायेंगें बल्कि उनके तार भी तेजवंत कौर सूरी, जिन्हें हम तेज़ी बच्चन के नाम से जानते हैं, उनसे जोड़ देंगें. विभिन्न लेख व पुस्तक समीक्षा का वे हवाला भी देंगें.
जानकारों के अनुसार प्रसिद्ध विद्वान एवं इविवि के प्रथम कुलपति सर गंगानाथ झा के पुत्र सर अमरनाथ झा पोएट्री सोसाइटी, लंदन के उपसभापति और रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लिटरेचर के फेलो भी रहे थे. 1938 से 1947 तक इविवि के उपकुलपति का पदभार संभालने के बाद 1948 में वे पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन बने. ज़ानकार बताते हैं कि वे एक अच्छे शायर भी थे जिनका इविवि के हॉल में आयोजित मुशायरों में फ़िराक गोरखपुरी से मुक़ाबले होते रहते थे.
बहुमुखी प्रतिभा के धनी अमरनाथ रसूखदार भी थे. बताते हैं कि तेजवंत कौर सूरी (तेज़ी बच्चन) से उनके अन्तरंग संबंध थे. लंबे समय तक. और तेजी की शादी के बाद भी उनका रिश्ता बना रहा. अमिताभ बच्चन दोनों के प्यार की निशानी हैं. उनका नाम पहले इंक़लाब (क्रांति, सत्ता-परिवर्तन या आज़ादी के लिए मुखर होने की अवस्था या स्थिति) था, जो अमरनाथ द्वारा ही दिया गया था.
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
सर गंगानाथ झा के पुत्र अमरनाथ झा (सांकेतिक चित्र)
बताया जाता है कि उन दिनों हरिवंशराय बच्चन भी इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (इविवि) के अंग्रेज़ी विभाग में लेक्चरर थे तथा झा साहब के मुरीद थे. उन्हें ‘तेज़ू’ व ‘झा साहब’ की ‘लव-स्टोरी’ मालूम थी तथा जानबूझकर वे दोनों को एकांत में मिलने का मौक़ा उपलब्ध करा देते थे. एक साल गर्मियों में हरिवंशराय, तेज़ी व झा साहब (मियां-बीवी और वो) एकसाथ मसूरी में ठहरे थे, जिसका ज़िक्र ‘नीड़ का निर्माण फ़िर’ (बच्चन जी की जीवनी भाग-2) में मिलता है-

” झा साहब के साथ कोई कितने ही दिन रहे, उनसे निकटता का अनुभव नहीं कर सकता था. वे अपने भीतर कहीं बहुत एकाकी, स्वकेंद्रित एवं स्वयं-पर्याप्त थे.”  

एक अन्य घटना का ज़िक्र भी अक्सर होता है. बताते हैं कि नन्हें अमिताभ के जन्मदिन का अवसर था जब कई लेखक, कवि और शायर पहुंचे थे. हरिवंश राय के साथ इलाहबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेज़ी विभाग में पढ़ाने वाले व अज़ीम, अज़ीबोगरीब और मुंहफट शायर फ़िराक गोरखपुरी भी उनमें से एक थे. उन्होंने हरिवंश राय से मज़ाक-मज़ाक में पूछ लिया-

“क्या मैं आपको या अमरनाथ को बधाई दूँ? “

कहानियों/तथ्यों का विश्लेषण

कौन किसका असली बाप है या कौन किसकी औलाद यह या तो मां बता सकती है या फिर विज्ञान. टाइम्स ऑफ़ इंडिया का यह दावा कि जवाहरलाल ही अमिताभ के जैविक पिता (असली पिता) थे, तो अवश्य ही यह उनकी डीएनए रिपोर्ट पर आधारित जाँच का परिणाम होगा. ऐसा उसने कहा भी है. इसमें ‘अविश्वसनीय’ जैसी कोई बात नहीं है क्योंकि यह 21 वीं सदी है. विज्ञान का युग है. मुमकिन है किसी के ब्लड सैंपल से उसकी डीएनए जाँच करा लेना.
हालाँकि यह तरीक़ा ग़लत है और साथ ही ग़ैरकानूनी भी है क्योंकि कोई अन्य व्यक्ति या संस्थान किसी व्यक्ति के डीएनए की जाँच नहीं करा सकता है. उसे सार्वजानिक करना तो और भी संगीन मामला है.
कानूनविदों की राय में, किसी का डीएनए टेस्ट उसकी मर्ज़ी अथवा अदालती आदेश से ही संभव है. लेकिन  इसकी अनदेखी हुई तथा नेहरु-बच्चन परिवार की इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ीं, मगर कोई कुछ नहीं बोला.
ग़ौरतलब है कि उपरोक्त मीडिया संस्थान के खिलाफ़ कार्रवाई तो दूर आपत्ति भी दर्ज़ नहीं हुई. इसका मत्लब साफ़ है- दावा ग़लत नहीं है.
अब कोई चाहे कितना भी अलंकृत हो जाए, फटी हुई इज्ज़त के साथ बड़े होने या रेत के टीले पर चढ़कर ऊँचा दीखने वाली बात होगी. धरती के तीन चौथाई हिस्से में पानी है या धरती का तीन चौथाई हिस्सा पानी में हैं, एक ही बात है.
दूसरी महत्वपूर्ण बात परिस्थितिजन्य प्रमाण (Circumstantial Evidence) की भी है. ये भी मायने रखते हैं, और फ़ैसले को पलट सकते हैं. ऐसा हुआ है, इतिहास गवाह है. इसलिए, नेहरू-बच्चन परिवारों की वास्तविकता समझने के लिए इतिहास में जाना होगा, ताकि चेहरों के पीछे के चेहरे पहचाने जा सकें और सच उजागर हो.

बच्चन परिवार

बच्चन परिवार शुरू से ही परंपराओं तथा भारतीय जीवन शैली से विमुख और पश्चिमी शैली का पोषक रहा है. चाहे हरिवंशराय बच्चन हों या तेज़ी बच्चन या फ़िर अमिताभ, सभी स्वच्छंद,आधुनिकता की दौड़ में आगे और समझौतावादी के रूप में जाने जाते हैं. ये स्वहित के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, और मर्यादाओं का ख़याल नहीं रखते हैं.

हरिवंश राय बच्चन

इलाहबाद से सटे रानीगंज तहसील के बाबूपट्टी गाँव में कायस्थ परिवार में जन्मे हरिवंश राय किशोरावस्था से ही बड़े रसिक-मिजाज़ थे. उन्होंने अपनी ऑटोबायोग्राफी (चार चरणों में लिखित- क्या भूलूं क्या याद करूं, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर दशद्वार से सोपान तक) सभी रिश्तों के बारे में बड़ी बेबाकी से लिखा है. और जो उन्होंने नहीं लिखा है वह उनके दोस्तों और पड़ोसियों ने समय समय पर मीडिया में उजागर कर दिया है. कुछ ख़ास बातें इस प्रकार हैं-
किशोरावस्था में ही हरिवंश को अपने दोस्त कर्कल की बीवी चंपा से प्यार हो गया था, जबकि वह उम्र में बड़ी थी. यह कर्कल भी जानते थे. बावजूद इसके, उन्होंने ऐतराज़ नहीं किया, बल्कि इसको बढ़ावा दिया.
इस लव स्टोरी की जानकारी हरिवंश के माता-पिता को भी थी. लेकिन उन्होंने भी मना नहीं किया, क्योंकि किसी ज्योतिषी ने कहा था कि “हरिवंश आगे चलकर बड़ा आदमी बनेगा, और बहुत नाम कमाएगा. उसकी राह में कोई रोड़ा न बने.”
इसी दौरान, दोस्त कर्कल की अचानक मौत हो गई. इसके बाद तो हरिवंश और चंपा स्वच्छंद विहार करने लगे.
हरिवंश चंपा के आकर्षण में इतने खोये हुए थे कि वे पढ़ाई से भी दूर हो गए थे, और हाईस्कूल की परीक्षा में फेल हो गए.
उधर विधवा चंपा भी गर्भवती हो गई.
इस पर बवाल मचा तो उनकी मां उन्हें लेकर हमेशा-हमेशा के लिए हरिद्वार चली गईं. इससे हरिवंश बहुत उदास रहने लगे.
यही वज़ह थी कि उन्हें बंधन में बाँधने के ख़याल से उनकी ज़ल्द शादी करा दी गई थी. बताते हैं कि-
इसी वज़ह से मई 1926 में वे जब बीए फर्स्ट इयर में पढ़ रहे थे, तभी उनकी शादी इलाहबाद निवासी श्यामा देवी से कर दी गई थी. उस वक़्त हरिवंश की उम्र 19 वर्ष थी, और श्यामा 14 साल की थीं.  
चंपा ही नहीं, हरिवंशराय बच्चन के जीवन में अनेक लड़कियां आईं-गईं. बच्चन जी ने उनके साथ भरपूर रोमांस किया. लेकिन विश्वविद्यालय में पढाई के दिनों आइरिस नामक एक ईसाई लड़की उनके संपर्क में आई जिसने उन्हें काफ़ी प्रभावित किया. वे उसपर फ़िदा थे. उसके बारे में उन्होंने ‘नीड़ का निर्माण फिर’ में लिखा है:
‘‘आइरिस ने प्रथम दृष्टि में ही मुझे आकर्षित किया। वैसे तो मुझमें कुछ विशेष आकर्षक नहीं था, पर मेरे बालों ने उसे आकर्षित किया हो तो कोई आश्चर्य नहीं। यदि पहले से मेरा परिचय उसे कवि के रूप में दे दिया गया होता, तो बालों के संबंध में मेरी रोमानी लापरवाही उसे अप्रत्याशित और अस्वाभाविक न लगी होती। कद से लंबी, बदन से इकहरी, और रंग से विशेष गौर वर्ण की, उसमें कहीं ऐंग्‍लो-इंडियन रक्त का मिश्रण अवश्य था। गर्दन लंबी, चेहरा आयताकार, आंखें नीली, गाल की हड्डियां उभरी, होंठ भरे, बाल सुनहरे, कटे, फिर भी इतने बड़े कि दायें-बायें कंधों पर और पीठ के उपरी भाग पर लहराते थे। शायद उसके शरीर में उसके बाल ही उसके मनोभावों के सबसे अधिक अभिव्यंजक थे। वह थोड़ी-थोड़ी देर पर उन्हें कभी दाहिने और कभी बायें झटकती और इससे उसके सौन्दर्य में एक गतिशीलता–सी आ जाती। “
लेकिन बात नहीं बनी, और आइरिस ने बच्चन जी की ओर से मोहब्बत की पेशकश ठुकरा दी. बच्चन जी का तो दिल ही टूट गया. उन्होंने आइरिस द्वारा लिखे सभी पत्रों को नष्ट कर दिया. पत्र-व्यवहार चूंकि अंग्रेज़ी में होता था इसलिए, अब वे अंग्रेज़ी भाषा से भी नफ़रत करने लगे. वे लिखते हैं:
” अंग्रेजी बिना लेशमात्र कृतज्ञता अनुभव किए ‘थैंक यू’ कह सकती है। जब यह ‘सॉरी’ कहती है तब अफसोस इसे शायद ही कहीं छूता हो। ‘आई ऐम ऐफ्रेड’ से इसका तात्‍पर्य बिलकुल यह नहीं होता कि यह जरा भी डरी है; और इसकी उक्ति ‘एक्‍सक्यूज मी’ (यानी मुझे क्षमा करें) आपके गालों पर थप्‍पड़ लगाने की भूमिका भी हो सकती है। मेरी ‘मधुशाला’ की अंग्रेजी अनुवादिका कुमारी मार्जरी बोल्टन की एक बात मुझे याद आ गई। जब मैं इंग्लैंड-प्रवास में एक छुट्टी में उनके घर गया तो एक शाम को वे अपने जीवन की दुखद अनुभूति मुझसे बताने लगीं। उनके एक प्रेमी ने कई वर्षो तक उनसे पत्र-व्यवहार किया। क्या भावना में भीगे पत्र थे वे! और एक दिन सहसा उसने उन्हें भुला दिया! मैं मार्जरी का वाक्‍य नहीं भूला-Since that day I have lost faith in English language [उस दिन से अंग्रेजी भाषा पर से मेरा विश्वास उठ गया]। अंग्रेजी औपचारिक शिष्टता, पटुता, प्रदर्शन और डिसेप्शन यानी धोखा-धड़ी की इतनी परिपूर्ण माध्यम हो गई है कि आज अभिव्यक्ति से अधिक यह गोपन और डिसटार्शन यानी विरूपन की भाषा है। क्या भाषाएं विकसित और परिष्कृत होकर अपनी सूक्ष्म अभिव्यंजन शक्ति, सच्चाई, सिधाई, गहराई और ईमानदारी खो देती हैं?”
हरिवंशराय के एक अन्य महिला से भी शारीरिक संबंध थे. वह महिला थी एक स्वतंत्रता सेनानी यशपाल की पत्नी प्रकाशवती कौर उर्फ़ प्रकाशो. इस बारे हरिवंशराय के क़रीबियों ने कुछ यूं लिखा-कहा है:
हरिवंशराय बच्चन के कभी भगत सिंह के साथी यशपाल की पत्नी प्रकाशवती कौर उर्फ़ प्रकाशो से भी गहरे रिश्ते थे. इस बारे में उन्होंने लिखा है कि कैसे प्रकाशवती रानी नाम से उनके घर (लिव इन रिलेशनशिप) में रहती थीं और किसी को भी पता नहीं थी.
 

तेजी बच्चन

पंजाब के ल्यालपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) स्थित एक सिख खत्री परिवार में जन्मी तेजवंत कौर सूरी अमर कौर सूरी और खजान सिंह सूरी की बेटी थीं. हरिवंशराय बच्चन से ब्याह के बाद वे तेजी बच्चन कहलाईं.
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
पिता खज़ान सिंह सूरी के साथ तेज़ी,उनकी बहन व एक अंग्रेज़ लड़की
उनके पिता सरदार खजान सिंह ने लंदन से बैरिस्ट्री की थी. बाद में वे पंजाब रियासत के रेवेन्यू मिनिस्टर बने, और अंततः लाहौर जा बसे. यहीं से तेजी उच्च शिक्षा प्राप्त कर लाहौर स्थित खूबचंद डिग्री कॉलेज़ में मनोविज्ञान की लेक्चरर बनीं. इस दौरान वे कुछ संस्थाओं से जुड़ीं, और समाजसेवा के कार्यों में भाग लेना शुरू किया.
फिर, वे कला के क्षेत्र में दाख़िल हुईं और नाटकों में अभिनय और गायन करने लगीं. बताते हैं कि उन्होंने कुछेक फिल्मों में भी काम किया और रसूखदार लोगों के बीच अपना स्थान बनाया.
जानकारों के अनुसार तेजी बचपन से ही आज़ाद ख़याल थीं. इंदिरा से उनकी गहरी दोस्ती थी. उन्हीं की संगत में और हौसलाअफजाई से इंदिरा अपने पिता से बग़ावत कर फ़िरोज़ खान के साथ लंदन भाग गई थीं. वहां उन्होंने अपना धर्म बदला व मेमूना बेग़म बनकर एक अदालत में शादी कर कर ली थी.
स्वयं तेजी ने अपने पिता के खिलाफ़ जाकर हरिवंश राय से शादी कर ली थी. इससे परिवार से उनके रिश्ते बिगड़ गए थे, और बहुत समय बाद सामान्य हो पाए थे.
इंदिरा से दोस्ती के चलते ही तेजी आनंद भवन पहुंचीं. फिर, उनके (इंदिरा के) पिता जवाहरलाल के दिल में उतर गईं. यहीं से उनका व्यक्तित्व निखरता चला गया. एक तो खूबसूरती, ऊपर से अभिनय और गायन ने उन्हें मंचों की शोभा बना दी.
बताया जाता है कि इन मंचों के ज़रिए ही तेजी अमरनाथ झा व सुमित्रानंदन पंत के क़रीब पहुंची थीं अथवा वे इनके मुरीद हुए थे. झा साहब के साथ सैर-सपाटे तो पंत जी के उनके यहाँ अक्सर प्रवास का सिलसिला शुरू हुआ.
कुछ लोगों के अनुसार नन्हे बच्चन (अमिताभ बच्चन) के नामकरण के मौक़े पर झा साहब और पंत जी के बीच बहस हो गई थी. दरअसल, पंत जी ने झा साहब द्वारा दिए गए ‘इंकलाब’ नाम को बदलवाकर ‘अमिताभ’ रखवा दिया था. यह शायद तेज़ी पर उनके (पंत जी के) अधिक प्रभाव को दर्शाता था. इसीलिए, दोनों के बीच तलवारें खिंच गई थीं.
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
हरिवंश व तेज़ी के साथ नन्हे अमिताभ
इस सब के बावजूद, जवाहरलाल नेहरु के प्रति तेजी का प्रेमभाव कभी कम नहीं हुआ, बल्कि समय के साथ संबंध और प्रगाढ़ होते गए. तेज़ी की सिफारिश पर ही जवाहरलाल ने हरिवंश राय को विदेश मंत्रालय के हिंदी विभाग में पदस्थापित किया था. और उन्हें 10 वर्षों के लिए शोध-कार्य हेतू विदेश भेजने या जाने का अवसर तो एक बहाना था.

अमिताभ बच्चन

अमिताभ बच्चन के बारे में कौन नहीं जानता है. परवीन बॉबी, श्री देवी और रेखा के साथ रिश्तों की चर्चा तो आम है ही, कहा जाता है कि ऐश्वर्य राय से भी उनका संबंध रहा है. ऐश की संतान के असली पिता अमिताभ बच्चन ही हैं. संभव है किसी दिन उसको लेकर भी डीएनए मिलान का दावा मीडिया की सुर्खियां बने.
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
अमिताभ बच्चन और परवीन बॉबी

प्रियदर्शिनी इंदिरा ‘गाँधी’

इंदिरा गाँधी के रिश्तों के बारे में तो जितना कहा जाये कम ही कम होगा. कैथरीन फ्रैंक की क़िताब ‘इंदिरा: दी लाइफ ऑफ़ इंदिरा नेहरु गाँधी’ के मुताबिक ‘इंदिरा का पहला प्यार शांति निकेतन में उनका ज़र्मन शिक्षक था.’ फ़िर, उनका संबंध उनके पिता (जवाहरलाल नेहरू) के सेक्रेटरी एम ओ मथाई से हुआ.
उनके (इंदिरा के) अपने योग गुरु धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, ललित नारायण मिश्र और विदेश मंत्री दिनेश सिंह से भी उनके क़रीबी या अंतरंग संबंधों की चर्चा मिलती है.
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
कैथरीन फ्रैंक की क़िताब का चित्र
एम ओ मथाई के साथ उनका संबंध लंबे वक़्त तक रहा. इस दौरान उनके साथ सेक्स के अनुभव को साझा करते हुए मथाई अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘रिमिनिसेंसेज़ ऑफ़ दी नेहरु एज़’ (Reminiscences of the Nehru Age) में लिखते हैं कि ‘सेक्स के मामले में इंदिरा फ़्रांसिसी व केरल की नायर महिलाओं का संगम थीं.’-

” Indira as a woman who was not promiscuous; neither she desired sex too frequently.” But in the sex act Indira had all the artfulness of French women and Kerala Nair women combined.” -M.O.Mathai

अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
एम ओ मथाई व इंदिरा

यह संबंध 12 वर्षों तक चला. इस का अंत भी तब हुआ जब मथाई ने इंदिरा को किसी और के साथ देखा. इस बेवफ़ाई से मथाई का दिल टूट गया. ग़मगीन मथाई ने लिखा:

” My 12 years of sex life with Indira Gandhi came to an end after I saw her with another man behind the curtain.” : M.O. Mathai 

अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
योगगुरू धीरेन्द्र ब्रह्मचारी के साथ इंदिरा गाँधी

जवाहरलाल नेहरु

जवाहरलाल नेहरु के रोमांस या लव-अफ़ेयर के बारे यदि विस्तार से लिखा जाए, तो शायद एक ग्रंथ भी पर्याप्त नहीं होगा. उनका छात्र जीवन, स्वतंत्रता-संग्राम का कालखंड व उसके बाद का उनका प्रधानमंत्रित्व काल, सारा रोमांस और सेक्स का काल या सेक्स लाइफ कहा जा सकता है.

अनेक महिलाओं के साथ उनके अवैध संबंधों की गाथाएँ सुनने-पढ़ने को मिलती हैं. उन्हें लोग सेक्स का भूखा (Horny) या ठरकी बताते हैं. उनके बारे में कहा जाता था कि ‘कोई खुबसूरत महिला पेश कर दो, कोई भी काम करा लो, चाहे वह देश के खिलाफ़ ही क्यों ना हो. भारत का विभाजन, और अनेक देशविरोधी निर्णय उनमें शामिल हैं. विस्तार से जानने के लिए पढ़िए-

जवाहरलाल नेहरू के लॉर्ड माउंटबैटन की बीवी एडविना माउंटबैटन से रिश्तों को कौन नहीं जानता है. उनकी मौत के बाद उन्हें भारतीय संसद में श्रद्धांजलि दी गई थी. बताते हैं कि जवाहरलाल ने कई देशविरोधी फ़ैसले एडविना की सलाह पर ही लिए थे. वह लॉर्ड माउंटबैटन, गाँधी और नेहरु के बीच की कड़ी थीं.
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जवाहरलाल नेहरू,एडविना और उनके पति लॉर्ड माउंटबैटन
सरोजिनी नायडू की बेटी पद्मजा नायडू से भी उनके अंतरंग संबंध थे. कहा जाता है कि पद्मजा के साथ रिश्तों के कारण ही सरोजिनी को बंगाल का गवर्नर बनाया गया था. नेहरु अपने बेडरूम में हमेशा पद्मजा की तस्वीर लगाकर रखते थे, जिसे इंदिरा हटा दिया करती थीं. इस कारण बाप-बेटी में तनाव बना रहता था.
अमिताभ के पिता,पिता पर विवाद,सच की तहकीकात
जवाहरलाल के साथ पद्मजा नायडू
जवाहरलाल के प्रेम-प्रसंगों की लंबी फ़ेहरिस्त में बनारस की एक सन्यासिन ‘श्रद्धा माता’ का नाम भी शुमार है. 1949 में गर्भवती होने पर संबंधों का ख़ुलासा कर श्रद्धा ने जवाहर पर शादी के लिए दबाव बनाने की कोशिश की थी, पर वे नहीं माने तथा गर्भ गिराने की सलाह दी. इस पर श्रद्धा भड़क गईं, और जिद में उन्होंने 30 मई 1949 को उन्होंने उस बच्चे को जन्म दिया.
कहते हैं कि श्रद्धा की मर्जी के ख़िलाफ़, या चुपके से उस बच्चे को एक ईसाई मिशनरी में डाल दिया गया. मथाई की क़िताब में उस बच्चे का ज़िक्र है, जो एक अनाथ की तरह पला-बढ़ा. मथाई उसे गोद लेना चाहते थे, मगर क़ामयाब नहीं हो पाए.
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जवाहरलाल व श्रद्धा माता
इस प्रकार, बच्चन परिवार और उससे जुड़े तमाम लोगों की चारित्रिक विशेषताएं सामने हैं. इन सब को देख कर मामला और भी उलझ जाता है. दावे तो अनेक हो सकते हैं. हुए भी हैं. लेकिन गहराई से विचार करें तो इन सब में नेहरू परिवार का बच्चन परिवार से ताल्लुक अधिक मजबूत दिखाई देता है.
यूं कहिये कि जिस की इंदिरा जैसी दोस्त हो, और जवाहर जैसा बहुत क़रीबी हो, साथ ही सबूत की भी बात हो, तो उस पर उंगलियां उठेंगी ही.  बातें होंगीं, क्योंकि धुआं वहीं उठता है जहाँ आग होती है. लेकिन हम यह भी जानते हैं कि सच और झूठ के बीच एक बहुत पतली लक़ीर होती है. अब यह पाठकों के विवेक पर निर्भर करता है कि वे क्या सोचते हैं. निर्णय स्वविवेक का ही अधिक महत्वपूर्ण होता है.
चलते चलते अर्ज़ है यह शेर…
जो उन पे गुज़रती है, किसने उसे जाना है,
अपनी ही मुसीबत है, अपना ही फ़साना है|
और साथ ही,
कुछ इस तरह से वो शामिल हुआ, कहानी में,
कि इस के बाद जो किरदार था, फ़साना हुआ|
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रामाशंकर पांडेय

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