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भारत में बिजली गिरने की घटनाओं में इज़ाफ़ा, मौतें सालाना 3 हज़ार के पार

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हाल के वर्षों में भारत में बढ़ी आसमानी बिजली गिरने की घटनाओं के कारण मौतों की तादाद तेज़ी से बढ़ी है
– पुणे की इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेटेरेलोजी (आईआईटीएम) के मुताबिक़ व्यवस्था व जानकारी के अभाव के चलते भारत में बिजली गिरने से सालाना साढ़े तीन हज़ार लोग मारे जा रहे हैं जबकि इस समस्या से दुनिया में सबसे ज़्यादा प्रभावित क्षेत्र दक्षिण अमरीका में औसतन मृत्यु का आंकड़ा महज़ 27 है 
– भारत में बिजली गिरना अधिकारिक रूप में प्राकृतिक आपदाओं में शामिल नहीं है जिस कारण इससे होने वाली मौतों के मामलों में मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा नहीं मिल पाता
– अनियोजित शहरीकरण और पेड़ों की कटाई के कारण बिजली गिरने की घटनाओं में इज़ाफ़ा हुआ है
– शोध में यह भी पता चला है कि बारिश के दौरान मोबाइल फ़ोन के ज़्यादा इस्तेमाल से ज़्यादा लोग आसमानी बिजली की चपेट में आ रहे हैं
– जब सिर के बाल खड़े होने लगें और त्वचा सिहरने लगे तो समझ लेना चाहिए कि बिजली गिरने ही वाली है 


बीते सालों में हमारे देश में आसमानी बिजली गिरने की घटनाएं तेज़ी से बढ़ने के साथ ही इसकी चपेट में आने वाले लोगों की मौत की तादाद भी लगातार बढ़ रही है.बताया जाता है कि यहां वज्रपात (बिजली गिरना) की संख्या में जहां 34 फ़ीसदी की बढ़ोतरी देखने को मिली है वहीँ इसके कारण होने वाली मौतें साढ़े तीन हज़ार तक पहुंच चुकी हैं.ये जानते हुए कि यह एक प्राकृतिक आपदा है और बहुत खतरनाक़ है लेकिन विडंबना ये है कि यह न तो हमारी प्राथमिकताओं में कहीं दिखती है और न अब तक आधिकारिक तौर पर घोषित आपदाओं में ही शुमार है.नतीज़तन, पर्याप्त व्यवस्था व जागरूकता के अभाव के चलते स्थिति विकराल रूप धारण करती जा रही है.



आकाशीय बिजली से मरते लोग (प्रतीकात्मक)



दूसरी तरफ हम दुनिया के उन क्षेत्रों को देखते हैं जहां बिजली सबसे ज़्यादा गिरती है वहां मौतों के आंकड़े हमारे देश में होने वाली मौतों के आंकड़ों के मुकाबले बहुत ही कम हैं.अमरीका में वज्रपात से मरने वालों की संख्या महज़ 27 है.



क्या कहते हैं आंकड़े?

उल्लेखनीय है कि भारत में वज्रपात दर को लेकर अलग-अलग सरकारी आंकड़ों में भी भिन्नता देखने को मिलती है लेकिन इतना स्पष्ट है कि सभी आंकड़े तीव्र वृद्धि दर को ही बतलाते हैं.

दूसरी वार्षिक बिजली रिपोर्ट 2020-2021 के अनुसार, देश में बिजली गिरने की घटनाओं में 34 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है.2019-2020 में दर्ज 138,00,000 की वज्रपात दर 2020-2021 में 185,44.367 हो गई है.

यह रिपोर्ट एक ग़ैर-लाभकारी संगठन क्लाइमेट रेज़िलियेंट ऑब्ज़र्विंग सिस्टम प्रोमोशन काउंसिल (CROPC) द्वारा तैयार की गई है, जो मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के साथ मिलकर काम करता है ताकि बिजली के शुरुआती पूर्वानुमान उपलब्ध कराए जा सकें.इसके अनुसार, 1 अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 के बीच बिजली गिरने से 1771 लोगों की मौत दर्ज हुई जबकि एनडीएमए (NDMA- नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी) की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में हर साल बिजली गिरने से औसतन 2500 लोगों की मौत होती है.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े बताते हैं कि 2005 से हमारे देश में वज्रपात (बिजली गिरने से) के कारण सालाना लगभग 2000 लोगों की मौत होती है.वहीँ,पुणे स्थित भारत की जानी-मानी संस्था आईआईटीएम (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ ट्रॉपिकल मेटेरेलोजी- भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान) ने यह तादाद सालाना साढ़े तीन हज़ार होने का दावा किया है.बावज़ूद इसके इसे प्राकृतिक आपदा नहीं माना जाता.

पिछले आंकड़े बताते हैं कि 1967 से 2012 तक भारत में विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए लोगों में केवल बिजली गिरने के कारण मरने वाले लोगों का हिस्सा 39 फ़ीसदी था.बिजली गिरने की सबसे ज़्यादा घटनाएं झारखंड,उत्तरप्रदेश,राजस्थान,तेलंगाना,उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में घटी बताई जाती हैं.

हालिया अध्ययन से पता चलता है कि देश के 16 राज्यों में उड़िसा-पश्चिम बंगाल-झारखंड क्षेत्र अधिक प्रभावित है क्योंकि इन्हीं इलाक़ों से वज्रपात शुरू होकर बांग्लादेश तक मेघालय के पटकाई पठार तक फैलती है.



बिजली से प्रभावित राज्य और मौतें 

 


अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग मौसम समय में बिजली गिरती है.पूर्वी भारत में काल बैशाखी (मूसलाधार बारिश के साथ तेज़ तूफ़ान) का कहर होता है जबकि बिहार,झारखंड,छत्तीसगढ़ और उत्तरप्रदेश में सबसे ज़्यादा मौतें  प्री-मानसून (पूर्व मानसून- मार्च से मई महीने के बीच होने वाली बारिश का मौसम) बिजली से होती हैं.



आकाशीय बिजली का निर्माण,स्वरुप व प्रभाव

हम सभी जानते हैं कि आसमान में बादलों के बीच टकराव होने से एक तरह का विद्युत आवेश पैदा होता है जो तेज़ आवाज़ और रौशनी के साथ तेज़ी से धरती की और आता है.इस बीच इसके रास्ते में जो भी चीज़ आती है उसे जला देता है.इसे आकाशीय बिजली या तड़ित कहते हैं.स्थानीय भाषाओँ में इसे तड़का और ठनका भी कहा जाता है.



आकाशीय बिजली 



आकाशीय बिजली का चमकना एक प्राकृतिक क्रिया है.जब ज़्यादा गर्मी और नमी मिलती है तो बिजली वाले ख़ास तरह के बादल थंडर क्लाउड (गरजने वाले/तूफ़ानी बादल) बन जाते हैं और तूफ़ान का रूप ले लेते हैं.

सतह से करीब 8-10 किलोमीटर ऊंचे इस बादलों के निचले हिस्से में नेगेटिव और ऊपरी हिस्से में पॉजिटिव चार्ज़ ज़्यादा रहता है.दोनों के बीच अंतर कम होने पर यानि जब ये क़रीब आ जाते हैं तो तेज़ी से होने वाला डिस्चार्ज बिजली कड़कने के रूप में सामने आता है.

बादलों के बीच जो बिजली कड़कना हमें नज़र आता है, इंटर क्लाउड (आईसी) कहलाता है.उससे जानोमाल का नुक्सान नहीं होता.नुकसान तब होता है जब बादलों से बिजली ज़मीन में आती है.इसे क्लाउड टू ग्राउंड (सीजी) कहते हैं.

इस क्रिया के दौरान एक साथ भारी मात्रा में उर्जा धरती के एक छोटे से हिस्से पर गिरती है.

एक बार बिजली गिरने से कई करोड़ वॉट उर्जा पैदा होती है.इस कारण जहां गिरती है वहां आसपास के तापमान में 10 हज़ार डिग्री से लेकर 30 हज़ार डिग्री तक का इज़ाफ़ा हो सकता है.




आकाशीय बिजली के ज़मीन पर गिरने का दृश्य 



वज्रपात के दौरान क़ाफ़ी रौशनी होती है.आठ करोड़ मोमबत्तियां जैसे एक साथ जल जाएं, इतनी रौशनी आंखें ख़राब कर सकती हैं और इतना ताप किसी चीज़ को झुलसाने से लेकर राख़ भी कर सकता है.

एक आकाशीय बिजली में इतनी पॉवर होती है कि उससे तीन महिने तक एक 100 वॉट का बल्ब जल सकता है.

बिजली कड़कने की घटनाएं पृथ्वी पर जीवन की शुरुआत से ही होती आई हैं.बताया जाता है कि वायुमंडल में सालाना क़रीब 2 करोड़ 60 लाख तड़ित (बिजली) पैदा होते हैं.दक्षिण अमरीका के वेनेजुएला स्थित लेक मैराकाइबो हॉटस्पॉट है.इसके अलावा दुनिया में और भी कई स्थान हैं जहां बिजली गिरने की घटनाएं बहुत ज़्यादा होती हैं.



सालाना लाखों घटनाएं होती हैं दर्ज

दुनिया में हर साल बिजली गिरने की क़रीब 2 लाख 40 हज़ार घटनाएं दर्ज होती हैं.इनमें मौतों को लेकर अलग-अलग अध्ययन में अलग-अलग आंकड़े हैं.एक अध्ययन की मानें तो दुनिया में 6 हज़ार लोग हर साल बिजली गिरने से मारे जाते हैं.वहीँ, नेशनल जियोग्राफिक के मुताबिक़ 2 हज़ार जानें जाती हैं.अमरीका के मौसम विभाग के पोर्टल के अनुसार वहां हर साल औसतन 27 लोग मारे जाते हैं.

दूसरी तरफ, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की मानें तो भारत में ही हर साल 2 हज़ार लोग बिजली गिरने से मारे जाते हैं.आईआईटीएम का कुछ अलग ही दावा है.उसके अनुसार, भारत में वज्रपात के कारण मरने वालों की संख्या सालाना साढ़े तीन हज़ार है.यानि भारत में बिजली गिरने के कारण मरने वाले लोगों की संख्या यहां तमाम प्राकृतिक आपदाओं के कारण मरने वाले लोगों की कुल संख्या के एक तिहाई से भी ज़्यादा है.इसके बावजूद इसे प्राकृतिक आपदा नहीं माना जाता.नतीज़तन,इससे मौत की स्थिति में मृतकों के परिजनों को मुआवज़ा नहीं मिल पाता.




क्यों बढ़ रही हैं वज्रपात व मौत की घटनाएं?

आसमानी बिजली का गिरना एक प्राकृतिक क्रिया है और यह सभ्यता के आरंभ से ही चली आ रही है.पहले इसे दैवी प्रकोप (एक्ट ऑफ़ गॉड) समझा जाता था.मगर धीरे-धीरे सभ्यता का विकास होता गया और कालांतर में फ़िर मनुष्य ने वायुमंडल, ऊष्मा, बादलों, तड़ित-निर्माण आदि के रहस्यों को जाना.मगर सच्चाई ये भी है कि आज भी इसे हम पूरी तरह समझ नहीं पाए हैं तथा इस पर शोध ज़ारी है.बिजली के विज्ञान को फुल्मिनोलोजी कहा जाता है और इसके कारण लोगों में व्याप्त भय को एस्ट्राफोबिया के नाम से जानते हैं.

दुनियाभर के वैज्ञानिकों की राय में ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के चलते हालात ख़राब हो रहे हैं.ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने से हुए जलवायु परिवर्तन से भी बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ी हैं.

आकाशीय बिजली कहीं भी गिर सकती है.ख़ासतौर से ऊंचे पेड़,खंभों और इमारतों पर इसके गिरने कि संभावना ज़्यादा रहती है.पहाड़ी इलाक़ों व समुद्र तट के आसपास भी यह गिरती है क्योंकि वहां नमी व आद्रता की अधिकता होती है.शहरों के मुकाबले गांवों में बिजली ज़्यादा गिरने की वज़ह नमी ही होती है क्योंकि वहां पेड़-पौधे ज़्यादा होने से हरियाली ज्याद होती है.सिंचाई के साधन भी वहां अधिक होते हैं.

इसके विपरीत आईआईटीएम के वैज्ञानिकों का कहना है कि अब ग्रामीण इलाक़ों के मुक़ाबले शहरी इलाक़ों में बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ी हैं.इसके कारण हैं अनियोजित शहरीकरण व पेड़ों की अंधाधुंध कटाई.




पेड़ों की अंधाधुंध कटाई 



पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण ग्रामीण इलाक़ों के मुक़ाबले शहरी इलाके लगातार गर्म हो रहे हैं.साथ ही, यहां बढ़ता प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन भी वज्रपात की घटनाओं को तेज़ करने में सहायक होता है.
आईआईटीएम के वैज्ञानिकों के अनुसार –


” मेघालय और पूर्वोत्तर के दूसरे पर्वतीय राज्यों में अब भी हरियाली रहने की वज़ह से वहां वज्रपात और इससे होने वाली मौतों की तादाद देश के दूसरे हिस्सों के मुक़ाबले कम हैं. “



यह भी देखने को मिला है कि मुंबई के मुक़ाबले कोलकाता जैसे महानगर में वज्रपात की घटनाएं बढ़ी हैं.

वैज्ञानिकों की राय में, वो चाहे गांव हो या शहर पेड़-पौधे बहुत ज़रूरी हैं.इनमें मौज़ूद रस और पानी बिजली को सीधे ज़मीन में ले जाने का माध्यम बन जाते हैं और इधर-उधर फ़ैलने से रोकते हैं.यानि ये करंट को अपने अंदर अवशोषित कर उसे ज़मीन की गहराई में पहुंचा देते हैं जिससे आसपास मौज़ूद जीवों की रक्षा होती है.




वज्रपात प्रभावित पेड़ 




मोबाइल फ़ोन बढ़ा रहे बिजली गिरने की घटनाएं  

यह भी शोध में सामने आ चुका है कि बारिश के दौरान मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल करना जानलेवा साबित होता है.हमारे देश में मोबाइल फ़ोनधारकों की संख्या में रिकॉर्ड इज़ाफ़ा हुआ है.इस वज़ह से भी लोग वज्रपात की चपेट में आ रहे हैं.




बारिश के दौरान मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल (प्रतीकात्मक)




तड़ित चालक का कम इस्तेमाल

जानकारी के अभाव में या फ़िर लापरवाही के कारण अधिकतर मकानों या अन्य इमारतों में आजकल तड़ित चालक (बिजली से बचने वाले एंटीना) लगाए ही नहीं जाते.साथ ही,जो लोग तड़ित चालक लगवाते भी हैं वे इसकी गुणवत्ता पर ध्यान नहीं देते.

दरअसल, वज्रपात से बचाव के लिए सामान्य तड़ित चालक पर्याप्त नहीं होते.उनके उपकरण घटिया होते हैं जिस कारण वे ठीक से काम नहीं कर पाते हैं.ऐसे में, किसी भवन के पास कोई ऊंचे पेड़ या अन्य उंची वस्तु पर बिजली गिरती है तो वह भूमिगत प्रवाह के माध्यम से भी भवन में प्रवेश कर इंसान व बिजली के उपकरणों को नुकसान पहुंचा सकती है.



एरोसौल की मात्रा की अधिकता

भारतीय वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि हवा में एरोसौल की मात्रा अधिक होना भी बिजली गिरने का कारण बनता है.ताज़ा अध्ययन के मुताबिक़ हवा में जहां एरोसौल की मात्रा ज़्यादा होती है, वहां ऐसी घटनाएं होने की आशंका अधिक रहती है.

विभिन्न वायु प्रदूषकों में से एक एरोसौल दरअसल, हवा अथवा किसी अन्य गैस में सूक्ष्म ठोस कणों या तरल बूंदों के रासायनिक मिश्रण को कहते हैं.ये अपनी विशेषताओं से वायुमंडल की प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं.


जंगलों में आग के कारण वज्रपात

हाल ही में ये खुलासा हुआ है कि जंगलों में लगने वाली आग के कारण भी बिजली गिरती है.ऐसे में, आजकल जिस तरह जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं, उनसे भी बिजली गिरने की घटनाएं बढ़ रही हैं.



जंगल में आग 



अमरीकी पर्यावरण वैज्ञानिकों के मुताबिक़, जंगलों की आग भी ख़ुद आकाशीय बिजली का निर्माण करती है.यानि जिस जंगल में आग लगी है, वह ख़ुद भी बिजली गिरा सकता है/गिराता है.




वायु प्रदूषण और वज्रपात 

 

बताया जा रहा है कि जंगल की आग बिजली तब गिराती है जब प्रदूषण का स्तर बहुत ज़्यादा हो जाता है.जितनी ज़्यादा गंदी हवा होगी, उतनी ज़्यादा बिजली गिरेगी और उतनी ही ज़्यादा बारिश कि संभावना बनी रहती है क्योंकि वायु प्रदूषण का असर मौसम प्रणाली के साथ-साथ तूफ़ानों पर भी पड़ता है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक़, पिछले पांच सालों में बिजली गिरने का सिलसिला तेज़ हुआ है और आगे भी जम्मू-कश्मीर से लेकर दार्जिलिंग तक हिमालय की तराई,पूर्वी व मध्य भारत में ऐसी घटनाएं बढ़ सकती हैं.

वैज्ञानिकों का दावा है कि बिजली गिरने से मौतों की संख्या हर साल लगातार बढ़ रही है.



मरने वालों में ज़्यादा ग़रीब और मज़दूर

आसमान से गिरती बिजली ज़्यादातर उन्हें ही लीलती है, जो मज़बूर हैं, ग़रीब हैं और दो जून की रोटी के जुगाड़ में घनघोर बारिश में भी काम पर निकलते हैं.खेतों में काम कर रहे मज़दूरों को पता ही नहीं होता कि आसमान से टपकने वाली मौत उन्हें किस पल अपनी आगोश में ले लेगी.सिंचाई के दौरान कई बार खेतिहर मज़दूरों का पूरा परिवार एक ही साथ काम कर रहा होता है.उनके बच्चे भी आसपास ही खेलते रहते हैं.यह वक़्त बड़ा ख़तरनाक़ होता है.




खेतों में सपरिवार काम करते मज़दूर 



कुछ राज्यों से एक ही साथ पूरे परिवार के आसमानी बिजली की चपेट में आने की भी भी ख़बरें आती हैं.



कैसे कर सकते हैं मौतों को कम?

आकाशीय बिजली एक प्राकृतिक घटना है और इसे रोका तो नहीं जा सकता लेकिन इससे हो रही मौतों को कम ज़रूर किया जा सकता है.साथ ही, प्रदूषण को नियंत्रित कर हम ख़ासतौर से इसके कारण (प्रदूषण के कारण) बढ़ रही घटनाओं को भी कम कर सकते हैं.इसके लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ जनजागरण भी ज़रूरी है.


तकनीक का इस्तेमाल

हम सभी ये जानते हैं कि ब्रिटेन और अमरीका जैसे देशों में आकाशीय बिजली के नुकसान से बचाव को लेकर उच्च तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है.वहां ऐसे डिवाइस (यंत्र) इस्तेमाल किए जाते हैं जिनसे बिजली गिरने के बारे में (पूर्वानुमान) 3-4 घंटे पहले ही पता चल जाता है.इसका फ़ायदा ये होता है कि समय रहते लोगों को इसकी सूचना मिल जाती है और वे सतर्क हो जाते हैं.यही कारण है कि वहां भारत के मुक़ाबले वज्रपात के कारण होने वाली मौतों की संख्या बहुत कम है.हमारे यहां भी ऐसी तकनीक विकसित करने और उन्हें प्रयोग में लाने की ज़रूरत है.

मगर विडंबना ये है कि आज़ादी के दशकों बाद भी न तो इसकी गंभीरता को समझा गया और न किसी तरह के एहतियाती क़दम ही उठाए गए. क़रीब 4 साल पहले वर्तमान सरकार (मोदी सरकार) का ध्यान इस ओर गया और फ़िर शोध (रिसर्च) और सुरक्षात्मक क़दमों पर माथापच्ची शुरू हुई.देश के 16 राज्यों में इस बाबत एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू हुआ और उसके पूरा होने के बाद वर्ष 2019 (आख़िरी महीनों से) से भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा बिजली के पूर्वानुमान और चेतावनी के संबंध में मोबाइल पर संदेश भेजे जा रहे हैं.




आकाशीय बिजली संबंधी जानकारी जुटाने वाले रडार 



मगर यह क़दम अभी शुरूआती और नाकाफ़ी है.इसका नेटवर्क देशभर में फ़ैलाने के साथ-साथ इसे सफल बनाने के लिए पर्याप्त जागरूकता पर भी बल देने की ज़रूरत है ताकि आईएमडी द्वारा किसी प्रकार का अलर्ट ज़ारी किया जाता है तो उसका सही रूप में पालन हो.

यह व्यवस्था अभी मछुआरों के लिए ही है तथा गांव-देहात में खेती-बाड़ी करने वाले लोगों जैसे मज़दूर और किसानों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है.साथ ही, 30-40 मिनट पहले सूचना प्रसारित करने से समस्या का हल होने वाला नहीं है.उन्नत प्रकार के यंत्र लगाने होंगें जिनसे 3-4 घंटे पहले पूर्वानुमान प्राप्त कर संदेश भेजे जा सकें.

सरकार को इसके लिए अलग से बजट का प्रबंध कर अखिल भारतीय स्तर पर काम करना होगा.


तड़ित चालक का प्रयोग

हमें एक जागरूक और ज़िम्मेदार नागरिक के रूप में आसमानी बिजली के ख़तरों से बचाव के लिए अपने मकानों में तड़ित चालक का प्रयोग अनिवार्य करना होगा.क्योंकि ज़ान है तभी ज़हान है इसलिए उत्तम गुणवत्ता (क्वालिटी) वाले तड़ित चालक के प्रयोग को हमें अपनी प्राथमिकताओं में शामिल करना होगा.

सरकारों को भी ये सुनिश्चित करना होगा कि उनके द्वारा बनाए जाने वाले भवन (सरकारी भवन) में इस तरह की कोताही न बरती जाए.ख़ासतौर से स्कूलों में तड़ित चालक को लेकर सख्त़ी बरतने की आवश्यकता है.


 
       

आसमानी बिजली से बचने के उपाय 

जो लोग ये सोचते हैं- ‘मौत तो एक दिन आएगी ही’ और लापरवाही बरतते हैं वे दरअसल, मौत को दावत देते हैं.हमें इस ग़लतफ़हमी से बाहर आकर बुद्धिमत्ता का परिचय देते हुए सतर्क रहना चाहिए.बिजली गिरने के दौरान हमें बिल्कुल भी घबराना नहीं चाहिए और निम्नलिखित बातों/उपायों पर अमल करना चाहिए.


1. संकेतों को समझें 

जैसे कुछ जीव-जंतुओं को भूकंप और तूफ़ान आदि का आभास पहले ही हो जाता है और वे छुपने के लिए सुरक्षित ठिकानों की ओर भागने लगते हैं वैसे ही मानव शरीर को भी बिजली गिरने का संकेत मिल जाता है.




बिजली गिरने से पहले सिर का बालों का खड़ा होना (प्रतीकात्मक)



दरअसल, बिजली गिरने से पहले हमारे शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है और सिर के बाल खड़े खड़े होने लगते हैं.हमें इसका ज्ञान होना चाहिए.ऐसा होते ही तत्काल आसपास उचित स्थान पर उकडूं आसन में बैठ जाएं.उकडूं आसन दरअसल,बैठने की वह मुद्रा है जिसमें दोनों तलवे ज़मीन पर पूरे बैठते हैं और नितंब एडियों से लगे रहते हैं.

 

2. 30-30 का फ़ॉर्मूला अपनाएं

अमरीकी स्वास्थ्य संस्था सीडीसी के मुताबिक़, ऐसे हालात में 30-30 का फ़ॉर्मूला अपनाना चाहिए.यानि जब बिजली कड़कती दिखे तो तुरंत 30 तक गिनते हुए किसी छोटी इमारत में जाकर वहां छुप जाए.अपने सारे काम 30 मिनट के लिए रोक दें और इस दौरान किसी भी गैज़ेट या इलेक्ट्रॉनिक वस्तु को हाथ न लगाए.

3. उंची इमारतों और पेड़ से दूर रहें क्योंकि इन्हीं पर बिजली गिरने का ख़तरा ज़्यादा रहता है.




उंची इमारतों पर गिरती बिजली 



4. मोबाइल का इस्तेमाल न करें और उसे स्विच ऑफ़ कर दें.

5. बारिश से बचने के लिए न तो छतरी का इस्तेमाल करें और न ही उसे अपने पास रखें.उसे तत्काल दूर कर दें.




बारिश के दौरान छतरी का प्रयोग (प्रतीकात्मक)




6. अगर आप किसी फोर व्हीलर जैसे कार,जीप आदि में हैं तो उसी में रहें.लेकिन, मोटरसायकिल (बाइक) और साइकिल से फ़ौरन दूर हो जाएं क्योंकि उन पर जब आप बैठे होते हैं तो आपके पैर ज़मीन से लगे होते हैं और इस तरह आप बिजली के चपेट में आ सकते हैं.

7. लोहे के पिलर वाले पुल से दूर रहें.

8. अपने घर में चल रहे तमाम इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल उपकरणों जैसे टीवी,फ्रीज़ आदि को बंद कर दें.

9. तालाब,स्वीमिंग और अन्य जलाशयों से दूर ही रहें क्योंकि यहां भी बिजली गिरने की संभावना ज़्यादा रहती है.

10. ग्रूप (समूहमें,एक साथ) न रहें यानि अलग-अलग हो जाएं और ध्यान रखें कि आसपास बिजली या टेलीफोन के तार न हों.

11. धातु की चीज़ें जैसे गोल्फ़ का बल्ला,मछली पकड़ने की छड़ और बंदूक आदि दूर झटक दें.

12. आपके जूतों या सैंडल में नाल या कील लगें हों उन्हें भी उतारकर कहीं दूर रख दें.

13. किसी मकान या अपने घर में अगर आप हैं तो उसकी खिड़की और दरवाज़ों से दूर रहे.विशेषज्ञों का मानना है कि मकान की सबसे निचली मंज़िल के सबसे बड़े कमरे का मध्य भाग (बीच का हिस्सा) सबसे सुरक्षित स्थान होता है.


14. बिजली की चपेट में आए व्यक्ति का इलाज़ संभव

आसमानी बिजली की चपेट में आए व्यक्ति का अगर तुरंत इलाज हो जाए तो वह पूरी तरह ठीक हो सकता है.बिजली के झटके से दिल और फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है और इन्हें ज़ल्दी चालू न किया जाए तो मस्तिष्क के क्षतिग्रस्त होने का ख़तरा बढ़ जाता है.ऐसे में प्रभावित व्यक्ति को बिना वक़्त गवांए सीपीआर,कार्डियो पल्मोनरी रेसिटेंशन यानि कृत्रिम सांस देनी चाहिए.तत्काल उसकी प्राथमिक चिकित्सा की व्यवस्था करनी चाहिए.




वज्रपात से प्रभावित लोग (गूगल से प्राप्त चित्र)



15. अंत में, एक बात आपको बिल्कुल चिंतारहित कर देगी.अगर आपने बिजली चमकती देख ली तो समझ लीजिये कि ख़तरा टल गया है और आप बच गए.साहस और सूझबूझ से बड़े से बड़ा ख़तरा टाला जा सकता है.               
      
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