अजब-ग़ज़ब

जानिए दुनिया के एक ऐसे वकील के बारे में जो 43 सालों से लड़ रहा है संस्कृत में मुक़दमे

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– सबसे प्राचीन और देवभाषा कही जाने वाली संस्कृत भाषा को दयनीय स्थिति में देखकर एक अध्यापक ने अध्यापन छोड़ वकील बन कर संस्कृत में ही वकालत करने का निर्णय लिया

– साल 1978 में इस वकील ने संस्कृत भाषा में पहला केस लड़ा, और तब से संस्कृत के साथ शुरू हुआ उसका सफ़र आज भी जारी है

– उनकी तमन्ना है कि उनके जीते जी संस्कृत देश की राष्ट्रभाषा, जन भाषा और अदालती भाषा बने

आज के दौर में माथे पर त्रिपुंड और तिलक धारण किए हुए अदालत में जज के सामने एक वकील को संस्कृत में बहस करते देखना कईयों के लिए हैरतअंगेज़ घटना हो सकती है. लेकिन बनारस जिला अदालत के लिए यह एक सामान्य-सी बात है. जी हां, यहां दुनिया की सबसे प्राचीन और देवभाषा कही जाने वाली संस्कृत को राष्ट्रभाषा, जनभाषा और अदालती भाषा का दर्ज़ा दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के एक वकील ने एक अनोखी मुहिम छेड़ रखी है. देशभर की अदालतों में वकील जहां हिंदी या अंग्रेजी भाषा का प्रयोग करते हैं वहीं, बनारस में यह वकील सारे अदालती कामकाज केवल और केवल संस्कृत में ही करता है.

 
दुनिया में इक़लौता,बनारस का वकील,संस्कृत में वकालत
वकील, संस्कृत भाषा और अदालत (प्रतीकात्मक)


हम सभी जानते हैं कि भाषा के द्वारा ही अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त किया जाता है. इसके बिना हम बड़े स्तर पर सूचनाओं-जानकारी का आदान-प्रदान करना तो दूर अपने आसपास के लोगों से भी सही तरह से जुड़ नहीं सकते हैं. हम यह भी जानते हैं कि दुनिया की क़रीब 69०० भाषाओँ में कुछ ही लोकप्रिय हैं, इसी तरह, भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज़ 22 भाषाओँ में संस्कृत का स्थान दुनिया में सबसे कम बोली जाने वाली भाषा के रूप में है, जबकि यह सबसे प्राचीन और कई भाषाओँ की जननी मानी जाती है. इसे देवभाषा अथवा सुरभारती भी कहा जाता है.

विदित हो कि ग़ुलामी के दौर में संस्कृत में लिखे ग्रंथ और दुर्लभ ज्ञान के स्रोत, बड़े पैमाने पर जलाये जाते थे. उन्हें ढूंढ-ढूंढ कर नष्ट किया जाता था. संस्कृत में बोलने वालों का उत्पीड़न होता था. इसका मक़सद था भारतीय संस्कृति को ख़त्म करना. मगर सैकड़ों साल बाद आज़ाद भारत में भी, ज़्यादा परिवर्तन नहीं आया. संस्कृत के साथ शुरू से ही भेदभाव और उपेक्षा होती रही है, जबकि अंग्रेजी और उर्दू को बढ़ावा दिया जाता रहा है. इन्हीं कारणों और देश की संस्कृति तथा संस्कृत से अपार प्रेम के चलते भारत की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले वाराणसी या बनारस के वकील यहां की अदालत में संस्कृत भाषा में अपनी वकालत के ज़रिए देश की जनता और सरकार को संदेश दे रहे हैं.

 
 
दुनिया में इक़लौता,बनारस का वकील,संस्कृत में वकालत
वाराणसी जिला न्यायालय 


यहां हम बात कर रहे हैं वरिष्ठ अधिवक्ता आचार्य श्यामजी उपाध्याय की. एडवोकेट श्यामजी उपाध्याय बनारस के जिला एवं सत्र न्यायालय में अपने सारे कामकाज संस्कृत में ही करते हैं. इनका वकालतनामा, शपथ पत्र, प्रार्थना पत्र आदि सब संस्कृत में ही जमा होता है, और बहस के दौरान भी ये संस्कृत भाषा का ही प्रयोग करते हैं.

 
 

43 साल से लड़ रहे हैं संस्कृत में मुक़दमे 

श्यामजी उपाध्याय ने 70 के दशक की शुरुआत में हरिश्चंद्र महाविद्यालय से बेहतरीन अंकों के साथ अपनी एलएलबी की डिग्री प्राप्त की. उसके बाद वे कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे. 1978 में उन्होंने अपना पहला मुक़दमा संस्कृत भाषा में लड़ा और तब से उनका संस्कृत के साथ शुरू हुआ सफ़र आज भी जारी है.

 
 
दुनिया में इक़लौता,बनारस का वकील,संस्कृत में वकालत
क़ानूनी कार्य में व्यस्त श्याम जी उपाध्याय 


शुरुआत में संस्कृत भाषा में अपने कामकाज को लेकर श्यामजी को कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ा. कुछ लोग उनका मज़ाक भी उड़ाते थे. वे अपने मुवक्किल के कागज़ात संस्कृत में प्रस्तुत करते थे तो जज भी असहज अनुभव करते थे. मगर फिर धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य हो गया. उन्हें पहचान और सम्मान मिला. आज वाराणसी न्यायलय में कोई नया जज आता है, तो उसे श्याम जी उपाध्याय और संस्कृत में उनके कामकाज के बारे में पहले से जानकारी मिल जाती है, और कोई दिक्कत पेश नहीं आती है.


उल्लेखनीय है कि श्यामजी अपने मुवक्किलों को भी, केस के बारे में, संस्कृत में ही समझाते हैं. लोग उन्हें सम्मान देते हैं और इस बात पर गर्व करते हैं कि उनका वकील देवभाषा (ईश्वरीय या देवी-देवताओं की भाषा) में उनका केस लड़ रहा है.

श्याम जी उपाध्याय एक आपराधिक वकील यानी क्रिमिनल लॉयर हैं.
 
 

पिता के सपनों को पूरे करने की ली थी प्रतिज्ञा 

मिर्जापुर जनपद के पंडितपुर गांव के निवासी श्यामजी उपाध्याय बताते हैं कि उनके पिता संकटा प्रसाद उपाध्याय भी संस्कृतज्ञ (संस्कृत के जानकार, विद्वान) थे. संस्कृत-प्रेम के कारण वे हमेशा संस्कृत में ही संवाद करते थे. वे अपने परिवार या गांव-समाज में लोगों को जब कभी भोजपुरी या हिंदी में बात करते देखते-सुनते, तो उन्हें संस्कृत में बात करने और उसे प्रोत्साहित करने की सलाह देते थे.

 
 
दुनिया में इक़लौता,बनारस का वकील,संस्कृत में वकालत
डी डी न्यूज़ के वार्तावली कार्यक्रम में श्याम जी उपाध्याय 


श्यामजी उपाध्याय बताते हैं कि जब वे सातवीं कक्षा में थे, एक घटना हुई. एक दिन उनके पिता बहुत दुखी और निराश दिखाई दिए. वे कचहरी (अदालत) से लौटे थे. जब श्याम जी व उनके भाइयों ने इसका कारण पूछा तो वे बोले-


” कचहरी में हिंदी, अंग्रेजी और यहां तक कि उर्दू भी बोली जाती है, लेकिन संस्कृत नहीं. इससे मन में बहुत पीड़ा होती है. ”



 
श्याम जी के मन पर इस घटना का गहरा असर हुआ. उसी दिन उन्होंने प्रतिज्ञा ली कि अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए वे एक वकील बनेंगें, और अदालत में अपनी वकालत संस्कृत भाषा में ही करेंगें.
 
 

गुरू चाहते थे अध्यापक बनें श्यामजी

श्यामजी बताते हैं कि हाईस्कूल की शिक्षा पूरी कर उन्होंने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से बौद्ध दर्शन में आचार्य किया. उन दिनों संस्कृत के प्रसिद्द विद्वान और श्याम जी के गुरू प्रोफ़ेसर जगन्नाथ उपाध्याय चाहते थे कि वे (श्यामजी) भी एक अध्यापक बनें. उनकी बात रखने के लिए श्याम जी ने वहां एक साल तक पढ़ाया भी. लेकिन उनका मन नहीं मान रहा था. उनकी प्रतिज्ञा उन्हें बार-बार याद आती थी. साथ ही, उनकी इच्छा भी थी कि वे वकील बने. इसलिए, वे क़ानून के क्षेत्र में चले गए.


इसके लिए, अपने अध्यापन काल में ही श्याम जी ने अपने बड़े भाई प्रोफ़ेसर लालजी उपाध्याय जो कि अंग्रेजी भाषा में महारत रखते थे, उनकी मदद से अंग्रेजी का भी अध्ययन किया. इसके बाद उन्होंने वाराणसी स्थित हरिश्चंद्र महाविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की. इसमें उन्हें बहुत अच्छे नंबर मिले थे. इससे उनका हौसला और भी मज़बूत हुआ, और वे कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे.
 
 
दुनिया में इक़लौता,बनारस का वकील,संस्कृत में वकालत
एडवोकेट आचार्य श्याम जी उपाध्याय 


बताया जाता है कि श्यामजी की पहचान-प्रसिद्धि उतनी ही पुरानी है जितनी कि संस्कृत भाषा में उनकी वकालत की प्रैक्टिस है. लेकिन भारतीय मीडिया को पिछले कुछ वर्ष पहले उनके बारे में पता चला, जबकि बीबीसी, लंदन ने सन 1975 में ही उनका इंटरव्यू दुनियाभर में प्रसारित कर दिया था.

दरअसल, उस वक़्त काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो. दूधनाथ चतुर्वेदी किसी मामले में वाराणसी न्यायालय में पेश हुए थे. उनका बयान होना था. वहां कार्यरत पीठासीन अधिकारी (न्यायाधीश) अली मोहम्मद, जो ख़ुद भी संस्कृत में स्नातकोत्तर थे और संस्कृत भाषा में रुचि रखते थे, उनके सामने श्याम जी ने वो बयान (दूधनाथ चतुर्वेदी का बयान) संस्कृत में करवाया था. यह अदालती कार्यवाही विदेशों में एक रोचक प्रसंग बन गई थी.

 

श्याम जी की दिनचर्या, कामकाज और उद्देश्य 

श्याम जी उपाध्याय सुबह जल्दी न्यायालय पहुंचते हैं. सबसे पहले वे प्रांगण स्थित अपनी सीट की चौकी (तख़्त) पर विराजमान शिवलिंग का जलाभिषेक व आराधना करते हैं. फिर, प्रसाद आदि बांटने के बाद ही मुवक्किलों से केस संबंधी चर्चा करते हैं, तथा दूसरे अदालती कार्य करते हैं.

 

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शिवलिंग का जलाभिषेक करते श्याम जी उपाध्याय 


संस्कृत में अपनी वकालत के साथ-साथ श्याम जी संस्कृत भाषा को आगे बढ़ाने के लिए 4 सितंबर को हर साल संस्कृत दिवस मनाते हैं. इस मौक़े पर वे 50 वकीलों को पुरस्कृत करते हैं. संस्कृत भाषा से अपने इस अनन्य प्रेम को लेकर श्याम जी भारत सरकार द्वारा ‘संस्कृत मित्र’ पुरस्कार से सम्मानित किए जा चुके हैं.


दूरदर्शन को अपने साक्षात्कार में, यह प्रश्न पूछने पर कि ‘कुछ लोग संस्कृत को कठिन एवं जटिल समझते या कहते हैं, इस बारे में उनका क्या ख़याल है’, श्याम जी उपाध्याय ने कहा (संस्कृत में जवाब का हिंदी अनुवाद)-

” संस्कृत भाषा अति सरल है, रस-समन्वित है. इसमें रुचि व आवश्यकता अनुभूत होनी चाहिए. ”



 
श्याम जी ने अदालत में अपने संस्कृत के प्रयोग की बाबत कहा-

” न्यायालयीय कार्यों में संस्कृत के कारण यदि कठिनाई होती है, तो अनुवाद किया जाता है.
न्यायालय में यदि न्यायाधीश कहते हैं कि भाषा के द्वारा कोई कठिनाई नहीं हो रही है, तो अनुवाद की आवश्यकता नहीं होती है. किंतु, आवश्यकता पड़ने पर अनुवाद कार्य किया जाता है अन्यथा नहीं. विशेष रूप से संस्कृत भाषा तो बोधगम्य होती ही है. ”



 
युवा वकीलों को संदेश देते हुए श्याम जी ने कहा-

” महाभारत में लिखा है- यन्नेहास्ति न तत क्वचित अर्थात सभी ज्ञान संस्कृत भाषा में ही सन्निहित हैं. संस्कृत भाषा हमारी राष्ट्रभाषा हो. संस्कृत भाषा हमारी जन भाषा का स्वरुप प्राप्त करे. इस देश में विधि एवं न्यायिक कार्य समेत सभी कार्य प्रतिदिन संस्कृत भाषा में ही होने चाहिए. ”



उल्लेखनीय है कि संस्कृत भाषा में वकालत कर एक वकील के रूप में, श्याम जी उपाध्याय ने अपने पिता की इच्छा तो पूरी कर दी है, लेकिन संस्कृत को अदालती एवं अन्य कार्यों की भाषा के रूप में देखने की उनकी ख़ुद की इच्छा अधूरी है. क्या भारत और भारतीयता में विश्वास रखने वाले सभी लोग ऐसा सोचते हैं?                    

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रामाशंकर पांडेय

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