– पूरी ज़िंदगी गांधी जी अपनी यौन कुंठाओं को लेकर परेशान रहे और इसी को साधने के प्रयोग करते रहे– बहुत कम लोगों को पता है कि गांधी जी किशोरावस्था में ग़लत संगत में पड़कर ग़लत रास्तों पर चले गए थे– अपनी आत्मकथा में गांधी जी ने लिखा है कि उन्होंने चोरियां कीं, बीड़ी पी और कोठे पर भी गए
किशोरावस्था में की गई ग़लतियां कितनी नुकसानदेह होती है, ये शायद गांधीजी अच्छी तरह समझते थे.यही कारण है कि अपने एक दोस्त और उसकी संगत में रहते हुए जो ग़लत काम किए, वह सब उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिख दी है.चोरियां करना, बीड़ी पीना, कोठे पर जाना, पिता को मृत्युशैय्या पर छोड़कर पत्नी के साथ सहवास में व्यस्त होने की घटना आदि के साथ ही इन सब के प्रतिक्रियास्वरूप उन्हें जो अपराध बोध हुआ, उसका भी ज़िक्र उन्होंने किया है.शायद ये अपराध बोध की प्रबलता ही थी, जिसके कारण गांधीजी ताउम्र ग़लतियां दोहराते रहे.किशोरावस्था में भटके गांधीजी, जवानी और बुढ़ापे में भी भटकते रहे.
अध्ययनों में पाया गया है कि अन्य आयुवर्गों की तुलना में, किशोरावस्था उम्र का वह पड़ाव है, जब यौनक्रियाओं का शारीरिक और मानसिक रूप से सबसे अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है.अपराध बोध होता है.
दरअसल, अपराध बोध अपराध की ही प्रतिक्रिया है, जो अपराध करने वाले के खिलाफ़ होता है.
कई विचारकों के अनुसार, मानसिक व्याधियों का एक बड़ा कारण अपराध बोध का बोझ भी है.इंसान बेवक़ूफ़ी और पशु प्रवृत्ति की हालत में अपराध कर बैठता है, लेकिन जब उसकी आत्मा और विवेक दोबारा प्रबल होकर अपराध की विवेचना करते हैं, तो वह अपराध बोध से भर जाता है और इस कारण वह कभी-कभी अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है.इस असंतुलन की स्थिति में व्यक्ति और भी बड़े अपराध करने लगता है.शायद गांधीजी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ होगा तभी वह कई मौक़ों पर पश्चाताप आदि की बातें करते हैं, लेकिन ताउम्र स्थिति वैसी ही बनी रहती है, जो शुरुआत में थी.ऐसे में गांधीजी के जीवन से उन घटनाओं के बारे जानने की ज़रूरत महसूस होती है, जो उनके साथ घटी थीं.
शुरुआती ग़लत क़दम
गांधी जी का आरंभिक जीवन पोरबंदर और राजकोट में बीता.इस दौरान वे ख़ुद को कमज़ोर, दब्बू और कुंठित महसूस करते थे.13 साल उम्र थी और जब वे हाईस्कूल में पढ़ते थे तभी उनकी शादी हो चुकी थी.उनकी पत्नी कस्तूरबा उनसे एक साल बड़ी थीं.उन दिनों उनके सबसे क़रीबी दोस्त, शेख़ मेहताब जिसपर वे सबसे ज़्यादा भरोसा करते थे, उसने उन्हें ताक़त और आत्मविश्वास बढ़ाने के कुछ नुस्ख़े बताए.उस पर अमल करते हुए गांधी जी मांस खाना शुरू किया.ये सिलसिला क़रीब एक साल तक चला.इसी दौरान उन्हें नशे की भी लत लग गई और वे बीड़ी पीने लगे.
बीड़ी खरीदने के लिए गांधी जी अपने घर के नौकर की जेब से पैसे चुराने लगे.मगर यह पर्याप्त नहीं था.ऐसे में, एक स्थाई जुगाड़ ढूंढ निकाला और वे हरी सब्जियों के पत्तों को बीड़ी बनाकर पीने लगे.
दरअसल, गांधी जी के सत्य के प्रयोग की ये शुरुआत थी.
कोठे पर भी गए थे गांधी
गांधी जी के प्रिय मित्र शेख़ मेहताब ने उन्हें पौरुष (मर्दाना ताक़त) बढ़ाने के लिए कोठे पर जाने की सलाह दी.गांधी जी इसके लिए राज़ी हो गए और फिर दोनों छुपते-छुपाते वहां जा पहुंचे.
मेहताब ने गांधी जी को वहां एक वेश्या के साथ एक कमरे में भेजने के बाद वह ख़ुद भी अपनी पसंद की एक वेश्या को लेकर दूसरे कमरे में चला गया.
गांधी जी एक कमरे में अकेले एक वेश्या के साथ थे पर उनका जोश ठंडा पड़ चुका था.किसी प्रकार वे उसके पास जाकर खटिया पर बैठे और एकाग्रता लाकर विषयोन्मुख होने का प्रयास करते रहे, लेकिन सफलता नहीं मिली.उनका शरीर जड़-सा हो गया था.
उस वेश्या ने भी मौक़े की नज़ाक़त भांपकर, सहयोग की दृष्टि से गांधी जी के साथ छेड़छाड़ करते हुए उन्हें तैयार करने की भरसक कोशिश की.मगर इसका भी कोई फ़ायदा न होते देख वह खीझ गई और फिर उसने गांधी जी को धक्का देकर कमरे के बाहर निकाल दिया.
पिता को मृत्यु-शैय्या पर छोड़ सहवास में लीन थे
पिता की आख़िरी घड़ी में पिता के साथ न होकर गांधी जी अपनी पत्नी के साथ सहवास में लीन थे.
यह घटना दरअसल, उन दिनों की है, जब गांधी जी के पिता क़बा उर्फ़ करमचंद बुढ़ापे में भगंदर से पीड़ित होने के कारण बहुत बीमार थे और शैय्या पर लेटे अपने जीवन की अंतिम घडियां गिन रहे थे.
वैद्य ने बता दिया था कि उनके पिता किसी भी वक़्त प्राण त्याग सकते हैं.मगर गांधी जी के दिलोदिमाग़ पर तो सेक्स का भूत सवार था और वे किसी भी बहाने अपनी पत्नी के कमरे तक पहुंचने को लालायित थे.उसी दौरान उनके काका (चाचा) वहां आए और बड़े भाई की देखभाल ख़ुद करने की पेशकश करते हुए गांधी जी को आराम करने की सलाह दी.
मौक़ा मिलते ही गांधी जी सीधे अपनी पत्नी के कमरे में पहुंचकर विषय-भोग में लीन हो गए.
इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि गांधी जी को अपने कमरे में वक़्त बिताए अभी बमुश्किल पांच-सात मिनट ही हुए थे कि उनके नौकर ने दरवाज़ा खटखटाया दिया.उसने बताया- ‘बापू गुज़र गए.’
गांधी जी के काका अपने बड़े भाई की अंतिम सेवा का गौरव पा गए.मगर, गांधी जी इससे वंचित रह गए.
जवानी में बदनाम हुए
अपनी जवानी के दिनों में गांधी जी कई महिलाओं के साथ-साथ कुछ पुरुषों के साथ भी अपने संबंधों को लेकर बदनाम रहे.इस बाबत कई लेखकों-विचारकों ने तरह-तरह के दावे किए हैं.
पुलित्ज़र पुरस्कार विजेता लेखक जोसेफ़ लेलीवेल्ड ने गांधी जी की जीवनी ग्रेट सोल: महात्मा गांधी एंड हिज़ स्ट्रगल विद इंडिया में गांधी जी और कालेनबाख के बीच रिश्तों पर सवाल उठाए थे.उन्होंने दोनों के बीच हुए पत्राचार का हवाला देते हुए 2011 में प्रकाशित अपनी पुस्तक में दावा किया है कि उनके बीच समलैंगिक संबंध थे.
उनके मुताबिक़, गांधी जी कालेनबाख को भेजे अपने पत्रों में ख़ुद को ‘अपर हाउस’ कहते थे और कालेनबाख को ‘लोअर हाउस’.इन संबोधनों के ज़रिए ही लेलीवेल्ड ने दावा किया था कि दोनों के बीच रिश्ता आत्मीय संबंधों से बढ़कर था.
दरअसल, गांधी जी और जर्मनी के यहूदी आर्किटेक्ट हरमन कालेनबाख की मुलाक़ात दक्षिण अफ्रीका में साल 1904 में हुई थी.इसके बाद 1907 से लेकर अगले दो साल दोनों साथ-साथ रहे थे.
कालेनबाख गांधी जी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें जोहानिसबर्ग के नजदीक स्थित अपना एक हज़ार एकड़ में फ़ैला बेशकीमती फार्म हाउस उपहार में दे दिया था.
बताया जाता है कि स्वदेश लौटे गांधी जी ने अपने पत्रों में कहा था कि वह कालेनबाख के बिना अधूरे हैं और उन्होंने उनकी (कालेनबाख की) फ़ोटो अपने बिस्तर के ठीक सामने लगा रखी है, ताकि वे सोते-जागते उन्हें अपने साथ महसूस कर सकें.
विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, गांधी जी और कालेनबाख से जुड़े पत्रों आदि दस्तावेज़ों को नीलामी में खरीदने के बाद साल 2013 में सार्वजनिक करने से पहले कांग्रेस सरकार ने उनमें से बहुत सारे पत्रों, जिनमें अंतरंग बातें लिखी थीं, उन्हें नष्ट करा दिया था.
पोलक दंपत्ति को लेकर भी कई तरह की बातें पढ़ने-सुनने को मिलती हैं.
बताया जाता है कि हेनरी पोलक और उनकी पत्नी मिली ग्राहम पोलक, दोनों के ही गांधी जी के साथ अंतरंग संबंध थे और ये संबंध कई वर्षों तक क़ायम रहे.
दरअसल, हेनरी पोलक दक्षिण अफ्रीका में एक ब्रिटिश मूल के वकील, पत्रकार और कार्यकर्त्ता थे, जो नस्लीय भेदभाव के खिलाफ़ काम करते थे.1904 में गांधी जी से उनकी मुलाक़ात हुई.उसके बाद 1905 में वे महंगे इलाक़े ट्रोयविले में गांधी जी के बड़े बंगले में उनके साथ ही रहे.
गांधी जी की मदद और प्रयास से हेनरी अपनी महिला दोस्त मिली ग्राहम को इंग्लैंड से अफ्रीका लाए थे.
अफ्रीका में मिली और गांधी जी के बीच नजदीकियां बढ़ीं और गांधी जी उनके साथ आत्मीयता महसूस करते थे, इसकी चर्चा स्वयं गांधी जी ने की है.
यह भी कहा जाता है कि मिली के अफीका आने के कुछ ही महीनों बाद हेनरी और उनकी शादी हो गई थी और वे गांधी जी अलग किसी दूसरे स्थान पर रहने लगे थे.लेकिन, यह दुराव ज़्यादा दिनों तक नहीं चल सका और वे फिर मिले.इसके बाद तीनों एकसाथ रहने लगे.
बुढ़ापे में महिलाओं के संग नंगे सोते रहे
गांधी जी किशोरावस्था और जवानी की तरह बुढ़ापे में भी भटकते रहे.उनके सत्य अथवा ब्रह्मचर्य के नाम पर सेक्स के प्रयोगों का सिलसिला आगे भी ज़ारी रहा.कई लेखकों-विचारकों के अनुसार-
” गांधी के जीवन के अध्ययन से पता चलता है कि वह सबसे अधिक अपनी यौन कुंठाओं को लेकर परेशान रहे.उनका लगभग पूरा जीवन इसी को साधने के प्रयोगों में बीता. ”
गांधी जी बुढ़ापे में भी लगातार यौन इच्छाओं पर आधारित प्रयोग करते रहे.इस बाबत जेड एडम्स शेड की क़िताब गांधी: नैकिड एंबिशन, क्वेरकस, 2010, निर्मल कुमार बोस की पुस्तक, माय डेज़ विद गांधी, एरिक एरिक्सन की क़िताब- गांधीज़ ट्रूथ डब्ल्यू डब्ल्यू नॉर्टन, सुधीर कक्कड़ की क़िताब- मीरा एंड द महात्मा, पेंग्विन, 2004 और शंकर शरण की पुस्तक गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग के अलावा संपूर्ण गांधी वांग्मय और मनुबेन की डायरी में पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है, जिनपर सवाल नहीं उठाया जा सकता.
गांधी जी अपनी निजी सेविकाओं मनुबेन, आभा, सुशीला नय्यर, अम्तुस्सलाम, प्रभावती, वीणा, कंचन, लीलावती और मीराबेन से मसाज़ कराते, उनके साथ नंगे नहाते और सोते थे.
गांधी जी की प्रमुख और सबसे प्रिय सेविका मनुबेन ने अपनी डायरी में लिखा है कि ‘आश्रम में लड़कियों में बापू के साथ सोने की होड़ लगी रहती थी.’ गांधी जी की यह रात्रि-चर्या अंत तक ज़ारी रही.