
बुढ़ापा तो एक दिन सबको आना है क्योंकि नए का पुराना होना और फिर उसका क्षय या नष्ट हो जाना प्रकृति का नियम है.लेकिन, समय से पहले इसके लक्षणों को पैदा होने से रोककर हम लंबे वक़्त तक सेहतमंद, जवान और ख़ूबसूरत बने रह सकते हैं, इसमें दो राय नहीं है.
बदलते दौर में कम उम्र में ही मुखमंडल पर ओज, तेज, आभा तथा सौन्दर्य का ह्रास, आंखों की रौशनी में कमी, बालों का सफ़ेद होना, झड़ना और गंजापन, त्वचा का लटकना, कमज़ोरी, थकान, खून की कमी और दांतों का कमज़ोर होना आदि लक्षण आम हो गए हैं.शारीरिक उर्जा के साथ मानसिक क्षमता भी जल्दी प्रभावित होने लगी है. इस सब का स्पष्ट संकेत है कि व्यक्ति बुढ़ापे की ओर बढ़ चला है.
मगर, कुछ दशकों पहले समस्या इतनी गहरी नहीं थी. उससे पहले दुश्वारियां और भी कम थीं, काफ़ी कुछ ठीकठाक और आसान था.
आयुर्वेद में मनुष्य की औसत आयु 120 साल बताई गई है. लेकिन, योग-प्राणायाम और संतुलित भोजन के दम पर वह 150 सालों से ज़्यादा जी सकता है.
प्राचीन काल के मानव की आयु 300 से 400 साल होने की बात पता चलती है. बताया गया है कि हमारे योगी-ऋषिगण 900 से 1000 साल तक जीते थे, और अपनी इच्छानुसार समाधि लेते थे.
लेकिन, जैसे-जैसे सनातन हिन्दू व्यवस्था बिगड़ती-बिखरती गई मानव जीवन भी छोटा और तकलीफदेह होता गया.आज हम विकट स्थिति के मध्यकाल में प्रवेश कर चुके हैं.
आगे यह और भी भयावह हुआ, तो हम संकटकाल में फंसे होंगें.
आयुर्वेद दरअसल, केवल औषधि विज्ञान नहीं है, बल्कि यह स्वस्थ जीवन का मार्ग दिखाने वाला एक सर्वश्रेष्ठ ज्ञान का स्रोत या शास्त्र भी है.
यह हमें दीर्घकाल तक सुंदर, सुखी, तनाव मुक्त और रोग मुक्त बनाए रखता है, यह पाश्चात्य जगत भी जान और समझ गया है, और अब इसी ओर अग्रसर है.
विशेषज्ञों के अनुसार, हमारा स्वास्थ्य हमारे तन और मन, दोनों के निरोगी होने पर निर्भर करता है, इसलिए यदि हम चाहते हैं कि जल्दी बुढ़ापा न आए और लंबे समय तक स्वस्थ, युवा और आकर्षक बन रहें, तो इन दोनों से संबंधित नियम और सावधानी के बारे में जानने और अपने जीवन में उतारने की ज़रूरत है.
कहते हैं कि मन ठीक रहता है, तो तन को ठीक रखना आसान होता है. ऐसे में, पहले मन के स्वास्थ्य की ओर ध्यान आकृष्ट करते हैं.
स्वस्थ मन, तन को स्वस्थ और सुंदर बनाए रखने में सहायक
कहते हैं कि बुढ़ापा दिमाग़ की खिड़की से आता है.यानि, हमारे शरीर पर हमारी सोच का प्रभाव पड़ता है. अगर हमारी सोच सकारात्मक है, तो हमारे शरीर पर इसका सकारात्मक, जबकि नकारात्मकता की अवस्था में नकारात्मक असर होगा.
यही वज़ह है कि कुछ लोगों को जवानी में बुढ़ापे का अनुभव होता है, जबकि उम्रदराज़ लोगों को बुढ़ापे के दौर में भी जवानी का मज़ा लेते देखा जाता है.
मगर, इसके लिए कुछ ज़रूरी चीज़ों पर गौर करने के साथ ही उन पर अमल करने की भी ज़रूरत होती है.
ध्यान की आवश्यकता: योगासन और प्राणायाम तन और मन, दोनों को स्वस्थ रखते हैं, व्यक्ति उर्जावान और वीर्यवान होता है.लेकिन यदि, कोई ये दोनों ही नहीं कर पाता है, तो उसे ध्यान ज़रूर करना चाहिए.
ध्यान यानि, एकाग्रता चिंता को नियंत्रित कर तनाव को कम करती है, जिससे मन में उर्जा का संचार बना रहता है और व्यक्ति शारीरिक शिथिलता की ओर भी अग्रसर नहीं होता है.
ध्यान भावनात्मक स्वास्थ्य और आत्म-जागरूकता को बढ़ावा देता है. इससे उम्र से जुड़ी स्मृति हानि को कम किया जा सकता है.
इससे स्वयं के साथ-साथ दूसरों के प्रति भी समझ जाग्रत होती है, और भावनात्मक लगाव या प्यार बढ़ता है.और प्यार भरा जीवन अपनी इच्छाओं या खुशियों के लिए किसी उम्र का मोहताज नहीं होता है.
हमेशा खुश रहना: हालांकि ध्यान हमें इतनी उर्जा दे देता है कि हम मन को काबू में रख सकें.फिर भी, हमेशा खुश रहना ज़रूरी है क्योंकि इसी से इंसान आबाद रह सकता है.
दरअसल, दुख में दुखी रहने का कोई लाभ नहीं होता है. इसलिए, दिल को मजबूत कर हर परिस्थिति का ख़ुशी-ख़ुशी सामना करना चाहिए.
इसके लिए गीत-संगीत या अन्य कोई मनोरंजन के साधन के माध्यम से हमेशा हँसते मुस्कुराते रहना चाहिए.
ईश्वर में आस्था: मंदिर जाने से एक अद्भुत शक्ति का संचार होता है, और आत्मबल में वृद्धि होती है. यहां अपने इष्ट की पूजा-अर्चना करनी चाहिए.
यदि पूजा नहीं करते हैं, तो कम से कम दो अगरबत्ती ही यहां अवश्य लगा देनी चाहिए. इसका बहुत लाभ मिलता है.
जानकारों के अनुसार, कुछ और न कर कोई व्यक्ति ईश्वर में आस्था के साथ केवल सुबह-शाम भजन-कीर्तन ही सुने, तो वह पर्याप्त उर्जावान बना रह सकता है.
आशावादी व्यक्ति ही मुश्किलों को मात दे सकता है.
अब हम तन की बात करते हैं.यह हमारी स्वस्थ जीवनशैली पर निर्भर करता है. इसे सांस्कारिक या उचित आहार-विहार से जोड़कर देख सकते हैं.इसमें वे तमाम तौर-तरीक़े आ सकते हैं, जिन्हें अपनाने से हम प्राकृतिक रूप से संतुलित व व्यवस्थित बने रहते हैं.
साथ ही, इसमें ऐसे भोज्य या खाद्य पदार्थ शामिल हो सकते हैं, जो ज़रूरी पोषक तत्वों की आपूर्ति कर हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार के संक्रमणों-विकारों से लड़ने में समर्थ बनाए रखने के साथ ढलती उम्र में हर प्रकार से सक्षम व सक्रिय बनाए रखने में मददगार होते हैं.
स्वस्थ तन बुढ़ापे को रखता है दूर, जवानी और ख़ूबसूरती रहती है बरक़रार
जिसका तन स्वस्थ है वह युवा है.युवा सुंदर है, और समर्थ भी है. अर्थात, युवावस्था में अवसर भी है, और क्षमता भी है.आसान शब्दों में कहें तो एक निरोगी काया अपने आप में परिपूर्ण होती है.इसमें प्राप्त करने की क्षमता होती है तो सुख सुविधाओं को भोगने की शक्ति भी होती है. ऐसे में, कोई व्यक्ति प्रफुल्लित व आनंदित रहते हुए नियमित व दीर्घकालिक जीवन व्यतीत करता है.
इसके विपरीत वृद्धावस्था या बुढ़ापे की अवस्था होती है, जिसे इंसान की उम्र का सबसे ख़राब दौर माना जाता है. इसे कोई जीना नहीं चाहता है क्योंकि इसमें आकर्षण रहित और कमज़ोर शरीर ऐसा मालूम होता है जैसे तमाम इच्छाओं के साथ जवानी की क़ब्र पर बैठा मातम मना रहा हो.
मगर, यह तो उस वक़्त का पछतावा है जब चिड़िया खेत चुग चुकी होती है, और जिसका कोई लाभ नहीं है. इसलिए, बुढ़ापे को हावी होने से पहले उसे दूर धकेलने की क़वायद ज़रूरी है.
अब तो आधुनिक वैज्ञानिक भी यह मानते हैं कि इंसान बुढ़ापे को लंबे वक़्त के लिए टाल सकता है. मौत का समय आने में देर कर सकता है. मगर, कैसे? जवाब है अच्छी सेहत से. अच्छे स्वास्थ्य से ऐसा मुमकिन हो सकता है.
विशेषज्ञों के अनुसार, स्वस्थ शरीर स्वस्थ जीवनशैली से ही संभव है. इसमें उचित रीति से उचित प्रकार का भोजन करना, विषाक्त पदार्थों से दूर रहना और शारीरिक गतिविधि जारी रखना यानि, व्यायाम आदि करना शामिल है.
सुविधा एवं सरलता के लिए इन्हें हम विभिन्न बिन्दुओं में व्यक्त कर सकते हैं.
उचित आहार लें, उपवास भी रखें
फ़ास्ट फ़ूड, जंक फ़ूड और कोल्ड ड्रिंक शरीर और दिमाग़ के समग्र विकास के लिए स्वस्थ, सात्विक और संतुलित फिर से अपनाने की ज़रूरत है. इसमें ताज़े व मौसमी फल, सब्जियां, साबुत अनाज और डेयरी जैसे खाद्य पदार्थों के साथ फलों व नींबू का रस, दही, शहद, लहसुन, रतालू, अखरोट, बादाम, सूखे मेवे, मखाना, गाय का दूध और घी आदि शामिल हो सकते हैं.
दरअसल, ये प्राकृतिक तो हैं ही, प्रचुर मात्रा में विटामिन और खनिज के स्रोत भी हैं, जो हमारे आतंरिक तंत्र को चलायमान रखने के साथ नई बीमारियों की रोकथाम और पुरानी बीमारियों के विकास के जोखिम को भी कम करते हैं.
इनमें, दो सबसे आवश्यक तत्व कैल्शियम और विटामिन डी की भी बहुतायत होती है, जो हड्डियों के घनत्व को बढ़ावा देते हैं.
एक बार गरिष्ठ (भारी) भोजन लेने के बजाय थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में तीन-चार बार अच्छी तरह चबाकर खाएं. इससे खाना पचने में आसानी होगी, और शरीर को भरपूर उर्जा भी मिलती रहेगी.
सनातन समाज में पुरातन काल से ही उपवास की परंपरा है. इसे व्रत और पूजा-पाठ से जोड़कर देखा जाता है. मगर, इसका जो वैज्ञानिक पहलू है, उसे आयुर्वेदाचार्यों ने हजारों साल पहले समझकर चिकित्सा शास्त्र में विशेष महत्त्व दिया.
आज आधुनिक विज्ञान भी यह मानता है कि शरीर के विभिन्न अंगों और तंत्रिका तंत्र को पर्याप्त पोषक तत्वों की आपूर्ति कर क्रियाशील रखने के साथ ही उन्हें समय-समय पर विश्राम भी देना ज़रूरी है.इससे उनका शुद्धिकरण होता रहता है.
कुछ साल पहले कुछ जानवरों पर हुए शोध में पता चला है कि भूखा रहने के कारण उनकी आयु में 25 फ़ीसदी तक की बढ़ोतरी हो जाती है.
लंदन स्थित इंस्टिच्यूट ऑफ़ हेल्थ एजिंग की बुढ़ापे को लेकर काम कर रही रिसर्च टीम के प्रमुख मैथ्यू पाइपर का मानना है कि चूहे के खाने में 40 फ़ीसदी की कटौती कर दी जाए, तो वह अपनी औसत आयु से 30 फ़ीसदी ज़्यादा वक़्त तक ज़िन्दा रह सकेगा.
इसलिए, हमें भी लंबी एवं रोग रहित आयु और यौवन प्राप्त करने के लिए सप्ताह में एक बार उपवास रखना चाहिए.इस दौरान फलों के रस या जूस आदि का सेवन किया जा सकता है. फल या अन्य चीज़ें फलाहार (व्रत के दौरान खाने पीने योग्य पदार्थ) के रूप में ली जा सकती हैं.
पानी को भी सही तरीक़े से पीयें
आयुर्वेद कहता है कि पानी को भी चबाकर पीना चाहिए.यानि, एक बार में ढेर सारा पानी गले में धकेलते हुए या गटागट पीने के बजाय घूंट-घूंट पीना चाहिए.
पानी हमेशा बैठकर पीना चाहिए.उकडू (घुटनों को छाती से लगाकर बैठना) बैठकर पीयें, तो सबसे अच्छा होगा.
इसके अलावा, पानी न तो कम और न ही आवश्यकता से अधिक मात्रा में पीना चाहिए.
विशेषज्ञों के अनुसार, ज़रूरत के हिसाब से पानी न लेने से क़ब्ज़, किडनी की समस्या, उर्जा के स्तर में कमी, त्वचा का रूखापन, सिरदर्द आदि की समस्या बनने लगती है.
दूसरी तरफ़, ज़रूरत से ज़्यादा पानी पीने के कारण किडनी पर बोझ पड़ता है यानी उसका कार्य भार बढ़ जाता है.
इससे वात, पित्त और कफ के दोष पैदा होते हैं जो कि बुढ़ापे की ओर ले जाते हैं.
हमेशा स्वच्छ एवं शुद्ध ही पीना चाहिए.
श्वसन क्रिया, शुद्ध वायु और प्राकृतिक आवेग को जानें
सांस लेने और छोड़ने को श्वसन क्रिया कहते हैं. लेकिन, इसका भी नियम है, यह कम ही लोग जानते हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, यदि ‘श्वास-प्रश्वास क्रिया’ की गति दीर्घ है, तो मनुष्य भी दीर्घायु होगा.यानि, सांस लेने और छोड़ने के दौरान समय का अंतर यदि अधिक है, तो व्यक्ति अधिक समय तक जीवित रहेगा.मिसाल के तौर पर, कछुए, व्हेल मछली, पीपल और बड के पेड़ के लंबे जीवन का रहस्य यही है.
आयुर्वेद में वायु को प्राण वायु कहा गया है. अर्थात वायु की शुद्धता पर ही जीवन की दीर्घता निर्भर है.इसलिए, हमें ज़्यादा से ज़्यादा पेड़-पौधे लगाना चाहिए, ताकि शुद्ध और पर्याप्त हवा मिलती रहे.
जहां तक प्रदूषण से बचाव की बात है तो कोरोना ने हमें सिखा दिया है कि बाहर निकलते समय मास्क का प्रयोग ज़रूरी है. दूषित हवा में अच्छा खा-पीकर और व्यायाम आदि करके भी निरोगी रहना कठिन है.
प्राकृतिक आवेग (प्रेशर) भी महत्वपूर्ण है, लेकिन अक्सर लोग इस पर ध्यान नहीं देते हैं. दरअसल, शरीर के अपशिष्ट पदार्थों- मल-मूत्र को बाहर निकालने के लिए हमारी मांसपेशियां ज़ोर लगाती हैं, जिसे प्राकृतिक आवेग कहते हैं. इसे रोकना नहीं चाहिए.
विज्ञान कहता है कि मल-मूत्र ज़बरदस्ती रोकने से हमारी किडनी और आंतों पर अनावश्यक दबाव पड़ता है, और यह बीमारियों का कारण बनता है.
छींक का मामला भी ऐसा ही है.छींक आने पर कभी रोकना नहीं चाहिए.यह ख़तरनाक़ होता है. यहां तक कि हमारी जान भी जा सकती है.
विशेषज्ञों के अनुसार, छींक का आवेग बहुत तीव्र होता है. इसमें पेट, छाती, डायफ्राम, वाकतंतु, गले के पीछे की और यहां तक आंखों से जुड़ी मांसपेशियां भी एक साथ मिलकर ज़ोर लगाती हैं. इसे रोकना अप्राकृतिक और अनुचित है. इसके गंभीर परिणाम हो सकते है.
भारतीय परिवारों में छींक आने पर बच्चों के सिर व पीठ थपकाकर ‘शतंजी’ बोलने की परंपरा रही है. ज्योतिष व पौराणिक शास्त्रों में इसे शुभ माना गया है.
मगर, ध्यान रहे, छींक आने पर तौलिया, गमछा या रूमाल आदि का प्रयोग अवश्य करना चाहिए क्योंकि इसमें हज़ारों की संख्या में विषाणु होते हैं, जो दूसरों को प्रभावित कर सकते हैं.
शारीरिक गतिविधि ज़रूरी है बुढ़ापे को दूर रखने के लिए
योगासन, प्राणायाम, व्यायाम, खेलकूद,, दंगल आदि शरीर को तो हृष्ट-पुष्ट बनाते ही हैं, मानसिक रूप से भी हमें जवान रहने को प्रेरित करते हैं. इनसे बेकार कोशिकाएं शरीर में इकठ्ठा नहीं हो पाती हैं जो कि बुढ़ापे की ओर ले जाती हैं.
मगर, ध्यान रहे अत्यधिक व्यायाम आदि भी ठीक नहीं होता है. जिम तो कतई नहीं. विशेषज्ञों की राय में, अत्यधिक व्यायाम या जिम की एक्सरसाइज से नींद न आने की समस्या, ह्रदय संबंधी समस्या और भूख न लगने जैसी परेशानियां पैदा होने लगती हैं.साथ ही, कोलेजन की मात्रा प्रभावित होती है, जिससे हड्डियां कमज़ोर होती जाती हैं और त्वचा बेजान होकर लटक जाती है. इससे बुढ़ापा जल्दी आ जाता है.
ऐसे में, योगासन, प्राणायाम और सामान्य व्यायाम सबसे बेहतर विकल्प हैं.इन्हें कहीं भी कर सकते हैं. लेकिन यह न कर पायें, तो नियमित रूप से सुबह-शाम सैर ज़रूर करें. यानी कम से कम दो किलोमीटर रोज़ाना पैदल चलें. इस प्रकार के अंग संचालन से ज़रूरी शारीरिक गतिशीलता बनी रहेगी, और सब कुछ ठीकठाक रहेगा.
इसके अलावा, बागवानी से लेकर अपने घर की साफ़-सफ़ाई, जैसे झाड़ू-पोंछे जैसे तमाम घरेलू काम, सीढियां चढ़ना, बच्चों के साथ खेलना आदि कई गतिविधियां हैं, जिन्हें हम रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में शामिल कर सकते हैं.
अच्छी व पूरी नींद बुढ़ापे को हावी नहीं होने देती
शारीरिक विकास व निरोगी काया के लिए आराम और पर्याप्त नींद ज़रूरी है. इसकी कमी मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक थकान का कारण बनती है. ऐसी स्थिति में, काम करने से शरीर पर, ख़ासतौर से हड्डियों और मांसपेशियों पर दुष्प्रभाव होता है जो कि बुढ़ापे की ओर ले जाता है.
विशेषज्ञों की राय में, जिस प्रकार शरीर को भोजन की आवश्यकता होती है, ठीक उसी प्रकार निद्रा भी ज़रूरी है. बच्चों व किशोरों को रोज़ाना 10-12 घंटे, वयस्कों व बुजुर्गों को 7-8 घंटे और गर्भवती महिलाओं को 8-10 तक पूरी नींद लेनी चाहिए.
मगर, आज के दौर में लोगों का रूटीन गड़बड़ा गया है.अधिकतर लोग पूरी नींद नहीं ले पाते हैं. कुछ लोग रात में जागते हैं और दिन में सोते हैं तो कुछ लोग रात और दिन, दोनों में सोते हैं. यह ठीक नहीं है. इससे स्वास्थ्य बिगड़ता है और फिर बुढ़ापा दबोच लेता है.
जिनकी नींद गड़बड़ है उन्हें योग निद्रा और ध्यान का सहारा लेना चाहिए.