– वैज्ञानिकों ने प्लास्टिक के कचरे को वनीला फ्लेवर में बदलने का खोज़ा तरीक़ा
– एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा- आइसक्रीम में इसका हो सकता है इस्तेमाल
– प्लास्टिक और पॉलिथीन कचरे का सदुपयोग होगा और धरती से पर्यावरणीय समस्या को भी मिलेगी राहत
वैज्ञानिकों ने पहली बार प्लास्टिक के कचरे से आइसक्रीम में मिलाया जाने वाला वनीला फ्लेवर तैयार करने में क़ामयाबी हासिल की है.प्लास्टिक कचरे को वनीला फ्लेवर में बदलने के लिए जेनेटिकली मोडिफाइड बैक्टीरिया का इस्तेमाल किया गया है.प्लास्टिक को वनीला यानि वैनिलीन में बदला गया है.एक रिपोर्ट में इस नई खोज़ के ख़ुलासे के बाद ऐसा माना जा रहा है कि संभव है वनीला आइसक्रीम निकट भविष्य में प्लास्टिक के कचरे से बने.
ग्रीन केमिस्ट्री जरनल में छपी अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक़,वैनिलीन नामक कम्पाउंड (यौगिक) वनीला की तरह ख़ुशबू देता है और स्वाद पैदा करता है.प्राकृतिक रूप से यह वनीला बीन्स से तैयार किया जाता है जिसका हिस्सा 15 फ़ीसदी है जबकि बाक़ी 85 फ़ीसदी यह जीवाश्म इंधन से हासिल हुए रसायनों से निकाला जाता है.
अध्ययन के मुताबिक़,दुनियाभर में वैनिलीन की मांग पूर्ति की तुलना में बहुत ज़्यादा है.साल 2018 में इसकी मांग 37 हज़ार मीट्रिक टन थी और 2025 तक यह बढ़कर 59 हज़ार मीट्रिक टन होने की संभावना है.
ऐसे में,वैज्ञानिकों ने इसे सिंथेटिक रूप में विकसित करने का एक तरीक़ा ढूंढ निकाला है.इसके तहत उन्होंने प्लास्टिक के कचरे को जेनेटिकली मोडिफाइड बैक्टीरिया से मिलाकर वैनिलीन बनाया है,जिसका फ़ायदा ये होगा कि वैनिलीन का उत्पादन तो ज़्यादा होगा ही साथ ही प्लास्टिक के कचरे से भी दुनिया को राहत मिलेगी.
निरंतर अथक परिश्रम का परिणाम है ये उपलब्धि
वर्षों से इस कार्य में लगे वैज्ञानिक इससे पहले प्लास्टिक की बोतलों को गलाने में क़ामयाब हुए थे.दरअसल ये बोतलें पॉलीइथाइलिन टेरेफ्थेलेट से बनी होती हैं जिसे टेरेफ्थेलिक एसिड भी कहते हैं.उल्लेखनीय है कि टेरेफ्थेलिक एसिड और वैनिलीन का रासायनिक कम्पोजिशन समान होता है.ऐसे में एडिनबर्ग के वैज्ञानिकों ने पहले जेनेटिकली मोडिफाइड एशरेकिया कोलाई बैक्टीरिया (ई-कोलाई बैक्टीरिया) के जीनोम में बदलाव किया और फ़िर उसे प्लास्टिक से तैयार टेरेफ्थेलिक एसिड के साथ मिलाकर 37 डिग्री सेल्सियस पर रखा.क़रीब 24 घंटे बाद पाया गया कि टेरेफ्थेलिक एसिड का 79 फ़ीसदी हिस्सा वैनिलीन में बदल चुका था.
अब टेरेफ्थेलिक एसिड से निकलने वाले 79 फ़ीसदी वैनिलीन की मात्रा को और अधिक बढ़ाए जाने की दिशा में क़ाम चल रहा है.इस खोज़ में शामिल एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक स्टीफन वॉलेस का कहना है-
” हमारा शोध उस सोच को चुनौती है जो ये मानते हैं कि प्लास्टिक का कचरा दुनिया के लिए एक बड़ी समस्या है.यह कार्बन का एक नया स्रोत है.इससे कई उत्पाद तैयार किए जा सकते हैं. “
वैनिलीन के अन्य कई उपयोग हैं
वैनिलीन का उपयोग खाने-पीने की चीज़ों और कॉस्मेटिक में किया जाता है.फ़ार्मा इंडस्ट्री में इसका इस्तेमाल किया जाता है.साथ ही,साफ़-सफ़ाई में काम आने वाले प्रोडक्ट और हर्बीसाइड यानि कृषि क्षेत्र में अवांछित खरपतवारों को नष्ट करने में प्रयोग होने रसायनों में भी इसका इस्तेमाल होता है.
उल्लेखनीय है कि प्लास्टिक का कचरा एक बहुत बड़ी पर्यावरणीय समस्या है.प्लास्टिक और पॉलिथीन की वज़ह से जल तो प्रदूषित हो ही रहा है,इसके साथ-साथ हवा भी प्रदूषित हो रही है.
रिपोर्ट के मुताबिक़,क़रीब 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें प्रति मिनट के हिसाब से हर साल पूरी दुनिया में बेचीं जाती है.इनमें से सिर्फ़ 14 फ़ीसदी बोतलों को ही रिसाइकल किया जाता है जिनका उपयोग कपड़े,कारपेट और फाइबर बनाने में होता है.मगर इस खोज़ के बाद लगता है कि कई अन्य उत्पाद भी तैयार किए जा सकेंगें.