इतिहास

'रग रग हिन्दू मेरा परिचय' की रचना अटलजी ने किशोरावस्था में ही कर डाली थी!

Don't miss out!
Subscribe To Newsletter
Receive top education news, lesson ideas, teaching tips and more!
Invalid email address
Give it a try. You can unsubscribe at any time.
भारत में अब तक कई प्रधानमंत्री हुए.सब की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं.अपना एक खास परिचय है.मगर, एक ऐसा व्यक्ति भी सत्ता के शिखर पर घंटी बजाता है, प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुआ, जो बचपन से ही शब्दों को पिरोने-सजाने की अद्भुत कला में मौजूद था.उसका विशाल और शक्तिशाली कवि ह्रदय नीरस और बेरंग राजनीति में भी रस और रंग भर देता था।
 
 
'हिन्दू तन मन, हिन्दू जीवन, अटलजी की कविता
वह व्यक्ति अटल बिहारी ब्लॉग.बहुमुखी प्रतिभा का धनी.कला और राजनीति का संगम था। एक शिक्षक और सिद्धहस्त कवि-पुत्र अटल को काव्य-रचना के गुण विरासत में मिले थे। अटल जी ने दसवीं की शिक्षा के दौरान ही एक अद्भुत कविता लिखी थी। दी थी. वह कविता है- ‘रग रग हिन्दू मेरा परिचय’, जिसका मान्यता नहीं है, दुनिया में करोड़ों लोग पसंद करते हैं और गुणगान करते हैं।
 
सूचनाओं के अनुसार, अटल जी की यह कविता अटल जी और राजीव लोचन अग्निहोत्री के संपादक निकली मासिक पत्रिका ‘राष्ट्रधर्म’ के प्रथम अंक के प्रथम पृष्ठ पर 31 अगस्त, 1947 को रक्षाबंधन के दिन प्रकाशित हुई थी।
 
‘परिचय’ शीर्षक से यह रचना ‘मेरी इक्यावन कवितायेँ’ में संग्रहित है-
 
मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार|
डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूं जिसमें नचता भीषण संहार|
रणचंडी के अपतृप्त पृष्ठ, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास|
मैं यम की प्रलयंकर कहूं, जलते मरघट का धुआंधार|
फिर अन्तरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दू मैं|
यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय !
 
मैं आदि पुरुष, निर्भयता का वरदान लिए आया भू पर |
पय पीकर सब मरते आए, मैं अमर हुआ लो विष पी कर|
अधरों के पत्ते बुझाई है, पीकर मैंने वह आग प्रखर|
हो जाती दुनिया भस्मसात, बोली पल भर में ही छूकर|
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने शुरू किया मेरा पूजन|
मैं नर, नारायण, नीलकंठ बन गया न इस में कुछ संशय|
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय !
 
मैं अखिल विश्व का गुरू महान, देता हूँ विद्या का अमरदान|
मैंने दिखलाया मुक्ति-मार्ग, मैंने सीखाया ब्रह्मज्ञान|
मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर|
मानव के मन का अज्ञान, क्या कभी सकारात्मक फ़्लूट के सामने?
मेरे स्वर नभ में घर-घर, सागर के जल में छहर-छहर|
इस कोने से उस कोने तक, कर सकते हैं जगती सौरभमय|
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय !
 
मैं तेजपुंज, तमलीन जगत में मैंने प्रकाश डाला|
जगती का रच कर विनाश, कब चाहता है निज का विकास?
शरणागत की रक्षा की है, मैं अपना जीवन दे कर|
विश्वास नहीं आता तो साक्षी है यह इतिहास अमर|
यदि आज शरीर के खण्डहर, सदियों की नींद से जगकर|
गुंजार उठे उंचे स्वर से ‘हिन्दू की जय’ तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय !
 
दुनिया के वीराने पथ पर जब-जब नर ठिठक जाता है|
दो आंसू बचे हुए पाए गए जब-जब मानव सब कुछ खो गए|
मैं आया तभी द्रवित होकर, मैं आया ज्ञानदीप ले कर|
भूला-भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जग कर|
पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर|
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढ़ निश्चय|
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय !
 
मैंने छाती का लहू पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल|
मुझ को मानव में भेद नहीं, मेरा अन्तस्थल वर विशाल|
जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार|
अपना सब कुछ लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार|
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राजमुकुट|
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरीट तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय !
 
मैं वीर पुत्र, मेरी जननी के जगती में जौहर अपार|
अक़बर के पुत्रों से पूछो, क्या याद उन्हें मीना बाज़ार?
क्या याद उन्हें चितौड़ दुर्ग में जलने वाला आग प्रखर?
जब हाय सहस्रों माताएं, तिल-तिल जलकर हो गईं अमर|
वह बुझने वाली आग नहीं, रग-रग में उसे समाए हूं|
यदि कभी अचानक फूट पड़े विप्लव लेकर तो क्या विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय !
 
मैं स्वतंत्र कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम?
मैंने तो सदा शिक्षा देना अपने मन को गुलाम|
गोपाल-राम के नाम पर मैंने अत्याचार किया?
कब दुनिया को हिन्दू करने घर-घर में नरसंहार?
कब बतलाए काबुल में जा कर कितना मस्जिद तोड़ी?
भू-भाग नहीं शत-शतपुरुष के ह्रदय विजेता का निश्चय|
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय !
 
मैं एक बिंदु, निरपेक्ष सिंधु है यह मेरा हिन्दू समाज|
मेरा-इसका संबंध अमर, मैं व्यक्ति और यह समाज है|
इससे मैंने तन-मन पाया, इससे मैंने जीवन पाया
मेरा तो बस कर्तव्य यही, कर दूं सब कुछ इसके अर्पण|
मैं तो समाज की थाती हूं, मैं तो समाज का हूं सेवक|
मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता हूं बलिदान अभय|
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय ! 

सच के लिए सहयोग करें


कई समाचार पत्र-पत्रिकाएं जो पक्षपाती हैं और झूठ फैलाती है, साधन-संपन्न हैं। इन्हें देश-विदेश से ढेर सारा धन मिलता है। इनसे संघर्ष में हमारा साथ दें। यथासंभव सहयोग करें

रामाशंकर पांडेय

दुनिया में बहुत कुछ ऐसा है, जो दिखता तो कुछ और है पर, हक़ीक़त में वह होता कुछ और ही है.इस कारण कहा गया है कि चमकने वाली हर चीज़ सोना नहीं होती है.इसलिए, हमारा यह दायित्व बनता है कि हम लोगों तक सही जानकारी पहुंचाएं.वह चाहे समाज, संस्कृति, राजनीति, इतिहास, धर्म, पंथ, विज्ञान या ज्ञान की अन्य कोई बात हो, उसके बारे में एक माध्यम का पूर्वाग्रह रहित और निष्पक्ष होना ज़रूरी है.khulizuban.com का प्रयास इसी दिशा में एक क़दम है.

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button
Subscribe for notification

Discover more from KHULIZUBAN

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading