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इस्लाम

ईरान में बाप गोद ली हुई बेटी से शादी कर सकता है! इस बारे में इस्लाम क्या कहता है, जानिए

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इस्लामी रवायत के मुताबिक़, गोद लिए हुए बेटे के सामने मां को और बेटी को बाप के सामने पर्दा या हिजाब करना ज़रूरी है.यानि, गोद ली हुई औलाद ग़ैर-महरम है, और उसके साथ शादी और यौन संबंध या सेक्स हो सकता है.
 
 
ईरान में इस्लाम, बेटी से ब्याह, हिजाब से मुक्ति
ईरान में गोद ली हुई बेटी और बाप की स्थिति (सांकेतिक)
इस्लाम की धरती कहा जाने वाला अरब एक वहाबी देश है.मगर, दुनियाभर में कट्टरता के मामले में तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान के बाद ईरान का ही स्थान आता है.औरतों के खिलाफ़ यहां तमाम सख्त़ी और बंदिशों के अलावा एक ऐसा अज़ीबोगरीब कानून भी लागू है, जो कहीं और देखने को नहीं मिलता है.इस कानून के मुताबिक़, यहां एक बाप अपनी गोद ली हुई बेटी से शादी कर सकता है.अब चूंकि यह मामला इस्लामिक मुल्क का है, मसला इस्लामिक है, ऐसे में यह सवाल उठता है कि आख़िर इस बारे में इस्लाम क्या कहता है.यह जायज़ है या नाजायज़, हराम है या हलाल? मगर, इससे पहले ईरान में इसको लेकर स्थिति और व्यवस्था क्या है यह समझना ज़रूरी है, विषय-वस्तु स्पष्ट हो सके.
                                          

कानून देता है बाप को गोद ली हुई बेटी से शादी की इज़ाज़त  

ईरान में गोद ली हुई बेटी को उसका पालक पिता अपनी बीवी बना सकता है.ईरान में इसको लेकर एक ख़ास कानून भी है.ज्ञात हो कि साल 2013 में ईरान की संसद (जिसे इस्लामिक कंसल्टेटिव असेंबली या मजलिस भी कहा जाता है) ने एक कानून बनाया, जिसमें गोद ली हुई बेटी और बाप के रिश्तों की चर्चा है.इसके प्रावधानों अनुसार, कोई बाप अपने संरक्षण में रह रही यानि, गोद ली हुई बेटी के साथ निक़ाह या शादी कर सकता है.इसके लिए उसे कोर्ट में सिर्फ़ यह साबित करना होगा कि बेटी 13 साल की हो चुकी है, और ऐसा वह उसकी भलाई के लिए कर रहा है.
 
ईरानी समाज की दशा-दिशा तय करने वाली मुल्ला बिरादरी के मुताबिक़, यह एक ज़रूरी है क्योंकि इससे लड़कियों को अपने पालक पिता के सामने जहां हिजाब पहनने से छुटकारा मिल सकता है वहीं, समाज में चरित्रहीनता को फैलने का अवसर नहीं मिलेगा और यौन शुचिता बनी रहेगी.
इस शुचिता और सच्चरित्रता को क़ायम रखने के लिए पुरुषवादी ईरानी समाज की अपनी विचारधारा और कट्टरता के साथ-साथ वहां संवैधानिक-प्रशासनिक व्यवस्था भी की गई है.इस्लामी नियमों के पालन पर नज़र रखने और सख्त़ी बरतने के लिए वहां अलग से पुलिस भी है, जिसे मोरेलिटी पुलिस कहा जाता है.
इस मोरेलिटी पुलिस के हाथों कई महिलाएं मारी जा चुकी हैं.हाल ही महसा अमिनी ने भी अपनी जान गंवा दी है.
 
हालांकि पहले पश्चिमी देशों की तरह ही ईरान भी खुलेपन के माहौल में जीने वाला देश था.मगर, 1979 के बाद सब कुछ बदल गया.यहां इस्लामिक क्रांति के बाद, अयातुल्लाह ख़ुमैनी ने शरिया कानून लागू कर हिजाब को अनिवार्य कर दिया.साथ ही, हिजाब की आड़ में महिलाओं पर ऐसे क़ायदे-कानून लाद दिए गए, जिनके बोझ तले यहां औरतें ग़ुलामों से भी बदतर ज़िंदगी बसर करने को मजबूर हैं.
गोद ली हुई लड़की यहां एक बेटी के बजाय बाप की जागीर या घर की खेती है, जिसका परंपरा की आड़ में मनमाफ़िक इस्तेमाल हो सकता है.यह एक पालतू जानवर से ज़्यादा कुछ नहीं है, जिसके साथ ईरान में सब कुछ जायज़ है.
 
ज्ञात हो कि कि हिजाब की ऐसी अनिवार्यता ईरान के अलावा सिर्फ़ तालिबान वाले अफ़ग़ानिस्तान में है, दुनिया के दूसरे 55 मुस्लिम बहुल देशों में नहीं है.
ईरान में तो 9 साल की उम्र के बाद हर लड़की को हिजाब करना ज़रूरी है.
 
इस्लाम के जानकारों के अनुसार, इस्लाम शरीयत से चलता है.और शरीयत के अनुसार, लड़के और लड़की पर नमाज़ फ़र्ज़ होते ही वे बालिग़ या जवान हो जाते हैं.लड़की के लिए यह उम्र 9 साल, जबकि लड़के की उम्र 11 साल की  होती है.उनके अनुसार, हज़रत आयशा भी 9 साल की उम्र में ही मायके से ससुराल गई थीं.(सहीह मुस्लिम, किताब संख्या-16, हदीस संख्या-82)
  
अगर ऐसा है, यह परंपरागत है, तो इसे अच्छी तरह समझने के लिए इस्लामी क़िताबों, रवायतों या मान्यताओं पर गौर करना होगा.
 
 

गोद ली हुई औलाद के बारे में क्या कहता है कुरान?

ईरान शिया इस्लाम का केंद्र माना जाता है.पहले यह पारसियों का देश फारस था जहां जरथुस्त्र के अनुयायी रहते थे.सातवीं सदी में इस पर इस्लाम का क़ब्ज़ा हुआ, तो यहां अरब की संस्कृति चली आई.
 
पुराना अरब (इस्लाम से पहले) भी आज के अरब से अलग था.यहां गोद लेने की प्रथा थी.यहां तक कि इस्लाम के शुरुआती कुछ सालों तक यह जारी थी.ख़ुद पैग़म्बर मोहम्मद ने जैद बिन हारिस नामक एक यहूदी ग़ुलाम को गोद लेकर उसे अपना नाम दिया था.हदीसों के अनुसार, पैग़म्बर मोहम्मद ने क़ाबा के सामने खड़े होकर ऐलान करते हुए कहा था- ‘जैद बिन हारिस मेरा बेटा है, और आज से यह जैद बिन मोहम्मद कहलायेगा.’
 
लेकिन फिर, एक ऐसा वाक़या पेश आया कि उसके बाद सब कुछ बदल गया.इस्लाम में गोद लेने की प्रथा पर ही विराम लग गया.
 
यह घटना जैद बिन हारिस की शादी से जुड़ी हुई बताई जाती है.पैग़म्बर मोहम्मद तब जैद का रिश्ता लेकर अपनी फूफी के घर गए थे.वहां उन्होंने जैद के लिए अपनी फुफेरी बहन जैनब बिन्त-ज़हश का हाथ मांगा, तो फूफी के घरवालों ने यह कहकर मना कर दिया कि जैद एक ग़ुलाम है, जबकि वे सैयद हैं.वे कुरैश क़बीले (पैगम्बर के ही क़बीले) के हैं, और उनका एक ग़ुलाम के साथ रिश्ता मुमकिन नहीं है.
 
इसके बाद, एक आयत (सूरह अल-अहज़ाब की आयत संख्या-36) नाज़िल (अल्लाह की ओर से आसमान से उतरी) हुई, जिसमें अल्लाह और उसके रसूल यानि पैग़म्बर मोहम्मद की इच्छाओं और फैसलों को सर्वोपरि बताते हुए मोमिनों यानि मुसलमानों को एक प्रकार का आदेश दिया गया.
 
 
ईरान में इस्लाम, बेटी से ब्याह, हिजाब से मुक्ति
सूरह अल-अहज़ाब आयत संख्या-36 (स्रोत-कुरान डॉट कॉम)

” किसी ईमान वाले मर्द या औरत के लिए जब अल्लाह और उसके रसूल कोई फ़ैसला कर देते हैं, तो उस मामले में कोई और विकल्प नहीं रह जाता है.बेशक, जब कोई अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करता है, तो वह भटक गया है. ”

 
 
यानि, अल्लाह और उसके रसूल द्वारा किसी चीज़ का फ़ैसला करने के बाद, किसी मोमिन के लिए यह जायज़ नहीं है कि वह उसमें अपनी ओर से कोई फ़ैसला करे.
 
ऐसी स्थिति में हज़रत जैनब मान गईं, और फिर जैद के साथ उनका निक़ाह हो गया.
 
कुछ समय बाद, पैग़म्बर मोहम्मद एक दिन जैद से मिलने उनके घर गए.जैद तो घर पर नहीं थे मगर, जैनब थीं, उन्होंने उनका स्वागत किया.पैग़म्बर साहब ने उन्हें देखा, तो वे उनकी ओर आकर्षित हो गए.वहां से वे यह कहते हुए वापस हुए- ‘तमाम तारीफ़ उस अल्लाह के लिए है, जो दिलों को फेर देता है.’
 
इस घटना के बारे में जैनब ने जैद को बताया, तो वे पैग़म्बर के पास पहुंचे.जैद ने कहा- ‘मैं जैनब को तलाक़ देकर आज़ाद कर देता हूं, और आप उससे निक़ाह कर लें.’
 
मुहम्मद साहब ने उन्हें मना करते हुए अपनी बीवी को अपने साथ रखने को कहा.मगर फिर, एक ऐसी आयत नाज़िल हुई, जिसमें अल्लाह ने पैग़म्बर और जैनब की शादी को मंज़ूरी दे दी थी.
 
 
ईरान में इस्लाम, बेटी से ब्याह, हिजाब से मुक्ति
सूरह अल-अहज़ाब, आयत संख्या-37 (स्रोत- कुरान डॉट कॉम)

” याद करो (ऐ नबी), जब तुम उस व्यक्ति (जैद) से कह रहे थे, जिस पर अल्लाह ने मेहरबानी की (उसे मुसलमान बनाया), और तुमने भी उस पर एहसान किया (उसे अपना मुंहबोला बेटा बनाया), ‘कि अपनी बीवी को अपने पास रोक रखो और अल्लाह से डर रखो, और तुम अपने दिल में उस बात को छिपा रहे थे, जिसको अल्लाह ज़ाहिर करने वाला ही था.तुम लोगों से डरते हो, जबकि अल्लाह इसका ज़्यादा हक़ रखता है कि तुम उससे डरो.’ अतः जब जैद उससे (अपनी बीवी से) अपनी ज़रूरत पूरी कर चुका, तो हमने उसका तुमसे निक़ाह कर दिया, ताकि ईमान वालों को अपने मुंहबोले बेटों की बीवियों के मामले में कोई तंगी ना रहे, जबकि वे उनसे अपनी ज़रूरत पूरी कर लें.अल्लाह का फ़ैसला तो पूरा होकर ही रहता है. ”

 
 
यानि, अल्लाह यहां पैग़म्बर से कहता है कि अपने मुंहबोले बेटे जैद के सामने समाज के डर से जो अपने दिल की यह ख्वाहिश ज़ाहिर नहीं कर पा रहे थे (छुपा रखी थी) कि वे उसकी बीवी जैनब से शादी करना चाहते हैं, उसे अल्लाह ज़ाहिर करने वाला ही था.मगर अब, जब जैद ने अपनी बीवी (जैनब) को तलाक़ देकर आज़ाद कर दिया है, तो उससे आसमानों में (अल्लाह द्वारा) उनकी (पैग़म्बर की) शादी करा दी गई है.ऐसे में मोमिनीन (मुसलमान) को भी अब अपने गोद लिए हुए बेटों की बीवियों से (अगर उनका तलाक़ हो जाता है या हो चुका है तो) शादी करने में कोई दुविधा या संकोच नहीं होना चाहिए.
 
जानकारों के अनुसार, यही आदेश गोद ली हुई बेटियों पर भी लागू होते हैं.कोई बाप अपनी गोद ली हुई बेटी से निक़ाह या शादी कर सकता है.
 
बहरहाल, अब जब अल्लाह भी राज़ी था और बाक़ायदा आयत उतर आई थी, तब पैग़म्बर और जैनब के निक़ाह की तैयारियां शुरू हो गईं.
 
मगर हदीसों के अनुसार, जब यह ख़बर फैली, तो मुआशरे (इलाक़े) में लोगों ने इस पर ऐतराज़ किया.वे मुहम्मद साहब पर ताने मारने और इल्ज़ाम लगाने लगे कि वे ग़लत क़दम उठा रहे हैं.वे एक गोद लिए बेटे या ले-पालक (दत्तक पुत्र) की बहू के साथ शादी कर परंपरा के ख़िलाफ़ जा रहे हैं.
 
ऐसे में फिर, एक और आयत नाज़िल हुई.इसमें कुछ ऐसा आदेश हुआ कि जिसके अनुसार इस्लाम में गोद लेने की परंपरा पर ही पूर्णविराम (फुलस्टॉप) लग गया.
 
 
ईरान में इस्लाम, बेटी से ब्याह, हिजाब से मुक्ति
सूरह अल-अहज़ाब, आयत संख्या- 40 (स्रोत- कुरान डॉट कॉम)

” मुहम्मद तुम्हारे पुरुषों में से किसी के पिता नहीं हैं.किन्तु, वे अल्लाह के रसूल और सब नबियों में अंतिम हैं.अल्लाह को हर चीज़ का पूरा ज्ञान है. ”

 
 
यानि, मुहम्मद मोमिनों में से किसी मर्द के बाप नहीं हैं.वे अल्लाह के रसूल और आख़िरी नबी हैं.इसका आशय (मतलब) यहां यह हुआ कि पैग़म्बर जैद के भी (जिसको उन्होंने अपना मुंहबोला बेटा बनाया था) बाप नहीं हैं.यानि, जब जैद उनका बेटा (या असली बेटा) ही नहीं है, तो उसकी बीवी (जैनब) भी उनकी बहू नहीं हुई.ऐसे में, उनका उससे शादी करना ग़लत नहीं है, बल्कि वाज़िब है.
 
यही तर्क उलेमा गोद ली हुई बेटी के बारे में भी देते हैं.उनके अनुसार कोई बाप अपनी गोद ली हुई बेटी से शादी करता है, तो यह शरिया के खिलाफ़ नहीं है.
 
हालांकि आयतों (ले-पालक की स्थिति को लेकर कुरान में कुछ अन्य आयत भी हैं) में ऐसा कोई आदेश नहीं है कि जिसमें गोद लेना नाजायज़ या गुनाह माना गया हो.मगर, ऐसा ज़रूर कहा गया है कि गोद ली गई औलाद की कोई हैसियत नहीं है.उसे पालक माता-पिता के नाम के साथ-साथ संपत्ति में भी कोई अधिकार प्राप्त नहीं है.
 
यानि, ले-पालक गोद लेने वाले व्यक्ति के नाम से नहीं, बल्कि अपने असली पिता के नाम से ही जाना जाएगा.साथ ही, वह पालक पिता (गोद लेने वाले पिता) की संपत्ति (पैतृक संपत्ति) का वारिस भी नहीं हो सकता है.
 
सबसे अहम बात यहां यह है कि इस्लाम में गोद ली हुई औलाद ग़ैर-महरम (जिसके साथ शादी और सेक्स मुमकिन है) है.अगर, वह बेटा है, तो उसके सामने मां को, जबकि बेटी को बाप से सामने पर्दा या हिजाब करना ज़रूरी माना गया है.
 
इस्लाम के जानकारों के अनुसार, गोद ली हुई औलाद को बालिग़ होते ही घर से बाहर कर देना चाहिए यानि, उसके लिए रहने की कहीं और व्यवस्था करनी ज़रूरी होती है.मगर यदि, ऐसा संभव नहीं है, तो ऐसे बेटे या बेटी को रिश्ते में जोड़कर (उनसे शादी-संबध स्थापित कर) समस्या को हल किया जा सकता है.यही ईरान में होता है, या हो रहा है, परंपरा के हिसाब से और शरीयत के नाम पर.
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