पहेली से कम नहीं है नाक और होंठ के बीच की जगह, जानिए इसके नाम को लेकर गूगल भी भ्रमित क्यों है
हमारे शरीर के कुछ ऐसे अंग हैं जिनके बारे में आज तक हम अच्छी तरह से नहीं जान पाए हैं. यहां तक कि उनके सही नाम को लेकर भी एक राय नहीं है. फिलट्रम भी उन्हीं में से एक है, जिसको लेकर गूगल भी भ्रमित दिखाई देता है.

हमारी नाक और होंठ (ऊपरी होंठ) के बीच की जगह हमारे चेहरे का एक महत्वपूर्ण भाग है. विज्ञान के अनुसार यह हमारी अन्तर्निहित कंकाल संरचना का एक महत्वपूर्ण कारक है. मगर इसके नाम पर मतभेद है. इस कारण गूगल भी भ्रमित है, और इसका सटीक नाम और उसका सही अर्थ नहीं बता पाता है.

ज्ञात हो कि नाक और होंठ के बीच में जो समूचा (पूरा) क्षेत्र है उसे एर्गोट्रिड या एर्गोट्रिड फ्लैप कहा जाता है, जबकि उसी के बीच में या फिर यूं कहिये कि वर्मिलियन बॉर्डर (सिंदूरी रेखा) के ऊपर ठीक बीच (बीचो-बीच) वाले इसके हिस्से में एक खांचे या नाली जैसी (गड्ढानुमा या गहरा निशान) दो उर्ध्वार्धर रेखाओं से घिरी आकृति को फिलट्रम के नाम से जाना जाता है.
मगर विद्वानों में इस पर राय अलग-अलग है. कुछ लोगों का कहना है कि ऊपरी होंठ के ऊपर की त्वचा के पूरे क्षेत्र के लिए कोई शब्द नहीं है. केवल इसके मध्य (बीच के) के खांचेदार क्षेत्र को फिलट्रम कहा जाता है, जबकि कुछ लोग इन दोनों को एक ही बताते हैं. गूगल के पास भी इसका सही उत्तर नहीं है, और वह डिफॉल्ट रूप से इसके लिए (नाक और होंठ के बीच वाले हिस्से के लिए ‘फिलट्रम’ शब्द का प्रयोग करता है. ऐसे में, इस पर चर्चा आवश्यक है.
एर्गोट्रिड आख़िर है क्या?
विज्ञान या चिकित्सीय भाषा में नाक और होंठ के बीच के पूरे भाग को एर्गोट्रिड या एर्गोट्रिड फ्लैप के नाम से जाना जाता है. इसे मूंछ क्षेत्र (क्योंकि पुरुषों को यहीं मूंछें निकलती हैं, और महिलाएं यहां के रोयें साफ़ करवाती हैं), सफ़ेद होंठ, त्वचीय ऊपरी होंठ या लेबियल लेज भी कहा जाता है. विज्ञान के अनुसार यह एक नाजुक और संवेदनशील भाग है, जहां से संक्रमण की संभावना अधिक होती है.
दरअसल, इसी के नीचे या पीछे की ओर चेहरे की नस और कैवर्नस साइनस के बीच संचार होता है. ऐसे में, चेहरे से किसी प्रकार का संक्रमण कैवर्नस साइनस में फ़ैल सकता है और यहां थ्रोम्बोसिस (कैवर्नस साइनस थ्रोम्बोसिस) का कारण बन सकता है.
क्या होता है फिलट्रम, और क्या है इसका कार्य?
फिलट्रम या ओष्ठ खात को परिभाषित करें तो यह नाक और होंठ के बीच दो उर्ध्वार्धर रेखाओं से घिरी एक खांचेदार या नालीदार आकृति है, जो एर्गोट्रिड फ्लैप या एर्गोट्रिड क्षेत्र के बीचो-बीच स्थित होती है. यूं कहिये कि यह एक औसत दर्ज़े की प्राकृतिक दरार है, जो कई स्तनधारियों (थेरियन या नृपशु) में होती है. इसे म्युकोक्यूटेनियस, स्नौट-ट्रफ़, ह्वाइट रोल आदि नाम भी दिया गया है.

सौंदर्यशास्त्र में ओष्ठ खात या फिलट्रम को डिंपल (एक छोटा, हल्का गड्ढा, जो आकर्षण को बढ़ाता है) सुंदर घाटी, सुंदर नहर, आदि की उपमा दी गई है. कुछ लोगों ने तो इसे स्वादिष्ट पेय बताया है. वह जादुई पेय, जिसे महिलाएं चाटती हैं, या वहां अपनी जीभ रखती हैं जब वे उत्तेजित होती हैं.

विज्ञान के अनुसार फिलट्रम का निर्माण चेहरे की त्वचा के एक जगह सिमटकर बैठने के फलस्वरूप अतिरिक्त त्वचा के रूप में होता है. यानी फिलट्रम वह क्षेत्र है जहां भ्रूण के नव-निर्मित चेहरे के उत्तकों के विभिन्न भाग मिलते हैं, और गर्भावस्था की पहली तिमाही के अंत में एक साथ जुड़ जाते हैं. लेकिन यह प्रक्रिया अगर विफल हो जाती है, तो फांक होंठ (ऊपरी होंठ में छेद या उसका कटा हुआ होना) की समस्या हो सकती है. वहीं, ज्योतिष विज्ञान कहता है कि ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं द्वारा नियमों का पालन नहीं करने के कारण कुछ अन्य दुष्प्रभाव के साथ भ्रूण के चेहरे के उत्तकों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है. इससे वे ठीक से जुड़ नहीं पाते हैं और फांक होंठ (cleft lip) की या इस प्रकार की अन्य समस्या उत्पन्न होती है.
बहरहाल विशेषज्ञों के अनुसार फिलट्रम के कारण ही होंठ अधिक स्पष्ट और आकारयुक्त दिखाई देते हैं. साथ ही, इसकी मांसपेशियां चेहरे के भावों, जैसे मुस्कुराने और तेवर दिखाने या यूं कहिये कि होंठ हिलाने और मुंह बनाने के कार्य में शामिल होती हैं.

जानकारों के अनुसार फिलट्रम ऊपरी होंठ के खिंचाव वाली आवश्यकता वाली मौखिक क्रियाओं में अतिरिक्त त्वचा की आपूर्ति करने का काम करता है. यूं कहिये कि यह त्वचा के भंडार के रूप में रूप में है, जो मौखिक क्रियाओं के दौरान ऊपरी होंठ को अधिक गति और लचीलापन देता है अथवा इनमें सहायक होता है.

इसके अलावा भी फिलट्रम का कोई अन्य कार्य है या नहीं, स्पष्ट या ज्ञात नहीं हैं. वैसे भी ब्रह्मांड के अनेक रहस्यों में हमारा शरीर भी शामिल है. हम नहीं जानते हैं कि हमारे शरीर में कई चीजें क्यों हैं. मिसाल के तौर पर, हम नहीं जानते हैं कि दिल क्यों धड़कता है. मगर हम देख सकते हैं कि दिल धड़कता है तो क्या होता है, और दिल धड़कना बंद कर देता है तो क्या होता है. फिलट्रम के बारे में भी शायद यही कहा जा सकता है.
फिलट्रम के आकार-प्रकार के बारे में जानिए
फिलट्रम भी चेहरे की बाक़ी त्वचा की तरह सीधा नहीं होता है, मगर इसमें गहराई होती है. विशेषज्ञों के अनुसार फिलट्रम का स्वरुप आनुवंशिक रूप से निर्धारित होता है. की औसत लंबाई 11 से 15 मिलीमीटर के बीच होती है, जबकि चौड़ाई 4 से 5 मिलीमीटर तक होती है. लेकिन कोरियाई लोगों में फिलट्रम का आकार अपेक्षाकृत बड़ा होता है.

पुरुषों और महिलाओं के फिलट्रम के आकार में भिन्नता हो सकती है.
महिलाओं में 11-15 मिलीमीटर तक का फिलट्रम आदर्श माना जाता है, जो उन्हें जवान और हसीन दिखने में योगदान देता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि समय के साथ फिलट्रम की लंबाई बढ़ना उम्र बढ़ने का संकेत देता है. किशोरावस्था में फिलट्रम की लंबाई में वृद्धि चरम पर होती है, जबकि प्रारंभिक वयस्कता के दौरान इसमें कमी या गिरावट आती है. लेकिन 30 साल की आयु में फिर वृद्धि देखने को मिलती है.
विशेषज्ञों के अनुसार महिलाओं में लगभग 12 साल की उम्र में फिलट्रम के आकार में वृद्धि चरम पर होती है.
छोटे फिलट्रम वालों के दांत दिखाई देते हैं
जिन लोगों में फिलट्रम का आकार छोटा होता है उनके दांत (ऊपरी दांत) दिखाई देते हैं. मुस्कुराने पर तो दांत ज़्यादा स्पष्ट नज़र आते हैं. इसके विपरीत, बड़े फिलट्रम वाले लोगों के दांत मुस्कुराने पर भी नज़र नहीं आते हैं.

दरअसल, फिलट्रम नाक और होंठ (ऊपरी होंठ) के बीच का वह क्षेत्र है, जो दांतों (ऊपरी दांतों) को छुपाने में मदद करता है. लेकिन यदि यह छोटा है, तो होंठ और दांतों के बीच का अंतर कम हो जाता है. इससे दांत ज़्यादा नज़र आते हैं.
इसे यूं भी कह सकते हैं कि फिलट्रम के छोटा होने के कारण होंठों (दोनों होंठ) के बीच फ़ासला ज़्यादा हो जाता है और वे ठीक तरह से बंद नहीं हो पाते हैं, जिससे दांत दिखाई देते हैं, अथवा ज़्यादा दिखाई देते हैं. इसी कारण छोटे फिलट्रम वाले लोग जब हंसते हैं तो व्यंग्य के रूप में (एक मुहावरा) कहा जाता है कि वे दांत निपोर रहे हैं, या दांत फाड़ रहे हैं.
गहरा या कम गहरा फिलट्रम
किसी का फिलट्रम गहरा होता है तो किसी का कम गहरा होता है. गहरा फिलट्रम स्पष्ट दिखाई देता है, और आकर्षित करता है, जबकि कम गहरा फिलट्रम केवल अपनी उपस्थिति ही दर्ज करा पाता है.

विदित हो कि अन्य अंगों या प्रत्यंगों की तरह फिलट्रम का स्वरुप भी आनुवंशिक रूप से निर्धारित होता है. यानी माता-पिता के फिलट्रम के जैसा (कुछ उसी प्रकार का या हुबहू) फिलट्रम उनकी संतानों में होता है.

यहां ध्यान रखने योग्य बात यह है कि पुत्री को माता से और पुत्र को पिता से विरासत में मिले जीन चेहरे को अधिक प्रभावित कर सकते हैं.
अस्वीकरण: इस लेख में कही गई बातें सामुद्रिक शास्त्र, सामुद्रिक तिलक, भविष्य पुराण का स्त्री पुरुष लक्षण वर्णन, बहुत्रेयी, लघुत्रयी, और अन्य शास्त्रीय पुस्तकों सहित पत्रिकाओं, इंटरनेट वेबसाइट, पूर्व में किये गए कार्यों से विवरण एकत्र कर किया गया साहित्यिक और वैचारिक अध्ययन का निचोड़ हैं. खुलीज़ुबान.कॉम इसकी सौ फ़ीसदी (100%) प्रामाणिकता का दावा नहीं करता है. इसलिए पाठक इसे संक्षिप्त जानकारी मानकर अपने विवेक का प्रयोग करें.
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