पश्चिम बंगाल में अराजकता का माहौल है.वहां हिंसा व रक्तपात ज़ारी है.शायद ही कोई दिन ऐसा बीतता हो जब वहां होने वाली हिंसक झडपें मीडिया की सुर्खियाँ न बनती हों.वज़ह क्या है? क्यों बन गए हैं ऐसे हालात? कुछ विचारक इसे राजनीतिक वैमनस्य और प्रतिद्वंदिता से जोड़कर देखते हैं तो कुछ इसे इस्लाम के प्रसार के तौर पर मानते हैं और दलीलें देते हैं.जो भी हो लेकिन एक बात साफ़ है कि वहां कुछ भी ठीक-ठाक नहीं है और जिधर भी नज़र घुमाओ बर्बादी के ही मंज़र दिखाई देते हैं.अल्पसंख्यक का दर्ज़ा प्राप्त मुसलमान बहुसंख्यक होते जा रहे हैं और बहुसंख्यक रहे हिन्दू अल्पसंख्यक(कई जगहों पर) बन जाने के कारण पलायन को मज़बूर हैं.इस प्रदेश में कई ऐसे इलाक़े हैं जहां भारत के संविधान का नहीं बल्कि शरिया क़ानून चल रहा है.मुग़लिस्तान बनाने की मांग ज़ोर पकड़ रही है तथा इसको लेकर 2013 में हुए भयानक दंगों के दुहराए जाने की आशंका व्यक्त की जा रही है.
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पश्चिम बंगाल को मुग़लिस्तान बनाने की मांग को लेकर प्रदर्शन |
कुछ लेखकों-विचारकों के शोध और ख़ुफ़िया ज़ानकारी से ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिम बंगाल में निकट भविष्य में कोई बड़ी अनहोनी होने वाली है.शायद 1990 वाली,कश्मीर जैसी भयावह और दुखद.बताया जाता है कि इसको लेकर बाक़ायदा तैयारियां चल रही हैं जिनमें देश की आंतरिक और बाहरी ताक़तों के साथ राजनीतिक गठजोड़ के अलावा वहां का सरकारी तंत्र भी शामिल है,जिसे गहराई में जाकर विस्तारपूर्वक समझने की ज़रूरत है.
आतंकी संगठनों का ज़ाल
ख़ुफ़िया सूत्रों के मुताबिक,पश्चिम बंगाल में सक्रिय क़रीब आधा दर्ज़न देशी-विदेशी आतंकी संगठनों ने शहर से लेकर गांवों तक अपने ज़ाल बुन लिए हैं.चप्पे-चप्पे पर मदरसे,वहाबी मस्ज़िदें और बम-बारूद के कारख़ाने स्थापित किए जा रहे हैं.धर्म परिवर्तन,फ़साद और ज़िहाद पर पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है.कई ज़िलों में इनकी समानांतर सरकारें चल रही हैं जहां शरिया क़ानून लागू है.
ये संगठन मवेशियों और सोने की तश्करी के साथ मानव-तश्करी में भी शामिल हैं.
उल्लेखनीय है कि त्रिस्तरीय काम कर रहे आतंकी संगठनों के एक यूनिट द्वारा रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार से पहले बांग्लादेश लाए जाते हैं.वहां सक्रिय उनकी दूसरी यूनिट बांग्लादेशी ज़िहादी ज़त्थों के साथ उन्हें प्रशिक्षित कर पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती ज़िलों में उनकी घुसपैठ कराती है.अंततः,पश्चिम बंगाल में तैयार बैठी उनकी तीसरी यूनिट घुसपैठियों को पहले तो टीएमसी (ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस) के मेम्बर बनाती है,फ़िर आसानी से उनके वोटर कार्ड और आधार कार्ड वगैरह तैयार कर उन्हें वैध बना देती है.
ज्ञात हो कि उनमें अधिकतर तो यहीं या प्रदेश के दूसरे ज़िलों में बस जाते हैं जबकि कुछ,देश के अन्य हिस्सों जैसे असम,उड़ीसा,केरल,यूपी और बिहार के सीमांचल इलाक़ों में पहुंच जाते हैं.इनकी अनुमानित संख्या आज 5 करोड़ से भी ज़्यादा हो चली है.मगर,दुर्भाग्य ये है कि मुख्यधारा की मीडिया ऐसी ख़बरों को तरज़ीह नहीं देती.
ख़ुफ़िया सूत्रों के मुताबिक,कुछ विदेशी आतंकी हर साल तब्लीगी ज़मातियों के साथ धर्मप्रचार के बहाने भारत आते हैं जो वापस नहीं जाते और यहीं रह जाते हैं.लेकिन ज़्यादातर आतंकी जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल की सीमा से भारत में प्रवेश कर जाते हैं.ग़ौरतलब है कि,पिछले क़रीब एक दशक में पश्चिम बंगाल की सीमा के रास्ते सैकड़ों विदेशी आतंकवादी घुसपैठ करने में क़ामयाब हुए हैं.इसपर ममता सरकार ने पहले तो बहुत ना-नुकुर किया लेकिन क़ाफ़ी फ़ज़ीहत के बाद आंशिक रूप से सही किंतु ये मान लिया कि विदेशी आतंकियों ने घुसपैठ की है-
” बांग्लादेश की तरफ़ से साल 2014 में क़रीब 800 और साल 2015 में 659 विदेशी आतंकियों ने पश्चिम बंगाल की सीमा में प्रवेश किया.”
फ़रवरी,2018 में तत्कालीन सेनाध्यक्ष विपिन रावत ने भी सीमापार से घुसपैठ पर चिंता ज़ाहिर कर कहा था-
” हमारे पश्चिमी पडोसी के चलते योजनाबद्ध तरीक़े से प्रवासन चल रहा है.वे हमेशा कोशिश और यह सुनिश्चित करेंगें कि परोक्ष युद्ध के ज़रिए इस क्षेत्र पर नियंत्रण कर लिया जाए.”
तुष्टिकरण की नीति
चैतन्य-परमहंस-विवेकानंद और बंकिम-रविन्द्र-सुभाष की भद्र धरती बंगाल के बारे में शायद किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि आज़ाद भारत में एक दिन अराजकता और हिंसा का शिकार होकर वह दूसरी बार टूटने की क़गार पर पहुँच जाएगा.ये बंगाल का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि जिसे अंग्रेज़(1905 में)नहीं बांट सके उसे गांधी-नेहरु ने (1947 में एक साज़िश के तहत) तोड़ दिया.साज़िश का वो सिलसिला थमा नहीं और आज़ादी के बाद उनकी विरासत वाली कांग्रेस ने बचे-खुचे बंगाल (पश्चिम बंगाल) को भी खोखला किया.1977 से लेकर 2011 तक वामपंथी-माओवादी उसे हिंसाग्रस्त और आतंकिस्तान बनाने में लगे रहे.उसके बाद से अबतक ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस द्वारा जो विभाजनकारी और ख़ूनी खेल ज़ारी है वो भद्र प्रदेश को सिर्फ़ और सिर्फ़ मुग़लिस्तान बनाने वाला है,जिसकी तैय्यारी के साथ उसकी मांग ने भी ज़ोर पकड़ ली है.दरअसल,ये तुष्टिकरण का नतीज़ा है.मुस्लिम तुष्टिकरण का परिणाम.सत्ता-सुख के लालच में मातृभूमि से गद्दारी.बहुत बड़ा पाप.अक्षम्य.
तुष्टिकरण के दुष्प्रभावों के बारे में सर विंस्टन चर्चिल ने कहा था-
” एक तुष्टिकर्ता वह है जो मगरमच्छ को भोजन देता है और यह उम्मीद करता है कि वह उसे एक दिन निगल लेगा.”
लेकिन चर्चिल साहब को शायद ये पता नहीं था कि एक भ्रष्ट और अराजक राजनेता की न तो कोई नीति होती है और न धर्म.शायद इसीलिए कहा गया है-
” एक वेश्या जो,हर रात बिस्तर बदलती है,उसका भी धर्म हो सकता है,लेकिन एक राजनेता का कोई धर्म नहीं होता.”
दरअसल,पश्चिम बंगाल में,ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी ने कांग्रेसियों और वामपंथियों को भी पीछे छोड़ दिया है.ममता राज में वहां का मुस्लिम विशेषाधिकार-प्राप्त वर्ग है जबकि अन्य दूसरे और तीसरे दर्जे में आते हैं.मनमोहन सिंह ने तो सिर्फ़ एक बयान दिया था जबकि ममता ने व्यवहारिक रूप में ये साबित कर दिया है कि पश्चिम बंगाल के संसाधनों पर पहला अधिकार वहां के मुसलामानों का है.वो सरकारी सुविधाएं हों या सरकारी नौकरियां,पहले मुसलमानों को ही मिलती है.यही नहीं मुसलमानों के लिए अलग शिक्षण संस्थान खोले जा रहे हैं.मुस्लिम छात्र-छात्राओं को खासतौर से सायकिल,रेल पास और लेपटॉप बांटे जाने की योजना चल रही है.
अमरिकी पत्रकार और विचारक
जेनेट लेवी ने इसपर शोध कर कई सनसनीखेज़ खुलासे किए हैं.उन्होंने अपने लेख ‘
The Muslim Takeover of West Bengal‘( पश्चिम बंगाल का मुस्लिम अधिग्रहण) में कहा है-
” पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मेडिकल,टेक्निकल और नर्सिंग स्कूल खोले जा रहे हैं.इसके अलावा कई ऐसे अस्पताल बन रहे हैं जहां सिर्फ़ मुसलमानों के इलाज़ की व्यवस्था होगी.मुस्लिम छात्रों को मुफ़्त सायकिल से लेकर लेपटॉप तक बांटने की योजना पर काम चल रहा है.”
ख़ुदको सेक्यूलर दिखाने वाली ममता को सिर्फ़ इस्लाम क्यों नज़र आता है,बाक़ी क्यों नहीं? उनकी सरकार में सिर्फ़ इमामों को पेंशन मिलती है अन्य धर्मों के पुजारियों-सेवादारों को क्यों नहीं? दरअसल,ये एक ऐसा सवाल है जिसका ज़वाब ना तो ख़ुद ममता के पास है और ना ही मुख्यधारा की सेक्यूलर मीडिया के पास.
जेनेट लेवी बताते हैं कि अरब देशों के फंड से चल रहे क़रीब 10 हज़ार से ज़्यादा मदरसों,जहां सिर्फ़ और सिर्फ़ नफ़रत के पाठ के साथ दिलोदिमाग़ में आतंक के ज़ुनून भरे जाते हैं,उन्हें मान्यता देकर उनकी डिग्री को सरकारी नौकरियों के लिए अन्य योग्य संस्थानों से प्राप्त डिग्री के समकक्ष बना दिया गया है.
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वहाबी मदरसा जहां नफ़रत के पाठ पढाए जाते हैं |
ममता सरकार में तुष्टिकरण का एक और घिनौना चेहरा अलगाववाद-आतंकवाद के साथ राजनीतिक गठजोड़ के रूप में सामने आता है.पिछले कुछ वर्षों में ऐसा देखा गया है कि ममता की टीएमसी में दंगाइयों और आतंकी घटनाओं में संलिप्त आरोपियों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठा दिया जाता है जो,हिंसा और भय का माहौल पैदा कर चुनावों को प्रभावित करते हैं.इनकी दहशत ऐसी होती है कि टीएमसी के खिलाफ़ न तो कोई उम्मीदवार खड़ा हो पाता है और न ही वोटर (ख़ासतौर से हिन्दू वोटर) वोट डालने पोलिंग बूथों तक जा पाते हैं.
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वहाबी मुस्लिम नेता मौलाना बरक़ती के साथ मुख्यमंत्री ममता बनर्जी |
पिछले निकाय चुनावों में विरोधी दलों के उम्मीदवार डर के मारे अपना नामांकन भी दाख़िल नहीं कर पाए.इतना ही नहीं,उनके समर्थकों-कार्यकर्ताओं को चुन-चुनकर मारा जाने लगा,उनकी लाशें पेड़ पर लटकायी जाने लगीं.उनकी ख़ुद की ज़ानें जब खतरे में दिखीं तो भागकर उन्हें पड़ोसी राज्यों छुपना पड़ा.दहशतगर्दों को क़ामयाबी मिली और जिस बात की संभावना थी वही हुआ,टीएमसी के उम्मीदवार निर्विरोध चुन लिए गए.
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पुरुलिया ज़िले में बीजेपी कार्यकर्त्ता की पेड़ पर लटकी लाश |
आरोप के मुताबिक़,कट्टर इस्लामी समूहों की मांग पर उनके नुमाइंदों को,टीएमसी अब अपने प्रतिनिधि के रूप में संसद में भी भेज रही है.ये ऐसे लोग हैं जो राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आतंकी संगठनों से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं.कोई हवाला क़ारोबारी है तो किसी की देखरेख में प्रदेश में अवैध हथियार और गोला-बारूद के कारख़ाने चल रहे हैं.कुछ पर तो पिछले प्रमुख दंगों में सीधे शामिल होने के आरोप हैं और एनआईए तथा सीबीआई के रडार पर हैं.उनमें एक अहमद हसन इमरान भी हैं,जिनके बारे में जेनेट लेवी लिखते हैं-
” जून,2014 में ममता बनर्जी ने उस पाकिस्तानी हसन इमरान को भारतीय संसद के उपरी सदन में भेजा जिसके बारे में सुरक्षा एजेंसियों ने बार-बार आगाह करते हुए,हिन्दुओं के खिलाफ़ हुए भीषण दंगों का मास्टरमाइंड और आतंकियों का संरक्षक बताया था.”
जेनेट लेवी ने हसन इमरान के सिमी और शारदा घोटालों से सम्बन्ध बताये हैं –
हसन इमरान प्रतिबंधित कट्टरपंथी छात्र-समूह सिमी (स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया ) का संस्थापक सदस्य है.उसने क़लाम नामक एक चरमपंथी मैगज़ीन की स्थापना की और उसे संपादित भी किया.फ़िर उसे दैनिक अख़बार में बदलकर उस शारदा समूह को बेच दिया जिसके द्वारा किए गए घोटालों में टीएमसी के कई विधायक-सांसदों के साथ ख़ुद ममता बनर्जी पर भी शामिल होने के आरोप हैं.
जेनेट लेवी बताते हैं कि हसन इमरान के अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आतंकी संगठनों से संबंध हैं.वे लिखते हैं-
” हसन के स्थानीय ही नहीं कट्टर पाक़िस्तानी और बांग्लादेशी इस्लामी नेताओं के साथ भी घनिष्ठ सम्बन्ध हैं जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के खिलाफ़ मुहिम चला रहे हैं.
वह बांग्लादेश में सक्रिय आतंकी संगठन जेआई (ज़मात-ए-इस्लामी) से जुड़ा है तथा उसकी आतंकी गतिविधियों में उपयोग होने वाले धन के बंदोबस्त एवं आपूर्ति में भूमिका निभाता है.
वह पाक़िस्तान के आईएसआई से जुड़ा है जो हमास,मुस्लिम ब्रदरहूड,अमेरिकन इस्लामिक रिलेशंस काउंसिल (CAIR) के साथ मिलकर विश्वव्यापी आतंकी घटनाओं को अंज़ाम देने में मुख्य भूमिका निभाता है.आईएसआई और जेआई साथ मिलकर असम प्रदेश पर क़ब्ज़ा कर उसे भारत से अलग करने के लिए प्रयासरत हैं.
हसन इमरान उस सऊदी पोषित आतंकवादी समूह ज़मात-उल-मुज़ाहिद्दीन से भी जुड़ा है जो पश्चिम बंगाल में बम-निर्माण इकाइयों सहित एक बड़ा आधार है.उक्त समूह ने ही वहाबी धन का उपयोग कर पूरे राज्य में मस्ज़िदों का निर्माण कराया है.उन मस्ज़िदों की देखरेख व प्रबंधन भी वे ही करते हैं.उनके ही निर्देश पर सुबह से लेकर देर रात तक लाउडस्पीकर पर कानफोडू आवाज़ में अज़ान और क़ुरान के पाठ के अलावा तरह-तरह के उग्र नारे बुलंद किए जाते हैं.कोलकाता सहित राज्य के अन्य मुस्लिम बहुल ज़िलों में शुक्रवार के दिन नमाज़ (ज़ुम्मे की नमाज़) के लिए यातायत बंद कर दिए जाते हैं.”
उल्लेखनीय है कि सितंबर,2014 में आनंद बाज़ार पत्रिका ने भी अपनी एक रिपोर्ट में कहा था-
” टीएमसी सांसद अहमद हसन इमरान का बांग्लादेश के संगठन ज़मात-ए-इस्लामी से सम्बन्ध है.इमरान सिमी का पूर्व कार्यकर्ता है.उसके ज़रिए शारदा चिटफंड का पैसा आतंकवादी संगठन को गया.”
कुछ मीडिया सूत्रों के हवाले से ये भी पता चलता है कि अहमद हसन इमरान ममता के करीबियों में से एक है.बताया जाता है कि हसन इमरान दरअसल ममता और शारदा समूह के बीच की कड़ी रहा है और इसी कारण वह संसद तक पहुंचा.उसको लेकर ही ममता पर भी घोटाले में आरोप लगते रहे हैं.कहा जाता है कि शारदा ग्रूप ने ममता बनर्जी की बनाई एक पेंटिंग 1 करोड़ 80 लाख रुपए में खरीदी और इस तरह इस घोटाले से ममता बनर्जी को सीधे लाभ पहुंचा.सीबीआई द्वारा तमाम आरोपों की जांच की जा रही है.
गड़बड़ाया जनसांख्यिकीय समीकरण
पश्चिम बंगाल का जनसांख्यिकीय समीकरण गड़बड़ा गया है.यहां हिन्दुओं की आबादी जहां लगातार घटती जा रही है वहीं मुसलमानों की आबादी बड़ी तेज़ी से बढ़ी चली जा रही है.यह स्थिति सामान्य नहीं है और निश्चय ही गंभीर एवं चिंता का विषय है जिसपर तत्काल क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है वर्ना नतीज़े बुरे होंगें-हालत बेक़ाबू हो जाएंगें.वो दिन दूर नहीं जब पश्चिम बंगाल भी कश्मीर बन जाएगा और शायद मुग़लिस्तान भी.
किसी एक वर्ग-धर्म की आबादी अगर अप्रत्याशित और असामान्य तरीक़े से लगातार बढ़ती चली जा रही है तो ये समझ लेना चाहिए कि हालात सामान्य नहीं हैं,क़दम ग़लत दिशा में बढ़ चले हैं.इस्लाम का तो यही फ़ार्मूला है कि आबादी बढ़ाओ और हावी हो जाओ.दुनिया गवाह है कि 30 फीसदी होते ही मुसलमान पहले अपने लिए शरिया की मांग करते हैं और फ़िर धीरे-धीरे सारे मुल्क में इस्लाम थोप देते हैं.दुनियाभर के देशों के उदाहरणों का हवाला देते हुए ईसाई मिशनरी और प्रसिद्व लेखक
डॉ. पीटर हैमंड ने अपनी क़िताब ‘ग़ुलामी,आतंकवाद और इस्लाम’ (
Slavery,Terrorism and Islam) में बिल्कुल स्पष्ट लिखा है-
” मुस्लिम बहुल क्षेत्र में सामाजिक परिवर्तन इसलिए होते हैं क्योंकि मुसलमान इस्लामी धर्मग्रंथों में उद्भव के 1400 साल पुराने सिद्ध्यांत से बंधे हैं और यह मक्का से मदीना तक के मोहम्मद के प्रवास पर आधारित है.धार्मिक संस्करण या हिज़्री के तहत,इस्लामी विस्तारवाद और सभी ग़ैर-मुस्लिमों को शरीयत या इस्लामी सिद्धयांत को प्रस्तुत करना होगा.इस्लामी विस्तारवाद और उसके समकक्ष,ज़िहाद को पहले मेज़बान देश के भीतर विशेष दर्ज़ा और विशेषाधिकारों के लिए मुस्लिम मांगों के रूप में व्यक्त किया जाता है.मेज़बान देश में मुसलामानों का उच्च प्रतिशत ज़ल्द ही राजनीतिक प्रक्रियाओं,क़ानून प्रवर्तन,मीडिया और अर्थव्यवस्था के मुस्लिम नियंत्रण में तब्दील हो सकता है,साथ ही,आन्दोलन,भाषण और धार्मिक प्रथाओं की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकता है.माल और संपत्ति का विनियोजन,साथ ही दुर्बलता के साथ हिंसा भी हो सकती है.”
ग़ौरतलब है कि ऐसा भी नहीं है कि हमारे राजनेता शिक्षित और समझदार नहीं है.दरअसल,वे सबकुछ जानते और समझते भी है.फ़िर भी,वे आँखें बंद किए हुए हैं.इसका मत्लब साफ़ है कि अब जनता को जागना होगा,ये समझना होगा कि सोये हुए को तो जगाया जा सकता है लेकिन सोने(नींद में होने) का नाटक करने वालों का बस एक ही इलाज़ है सबक़ सिखा देना.उन्हें वहां पहुंचा देना,जहां से उन्होंने राजनीति की शुरूआत की थी ताकि दुबारा चुनावों में आकर अभिनय करने का साहस भी जुटा सकें,विश्वासघात कर सकें.
पश्चिम बंगाल के आंकड़ों पर नज़र डालें तो आज मुर्शिदाबाद में 47 लाख मुस्लिम और 23 लाख हिन्दू,मालदा में 20 लाख मुस्लिम और 19 लाख हिन्दू और उत्तरी दिनाजपुर में 15 लाख मुस्लिम और 14 लाख हिन्दू हैं.हिन्दू कभी यहां बहुसंख्यक हुआ करते थे,आज अल्पसंख्यक हो गए हैं.
जहां तक पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती उपज़िलों की बात है तो कुल 42 क्षेत्रों में से 3 में मुस्लिम 90 फ़ीसदी से अधिक हो चुके हैं जबकि 7 में 80-90 फ़ीसदी के बीच,11 में 70-80 फ़ीसदी तक,8 में 60-70 फ़ीसदी और 13 क्षेत्रों में मुस्लिमों की आबादी 50-60 फ़ीसदी तक हो चुकी है.
भारत के जनगणना आयुक्त की रिपोर्ट के अनुसार,पश्चिम बंगाल की 9.5 करोड़ की आबादी में आज 2.5 करोड़ से अधिक मुसलमान हैं.1951 की जनगणना में पश्चिम बंगाल की कुल आबादी 2.63 करोड़ में मुसलामानों की आबादी 50 लाख थी,जो 2011 की जनगणना में बढ़कर 2.50 करोड़ यानि क़रीब पांच गुना हो गई.
विभिन्न ज़िलों मुस्लिम आबादी निम्न प्रकार से है-
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विभिन्न ज़िलों में मुस्लिम आबादी |
ग़ौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में 2011 में हिन्दुओं की 10.8 फ़ीसदी दशकीय वृद्धि दर तुलना में मुलिम आबादी की वृद्धि दर दुगनी यानि 21.8 फ़ीसदी दर्ज़ की गई.
उपरोक्त दशकीय वृद्धि के मद्देनज़र अब थोड़ा इतिहास (आज़ादी से पहले के वक़्त) में चलते हैं तथा उस वक़्त के आंकड़ों को देखते हैं और फ़िर बंटवारे के बाद के आंकड़ों से उनकी तुलना कर देखते हैं कि मुस्लिम आबादी में क्या कुछ ख़ास निकलकर सामने आता है.
बंटवारे से पहले वर्ष 1901 से लेकर वर्ष 1941 तक के मुस्लिम आबादी आंकड़े देखिये-
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विभाजन से पहले पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी |
हम यहां देखते हैं कि पश्चिम बंगाल में साल 1901 में मुस्लिम आबादी कुल आबादी का 25.98 % थी.उसमें परिवर्तन हुआ तथा 1941 में आबादी 26.18 % रही.40 सालों(4 दशकों में) में दशांश यानि दशकीय वृद्धि दर्ज़ नहीं हुई.
अब बंटवारे के बाद के आंकड़े देखते हैं-
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विभाजन के बाद 2011 तक पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी |
हम यहाँ देखते हैं कि पश्चिम बंगाल में 1951 में मुस्लिम आबादी कुल आबादी का 19.85 % थी.बंटवारा होते ही महज़ तक़रीबन चार सालों (1947 से 1951 के बीच) में 27.26 % की दशकीय वृद्धि हो गई.उसके बाद 2011 तक के लगातार वृद्धि के साथ आंकड़े सामने हैं.इसे क्या कहेंगें?असली इस्लाम.दारूल हरब को दारूल इस्लाम बनाने की क़वायद.यानि ग़ैर-मुस्लिम देश को मुस्लिम देश बनाने का प्रयोग जो,तब से लेकर अबतक चल रहा है.
अब ज़रा हिन्दुओं की स्थिति भी देख लीजिये.बंटवारे के पहले की स्थिति और बंटवारे के बाद पहली जनगणना से लेकर साल 2011 तक के आंकड़ों (संयुक्त आंकड़े) पर नज़र डालते हैं-
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1901 से लेकर 2011 तक हिन्दू आबादी |
यहां जो आंकड़े सामने हैं उनमें तीन तरह की तस्वीरें दिखाई देती हैं.एक तस्वीर 1947 से पहले की जबकि दूसरी 1947 से लेकर 2011 तक की.मगर जो तीसरी तरह की तस्वीर है वो ये है कि 1901 से लेकर 2011 तक यानि 110 सालों में पश्चिम बंगाल में एक भी हिन्दू नहीं बढ़ा,उल्टे 0.3 % हिन्दू घट (कम हो गए) गए.अब इसे क्या कहेंगें? हैरतंगेज़.अविश्वसनीय.अकल्पनीय.एक बात और-ऐसे धर्म का बचना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.
दूसरी ओर,एक ऐसा तथ्य भी है जो अज़ूबा है और जेनरल नॉलेज से भी सम्बन्ध रखता है.सोच और परिवेश इंसान को दूसरे लोगों से कितना अलग कर देते हैं,ये समझने की बात है.कुल प्रजनन दर पर शोध जो 2001 में हुआ.दरअसल,कुल प्रजनन दर (टीएफआर) का मत्लब एक महिला को उसके समूचे प्रजनन काल में पैदा हुए बच्चों की औसत संख्या है.2001 की जनगणना पर आधारित एनएफएचएस के एक अध्ययन के मुताबिक,पश्चिम बंगाल के सभी ज़िलों में मुस्लिम महिलाओं की कुल प्रजनन दर बहुत ज़्यादा पाई गई.हिदू महिलाओं के लिए 2.2 टीएफआर (2.1 के स्तर से थोड़ा ही ज़्यादा) जबकि मुस्लिम महिलाओं में यह 4.1 होने का अनुमान लगाया गया था.
अंततः,बंगाल में बिगड़ चुके जनसंख्या के समीकरण को सारांश(संक्षेप)में यदि बयान किया जाए तो ये कहा जा सकता है कि बंटवारे से पहले बंगाल(अविभाजित बंगाल) में हिन्दू आबादी दो तिहाई(कुल आबादी का 2/3 हिस्सा) थी जबकि आज दोनों(बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल) को मिलाकर देखें तो मुस्लिम आबादी दो तिहाई हो चुकी है.
हिन्दुओं के साथ भेदभाव
पश्चिम बंगाल में मुसलमान अघोषित रूप में ही सही मगर विशेषाधिकार-प्राप्त वर्ग हैं.ईसाई,सिख व अन्य भी संरक्षित एवं सुरक्षित हैं क्योकि वे अल्पसंख्यकों में शुमार हैं.मगर एक हिन्दू ही ऐसा है जो न तो अल्पसंख्यकों में है और न संगठित ही.ऐसे में,व्यावहारिक रूप में वह,यहां न सिर्फ़ अधिकारों-अवसरों से वंचित है बल्कि असुरक्षित भी है.उपेक्षित और पीड़ित.इस दोहरी मार से बंगाली हिन्दुओं का जीवन नारकीय हो चला है.
अन्य अधिकारों की बात कौन करे,हिन्दू यहां अपने धार्मिक अधिकारों से भी वंचित हैं.ममता सरकार मुहर्रम पर जुलूस के बहाने रामनवमी के जुलूस पर रोक लगा देती है.दशहरा,दुर्गापूजा और हनुमान जयंती के अवसरों पर होने वाले समारोहों को न सिर्फ़ अक्सर प्रतिबंधित कर दिया जाता है बल्कि पुलिस-प्रशासन द्वारा हिन्दुओं पर दंडात्मक कार्रवाई की ख़बरें भी मीडिया में सुर्खियाँ बनती रहती हैं.
मुस्लिम-ईसाईयों के धार्मिक कार्यक्रमों में सरकार विशेष प्रबंध कर पूरी सुरक्षा प्रदान करती है लेकिन हिन्दुओं द्वारा आयोजित होने वाले यज्ञ,पूजा आदि कार्यक्रमों में बाधा उत्पन्न की जाती है,पांडालों को अपवित्र करने के अलावा कई बार हमले कर उन्हें क्षतिग्रस्त भी कर दिया जाता है पर पुलिस-प्रशासन कार्रवाई नहीं करता.
प्रदेश के मुस्लिम बहुल इलाक़ों में हिन्दू ठीक वैसे ही रहने को मज़बूर हैं जैसे बत्तीस दांतों के बीच जीभ रहती है.यहां पर्व-त्योहार ही नहीं अपने रीति-रिवाज़,पारिवारिक-सामाजिक संस्कारों के लिए भी उन्हें दो चार होना पड़ता है.मगर इससे भी ज़्यादा विचित्र स्थिति उन इलाक़ों में है जहां हिन्दू बहुसंख्यक हैं.वहां भी वे इस्लामि प्रपंच और ममता सरकार के अन्याय से मुक्त नहीं हैं.उल्लेखनीय है कि उन गांवों की संख्या भी कम नहीं है जहां बहुसंख्यक हिन्दू अपने धार्मिक अधिकारों से वंचित हैं.पूजा-अर्चना पर रोक है व पर्व-त्योहारों पर अंकुश है.बीरभूम ज़िले का कांगलापहाड़ी गांव भी उन्हीं में से एक है.यहाँ 300 परिवार हिन्दुओं के हैं जबकि सिर्फ़ 25 परिवार मुसलमानों के है फ़िर भी सालों से दुर्गापूजा पर रोक लगी हुई है.कारण भी सिर्फ़ ये है कि इससे मुसलमानों को ऐतराज़ है क्योंकि इसमें मूर्तिपूजा होती है जो,इस्लाम के खिलाफ़ है.ऐसे में,इस प्रदेश को क्या कहेंगें,पश्चिम बंगाल या मुग़लिस्तान?
विदित हो कि तुष्टिकरण और भेदभाव से जुड़े ऐसे ही कुछ मामलों में बवाल बढ़ा और बात अदालत तक पहुंची.अदालत ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए सख्त टिप्पणियां की.2017 में तो कलकत्ता हाईकोर्ट ने मूर्ति विसर्जन पर रोक को लेकर सरकार को यहां तक कहा था –
” यह एक समुदाय(मुसलमानों को) को रिझाने जैसा प्रयास है.इससे पहले कभी विजयादशमी के मौक़े पर मूर्ति विसर्जन पर रोक नहीं लगी थी.यह मनमानी तथा अल्पसंख्यक वर्ग को ख़ुश करने का सरकार द्वारा स्पष्ट प्रयास है.”
एक तरफ़ तो ‘जय श्री राम’ बोलने वालों की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ख़ाल खींचने की बात करती हैं तो दूसरी तरफ़ अल्लाह और उनके रसूल के अनुयायियों के लिए उनकी मोहब्बत छुपाये नहीं छुपती.मुस्लिमों के प्रति उनका विशेष प्यार सार्वजानिक रूप से दिखता है.वे धार्मिक समारोहों में क़लमा शहादत का पाठ करती नज़र आती हैं-
” अशक लहु व अशदुहु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु-हदु अल्लाह इल्लाह इल्लल्लाहु वह दहु ला शरी-”
तर्ज़ुमा: मैं गवाही देता/देती हूं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं.वह अकेला है,उसका कोई शरीक़ नहीं.और मैं गवाही देता/देती हूं कि (हज़रत) मोहम्मद सलल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह के नेक़ बन्दे और आख़िरी रसूल हैं.
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क़लमा शहादत पढ़तीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी |
बंगाल ही नहीं पूरी सनातन हिन्दू संस्कृति में विद्या की देवी सरस्वती के पूजन की परंपरा रही है और आज भी है.लेकिन,ममता सरकार ने शैक्षणिक संस्थानों में इसपर रोक लगा दी है.
पश्चिम बंगाल सरकार ने पाठ्यक्रम से रामधनु को हटाकर उसके स्थान पर रंगधनु कर दिया है.नीला (ब्लू) को आसमानी लिखा गया है.दरअसल,तीसरी कक्षा में एक क़िताब पढाई जाती है अमादेर पोरिबेस (हमारा परिवेश) जिसमें बच्चों को रामधनु यानि इन्द्रधनुष की ज़ानकारी दी जाती रही है.
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रामधनु को रंगधनु करने का आदेश पत्र |
उल्लेखनीय है कि बंगाल में इन्द्रधनुष को रामधनु ही कहा जाता है और इसका प्रयोग सबसे पहले साहित्यकार राजशेखर बसु ने किया था.लेकिन मुसलामानों को ख़ुश कर चंद वोट पाने के लालच में सरकार ने धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर सनातन हिन्दू संस्कृति पर चोट की है.इसका विरोध हुआ और राजनेताओं के अलावा शिक्षा से जुड़ी हस्तियों को ओर से भी प्रतिक्रियाएं आयीं लेकिन सरकार टस से मस नहीं हुई.
शिक्षाविद मुखोपाध्याय ने इसपर बड़ा स्पष्ट कहा-
” साहित्यकार राजशेखर बसु ने सबसे पहले रामधनु का प्रयोग किया था लेकिन अब एक समुदाय विशेष को ख़ुश करने के लिए क़िताब में इसका नाम रामधनु से बदलकर रंगधनु कर दिया गया है,जिससे कोई फ़ायदा नहीं होगा,हिन्दुओं को आहत करने के सिवा. ”
वहीं एक अन्य शिक्षाविद आनंद देव कहते हैं-
” रामधनु को रंगधनु करना अनुचित है.इससे बच्चों में भ्रम पैदा होगा तथा समझने में परेशानी होगी. “
रोहिंग्याओं-बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों ने ग्रामीण इलाक़ों में कई स्थानों पर हिन्दुओं के मंदिरों और श्मशान भूमि पर क़ब्ज़ा कर लिए हैं,जिस कारण लोग न तो पूजा-अर्चना कर पाते हैं और न शवों को उचित स्थान ही दे पाते हैं.शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं होती क्योंकि ऐसे इलाक़ों में पदासीन अधिकारी दूसरे धर्म विशेष से ताल्लुक़ रखते हैं और वे हिन्दुओं की पीड़ा नहीं सुनते.साथ ही,जो शिकायती मामले को उच्चस्तर पर ले जाने की कोशिश करता है उसे धमकाकर चुप करा दिया जाता है.किन्तु,यदि कोई साहस दिखाता है और अपने क़दम वापस नहीं लेता तो वह कट्टरपंथियों की हिंसा का शिक़ार हो जाता है.उसकी लाश किसी पेड़ से लटकी मिलती है.
राज्यभर में सरेआम गोहत्या होती है.कभी भी.कहीं भी.मंदिरों के आसपास भी.बेरोकटोक.ख़ून और मांस के लोथड़े इधर-उधर फैले रहते हैं.कुछ शरारती तत्व उन्हें हिन्दू धर्मस्थलों में भी फेंक आते हैं,मगर उसपर कार्रवाई तो दूर सुनवाई भी नहीं होती.सुनवाई-कार्रवाई हो भी कैसे जब स्वयं ममता बनर्जी ऐसे क्रियाकलापों का अपनी रैलियों व भाषणों में ख़ुलेआम समर्थन(अप्रत्यक्ष रूप से) करती नज़र आती हैं.
21 जुलाई,2016 को शहीद दिवस पर दिए अपने भाषण में ममता ने कहा-
” अगर मैं बकरी खाती हूं तो कोई समस्या नहीं है,लेकिन कुछ लोग गाय खाते हैं तो यह समस्या है.मैं साड़ी पहनती हूं तो समस्या नहीं है,लेकिन कुछ लोग सलवार-कमीज़ पहनते हैं तो यह समस्या है.हम धोती पहनना पसंद करते हैं लेकिन कुछ लुंगी पहनने को प्राथमिकता देते हैं.आप कौन हैं तय करने वाले कि लोग क्या पहनें और क्या खाएं? ”
18 दिसंबर,2016 को ममता ने राष्ट्रव्यापी बीफ़ विवाद पर अपने विचार रखते हुए हुगली में एक सभा के दौरान बीफ़ (गाय,बैल,भैस का मांसभक्षण) खाने के पक्ष में मुसलामानों को संबोधित करते हुए अपना समर्थन दोहराया-
” यह पसंद का मामला है.मेरा अधिकार है मछली खाना.वैसे ही,आपका अधिकार है मांस खाना.आप जो कुछ भी खाएं,बीफ़ या चिकन,यह आपकी पसंद है. ”
हिन्दुओं का पलायन
पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने से जो हालात बन गए हैं उनमें हिन्दू अब ख़ुदको सुरक्षित नहीं समझते और इसीलिए वे अपने मूल स्थान को छोड़कर अन्यत्र बसने को मज़बूर हैं.लगातार उनका अलग-अलग हिस्सों से पलायन हो रहा है.वे अपने ही राज्य में बेगाने हो गए हैं.
एक सर्वेक्षण के मुताबिक़,कुल 38 हज़ार गांवों में से 8 हज़ार गांव ऐसे हैं जिनमें एक भी हिन्दू नहीं बचा है.
उल्लेखनीय है कि भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती इलाक़ों में मुस्लिम कट्टरपंथियों के फ़साद और ज़िहाद के क़हर से हिन्दू पहले ही मुश्किल में थे,यदा-कदा उनके पलायन की घटनाएं सामने आती थीं.मगर जब से बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों ने भी वहां अपना डेरा जमा लिया है,हिन्दुओं के घरों,खेत-खलिहानों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों पर हिंसक हमले बढ़ गए हैं,लूटपाट की वारदातों में तेज़ी आई है.तोड़फोड़ और आगजनी के कारण हिन्दुओं का जीना दूभर हो गया है.न इज्ज़त महफूज़ है और न ज़ान-माल ही.मज़बूरन,अपना घर-बार छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं.उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
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हिंसा करने निकले ज़िहादी लोग |
सरकार और न्यायपालिका को छोड़िये,जनता का दर्द बताने वाली मुख्यधारा की मीडिया को भी उनसे परहेज़ है क्योंकि वह सेक्यूलर हैं जबकि ये मज़हबी मामला पुराना है.
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ख़तरे में हिन्दू : बचाव की गुहार |
दरअसल,पश्चिम बंगाल एक ऐसा राज्य है जहां वामपंथ का तक़रीबन 40 सालों तक दबदबा रहा.यहां पहले ईसाई मिशनरियों के चलते हिन्दू आबादी में बड़े पैमाने पर सेंधमारी हुई जिसके बाद मुस्लिम-वामपंथी गठजोड़ ने प्रदेश में हिदुओं के वज़ूद को मुसीबत में डाल दिया.उन्हें सुनियोजित रूप में निशाना बनाया जाने लगा.इसके बाद टीएमसी वज़ूद में आई और जब ममता राज आरम्भ हुआ तो उम्मीद थी कि हालात बदलेंगें लेकिन हुआ उसके ठीक उल्टा.ममता ने भी वही वामपंथी-तकनीक अपना ली.मुस्लिम-प्रेम और हिन्दू-विरोध की तकनीक,जो क़हर बनकर उनके अबतक के शासन काल में नज़र आ रही है.नतीज़तन,पश्चिम बंगाल अब ज़िहादी विस्तार वाले राज्यों की होड़ में सबसे आगे है.यहां जनसंख्या ज़िहाद चल रहा है.आबादी बढ़ाओ और हिन्दुओं को भगाकर उनकी संपत्ति और ज़मीनें क़ब्ज़ा लो.सदियों पुराना फ़ॉर्मूला परवान चढ़ रहा है.
सच पर कुछ लोगों को यक़ीन नहीं होता और सच्चे लेखन पर लेखक का धर्म तलाशा जाता है.लेकिन तुफ़ैल तो मुसलमान हैं.जी हां,तुफ़ैल अहमद,निर्भीक विचार रखने वाले एक मुस्लिम विद्वान.वे लिखते हैं-
” इस्लाम के मानने वाले एक बड़े वर्ग को मज़हब नहीं,अपने लिए एक क्षेत्र की तलाश है. “
वे इतिहास में ले जाकर अनुभवों को साझा करते हुए आगे कहते हैं-
” जब मक्का में ग़ैर-मुस्लिमों ने प्रोफेट मुहम्मद से कहा कि आप और हम मक्का में साथ रह सकते हैं-,किन्तु मोहम्मद साहब ने कहा यह नहीं हो सकता.आपका धर्म अलग है,रहन-सहन अलग है,हम साथ नहीं रह सकते,और यहीं से द्विराष्ट्र सिध्यांत का जन्म हुआ.वहां अब कोई जूं नहीं बचे,न कोई यहूदी बचे.ईरान में पारसी नहीं बचे,अफ़ग़ानिस्तान में,बलूचिस्तान में,पाकिस्तान में कहीं हिन्दू नहीं बचे.लाहौर सिक्ख महानगर था,अब नहीं है.वही क्रम आज भी ज़ारी है.कश्मीर में,कैराना में,केरल में और अब पश्चिम बंगाल में हो रहा है. ”
और चलते चलते अर्ज़ है ये शेर…
हुई हैं दैर ओ हरम में ये साजिशें कैसी,
धुआं सा उठने लगा शहर के मकानों से |
और साथ ही…
रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगें,
हर साज़िश के पीछे अपने निकलेंगें |
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