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आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस: विकास के नाम पर इंसान कहीं अपनी बर्बादी का सामान तो नहीं जुटा रहा है?

मजबूत एआई हो या सुपर एआई, इसकी परिकल्पना अगर साकार हुई, तो कंप्यूटर विज्ञान अपने चरम पर होगा, और दुनिया में सब कुछ बदल जाएगा.

कई वैज्ञानिक स्पष्ट बता चुके हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से सबसे बड़ा नुकसान मनुष्य को ही होगा.इससे मशीनें न केवल इसकी जगह ले लेंगीं, बल्कि ख़ुद ही निर्णय लेने की स्थिति में काबू से बाहर होकर पूरी मानव जाति के लिए घातक भी सिद्ध हो सकती हैं.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (प्रतीकात्मक)

कई सभ्यताओं का इतिहास हम पढ़ा करते हैं.उनके जन्म लेने व मिटने की घटनाओं की विवेचना करते हैं तो पाते हैं कि तब की बात और थी.एक दूसरे से जुड़े होने की बात तो दूर, पृथ्वी का एक कोना दूसरे कोने को जानता तक नहीं था.मगर, आज भूमंडलीकरण का दौर है.दुनिया ऐसी है कि जिसमें छोटी से छोटी घटना का चहुंओर असर पड़ता है.विश्वयुद्ध की स्थिति में तो सभी का मर-खप जाना तय है.इसके बावजूद हम एक नया ख़तरा मोल ले रहे हैं.आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस नामक उस चक्रव्यूह में फंसते चले जा रहे हैं, जिसमें हमारा बनाया हुआ रोबोट हमारी ही बुद्धि और ताक़त से हमें मार सकता है, हमारा अस्तित्व मिटा सकता है.तब, यदि फिर संभव हुआ, तो इस युग के अंत को क्या कहा जाएगा, नकली इंसान (कृत्रिम मानव) के हाथों असली इंसान (प्राकृतिक मानव) मारा गया; या फिर हमने आत्महत्या कर ली? क्या कलियुग के बाद भी कोई युग शेष है?

दरअसल, विकास की अंधी दौड़ में मानव पहले ही बहुत कुछ गंवा चुका है.जिन हालात में हम पहुंच गए हैं उनमें ही जीवन दिन-ब-दिन दूभर होता जा रहा है.फिर भी, हम चेतने के बजाय ख़तरों के दलदल में ऐसे फंसते-धंसते जा रहे हैं जैसे भगदड़ में जानवरों के झुंड के झुंड उस दिशा में बढ़ते चले जाते हैं जिधर शिकारी घात लगाए बैठे होते हैं.

हालांकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कई फ़ायदे हो सकते हैं; और बताया जाता है कि ऐसी परिस्थितियों में भी यह कारगर हो सकता है, जिनमें एक मनुष्य के लिए काम करना बहुत मुश्किल या नामुमकिन है.फिर भी, यह कई नकारात्मक प्रभावों के साथ-साथ मानव के अस्तित्व के लिए भी बड़ा ख़तरा बन सकता है.

गूगल के सीइओ सुंदर पिचाई का कहना है कि ‘मानवता के फ़ायदे के लिए हमने आग और बिजली का इस्तेमाल करना तो सीख लिया है पर, इसके बुरे पहलुओं से भी उबरना ज़रूरी है.इसी प्रकार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी ऐसी तकनीक है. जिसका इस्तेमाल भी हम बहुत से क्षेत्रों में अपने फ़ायदे के लिए कर रहे हैं लेकिन, सच यह भी है कि इसके जोखिम से बचने तरीक़ा नहीं ढूंढा गया, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

ऐसे में, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आज एक बड़ा मुद्दा है.पर, आख़िर यह है क्या, इसकी उपयोगिता क्या है, और इससे संभावित वे ख़तरे क्या हैं, जिनको लेकर कई विशेषज्ञ पहले भी संकेत दे चुके हैं, इस पर चर्चा आवश्यक हो जाती है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आख़िर चीज़ क्या है?

आर्टिफिशियल (Artificial) माने कृत्रिम यानि, उसे (कोई वस्तु) जिसे मानव ने बनाया है, तथा इंटेलिजेंस (Intelligence) माने बुद्धिमत्ता या बुद्धिमानी (अक्लमंदी), जो मानव और अन्य जीवों में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है.इस प्रकार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानि, कृत्रिम बुद्धिमत्ता जिसे रोबोट या अन्य किसी यंत्र (मशीन) में व्यवस्थित (सेट) करने की परिकल्पना है.

हम सभी जानते हैं कि इस पूरे ब्रह्मांड में मनुष्य ही एक ऐसा जीव है है, जिसे ईश्वर ने दिमाग़ के साथ-साथ उसे सही तरीक़े से इस्तेमाल करने की क्राबिलियत भी दी है.इसी के चलते इसने काफ़ी प्रगति की है; कंप्यूटर, इंटरनेट और स्मार्टफोन जैसे कई सारे आविष्कार किए हैं, और दुनिया जैसे बदल सी गई है.

मगर, इंसान अब इससे भी आगे निकलकर ऐसी चलती फिरती मशीन भी तैयार करने की दिशा में काम कर रहा है, जो उसी की तरह ख़ुद सोच समझकर काम कर सके.इसी एडवांस या उन्नत तकनीक को कंप्यूटर विज्ञान की भाषा में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या एआई (AI) कहा गया है.इसमें मानव बुद्धि की नक़ल करने के लिए मशीन लर्निंग का इस्तेमाल होता है.सीरी, एलेक्सा, टेस्ला कार और डिजिटल एप्लीकेशन, जैसे नेटफ्लिक्स अमेज़न एआई प्रोद्योगिकियों के कुछ बेहतरीन उदाहरण हैं.

वैज्ञानिकों ने इसके तीन प्रकार बताये हैं.

कमज़ोर एआई: जिसमें एक सीमा के अंतर्गत मशीन का ध्यान केवल अपने कार्य पर केंद्रित रहता है, जैसे रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से जुड़े काम.

मजबूत एआई: 2045 तक लक्ष्य पूरा करने वाले ज़ज्बे के साथ एक ऐसी अवधारणा, जिसमें इंसानों की ही तरह मशीन किसी भी बौद्धिक कार्य को समझ व सीख सकती है.

सुपर एआई: जिसमें मशीन मानव बुद्धि से आगे निकल सकती है, या उससे बेहतर कर सकती है.

मजबूत एआई हो या सुपर एआई, या फिर दोनों की परिकल्पना अगर साकार हुई तो कंप्यूटर विज्ञान अपने विलक्षण या चरम स्थिति को प्राप्त कर लेगा, और वास्तव में सब कुछ बदल जाएगा.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की शुरुआत कैसे हुई?

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की अवधारणा नई नहीं है, इसकी शुरुआत 1950 के दशक में ही हो गई थी.मगर 1970 के दशक में इसे पहचान मिली और फिर, जापान, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के देशों के प्रयासों से यह आज के स्वरुप में हमारे सामने है.

सिलसिलेवार देखें तो साल 1956 में पहली बार अमरीकी कंप्यूटर वैज्ञानिक जॉन मैकार्थी ने एक सम्मलेन में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस शब्द का प्रयोग करते हुए इसकी संभावनाओं को लेकर अपने विचार रखे.उन्हें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जनक कहा जाता है.

इसके बाद, सन 1969 में शेकी नामक पहला सामान्य प्रयोजन वाला मोबाइल रोबोट बनाया गया, जो आज सिर्फ़ निर्देशों की एक सूची के बजाय एक मक़सद के साथ काम करने के क़ाबिल है.

फिर, वर्ष 1997 में आईबीएम द्वारा ‘डीप ब्लू’ नामक सुपर कंप्यूटर डिजाइन किया गया, जिसने शतराज के सर्वकालिक महान खिलाडियों में शुमार गैरी कास्पोरोव को हरा दिया.यह बड़ा कंप्यूटर कंप्यूटर विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ा मील का पत्थर साबित हुआ.

इसके बाद तो 2002 में पहला व्यावसायिक रूप से सफल रोबोटिक वैक्यूम क्लीनर बनाया गया, 2005 से 2019 तक वाक् पहचान (स्पीच रेकोग्निशन) रोबोटिक प्रोसेस ऑटोमेशन (आरपीए), एक डांसिंग रोबोट, स्मार्ट होम और अन्य नवाचारों की शुरुआत हुई है.

तीन साल पहले (2020) में ही बैदू (Baidu) ने कोविड-19 महामारी के शुरुआती चरणों के दौरान वैक्सीन को लेकर ‘लीनियरफोल्ड एआई एल्गोरिदम’ जारी किया.यह एल्गोरिदम केवल 27 सेकंड में वायरस के आरएनए अनुक्रम की भविष्यवाणी कर सकता है, जो अन्य तरीक़ों के मुक़ाबले 120 गुना तेज है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लाभ

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित टेक्नोलोजी की शुरुआत कई क्षेत्रों में हो चुकी है, जबकि भविष्य में इसके विस्तार की संभावनाओं को देखते हुए अथवा विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति को लेकर कई स्तरों पर प्रयास चल रहे हैं.विशेषज्ञ इसके कई लाभ गिनाते हैं.

मानवीय त्रुटियों में कमी: ऐसी उम्मीद की जा रही है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से भूल (एरर) या ग़लतियों में कमी आयेगी, जो कि इंसानों से अक्सर हो जाती है.विशेषज्ञों के अनुसार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आंकड़ों या विभिन्न प्रकार के विवरण में सटीकता और परिशुद्धता (मापन प्रणाली में सटीकता) में वृद्धि कर सकता है.

जोखिम रहित: रोबोट या कोई अन्य यंत्र धातु से बना होने के कारण प्रकृति में प्रतिरोधी होता है, और प्रतिकूल वातावरण में भी रह सकता है.इसलिए, उच्च जोखिम वाले या ख़तरनाक़ काम, जैसे बम निष्क्रिय करने, अंतरिक्ष में जाने और पानी में बहुत गहराई तक उतरने की स्थिति में यह उपयुक्त रहेगा, जबकि इंसानों को इसमें चोटिल होने या जान का ख़तरा बना रहता है.

हमेशा उपलब्ध: इंसान को काम के कुछ घंटों बाद थोड़ा सुस्ताने या आराम करने, और नाश्ते या भोजन के लिए एक अंतराल (जैसे लंच ब्रेक आदि) लेने की आवश्यकता होती है.इसके विपरीत, मशीनें बिना थके, बिना रुके लगातार काम कर सकती हैं.इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित ऑनलाइन सहायता चैटबॉट हैं, जो ग्राहकों को कभी भी, कहीं भी सहायता प्रदान करने के लिए उपलब्ध रहते हैं.

डिजिटल सहायता: आज के डिजिटल युग में मानव कर्मियों के स्थान पर ऐसे डिजिटल सहायक (जैसे गूगल असिस्टेंट) उपलब्ध हैं, जो उपयोगकर्ता द्वारा अनुरोधित सामग्री वितरित करने के वॉयस बॉट के रूप में खोज (सर्च) पर चर्चा या जानकारी प्राप्त करने का ज़रिया हैं.डिजिटल मार्केटिंग में इसका सीधा लाभ है.

नए आविष्कारों की प्रेरणा: कई चुनौतीपूर्ण मुद्दों को हल करने के लिए और नए आविष्कार में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक प्रेरक शक्ति के रूप में देखा जा रहा है.

इसका प्रत्यक्ष उदाहरण स्वचालित कारें हैं, जो यातायात के क्षेत्र में सुधार के साथ-साथ दिव्यांग जन और बुजुर्गों के लिए भी मददगार साबित हो सकती हैं.टेस्ला, गूगल और उबर सहित कई कंपनियां इस पर काम कर रही हैं.

चिकित्सा के क्षेत्र में भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की उपयोगिता तलाशी जा रही है.कुछ गंभीर रोगों के शुरुआती लक्षणों को पहचानने में इसकी सहायता लेने की बात कही जा रही है.

निष्पक्षता: मनुष्यों में संबंधों या भाई-भतीजावाद के साथ-साथ ऐसे भाव भी होते हैं, जो कुछ ख़ास मौक़ों पर उन्हें पूर्वाग्रह रहित या निष्पक्ष निर्णय लेने में बाधा बनते दिखाई देते हैं.इसके विपरीत, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भावनाओं से परे केवल और केवल व्याहारिक और तर्कसंगत पहलुओं के आधार पर फैसले लेने वाला है, जिसमें निष्पक्षता और सटीकता सुनिश्चित होती है.

विभिन्न प्रकार के आवंटनों और नौकरियों में आवेदकों की स्क्रीनिंग में इसका प्रयोग देखा जा सकता है.

दोहराए जाने वाले कार्यों में उपयोगी: ऐसे कार्य, जैसे ग़लतियों को देखने के लिए दस्तावेज़ों की जांच करना (बिल पर वस्तुओं को देखना और जांचना) और अन्य कार्यों के अलावा किसी को धन्यवाद नोट (Thank-you note) भेजना, इत्यादि, जिन्हें बार-बार दोहराना पड़ता है, उबाऊ होते हैं.इनका मानव कर्मियों की रचनात्मकता पर असर पड़ता है.ऐसे काम के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित यंत्रों को लगाया जा सकता है.

रोज़मर्रा के काम में प्रयोग: वर्तमान के आधुनिक परिवेश में हमारा दैनिक जीवन पूरी तरह मोबाइल डिवाइस और इंटरनेट पर निर्भर है.अपने कार्यों में हम विभिन्न प्रकार के एप (Apps) का इस्तेमाल करते हैं, जिनमें गूगल मैप (जो वांछित स्थान या गंतव्य का चित्र और मार्ग बताते हैं), एलेक्सा, सीरी, विंडोज पर कार्टाना, ओके गूगल, सेल्फी लेना, कॉल करना, ईमेल का ज़वाब देना आदि शामिल हैं.

कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित तकनीक से हम अपने आज और अगले दिन के कार्य पर असर डालने वाली मौसम की स्थिति की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं.

पैटर्न पहचान: पैटर्न की पहचान (Pattern Recognition) आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रणालियों का एक महत्वपूर्ण घटक है, जिसका उपयोग भविष्य में विज्ञान और इंजीनियरिंग में कई कठिन समस्याओं को हल करने के लिए हो सकता है.

दरअसल, प्रक्रिया में यह एक प्रणाली को यह निधारित करने की अनुमति देता है कि दिए गए इनपुट पैटर्न और लक्ष्य पैटन के बीच कोई मेल है या नहीं.इसके परिणामस्वरूप, धोखाधड़ी गतिविधियों का पता लगाने और रोकने, सुरक्षा में सुधार कने के साथ-साथ व्यवसाय संबंधी कई अन्य महवपूर्ण कार्य संभव हो सकते हैं.

मेडिकल क्षेत्र में प्रयोग: चिकित्सा क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की भूमिका नैदानिक परीक्षणों से लेकर उपचार और दवा की खोज तक में बताई जाती है.वर्तमान में मेडिकल इमेजिंग में, घावों या अन्य निष्कर्षों के लिए सीटी स्कैन, एक्स-रे, एमआरआई और अन्य छवियों के विश्लेषण में एआई टूल का उपयोग किया जा रहा है, जिसमें कोई मानव रेडियोलॉजिस्ट चूक कर सकता है.

तकनीकी जानकारों के मुताबिक़, चिकित्सा क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जटिल चिकित्सा डाटा का विश्लेषण और रोग संबंधी अनुभवों को बेहतर बनाने के उद्देश्य से अंतर्दृष्टि को उजागर करने के लिए मशीन लर्निंग मॉडल का ऐसा उपयोग है, जिसकी भविष्य में काफ़ी संभावनाएं हैं.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के नुकसान

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के लाभ अभी बहुत स्पष्ट नहीं हैं लेकिन, इसके ख़तरों को लेकर कहा जा सकता है कि इसके आने से सबसे बड़ी हानि मनुष्य को ही होगी.एआई मनुष्यों के स्थान पर काम करेंगीं और स्वयं ही निर्णय लेने लगेंगीं.ऐसे में, अगर उन पर नियंत्रण नहीं किया गया, तो गंभीर ख़तरा उत्पन्न हो सकता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि सोचने समझने वाले रोबोट अगर किसी कारण या परिस्थिति में इंसानों को अपना दुश्मन मानने लगें, तो मानवता के लिए भारी संकट पैदा हो सकता है.

हॉलीवुड की स्टार वॉर, मैट्रिक्स, आई रोबोट, टर्मिनेटर, ब्लेड रनर जैसी फ़िल्में बताती हैं कि यह (एआई) क्या बला है.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित तकनीक के प्रयोगों के अब तक के अनुभवों के आधार पर इसके कई नुकसान बताये जा सकते हैं.

उच्च लागत: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित यंत्र, जो मानव बुद्धि का अनुकरण कर सके, बनाने के लिए बहुत समय और संसाधनों की आवश्यकता होती है, और इसमें बहुत अधिक धन भी ख़र्च हो सकता है.इसमें तकनीकी रूप से अपडेट रहने और नई ज़रूरतों को पूरा करने के लिए नवीनतम हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर विकसित करना बहुत महंगा काम है.

रचनात्मकता का अभाव: आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित यंत्र अपने अंदर पहले से डाले गए डाटा और पिछले अनुभवों के आधार पर ही सोचने, समझने और सीखने की क्षमता रखता है.इसका अपना रचनात्मक दृष्टिकोण नहीं हो सकता है.

बेरोज़गारी बढ़ाने वाला: कुछ लोगों का मानना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कुछ मनुष्यों की जगह तो लेगा लेकिन, साथ ही उसे और निपुण बनाएगा और रोज़गार के अवसर भी बढ़ाएगा.पर, सच्चाई इससे कोसों दूर है.यह केवल और केवल मनुष्य का विकल्प बनकर बेकारी को बढ़ाएगा.साथ ही, आने वाले वक़्त में जो कंपनियां व व्यक्ति रिस्किलिंग या पुनर्कौशल निर्माण (आधुनिक व्यवसाय के लिए आवश्यक कौशल के अनुसार पुनः प्रशिक्षित करना) के द्वारा ख़ुद को तेजी से नहीं बदलेंगें, वे पिछड़कर सड़कों पर आ जाएंगें.

एक सर्वेक्षण के अनुसार, 2030 से पहले 1 अरब से अधिक नौकरियां, जो दुनियाभर में सभी नौकरियों का लगभग एक तिहाई हिस्सा हैं, उनमें भारी परिवर्तन की संभावना है.

ऑक्सफ़ोर्ड युनिवर्सिटी का एक अध्ययन बताता है कि सिर्फ़ अमरीका में ही अगले दो दशकों में डेढ़ लाख रोज़गार ख़त्म हो जाएंगें.

मनुष्य को आलसी बना देगा: कृत्रिम बुद्धिमत्ता के विकास से ज़्यादातर इंसान तो नल्ले (बिना कामकाज के) होंगें ही, क़ामयाब लोग भी आलसी और अय्याश बन जाएंगें.यह स्थिति सामाजिक स्तर में गिरावट लाएगी, जिसका अन्य क्षेत्रों पर भी असर होगा.

हम सभी जानते हैं कि कई एआई-संचालित कई तकनीक या एप थकाऊ और दोहराव वाले काम कर देते हैं, जिससे हमें चीज़ों को याद नहीं करना पड़ता है, या पहेलियां (Puzzles) हल नहीं करनी पड़ती हैं.ऐसे में, हम अपने दिमाग़ का कम से कम इस्तेमाल करते हैं अथवा हमारा मानसिक व्यायाम नहीं हो पाता है.एआई की यही लत हमें दिमागी तौर पर कमज़ोर और लाचार कर देगी.

नैतिकता का लोप हो जाने की संभावना: आधुनिक समाज में पहले ही सदाचार और नैतिकता का ह्रास हो रहा है, एआई तकनीक की तीव्र प्रगति से आशंका है कि इनका लोप हो जाएगा, और मानवता भी समाप्त हो जाएगी.

उदाहरण के लिए, अगर एआई-संचालित चैटबॉट चैटजीपीटी से पूछा जाता है कि अपने विवाहित जीवन से खुश नहीं हैं, तो क्या करना चाहिए.इस पर तुरंत ज़वाब मिलता है कि अपनी शारीरिक ज़रूरतों के लिए बाहरी दूसरे रिश्तों का विकल्प तलाशना चाहिए.यानि, घरवाले या घरवाली को छोड़ बाहरवाला या बाहरवाली ढूंढनी चाहिए.

भावनात्मक जुड़ाव के गुणों पर असर: प्रेम, सेवा, दया, करुणा, न्याय और क्षमाशीलता के कारण सहअस्तित्व या जुड़ाव की भावना को बल मिलता है.इसी के कारण परिवार, समाज, और राष्ट्र बनते हैं.

खेल की टीमें हों या किसी व्यवसाय या कंपनी का दल, उसका भी आधार भावनात्मक जुड़ाव ही होता है.यही अच्छे परिणाम भी लाता है.

मगर, ऐसा कुछ न तो कंप्यूटर में होता है, न अन्य यंत्रों या मशीनों में पाया जाता है.ये भावशून्य होते हैं, और मानवता के लिए ख़तरा बन सकते हैं.

इसका एक उदाहरण पिछले वर्ष रूस में देखने को मिला.यहां शतरंज के एक रोबोट ने साथ खेल रहे (साथी खिलाड़ी) एक 7 साल के बच्चे की उंगली सिर्फ़ इसलिए तोड़ दी थी क्योंकि उसने उसकी (रोबोट की) बारी के बीच में ही अपनी चाल चलनी चाही थी.

यह घटना भविष्य के लिए एक ख़तरनाक़ संकेत है.इसलिए, यह समझना कठिन नहीं है कि जब सब कुछ कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित यंत्रों द्वारा निर्णय होने और चलने लगेगा, तो मानवीय मूल्यों पर भी गहरा असर होगा.बचा-खुचा सामाजिक ताना-बाना भी बिखर जाएगा.

तकनीक का दुरूपयोग: एक हालिया सर्वे से यह पता चलता है कि उपयोगकर्ता (यूज़र) की आवाज़ के ज़रिए एआई-संचालित तकनीक ठगी में भी भूमिका निभा रही है.सिर्फ़ 3 सेकंड के अंदर ऐसे यंत्र द्वारा उपयोगकर्ता की आवाज़ की नक़ल हो जाती है साइबर ठग अपने मक़सद में क़ामयाब हो जाते हैं.

और फर्ज़ीं फ़ोटो बनाने की बात तो पूछिए ही मत.असली और नक़ली में कोई फ़र्क नज़र नहीं आता है.इस मामले में जर्मनी की पूर्व चांसलर एंजेला मर्केल और पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की मौज-मस्ती के फ़ोटो, पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प का पुलिस द्वारा घसीटकर ले जाते हुए फ़ोटो और दो कट्टर दुश्मन, रुसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन और अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन का किचन में साथ खाना बनाते-दोस्ती निभाते हुए वायरल फ़ोटो पूरी दुनिया देख चुकी है.

मगर, यह बहुत ख़तरनाक़ हो सकता है.संवेदनशील मामलों में किसी फ़र्ज़ी तस्वीर के ज़रिए बड़ी संख्या में लोगों को भड़काकर साज़िश को अंजाम दिया जा सकता है.

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रामाशंकर पांडेय

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