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मेजर जनरल सुभाष शरण को दारुल उलूम देवबंद भेजकर, मोदी सरकार ने क्या सेना का राजनीतिक इस्तेमाल किया?

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.  भारतीय सेना के किसी अधिकारी का दारुल उलूम देवबंद जाना एक ऐतिहासिक घटना
 
.  मेजर जनरल सुभाष शरण ने देवबंद की तारीफ़ की और प्रतीक चिन्ह भेंट किया
  
.  मेजर जनरल ने दारुल उलूम के छात्रों को भर्ती का ऑफर देते हुए उन्हें बायोडाटा भेजने को कहा
 
.  मेजर जनरल शरण ने दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम मौलाना नोमानी से कहा- ‘यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ – सबका विकास और सबका विश्वास के आह्वान से प्रेरित है’
 
      
 
भारतीय सेना के किसी अधिकारी का दारुल उलूम देवबंद जाना और वहां लोगों से मिलकर मदरसे के प्रति किसी प्रकार की राय ज़ाहिर करना अभूतपूर्व कार्य था.ख़ुद दारुल उलूम के 150 साल के इतिहास में यह एक अनोखी घटना थी.इसे परिवर्तन कहा जाए या आकस्मिक घटना? जो भी हो मगर यह हमारी सेना की परंपरा के ख़िलाफ़ है.एक सैनिक द्वारा किसी जाति-मज़हब को राजनीतिक संदेश दिया जाना बड़ा अज़ीबोग़रीब और विवादास्पद तो है ही, साथ ही, यह एक बड़ा सवाल भी है कि इस प्रकार, क्या मोदी सरकार ने सेना का राजनीतिक इस्तेमाल किया?
 
 
 
 
मेजर जनरल सुभाष शरण के साथ दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम व अन्य

 

 
 
उल्लेखनीय है कि भारतीय सेना विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेना है.वतन पर मर मिटने वाली हमारी महान सेना का हरेक सैनिक हमारी ज़ान से भी ज़्यादा प्यारा होता है.हम इसके चरणों में पुष्प अर्पित करते हैं, नमन करते हैं.अतः इसपर कोई सवाल नहीं उठाया जा सकता.साथ ही, चूंकि यह एक, सरकार द्वारा गठित, संचालित और सरकार के ही कार्यादेशों का पालन करने वाली संस्था/संगठन है इसलिए, इससे जुड़ी तमाम बातों के लिए केवल और केवल सरकार की ज़वाबदेही बनती है और सरकार की नीतियों और कार्यकलापों पर प्रश्न उठाने, उसपर तर्क करने का अधिकार हर नागरिक को है.
      
हम सभी जानते हैं कि किसी भी घटना का कोई कारण होता है और हरेक कारण के पीछे कोई न कोई दिमाग ज़रूर लगा होता है.मगर पहले से मालूम नहीं होने के कारण हमें लगता है कि कोई घटना अचानक घटित हुई है.कुछ ऐसा ही वाक़या सहारनपुर जिले के देवबंद स्थित दारुल उलूम मदरसे में हुआ जो कट्टर इस्लामिक दुनिया में एक जाना-पहचाना नाम और प्रेरणा का स्रोत है.
 
 
 
 
दारुल उलूम देवबंद

 

 
 
नोट:- हम यहां घटना (मेजर जनरल शरण का दारुल उलूम देवबंद दौरा) के वर्णन के साथ-साथ प्रश्नोत्तर के ज़रिए वहां हुई बातचीत के निहितार्थ की भी व्याख्या कर रहे हैं, ताकि घटना और उससे जुड़े तमाम तथ्य स्पष्ट हों.     
यह घटना 22 जून 2019 की है.शाम के वक़्त बिन बुलाए, बिन बताए उत्तरप्रदेश व उत्तराखंड जोन के भर्ती निदेशालय के एडीजी मेजर जनरल डॉ. सुभाष शरण यहां अचानक पहुंचे और दारुल उलूम के मोहतमिम (प्रशासक,प्रबंधक) मौलाना अबुल कासिम नोमानी से मिले.दोनों में लंबी वार्ता हुई.
 
इस दौरान मेजर जनरल डॉ. सुभाष शरण ने मोहतमिम से कहा कि सेना में इमाम समेत बहुत से ऐसे पद हैं जिन पर यहां के छात्र सेना और देश की सेवा कर सकते हैं.वहीँ मोहतमिम ने उनसे बताया कि दारुल उलूम में दी जा रही शिक्षा हासिल करने के बाद छात्रों को देश-विदेश की बहुत सी यूनिवर्सिटी में सीधे प्रवेश मिल जाता है.
 
इस पर मेजर जनरल ने यहां के छात्रों को सेना में भर्ती का ऑफ़र देते हुए उन्हें बायोडाटा भेजने को कहा.
 
उन्होंने जानकारी दी कि सेना के भर्ती निदेशालय की ओर से ज़ल्द दारुल उलूम को सभी महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश प्रदान किए जाएंगें, जिससे वह युवाओं को सेना में विभिन्न पदों के लिए भर्ती के योग्य प्रशिक्षित कर सकें.
 
मोहतमिम मौलाना अबुल कासिम नोमानी ने ख़ुशी ज़ाहिर की और कहा कि दारुल उलूम के 150 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब भारत का कोई सैन्य अधिकारी हमारे युवाओं को सेना में जगह देने के लिए ख़ुद यहां आया है.
 
 
प्रश्न 1.  ‘भारत का कोई सैन्य अधिकारी’ के बजाय ‘हमारे देश का सैन्य अधिकारी’ या ‘हमारे सैन्य अधिकारी’ क्यों नहीं कहा गया?
उत्तर: ‘हमारे देश का सैन्य अधिकारी’ या ‘हमारे सैन्य अधिकारी’ न कहकर ‘भारत का सैन्य अधिकारी’ कहा गया क्योंकि ‘भारत’ शब्द में परायेपन का भाव छुपा हुआ है.यहां देवबंदी विचारधारा के मुताबिक़, ‘भारत’ उनका अपना मुल्क नहीं बल्कि एक दारुल हरब (ऐसा देश जहां इस्लामिक शासन न हो) है, जिसके खिलाफ़ संघर्ष ज़ारी है.
 
प्रश्न 2.  ‘ख़ुद यहां आया है’ का मत्लब क्या है?
उत्तर:  ‘ख़ुद यहां आया है’ का मत्लब ‘उसे हमने नहीं बुलाया है’.यानि भारत की सत्ता ने समझौते के लिए अपनी ओर से हाथ बढ़ाया है/झुकी है, जबकि हम टस से मस नहीं हुए हैं.इसमें सीजफायर (युद्धविराम) जैसी स्थिति का भाव है.
 
 
 
मोहतमिम ने मीडिया को बताया कि उन्होंने इस पहल की वज़ह पूछी तो मेजर जनरल शरण ने उन्हें बताया कि  ‘यह पहल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ – सबका विकास और सबका विश्वास के आह्वान से प्रेरित है.’
 
 
प्रश्न:  ‘आह्वान से प्रेरित है’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:  ‘सबका विश्वास के आह्वान से प्रेरित’ होने का अर्थ यह है कि हर क़ीमत पर मुसलमानों का विश्वास हासिल करना चाहते हैं और इसके लिए हिदुओं और इस देश की भी अनदेखी कर सकते हैं.
 
दरअसल, मेजर जनरल के कहने का ये आशय रहा होगा कि नरेंद्र मोदी सरकार के आदेश पर वह यहां आए हैं, जो वोटबैंक की ख़ातिर जिहादी-आतंकवादी विचारधारा-प्रशिक्षण केंद्र से भी समझौते करने को भी तैयार है, चाहे इससे देश की आंतरिक सुरक्षा ही ख़तरे में क्यों न पड़ जाए.
 
 
 
जनरल शरण ने दुनिया में दारुल उलूम के योगदान की सराहना करते हुए पूछा कि मदरसे के 150 साल के इतिहास में मज़हब में क्या बदलाव आए हैं.उनके सवाल का ज़वाब देते हुए नोमानी ने कहा कि मज़हब में परिवर्तन नहीं होता, बल्कि समाज में परिवर्तन आया है.’
 
 
प्रश्न:  ‘मज़हब में परिवर्तन नहीं होता’ और ‘समाज में परिवर्तन आया है’ का क्या मत्लब है?
उत्तर:  ‘मज़हब में परिवर्तन नहीं होता’ का मत्लब ये है कि विचारधारा जो 14 सौ साल पहले थी, वैसी की वैसी है, उसमें कोई बदलाब नहीं आया है.’समाज में परिवर्तन आया है’ का मत्लब ये है कि आज समाज के लोग पढ़-लिख रहे हैं, शिक्षित हो गए हैं और उनका दिमाग सातवीं सदी के इतिहास को दोहराने के लिए आधुनिक युग में नई तकनीक के साथ ज़्यादा सक्षम हो गया है.
      
 
 
इसके बाद मौलाना नोमानी ने जनरल शरण को मस्ज़िद रशीदिया, नई एवं पुरानी लाइब्रेरी समेत संस्था के विभिन्न विभागों में घुमाया और उनके बारे में उन्हें जानकारी दी.
 
 
 
 
दारुल उलूम देवबंद की लाइब्रेरी में मेजर जनरल सुभाष शरण
 
 
मौलाना नोमानी ने जनरल शरण को वो क़ुरान भी दिखाई जो ग़ुलाम भारत के सबसे क्रूर और हिन्दुओं के ऊपर ज़ुल्म के इंतहापसंद (अति करने वाले) मुग़ल बादशाह मुहीउद्दीन मोहम्मद उर्फ़ औरंगज़ेब द्वारा अपने शासन काल (1658-1707) में लिखी गई थी.
 
 
 
 
मेजर जनरल सुभाष शरण को औरंगज़ेब की लिखी क़ुरान दिखाते देवबंद के पदाधिकारी

 

 
प्रश्न:  औररंगजेब की लिखी क़ुरान दिखाने का उदेश्य क्या था?
उत्तर: कट्टर जिहादी सोच रखने वाला औरंगज़ेब अक़बर के बाद भारत में सबसे अधिक समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था.उसने लाखों हिन्दुओं का क़त्ल और धर्म परिवर्तन करवाया.
 
उसने सिखों के गुरू तेग बहादुर की हत्या की थी.
 
औरंगज़ेब भारत में मुसलमानों पर शरिया लागू करने वाला पहला मुग़ल शासक था.
 
उसने हिन्दुओं पर ज़ज़िया कर लगाया था.
 
देवबंदी वहाबी (कट्टर इस्लामिक सिद्धांत वाले) सोच रखते हैं और कत्लोगारत के ज़रिए भारत में इस्लामी शासन और शरिया बहाल करना कहते हैं इसलिए वे औररंगजेब के नक्शेक़दम पर चलते हैं.औरंगज़ेब उनका हीरो है.
 
ऐसे में, मेजर जनरल को औरंगज़ेब की लिखी क़ुरान दिखाकर अपनी असली मंशा ज़ाहिर की गई.
      
 
 
आख़िर में मेजर जनरल ने नोमानी को सेना का प्रतीक चिन्ह भेंट किया.
 
 
 
 
दारुल उलूम देवबंद के मोहतमिम को सेना का प्रतीक चिन्ह भेंट करते मेजर जनरल शरण
 
 
 
बताया जाता है कि मेजर जनरल शरण ने मौलाना नोमानी को इस्कॉन के संस्थापक एसी भक्ति वेदांत पभुपद द्वारा लिखी श्रीमदभगवद्गीता की अलग-अलग भाषा में प्रतियां भी भेंट की.इसके बदले में नोमानी ने भी उन्हें दारुल उलूम के इतिहास पर लिखी क़िताब भेंट की.
 
 
 
 

दारुल उलूम देवबंद का इतिहास

1857 के बाद भारत में अंग्रेजी शासन की शुरुआत के साथ ही इस्लामी हुकूमत का अंत हो गया.ऐसे में, इस्लाम की एक बार फ़िर से स्थापना करने के मक़सद से 1866 में मोहम्मद कासिम नानौतवी, राशिद अहमद गंगोही और कई अन्य लोगों ने मिलकर सच्चा इस्लाम और पक्का मुसलमान बनाने के नाम पर देवबंद में दारुल उलूम मदरसे की नींव रखी.
 
अंग्रेजों को भारत से भगाने के लिए, दारुल उलूम देवबंद ने संघर्ष का मार्ग प्रशस्त करने और मुसलमानों को आंदोलित करने में भूमिका निभाई.इसकी सोच ने ही पाकिस्तान को जन्म दिया और अब बाक़ी बचे हिंदुस्तान में भी इस्लामी शासन स्थापित करने की योजना पर यह विभिन्न स्तरों पर लगातार काम कर रहा है.
  
आज यह पूरी दुनिया जानती है कि इस मदरसे में इस्लाम की शिक्षा के नाम पर युवाओं में नफ़रत और जिहादी सोच विकसित की जाती है.
 
वर्तमान समय में अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में ज़्यादातर मदरसे इसी देवबंदी विचारधारा को मानने वाले हैं.
तालिबान इन्हीं मदरसों से निकले हुए छात्र हैं.
 
 
 
 
तालिबान लड़ाके

 

 
 
कई एशियाई देशों में विशेषज्ञ मज़ाक़ में अक्सर ये कहते हैं कि ‘दारुल उलूम देवबंद तालिबान की अम्मा है, जबकि पाकिस्तान तथा अफ़ग़ानिस्तान में इस विचारधारा की शाखाएं/संस्थाएं रिश्ते में मौसी और फूफी हैं.’
 
दारुल उलूम देवबंद में पढ़ने वाला छात्र तलबा कहलाता है और इसी तलबा शब्द से तालिबान बना है.तालिबान मुजाहिदीन कहे जाते हैं, जो मज़हब के नाम पर केवल और केवल सत्ता-प्राप्ति के लिए खून-खराबा कर आतंक फैलाते हैं.
 
 
 
     

बगदादी को बधाई के साथ खलीफ़ा की मान्यता दी थी

दारुल उलूम देवबंद की विचारधारा पर आधारित और इसके समकक्ष समझे जाने वाले लखनऊ स्थित इस्लामी शिक्षण संस्थान दारुल उलूम नदवा के शरीयत संकाय के डीन मौलाना सैयद सलमान हुसैनी नदवी ने कुख्यात सुन्नी आतंकवादी गुट ईराक़ और सीरिया (आईएसआईएस) के इस्लामी राज्य के प्रमुख अबु बकर अल बगदादी को ईराक़ सीरिया सीमा पर क़ब्ज़े के लिए बधाई के साथ-साथ उसे खलीफ़ा पद की मान्यता भी दी थी.
 
इसके अलावा, नदवी ने सऊदी सरकार को अरबी में एक भावुक पत्र लिखकर सऊदी सरकार को तोहफ़े में पांच लाख भारतीय सुन्नी युवा मुसलमानों की एक मिलिशिया (छापामार या अनियमित सेना) भेजने की इच्छा जताई थी.
 
उस पत्र में मौलाना ने ये लिखा था कि यह मिलिशिया ‘शक्तिशाली वैश्विक इस्लामी सेना’ का हिस्सा होगी, जो ईराक़ में शिया मुसलमानों के खिलाफ़ तथाकथित खलीफ़ा बगदादी की मदद करेगी.
 
 
 
   

दारुल उलूम के फ़तवे

दारुल उलूम देवबंद अपने फ़तवों को लेकर भी अक्सर चर्चा में रहता है.
 
पिछले साल एक व्यक्ति ने इससे सवाल पूछा था कि बक़रीद के मौक़े पर क़ुर्बानी में खर्च होने वाले पैसे क्या वह ग़रीबों में दान कर सकता है?
 
ये क़ुर्बानी मानी जाएगी या नहीं?
 
इसके ज़वाब में देवबंद ने फ़तवा ज़ारी करते हुए कहा कि क़ुर्बानी के पैसे को किसी ग़रीब या मज़बूर को देने से क़ुर्बानी नहीं मानी जाएगी.यानि बेज़ुबानों (जानवरों) के गले रेते बिना, उनका ख़ून बहाए बिना सवाब नहीं मिलेगा.
 
 
 
 
बक़रीद के मौक़े पर क़ुर्बानी

 

 
 
साल 2018 में दारुल उलूम देवबंद ने मुसलमानों को सीसीटीवी लगवाने को ग़ैर-इस्लामिक बताते हुए फ़तवा दिया था.
 
 
 
 
सीसीटीवी
 
 
इसमें कहा गया था कि मुसलमानों को सीसीटीवी लगवाने से बचना चाहिए क्योंकि इसमें तस्वीरे क़ैद होती हैं, जबकि इस्लाम में बिना ज़रूरत फ़ोटो खीचना-खिंचवाना सख्त़ मना है.
 
देवबंद ने अनजान और दूसरे मर्दों के हाथों चूड़ियां पहनने और मेहंदी लगवाने पर रोक लगा दी थी.
 
 
 
 
मुस्लिम महिला, चूड़ियां और मेहंदी (प्रतीकात्मक)
 
इस फ़तवे में कहा गया था कि शरीयत के हिसाब से मुस्लिम महिला को हर उस मर्द से पर्दा करना होता है, जिससे उसका खून का रिश्ता नहीं है.
 
दारुल उलूम देवबंद ने मुस्लिम औरतों को चुस्त कपड़े, तंग बुर्क़े और जींस पहनने की मनाही कर दी थी.
 
 
 
 
बुर्क़ा,जींस और मुस्लिम महिला
 
 
इसके खिलाफ़ फ़तवे में कहा गया था कि ‘जब कोई औरत घर से बाहर निकलती है तो शैतान उसे घूरता है.इसलिए मुहम्मद साहब ने औरतों को छुपाने की चीज़ बताया है’.ऐसे में, उनका, तंग बुर्क़ों, चुस्त कपड़े और जींस पहनकर, घर से बाहर निकलना इस्लाम के खिलाफ़ है.
  
दारुल उलूम देवबंद ने सऊदी अरब द्वारा महिलाओं के फुटबॉल मैच देखने पर प्रतिबंध को लेकर ज़ारी हुए फ़तवे का समर्थन किया था.
 
 
 
 
फुटबॉल मैच
 
 
इस फ़तवे को लेकर देवबंद ने कहा कि औरतों का फुटबॉल मैच देखना हराम है.मुफ़्ती अथर कासमी के मुताबिक़, फुटबॉल शॉर्ट नेकर पहनकर खेला जाता है, जिसमें मर्दों की टांगें और घुटने दिखाई देते हैं.औरतों के लिए, ये देखना गुनाह है.
 
 
 
    
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