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राजनीति

जम्मू-कश्मीर: दूसरों के हक़ का पैसा मुसलमानों पर क्यों लुटा रही है मोदी सरकार? अल्पसंख्यकों का केस लड़ चुके एडवोकेट अंकुर शर्मा का PMO पर बड़ा आरोप

–  एडवोकेट अंकुर शर्मा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में लिखित रूप में वादा करने के बाद भी मोदी सरकार और जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने मुसलमानों को ग़ैर-मुसलमानों का हक़ देना बंद नहीं किया है

–  PMO उड़ा रहा है अपने ही 15 सूत्रीय कार्यक्रम के ‘इम्प्लीमेंटेशन गाइडलाइन’ की धज्जियां- एडवोकेट अंकुर शर्मा

–  एडवोकेट अंकुर शर्मा ने ये भी आरोप लगाया है कि सरकार सिर्फ़ सरकारी खज़ाने का ही दुरूपयोग नहीं कर रही है बल्कि इससे राष्टहित से समझौता भी हो रहा है
   
–  अंकुर शर्मा के मुताबिक़, ‘सबका साथ – सबका विकास – सबका विश्वास’ के बदले सिर्फ़ और सिर्फ़ ‘मुसलमानों का साथ- मुसलमानों का विकास – मुसलमानों का विश्वास’ की नीति पर चल रही है मोदी सरकार


जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में केस लड़ चुके एडवोकेट अंकुर शर्मा ने मोदी सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं.हाल ही में एक इंटरव्यू में अंकुर शर्मा ने कहा कि मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के समक्ष किए अपने वादे से मुक़र गई और अन्यायपूर्ण रवैया अपनाते हुए अब भी उसने जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों को ग़ैर-मुसलमानों के हक़ का पैसा देना बंद नही किया है.इसके साथ ही, उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) पर 15 सूत्रीय कार्यक्रम के कार्यान्वयन के दिशानिर्देशों की अवहेलना कर सरकारी खज़ाने का दुरूपयोग करने का आरोप भी लगाया है.इसे उन्होंने ‘राष्ट्रहित से समझौता’ बताते हुए देश के बुद्धिजीवियों से चिंतन करने की अपील की है.



अल्पसंख्यकों का हक़,मुसलमानों पर ख़र्च,PMO पर आरोप
प्रधानमंत्री मोदी,पीएमओ,एडवोकेट अंकुर शर्मा और जम्मू-कश्मीर के लोग  




दरअसल, देश की अबतक की सबसे साफ़-सुथरी और निष्पक्ष-न्यायशील समझी जानेवाली मोदी सरकार के खिलाफ़ एडवोकेट अंकुर शर्मा के ये आरोप बड़े गंभीर हैं और सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय से जुड़े होने कारण अति संवेदनशील भी.ऐसे में, मामले की तह में जाकर इनसे जुड़े तथ्यों की जांच करना ज़रूरी हो जाता है.

जहां तक आरोपों के मद्देनज़र एडवोकेट अंकुर शर्मा का प्रश्न है, तो वे जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के जाने माने वक़ील होने के साथ ही आज राष्ट्रीय स्तर पर एक बेदाग़ और चर्चित चेहरा हैं, जो जम्मू-कश्मीर से जुड़े मसलों को लेकर अक्सर सोशल और न्यूज़ मीडिया में सुर्ख़ियों में रहते हैं.


अल्पसंख्यकों का हक़,मुसलमानों पर ख़र्च,PMO पर आरोप
एडवोकेट अंकुर शर्मा 




एडवोकेट शर्मा ने प्रदेश के अबतक के सबसे बड़े घोटाले- ज़मीन घोटाला, जिसे ज़मीन जिहाद भी कहा जाता है, उसका पर्दाफ़ाश कर घोटाले की जड़ रौशनी एक्ट को ही क़ानूनी लड़ाई लड़कर ख़त्म करा दिया.अल्पसंख्यकों के हक़ की लड़ाई लड़ी, अब माता वैष्णो देवी मंदिर को सरकारी चंगुल से छुड़ाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं और देशी-विदेशी जिहादियों-आतंकियों के निशाने पर होने के बावज़ूद निर्भीक एवं बेबाक हैं.



15 सूत्रीय कार्यक्रम में PMO की धांधली का सच

भारत सरकार ने धार्मिक और भाषायी, दोनों तरह के अल्पसंख्यकों के लिए कुछ प्रावधान किए हैं.वर्तमान में मोदी सरकार 6 अधिसूचित धार्मिक (सांप्रदायिक) समूहों जैसे मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, जोराष्ट्रियन आदि की प्रगति एवं विकास के लिए अपने नए 15 सूत्रीय कार्यक्रम के तहत कई कल्याणकारी क़दम उठा रही है.



अल्पसंख्यकों का हक़,मुसलमानों पर ख़र्च,PMO पर आरोप
15 सूत्रीय कार्यक्रम (प्रतीकात्मक)




ये 15 सूत्रीय कार्यक्रम सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा चलाए जाते हैं.इसमें छात्रों के लिए विभिन्न छात्रवृत्ति योजनाओं में प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति, पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति और मेरिट आधारित छात्रवृत्ति समेत तक़रीबन 70 प्रकार की ऐसी छात्रवृत्ति योजनाएं (स्कीम) हैं, जिनमें लाभार्थियों को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है.

एक स्कीम में तक़रीबन 800 से लेकर 900 तक की संख्या में छात्रवृत्तियां होती हैं.इनमें 4-5 लाख रूपयों तक की बड़ी छात्रवृत्तियां भी होती हैं.इसप्रकार, अल्पसंख्यक छात्रों को प्रतिवर्ष करोड़ों रूपए वितरित किए जाते हैं.

जम्मू-कश्मीर में इन छात्रवृत्तियों का लाभ मुसलमानों को मिल रहा है, जबकि यहां वे वास्तविक लाभार्थी नहीं हैं.उन्हें ये लाभ दिया जाना नियम के खिलाफ़ है.

15 सूत्रीय कार्यक्रम के कार्यान्वयन दिशानिर्देशों (इम्प्लीमेंटेशन गाइडलाइन) के क्लॉज़ (खंड) 7-बी में ये साफ़ लिखा है-


” राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक अधिसूचित किया गया कोई समुदाय अगर किसी राज्य में  बहुसंख्यक है, तो वहां इन योजनाओं के अंतर्गत वह लाभार्थी नहीं होगा.अलग-अलग योजनाओं का आवंटन यहां उसके अलावा दूसरे अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों में होगा. ”




इसी आधार पर एडवोकेट अंकुर शर्मा ने प्रधानमंत्री कार्यालय को कठघरे में खड़ा किया.वह कहते हैं-


” भारत सरकार अल्पसंख्यकों के अधिकार बहुसंख्यकों को दे रही और धर्मनिरपेक्षता की हत्या कर रही है.

15 सूत्रीय कार्यक्रम के अंतर्गत प्रधानमंत्री कार्यालय अबतक कितने हज़ार करोड़ रूपयों का घोटाला कर चुका है, इसकी जांच होनी चाहिए.ऐसा करके सरकार सिर्फ़ सरकारी खज़ाने का ही दुरूपयोग नहीं कर रही है, बल्कि राष्ट्रहित से समझौता भी किया जा रहा है. ”



उल्लेखनीय है कि उपरोक्त अनियमितता और दिशानिर्देशों के उल्लंघन की बातें एडवोकेट अंकुर शर्मा केवल जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में कही है.लेकिन, सच्चाई ये है कि तुष्टिकरण के चलते ऐसा कई जगहों पर हो रहा है और इसे रोकने के लिए तत्काल क़दम उठाया जाना चाहिए.

तुष्टिकरण किसी का भी हो, यह एक राष्ट्र के लिए बहुत घातक होता है.मगर, विडंबना ये है कि भारत में अल्पसंख्यक अवधारणा और अल्पसंख्यक आयोग का अस्तित्व तुष्टिकरण के लिए ही है.
  
             


सुप्रीम कोर्ट में अल्पसंख्यकों के अधिकार का मामला   

एडवोकेट अंकुर शर्मा ने वर्ष 2016 में सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल अपनी एक याचिका में का था कि जम्मू-कश्मीर ने अबतक राज्य अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम नहीं बनाया है, जो इसकी विधानसभा को निर्धारित मानदंडों को लागू करके अल्पसंख्यों को अधिसूचित करने का अधिकार देता है.नतीज़तन, अल्पसंख्यक समुदायों को मिलने वाला लाभ मनमाने और अवैध तरीक़े से मुसलमानों को दिया जा रहा है, जो कि एक बहुसंख्यक समुदाय है.



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सुप्रीम कोर्ट में अल्पसंख्यकों के अधिकार का मामला 

      



एडवोकेट शर्मा ने कहा था –


” जम्मू-कश्मीर में धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों (दूसरे अधिसूचित समूहों और हिन्दुओं) की पहचान न करके और उन्हें अधिसूचित न करके उनके प्रासंगिक मौलिक अधिकारों को व्याहारिक रूप से ख़त्म कर दिया गया है.इस कारण राज्य में अनुच्छेद 29 और 30 (अल्पसंख्यकों के अधिकार) के तहत संवैधानिक गारंटी की कोई गारंटी नहीं है. ”




एडवोकेट शर्मा ने मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ को मोदी सरकार के 15 सूत्रीय कार्यक्रम के कार्यान्वयन दिशानिर्देशों के क्लॉज़- 7-बी की हक़ीक़त और मोदी-महबूबा की केंद्र-राज्य सरकार द्वारा उसकी अवहेलना के बारे में बताया.फ़िर कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को नोटिस ज़ारी कर ज़वाब दाखिल करने को कहा.


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15 सूत्रीय कार्यक्रम की इम्प्लीमेंटेशन गाइड लाइन में क्लॉज़ 7-बी 

   



एडवोकेट अंकुर शर्मा ने दरअसल, कोर्ट का ध्यान अल्पसंख्यकों के साथ हो रही उपेक्षा के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर में बदहाल अल्पसंख्यक हिन्दुओं की तरफ़ भी खींचा था और कहा था कि अन्य अधिसूचित अल्पसंख्यक समूहों के साथ-साथ हिन्दुओं को भी अधिसूचित कर योजनाओं का लाभ दिया जाए.मगर पीडीपी और बीजेपी, दोनों ही इसके लिए तैयार नहीं थे.इस बाबत पीडीपी मुखर थी, जबकि बीजेपी मौन रहकर पीडीपी का ही समर्थन कर रही थी.

कोर्ट को ज़वाब देते हुए फ़िर जम्मू-कश्मीर सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा-


”  प्रधानमंत्री के 15 सूत्रीय कार्यक्रम के क्लॉज़ 7 का हवाला दिया गया है, जिसमें अल्पसंख्यक समुदायों जैसे मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी के लिए लक्षित कार्यक्रमों की बात कई गई है.इस खंड में आगे कहा गया है कि जहां उपरोक्त अल्पसंख्यक समुदायों में से कोई एक यदि बहुसंख्यक है, तो वहां विभिन्न योजनाओं के तहत भौतिक/वित्तीय लक्ष्यों का निर्धारण राज्य के अन्य अधिसूचित अल्पसंख्यकों के लिए करना होगा.लेकिन यह चूंकि क़ानून का हिस्सा नहीं है, इसलिए इसे लागू नहीं किया जा सकता.साथ ही, जम्मू-कश्मीर में अल्पसंख्यक हिन्दू, राज्य में अपनी (अल्पसंख्यक आयोग द्वारा) पहचान होने तक अल्पसंख्यक लाभों के हक़दार नहीं हो सकते. ”



इसके साथ ही, एक प्रकार का भ्रमजाल बनाते और भय दिखाते हुए सरकार का ये भी कहना था कि जम्मू-कश्मीर एक मुस्लिम बहुल और संवदनशील राज्य है.यहां कुछ भी बदलाव लाने से हालात बिगड़ सकते हैं.
  
फ़िर एडवोकेट शर्मा ने कोर्ट को वर्ष 2002 के टीएमए पाई फाउंडेशन और अन्य बनाम कर्नाटक राज्य मामले पर सुप्रीम कोर्ट के ही फ़ैसले हवाला देते हुए कहा कि उसमें ये कहा गया था कि भाषाई और धार्मिक अल्पसंख्यक संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत ‘अल्पसंख्यक’ अभिव्यक्ति से आच्छादित हैं.चूंकि भारत में राज्यों का पुनर्गठन भाषाई आधार पर हुआ है, इसलिए अल्पसंख्यक के निर्धारण के उद्देश्य से ईकाई राज्य होगी न कि संपूर्ण भारत.

एडवोकेट अंकुर शर्मा ने विभिन्न क़ानूनों, धर्मनिरपेक्षता और भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक के स्थान और महत्त्व की चर्चा करते हुए प्रतिवादियों को घेरा और अदालत से न्याय की गुहार की.इसपर कोर्ट ने फ़िर केंद्र और राज्य को आपस में मिल बैठकर मसले को सुलझाकर ज़वाब दाख़िल करने को कहा.लेकिन, इसमें वे बहानेबाज़ी/आनाकानी करते रहे.यह देखते हुए कोर्ट ने दो बार उनपर 30-30 हज़ार का ज़ुर्माना लगाया और सख्त़ रूख़ अपनाते हुए चार हफ़्ते के अंदर ज़वाब दाख़िल करने को कहा.



अल्पसंख्यकों का हक़,मुसलमानों पर ख़र्च,PMO पर आरोप
कोर्ट (प्रतीकात्मक)



इस तरह काफ़ी डांट फटकार के बाद दोनों सरकारों ने मिलकर एक संयुक्त कमिटी बनाई और फ़िर संयुक्त रूप से ये ज़वाब आया-


” राज्य सरकार राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में फ़ैले अल्पसंख्यकों के सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन के अध्ययन के आधार पर आवश्यकतानुसार राज्य अल्पसंख्यक आयोग के गठन की आवश्यकता और व्यवहार्यता पर विचार करगी.

राज्य के अल्पसंख्यकों की विशेष आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार द्वारा एक विशेष परियोजना ‘मुख्यमंत्री समावेशी विकास पहल’ तैयार की जा रही है.

उक्त परियोजना में समाज के कुछ विशेष वर्गों के लिए विकास प्रयास केन्द्रित होंगें और इसमें नागरिक बुनियादी ढ़ांचे जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी आदि का उन्नयन शामिल होगा.

जो छात्र अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय की योजनाओं में शामिल नहीं हैं, उनके लिए छात्रवृत्ति योजना और ऐसी अन्य योजनाएं चलाई जाएंगीं, ताकि जम्मू-कश्मीर में रहनेवाले अल्पसंख्यकों के साथ-साथ आबादी के विशेष वर्गों की भी कठिनाइयों का ध्यान रखा जा सके. ”



एडवोकेट अंकुर शर्मा का कहना है कि हमारा मसला हल हो चुका था, हमारी कोई लड़ाई शेष नहीं रही.हम निश्चिन्त हो गए कि अब हालात बदलेंगें.लेकिन कुछ नहीं हुआ.जो वादा उन्होंने किया था, उसे निभाया नहीं.सबकुछ वैसा का वैसा ही चलता रहा और आज भी वैसा ही चल रहा है.एडवोकेट शर्मा कहते हैं-


” मुझे ये कहते बड़ी शर्म आ रही है कि धारा 370 और 35 ए के हटने और राज्य के केंद्रशासित प्रदेश बन जाने के बाद भी हालात में कोई परिवर्तन नहीं आया है, यहां की परिस्थितियां जस की तस हैं.कांग्रेस सरकारों की तरह ही केंद्र की मोदी सरकार द्वारा भी मुस्लिम तुष्टिकरण और बाक़ियों की उपेक्षा ज़ारी है. ”




ग़ौरतलब है कि ऐसी शिक़ायत अकेले एडवोकेट शर्मा की ओर से ही नहीं है, बल्कि तमाम गैर-मुस्लिम बुद्धिजीवी/नेता, वे चाहे घाटी के हों या फ़िर जम्मू क्षेत्र के, सभी प्रदेश में अल्पसंख्यकों, कश्मीरी हिन्दुओं और ख़ासतौर से जम्मू क्षेत्र के लोगों की उपेक्षा को लेकर खुलकर मोदी सरकार के विरोध में उतर आए हैं और वे जम्मू-कश्मीर को तीन भागों में बांटने की मांग कर रहे हैं.ये गंभीर चिंता का विषय है.इसपर ज़ल्द ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है.


  
       
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