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सभ्यता एवं संस्कृति

सिनौली में खुदाई के नतीज़ों का अध्ययन

उत्तर प्रदेश के बागपत ज़िले की बड़ौत तहसील के गांव सिनौली में जो दुर्लभ पुरावशेष मिले हैं वे भारत के इतिहास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं.आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों की नई खोज के बाद अब इस दूसरी नई ख़ोज ने वास्तविक प्राचीन भारत को विश्व पटल पर ला खड़ा कर दिया हैं.उसमें हमारे वैज्ञानिकों ने जिस तरह अंग्रेजों के झूठ और उनकी नकली सोच का पर्दाफाश करते हुए ये साबित कर दिया कि सिन्धु घाटी सभ्यता 5500 वर्ष पुरानी नहीं बल्कि 8000 (6000 ईसा पूर्व) वर्ष पुरानी/मिस्र और मेसोपोटामिया से पहले की है,उसी तरह सिनौली में खोज़ के परणामों ने वैदिक सभ्यता यानि प्रारंभिक हिन्दू सभ्यता/संस्कृति के रहस्यों को उजागर कर दिया है.इसे महाभारत काल का एक राज्य/नगर बताया गया है.

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सिनौली में खुदाई व वैदिक सभ्यता (प्रतीकात्मक)

  

इससे ये साबित हो चुका है कि भारत पर आर्यों के आक्रमण की थ्योरी ग़लत थी.वामपंथी इतिहासकारों द्वारा लिखित भारत का इतिहास जो अब तक पढ़ाया-बताया जाता रहा है,वह झूठा एवं प्रपंच मात्र है.
 

ऐतिहासिक स्थल है सिनौली 

देश की राजधानी दिल्ली से 70 किलोमीटर दूर यमुना नदी से 7 किलोमीटर पूर्व की ओर स्थित है ये सिनौली.दोआब क्षेत्र यानि गंगा-यमुना नदियों के बीच स्थित यह स्थल पानीपत,कुरुक्षेत्र और हस्तिनापुर जैसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों के क़रीब है जहां पहले ही पुरातात्विक खुदाई में बहुत सारे मिट्टी के बर्तन आदि मिल चुके हैं.

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सिनौली के आसपास हुई खुदाई वाले क्षेत्र 

 

यहां से कुछ ही दूरी पर हिंडन और कृष्णा नदी के बीच बरनावा गांव में बड़े टीले पर लाक्षागृह में वह गुफा भी मौज़ूद है,जिसके बारे में दावा किया जाता है कि लाख के घर में आग लगने के बाद इसी गुफ़ा से पांडव जान बचाकर निकले थे. 

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महाभारतकालीन लाक्षागृह व गुफ़ा 

 

कुछ इतिहासकार बताते हैं कि पांडवों की ओर से श्रीकृष्ण के ज़रिए एक शांति प्रस्ताव भेजा गया था.इसमें महाभारत का युद्ध रोकने के बदले अपने लिए उन्होंने जो पांच गांव मांगे थे,उनमें बागपत भी एक था.मगर दुर्योधन वो पांच गांव (श्रीपत,बागपत,सोनीपत,पानीपत और तिलपत) तो क्या सुई की नोक बराबर भी ज़मीन देने को तैयार नहीं हुआ और इसी के कारण दुनिया का सबसे बड़ा और भयानक युद्ध हुआ,जिसमें असंख्य लोग मारे गए.

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महाभारत का युद्ध (प्रतीकात्मक)
बागपत ज़िले के ही बिनौली थाना क्षेत्र के चंदायन गांव के जंगलों में हुई खुदाई में भी पुरातत्व विभाग की टीम को एक प्राचीन हड़प्पा काल की बस्ती के सबूत मिले थे.वहां मानव कंकालों के साथ ही बर्तन आदि पाए गए थे.

सिनौली में क्या मिला?

यहां खुदाई में एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) को नरकंकाल,समाधि,ताबूत,तांबे के कड़े,तलवार,म्यान,धनुष-वाण,खंती,सोने के ज़ेवरात,मनके,बर्तन,मशाल,शवों को जलाने की भट्टी और खंडहरनुमा रसोई मिली है.
इसके अलावा प्राचीन भारत के रथ और कई प्रकार के हथियार भी मिले हैं.
   

पुरुष व महिला योद्धाओं के कंकाल  

तीन चरणों की खुदाई में अब तक 125 नर कंकाल मिल चुके हैं.
इन नर कंकालों में कई ऐसे हैं जो महान योद्धाओं,जिनमें पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं,के कंकाल बताए गए हैं.
कवचधारी (कवच पहने हुए) इन कंकालों के साथ उनके हथियार मिले हैं,जो युद्ध में इस्तेमाल होते थे.   
तीन ऐसे शव (कंकाल) बरामद हुए हैं जो शाही ताबूतों में रखकर दफनाए गए थे.उनमें से एक कंकाल किसी महान महिला योद्धा का है,जिसे शाही परिवार की महिला या राजकुमारी का कंकाल बताया गया है.

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खुदाई में प्राप्त महिला योद्धा (राजकुमारी) का कंकाल और ज़ेवरात 


इस कवचधारी कंकाल की कोहनी वाले हिस्से में गोलाकार गोमेद (एगेट) आदि रत्न-जड़ित आभूषण मिले हैं.
इसमें 10 की संख्या में भड़कीले लाल रंग के बर्तन,पानी के दो बड़े पात्र (बेसिन) और एंटीना तलवार भी है. 
इस कंकाल के पास शस्त्रों (हथियारों) के साथ कई सारे स्वर्णाभूषण भी पाए गए हैं.
सभी शवों के पास बर्तनों में चावल,दाल और उड़द आदि अनाज के दाने व राख के अवशेष मिले हैं.

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शवों के पास कटोरों में रखे अनाज के दाने 

 

वहीं कंघा,दर्पण,कटोरे,मृद्भांड (मिट्टी के बर्तन) और रोज़मर्रा की अन्य कई चीज़ें भी मिली हैं.

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कंघे,दर्पण और स्वर्णाभूषण 

 

समाधि (क़ब्रें)

सिनौली की खुदाई में कुल आठ शाही समाधि (क़ब्रें) मिली हैं.
उनमें से तीन क़ब्रें ऐसी हैं जो सेनानायकों (उनके पद (रैंक) के हिसाब से) या राजा या फ़िर राजपरिवार के सदस्यों की हैं जिन्हें ताबूत में रखकर दफ़नाया गया था.ताबूत के पास ही उनके रथ,हथियार और अन्य सामान गड़े मिले हैं.
इन समाधि में ताबूतों के नीचे भूमिगत कक्ष यानि तहख़ाने (अंडरग्राउंड चैम्बर्स) बने हुए हैं.

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समाधि में ताबूत व उसके नीचे बना तहख़ाना 
विशेषज्ञों का ये मानना है कि इन भूमिगत कक्ष का इस्तेमाल यहां अंतिम संस्कार के लिए शवों को लाने,उनका शुद्दिकरण कर उन पर लेप आदि लगाने के लिए किया जाता रहा होगा.यहीं उनपर कपड़े लपेटने के बाद ताबूत में रखकर उन्हें दफ़नाया जाता होगा.
इन कक्ष के प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा की ओर हैं.
    

टांगों वाले ताबूत 

इस खुदाई में अति महत्वपूर्ण ख़ोज हैं ताबूत.यहां लकड़ी के बने कुल तीन ताबूत मिले हैं जो टांगों वाले व चारपाईनुमा हैं.इनमें से दो ताबूत ऐसे हैं जिनपर विशेष प्रकार की सजावट है.इन पर तांबे की पीपल व पशुपतिनाथ (भगवान शिव) की आकृतियां उकेरी गई हैं.

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चारपाईनुमा ताबूत और उस पर बने पीपल व भगवान पशुपतिनाथ के चित्र 
तीसरा ताबूत सादा है यानि उस पर सजावट (कारीगरी) नहीं मिलती.इसमें एक महिला योद्धा का कंकाल है,जिसे शाही परिवार की महिला अथवा राजकुमारी का कंकाल बताया गया है.
आठ में से तीन शाही क़ब्रों में शवों को इन्हीं ताबूतों में रखकर दफ़नाया गया था.

रथ व चाबुक

सिनौली की खुदाई में जो सबसे महत्वपूर्ण ख़ोज है वह है रथ.यहां तीन ऐसे रथ मिले हैं जो उस समय के हिसाब से सबसे विकसित और आधुनिक ज़माने के रथों जैसे ही हैं.

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रथ के अवशेष व उसका डायग्राम 


इन्हें मेसोपोटामिया,जौर्ज़िया और ग्रीक में मिले रथों के मुक़ाबले बहुत उन्नत और विकसित बताया गया है.

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रथ का डायग्राम व रथ (प्रतीकात्मक)


समाधियों में मिले ये रथ ताबूतों के पास दफ़न किए गए थे.
लकड़ी के बने इन रथों में दो ठोस पहिए हैं.पहिया एक निश्चित धुरा (फिक्स्ड एक्सेल- अक्ष) पर घूमता था जो एक शाफ़्ट द्वारा मोहरे (योक) से जुड़ा होता था.
पूरे रथ में तांबे की मोटी चादर चढ़ी है.
पहिए को तांबे के बने त्रिकोणों से सजाया गया है.
बैठने का स्थान (सीट) अर्ध-वृत्ताकार है तथा इसका फ्रेम तांबे की पाइप से बना है.
रथ के उपरी हिस्से में बीच में छत को उठाए रखने के लिए प्रयोग में आने वाली एक मोटी पाइप भी जुड़ी हुई है.
एक रथ इनमें ख़ास है.उसकी बनावट तो अन्य दो रथों जैसी ही है,उन पर भी तांबे की मोटी परतें चढ़ी हुई हैं मगर, इसमें आधार (पिछला हिस्सा) और मोहरे को जोड़ने वाला खंभा (पोल) तथा मोहरे (योक) पर तांबे की बनी परतों के रूप में त्रिकोण आकार की ख़ूबसूरत और विशेष सजावट है. 
ये रथ घोड़ों के द्वारा खींचे जाते थे,ये साबित हो गया है.
रथ के साथ चमड़े के चाबुक मिले हैं,जिसका इस्तेमाल कर घोड़ों को तेज़ चलाया जाता है.

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चाबुक का अवशेष व चाबुक (प्रतीकात्मक)


युद्ध के हथियार 

इस खुदाई में युद्ध में इस्तेमाल होने वाले कई सारे हथियार मिले हैं,जो उस समय के हिसाब से सबसे विकसित और आधुनिक युग में बने हथियारों के जैसे ही उपयोगी हैं.
वैसे तो यहां मिला पूरा शवाधान केंद्र (क़ब्रिस्तान) हथियारों से भरा पड़ा है मगर जो ख़ास हैं वो हैं तांबे की बनी एंटीना लगी तलवारें.ये उस काल की सबसे बेहतरीन तलवारें हैं,इतिहासकार ये क़बूल कर रहे हैं.

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एंटीना तलवार का अवशेष व तलवार (प्रतीकात्मक)

  

अन्य सामान्य तलवारें,खंज़र (छोटी तलवारें,कटार),तीर-धनुष और तांबे के नाख़ून आदि भी मिले हैं.
ताम्र-निर्मित दुनिया के सबसे पुराने हेलमेट (मुकुट) मिले हैं.

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हेलमेट के अवशेष व हेलमेट (प्रतीकात्मक)

  

बेहतरीन क़िस्म के कवच (छाती को ढंकने के लिए प्रयोग में आनेवाली युद्ध सामग्री) मिले हैं.
वायलिन के आकार की तांबे की मोटी चादर की बनी ख़ास तरह की ख़ूबसूरत और मज़बूत ढ़ालें ऐसी मिली हैं जो  हमले के दौरान बड़ी तलवारें ही नहीं भारी-भरकम भालों  के प्रहार से भी बचाने में उपयोगी हैं.

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पुरुष व स्त्री योद्धाओं की ढ़ालें (प्रतीकात्मक) 

 

पुरुष व महिला योद्धाओं के लिए अलग-अलग तरह की ढालें हैं जिन्हें ज्यामितीय पैटर्न से सजाया गया है.
ये एक बेहद उन्नत/विकसित कारीगरी का नमूना हैं.
हॉलीवुड की पुराने ज़माने के युद्ध पर आधारित फिल्मों में ऐसी ही उन्नत व विकसित किस्म की ढ़ालें दिखाई देती हैं.
 

बहुमूल्य रत्न व ज़ेवरात

यहां विभिन्न प्रकार के बहुमूल्य रत्न तथा सोने एवं तांबे के आभूषण मिले हैं.
रत्नों में गोमेद,मूंगा और मोतियों की मालाएं मिली हैं.
सोने के कंगन,तांबे की चुड़ियां और बेहतरीन कारीगरी वाले बाजूबंद मिले हैं.

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खुदाई में प्राप्त बहुमूल्य रत्न व ज़ेवरात के साथ प्रतीकात्मक फ़ोटो 
 

मृद्भांड व अन्य बर्तन 

बहुत सारे आकार-प्रकार के यहां मृद्भांड (मिट्टी के बर्तन) मिले हैं.

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खुदाई में प्राप्त मिट्टी के बर्तन 

 

तांबे का बना करछुल,ग्रे-वेयर पॉटरी व टेराकोटा के बड़े बर्तन खुदाई में निकले हैं.
कांसे के भी कई बर्तन मिले हैं. 
इसके अलावा टेराकोटा की ख़ूबसूरत मूर्तियां मिली हैं.

खोज़ के नतीज़े

यहां पाई गई विभिन्न वस्तुओं की कार्बन डेटिंग लखनऊ स्थित बीरबल साहनी इंस्टीच्यूट ऑफ़ पेलियोसाइंसेज़ में हुई है जहां सी-14 डेटिंग तकनीक की सुविधा है.इसके अलावा,कुछ मानव अवशेषों का निरीक्षण डेक्कन कॉलेज़,पुणे में में हुआ है जबकि उनके डीएनए सैम्पल की जांच हैदराबाद के लैब में हुई.

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विभिन्न संस्थान जहां मानव अवशेषों और अन्य वस्तुओं की जांच हुई 

 

नतीज़े आए और ये साबित हो गया कि खुदाई में प्राप्त मानव अवशेष और विभिन्न वस्तुएं तक़रीबन 4000 (3800) साल पुरानी यानि 2000-1800 ईसा पूर्व (बीसी) की हैं.

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न्यूज़ क्लिप जिसमें कार्बन डेटिंग का सर्वप्रथम खुलासा हुआ 


ओसीपी कल्चर,योद्धा समाज और समृद्ध सभ्यता 

सिनौली की सभ्यता को ताम्र-पाषाण युग (चाल्कोलिथिक एज़) अथवा कांस्य युग (ब्रोंज एज़) की सभ्यता बताया गया है,जो लौह युग से पहले की सभ्यता थी.यह ओसीपी कल्चर वाली योद्धा समाज की सभ्यता थी.
उल्लेखनीय है उत्तर भारत के गंगा-यमुना क्षेत्र में कई स्थानों पर हुई खुदाई में ओसीपी कल्चर (गेरू रंग के बर्तनों की संस्कृति) देखने को मिली है.सिनौली भी उन्हीं में से एक है.मगर महत्वपूर्ण बात ये है कि गेरू (भगवा) रंग के बर्तनों के साथ ही यहां बहुत सारे हथियार भी मिले हैं.
वास्तव में,केवल सिनौली में ही तांबे के हथियार मिले हैं.
5000 साल पुराने जो सबसे उन्नत एवं विकसित रथ और ताबूत यहां मिले हैं वो पहले किसी उत्खनन में भारतीय उपमहाद्वीप में नहीं मिले.साथ ही बेहतरीन क़िस्म की तलवारें,ढ़ालें,कवच और तांबे के नाख़ून भी मिले हैं.
यहां युद्ध-सामग्री को देखकर उस समय की युद्धकला का अंदाज़ा बड़ी आसानी से लगाया जा सकता है.मगर हमें ये भी नहीं भूलना चाहिए यहां 5000 साल पहले जिस तरह लोगों द्वारा सोने,तांबा समेत अन्य धातुओं का प्रयोग किया जाता था,वह अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है.
धातुओं का उस समय किया जाने वाला प्रयोग और तकनीक इतनी अधिक बेहतर और शानदार है कि आज के समय में सिर्फ़ मशीनों के ज़रिए ही मुमकिन है.
छोटे-छोटे औज़ारों के सहारे सोने की अंगूठी और मनके तैयार किए जाते थे.सोने की बनी अंगूठियों की चमक और उन पर नक्क़ाशी ऐसी है कि वह आज के ज़माने में भी नामुमकिन दिखाई देती है.
रथ समेत अन्य वस्तुओं को तैयार करते समय जोड़ों (जॉइंट्स) को जोड़ने के लिए तांबे की कीलों का प्रयोग किया जाता था.वो कीलें यहां पहली बार मिली हैं.
     

वैदिक काल के प्रमाण

सिनौली की खुदाई में प्राप्त अवशेषों से उस समय के रीति-रिवाज़ और संस्कारों का पता चलता है.वे ठीक वैसे ही हैं जैसे वैदिक काल (वेदों में वर्णित) में प्रचलन में थे.
वेदों में जिस प्रकार शवों को जलाने के साथ दफ़नाने की प्रथा का भी उल्लेख है,उसी प्रकार सिनौली में भी शवों को जलाने की भट्टी,जले हुए शवों की राख़ के साथ दफ़नाए गए शवों के अवशेष भी मिले हैं.
ताबूतों के नीचे तहखानों में शवों को दफ़नाने से पहले आर्यों की संस्कृति के अनुसार उन्हें नहला-धुलाकर,लेप आदि लगाने के बाद कपडे में लपेटा जाता था.
शवों के पास रखे बर्तनों में चावल,दाल,उड़द और राख के अवशेष मिले हैं.
वहां बर्तनों की संख्या विषम है.ये आर्यों की संस्कृति का ही परिचायक है.
आर्यों की संस्कृति में मृत व्यक्ति की प्रिय सभी वस्तुएं शव के साथ रखे जाने का वर्णन मिलता है.वैसा ही चलन सिनौली के उत्खनन में देखने को मिला है.शवों के पास कंघे,चुडियां,दर्पण,ज़ेवरात,बहुमूल्य रत्नों आदि के साथ उनके रथ और हथियार भी दफ़न किए गए मिले हैं.
एक शव के साथ कुत्ता तो एक शव के साथ पक्षी भी दफ़नाया गया मिला है.
क़ब्रों में ताबूतों के नीचे जो तहख़ाने मिले हैं,उनका प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा की ओर है.
दफ़नाए गए शवों के सिर का स्थान उत्तर की ओर है जबकि पैर दक्षिण दिशा में पाए गए हैं.
कुछ ताबूतों पर तांबे की कारीगरी के साथ पीपल और पशुपतिनाथ के चित्र बने हुए मिले हैं.

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नेपाल के काठमांडू (ऊपर) तथा नीचे मध्यप्रदेश के मंदसौर का पशुपतिनाथ मंदिर  


भगवान शिव जिन्हें पशुपतिनाथ भी कहा गया है,वह किसके भगवान हैं?
पीपल को प्राचीन आर्य सबसे पवित्र वृक्ष मानते थे.
आज के हिन्दू समाज में भी पीपल का उतना ही महत्त्व क़ायम है.
यदि किसी हिन्दू के घर में या दरवाज़े पर पीपल का पौधा उग आए तो हिन्दू उसे काटता नहीं है.
इसे काटना/उखाड़ना ब्रह्म-हत्या की श्रेणी में आता है.इसलिए हिन्दू इस पौधे का केवल स्थान-परिवर्तन धार्मिक विधि-विधान के साथ करता है.एक जगह से ले जाकर दूसरी जगह पर लगा दिया जाता है.
यहां जल आदि चढ़ाए जाते हैं,पूजा होती है,मन्नतें मांगी जाती हैं.

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पीपल के वृक्ष का पूजन करती स्त्री 


तमाम मंदिर परिसरों में इसके वृक्ष मिलते हैं.
ये तमाम प्रमाण चीख-चीखकर कहते हैं कि सिनौली में खोजी गई सभ्यता वैदिक/प्राचीन आर्यों/सनातन हिन्दुओं की सभ्यता है.फ़िर क्यों इतिहासकार मुंह नहीं खोलते? क्यों सच क़बूल नहीं कर रहे हैं?
इतिहासकार क्यों नहीं कहते कि सरस्वती नदी के किनारे विकसित हुई सभ्यता ही वैदिक सभ्यता थी,जिसे वामपंथियों ने सिन्धु घाटी सभ्यता नाम दिया था? वह (तथाकथित सिन्धु घाटी सभ्यता) वास्तव में पूर्व वैदिक कालीन सभ्यता थी जबकि सिनौली में खोजी गई सभ्यता उत्तर वैदिक कालीन सभ्यता (महाभारत काल की) थी.

सिनौली में खुदाई,बेहतरीन नतीज़े,नतीज़ों का अध्ययन
सरस्वती नदी के किनारे विकसित वैदिक सभ्यता (प्रतीकात्मक)

  

दरअसल,इधर भारत में जिस तरह अंग्रेज़ी सभ्यता में पोषित वामपंथी इतिहासकार कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं वैसे ही विदेशी/पश्चिमी इतिहासकारों के पैरों तले ज़मीन खिसक गई है.उनके द्वारा लिखित अपना ही इतिहास झूठा लगने लगा है.यह बड़ा संकेत है ज़ल्दी बदलाव का वर्ना अगली पीढ़ी लैला-मजनूं जैसी कहानियों से मुंह फ़ेर लेगी.
दुनिया को अपना इतिहास दुबारा लिखना ही होगा.      
और चलते चलते अर्ज़ है ये शेर…

ख़्वाबों की हक़ीक़त भी बता क्यूं नहीं देते,
वो रेत का घर है तो गिरा क्यूं नहीं देते |

और साथ ही…

इस हक़ीक़त का हसीं ख़्वाबों को अंदाज़ा नहीं,
ज़िन्दगी वो घर है जिसमें कोई दरवाज़ा नहीं |           
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