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'3 एम फैक्टर' ने पलट दी बिहार में बाज़ी

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पीएम मोदी की अगुआई में हुए प्रचार के दम पर बिहार में भाजपा ऐतिहासिक संख्या हासिल कर सकी है.साथ ही, राजग गठबंधन की इस ऐतिहासिक जीत के लिए तीन ‘एम फैक्टर’ सामने आए हैं जिनके बल पर फ़िर से सत्ता में उसकी वापसी व नीतिश कुमार की बेहद कठिन लगने वाली ताज़पोशी फ़िर से संभव हो सकी है.
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बिहार में मोदी की लोकप्रियता और नीतिश का वज़ूद बरक़रार 
बिहार में एक बार फ़िर जीत के बाद राजग ने सत्ता हासिल कर ली तथा नीतिश कुमार सातवीं बार मुख्यमंत्री बन गए हैं.वहीं राजद के तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल करने में नाक़ाम रहा.राजग की जीत की नायिका भाजपा रही,जिसने जदयू से कहीं ज़्यादा सीटें हासिल की.ऐसे में पीएम मोदी की अगुआई में चुनाव प्रचार के दम पर भाजपा ऐतिहासिक नंबर ला सकी.बिहार में  राजग की इस अप्रत्याशित जीत के लिए तीन एम फैक्टर सामने आए हैं जिनके बल पर फ़िर सरकार बन पायी.

फैक्टर 1- एम से मोदी

बिहार में नीतिश कुमार के प्रति जनता में ग़ुस्सा था तथा सत्ता विरोधी लहर चंहुओर साफ़ दिखाई दे रही थी.लेकिन पीएम मोदी ने जब राजग की ओर से चुनावी समर में मोर्चा संभाला तो हवा का रूख़ बदलना शुरू हुआ.मोदी ने ताबड़तोड़ सभाएं की तथा जनता से अपील कर कहा कि उनकी सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के अच्छे संपादन तथा बिहार की बेहतरी के लिए उन्हें नीतिश सरकार की ज़रूरत है.
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मोदी के धुंआधार प्रचार रंग लाए 
मोदी ने केंद्र की कल्याणकारी योजनाओं की ओर ध्यान आकर्षित करने के अलावा पूर्ववर्ती राजद सरकार के जंगलराज तथा राष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष के देशविरोधी रवैये पर लगातार प्रहार किए.इसका सकारात्मक प्रभाव हुआ तथा मोदी के इस अकेले प्रयास ने हार और जीत का फासला तय कर दिया.नतीजों में जदयू को तो सीटों का घाटा हुआ पर भाजपा की बढ़त ने राजग को बहुमत तक पहुंचा दिया.

फैक्टर 2- एम से महिलाएं 

दूसरा फैक्टर बिहार की महिला वोटर रही हैं.इन्हें नीतिश कुमार के पक्के मतदाता के रूप में देखा जाता रहा है,जो चुपचाप नीतिश कुमार के पक्ष में मतदान करता है.इस बार भी वही होता हुआ दिखा.
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महिला मतदाताओं की अहम भूमिका  
मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना,शौचालयों का निर्माण,पक्के घर,महिलाओं को आर्थिक मदद जैसी कई ऐसी योजनाएं हैं जिनका सीधा लाभ महिलाओं को होता है.इसके अलावा नीतिश सरकार द्वारा की गई शराबबंदी के पक्ष में भी बिहार की महिलाएं बड़ी संख्या में नज़र आती हैं.ऐसे में फ़िर एक बार राज्य की आधी आबादी जिन्होंने पुरषों के मुक़ाबले ज्यादा मतदान किया,राजग की जीत में निर्णायक भूमिका में नज़र आई.

फैक्टर 3- एम से मुस्लिम

तीसरा अहम फैक्टर मुस्लिम मतदाता रहा.दरअसल,बिहार के चुनावों में हार जीत का अंतर पैदा करने में सक्षम 17 फ़ीसदी की आबादी वाले मुस्लिम मतदाता इस बार बंटे नज़र आए.इसका नतीज़ा ये हुआ कि राजद का एम-वाई (मुस्लिम-यादव) फ़ॉर्मूला बिगड़ गया और महागठबंधन बहुमत के ज़ादुई आंकड़े हासिल करने में नाक़ाम रहा.
ऐसा ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम तथा उसके गठबंधन महालोकतांत्रिक सेक्युलर मोर्चा(जीडीएसएफ) के कारण हुआ.सीमांचल में,एआईएमआईएम ने जहाँ राजद के मुस्लिम वोट बैंक में बड़ी सेंध लगाईं तथा वह 5 सीटें जीतने में क़ामयाब रही वहीं सहयोगी बसपा व अन्य ने महागठबंधन के मुस्लिम वोट काटे तथा उसे कमज़ोर किया.
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ओवैसी की पार्टी ने मुस्लिम वोट बटोरे 
उल्लेखनीय है कि बिहार में इस बार राजग को 125 सीटें मिली हैं,जिनमे भाजपा के खाते में 74,जदयू के खाते में 43,वीआईपी (विकासशील इंसान पार्टी) के खाते में 4 तथा हम (हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा) के खाते में 4 सीटें गई हैं.दूसरी ओर,महागठबंधन में राजद को कुल 75,कांग्रेस को 19 और वामपंथी(कमुनिस्ट) दलों को सम्मिलित कुल 16 सीटें ही हासिल करने में क़ामयाबी मिली है.
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विभिन्न दलों को प्राप्त सीटें 
और चलते चलते अर्ज़ है ये शेर…
रुख़ हवा ने बदल लिया अपना
फ़ैसला हो गया चराग़ जले

रामाशंकर पांडेय

दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है, जो दिखता तो कुछ और है पर, हक़ीक़त में वह होता कुछ और ही है.इस कारण कहा गया है कि चमकने वाली हर चीज़ सोना नहीं होती है.इसलिए, हमारा यह दायित्व बनता है कि हम लोगों तक सही जानकारी पहुंचाएं.वह चाहे समाज, संस्कृति, राजनीति, इतिहास, धर्म, पंथ, विज्ञान या ज्ञान की अन्य कोई बात हो, उसके बारे में एक माध्यम का पूर्वाग्रह रहित और निष्पक्ष होना ज़रूरी है.khulizuban.com का प्रयास इसी दिशा में एक क़दम है.

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