कुरान जलाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है या आस्था के प्रतीक का अपमान?
सलवान मोमिका के विरोध का तरीक़ा उकसाने वाला है, जो अतिवादियों के साथ-साथ उन लोगों पर भी असर डाल सकता है जो आज खुलकर इस्लाम के गुण-दोषों पर चर्चा कर रहे हैं, या करना चाहते हैं.
यह सच है कि इस्लाम के सताए लोग दुनियाभर में इसके खिलाफ़ मुखर हो रहे हैं.कोई कुरान में संशोधन की वक़ालत कर रहा है तो कोई इसे प्रतिबंधित करने की मांग के साथ अपनी मुहिम चला रहा है.अलग-अलग लोगों की सोच और अपने-अपने तरीक़े हैं.मगर, क्या कुरान के पन्ने फाड़ना और उसे जलाना कुरान और इस्लाम के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन का सही तरीक़ा है, एक बड़ा सवाल है.
किसी से असहमत होने और उसकी आलोचना करने का सबको अधिकार है, जबकि इन पर अंकुश लगाना या इनसे वंचित रखना वैयक्तिक अधिकारों का हनन है.इसी कारण लोकतांत्रिक व्यवस्था को सबसे अच्छी व्यवस्था माना गया है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है अपने तरीक़े से खाने, पहनने, रहने और बोलने-बतियाने के लिए.इसमें विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जाता है.मगर, इसकी भी एक एक सीमा होती है, जिसे लांघने का अधिकार किसी को भी प्राप्त नहीं हो सकता है.
किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दूसरे व्यक्ति के अपमान का हथियार या बेअदबी का लाइसेंस नहीं बन सकती है.
हालांकि इमें कोई शक़ नहीं है कि 1400 साल पुराना इस्लाम आज भी रत्ती भर भी बदला नहीं है, बल्कि और भी साधन-संपन्न और मजबूत होकर कई तरह के नए खतरों के साथ यह 21 वीं सदी को फिर से 7 वीं सदी की ओर धकेलकर ले जाने को बेताब है जिस प्रकार की ‘समय यात्रा’ या ‘टाइम ट्रेवल’ की अवधारणा है.
इसको लेकर दुनियाभर में जगह-जगह जिहादी पॉकेट बने हुए हैं, जिहादी पौध हैं, जिन्हें खाद-पानी देने वालों की कमी नहीं है.कई विश्वव्यापी संगठन प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इसके लिए कृत संकल्प हैं.मक़सद दारुल इस्लाम को और मजबूत और दारुल हरब को दारुल इस्लाम बनाना है.
मगर, बदलते परिवेश में लोगों में जागरूकता भी आ चुकी है.इस्लाम के बाहर ही नहीं, इसके भीतर से भी स्वर तेज हो रहे हैं.एक्स-मुस्लिमों की तो जैसे बाढ़ सी आ गई है.
लोग अब अपने हिसाब से जीना चाहते हैं.वे अपनी पसंद और पूरी आज़ादी के साथ ऐसे माहौल में, या उस उन्मुक्त वातावरण में सांस लेना चाहते हैं, जिसकी इस्लाम में सख्त मनाही है.
फिर, कुर्द तो बहुत ज़्यादा सताए गए लोग हैं; राज्यविहीन और बेघर भी हैं, जिनके अंदर काफ़ी ग़ुस्सा, नफ़रत और बदले की भावना भरी हुई है.
कुरान जलाने वाला सलवान मोमिका भी कुर्द है.
फिर भी, विरोध का उसका तरीक़ा जायज़ नहीं कहा जा सकता है.यह ग़ैर-लोकतांत्रिक और असामाजिक माना जाएगा.
दरअसल, यह तो विरोध के बजाय या उससे ज़्यादा उकसाने या भड़काने वाला कार्य है, जो अतिवादियों के साथ-साथ उन लोगों पर भी असर डाल सकता है जो आज सार्वजनिक मंचों पर इस्लाम के गुण-दोषों पर खुलकर बोल रहे हैं, या बोलना चाहते हैं.
क्योंकि सभ्य तरीक़ा ही सर्व समाज में स्वीकार होता है; और अधिकाधिक लोगों को प्रभावित कर किसी मसले को मुद्दे का रूप दे सकता है इसलिए, असभ्यता और असामाजिकता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए.
असभ्यता और उद्दंडता तो सही मुद्दे से भटका सकती है, और एक सार्थक बहस को भी समाप्त कर सकती है.
स्वीडन में यही हुआ.जिहाद का ज़वाब जहालत से दिया गया.
पत्थरबाज़ी की जगह आस्था पर चोट किया गया.
रोकने वाला भी कोइ नहीं है.कोई शेर है तो कोई सवा शेर.इसलिए, बार-बार होने वाली ऐसी घृणित और अपमानजनक घटना के लिए भी सिर्फ़ लानत-मलामत हुई और बात हवा हो गई.
इस्लाम के अगुआ के रूप में ख़ुद को दिखाने में लगे देश तुर्की के विदेश मंत्री हाकन फ़िदान ने ट्वीट कर कुरान जलाने की घटना को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर इस्लाम विरोधी प्रदर्शन बताते हुए इसे ‘अस्वीकार्य’ बताया.
सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने कहा- ‘ऐसी हरक़त नफ़रत और नस्लभेद को बढ़ाने वाली है.इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है.’
मुस्लिम देशों के संगठन ओआइसी (ऑर्गेनाइजेशन ऑफ़ इस्लामिक कोऑपरेशन) ने एक बयान में कहा कि स्वीडन की यह घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.यह इस्लामिक मूल्यों, प्रतीकों और उनकी पवित्रता का उल्लंघन करने जैसा है.
मुस्लिम वर्ल्ड लीग ने कहा कि यह जघन्य अपराध है, जो पुलिस के संरक्षण में हुआ है.
वहीं, नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) प्रमुख जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने उक्त घटना पर कहा-
कुरान को जलाना अपमानजनक और आपत्तिजनक था.लेकिन, इसे ग़ैर-क़ानूनी नहीं कह सकते क्योंकि उस व्यक्ति (सलवान मोमिका) ने इसकी इज़ाज़त ली थी.स्वीडन की सरकार ने इसे अभिव्यक्ति की स्वंत्रता बताते हुए उक्त प्रदर्शन की इज़ाज़त दी थी.
इस दौरान, स्टोलटेनबर्ग ने स्वीडन के नाटो में शामिल होने को लेकर समझौता करने का भी आग्रह किया.ज्ञात हो कि युक्रेन पर रूस के हमले के बाद स्वीडन नाटो में शामिल होने की कोशिश कर कर रहा है लेकिन, तुर्की इसके लिए तैयार नहीं है.
कुरान जलाए जाने के बाद ख़ुद स्वीडन के प्रधानमंत्री उल्फ़ क्रिस्टर्शन ने कहा-
सलवान मोमिका का प्रदर्शन क़ानूनी तौर पर सही है पर, यह अनुचित था.यह पुलिस के ऊपर (पुलिस के विवेक पर निर्भर) था कि वह इसकी इज़ाज़त देती है या नही.
फिर, एक प्रेस वार्ता में क्रिस्टर्शन ने यह भी कहा-
इस घटना के बाद नाटो की सदस्यता प्राप्त करने के प्रयासों पर क्या प्रभाव होगा, इस पर हम किसी अटकल को हवा नहीं देंगें.
तभी तो कहते हैं- समरथ को नहीं दोष गोसाईं.यानि, सबल और समर्थ व्यकी पर कोई दोष नहीं लगता, या यूं कहिए कि ताक़तवर के खिलाफ़ कोई दोषारोपण का साहस नहीं जुटा पाता, और उसकी ग़लतियों या धृष्टता पर पर्दा डाला जाता है.
मगर, ऐसा कहीं और नहीं हो सकता है.यानि, स्वीडन की जगह कोई एशियाई देश (चीन को छोड़कर) होता, तो दुनियाभर में बवाल हो जाता.लोग आसमान सिर पर उठा लेते.इसका बहिष्कार होता, और कई तरह की पाबंदियां लग गई होतीं.
संयुक्त अरब अमीरात (युएई) जैसा देश भी आंखें निकाल लेने को तैयार होता.
भारत की वह घटना आज भी लोग भूले नहीं हैं जब एक महिला नुपुर शर्मा ने सिर्फ़ हदीसों में मोहम्मद साहब और हज़रत आयशा की उम्र की लिखी बातों को याद दिलाया था, या टिप्पणी कर दी थी, तो कितना कोहराम मचा था.भारत जैसे अलग-थलग पड़ गया था.
केवल नीदरलैंड ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताया था.
क्या यह व्यक्ति की स्वतंत्र अभिव्यक्ति नहीं थी?
तो फिर, क्यों सर तन से जुदा हुए थे, और पत्थरबाज़ी और आगजनी की घटनाएं महीनों तक होती रही थीं, ऐसे सवाल पूछे जाते हैं.
दरअसल, विवाद की जड़ भी यही मनोवृत्ति है.मगर, इसी से तो लड़ना है.यानि, इस प्रकार की सोच से आगे की सोच लोगों में पैदा करनी है, जो मन को अंधकार से दूर ले जाकर उस अवस्था में पहुंचा दे जहां से सारा संसार एक जैसा दिखाई देता है.इसी को सनातन व्यवस्था में ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ यानि, ‘सारा विश्व एक परिवार’ कहा गया है.
कौन है सलवान मोमिका, जिसने कुरान जलाया?
कुरान जलाने वाला शख्स 37 वर्षीय सलवान सबा मैटी मोमिका स्वीडन में एक शरणार्थी है.कई साल पहले वह इराक़ से भागकर यहां के स्टॉकहोम काउंटी के सौडरटाल्जे में जर्ना नगरपालिका क्षेत्र में बस गया.
ख़बरों के मुताबिक़, गत 28 जून को बक़रीद (ईद-उल-अज़हा) के दिन स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम की सेन्ट्रल मस्जिद के बाहर उसने कुरान को जलाया.जब यह घटना हुई तो वहां 200 लोग खड़े थे.
बताया जाता है कि पुलिस की सुरक्षा के बीच एयरपॉड्स या इयरपॉड्स पहने और सिगरेट मुंह में दबाए सलवान ने पहले कुरान के कुछ अंश पढ़े, जिसे उसके एक साथी ने स्वीडिश भाषा में अनुवाद किया.फिर, उसने (सलवान ने) कुरान के पन्ने फाड़े, अपने पैरों तले कुचला और उनमें आग लगा दी.
इस बीच कुरान के इस तरह के अपमान से नाराज़ एक व्यक्ति ने उसको पत्थर मारने की कोशिश की, तो उसे पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया.
स्वीडन की सरकारी मीडिया ने बताया कि सलवान ने इस्लाम विरोधी यह कार्य कुर्दों के अधिकारों और कुरान को प्रतिबंधित करने की मांग के समर्थन में किया.
अदालत के निर्देश पर पुलिस ने दिया कुरान जलाने का मौक़ा
बताया जाता है कि सलवान मोमिका ने पहले भी कुरान जलाने की इज़ाज़त मांगी थी लेकिन, पुलिस ने मना कर दिया था.तब उसने अदालत का रुख किया.
अदालत ने कहा कि कुरान और इस्लाम का विरोध सलवान का हक़ है.यह उसकी अभिव्यक्ति की आज़ादी में शामिल है.इसलिए, पुलिस उसे मस्जिद के सामने कुरान जलाने इज़ाज़त दे.साथ ही, उसकी व इलाक़े की सुरक्षा भी बनाए रखने की बात कही थी.
स्वीडन में संविधान द्वारा निर्देशित है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
स्वीडन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वहां के संविधान द्वारा निदेशित है.ऐसे में, वहां सरकार की ओर ऐसी व्यवस्था है कि जिसमें लोग सार्वजनिक रूप से अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं.लेकिन, हिंसा और अभद्र भाषा के प्रयोग की अनुमति नहीं है.
विश्व बैंक की रिपोर्ट ‘वुमन, बिजनेस एंड द लॉ 2019’ के मुताबिक़, यहां महिलाओं को पूरा (सौ फ़ीसदी) अधिकार प्राप्त है.
पहली बार नहीं हुई है यह घटना
गत 21 जनवरी को यूरोप के अतिवादी नेता रासमुस पालुदान ने स्वीडन में तुर्की दूतावास के सामने कुरान की प्रति जलाई थी.उसके बाद सलवान ने इस घटना को अंज़ाम दिया है.इस तरह वहां यह दूसरी घटना है.
बताया जाता है कि ऐसी ही दो घटनाएं पड़ोसी देश डेनमार्क में भी हो चुकी हैं.
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