रात सोने के लिए बनी है, जबकि दिन का वक़्त काम करने के लिए होता है.इस समय की सक्रियता तन और मन, दोनों के लिए प्राकृतिक और आवश्यक मानी गई है.मगर, शारीरिक प्रकृति, उम्र और कार्यों में भेद के कारण लोगों की ज़रूरतें भी अलग-अलग तरह की होती हैं.ऐसे में, उनकी दिनचर्या में अंत्तर नियमों में अपवाद या उसमें ढील की तरह है, जो उन्हें संतुलित व व्यवस्थित बनाये रखने में मददगार होता है.यही कारण है कि यह (दिन में सोना, नींद) सबके लिए समान रूप से प्रभावी होने बजाय किसी के लिए फ़ायदेमंद तो किसी के नुकसानदेह भी होता है.
जीवन की दो अवस्थाएं हैं- सुसुप्तावस्था व जाग्रत अवस्था.इनमें जाग्रत अवस्था को असल मायने में जीवित अवस्था माना जाता है, जबकि सुसुप्तावस्था जीते जी मरे हुए के समान या अधमरा होना है.चिर निद्रा का अर्थ हमेशा के लिए नींद में चले जाना, या मर जाना होता है.
मगर, यहां हम बात कर रहे हैं सामान्य नींद की, जो मनुष्य के स्वस्थ और कार्यशील रहने के लिए ज़रूरी है.इसके बिना एक हफ़्ते के भीतर इंसान पागल हो जायेगा, और 11 वें या 12 वें दिन तक तो उसका परलोक सिधार जाना तय है.
विशेषज्ञों की राय में आवश्यक और सामान्य निद्रा या नींद एक प्राकृतिक और बार-बार आने वाली वह स्थिति है, जिसमें संवेदी और संचालक गति लगभग निलंबित और लगभग सभी स्वैच्छिक मांसपेशियां निष्क्रिय हो जाती हैं.इस दौरान, शरीर और दिमाग़ को आराम मिलता है, और गतिविधियों के दौरान होने वाले नुकसान की भरपाई भी हो जाती है.
सरल शब्दों में कहें तो जब शरीर और मन कार्य करते-करते थक कर किसी भी विषय को लेने असमर्थ हो जाते हैं, तो नींद आती है.इस अवस्था में बाहरी उत्तेजना के प्रति कम प्रतिक्रिया के कारण ये फिर से रिचार्ज (पुनर्भरण) होकर या उर्जा अथवा शक्ति प्राप्त कर समर्थ बन जाते हैं, और जागने पर क्रियाशील रहते हैं.
यानि, भोजन ही की तरह सोना और जागना, दोनों शरीर और मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है.
पर, नींद का भी नियम है.कब सोना है और कब जागना है, यह तय है.अनियमित जीवनशैली या ग़लत दिनचर्या रोगों को निमंत्रण देती है.एक रोगी शरीर वाला व्यक्ति शांत व सुखमय जीवन व्यतीत नहीं कर सकता है.
दोषों के बीच असंतुलन का कारण बनता है दिन में सोना
आयुर्वेद के अनुसार, दिन में सोने से दोषों के बीच असंतुलन की स्थिति बनती है, और इससे रोग उत्पन्न होते हैं.यदि विभिन्न प्रहरों (लगभग 3 घंटे की अवधि का एक प्रहर होता है) या समयावधि की विशेषताओं को समझ कर उनका ठीक तरह से पालन किया जाये, तो कभी कोई समस्या नहीं होगी, और व्यक्ति सदा शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ और क्रियाशील बना रहेगा.
हमारे शरीर में दरअसल, तीन प्रकार की बायोलोजिकल एनर्जी या जैव उर्जा मौजूद हैं- वात, पित्त और कफ.इन्हें त्रिदोष कहा जाता है.ये दोष दिन के अलग-अलग समय में प्रभावी होते हैं.इनमें संतुलन बनाये रखने के लिए हमें कुछ सावधानियां बरतने की आवश्यकता होती है.
कफ दोष: सुबह 6 से 10 बजे के बीच शरीर में कफ का बोलबाला रहता है.इस समय सोने से कफ बढ़ता है है, जिससे कई प्रकार की परेशानियां पैदा हो सकती हैं.विशेषज्ञों के अनुसार, कफ वृद्धि डायबिटीज, अस्थमा, कैंसर, मतली और मोटापा का कारण बनती है.
ऐसे में, इस समयावधि में व्यायाम या कम से कम सैर ज़रूर करना चाहिए.इससे आलस नहीं होता है और शरीर के सभी अंग उर्जावान रहते हुए सुचारू रूप से काम करते रहते हैं.
सुबह का नाश्ता भी हल्का होना चाहिए.
पित्त दोष: सुबह 10 बजे से दोपहर 2 बजे के बीच पित्त दोष की प्रधानता रहती है.इस समय सोने से पित्त में और भी ज़्यादा वृद्धि होती है, जिससे कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं.धीरे-धीरे स्थिति बिगड़ती जाती है और त्वचा के रंग पर असर, शरीर में जलन, गर्मी, पसीने में बढ़ोतरी, दुर्गन्ध, मुंह, गला आदि का पकना, छाले, गुस्से में बढ़ोतरी, चक्कर आने व बेहोशी, थकान, नींद में कमी, ज़्यादा ठंडा पीने की इच्छा आदि के लक्षण साफ़ दिखाई देने लगते हैं.
विशेषज्ञ इस समयावधि को ‘पित्त-काल’ कहते हैं और मेटाबॉलिज्म या चयापचय के लिए सबसे उत्तम मानते हैं.उनके अनुसार, इस समय भोजन को पकाने और उर्जा में बदलने के लिए सबसे ज़्यादा सक्षम होता है.ऐसे में, इसमें (सुबह और शाम की अपेक्षा) भरपूर भोजन करना चाहिए, ताकि बाकी समय की कमी भी पूरी हो सके.
वात दोष: वात दोष का समय दोपहर 2 बजे से शाम के 6 बजे के बीच का होता है.दरअसल, इस समय यह उफ़ान पर होता है.महत्वपूर्ण बात यह है कि इसी समय नींद भी आती है मगर, सोने के बजाय थोड़ी चाय वगैरह पीने और अपने पसंदीदा कार्य या मनोरंजन वाली गतिविधियों को प्राथमिकता देनी चाहिए.
इस समय सोने से वात या वायु विकार उत्पन्न होने लगते हैं, जो आगे चलकर त्वचा, सिर के बालों,, नाख़ून, दांत, मुंह और हाथ पैरों में रूखापन, कंपन, रंग फीका पड़ना, हड्डियों के जोड़ों में ढीलापन, सुई चुभने जैसा दर्द, मुंह में कड़वापन, क़ब्ज़ आदि के लक्षणों के रूप में सामने आते हैं.
इस प्रकार, दिन के समय सोना ठीक नहीं है.इससे कफ तथा पित्त दोषों के बीच असंतुलन की स्थिति बनती है, जिससे हमारे अंग ठीक तरीक़े से काम नहीं कर पाते हैं, और कई प्रकार की अन्य समस्याएं उत्पन्न होने लगती है.लेकिन, आयुर्वेद सेहतमंद लोगों को सिर्फ़ गर्मी के दिनों में (सर्दियों में नहीं) दोपहर में हल्की नींद या झपकी (पावर नैप) लेने से मना नहीं करता है.यह यूं कि गर्मियों में रातें छोटी होती हैं, जिससे हम अच्छी तरह नहीं सो पाते हैं.इस कमी को पूरा करने के लिए पावर नैप ले सकते हैं, ताकि तरोताज़ा महसूस कर सकें.
लेकिन ध्यान रहे, पावर नैप या छोटी नींद का समय अधिकतम 30 मिनट का होता है.इससे अधिक सोना ठीक नहीं माना जाता है.इसलिए, दिन में सोने वालों को अलार्म लगा लेना चाहिए.
इसके आलावा, आयुर्वेद बताता है कि किन लोगों को दिन में सोने (हल्की नींद लेने) से फ़ायदा हो सकता है और किनको नुकसान हो सकता है.
दिन में सोने का फ़ायदा किन लोगों को है?
छात्र: छात्र लगातार पढ़ाई करते रहते हैं.इससे उनका शरीर और दिमाग़, दोनों थक जाते हैं.ऐसे में, वे बीच में हल्की नींद ले लेते हैं, तो तरोताज़ा होकर अध्ययन फिर से जारी रख सकते हैं.
गायन-वादन से जुड़े लोग: गायन-वादन का कार्य करने वाले लोगों में वात दोष के असंतुलन की संभावना ज़्यादा रहती है.ऐसे में, उनका बीच में झपकी लेना ठीक रहता है.
श्रमिक: श्रमिक या मज़दूर, जो कड़ी मेहनत व भारी काम करते हैं उन्हें सोने का फ़ायदा होता है.इससे उनकी थकान कम होती है, और शरीर फिर से पूरा सक्रिय हो जाता है.
बुजुर्ग: वृद्धावस्था में शरीर जल्दी थक जाता है.इसलिए, एक समयावधि के बाद या बीच में थोड़ा सो लेना बुजुर्गों के लिए फ़ायदेमंद ही होता है.उन्हें फिर से ज़रुरी उर्जा प्राप्त हो जाती है.
सर्जरी करा चुके लोग: जिनकी सर्जरी हुई है, उन्हें सोने से फ़ायदा होता है.विशेषज्ञ बताते हैं कि इससे इलाज की प्रक्रिया मजबूत होती है.
वात असंतुलन से प्रभावित लोग: जो वायु विकार से प्रभावित हैं, उन्हें सोने से फ़ायदा होता है.उनकी पाचन क्रिया ठीक रहती है.
क्रोधी स्वाभाव के लोग: तुनुकमिजाज़ व गुस्सैल क़िस्म के लोगों को सोने से दिलोदिमाग़ को क़ाबू रखने में मदद मिलती है.
दुखी व अवसादग्रस्त लोग: मानसिक दबाव व ग़म में डूबे लोगों के लिए सोना अच्छा होता है.इससे उन्हें ग़म और दर्द भुलाने में मदद मिलती है, तन-मन को आराम मिलता है.
वज़न बढ़ाने वाले लोग: दिन में, और ख़ासतौर से खाना खाने के बाद सोने से शरीर में फैट या वसा का संचय होता है, जिससे वज़न या मोटापा बढ़ता है.कमज़ोर व ज़्यादा दुबले पतले लोगों के लिए यह अधिक हितकारी होता है.
सूमो पहलवान यही करते हैं.
दिन में सोने का नुकसान किन लोगों को है?
मधुमेह से पीड़ित लोग: जिन्हें डायबिटीज की समस्या है, उन्हें दिन में सोने से बचना चाहिए.दिन में सोने से ब्लड शुगर या रक्त शर्करा के स्तर में बढ़ोतरी होती है.इससे उन्हें फिर दवा की अतिरिक्त ख़ुराक (एक्स्ट्रा डोज) लेनी पड़ सकती है.
तैलीय खाना खाने वाले लोग: ज़्यादा तैलीय खाना (ऑयली फ़ूड) खाने वाले लोगों को दिन में सोने से परहेज़ करना चाहिए.इससे ब्लोटिंग यानि, पेट फूलने, गैस, बदहज़मी वगैरह की दिक्क़त पैदा हो सकती है.
तैलीय पदार्थ लेने के बाद टहलना ज़रूरी होता है.
मोटापे से ग्रसित लोग: मोटापे की समस्या से ग्रसित लोग दिन में सोकर मोटापा को और बढ़ाते हैं.इससे लोगों को बचना चाहिए.
वज़न घटाने वाले लोग: जो अपना वज़न घटाना चाहते हैं, या इसके लिए कोशिश कर रहे हैं, उन्हें दिन में नहीं सोना चाहिए.दिन में सोने से उनकी सारी कोशिशें बेकार साबित होंगीं.
दिन में सोने को लेकर हिन्दू धर्मग्रंथों में क्या कहा गया है, जानिए
आयुर्वेद हो या मेडिकल साइंस, या फिर कोई अन्य चिकित्सा पद्धति (पैथी), सभी बताते हैं कि दिन में सोने से ठंड में वृद्धि, बुखार, मोटापा, गले से संबंधित रोग, मतली, उल्टी, याददाश्त में कमी, हड्डियों व त्वचा संबंधी रोग, सूजन, इंद्रियों में कमज़ोरी, कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली जैसी समस्याएं हो सकती हैं.लेकिन, इस बारे में हिन्दू धर्मग्रन्थ या शास्त्र क्या कहते हैं, वह भी जानना चाहिए.
हिन्दू धर्मग्रंथों में केवल रात में ही सोने की बात कही गई है, दिन में सोने को अनुचित एवं अशुभ बताया गया है.कहा गया है कि दिन में सोने वाले लोगों को देवी-देवताओं का आशीर्वाद नहीं मिलता है, और न ही उनके घरों में लक्ष्मी निवास करती हैं.
साथ ही, लक्ष्मी उनसे भी रूठ जाती हैं, जो सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त के समय सोते हैं.हालांकि गर्भवती स्त्री, शिशु, बीमार व्यक्ति और बुजुर्गों के साथ ऐसा नहीं है.इनके बारे में कहा गया है कि ये दिन में किसी भी समय सो सकते हैं, इन्हें कोई दोष नहीं लगता है.
नारदपुराणं (पुर्वार्धः/अध्याय: 25) में स्पष्ट कहा गया है- ‘दिवास्वापं च वर्जयेत्’ अर्थात् ‘दिन में शयन करना उचित नहीं है.’
ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार, दिन में तथा सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सोने वाला मनुष्य रोगी और दरिद्र हो जाता है.सूर्यास्त के एक प्रहर (या पहर, जो करीब 3 घंटे का होता है) के बाद ही सोना चाहिए, जबकि ब्रह्मकाल (सुबह 4 से 5 बजे के बीच का समय) या ब्रह्म मुहूर्त में बिस्तर छोड़ देना चाहिए.
इसका कारण यह बताया गया है कि सूर्योदय के पहले और सूर्यास्त के समय प्रकृति के शुद्धतम रूप का आनंद लेने के लिए सभी देवी-देवता पृथ्वी पर भ्रमण करते हैं.ऐसे में, इस समय जो मनुष्य सोता है वह उनकी कृपा या आशीर्वाद से वंचित रहते हुए रोग और दुर्भाग्य ही प्राप्त करता है.अतः आलस छोड़ दिन के समय मनुष्य को कर्म पर ध्यान देना चाहिए.