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कीड़ा जड़ी: पहाड़ों की धरोहर लैब में उगाई जा रही है!

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किडनी की कोई समस्या हो या कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी, इसमें कीड़ा जड़ी बड़ी लाभकारी है.कमज़ोर सेक्स पावर वाले लोग तो इस बूटी को खाकर वियाग्रा को भूल जाते हैं.यही कारण है कि देश और विदेशों में इसकी भारी मांग है.इसकी मुंहमांगी क़ीमत मिलती है.मगर, प्राचीन काल से ही आयुर्वेदिक औषधि के रूप में उपयोग में आने वाली यह हिमालयी अनमोल जड़ी बूटी अब ख़त्म होने के कगार पर है.


कीड़ा जड़ी 
वर्तमान में ही जो खोए रहते हैं और भविष्य की चिंता नहीं करते, वे मुश्किलों में पड़ते ही हैं.भारत की भी यही स्थिति है.हम प्रकृति के अनमोल भंडार का लगातार दोहन करते हुए यह नहीं सोचते हैं कि उनका संरक्षण-संवर्धन भी ज़रूरी होता है.ख़ासतौर से, जो जीवन-रक्षक हैं, हमारे शरीर को विकारों से दूर रखकर स्वस्थ बनाए रखने में सहायक है, उनके प्रति तो हमारा ख़ास ख़याल और चिंता पहले होनी चाहिए.

मगर, दुर्भाग्य यह है कि हमारी आंखों के सामने हमारे पहाड़ों की अमूल्य धरोहर कीड़ा जड़ी ख़त्म होती जा रही है और उसे बचाने के लिए हम कोई ठोस क़दम नहीं उठा रहे हैं.

हम हिमालयी क्षेत्र में प्रकृति की गोद में खुले और मुफ़्त में उगने वाली कीड़ा जड़ी के मूल स्थान को और उन्हें मूल रूप में बचाए रखने के बजाय लैब में गमलों में उगा रहे हैं.

इस दिशा में हमारी जागरूकता और संवेदनशीलता का हाल देखिए कि दो साल पहले ही अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) इसे ‘रेड लिस्ट’ में डाल चुका है.


क्या है कीड़ा जड़ी?

कीड़ा जड़ी हिमालयी क्षेत्र में पैदा होने वाली एक प्रकार की जड़ी बूटी है, जिसमें हैपिलस फैब्रिकस नामक कीड़े के अवशेष (जीन, अंश) होते हैं.वैज्ञानिकों के अनुसार, कीड़ा जड़ी दरअसल, हैपिलस फैब्रिकस नामक कीड़े की इल्लियों (कैटरपिलर्स) को मारकर उस पर पनपता है.इसका वैज्ञानिक नाम कॉर्डिसेप्स (Cordyceps) साइनेसिस है.

भारत में इसका नाम कीड़ा जड़ी इसलिए पड़ा है क्योंकि यह आधा कीड़ा और आधा जड़ी है.नेपाल, चीन और तिब्बत में इसे यार्सागुम्बा या यार्सागुम्बू, जबकि अंग्रेजी में हिमालयन वियाग्रा व अल्पाइन ग्रास भी कहा जाता है.

कीड़े के समान दिखने वाली यह जड़ी बूटी दरअसल, एक जंगली मशरूम है.इसी एक ख़ास पहचान है.जब यह फूल से फल बनती है तब इसका रंग हरा होता है.मगर फिर, आगे चलकर यह हलके नारंगी रंग की हो जाती है.और आख़िरकार, पकने या सूखने के बाद यह कीड़े जैसी दिखाई देती है.

कीड़ा जड़ी भारत के पठारी क्षेत्रों में पाई जाती है.इसके अलावा, एशिया के थाईलैंड, वियतनाम, कोरिया, चीन, जापान, नेपाल, भूटान आदि देशों के नम समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय जंगलों में भी लगभग इसकी 600 से भी अधिक प्रजातियां मिलती हैं.

जानकारों के अनुसार, इसको छीलकर या पाउडर बनाकर उपयोग में लाया जाता है.


ख़तरे में क्यों है कीड़ा जड़ी?

प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं को ख़तरा आमतौर पर पर्यावरणीय गिरावट और जलवायु परिवर्तन के कारण होता है.मगर, जब इनके मूल स्थानों में मानवीय घुसपैठ और अति दोहन के साथ-साथ वहां प्रदूषण भी फैलता है, तो इन पर संकट आते ही हैं.कीड़ा जड़ी के साथ ही ऐसा ही हुआ है.

भारत में तो वैसे कीड़ा जड़ी का उपयोग प्राचीन काल से ही होता आया है, यह आयुर्वेदिक चिकित्सा या पारंपरिक इलाज का हिस्सा रहा है मगर, इसे आयुर्वेद के जानकारों के अलावा बहुत कम ही लोग जानते थे.

राष्ट्रीय स्तर पर इसकी जानकारी लोगों को तब हुई जब साल 2017-18 में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ और धारचूला के इलाक़ों में कीड़ा जड़ी के दोहन और तस्करी को लेकर विभिन्न गुटों के बीच ख़ूनी संघर्ष देखने को मिले.इस सिलसिले में कुमायूं में हत्या के मामले भी दर्ज़ हुए.जांच में खुलासा हुआ कि हिंसा का कारण कीड़ा जड़ी का बेशकीमती होना है, और चीन में इसकी मुंहमांगी क़ीमत मिलती है.

जब इसके अवैध कारोबार की ख़बर सरकार और वैज्ञानिकों को मिली, तो सब जागे और इसकी खोजबीन हुई.इस पर शोध कार्य भी शुरू हुआ.

दूसरी ओर, सरकार ने इसके दोहन/संग्रह को वैध बनाकर वन विभाग की देखरेख में इसके लाइसेंस जारी कर दिए.तब से इस जड़ी बूटी को इकठ्ठा करने के लिए चमोली और पिथौरागढ़ के धारचूला व मनुस्यारी क्षेत्र में 3,500 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों में जहां यह उगती है, जून-जुलाई महीने में हजारों की संख्या में लोग बर्फ़ पिघलते ही पहुंच जाते हैं.इस दौरान गांव के गांव ख़ाली हो जाते हैं.लोग पहाड़ों पर टेंट लगाकर रहते हैं और इसे इकठ्ठा कर भेषज संघ या वन विभाग के पंजीकृत ठेकेदारों को बेचते हैं.

इसके अलावा, इसकी तस्करी भी बड़े पैमाने पर होती है, जिससे पूरा क्षेत्र प्रभावित हो रहा है.वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों के अनुसार, चाहे अवैध हो या वैध, इसके लगातार और अंधाधुंध दोहन से हिमालय की नाजुक जैव विविधता और पारिस्थितिकी की क्षति हो रही है.

बताया जाता है कि पिछले क़रीब दो दशकों में कीड़ा जड़ी की उपलब्धता में क़रीब 30-40 फ़ीसदी की गिरावट दर्ज़ की गई है.जानकारों के अनुसार, अगर यही स्थिति रही, तो हमारे देश की कीड़ा जड़ी अपने मूल स्थान से मिट जाएगी.
यही कारण है कि आईयूसीएन ने दो साल पहले ही ख़तरा जताते हुए इसे संकटग्रस्त प्रजातियों में शामिल कर ‘रेड लिस्ट’ में डाल दिया था.


लैब में उगाई जा रही है हिमालयी जड़ी बूटी!

पता चला है कि हल्द्वानी के जैव उर्जा रक्षा अनुसंधान (डिबेर) के लैब में कीड़ा जड़ी के उत्पादन संबंधी शोध में सफलता मिलने के बाद अब उत्तराखंड, गुजरात और केरल स्थित तीन लैब में इसके व्यवसायिक उत्पादन की तैयारी चल रही है.

उधर बाबा रामदेव के हरिद्वार स्थित पतंजली योगपीठ की लैब में यह्जी काम 2019 से चल रहा है.वहां 225 स्क्वायर फीट की लैब में दीवारों पर आयल पेंट आदि कर 18 से 22 डिग्री के अनुकूल तापमान में प्लास्टिक के डिब्बों में कीड़ा जड़ी उगाई जा रही है.

हालांकि यह काम देश में सबसे पहले दिव्या रावत ने किया था.उन्होंने देहरादून के मथोरावाला में अपनी कंपनी ‘सौम्या फ़ूड प्राइवेट लिमिटेड’ की लैब में कीड़ा जड़ी को सफलतापूर्वक उगाया था.इसको लेकर ही उन्हें ‘मशरूम गर्ल’ के नाम से जाना जाता है.

मगर, सवाल उठता है कि जड़ को छोड़कर हम टहनियों की ओर क्यों भाग रहे हैं? हम हिमालयी क्षेत्र में प्रकृति की गोद में खुले और मुफ़्त में उगने वाली कीड़ा जड़ी के मूल क्षेत्र में तस्करी रोकने, अति दोहन में कमी लाने और पर्यावरणीय गिरावट में सुधार पर काम करके इसे बचाने और बढ़ाने के बजाय लैब में गमलों में क्यों उगा रहे हैं?

दरअसल, इसे अपनी ज़िम्मेदारियों से भागना कहते हैं.खज़ाने को छोड़कर तिजोरी की चिंता करना कहते हैं.जानकारों के अनुसार, सरकारों को इस बाबत गंभीरता से विचार कर एक विशेष कार्ययोजना के तहत पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों को आगे करना चाहिए.वे वस्तुस्थिति को ध्यान में रखकर न केवल समस्या का निवारण ढूंढ सकते हैं, बल्कि अपनी क्षमताओं से संरक्षण और संवर्धन की दिशा में काम करते हुए इस अति मूल्यवान जड़ी बूटी को फिर से आबाद कर सकते हैं.यह ज़रूरी है क्योंकि हमारा सुरक्षित भविष्य प्रकृति और जड़ी बूटियों से ही जुड़ा हुआ है.


बड़ी लाभकारी है कीड़ा जड़ी

कीड़ा जड़ी विभिन्न विकारों से लड़ते हुए शरीर को स्वस्थ रखने में हमारी मदद तो करती ही है, कई गंभीर रोगों में भी यह बड़ी लाभकारी औषधि है.इसके अनेक लाभ हैं.

1. कीड़ा जड़ी अपने औषधीय गुणों के चलते हमारी कोशिकाओं और विशिष्ट रसायनों को उत्तेजित कर हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूती ही नहीं देतीं, इसकी गड़बड़ियों में सुधार भी करती हैं.

2. कीड़ा जड़ी में कामोद्दीपक गुण होते हैं, जो यौनशक्ति और उत्तेजना को बढ़ाते हैं.

इस यौन शक्तिदायिनी बूटी को खाकर लोग वियाग्रा को भूल जाते हैं.इसी कारण इसे देसी वियाग्रा भी कहा जाता है.

3. कीड़ा जड़ी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट फेफड़ों और त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाले मुक्त कणों या फ्री रेडिकल्स के असर को कम करने में मदद करते हैं.

4. आयुर्वेद के जानकारों के अनुसार, कीड़ा जड़ी में कई प्रकार के पोषक तत्व और खनिज पदार्थ होते हैं, जो शरीर को तत्काल उर्जा प्रदान करने के साथ उसे लंबे समय तक बनाए भी रखते हैं.इसके सेवन से शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ावा मिलता है.यही वज़ह है कि ज़्यादातर एथलीट एनर्जी बूस्टर के तौर पर कीड़ा जड़ी मिश्रित सप्लीमेंट्स आदि का सेवन करते हैं.

5. कीड़ा जड़ी के सेवन से हमारा ह्रदय स्वस्थ रहता है.इसमें मौजूद पोषक तत्व और खनिज पदार्थ ह्रदय में रक्त संचालन (ब्लड सर्कुलेशन) को सुचारू बनाए रखने के साथ-साथ ह्रदय विफलता (Heart Failure) और दिल के दौरे (Heart Attack) की स्थिति से बचाए रखते हैं.

इसमें एंटी इन्फ्लामेटरी आर दर्द-निवारक गुण होते हैं, जो दिल की धड़कन की गति के उतार-चढ़ाव और दूसरी तरह की दिल से जुड़ी समस्याओं से दूर रखते हैं.

6. कीड़ा जड़ी ख़राब कोलेस्ट्रोल के स्तर को कम करने के साथ ही अच्छे कोलेस्ट्रोल को बनाए रखने में भी सहायक होती है.इस प्रकार, यह उच्च रक्तचाप और निम्न रक्तचाप, दोनों ही में सर्वोत्तम समाधान है.

7. विशेषज्ञों के अनुसार, कीड़ा जड़ी में एंटी कैंसर और एंटी-ट्यूमर गुण होते हैं.इसलिए इसके नियमित प्रयोग से कैंसर की संभावना को रोका जा सकता है.साथ ही, इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कैसर कोशिकाओं के विकास को रोकने और उन्हें नष्ट करने में समर्थ होते हैं.

8. कीड़ा जड़ी में एंटी एजिंग (बुढ़ापा रोकने वाले) गुण भी भरपूर होते हैं.इसके नियमित सेवन से व्यक्ति का सौन्दर्य और उसकी जवानी लंबे समय तक बनी रहती है.विशेषज्ञों के अनुसार, इसमें मौजूद विशेष तत्व क्षतिग्रस्त त्वचा कोशिकाओं को फिर से जीवंत करने और मृत त्वचा कोशिकाओं को हटाने में मदद करते हैं.

कीड़ा जड़ी में उपस्थित पोषक तत्व झुर्रियां, चमड़ी के दाग़-धब्बों और आंखों के नीचे काले घेरों को दूर करने में भी बहुत असरदार होते हैं.

9. कीड़ा जड़ी को गुर्दे या किडनी संबंधी समस्याओं में अति उपयोगी या रामबाण समाधान माना गया है.बताया जाता है कि इसके उपयोग से गुर्दे स्वस्थ रहते हैं.साथ ही, ख़राब गुर्दों को इसके नियमित सेवन से बड़ा लाभ मिलता है.

10. कीड़ा जड़ी अस्थमा के लक्षणों को कम कर सकती है.कई विशेषज्ञ और चिकित्सक अस्थमा के रोगियों को दवाइयों के साथ कीड़ा जड़ी के सेवन की भी सलाह देते हैं.

11. कीड़ा जड़ी डायबिटीज में भी लाभकारी है.इसमें मौजूद एक विशेष प्रकार की चीनी शरीर के लिए बहुत फ़ायदेमंद होती है.इसके सेवन से इंसुलिन का उत्पादन बढ़ता है, जो शरीर में रक्त-शर्करा के स्तर को नियंत्रित रखता है.


अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कीड़ा जड़ी की भारी मांग, मुंहमांगी क़ीमत

कीड़ा जड़ी की अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कितनी मांग है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि चीन प्राकृतिक कीड़ा जड़ी के स्थान पर अब कृत्रिम कीड़ा जड़ी का विकल्प भी पेश कर रहा है.वह कृत्रिम कीड़ा जड़ी दुनियाभर में यह कहकर बेच रहा है कि इसमें प्राकृतिक कीड़ा जड़ी के सारे गुण मौजूद हैं.

ज्ञात हो कि भारत के उत्तराखंड और नेपाल के हिमालयी क्षेत्रों में पैदा होने वाली कीड़ा जड़ी का सही फ़ायदा चीन ही उठाता है.हक़ीक़त यह भी है कि इन देशों की कीड़ा जड़ी के कुल उत्पाद का 90 फ़ीसदी हिस्सा वह धारचूला-काठमांडू के ज़रिए तस्करी द्वारा हासिल करता है.

उत्तराखंड से पांच-सात लाख रुपए प्रति किलोग्राम के हिसाब से निकली कीड़ा जड़ी काठमांडू में चीन के बैठे दलालों के हाथों में पहुंचते-पहुंचते 20-25 लाख रुपए प्रति किलोग्राम की क़ीमत की हो जाती है.अब इसके आगे अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में इसकी क़ीमत क्या होगी, यह अंदाज़ा लगाना कठिन नहीं है.

जानकारों के अनुसार, चीन, सिंगापूर और हांगकांग में इसकी भारी मांग है.

बहरहाल, कीड़ा जड़ी पहले इतनी लोकप्रिय नहीं थी.यह दुनियाभर में मशहूर हुई ख़ासतौर से स्टुअटगार्ड विश्व चैंपियनशिप में 1500 मीटर, तीन हज़ार मीटर और दस हज़ार मीटर वर्ग में चीन की महिला एथलीटों के रिकार्ड तोड़ प्रदर्शन के बाद.दरअसल, उस वक़्त उनकी ट्रेनर मा जुनरेन ने मीडिया को बताया था कि ऐसा यार्सागुम्बा यानि कीड़ा जड़ी के नियमित सेवन के कारण संभव हुआ है.

इसके बाद तो दुनियाभर में इसकी मांग बढ़ने के साथ ही इसकी क़ीमत में भी भारी उछाल आया.कई फार्मा कंपनियां इससे दवाइयां तैयार कर करोड़ों के वारे-न्यारे कर रही हैं.
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